Tuesday, May 29, 2012

एक ट्विटर टाइम-लाइन

जिस तरह से आजकल सारे संवाद ट्विटर पर हो जाते हैं उसे देखते हुए आज सुबह सोच रहा था कि अगर ममता दी ट्विटर पर होतीं तो कल शाम को उनकी ट्विटर टाइम-लाइन कैसी दीखती? शायद कुछ इस तरह की:

टाइम लाइन पढ़ें के लिए Scribd क्लिक कीजिये.



Friday, May 25, 2012

चंदू इन एक्सक्लूसिव चैट विथ डॉक्टर सिंह

चंदू ने उत्तरप्रदेश चुनावों के समय राहुल गांधी जी का एक इंटरव्यू किया था. चूंकि राहुल जी हमेशा सच बोलने और लिखने वालों के साथ रहते हैं, लिहाजा उन्होंने चंदू की बड़ी प्रशंसा की. चंदू की प्रशंसा के चर्चे इतने फैले कि प्रधानमंत्री ने फैसला किया कि वे पाँच संपादकों से मिलें उससे अच्छा केवल चंदू को इंटरव्यू दे दें. जो काम पाँच सम्पादक मिलकर नहीं कर सकेंगे वह काम चंदू अकेले ही कर देगा. परसों यूपीए-टू की तीसरी सालगिरह मनाई गई. मीटिंग हुई. खाना-पीना हुआ. मुस्कुराहटें बिखेरी गईं. विचार-विमर्श करने की ऐक्टिंग की गई. कुछ ने खुश दिखने की ऐक्टिंग की. कुछ ने दुखी दिखने की. कुछ पुराने मित्र नहीं आये. सरकार को नए मित्र मिले. फोटो वगैरह की खिचाई हुई. इन्ही सब के बीच चंदू को मौका मिला कि वह प्रधानमंत्री का इंटरव्यू ले सके.

कल ही दिल्ली से लौटा और इंटरव्यू की ट्रांसक्रिप्ट मुझे थमा दी. बोला; "एक्सक्लूसिव इंटरव्यू है. तमाम पत्र-पत्रिकाएँ चाहती थीं कि मैं उन्हें बेंच दूँ लेकिन चूंकि मैं ब्लाग-पत्रकारिता धर्म का पालन करना चाहता था इसलिए ये मैं आपको दे रहा हूँ. आप ही छापिये."

तो पेश है प्रधानमंत्री का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू. आप बांचिये.

चंदू: सर, नमस्कार.

प्रधानमंत्री:

चंदू: सर नमस्कार.

प्रधानमंत्री:

चंदू: सर, मैंने कहा नमस्कार. आप कुछ बोलिए.

प्रधानमंत्री: बोलूँ? मतलब आप मुझे बोलने की इजाजत देते हैं?

चंदू: सर, आप देश के प्रधानमंत्री हैं. मैं एक अदना सा पत्रकार. मेरी क्या हैसियत कि मैं आपको इजाजत दूँ.

प्रधानमंत्री: देखिये यह इजाजत नहीं चंदू जी, दरसल यह आदत की बात है.

चंदू: समझ गया सर, समझ गया.

प्रधानमंत्री: आप तो बहुत समझदार हैं. काश इतनी समझदारी अरनब गोस्वामी के पास होती. वैसे मुझे आने में थोड़ी देर हो गई. दरअसल हमलोग खा रहे थे.

चंदू: कोई बात नहीं सर. पार्टी है तो खाना-पीना तो होगा ही.

प्रधानमंत्री: हे हे..क्या बात कही आपने. पार्टी है तो खाना-पीना तो होगा ही. वैसे भी सबके साथ खाने में समय ज्यादा लगता है. और लोग़ रहते हैं तो बातचीत करते हुए खाते हैं. हँसते हुए खाते हैं. विचार-विमर्च करके खाते हैं. ऐसे में समय ज्यादा लग ही जाता है.

चंदू: बिलकुल सही बात कह रहे हैं सर. इंसान को अकेले खाना हो तो उसे कितना टाइम लगेगा खाने में? साथ की बात कुछ और है.

प्रधानमंत्री: हे हे हे..बिलकुल सही कहा आपने. वैसे आपने खाया या नहीं?

चंदू: नहीं सर, मैंने नहीं खाया. वो पार्टी में दाल-रोटी नहीं थी न. यहाँ तो सारे परदेशी-विदेशी व्यंजन हैं.

प्रधानमंत्री: क्या बात कर रहे हैं? आप पत्रकार होकर दाल-रोटी खाते हैं?

