tag:blogger.com,1999:blog-82664410112501836952024-03-05T08:08:13.674+05:30शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग<br>शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय, ब्लॉग-गीरी पर उतर आए हैं| विभिन्न विषयों पर बेलाग और प्रसन्नमन लिखेंगे| उन्होंने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे| लेकिन कभी-कभी गम्भीर भी लिख दें तो बुरा न मनियेगा|<br>||Shivkumar Mishra Aur Gyandutt Pandey Kaa Blog||Gyan Dutt Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comBlogger522125tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-76465510796263681582021-07-16T21:39:00.000+05:302021-07-16T21:39:43.724+05:30फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दिकी की कंधार में मृत्यु और लिबरल मीडियाकर्मियों का ढोंग <p><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">आज खबर आई कि रॉयटर्स (Reuters) के फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दिकी की अफगानिस्तान के कंधार में 15 जुलाई की रात मृत्यु हो गई। प्राप्त समाचारों के अनुसार उनकी मृत्यु अफगान तालिबान और अफगान सेना के स्पेशल फोर्सेज के बीच लड़ाई के दौरान हुई। </span><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">सिद्दिकी पिछले कई दिनों से अफगान सेना के साथ थे और तालिबान के खिलाफ हो रही लड़ाई को कवर कर रहे थे। हाल के दिनों में ट्विटर पर उन्होंने अफगानिस्तान में हो रही इस लड़ाई के दौरान न केवल खींची गई कई तस्वीरें साझा की थी, बल्कि वहाँ हो रही लड़ाई के बारे में अपने अनुभव भी ट्विटर थ्रेड में साझा किए थे। उनके ट्विटर हैंडल से उनका अंतिम ट्वीट 13 जुलाई का है जिसमें उन्होंने अफगान स्पेशल फोर्सेज और तालिबान के बीच कंधार में हो रही लड़ाई के बारे में लिखा था।</span> </p><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">सिद्दिकी की मृत्यु का समाचार सोशल मीडिया पर उपस्थित लोगों के लिए चौंकाने वाला था। यह इसलिए भी था कि उनकी उम्र अभी ऐसी नहीं थी कि कोई उनकी मृत्यु के बारे में पहले से सोचता। ऐसे में अचानक आए इस समाचार की वजह से सोशल मीडिया पर एक्टिव लोगों से प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो गई। उनके फैंस ने अपनी प्रतिक्रियाओं में उन्हें एक महान फोटो जर्नलिस्ट के तौर पर याद किया।</span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">किसी भी व्यक्ति के फैन की ओर से आई ऐसी प्रतिक्रियाएँ स्वाभाविक हैं, क्योंकि किसी के भी फैंस उसके बारे में अच्छी-अच्छी बातें ही करते हैं और केवल उनके जीते जी ही नहीं, उनकी मृत्यु पर भी उन्हें एक फैन की तरह ही याद करते हैं। यही कारण था कि सिद्दिकी के कुछ फैंस ने उन्हें याद करते हुए उनके हाल के महीनों के काम को शेयर किया जिसमें भारत में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान खींचे गए फोटो प्रमुख थे। </span><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">सिद्दिकी</span><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;"> के तमाम फैंस की मानें तो उनकी सबसे प्रमुख उपलब्धि इसी वर्ष अप्रैल और मई में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान श्मशान में जलती हुई चिताओं की तस्वीरें हैं। यदि ऐसा न होता तो ये फैंस उन्हीं तस्वीरों को शेयर न करते क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि ये तस्वीरें ट्विटर पर उपस्थिति एक बड़े हिस्से में किस तरह की भावना पैदा कर सकती हैं। उन्हें पता है कि सिद्दिकी द्वारा खींची गई ये तस्वीरें क्यों चर्चा का विषय बन गई थी। शायद यही कारण होगा जो फैंस ने जानबूझकर इन्हीं तस्वीरों को याद किया। </span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">इन्हीं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ऐसे भी लोग हैं जो सिद्दिकी को पसंद नहीं करते। ऐसे में इस बात की संभावना अधिक है कि उन्हें पसंद न करनेवाले भी उन्हीं तस्वीरों को याद करेंगे जिनके कारण वे उन्हें पसंद नहीं करते केवल याद करेंगे बल्कि फैंस द्वारा इन्हीं तस्वीरों को साझा किये जाने पर ऐसी प्रतिक्रिया देंगे जो उनके फैंस को पसंद नहीं आएँगी। यही हुआ पर उनकी प्रतिक्रियाओं की सिद्दिकी के फैंस द्वारा जमकर आलोचना की गई। ऐसी स्थिति में प्रश्न यह उठता है कि सिद्दिकी के विरोधी