आज खबर आई कि रॉयटर्स (Reuters) के फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दिकी की अफगानिस्तान के कंधार में 15 जुलाई की रात मृत्यु हो गई। प्राप्त समाचारों के अनुसार उनकी मृत्यु अफगान तालिबान और अफगान सेना के स्पेशल फोर्सेज के बीच लड़ाई के दौरान हुई। सिद्दिकी पिछले कई दिनों से अफगान सेना के साथ थे और तालिबान के खिलाफ हो रही लड़ाई को कवर कर रहे थे। हाल के दिनों में ट्विटर पर उन्होंने अफगानिस्तान में हो रही इस लड़ाई के दौरान न केवल खींची गई कई तस्वीरें साझा की थी, बल्कि वहाँ हो रही लड़ाई के बारे में अपने अनुभव भी ट्विटर थ्रेड में साझा किए थे। उनके ट्विटर हैंडल से उनका अंतिम ट्वीट 13 जुलाई का है जिसमें उन्होंने अफगान स्पेशल फोर्सेज और तालिबान के बीच कंधार में हो रही लड़ाई के बारे में लिखा था।
शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय, ब्लॉग-गीरी पर उतर आए हैं| विभिन्न विषयों पर बेलाग और प्रसन्नमन लिखेंगे| उन्होंने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे| लेकिन कभी-कभी गम्भीर भी लिख दें तो बुरा न मनियेगा|
||Shivkumar Mishra Aur Gyandutt Pandey Kaa Blog||
Friday, July 16, 2021
फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दिकी की कंधार में मृत्यु और लिबरल मीडियाकर्मियों का ढोंग
सिद्दिकी की मृत्यु का समाचार सोशल मीडिया पर उपस्थित लोगों के लिए चौंकाने वाला था। यह इसलिए भी था कि उनकी उम्र अभी ऐसी नहीं थी कि कोई उनकी मृत्यु के बारे में पहले से सोचता। ऐसे में अचानक आए इस समाचार की वजह से सोशल मीडिया पर एक्टिव लोगों से प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो गई। उनके फैंस ने अपनी प्रतिक्रियाओं में उन्हें एक महान फोटो जर्नलिस्ट के तौर पर याद किया।
किसी भी व्यक्ति के फैन की ओर से आई ऐसी प्रतिक्रियाएँ स्वाभाविक हैं, क्योंकि किसी के भी फैंस उसके बारे में अच्छी-अच्छी बातें ही करते हैं और केवल उनके जीते जी ही नहीं, उनकी मृत्यु पर भी उन्हें एक फैन की तरह ही याद करते हैं। यही कारण था कि सिद्दिकी के कुछ फैंस ने उन्हें याद करते हुए उनके हाल के महीनों के काम को शेयर किया जिसमें भारत में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान खींचे गए फोटो प्रमुख थे।
सिद्दिकी के तमाम फैंस की मानें तो उनकी सबसे प्रमुख उपलब्धि इसी वर्ष अप्रैल और मई में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान श्मशान में जलती हुई चिताओं की तस्वीरें हैं। यदि ऐसा न होता तो ये फैंस उन्हीं तस्वीरों को शेयर न करते क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि ये तस्वीरें ट्विटर पर उपस्थिति एक बड़े हिस्से में किस तरह की भावना पैदा कर सकती हैं। उन्हें पता है कि सिद्दिकी द्वारा खींची गई ये तस्वीरें क्यों चर्चा का विषय बन गई थी। शायद यही कारण होगा जो फैंस ने जानबूझकर इन्हीं तस्वीरों को याद किया।
इन्हीं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ऐसे भी लोग हैं जो सिद्दिकी को पसंद नहीं करते। ऐसे में इस बात की संभावना अधिक है कि उन्हें पसंद न करनेवाले भी उन्हीं तस्वीरों को याद करेंगे जिनके कारण वे उन्हें पसंद नहीं करते केवल याद करेंगे बल्कि फैंस द्वारा इन्हीं तस्वीरों को साझा किये जाने पर ऐसी प्रतिक्रिया देंगे जो उनके फैंस को पसंद नहीं आएँगी। यही हुआ पर उनकी प्रतिक्रियाओं की सिद्दिकी के फैंस द्वारा जमकर आलोचना की गई। ऐसी स्थिति में प्रश्न यह उठता है कि सिद्दिकी के विरोधी किसी भी तरह से अपॉलिजेटिक क्यों दिखें? सिद्दिकी विरोधियों से आई प्रतिक्रियाओं को खोदकर उसमें से संस्कृति, आचरण, कपट वगैरह निकालने की कोशिश करते हुए उन्हें उलाहना देने की बात कहाँ तक जायज है?