चंदू: सर, अब आप तो जानते ही हैं कि मैं एक ब्लाग-पत्रकार हूँ इसलिए मेरे पास कोई च्वायस नहीं है.

प्रधानमंत्री: चंदू जी पत्रकार को बहुत चूजी होना चाहिए. च्वायस तो पत्रकार खुद बनाता है.

चंदू: क्या फरक पड़ता है सर. बात तो पेट भरने से है. मेरा पेट दाल-रोटी से ही भर जाता है. कह सकते हैं यह बुरी आदत हो गई पेट भरने की. वैसे भी सर, दाल-रोटी खाने का फायदा यह रहता है कि खानेवाले को आटा-दाल का भाव पता लगता रहता है.

प्रधानमंत्री: हे हे हे..ये खूब कही आपने. इसी बात पर आपको एक शेर सुनाता हूँ.

चंदू: अरे सर, अभी तो इंटरव्यू की शुरुआत है. शेर कहने के लिए तो और भी मौके आगे आयेंगे.

प्रधानमंत्री: चलिए आपने कहा तो मैं रुक जात हूँ नहीं तो मैं सुनाता कि; माना कि तेरी दीद के काबिल..

चंदू: हाँ सर, मुझे पता है कि आप यही सुनाते.

प्रधानमंत्री: हे हे हे..

चंदू: सर, आपसे मेरा पहला सवाल है कि आप इन आठ सालों को कैसे देखते हैं? कैसे गुज़रे ये साल?

प्रधानमंत्री: कैसे देखते हैं की बात पर तो यही कहूँगा कि पीछे मुड कर देखते हैं. रही बात कि ये आठ कैसे गुजरे तो उसपर यह कहूँगा कि गुजरे तो क्या हमने गुज़ार दिए.

चंदू: वैसे सर, आप अपनी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानते हैं?

प्रधानमंत्री : सबसे बड़ी उपलब्धि की बात पूछेंगे तो मैं यही कहूँगा कि हमारी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि वह खड़ी रह गई.

चंदू: और आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि?

प्रधानमंत्री: मेरी सबसे बड़ी व्यक्तिगत उपलब्धि की बात करेंगे तो मैं कहूँगा कि मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि मैंने अपनी सरकार को खड़ी रखा.

चंदू: इसी के साथ यह भी पूछता चलूं कि इन आठ सालों में देश की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या रही?

प्रधानमंत्री: देश की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि देश ने मेरी सरकार को झेला.

चंदू: लेकिन वहीँ यह आरोप भी लगते रहे हैं कि बहुत सारी पार्टियों और नेताओं को मैनिपुलेट करके सरकार को खड़ी रखा गया.

प्रधानमंत्री: अब राजनीति की बातों में मुझे मत घसीटिए. मैं एक इकॉनोमिस्ट हूँ. मुझे राजनीति नहीं आती.

चंदू : परन्तु सर, तमाम लोग़ यह मानते हैं कि आप राजनीतिज्ञ हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो माइनॉरिटी की सरकार आठ सालों तक नहीं चलती.

प्रधानमंत्री : आप मेजर प्वाइंट मिस कर रहे हैं. यह राजनीति की बात नहीं बल्कि इकॉनोमिक्स की बात है. देश की इकॉनोमी को आगे बढ़ाने के लिए हमें समर्थन मिलता रहता है. हम लेते रहते हैं और सरकार चलती रही है.

चंदू : लेकिन सर, कुछ लोग़ कहते हैं यह इकॉनोमिक्स की नहीं बल्कि फिनांस की बात है.

प्रधानमंत्री: देखिये मैं इकॉनोमिस्ट हूँ और मेरा मानना है कि इकॉनोमिक्स और फिनांस एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.

चंदू: कौन से सिक्के के, सर?

प्रधानमंत्री: उस सिक्के के जो हमें आगे ले जाता है.

चंदू: लेकिन सर, सिक्का खरा है या खोटा, यह भी तो देखना पड़ेगा.

प्रधानमंत्री: नहीं-नहीं, असली प्वाइंट यह है कि सिक्का पहलू में है या नहीं. यह अर्थशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार बात कर रहा हूँ मैं. आपतो जानते ही हैं कि मैं बेसिकेली एक इकॉनोमिस्ट हूँ.

चंदू; ओके सर. आपकी सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि विकास की बात बहुत हद तक बेमानी है. आप इसे कैसे देखते हैं?

प्रधानमंत्री: विकास की बात में कैसी बेईमानी चंदू जी? विकास में बेईमानी की बात करने वाले सही नहीं कह रहे.