किसी भी तरह से अपॉलिजेटिक क्यों दिखें? सिद्दिकी विरोधियों से आई </span><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">प्रतिक्रियाओं को खोदकर उसमें से संस्कृति, आचरण, कपट वगैरह निकालने की कोशिश करते हुए उन्हें उलाहना देने की बात कहाँ तक जायज है? </span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">सिद्दिकी फैंस केवल यहीं तक नहीं रुके। किसी ने उनकी लाश की फोटो शेयर कर दी तो एक पत्रकार ने उसे ऐसा <a href="<blockquote class="twitter-tweet"><p lang="en" dir="ltr">Please dont circulate this picture. I can&#39;t confirm if its actually his but sharing the photo of a deceased person&#39;s body can be triggering for many. And it&#39;s disrespectful to the dead.</p>&mdash; Stuti (@StutiNMishra) <a href="https://twitter.com/StutiNMishra/status/1415938549812060160?ref_src=twsrc%5Etfw">July 16, 2021</a></blockquote> <script async src="https://platform.twitter.com/widgets.js" charset="utf-8"></script>">न करने का अनुरोध किया</a>। मजे की बात यह है कि सिद्दीकी की लाश की फोटो शेयर न करने का अनुरोध करने वाली इस पत्रकार ने कुछ समय पहले ही उन्हें याद करते हुए उनकी <a href="<blockquote class="twitter-tweet"><p lang="en" dir="ltr">Some of <a href="https://twitter.com/dansiddiqui?ref_src=twsrc%5Etfw">@dansiddiqui</a> &#39;s most iconic clicks. What a great photojournalist, died on duty. Heartbreaking and shattering 💔 <a href="https://t.co/qD7Z73bETM">pic.twitter.com/qD7Z73bETM</a></p>&mdash; Stuti (@StutiNMishra) <a href="https://twitter.com/StutiNMishra/status/1415936694465961990?ref_src=twsrc%5Etfw">July 16, 2021</a></blockquote> <script async src="https://platform.twitter.com/widgets.js" charset="utf-8"></script>">उन्हीं तस्वीरों को शेयर किया</a> था जो श्मशान में जल रही चिंताओं की थी। बहुत बड़ी विडंबना है कि अपने जीवनकाल में सिद्दिकी ने उस तस्वीर को पूरी दुनिया के साथ साझा किया। उनकी मृत्यु के बाद उनकी फैन यह पत्रकार उन्हें याद करते हुए वही तस्वीर साझा कर रही है पर दूसरों से यह अपेक्षा करती है कि वे सिद्दकी की लाश की तस्वीर शेयर न करें। </span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">यह ढोंग की पराकाष्ठा है, खासकर इसलिए क्योंकि किसी हिन्दू द्वारा चिताओं की तसवीरें साझा न करने का अनुरोध 'पत्रकारिता के कर्त्तव्य' तले बड़े आराम से कुचल दिया जाता है। ऐसे लोगों से पूछने की आवश्यकता है कि मृत शरीरों में अंतर क्या है? बस इतना ही न कि जलती हुई चिताएँ जिनकी हैं उन्हें कोई नहीं जानता पर दूसरे केस में सब जानते हैं कि जो लाश पड़ी हुई है वह सिद्दकी की है? आखिर ऐसा क्या है कि जिन्हें दूसरों की जलती चिताएं दिखाने का रत्ती भर पछतावा नहीं है वे किसी और की लाश की तस्वीर साझा करने को बुरा मान रहे हैं? </span> <span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div><div><br /></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">मानव स्वभाव ही ऐसा है कि संवेदना के प्रति बहुत सजग रहता है। प्रेम और घृणा एकतरफा हो सकती है पर संवेदना एकतरफा कभी नहीं हो सकती। संवेदना की अभिव्यक्ति पहले व्यक्त की गई किसी संवेदना के अनुसार ही होती है। हम जिससे संवेदना की अपेक्षा रखते हैं उसके प्रति भी संवेदना व्यक्त करना हमारी जिम्मेदारी होती है नहीं तो ऐसी अपेक्षा का कोई ख़ास मतलब नहीं होता। यह बात केवल सोशल मीडिया पर लागू नहीं होती बल्कि आम ज़िन्दगी में भी लागू होती है। इसे लेकर समय और आवश्यकतानुसार सेलेक्टिव नहीं हुआ जा सकता। </span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">यही कारण है कि जब <a href="<blockquote class="twitter-tweet"><p lang="en" dir="ltr">That <a href="https://twitter.com/dansiddiqui?ref_src=twsrc%5Etfw">@dansiddiqui</a> was killed by the Taliban while doing his job in Afghanistan is tragic but the fact that there are bastards out there celebrating his death because Danish was good at his job &amp; made them uncomfortable is beyond reprehensible. Rot in hell RW trolls.