सिद्दिकी फैंस केवल यहीं तक नहीं रुके। किसी ने उनकी लाश की फोटो शेयर कर दी तो एक पत्रकार ने उसे ऐसा न करने का अनुरोध किया। मजे की बात यह है कि सिद्दीकी की लाश की फोटो शेयर न करने का अनुरोध करने वाली इस पत्रकार ने कुछ समय पहले ही उन्हें याद करते हुए उनकी उन्हीं तस्वीरों को शेयर किया था जो श्मशान में जल रही चिंताओं की थी। बहुत बड़ी विडंबना है कि अपने जीवनकाल में सिद्दिकी ने उस तस्वीर को पूरी दुनिया के साथ साझा किया। उनकी मृत्यु के बाद उनकी फैन यह पत्रकार उन्हें याद करते हुए वही तस्वीर साझा कर रही है पर दूसरों से यह अपेक्षा करती है कि वे सिद्दकी की लाश की तस्वीर शेयर न करें।
यह ढोंग की पराकाष्ठा है, खासकर इसलिए क्योंकि किसी हिन्दू द्वारा चिताओं की तसवीरें साझा न करने का अनुरोध 'पत्रकारिता के कर्त्तव्य' तले बड़े आराम से कुचल दिया जाता है। ऐसे लोगों से पूछने की आवश्यकता है कि मृत शरीरों में अंतर क्या है? बस इतना ही न कि जलती हुई चिताएँ जिनकी हैं उन्हें कोई नहीं जानता पर दूसरे केस में सब जानते हैं कि जो लाश पड़ी हुई है वह सिद्दकी की है? आखिर ऐसा क्या है कि जिन्हें दूसरों की जलती चिताएं दिखाने का रत्ती भर पछतावा नहीं है वे किसी और की लाश की तस्वीर साझा करने को बुरा मान रहे हैं?
मानव स्वभाव ही ऐसा है कि संवेदना के प्रति बहुत सजग रहता है। प्रेम और घृणा एकतरफा हो सकती है पर संवेदना एकतरफा कभी नहीं हो सकती। संवेदना की अभिव्यक्ति पहले व्यक्त की गई किसी संवेदना के अनुसार ही होती है। हम जिससे संवेदना की अपेक्षा रखते हैं उसके प्रति भी संवेदना व्यक्त करना हमारी जिम्मेदारी होती है नहीं तो ऐसी अपेक्षा का कोई ख़ास मतलब नहीं होता। यह बात केवल सोशल मीडिया पर लागू नहीं होती बल्कि आम ज़िन्दगी में भी लागू होती है। इसे लेकर समय और आवश्यकतानुसार सेलेक्टिव नहीं हुआ जा सकता।
यही कारण है कि जब उमर अब्दुल्ला कहते हैं कि 'कुछ #रामी दानिश सिद्दिकी से केवल इसलिए नफ़रत कर रहे हैं क्योंकि वह अपने काम में माहिर थे' तो अब्दुल्ला को भी पता है कि वे सच नहीं कह रहे। सिद्दिकी के विरोधी उनसे नफरत नहीं बल्कि केवल उनका विरोध करते थे। नफ़रत तो विरोध का एक आयाम भर है। ये विरोधी इसलिए विरोध नहीं करते थे क्योंकि दानिश सिद्दिकी अपने काम में माहिर थे बल्कि इसलिए विरोध करते थे क्योंकि जब इन लोगों ने सिद्दिकी से आश लगाई कि सिद्दिकी एक पूरे समुदाय के प्रति संवेदनशील दिखें तब उन्होंने ऐसा नहीं किया।
उमर अब्दुल्ला को समझने की आवश्यकता है कि अधिकतर लोग पेशेवर लोगों की उत्कृष्टता को सेलिब्रेट करते हैं और वे जिन्हें चुनकर गाली दे रहे हैं, उस समाज के लोग किसी का केवल इसलिए विरोध नहीं कर सकते क्योंकि वह अपने काम में माहिर है। उनके विरोध के पीछे ठोस कारण है। उमर अब्दुल्ला की ये बात मुझे किसी पत्रकार की ट्विस्टिंग सी लगी। पता नहीं किस पत्रकार से प्रभावित हैं वे।