चंदू: आपने शायद सुना नहीं. मैंने बेमानी की बात की. बेमानी की सर. बेईमानी की नहीं.

प्रधानमंत्री : ओह, आपका मतलब बेमानी से था? अब समझा, अब समझा. देखिये, यह तो देखने वाले की नज़र पर निर्भर करता है. हम प्रधानमंत्री की हैसियत से देखते हैं तो हमें तो यह लगता है कि विकास की बात बेईमानी ..सॉरी बेमानी नहीं है. मेरे हिसाब से तो भरपूर विकास हुआ है.

चंदू: लेकिन सर..

प्रधानमंत्री: मुझे पता है कि आपको और आपकी तरह ही तमाम लोगों को यही लगता है कि विकास नहीं हुआ. लेकिन आंकड़े यह बताते हैं कि विकास हुआ है. गरीबी कम हुई है. अमीरी बढ़ी है. लोगों के हाथ में पैसा आया है. खर्च बढ़ा है. लोगों का फेसबुक स्टेटस...सॉरी स्टेटस बढ़ा है. एक्सपोर्ट बढ़ा है. इम्पोर्ट बढ़ा है. डॉलर तक बढवा दिया हमने. और सब तो जाने दीजिये मंहगाई बढ़ गई. अब आपको इससे बड़ा और क्या सबूत चाहिए?

चंदू: आप खुद कह रहे हैं कि मंहगाई बढ़ी है.

प्रधानमंत्री: देखिये, मंहगाई बढ़ने का मतलब है विकास हो रहा है. यह अर्थशास्त्र का सिद्धांत है. हम अर्थ-सिद्धांतवादी हैं इसलिए अगर विकास की बात करेंगे तो वह भी अर्थशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार ही करेंगे.

चंदू : परन्तु सर, क्या आंकड़े सबकुछ दर्शाते हैं? आचार्य नवजोत सिंह सिद्धू ने खुद कहा है कि आंकड़े बिकिनी की तरह होते है.....

प्रधानमंत्री: मैं समझ गया, मैं समझ गया. आचार्य सिद्धू का प्रसिद्द सदुपदेश जो वे किसी और से चुरा कर एक्स्ट्रा इनिंग्स में बोलते रहते हैं, उसके बारे में मुझे पता है. लेकिन लोकतंत्र में आंकड़ों का बहुत महत्व है.

चंदू: सर, मेरा अगला सवाल यह है कि अब आठ परसेंट वाली ग्रोथ रुक गई है. ग्रोथ कम होने लगी है. इसका क्या कारण है?

प्रधानमंत्री: इसका सबसे बड़ा कारण ग्रीस है. ग्रीस ने भारत की ग्रोथ रोक दी है. क्या आपने अखबारों में नहीं पढ़ा?

चंदू: लेकिन कुछ लोग़ मानते हैं कि सरकार ग्रीस को एस्केप-गोट बना रही है.

प्रधानमंत्री: देखिये अगर ऐसा है भी तो लोगों को इस बात पर खुश होना चाहिए कि सरकार कुछ बना ही तो रही है, बिगाड़ तो नहीं रही न.

चंदू: लेकिन सर, ये एस्केप-गोट बनाने की जगह कुछ सड़क वगैरह बनाने से अच्छा रहता न.

प्रधानमंत्री: देखिये, एक देश की सरकार के लिए एस्केप-गोट बनाना शासन के तमाम सिद्धांतों में सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है.

चंदू: मतलब क्या ग्रीस सचमुच इतना इम्पार्टेंट है?

प्रधानमंत्री: बहुत इम्पार्टेंट है. और मैंने तो अपने हर मंत्री से कह दिया कि उन्हें अपना-अपना ग्रीस खोज लेना चाहिए.

चंदू: मसलन?

प्रधानमंत्री: मसलन इंडियन इकॉनोमी का सबसे बड़ा ग्रीस खुद ग्रीस है. इसके अलावा भी सरकार का अपना ग्रीस है. ममता जी सरकार की सबसे बड़ी ग्रीस हैं. उनकी वजह से ही तमाम रिफार्म्स रुक गए. चिदंबरम जी के ग्रीस रहमान मलिक हैं जो उनकी बात नहीं मानते. प्रनब बाबू का ग्रीस गिरता हुआ रुपया और यूरोपियन इकॉनोमी है....आप देखिये कि हमसे प्रेरित होकर ही बीजेपी वालों ने भी अपने-अपने ग्रीस खोज लिए हैं. जैसे गडकरी के ग्रीस नरेन्द्र मोदी हैं. वैसे ही सुषमा जी के ग्रीस अरुण जेटली हैं. अब तो ममता जी ने भी इस ग्रीस खोजो अभियान के तहत कार्टूनिस्ट और सवाल करने वाली छात्राओं में अपना ग्रीस ढूढ़ लिया है. मैं आपको बताता हूँ कि यह ग्रीस सच में बहुत इम्पार्टेंट है. हमारी बड़ी उपलब्धियों में यह भी है कि हमने लोगों को अपने-अपने ग्रीस खोजना सिखा दिया है.

