आज दिन भर बहुत व्यस्त रहा. प्रजा के लिए बनी महाराज भरत मुफ्त में पेट भरो योजना का उद्घाटन करने के लिए पिताश्री के साथ जाना पड़ा. जयद्रथ और दुशासन ने उद्घाटन समारोह के सारे इंतजाम बहुत मस्त किये थे. राजकवि तो काशीनरेश द्वारा आयोजित किसी कवि सम्मलेन में गए थे इसलिए योजना के लिए नारा लिखने का काम उप राजकवि ने किया. उन्होंने जो नारा लिखा वह भी ठीक-ठाक ही लगा. वैसे सिस्टर दुशाला ने सजेस्ट किया कि मुफ्त का गेंहू दो किलो, कार्ड दिखाओ और ले लो की जगह अगर दान का गेंहू दो किलो, कार्ड दिखाओ और ले लो होता तो अच्छा रहता. उसका कहना था कि ऐसा करने से बिना किसी मेहनत के यह बात प्रजा के बीच साबित हो जाती कि हमलोग दानी भी हैं. साथ ही यह बात एकबार फिर से बता दी जाती कि हम राजा है.
वह कह रही थी कि यह बात बीच बीच में प्रजा पर जाहिर करते रहना चाहिए क्योंकि कई बार प्रजा की हरकतों से लगता है जैसे वह हमारे राजत्व पर सवाल कर रही है.
राजमहल ने योजना के विज्ञापन के लिए कुल सत्रह अखबारों का फ्रंट पेज बुक कर लिया था. हस्तिनापुर एक्सप्रेस का तो फ्रंट और बैक-पेज दोनों ही बुक कर लिया गया था. एक समय था जब यह अखबार राजमहल के विरुद्ध खूब लिखा करता था. वो तो भला हो मामाश्री का जिन्होंने इसके नए संपादक को साध लिया और तब से अखबार हमारे पक्ष में लिखने लगा. मुझे याद है पहली बार इसी संपादक के साथ मिलकर मैंने और मामाश्री ने भीम को बदनाम किया था. गुप्तचरों द्वारा खींचकर लाई गई भीम और हिडिम्बा के विवाह की तस्वीरें सबसे पहले इसी संपादक के लिए लीक की गई थीं. साथ ही इस संपादक ने तमाम संपादकीय लिखकर साबित कर दिया था कि कैसे एक आर्य ने राक्षस कुल की एक कन्या के साथ विवाह कर घोर अपराध किया है. बड़ी थू थू हुई थी भीम की.
लिखना पड़ेगा कि प्रेस मैनेजमेंट के जो गुर मामाश्री ने तब सिखाये वह आजतक काम आ रहा है. आज ये अखबार न होते तो प्रजा को यह बताना कितना मुश्किल होता कि हाल ही में हमने चाय-पान की दुकानों पर जो स्पेशल मनोरंजन कर लगाया है वह कितना जरूरी था. इसी अखबार ने लोगों में यह बात फैलाई कि राजमहल का घाटा किस तरह से इतना बढ़ गया है कि नए कर जरूरी हो गए हैं. कैसे नहीं लगाता चाय-पान की दुकानों पर कर? प्रजा के लोग इन्हीं दुकानों पर बैठकर राजमहल और उसके लोगों की आलोचना करते हैं. जिसे देखो वह मुझे गाली देता है. मुझे अत्याचारी कहता है. दुशासन को अधर्मी कहता है. जयद्रथ के बारे में अनाप-सनाप बकता है. दुशासन ने यहाँ तक सुझाव दिया कि हस्तिनापुर में चाय-पान की दुकानों पर बैन लगा देना चाहिए. मैं तो तैयार हो गया था, वो तो कर्ण और मामाश्री ने बताया कि अगर इन दुकानों पर बैन लगा दिया गया तो लोगों में असंतोष बढ़ेगा. मामाश्री ने उसी दिन यह रहस्योद्घाटन किया कि प्रजा को आपस में बात करने से कभी रोकना नहीं चाहिए. बातचीत करने से उनके मन की भड़ास निकल जाती है. बोले; "हमें चाय और पान की दुकानों का आविष्कार करने वाले को धन्यवाद कहना चाहिए भांजे जिसने बहुत सोच समझकर इसका आविष्कार किया. अगर ये दुकानें न होंगी तो प्रजा अपनी भड़ास कहाँ निकालेगी? और यदि भड़ास न निकली तो उसके आन्दोलन का रूप लेने का खतरा हमेशा मंडराता रहेगा"