</p>&mdash; Omar Abdullah (@OmarAbdullah) <a href="https://twitter.com/OmarAbdullah/status/1415952108352798720?ref_src=twsrc%5Etfw">July 16, 2021</a></blockquote> <script async src="https://platform.twitter.com/widgets.js" charset="utf-8"></script>">उमर अब्दुल्ला कहते हैं </a>कि 'कुछ #रामी दानिश सिद्दिकी से केवल इसलिए नफ़रत कर रहे हैं क्योंकि वह अपने काम में माहिर थे' तो अब्दुल्ला को भी पता है कि वे सच नहीं कह रहे। सिद्दिकी के विरोधी उनसे नफरत नहीं बल्कि केवल उनका विरोध करते थे। नफ़रत तो विरोध का एक आयाम भर है। ये विरोधी इसलिए विरोध नहीं करते थे क्योंकि दानिश सिद्दिकी अपने काम में माहिर थे बल्कि इसलिए विरोध करते थे क्योंकि जब इन लोगों ने सिद्दिकी से आश लगाई कि सिद्दिकी एक पूरे समुदाय के प्रति संवेदनशील दिखें तब उन्होंने ऐसा नहीं किया। </span><br /></div><div><br /></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">उमर अब्दुल्ला को समझने की आवश्यकता है कि अधिकतर लोग पेशेवर लोगों की उत्कृष्टता को सेलिब्रेट करते हैं और वे जिन्हें चुनकर गाली दे रहे हैं, उस समाज के लोग किसी का केवल इसलिए विरोध नहीं कर सकते क्योंकि वह अपने काम में माहिर है। उनके विरोध के पीछे ठोस कारण है। उमर अब्दुल्ला की ये बात मुझे किसी पत्रकार की ट्विस्टिंग सी लगी। पता नहीं किस पत्रकार से प्रभावित हैं वे। </span> </div><div><br /></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">कई पत्रकार सोशल मीडिया या फिर परंपरागत मीडिया में जघन्य से जघन्य तस्वीर दिखाने से नहीं हिचकते, क्योंकि वे इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी कहते हैं पर वह दूसरों की इसी आज़ादी को लेकर शंकित रहते हैं। जैसे अभिव्यक्ति की आज़ादी की समझ केवल उन्हें ही है। सच्चाई दिखाने के नाम पर भले ही लोग सिद्दिकी द्वारा खींची गई तस्वीरें साझा करते रहे पर सच यह है कि दानिश सिद्दिकी की सच्चाई के ये फैंस यह तक कहने में हिचकते रहे कि सिद्दिकी को तालिबान ने मारा। इन्हें यह कहने में क्या हिचक है यह तो ये ही जानें पर यह एक बात सच के लिए इनकी तथाकथित लड़ाई की पोल खोल कर रख देती है। </span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;"><br /></span></div><div><span style="color: #1e1e1e; font-family: Verdana, BlinkMacSystemFont, -apple-system, "segoe ui", Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, "open sans", "helvetica neue", sans-serif; font-size: 16px; white-space: pre-wrap;">सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आज़ादी सबके लिए है। जिस हिन्दू संस्कृति का हवाला देकर आज मृत्यु के बाद दानिश सिद्दिकी की आलोचना न करने या उनकी लाश की तस्वीर साझा न करने का अनुरोध किया जा रहा है उसी संस्कृति का हवाला देकर इन्हीं सिद्दकी से लोगों ने चिताओं की तस्वीरें न खींचने या उन्हें प्रकाशित न करने का अनुरोध किया था जिसे लेकर उन्होंने रत्ती भर संवेदना नहीं दिखाई थी। ऐसे में समझने की आवश्यकता है कि अभिव्यक्ति की जिस आज़ादी की शरण में तब दानिश सिद्दिकी गए थे, उसी की शरण में जाने का अधिकार उनके विरोधियों का भी है। </span></div><div><br style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small;" /></div>Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-35314986165262977602021-04-29T21:43:00.004+05:302021-04-29T22:03:09.840+05:30मेरी सुनवाई हो रही है!
नागरिक की भलाईs के लिए सब चिंतित थे इसलिए सब सुनवाई में बिजी थे। सुनवाई के लिए पेशी होती जा रही थी। पेश होने वालों की संख्या बढ़ती जा रही थी। नागरिक टकटकी लगाए अपनी सुनवाई की ओर देख रहा था। कल दस लोग पेश हुए थे। आज सत्रह लोग होंगे। कल सुनवायी पर एक सौ बावन ट्वीट आए थे। आज पौने तीन सौ आने की संभावना है। <div>कई दिनों तक चलने के बाद भी सुनवाई कहीं नहीं जा सकी। बस चलती जा रही थी। अस्पतालों के वकील, राज्य सरकार के वकील, केंद्र सरकार के वकील एक जुट होकर बहस करते जा रहे हैं। बहस भी मज़े में होती जा रही है। ऐफ़िडेविट फ़ाइल किए जा रहे हैं। सवाल पूछे जा रहे थे। जवाब माँगे जा रहे हैं। वकील हायर किए जा रहे हैं। वकील फ़ायर किए जा रहे हैं। </div><div>बस नागरिक बेचारा सबको निहार रहा है, ख़ुश होकर मानो कह रहा हो; चलो किसी ने सुनवाई की। उधर नागरिक को इज़्ज़त देते हुए प्रश्न पूछे जा रहे हैं; </div><div>ऑक्सिजन किसे देना था? किसने