चंदू : सर, मेरा एक सवाल करप्शन को लेकर है. लोगों में यह धारणा बनी है कि आपकी सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ा है.

प्रधानमंत्री : हे हे..ऐसी बात नहीं है. लोगों को आधा-सच देखने की आदत है. अगर आप देखें तो यह भी जानेंगे कि हमारी सरकार ने ही सबसे ज्यादा नेताओं को जेल भेजा है.हमने तो यह सिद्धांत ही बना दिया है हम भ्रष्टाचार बिलकुल बर्दाश्त नहीं करेंगे.

चंदू: लेकिन सर, भ्रष्टाचार हुए है तभी तो लोग़ जेल जा रहे हैं. भ्रष्टाचार होते ही नहीं तो लोग़ जेल क्यों जाते?

प्रधानमंत्री: यही तो आप नहीं समझ पाए. दरअसल यह लोकतंत्र को मज़बूत करने वाला प्रोसेस है. भ्रष्टाचारी को छूट है कि वह भ्रष्टाचार करे और सरकार को छूट है कि वह उन्हें पकड़े.

चंदू: सर, लोग़ ऐसा मानते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था ठीक नहीं है. उसके लिए सरकार का क्या प्लान है?

प्रधानमंत्री: सब ठीक हो जाएगा. हम पेट्रोल और डीजल वगैरह का दाम बढ़ाके सब ठीक कर देंगे.

चंदू : लेकिन सर, क्या यह करना सही रहेगा? मंहगाई के मारे लोग़ परेशान हैं. क्या वे और परेशान नहीं हो जायेंगे?

प्रधानमंत्री: देखिये, देश को इस बोहरान से निकालने का सबसे बढ़िया तरीका यही है. आप लार्जर पिक्चर देखिये. मंहगाई जैसी छोटी बात से निकलिये.

चंदू: अच्छा सर, आप कहते हैं तो निकल जाता हूँ. मेरा अगला सवाल यह है कि यूपी इलेक्शन में आपकी पार्टी ह़र गई. उसे लेकर विचार-विमर्श चल रहा है?

प्रधानमंत्री: मुझे पोलिटिक्स में मत घसीटिए. मैं तो इकॉनोमिस्ट हूँ.

चंदू : लेकिन सर...

प्रधानमंत्री: देखिये इलेक्शन तो एन डी ए भी हारा था. इलेक्शन की बात पर भी हम एन डी ए को ही फालो करते हैं. टूजी पर भी हमने एन डी ए को ही फालो किया था. हम सारी नीति उन्ही की फालो करते हैं. इसलिए अगर आपको हमारी फैल्योर की बात याद आये तो यह समझ कर संतोष करें कि यह दरअसल एन डी ए का फैल्योर है.

चंदू : अब कुछ व्यक्तिगत सवालों पर आ जाते हैं.

प्रधानमंत्री: नहीं-नहीं. चंदू जी देखिये, एक देश के प्रधानमंत्री के लिए व्यक्तिगत कुछ नहीं होता. जो कुछ भी होता है सब पब्लिक होता है. इसलिए व्यक्तिगत सवालों का जवाब देना मैं ठीक नहीं समझता. अब इस इंटरव्यू को मैं इस शेर के साथ ख़त्म करना चाहूँगा कि; माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूँ मैं, तू मेरा शौक तो देख, मेरा इंतजार तो देख.

चंदू: एक छोटा सा सवाल यह है सर कि आपने यह शेर क्यों कहा?

प्रधानमंत्री: बस ऐसे ही कह दिया. हमें यह शेर पसंद है इसलिए मैं कह देता हूँ. आप इसको ऐसे देखिये कि जो मुझे पसंद है उसको मैं कह देता हूँ.

चंदू: बहुत-बहुत धन्यवाद सर. इस इंटरव्यू और इस शेर के लिए.