मामाश्री द्वारा सिखाये गए इसी पाठ का कमाल है कि प्रेस मैनेजमेंट में आजतक कोई दिक्कत नहीं आई. मुझे याद है, एकबार दुशासन ने पितामह और काकाश्री विदुर के हस्ताक्षर फोर्ज कर काशीनरेश को पत्र लिखकर आग्रह किया कि वे भीम को काशी नगरी में प्रवेश की अनुमति न दें क्योंकि उसने गुरु द्रोण की पाठशाला में मेरी और दुशासन की कुटाई की थी. पता नहीं कैसे वह पत्र हस्तिनापुर टाइम्स के हाथों लग गया और जब बात प्रजा के बीच निकल आई तब इसी संपादक ने अपने अखबार में तरह तरह से सम्पादकीय लिखकर यह बात फैलाई कि दरअसल वह पत्र दुशासन ने नहीं बल्कि पांडवों के दल में से ही किसी ने लिखा था क्योंकि पांडव एक-दूसरे को पसंद नहीं करते थे. जब यह लगा कि प्रजा को इसबात का विश्वास नहीं हो रहा है तब इस मामले को दबाने के लिए यह बात फैलाई गई कि माताश्री मुझसे, दुशासन और मामाश्री से बहुत रुष्ट हैं. खुद मामाश्री ने सम्पादक को यह आईडिया दिया कि वह ऐसा छापेगा तो लोगों का ध्यान उसपर चला जायेगा और काशीनरेश के नाम लिखे जाने वाले पत्र की बात दब जायेगी।
वैसे तो आज के कार्यक्रम के समय लिए जाने वाली तस्वीरों से कल के अखबार भरे रहेंगे लेकिन सुनने में यह भी आया है कि कुछ लोग इस योजना का विरोध कर रहे हैं. इन लोगों से निपटना मुझे अच्छी तरह से आता है. अगर यह भी नहीं कर सका तो फिर मामाश्री के रहने का क्या फायदा? मामाश्री ने चुनकर इक्यावन अर्थशास्त्री, इक्कीस अख़बारों के सम्पादक, ग्यारह बुद्धिजीवी, पाँच नाट्यकर्मी और एक सौ एक गुप्तचर को भाड़े पर ले लिया है जो यह फैलायेंगे कि यदि यह योजना लागू नहीं हुई तो प्रजा भूख से मर जाएगी और किस तरह से यह योजना महाराज भरत को असली श्रद्धांजलि होगी। मामाश्री ने प्लान बनाया है कि चूंकि आगे चलकर मुझे ही हस्तिनापुर का राज बनना है इसलिए प्रजा में यह सन्देश जाना जरूरी है कि इस योजना की रूपरेखा न सिर्फ मैंने तैयार की है बल्कि मैं ही यह निश्चित करूंगा कि यह योजना पूरी तरह से लागू हो और हर हस्तिनापुरवासी का कल्याण हो.
अब सोने चलता हूँ क्योंकि कल सुबह ही इन अर्थशास्त्रियों, संपादकों और बुद्धिजीवियों की क्लास लेकर उन्हें बताना है कि इस योजना के बारे में क्या-क्या बातें फैलानी हैं.
शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय, ब्लॉग-गीरी पर उतर आए हैं| विभिन्न विषयों पर बेलाग और प्रसन्नमन लिखेंगे| उन्होंने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे| लेकिन कभी-कभी गम्भीर भी लिख दें तो बुरा न मनियेगा|
||Shivkumar Mishra Aur Gyandutt Pandey Kaa Blog||
Tuesday, September 24, 2013
Friday, September 6, 2013
कबीर के दोहों के ट्विटरीय अर्थ
कबीरदास जी दोहे लिखते थे. तमाम लोग उनके दोहे पढ़कर बड़े हुए. कुछ ने उन दोहों से कुछ तो कुछ ने बहुत कुछ सीखा. इन दो के अलावा तीसरी तरह के लोगों ने उन्हें दूसरों के सामने बोलकर खुद के लिए ज्ञानी की उपाधि पक्की कर ली. इन तीनो के अलावा एक और प्रजाति है जिसने उनके दोहों का ब्लॉग खोल लिया और ट्विटर पर अकाउंट बनाकर उन्हें ट्वीट भी करते रहे.