दिया? कितना देना था? कितना दिया? जितना देना था यदि उतना नहीं दिया तो क्यों नहीं दिया? जिसे मिलना था क्या उसी को मिला? यदि उसे नहीं मिला तो किसे मिला? जिसे मिला उसने उसका क्या किया? जिसे नहीं मिला, फिर उसने क्या किया?... ये बताएँ कि कितने तरह के मरीज़ होते हैं? जितनी तरह के होते हैं, क्या सबको ऑक्सिजन चाहिए? अगर चाहिए तो क्यों चाहिए? .. जिसे नहीं चाहिए उसे क्यों नहीं चाहिए?... ये ऑक्सिजन राउरकेला में ही क्यों बनता है? सरायकेला में क्यों नहीं बन सकता? टैंकर कितने हैं? और क्यों नहीं ख़रीद सकते? कहाँ मिलता है? आपने ऑक्सिजन लेने के लिए किसी को राउरकेला क्यों नहीं भेजा?... अच्छा आप बताएँ जी कि इन्हें राउरकेला क्यों बुला रहे हैं? ख़ुद लाकर क्यों नहीं देते? ऑक्सिजन के टैंकर की सुरक्षा के लिए सेना तैनात क्यों नहीं की जा सकती? </div><div>तो आप कहना चाहते हैं कि अस्पतालों में बेड उपलब्ध है? किसके लिए है? हर मरीज अस्पताल जा सकता है? कहने का मतलब हम भी चाहें तो जा सकते हैं? ये ऑक्सिजन सिलिंडर किस धातु का बना होता है? अच्छा, लेकिन उसी धातु का क्यों बनता है? आप हमें सिलिंडर का मैन्युफ़ैक्चरिंग प्रॉसेस बता सकते हैं? कब तक प्रॉसेस का डिटेल्ज़ फ़ाइल करेंगे? नहीं, शाम सात बजे तो मुझे टीम फ़ाइनेलाइज करनी है, इसलिए प्रॉसेस कल समझ लेंगे।... एक ऑक्सिजन प्लांट लगाने में कितने दिन लगते हैं? बना बनाया नहीं लाया जा सकता? अच्छा, विदेशों में भी ऑक्सिजन ऐसे ही बनती है? क्या ऐसा संभव है कि जर्मनी में हवा की क्वालिटी अच्छी है तो वहाँ की ऑक्सिजन भी अच्छी हो? ये जो 490 टन आनी थी वह अब कहाँ है? उसकी सुरक्षा के पर्याप्त इंतज़ाम किया है आपने? ये क्रायोजेनिक सिलेंडर ही क्यों चाहिए? अच्छा इसे क्रायोजेनिक क्यों कहते हैं? ये ऑक्सिजन लिक्विड फ़ॉर्म में ही क्यों स्टोर किया जाता है? नहीं, क्या समस्या है स्टॉरेज की? ओके, अभी समझा सकते हैं? </div><div>हाँ जी, मिस्टर मेहरा, कल हम कहाँ थे? अच्छा, ऑक्सिजन बनाने की विधि समझ रहे थे। देखिए, आपको पता होना चाहिए कि आम आदमी पर विकट संकट है।.... पर मिस्टर मेहरा, हमें बेवक़ूफ़ समझ रहे हैं आप? आपको लगता है कि हम ऑर्डर पास नहीं कर सकते? बता दें कि हम बहुत स्ट्रिक्ट हैं। चाहें तो आपका सारा अधिकार इन्हें दे सकते हैं। </div><div>हाँ जी मिस्टर मेहता, आप यह बताएँ कि COVID को COVID ही क्यों कहते हैं? अगर और कुछ बोलेंगे तो क्या हो सकता है? अगर नाम कुछ और होता तो क्या फिर भी ये इतना ही घातक होता? यह वाइरस ही है, ये बात पहली बार किसे पता चली?... तो हमारा और उनका इन्फ़ेक्शन का डेफ़िनिशन एक ही है? ये स्ट्रेन क्या होता है? हर बार म्यूटेशन से नया स्ट्रेन ही निकलता है?... आप अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ सकते मिस्टर मेहता। </div><div>ये रेमडेशिविर इंजेक्शन कब दिया जाता है? कौन देता है? डॉक्टर नहीं लिखे तो नहीं मिलता? यदि हम लेना चाहे तो?... आपको अंतिम बार कब मिला था? कितना है आपका कोटा? सरकार खुद क्यों नहीं बना सकती? आप सेक्रेटेरी से पूछकर बताइए।... ये तो कह रहे हैं आपको बावन हज़ार इंजेक्शन दिए गए हैं? आपने बताया आपको केवल ढाई हज़ार मिले हैं? बाक़ी कहाँ गए? आप दोनों आपस में बात करके फ़ाइनल फिगर बताएँ कि कितना मिला था? अच्छा क्या इस इंजेक्शन की ब्लैक मार्केटिंग भी संभव है? ये ब्लैक मार्केटिंग होती कैसे है? आपको इसका प्रॉसेस पता है? यदि पता है तो उसपर एक डिटेल्ड पेपर कब तक फ़ाइल कर सकते हैं? </div><div>ह्वाट इज दिस मिस्टर मेहरा? आपकी सरकार ने होटेल में सौ रूम क्यों बुक किए? आपको क्या लगता है ऐसा करने से हम ख़ुश हो जाएँगे? आप सीधा बताएँ, अगर आपसे नहीं हो रहा है तो हम ये ज़िम्मेदारी इनको दे दें? ये विज्ञापन वाली बात सही है?... अच्छा कितना खर्च हुआ है विज्ञापन पर? क्यों खर्च हुआ? ये पैसा आता कहाँ से है? अच्छा, टैक्स पेयर से आता है? कितने टैक्स पेयर हैं पूरे राज्य में? सब इसी राज्य के नागरिक हैं? अच्छा, टैक्स के बदले उन्हें क्या मिलता है? </div><div>उधर से प्रश्न आते जा रहे हैं। इधर से जवाब जाते जा रहे हैं; </div><div>जैसा मी लॉर्ड उचित समझें। हें हें हें। उसका मुझे नहीं पता। मैं सेक्रेटेरी से पूछकर बताता हूँ। ये सच है कि हमारी तरफ़ से ऑक्सिजन लेने कोई नहीं पहुँचा। राउरकेला दूर है मी लॉर्ड। मी लॉर्ड अगर टैंकर की सुरक्षा बढ़वा देते तो .. ये मिस्टर मेहता झूठ बोल रहे हैं मी लॉर्ड। मेरे पास ऐसी जानकारी नहीं है। कुल एक सौ आठ टन ऑक्सिजन आना था लेकिन अट्ठासी टन आया। .. टैंकर पर बड़ा ख़तरा है मी लॉर्ड...