Friday, May 11, 2012

द्वापर युग का एक टीवी पैनल डिस्कशन

दो-तीन दिन पहले महाभारत से युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ का प्रसंग पढ़ रहा था. राजसूय-यज्ञ के समय हुए शिशुपाल वध की बात भी पढ़ी. श्रीकृष्ण पूजन पर शिशुपाल के ऑब्जेक्शन से इन्द्रप्रस्थ की सभा में धर्म की व्याख्या वगैरह पढ़ी गई. तर्कों के तीर चले. उन तीरों को काटने के लिए नए तर्क गढ़े गए. फिर उधर से तर्क-तीर चले. फिर इधर से उनको काटा गया. तर्क वगैरह काटने के बाद काटने के लिए एक ही चीज बची थी. शिशुपाल की गर्दन. ऐसे में श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र को भेजकर शिशुपाल जी की गर्दन काटकर उनको यमपुरी भेज दिया. देवताओं ने उप्पर से पुष्पवर्षा की. धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ की समाप्ति हुई.

मन में आया कि वहाँ जो कुछ हुआ क्यों उसको बड़ी सहजता से स्वीकार कर लिया गया? वैसे देखा जाय तो और कर भी क्या सकते थे लोग़? उन दिनों टीवी चैनल भी तो नहीं थे कि पैनल डिस्कशन होते. रपट निकलती. विशेषज्ञ बैठते और बाल की खाल निकालते. ऐसा करने से शिशुपाल जी का मामला आराम से दस-बारह सालों तक चलता. इन्वेस्टिगेशन होता. एस आई टी जांच करती. उसकी रपट लीक होती. मानवाधिकार कार्यकर्त्ता नारे लगाते. मानवाधिकार नेता टीवी पर दलीलें देते. दूसरों की बात न सुनते. कैंडिल मार्च होता. शिशुपाल के लिए न्याय की मांग होती.

कुल मिलाकर बड़ी बमचक मचती.

शायद कुछ ऐसे;



न्यूज-आवर पर अरनब गोस्वामी जी आ चुके हैं. आते ही शुरू हो गए; "गुड़ इवेनिंग. इन अ बिजार टर्न ऑफ इवेंट, परसों करीब १० बजे सुबह श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के इन्द्रप्रस्थ की एक भरी सभा में महाराज शिशुपाल का क़त्ल कर दिया. उस शिशुपाल का जो राजा तो थे ही, श्रीकृष्ण के फूफा भी थे. सभा में शिशुपाल के जो दोस्त थे उन्होंने इसका विरोध किया लेकिन उनकी आवाज़ को दबा दिया गया. सवाल यह है कि इस देश में अब रूल ऑफ धर्मा है कि नहीं? तमाम तरह के अलग-अलग दावे किये जा रहे हैं. एक तरफ चेदिप्रदेश के मानवाधिकार कार्यकर्त्ता चाहते हैं कि इस मामले की पूरी छानबीन हो. वहीँ उनकी बात नहीं सुनी जा रही है. ऐसे में द नेशन वांट्स टू नो द ट्रुथ. सच क्या है यह देश जानना चाहता है. और इसके लिए वी हैव अ फुल पैनल टूनाईट ऑन न्यूज-आवर. हमारे साथ हैं हस्तिनापुर से कृपाचार्य टू इन्टरप्रेट धर्मा. हस्तिनापुर से ही हमारे साथ हैं महामंत्री विदुर. वी आल्सो वांटेड श्रीकृष्ण टू कम एंड ..लेकिन वे नहीं आये. इसलिए हमारे साथ हैं बलराम. उधर चेदिप्रदेश से हमारे साथ हैं नरोत्तम कलसखा जो ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट हैं और जो चाहते हैं कि शिशुपाल के मर्डर की जांच एस आई टी करे. इन्द्रप्रस्थ से हमारे साथ है सहदेव. और हमारे स्टूडियो में मेरे साथ है बरिष्ठ पत्रकार आशुतोष. विदुर जी, मैं आपसे शुरू करना चाहता हूँ. क्या हुआ यह? भरी सभा में किसी को क़त्ल कर देना कहाँ तक जायज़ है?"

विदुर; "देखें ऐंकर श्री, पहले तो मैं आपको बता दूँ कि शिशुपाल श्रीकृष्ण के फूफा नहीं बल्कि उनके फूफेरे भाई थे. अब आप के सवाल पर आता हूँ. देखें, जिसे आप क़त्ल कह रहे हैं दरअसल वह क़त्ल नहीं है. उसे वध कहते हैं. धर्मनीति के अनुसार क़त्ल और वध में अंतर होता है."

अरनब; "लेकिन विदुर जी, एंड रिजल्ट तो दोनों का एक ही है न. आप उसको कोई भी वर्ड दे दें लेकिन दोनों का रिजल्ट यह है कि एक आदमी मारा जाता है."