ट्विटर पर कबीरदास जी के दोहे पढ़कर हमलोगों के मन में एकदिन आया कि अगर वे आज रहते तो ट्विटर पर जरूर होते और अपने दोहे ट्वीट करते तो उन्हें खूब आरटी मिलती. दोहों का साइज भी ऐसा कि ट्विटर पर एक सौ चालीस करैक्टर की शर्त में फिट बैठता है. फिर मन में आया कि अगर वे अपने दोहे ट्वीट करते तो तमाम लोग उन दोहों को स्लाई समझकर अपने-अपने हिसाब से उसका अर्थ निकालते. सोचकर देखिये कि कैसे कैसे भावार्थ निकाले जाते। यह पोस्ट कुछ ऐसे ही संभावित भावार्थों का संकलन है. आप बांचिये।
नोट: यह पोस्ट बीबीपी यानि ब्लॉगर-ब्लॉगर पार्टनरशिप की पोस्ट है जिसे मैंने और विकास गोयल जी ने लिखा है.
.............................................................
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
उपरोक्त दोहे के माध्यम से कबीर दास जी सन्देश देना चाहते हैं कि हे ट्वीपल न ही मोटी-मोटी पुस्तकें पढने से और न ही अपने ट्विटर बायो में आईआईटी/आईआईएम लिख देने से ट्विटर पर पंडित या विद्वान कहलाये जाओगे. यह न भूलो कि ज्ञान नहीं, अपितु ज्ञान की बातें ट्विटर पर तुम्हारे विद्वान या पंडित कहे जाने का मार्ग प्रशस्त करती है. इसलिए हे ट्वीपल अगर विद्वान कहलाने की लालसा है तो फिर ट्वीट लिखकर बताओ कि ‘Just got my copy of ‘Human Psychology’ from flipkart, #nowreading.
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
उपरोक्त दोहे के माध्यम से कबीरदास ट्वीपल से कह रहे हैं कि टेक इट ईजी डूड. बार-बार मेंशन या प्लीज आरटी लिखने से कुछ नहीं होगा. हे ट्वीपल वैसे तो आईफ़ोन, आईपैड, एस-फोर वगैरह रखना ईजी है और धीरज रखना कठिन, किन्तु सफलता की कुंजी बताती है कि धीरज ही रखने की जरूरत है. जब तुम्हारा समय आएगा और सामने वाले को पता चल जायेगा कि तुम बड़ी कंपनी में उच्च-पद पर कार्यरत हो, तब तुम्हें आरटी अपने आप मिलने लग जाएगी क्योंकि सामनेवाला जबतक आरटी नहीं करेगा वह तुम्हें लिंक्ड-इन पर इनवाईट नहीं कर पायेगा.
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
उपरोक्त दोहे के माध्यम से कबीरदास जी यह सन्देश देना चाहते हैं कि हे ट्वीपल अपने आलोचक को न केवल फालो करो अपितु उसे अपने और पास रखने के लिए उसके साथ डीएम का आदान-प्रदान भी करो. क्योंकि ट्विटर पर असली आलोचक वह होता है जो तुम्हारी गल्तियाँ तुम्हें बताकर उनमें सुधार कर पाए या न कर पाए, अपनी आलोचना से तुम्हें फेमस जरूर कर देता है.