हिरमाना हमारा ऑक्सिजन रोक रहा है मी लॉर्ड.. देखिए स्टोर तो लिक्विड फ़ॉर्म में ही होता है लेकिन लीटर में इक्स्प्रेस नहीं किया जाता... जी जी टन में ही इक्स्प्रेस किया जाता है। ..लाने ले जाने के लिए टैंकर चाहिए मी लॉर्ड.. ऑक्सिजन और टैंकर दोनों चाहिए मी लॉर्ड! </div><div>इस बात की जानकारी नहीं है मी लॉर्ड... ये अफ़वाह है मी लॉर्ड। मुख्यमंत्री स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर ख़ुद चिंतित होते हैं मी लॉर्ड। चिंतित होने की ज़िम्मेदारी उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री को नहीं सौंपी है मी लॉर्ड। मैं सच कह रहा हूँ .. जी जी, वे खुद चिंतित होते हैं .. जी इसका सबसे बड़ा प्रूफ़ ये है मी लॉर्ड कि अभी तक आए सभी विज्ञापनों में मुख्यमंत्री ही दिखाई देते हैं मी लॉर्ड। हें हें हें जैसा मी लॉर्ड कहें। नहीं मी लॉर्ड, ये अफ़वाह गोदी मीडिया ने आइ टी सेल के साथ मिल कर उड़ाई है मी लॉर्ड। ये सच नहीं है कि विज्ञापनों पर छ सौ पचास करोड़ खर्च हुए हैं मी लॉर्ड। मैंने सेक्रेटेरी से डेटा माँगा तो पता चला कि छ सौ अढ़तालीस करोड़ ही खर्च हुए हैं। हल्ला क्लिनिक वर्ल्ड क्लास है मी लॉर्ड लेकिन उसमें कोविड का इलाज नहीं हो सकता .. जी जी बाक़ी बीमारियों का ईलाज हो सकता है... हमने वादा नहीं किया लेकिन कोशिश की थी मी लॉर्ड। </div><div>ये इंजेक्शन के डेटा में जो अंतर है उसे हम जल्द ही रीकंसाइल कर लेंगे मी लॉर्ड। .. मैं तो कहता हूँ मी लॉर्ड कि रेमडेसिवीर के इक्स्पॉर्ट पर रोक लगे मी लॉर्ड .. हें हें हें जैसा मी लॉर्ड कहें। नहीं वो होटेल में रूम कैसे बुक हुआ उसका पता मैं लगाता हूँ मी लॉर्ड। नहीं मी लॉर्ड, सी एम साहब चिंतित थे, हैं और रहेंगे मी लॉर्ड। हम राज्य के एक एक नागरिक को बचाने के लिए वचनबद्ध हैं मी लॉर्ड.. जी जी ऑक्सिजन देकर बचाने के लिए .. </div><div>इधर नागरिक लाइव प्रोसीडिंग बाँच कर ख़ुश है.. यह सोचते हुए कि उसकी सुनवाई हो रही है!</div>Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-26117560535220904272017-06-30T12:26:00.000+05:302017-06-30T12:26:09.855+05:30कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण और अर्जुन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
</div>कुरुक्षेत्र में दोनों ओर की सेनाओं के बीच अर्जुन का रथ खड़ा था। उनके सारथी श्रीकृष्ण उन्हें उपदेश दे रहे थे। महापुरुष, योद्धा, अश्व, गज, गदा, धनुष, कृपाण इत्यादि युद्ध आरंभ होने की प्रतीक्षा में बोर हो रहे थे।प्रतीक्षा करते-करते अर्जुन के गांडीव को भी झपकी आ गई थी। <br />
<br />
उधर केशव बोले जा रहे थे; ....हे पार्थ, प्रश्न अपने-पराये का नहीं अपितु प्रश्न धर्म और अधर्म का है। तुम किनके लिए चिंतित हो? वे जो हमेशा अधर्म की राह पर चलते रहे? ....और हे पार्थ, यह कदापि न सोचो कि तुम उन्हें मारोगे। ...स्मरण रहे कि आत्मा न जन्म लेती है और न ही मरती है। आत्मा अजर-अमर है...जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, जो हो चुका है वह भी अच्छा था और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। ....हे पार्थ, अपने मन पर विजय प्राप्त करो। ...कर्म करो पार्थ और फल की चिंता न करो। ...जीवन वर्तमान में है। ...परिवर्तन इस संसार का नियम है कौन्तेय, परिवर्तन और मृत्यु ही सत्य है...हे पार्थ भय और चिंता से मुक्ति पाने का एक मात्र साधन है धर्ममार्ग पर चलना। ...इसलिए हे पार्थ, आगे बढ़ो और धर्म का पालन करो। ...<br />
<br />
बोलते-बोलते केशव रुक गए। उन्हें लगा कि वे पर्याप्त बोल चुके हैं और अर्जुन अब युद्ध आरंभ कर देंगे। <br />
<br />
अर्जुन की ओर से कोई प्रतिक्रिया न होने पर केशव ने पूछा; पार्थ, क्या अब भी तुम दुविधाओं से घिरे हो? क्या तुम्हारे मन में अब भी कोई प्रश्न है?<br />
<br />
अर्जुन ने सिर हिलाते हुए कहा; हे केशव मेरे मन में अब भी एक प्रश्न है।<br />
<br />
केशव ने पूछा; कौन सा प्रश्न?<br />
<br />
अर्जुन बोले; हे केशव प्रश्न यह है कि, आज अगर महात्मा गांधी होते तो वे क्या कहते?<br />
<br />
केशव माथे पर हाथ रखकर बैठ गए।Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-35059024703891951722016-10-12T12:25:00.003+05:302016-10-12T12:25:28.824+05:30हुआ सर्जिकल...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