कई पत्रकार सोशल मीडिया या फिर परंपरागत मीडिया में जघन्य से जघन्य तस्वीर दिखाने से नहीं हिचकते, क्योंकि वे इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी कहते हैं पर वह दूसरों की इसी आज़ादी को लेकर शंकित रहते हैं। जैसे अभिव्यक्ति की आज़ादी की समझ केवल उन्हें ही है। सच्चाई दिखाने के नाम पर भले ही लोग सिद्दिकी द्वारा खींची गई तस्वीरें साझा करते रहे पर सच यह है कि दानिश सिद्दिकी की सच्चाई के ये फैंस यह तक कहने में हिचकते रहे कि सिद्दिकी को तालिबान ने मारा। इन्हें यह कहने में क्या हिचक है यह तो ये ही जानें पर यह एक बात सच के लिए इनकी तथाकथित लड़ाई की पोल खोल कर रख देती है।
सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आज़ादी सबके लिए है। जिस हिन्दू संस्कृति का हवाला देकर आज मृत्यु के बाद दानिश सिद्दिकी की आलोचना न करने या उनकी लाश की तस्वीर साझा न करने का अनुरोध किया जा रहा है उसी संस्कृति का हवाला देकर इन्हीं सिद्दकी से लोगों ने चिताओं की तस्वीरें न खींचने या उन्हें प्रकाशित न करने का अनुरोध किया था जिसे लेकर उन्होंने रत्ती भर संवेदना नहीं दिखाई थी। ऐसे में समझने की आवश्यकता है कि अभिव्यक्ति की जिस आज़ादी की शरण में तब दानिश सिद्दिकी गए थे, उसी की शरण में जाने का अधिकार उनके विरोधियों का भी है।
Thursday, April 29, 2021
मेरी सुनवाई हो रही है!
नागरिक की भलाईs के लिए सब चिंतित थे इसलिए सब सुनवाई में बिजी थे। सुनवाई के लिए पेशी होती जा रही थी। पेश होने वालों की संख्या बढ़ती जा रही थी। नागरिक टकटकी लगाए अपनी सुनवाई की ओर देख रहा था। कल दस लोग पेश हुए थे। आज सत्रह लोग होंगे। कल सुनवायी पर एक सौ बावन ट्वीट आए थे। आज पौने तीन सौ आने की संभावना है।
कई दिनों तक चलने के बाद भी सुनवाई कहीं नहीं जा सकी। बस चलती जा रही थी। अस्पतालों के वकील, राज्य सरकार के वकील, केंद्र सरकार के वकील एक जुट होकर बहस करते जा रहे हैं। बहस भी मज़े में होती जा रही है। ऐफ़िडेविट फ़ाइल किए जा रहे हैं। सवाल पूछे जा रहे थे। जवाब माँगे जा रहे हैं। वकील हायर किए जा रहे हैं। वकील फ़ायर किए जा रहे हैं।
बस नागरिक बेचारा सबको निहार रहा है, ख़ुश होकर मानो कह रहा हो; चलो किसी ने सुनवाई की। उधर नागरिक को इज़्ज़त देते हुए प्रश्न पूछे जा रहे हैं;
ऑक्सिजन किसे देना था? किसने दिया? कितना देना था? कितना दिया? जितना देना था यदि उतना नहीं दिया तो क्यों नहीं दिया? जिसे मिलना था क्या उसी को मिला? यदि उसे नहीं मिला तो किसे मिला? जिसे मिला उसने उसका क्या किया? जिसे नहीं मिला, फिर उसने क्या किया?... ये बताएँ कि कितने तरह के मरीज़ होते हैं? जितनी तरह के होते हैं, क्या सबको ऑक्सिजन चाहिए? अगर चाहिए तो क्यों चाहिए? .. जिसे नहीं चाहिए उसे क्यों नहीं चाहिए?... ये ऑक्सिजन राउरकेला में ही क्यों बनता है? सरायकेला में क्यों नहीं बन सकता? टैंकर कितने हैं? और क्यों नहीं ख़रीद सकते? कहाँ मिलता है? आपने ऑक्सिजन लेने के लिए किसी को राउरकेला क्यों नहीं भेजा?... अच्छा आप बताएँ जी कि इन्हें राउरकेला क्यों बुला रहे हैं? ख़ुद लाकर क्यों नहीं देते? ऑक्सिजन के टैंकर की सुरक्षा के लिए सेना तैनात क्यों नहीं की जा सकती?