जहाँ एक तरफ कुछ विद्वान इस दोहे का भावार्थ यह निकालते हैं वहीँ सोशल मीडिया के कुछ और भावार्थ-वीरों का मानना है कि यह दोहा कबीरदास जी ने एक्स्क्लुसिवली ऐसे ट्विटर सेलेब के लिए लिखा है जिन्हें अपनी असाधारण रूप से साधारण ट्वीट के लिए भी एपिक नामक टिप्पणी पढने का नशा होता है. कबीरदास जी ऐसे ट्विटर सेलेब्स को इस दोहे के माध्यम से सन्देश दे रहे हैं कि हे ट्वीपल तुम मानो या न मानो लेकिन सत्य यही है कि हरबार तुम ऐसा ट्वीट नहीं ठेल सकते जो एपिक हो और एपिक के अलावा कुछ भी न हो. इसलिए जब तुम्हारा कोई फालोवर उसे रद्दी करार दे दे, तो उसकी आलोचना का सम्मान करो और उसे कुछ मत कहो क्योंकि तुम्हारे बाकी चेले-चपाटे उससे खुद ही निपट लेंगे.
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
उपरोक्त दोहे के माध्यम से कबीरदास जी ट्वीपिल को संदेश देते हैं कि ट्विटर पर फालोवर से यह पूछने की जरूरत नहीं कि वह रागां का फैन है या नमो का. कौन किसका फैन-शैन है यह जानने में कुछ आनी-जानी नहीं है. असल ज्ञान यह जानना है कि कौन से फैन फालोविंग से ज्यादा आरटी मिल सकती है? जिस ग्रुप से ज्यादा आरटी मिले, बस उसी के फैन बन जाओ, फालोवर भला करेंगे.
हिन्दू कहे मोहि राम पियारा, तुरक कहे रहमाना,
आपस में दोउ लडि लडि मुए, मरम न कोऊ जाना।
इस अत्यंत महत्वपूर्ण दोहे के माध्यम से कबीरदास जी कहते हैं कि ट्विटर पर कोई शाहरुख़ का भक्त है तो कोई सलमान का. इन दोनों के भक्तों की मंडली सुबह-शाम आपस में लडती-भिड़ती रहती है. यह साबित करने के लिए दोनों में से कौन महान है? लेकिन लड़ने-भिड़ने में बिजी दोनों ग्रुप आजतक इस मरम का पता नहीं लग पाए कि लाखों लोग जस्टिन बीबर और केआरके दीवाने क्यों हैं?
सात समंदर मसि करौ, लेखनि सब बनराइ,
धरती सब कागद करौ, हरि गुन लिखा न जाइ।
कबीरदास जी कहते हैं सात समंदर की स्याही घोल लो और संसार भर के वनों के पेड़ से कलम बना लो फिर भी ट्विटर पर विराजमान उस फ़िल्मी भगवान की रिप्लाई के जवाब के एवज में उसकी महिमा का बखान नहीं कर सकोगे जो उसने तुम्हारे एक हज़ारवें ट्वीट के बाद तुम्हें दिया है. हे ट्वीपल जब यह करके भी तुम धन्य नहीं हो सकते तो ट्वीट तो केवल एक सौ चालीस करैक्टर का होता है. ऐसे में अपने उस फ़िल्मी स्टार रुपी भगवान की रिप्लाई का बखान करने के लिए एक हज़ार ट्वीट लिखकर उसे थैंक यू बोलोगे तो भी उसका कर्ज नहीं उतार पाओगे.
जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम,
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम।
कबीरदास जी कहते हैं कि जब तुम्हारे फ़लोवर्स की संख्या हजारों में हो जायेगी और तुम अपने घर वालों को दिखाते हुए बताओगे तो तुम्हारे घर में तुम्हारा दाम बढेगा. अपना दाम बढाने के लिए तुम्हें और फ़ालोवर्स चाहिए और इसका एक ही मन्त्र है कि तुम नए नए फलोवार्स की ट्वीट की रिप्लाई दोनों हाथ से उलीच कर करते रहो. फालोवर्स की संख्या बढ़ती रहेगी और घर में तुम्हारा दाम भी बढ़ता रहे.
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
श्री कबीरदास का उपरोक्त दोहा ऐसे ट्वीपल के लिए नीतिवचन टाइप है जो दिनभर में दो ढाई सौ ट्वीट ठेल देता है. उपरोक्त दोहे में कबीरदास जी ऐसे ट्वीपल को इशारा करते हुए बताना चाहते हैं कि हे ट्वीटयोद्धा दिनभर ट्वीट करने से कुछ नहीं मिलेगा. ऊपर से लोग जान जायेंगे कि तुम्हारे पास और कोई काम-धंधा नहीं है इसलिए तुम सारा दिन ट्विटर से चिपके रहते हो. साथ ही वे ऐसे ट्वीपल को भी इशारा करके समझा रहे हैं जो दिन भर सरकार और मीडिया पर बरसते रहते हैं. वे उन्हें हिदायत दे रहे हैं कि ज्यादा बरसना ठीक नहीं है क्योंकि इधर तुम बरसोगे और उधर सरकार और मीडिया धूप करके इस बरसात को सुखा देंगे.