</div><br />
<br />
हुआ सर्जिकल<br />
मिला हमें बल <br />
भौंके नेता <br />
उन्हें नहीं कल <br />
सैनिक मरता<br />
रक्षा करता <br />
पर लीडर जो <br />
पॉकेट भरता<br />
जब भी बोले<br />
शबद न तोले <br />
राष्ट्र-वायु में <br />
बस विष घोले <br />
मुँह की बोली <br />
गन की गोली <br />
जिसने दाग़ी <br />
उसकी हो ली<br />
उधर है पप्पू<br />
इधर है लप्पू<br />
रेत का दरिया <br />
चलता चप्पू<br />
कथन नाव है<br />
इक चुनाव है <br />
उठता क़ुरता<br />
दिखा ताव है <br />
हरिशचंद्र है <br />
बुद्धि मंद है <br />
इक मीरजाफ़र <br />
इक जयचंद है<br />
टीवी चैनल<br />
बड़का पैनल <br />
बातें बहती<br />
खुला ज्ञान-नल<br />
इनका दावा <br />
उनका लावा <br />
एक दारा तो <br />
एक रंधावा<br />
अजब चाल है <br />
बस बवाल है <br />
सच्चाई की <br />
खिंचे खाल है <br />
रक्त-दलाली <br />
उसने पा ली <br />
मुझे चांस कब?<br />
कॉफ़र ख़ाली<br />
फ़िल्म धुरी है <br />
ओम पुरी है<br />
उधर फ़वाद तो<br />
इधर उरी है <br />
पाक़ी ऐक्टर<br />
नारी या नर <br />
साथी सच के <br />
अल्ला से डर<br />
हे नर जोहर<br />
अति तो न कर <br />
यह भारत ही <br />
है तेरा घर<br />
बीइंग ह्यूमन<br />
खोल गया मन <br />
किधर खड़ा है <br />
देखें जन-जन <br />
बी सी सी आइ<br />
बिग ऐपल पाइ<br />
मेरा हिस्सा;<br />
मुझको दे भाइ<br />
तुम हो फेकर<br />
मैं हूँ चेकर <br />
मैं जज भी हूँ <br />
मैं ही क्रिकेटर<br />
पुस्तक बल है<br />
भारी छल है <br />
डूबी औरत<br />
गहरा जल है <br />
सारे हैं नत<br />
सबकुछ शरियत<br />
जेंडर वाइस<br />
मर्द हैं एकमत<br />
धर्म बड़ा है <br />
शेख अड़ा है <br />
जो लोटा है <br />
कहे; घड़ा है <br />
यही जाप सब <br />
घुले ताप सब <br />
मिटे धरा के <br />
आज पाप सब <br />
इस नौ राता<br />
दुर्गा माता<br />
जोड़ें सबका <br />
बुद्धि से नाता <br />
<br />
<br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-21314078558480808732016-09-10T15:35:00.000+05:302019-06-17T11:13:29.350+05:30ट्विटर चरित्र सेलेब, नेता,<br />
औ अभिनेता,<br />
बाक़ी जनता<br />
सबकी क्षमता<br />
ट्वीट बजायें<br />
अपनी गायें<br />
पानी आग<br />
सब में राग<br />
अजब प्रोफ़ाइल<br />
मीटर माइल<br />
टू-इन-वन है<br />
भारी फन है<br />
नर मादा है<br />
कम ज़्यादा है<br />
ट्रेंडवीर हैं<br />
पर अधीर है<br />
पालक-बालक<br />
पार्टी चालक<br />
हैशटैग है<br />
कैशबैग है<br />
म्यूट ब्लॉक है<br />
अजब क्लॉक है<br />
आउटरेजित<br />
हरदम ब्लेज़ित<br />
बहस रेल की<br />
और खेल की<br />
आपटार्ड की<br />
राशनकार्ड की<br />
यहाँ बिहारी<br />
वहाँ पहाड़ी<br />
इधर का रिक्शा<br />
उधर की गाड़ी<br />
फ़ोटोशॉपर<br />
ज़रा नहीं डर<br />
लिंकित मन है<br />
क्विंटल टन है<br />
पानी-दाना<br />
हाँ हाँ ना ना<br />
इल्लॉजिक है<br />
पर ब्लू-टिक है<br />
सेक्युलर कम्यूनल<br />
मिले नहीं कल<br />
बहते हैं नल<br />
गहरा दलदल<br />
भारी डेटा<br />
बेटी-बेटा<br />
सीएम पीएम<br />
मेसेज डीएम<br />
कर एक्स्पोज़े<br />
उत्तर खोजे<br />
राष्ट्रवाद है<br />
पर विवाद है<br />
सभी सख़्त हैं<br />
टार्ड भक्त है<br />
बेटा-माँ हैं<br />
संजय झा है<br />
सच सवाल है<br />
मगर ट्रोल है<br />
लेम जोक है<br />
अजब ब्लोक है<br />
आरटी दे दो<br />
मेन्शन ले लो<br />
उड़ता तीर<br />
ले ले वीर<br />
मारो स्लाई<br />
लो रिप्लाई<br />
बायो पढ़ लो<br />
छवियाँ गढ़ लो<br />
पिक-एनलार्ज<br />
करता चार्ज<br />
फ़्रेंड ज़ोन<br />
फ़ॉरएवर अलोन<br />
सॉलिड कंधा<br />
रजनीगंधा<br />
नेता फ़ैन<br />
लड़ाए नैन<br />
खाने की पिक<br />
देती है किक<br />
भाषा क्लिश्टम<br />
ईको-सिस्टम<br />
पढ़ा-लिखा है<br />
ज्ञान-शिखा है<br />
बड़ा है पंडित<br />
महिमामंडित<br />
फालोवर से<br />
नारी-नर से<br />
सबको भय हो<br />
उनकी जय हो।<br />
<br />
<br />
<br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-87246517886948763002016-09-10T15:33:00.001+05:302016-09-10T15:33:57.359+05:30यूपी में चुनाव लीला नारे घटिया,<br />
अच्छी खटिया,<br />
टूटी कुर्सी,<br />
मातमपुर्सी,<br />