तो आप कहना चाहते हैं कि अस्पतालों में बेड उपलब्ध है? किसके लिए है? हर मरीज अस्पताल जा सकता है? कहने का मतलब हम भी चाहें तो जा सकते हैं? ये ऑक्सिजन सिलिंडर किस धातु का बना होता है? अच्छा, लेकिन उसी धातु का क्यों बनता है? आप हमें सिलिंडर का मैन्युफ़ैक्चरिंग प्रॉसेस बता सकते हैं? कब तक प्रॉसेस का डिटेल्ज़ फ़ाइल करेंगे? नहीं, शाम सात बजे तो मुझे टीम फ़ाइनेलाइज करनी है, इसलिए प्रॉसेस कल समझ लेंगे।... एक ऑक्सिजन प्लांट लगाने में कितने दिन लगते हैं? बना बनाया नहीं लाया जा सकता? अच्छा, विदेशों में भी ऑक्सिजन ऐसे ही बनती है? क्या ऐसा संभव है कि जर्मनी में हवा की क्वालिटी अच्छी है तो वहाँ की ऑक्सिजन भी अच्छी हो? ये जो 490 टन आनी थी वह अब कहाँ है? उसकी सुरक्षा के पर्याप्त इंतज़ाम किया है आपने? ये क्रायोजेनिक सिलेंडर ही क्यों चाहिए? अच्छा इसे क्रायोजेनिक क्यों कहते हैं? ये ऑक्सिजन लिक्विड फ़ॉर्म में ही क्यों स्टोर किया जाता है? नहीं, क्या समस्या है स्टॉरेज की? ओके, अभी समझा सकते हैं?
हाँ जी, मिस्टर मेहरा, कल हम कहाँ थे? अच्छा, ऑक्सिजन बनाने की विधि समझ रहे थे। देखिए, आपको पता होना चाहिए कि आम आदमी पर विकट संकट है।.... पर मिस्टर मेहरा, हमें बेवक़ूफ़ समझ रहे हैं आप? आपको लगता है कि हम ऑर्डर पास नहीं कर सकते? बता दें कि हम बहुत स्ट्रिक्ट हैं। चाहें तो आपका सारा अधिकार इन्हें दे सकते हैं।
हाँ जी मिस्टर मेहता, आप यह बताएँ कि COVID को COVID ही क्यों कहते हैं? अगर और कुछ बोलेंगे तो क्या हो सकता है? अगर नाम कुछ और होता तो क्या फिर भी ये इतना ही घातक होता? यह वाइरस ही है, ये बात पहली बार किसे पता चली?... तो हमारा और उनका इन्फ़ेक्शन का डेफ़िनिशन एक ही है? ये स्ट्रेन क्या होता है? हर बार म्यूटेशन से नया स्ट्रेन ही निकलता है?... आप अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ सकते मिस्टर मेहता।
ये रेमडेशिविर इंजेक्शन कब दिया जाता है? कौन देता है? डॉक्टर नहीं लिखे तो नहीं मिलता? यदि हम लेना चाहे तो?... आपको अंतिम बार कब मिला था? कितना है आपका कोटा? सरकार खुद क्यों नहीं बना सकती? आप सेक्रेटेरी से पूछकर बताइए।... ये तो कह रहे हैं आपको बावन हज़ार इंजेक्शन दिए गए हैं? आपने बताया आपको केवल ढाई हज़ार मिले हैं? बाक़ी कहाँ गए? आप दोनों आपस में बात करके फ़ाइनल फिगर बताएँ कि कितना मिला था? अच्छा क्या इस इंजेक्शन की ब्लैक मार्केटिंग भी संभव है? ये ब्लैक मार्केटिंग होती कैसे है? आपको इसका प्रॉसेस पता है? यदि पता है तो उसपर एक डिटेल्ड पेपर कब तक फ़ाइल कर सकते हैं?