सांई इतना दीजिये जामे कुटुंब समाय,
मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।
इस दोहे के माध्यम से संत कबीरदास ने ट्वीटबाजों के लिए नहीं अपितु फेसबुकियों के लिए सन्देश दिया है. कबीरदास जी फेसबुकी से कहते हैं कि वह अपने सांई से फेसबुक के फोटो और एलबम वाले सेक्शन में उतनी जगह मांगे जिसमें उसके और उसके कुटुंब यानी परिवार के हर सदस्य की हर होलीडे की फोटो लग जाए और उसका पूरा कुटुंब उन अलबमों में समा जाय. वह फेसबुक प्रोफाइल पर इतनी फोटो डाल दे कि फिर उसे फोटो डालने की भूख न रहे. साथ ही फ्रेंड रुपी साधु उन फोटो को देखकर इतनी लाइक दे कि लाइक देने से उसका पेट भर जाए और उसे भूखा वापस जाने की जरूरत न पड़े.
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय,
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदलेजाय।
इस दोहे के माध्यम से कबीरदास जी कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि हे ट्वीपल रात को सोकर और दिन को खाकर अपना जीवन व्यर्थ न करो. असल मज़ा लेने के लिए पूरी-पूरी रात ट्वीट करो. यह चिंता न करो कि रात हो गई है और तुम्हारी ट्वीट कोई नहीं पढ़ेगा। अरे भारत में रात है तो क्या हुआ, ऑस्ट्रेलिया में तो दिन है और कैनाडा में शाम. इसलिए दिन रात ट्विटर पर लगे रहो. परिवार, मित्र वगैरह तो आते-जाते रहेंगे लेकिन ट्विटर पर फालो करने वाला एकबार चला गया तो फिर वापस नहीं आएगा और ट्विटर पर ही नहीं, घर में भी तुम्हारा मोल घट जायेगा.
ट्विटर पर कबीरदास जी के दोहे पढ़कर हमलोगों के मन में एकदिन आया कि अगर वे आज रहते तो ट्विटर पर जरूर होते और अपने दोहे ट्वीट करते तो उन्हें खूब आरटी मिलती. दोहों का साइज भी ऐसा कि ट्विटर पर एक सौ चालीस करैक्टर की शर्त में फिट बैठता है. फिर मन में आया कि अगर वे अपने दोहे ट्वीट करते तो तमाम लोग उन दोहों को स्लाई समझकर अपने-अपने हिसाब से उसका अर्थ निकालते. सोचकर देखिये कि कैसे कैसे भावार्थ निकाले जाते। यह पोस्ट कुछ ऐसे ही संभावित भावार्थों का संकलन है. आप बांचिये।
नोट: यह पोस्ट बीबीपी यानि ब्लॉगर-ब्लॉगर पार्टनरशिप की पोस्ट है जिसे मैंने और विकास गोयल जी ने लिखा है.
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पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
उपरोक्त दोहे के माध्यम से कबीर दास जी सन्देश देना चाहते हैं कि हे ट्वीपल न ही मोटी-मोटी पुस्तकें पढने से और न ही अपने ट्विटर बायो में आईआईटी/आईआईएम लिख देने से ट्विटर पर पंडित या विद्वान कहलाये जाओगे. यह न भूलो कि ज्ञान नहीं, अपितु ज्ञान की बातें ट्विटर पर तुम्हारे विद्वान या पंडित कहे जाने का मार्ग प्रशस्त करती है. इसलिए हे ट्वीपल अगर विद्वान कहलाने की लालसा है तो फिर ट्वीट लिखकर बताओ कि ‘Just got my copy of ‘Human Psychology’ from flipkart, #nowreading.