सपा, भाजपा,<br />
कांग्रेस, बसपा<br />
राहुल भ्राता<br />
सोनिया माता,<br />
चचा मुलायम,<br />
माया क़ायम,<br />
क़ाबिल शीला<br />
नेता ढीला,<br />
गंवई ढाबा,<br />
राहुल बाबा<br />
बस पदयात्रा,<br />
टूटी मात्रा,<br />
चक्कू छूरी<br />
सब्ज़ी पूरी<br />
बड़ा समर्थन<br />
लाएगा धन<br />
मथुरा, क़ाबा<br />
सूफ़ी, बाबा<br />
'अमर' हैं आज़म<br />
भारी है ग़म<br />
बने धुरी हैं<br />
रामपुरी हैं<br />
क्षत्रिय, ब्राह्मण<br />
खुला हुआ रण<br />
यादव, क़ुर्मी<br />
भारी गर्मी<br />
केवट, मौर्या<br />
एक दिनचर्या<br />
रामगोपाला<br />
या शिवपाला<br />
कहे भतीजा<br />
यही नतीजा<br />
धोती सूखी<br />
कुर्ता भीजा<br />
कहे लोपकी<br />
लेकर झपकी<br />
आँख दिखाओ<br />
सब फल पाओ<br />
सेब, मुसम्मी,<br />
खीरा, केला,<br />
जेबा ख़ाली<br />
नहीं अधेला<br />
नेता की जय<br />
वोटर में भय<br />
अमित शाह की<br />
एक चाह की<br />
टूटें सब दल<br />
मिले तभी कल<br />
प्रतिक्रिया हो<br />
अनुप्रिया हो<br />
दिखे न एका<br />
दुखी मनेका<br />
हुआ चहेटा<br />
घायल बेटा<br />
चाय ईरानी<br />
पीये नानी<br />
प्रेश्या-रण में<br />
सबकुछ पण में<br />
नाव एक हो<br />
सोच नेक हो<br />
यूपी भर की<br />
तरकश शर की<br />
जय कृपान की<br />
राष्ट्रगान की<br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-43679475599067398902016-03-20T20:08:00.001+05:302016-03-20T21:53:47.293+05:30बहुत किया अपमान......बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी। <br />
करो चंद एहसान तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
<br />
फोड़ रहे हैं बम आतंकी<br />
आज कच्छ, कल बाराबंकी<br />
गाते शांति-गान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
स्वामी की बातें ना खोखली,<br />
लिए फिरे हैं मूसल-ओखली,<br />
कांगरेस दें ध्यान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
मोदी जी भी अडे हुए है,<br />
रस्ता रोके खड़े हुए हैं,<br />
पप्पू ले पहचान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
लालू पुत्र कहे सुन बापू,<br />
बनवा दें पटना को टापू?,<br />
दिखें नहीं इंसान, तुम्हारी ऐसी-तैसी<br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
राम गुहा से बोले मोदी,<br />
सूफी था इब्राहिम लोदी,<br />
खूब किया था दान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
राजदीप से बोली बरखा,<br />
चले न्यूज का उल्टा चरखा,<br />
बेचों बस ईमान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
येचुरी बोले सुनो कन्हैया,<br />
हमसब की बस एक ही मैया,<br />
सुन लो देकर कान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
कहें मुलायम; च<b>ओ सैफई,<br />
हएं तुमौ जो साधन देई,<br />
नाचेगा सलमान, तुम्हारी</b> ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
लिबरल सेक्युलर बिके हुए हैं,<br />
नेहरू युग से टिके हुए हैं,<br />
देश रहा पहचान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
मदर थी कल, अब संत हो गई,<br />
जैसे आदि-अनंत हो गई,<br />
हुई बड़ी दूकान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
हरिश्चंद्र का बापू कजरी,<br />
खाये खीर बताये बजरी,<br />
दिल्ली का नुकशान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
अरनबवा खाली चिल्लाता,<br />
रोज रात को ढोल बजाता,<br />
खुद को कहे महान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
प्रेष्याओं का हमला भारी,<br />
रातें हैं अब लंबी कारी,<br />
खबर हुआ अनुमान तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
मन की बातें मोदी करते,<br />
भासन से तकलीफें हरते,<br />
भासन ही पहचान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
जे एन यू से क्रांति बही है,<br />
प्रेष्या बोलें यही सही है,<br />
नक्सलियों का ज्ञान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
देशी भोजन नहीं सोहाये,<br />
सारा भारत पिज़्ज़ा खाये,<br />
इटालियन पकवान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
बिजनेसमैन हुए सब बाबा,<br />
लेकर सिर पर फिरते झाबा,<br />
बेंच रहे लोहबान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
चुप हैं अब इशरत के पप्पा,<br />
थक गए करके लारा-लप्पा,<br />