विदुर; "ऐंकर श्री, पहले आप मेरी बात पूरी तो होने दें. देखें, किसी के अपराध की सज़ा के रूप में अगर किसी को मारा जाता है तो उसे वध....

नरोत्तम कालसखा; "आप ये बताएं..आप ये बताएं.."

अरनब; "ओके ओके. नरोत्तम जी वांट्स टू री-बट यू विदुर जी. मैं नरोत्तम जी के पास जाता हूँ. नरोत्तम जी, यह बताएं कि विदुर जो कह रहे हैं आप उससे सहमत हैं?"

नरोत्तम कालसखा; "बिलकुल नहीं. ये सो-काल्ड धर्म के जानकर केवल शब्दों से खेलते हैं. ये आज विदुर जी हस्तिनापुर में बैठकर धर्म सिखा रहे हैं लेकिन मैं आपको बता दूँ कि ये इनकी शब्दों की जादूगरी के अलावा और कुछ नहीं है. मैं पूछता हूँ कि केवल अपमान करने से किसी कि हत्या कर देना कौन सा धर्म है?"

अरनब; "विदुर जी, जवाब दें. नरोत्तम जी का कहना है कि केवल अपमान के बदले किसी का मर्डर कर देना कौन सा धर्म है?"

विदुर; "देखें, आप मुझे अपनी बात पूरी करने देंगे तब तो मैं कुछ कहूँगा. देखें, यह अपमान के एवज में हत्या का मामला नहीं है. असल मामला अधर्मी को दण्डित करने का है. बात केवल यह नहीं है कि शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का अपमान किया. बात यह भी है कि शिशुपाल अपने इलाके में राजाओं से युद्ध, प्रजा को अशांति और ऋषि-मुनियों को वर्षों से सताता रहा है. यह केवल श्रीकृष्ण के अपमान का मामला नहीं है. यह धर्म और अधर्म का युद्ध...

नरोत्तम कालसखा; "विदुर जी, आज आपको धर्म याद आ रहा है. धर्म तो यह भी कहता है कि स्त्री की हत्या नहीं करनी चाहिए. अगर ऐसा ही है तब श्रीकृष्ण ने पूतना की हत्या क्यों की? उस समय धर्म का विचार उनके मन में क्यों नहीं आया? उनके मन में क्यों नहीं आया कि स्त्री की हत्या धर्म के विरुद्ध है?"

विदुर ; "देखें, पूतना एक राक्षसी थी. और वासुदेव कृष्ण ने उसकी हत्या नहीं बल्कि उसका भी वध ही किया था. वह श्रीकृष्ण को मारने के लिए गई थी. धर्म यह कहता है कि कोई भी अपने जीवन को बचाने के लिए किसी का भी वध कर सकता है."

नरोत्तम कालसखा; "मैं माननीय विदुर जी से पूछना चाहता हूँ कि हो सकता है पूतना हत्या करने के इरादे से गई होगी लेकिन उसने हत्या तो नहीं की न श्रीकृष्ण की. ऐसे में उसकी हत्या कर देना तो अक्षम्य हुआ."

विदुर; "तो कालसखा जी, आप क्या चाहते हैं कि पूतना पहले श्रीकृष्ण को मार देती क्या तभी उसका वध किया जा सकता था?"

नरोत्तम कालसखा; "मैं कहता हूँ कि क्या सबूत है कि पूतना श्रीकृष्ण की हत्या के इरादे से ही गई थी? श्रीकृष्ण ने कह दिया और आप मान गए? और फिर एक बात बताएं, क्या आप नहीं मानते कि हत्याऑं के मामले में श्रीकृष्ण का रिकार्ड ही खराब है. पूतना को तो जाने दें, श्रीकृष्ण ने उसे भी मार डाला जो उनका खुद का मामा था. महाराज कंस. आज शिशुपाल जी की हत्या कर दी जो खुद उनका फूफेरा भाई था. बचपन में ही इन्ही श्रीकृष्ण ने बकासुर की हत्या कर दी थी. वृषभासुर को मार डाला. मैं पूछता हूँ बचपन से ही केवल हत्याएं करना कौन से धर्म का है?"

विदुर; "नरोत्तम जी, पहले आप की जानकारी के लिए बता दूँ कि राक्षसों और अपराधियों को मारना...."

अरनब; "ओके ओके..मैं आशुतोष की तरफ आता हूँ. टेल मी आशुतोष, ये जो भरी सभा में हत्या हुई है, इसके बाद आप इस मामले को कहाँ जाता हुआ देखते हैं?"