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
उपरोक्त दोहे के माध्यम से कबीरदास ट्वीपल से कह रहे हैं कि टेक इट ईजी डूड. बार-बार मेंशन या प्लीज आरटी लिखने से कुछ नहीं होगा. हे ट्वीपल वैसे तो आईफ़ोन, आईपैड, एस-फोर वगैरह रखना ईजी है और धीरज रखना कठिन, किन्तु सफलता की कुंजी बताती है कि धीरज ही रखने की जरूरत है. जब तुम्हारा समय आएगा और सामने वाले को पता चल जायेगा कि तुम बड़ी कंपनी में उच्च-पद पर कार्यरत हो, तब तुम्हें आरटी अपने आप मिलने लग जाएगी क्योंकि सामनेवाला जबतक आरटी नहीं करेगा वह तुम्हें लिंक्ड-इन पर इनवाईट नहीं कर पायेगा.
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
उपरोक्त दोहे के माध्यम से कबीरदास जी यह सन्देश देना चाहते हैं कि हे ट्वीपल अपने आलोचक को न केवल फालो करो अपितु उसे अपने और पास रखने के लिए उसके साथ डीएम का आदान-प्रदान भी करो. क्योंकि ट्विटर पर असली आलोचक वह होता है जो तुम्हारी गल्तियाँ तुम्हें बताकर उनमें सुधार कर पाए या न कर पाए, अपनी आलोचना से तुम्हें फेमस जरूर कर देता है.
जहाँ एक तरफ कुछ विद्वान इस दोहे का भावार्थ यह निकालते हैं वहीँ सोशल मीडिया के कुछ और भावार्थ-वीरों का मानना है कि यह दोहा कबीरदास जी ने एक्स्क्लुसिवली ऐसे ट्विटर सेलेब के लिए लिखा है जिन्हें अपनी असाधारण रूप से साधारण ट्वीट के लिए भी एपिक नामक टिप्पणी पढने का नशा होता है. कबीरदास जी ऐसे ट्विटर सेलेब्स को इस दोहे के माध्यम से सन्देश दे रहे हैं कि हे ट्वीपल तुम मानो या न मानो लेकिन सत्य यही है कि हरबार तुम ऐसा ट्वीट नहीं ठेल सकते जो एपिक हो और एपिक के अलावा कुछ भी न हो. इसलिए जब तुम्हारा कोई फालोवर उसे रद्दी करार दे दे, तो उसकी आलोचना का सम्मान करो और उसे कुछ मत कहो क्योंकि तुम्हारे बाकी चेले-चपाटे उससे खुद ही निपट लेंगे.
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
उपरोक्त दोहे के माध्यम से कबीरदास जी ट्वीपिल को संदेश देते हैं कि ट्विटर पर फालोवर से यह पूछने की जरूरत नहीं कि वह रागां का फैन है या नमो का. कौन किसका फैन-शैन है यह जानने में कुछ आनी-जानी नहीं है. असल ज्ञान यह जानना है कि कौन से फैन फालोविंग से ज्यादा आरटी मिल सकती है? जिस ग्रुप से ज्यादा आरटी मिले, बस उसी के फैन बन जाओ, फालोवर भला करेंगे.
हिन्दू कहे मोहि राम पियारा, तुरक कहे रहमाना,
आपस में दोउ लडि लडि मुए, मरम न कोऊ जाना।
इस अत्यंत महत्वपूर्ण दोहे के माध्यम से कबीरदास जी कहते हैं कि ट्विटर पर कोई शाहरुख़ का भक्त है तो कोई सलमान का. इन दोनों के भक्तों की मंडली सुबह-शाम आपस में लडती-भिड़ती रहती है. यह साबित करने के लिए दोनों में से कौन महान है? लेकिन लड़ने-भिड़ने में बिजी दोनों ग्रुप आजतक इस मरम का पता नहीं लग पाए कि लाखों लोग जस्टिन बीबर और केआरके दीवाने क्यों हैं?