ह्वाट इज दिस मिस्टर मेहरा? आपकी सरकार ने होटेल में सौ रूम क्यों बुक किए? आपको क्या लगता है ऐसा करने से हम ख़ुश हो जाएँगे? आप सीधा बताएँ, अगर आपसे नहीं हो रहा है तो हम ये ज़िम्मेदारी इनको दे दें? ये विज्ञापन वाली बात सही है?... अच्छा कितना खर्च हुआ है विज्ञापन पर? क्यों खर्च हुआ? ये पैसा आता कहाँ से है? अच्छा, टैक्स पेयर से आता है? कितने टैक्स पेयर हैं पूरे राज्य में? सब इसी राज्य के नागरिक हैं? अच्छा, टैक्स के बदले उन्हें क्या मिलता है?
उधर से प्रश्न आते जा रहे हैं। इधर से जवाब जाते जा रहे हैं;
जैसा मी लॉर्ड उचित समझें। हें हें हें। उसका मुझे नहीं पता। मैं सेक्रेटेरी से पूछकर बताता हूँ। ये सच है कि हमारी तरफ़ से ऑक्सिजन लेने कोई नहीं पहुँचा। राउरकेला दूर है मी लॉर्ड। मी लॉर्ड अगर टैंकर की सुरक्षा बढ़वा देते तो .. ये मिस्टर मेहता झूठ बोल रहे हैं मी लॉर्ड। मेरे पास ऐसी जानकारी नहीं है। कुल एक सौ आठ टन ऑक्सिजन आना था लेकिन अट्ठासी टन आया। .. टैंकर पर बड़ा ख़तरा है मी लॉर्ड...हिरमाना हमारा ऑक्सिजन रोक रहा है मी लॉर्ड.. देखिए स्टोर तो लिक्विड फ़ॉर्म में ही होता है लेकिन लीटर में इक्स्प्रेस नहीं किया जाता... जी जी टन में ही इक्स्प्रेस किया जाता है। ..लाने ले जाने के लिए टैंकर चाहिए मी लॉर्ड.. ऑक्सिजन और टैंकर दोनों चाहिए मी लॉर्ड!
इस बात की जानकारी नहीं है मी लॉर्ड... ये अफ़वाह है मी लॉर्ड। मुख्यमंत्री स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर ख़ुद चिंतित होते हैं मी लॉर्ड। चिंतित होने की ज़िम्मेदारी उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री को नहीं सौंपी है मी लॉर्ड। मैं सच कह रहा हूँ .. जी जी, वे खुद चिंतित होते हैं .. जी इसका सबसे बड़ा प्रूफ़ ये है मी लॉर्ड कि अभी तक आए सभी विज्ञापनों में मुख्यमंत्री ही दिखाई देते हैं मी लॉर्ड। हें हें हें जैसा मी लॉर्ड कहें। नहीं मी लॉर्ड, ये अफ़वाह गोदी मीडिया ने आइ टी सेल के साथ मिल कर उड़ाई है मी लॉर्ड। ये सच नहीं है कि विज्ञापनों पर छ सौ पचास करोड़ खर्च हुए हैं मी लॉर्ड। मैंने सेक्रेटेरी से डेटा माँगा तो पता चला कि छ सौ अढ़तालीस करोड़ ही खर्च हुए हैं। हल्ला क्लिनिक वर्ल्ड क्लास है मी लॉर्ड लेकिन उसमें कोविड का इलाज नहीं हो सकता .. जी जी बाक़ी बीमारियों का ईलाज हो सकता है... हमने वादा नहीं किया लेकिन कोशिश की थी मी लॉर्ड।
ये इंजेक्शन के डेटा में जो अंतर है उसे हम जल्द ही रीकंसाइल कर लेंगे मी लॉर्ड। .. मैं तो कहता हूँ मी लॉर्ड कि रेमडेसिवीर के इक्स्पॉर्ट पर रोक लगे मी लॉर्ड .. हें हें हें जैसा मी लॉर्ड कहें। नहीं वो होटेल में रूम कैसे बुक हुआ उसका पता मैं लगाता हूँ मी लॉर्ड। नहीं मी लॉर्ड, सी एम साहब चिंतित थे, हैं और रहेंगे मी लॉर्ड। हम राज्य के एक एक नागरिक को बचाने के लिए वचनबद्ध हैं मी लॉर्ड.. जी जी ऑक्सिजन देकर बचाने के लिए ..
इधर नागरिक लाइव प्रोसीडिंग बाँच कर ख़ुश है.. यह सोचते हुए कि उसकी सुनवाई हो रही है!