आशुतोष; "अर्नब, यह मामला उतना सीधा नहीं है जितना दिखाई देता है. जहाँ तक मेरी जानकारी है, श्रीकृष्ण का इस तरह से रिएक्ट करना शायद ठीक नहीं था. और मैं एक बात और बता दूँ अर्नब. पहले यह बात सुनाई दी कि इन्द्रप्रस्थ की सभा में ही शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का सौवीं बार अपमान किया लेकिन मेरी जानकारी के मुताबिक यह शिशुपाल द्वारा श्रीकृष्ण का सौवां अपमान नहीं था. मैंने इस केस को बहुत नजदीक से फालो किया है और मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इस केस में ऐसे-ऐसे तथ्य सामने आ सकते हैं जो उन सभी बातों से भिन्न होंगे जो बातें अभी तक पब्लिक डोमेन में हैं."

अरनब; "जैसे? क्या खुलासा हो सकता है इस केस में?"

आशुतोष ; "जो मैंने खोजबीन की उससे तो बड़ी हैरत में डाल देने वाली बातें आई हैं सामने. जैसे मैंने अपमानों का रिकार्ड रखने वाले श्रीकृष्ण के कर्मचारी से भी बात की. उसका मानना है कि अपमानों का रिकार्ड रखने में गलती भी हो सकती है. ऐसा भी हो सकता है कि कोई अपमान दो बार रिकार्ड हो गए हों. या ऐसा भी हो सकता है कि कोई २-३ अपमान दो बार रिकार्ड हो गए हों. वैसे अर्नब, मैंने उडती खबर यह भी सुनी है कि अपमानो के रजिस्टर में कुछ उलट-फेर भी हुआ है. अब पता नहीं यह बात कितनी सच है लेकिन सवाल तो अपनी जगह है. और अर्नब, मैंने इस केस को जिस तरह से फालो किया है.."

विदुर; "ये तो अभी परसों की घटना है पत्रकार श्री. दो दिन में कितना फालो कर लिया आपने?

अरनब; "ओके ओके..लेट मी गो टू बलराम..बलराम जी, यह बताइए कि क्या यह सच है कि अपमानों के रजिस्टर में हेर-फेर हुई है. ऐसी बात सुनाई दे रही है कि ऐसा हुआ है. आप क्या कहना चाहते हैं?"

बलराम; "देखिये, ऐसी बात बिलकुल नहीं है. अपमानों का रजिस्टर कभी भी कोई भी आकर देख सकता है. हम कुछ छिपा नहीं रहे. रही बात..."

नरोत्तम कालसखा; "लेकिन...लेकिन..."

अरनब; "ओके, नरोत्तम जी वांट्स टू री-बट यू. गो अहेड नरोत्तम जी."

नरोत्तम कालसखा; "बलराम जी, ये बताइए कि क्या सबूत है कि श्रीकृष्ण ने अपनी बुआ को शिशुपाल जी महराज के केवल सौ अपमानों को क्षमा करने का वचन दिया था? हो सकता है उन्होंने सवा सौ अपमानों को क्षमा करने का वचन दिया हो. या हो सकता है कि एक सौ चालीस अपमानों को क्षमा करने का वचन दिया हो. कोई सबूत है किसी के पास कि उन्होंने सौ अपमानों की ही बात की थी?"

बलराम; "नरोत्तम जी, जब श्रीकृष्ण ने बुआ को वचन दिया था मैं वहीँ पर था. और मैं आपको सच बताता हूँ कि उसने सौवें अपमान के बाद ही मारने का वचन दिया था. अगर आपको मेरी बात का विश्वास न हो तो बुआ से पूछ सकते हैं."

नरोत्तम कालसखा; "देखिये बलराम जी मुझे आपकी बात का विश्वास क्यों हो? आप तो श्रीकृष्ण के भाई हैं. और रही बात बुआ से पूछने की तो क्या गारंटी है कि आप, श्रीकृष्ण और धर्मराज युधिष्ठिर बुआ जी पर दबाव डाल के उनसे नहीं कहलवा देंगे कि श्रीकृष्ण ने केवल सौ अपमानों को क्षमा करने की बात कही थी?"

बलराम; "अब देखिये वैसे तो आपको हमारी किसी बात का विश्वास नहीं होगा लेकिन मेरा कहना यही है कि तथ्यों को जाने बिना...."

अरनब; "ओके लेट मी गोबैक तो आशुतोष. आशुतोष ये बताइए कि अब क्या देखते हैं इस केस में? अब जबकि मीडिया ने इस केस को अपने हाथ में ले लिया है?"