सात समंदर मसि करौ, लेखनि सब बनराइ,
धरती सब कागद करौ, हरि गुन लिखा न जाइ।
कबीरदास जी कहते हैं सात समंदर की स्याही घोल लो और संसार भर के वनों के पेड़ से कलम बना लो फिर भी ट्विटर पर विराजमान उस फ़िल्मी भगवान की रिप्लाई के जवाब के एवज में उसकी महिमा का बखान नहीं कर सकोगे जो उसने तुम्हारे एक हज़ारवें ट्वीट के बाद तुम्हें दिया है. हे ट्वीपल जब यह करके भी तुम धन्य नहीं हो सकते तो ट्वीट तो केवल एक सौ चालीस करैक्टर का होता है. ऐसे में अपने उस फ़िल्मी स्टार रुपी भगवान की रिप्लाई का बखान करने के लिए एक हज़ार ट्वीट लिखकर उसे थैंक यू बोलोगे तो भी उसका कर्ज नहीं उतार पाओगे.
जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम,
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम।
कबीरदास जी कहते हैं कि जब तुम्हारे फ़लोवर्स की संख्या हजारों में हो जायेगी और तुम अपने घर वालों को दिखाते हुए बताओगे तो तुम्हारे घर में तुम्हारा दाम बढेगा. अपना दाम बढाने के लिए तुम्हें और फ़ालोवर्स चाहिए और इसका एक ही मन्त्र है कि तुम नए नए फलोवार्स की ट्वीट की रिप्लाई दोनों हाथ से उलीच कर करते रहो. फालोवर्स की संख्या बढ़ती रहेगी और घर में तुम्हारा दाम भी बढ़ता रहे.
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
श्री कबीरदास का उपरोक्त दोहा ऐसे ट्वीपल के लिए नीतिवचन टाइप है जो दिनभर में दो ढाई सौ ट्वीट ठेल देता है. उपरोक्त दोहे में कबीरदास जी ऐसे ट्वीपल को इशारा करते हुए बताना चाहते हैं कि हे ट्वीटयोद्धा दिनभर ट्वीट करने से कुछ नहीं मिलेगा. ऊपर से लोग जान जायेंगे कि तुम्हारे पास और कोई काम-धंधा नहीं है इसलिए तुम सारा दिन ट्विटर से चिपके रहते हो. साथ ही वे ऐसे ट्वीपल को भी इशारा करके समझा रहे हैं जो दिन भर सरकार और मीडिया पर बरसते रहते हैं. वे उन्हें हिदायत दे रहे हैं कि ज्यादा बरसना ठीक नहीं है क्योंकि इधर तुम बरसोगे और उधर सरकार और मीडिया धूप करके इस बरसात को सुखा देंगे.
सांई इतना दीजिये जामे कुटुंब समाय,
मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।
इस दोहे के माध्यम से संत कबीरदास ने ट्वीटबाजों के लिए नहीं अपितु फेसबुकियों के लिए सन्देश दिया है. कबीरदास जी फेसबुकी से कहते हैं कि वह अपने सांई से फेसबुक के फोटो और एलबम वाले सेक्शन में उतनी जगह मांगे जिसमें उसके और उसके कुटुंब यानी परिवार के हर सदस्य की हर होलीडे की फोटो लग जाए और उसका पूरा कुटुंब उन अलबमों में समा जाय. वह फेसबुक प्रोफाइल पर इतनी फोटो डाल दे कि फिर उसे फोटो डालने की भूख न रहे. साथ ही फ्रेंड रुपी साधु उन फोटो को देखकर इतनी लाइक दे कि लाइक देने से उसका पेट भर जाए और उसे भूखा वापस जाने की जरूरत न पड़े.
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय,
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदलेजाय।
इस दोहे के माध्यम से कबीरदास जी कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि हे ट्वीपल रात को सोकर और दिन को खाकर अपना जीवन व्यर्थ न करो. असल मज़ा लेने के लिए पूरी-पूरी रात ट्वीट करो. यह चिंता न करो कि रात हो गई है और तुम्हारी ट्वीट कोई नहीं पढ़ेगा। अरे भारत में रात है तो क्या हुआ, ऑस्ट्रेलिया में तो दिन है और कैनाडा में शाम. इसलिए दिन रात ट्विटर पर लगे रहो. परिवार, मित्र वगैरह तो आते-जाते रहेंगे लेकिन ट्विटर पर फालो करने वाला एकबार चला गया तो फिर वापस नहीं आएगा और ट्विटर पर ही नहीं, घर में भी तुम्हारा मोल घट जायेगा.