आशुतोष; "अर्नब, ये नरोत्तम जी का प्वाइंट महत्वपूर्ण है. मेरी बात एक सैनिक से हुई जिसने ये बताया कि जब श्रीकृष्ण ने अपनी बुआ को महाराज शिशुपाल के अपमानों को क्षमा कर देने की बात कही थी तो वह वहीँ पर था. और आपको हैरत होगी कि उसने बताया कि श्रीकृष्ण ने एक सौ पचहत्तर अपमानों को क्षमा करने का वचन दिया था. अब इसमें कितना सही है और कितना गलत यह कह पाना मेरे लिए मुश्किल है लेकिन उस सैनिक ने मुझे यही बताया. और एक बात अर्नब. अब जिस तरह से सबूत एक-एक करके सामने आने लगे हैं उससे तो यही लगता है कि यह मामला बड़ा पेंचीदा होता जा रहा है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह क्लीयर नहीं है कि श्रीकृष्ण ने एक सौ अपमान होते ही महाराज शिशुपाल को मारना की बात कही थी या फिर एक सौ अपमान होने तक क्षमा कर देते और एक सौ एकवा अपमान होने के बाद मारते. यह बात कम महत्वपूर्ण नहीं है. और मेरा ऐसा मानना है..."

अरनब; "ओके ज्वाइनिंग मी नाऊ...अब हमें ज्वाइन कर रहे हैं हस्तिनापुर से आचार्य शकुनी. शकुनी जी, हमें ये बताएं...."

विदुर ; "ऐंकर श्री, महाराज शकुनी आचार्य नहीं हैं. आपको कम से कम इतनी जानकारी तो रहनी ही चाहिए. शकुनी गांधार नरेश हैं और पिछले कई वर्षों से अपनी बहन के घर बैठकर मुफ्त की रोटियां तोड़ रहे हैं."

अरनब; "सॉरी सॉरी..विदुर जी. चलिए गंधार नरेश शकुनी ही सही. शकुनी जी, हमें ये बताएं कि ये इन्द्रप्रस्थ में जो महाराज शिशुपाल की हत्या का मामला हुआ है, इसके बारे में आप क्या सोचते हैं?"

शकुनी; "यह तो बहुत ही क्रूर हत्या का मामला है भांजे अरनब. क्षमा करो, मैंने तुम्हें भी भांजा कह डाला. एक सौ भांजो से दिन-रात मामा-मामा सुनते-सुनते आदत ख़राब हो गई है. हाल यह है कि एक दिन मेरे मुँह से जीजाश्री के लिए भी भांजे धृतराष्ट्र निकल आया था... हाँ तो मैं यह कह रहा था कि यह तो वासुदेव कृष्ण द्वारा क्रूर हत्या का मामला है. ऐसे में मैंने और भांजे दुर्योधन ने यह निर्णय लिया है कि कुछ ही दिनों में काशीनरेश के दरबार में होने वाले राजाओं के सम्मलेन में हमलोग इस मामले को उठाएंगे और चाहेंगे कि श्रीकृष्ण को उनके इस अपराध के लिए घोर दंड मिले. मैंने तय किया है कि हम इस मामले को मीडिया में उछालते रहेंगे जिससे शिशुपाल की आत्मा को न्याय मिले."

अरनब; "ओके, लास्ट एक मिनट रह गया है मेरा पास. नरोत्तम जी, यह बताएं कि अब आपका क्या प्लान होगा? आप और आपके जैसे हजारों मानवाधिकार कार्यकर्त्ता क्या चाहते हैं?"

नरोत्तम कालसखा; "अरनब, हमारा स्टैंड बिलकुल क्लीयर है. हम यह चाहते हैं कि एक इंडिपेंडेंट एस आई टी से इस मामले की जांच कराई जाय और श्रीकृष्ण को तुरंत सज़ा दी जाय. जबतक यह नहीं होता, हम आन्दोलन करते रहेंगे और हम यह निश्चित करेंगे कि महाराज शिशुपाल की आत्मा को न्याय मिले."

अरनब; "जेंटिलमेन, अब हमारे पास वक़्त नहीं है. लेकिन वी प्रोमिस यू दैट वी विल मेक इट स्योर दैट जस्टिस इज डन इन दिस केस. योर चैनल विल फाईट फॉर जस्टिस. हस्तिनापुर में कृपाचार्य और इन्द्रप्रस्थ में सहदेव जी, आपको भी थैंक्स. समय की कमी के कारण हम आपको समय न दे सके बट आई प्रोमिस यू कि अगली बार हम आप दोनों को भी समय देंगे. गुडबाय एंड गुड़नाइट."