भारत भरे लगान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
मोर्टगेज करके कैलेंडर,<br />
माल्या भागा अरबों लेकर,<br />
बैंक भये परेशान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
भारतमाता की जय काहे?<br />
पूछे वह अधिकार जो चाहे,<br />
नफ़रत का सामान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
जिसने बाँटा था बिहार को,<br />
साथ उसी के हैं निहार लो,<br />
सबकुछ है आसान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
राज्यसभा क्यों नहीं चल रही?<br />
वर्किंग काहे रोज टल रही<br />
पूछ रहे नादान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
खेलें सब वाटरलेस होली,<br />
निज कल्चर की उठा के डोली,<br />
सेक्युलर यह फरमान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
ट्विटर, फेसबुक रखे बिंझाये,<br />
और नए क्या साधन लायें,<br />
बस इसपर संधान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
देशों को भी ट्वाय कर दिया,<br />
मिडिल-ईस्ट डिस्ट्रॉय कर दिया,<br />
अमेरिकन अनुदान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
लास्ट वर्ड्स हैं पत्रकार के,<br />
कुछ भी कह दें बिन अधार के,<br />
बने फिरें भगवान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
भारत स्वच्छ बनेगा कैसे,<br />
जबतक बरधे, पंडवा, भैंसे, <br />
खाकर थूकें पान, तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
भ्रष्टाचारी नदी बहाया, <br />
स्वच्छ हुआ जो कोयला खाया, <br />
कर जमुना-स्नान तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
देशबंधु की त्रिया प्रियंका,<br />
गुरुवर पीटें डेली डंका,<br />
हैं ब्राह्मण अभिमान तुम्हारी ऐसी-तैसी <br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।<br />
<br />
<br />
करो चंद एहसान तुम्हारी ऐसी-तैसी,<br />
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-5078500054647454202016-03-06T11:54:00.001+05:302016-07-26T14:46:54.712+05:30भारत का कैसा हो बसंतसुभद्रा कुमारी चौहान से अग्रिम क्षमायाचना के साथ.<br />
<br />
सौ ग्राम तुकबंदी युक्त पैरोडी;<br />
<br />
आ रही है दिल्ली से पुकार,<br />
प्रेष्यागण पूछें बार-बार,<br />
दे दे कर अक्षर पर हलंत<br />
भारत का कैसा हो बसंत?<br />
<br />
जे एन यू से आएगी क्रांति,<br />
भारत भर फैले यही भ्रांति,<br />
हम बेंचे किस्से मनगढ़ंत,<br />
भारत का ऐसा हो बसंत।<br />
<br />
फैलाओं उत्पादित डिबेट,<br />
बढ़ता ही जाए मेरा रेट,<br />
गिरते ही जाएँ हम अनंत,<br />
भारत का ऐसा हो बसंत,<br />
<br />
सबकुछ कण्ट्रोल करे मीडिया,<br />
वापस आ जाए फिर रडिया,<br />
फिर से फंस जाएँ साधु-संत,<br />
भारत का ऐसा हो बसंत,<br />
<br />
इन-टॉलेरेंस मिलकर बेंचे,<br />
सब मोदी की धोती खेंचे,<br />
दुर्गति का दिक्खे नहीं अंत<br />
भारत का ऐसा हो बसंत।<br />
<br />
टीवी स्क्रीन कन्हैया का,<br />
बस इटली वाली मैया का,<br />
सब पाप हो उनके छू-उडंत,<br />
भारत का ऐसा हो बसंत।<br />
<br />
मिलकर सब खेलें यही दांव,<br />
पाए असत्य सैकड़ों पाँव,<br />
धंसते जाएँ विषयुक्त दंत<br />
भारत का ऐसा हो बसंत।Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-27069386721356495862016-01-13T12:21:00.000+05:302016-01-13T12:21:26.773+05:30ऑड-इवेन प्लान कवियों की कलम से दिल्ली का इवेन-ऑड प्लान पिछले कई दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है। टीवी पर तर्क-वितर्क चल रहा है लेकिन अगर इवेन-ऑड प्रसंग पर तमाम कवि कविता लिखते तो क्या निकल कर आता? शायद कुछ ऐसा;<br />
<br />
<b>कुमार विश्वास<br />
</b><br />
कोई सक्सेस समझता है, कोई फेल्योर कहता है,<br />
मगर टीवी की बहसों में हमारा शोर चलता है,<br />
कहा भक्तों ने क्या इसबात में क्या आनी-जानी है,<br />
इधर अरविन्द दीवाना, उधर दिल्ली दिवानी है।<br />
<br />
<b>रहीम<br />
</b><br />
रहिमन इवेन-ऑड की महिमा करो बखान,<br />
जबरन ओहि सक्सेस कहो, चलती रहे दुकान।<br />
<br />
<b>कबीर</b><br />
<br />
कबिरा इवेन-ऑड की ऐसी चली बयार,<br />
सब आपस में लडि मरें भली करें करतार।<br />
<br />
<b>बच्चन</b><br />
<br />
कार्यालय जाने की खातिर, <br />
घर से चलता मतवाला,<br />
असमंजस है कौन सवारी<br />
चढ़ जाए भोला-भाला,<br />
कोई कहता मेट्रो धर लो, <br />
कोई कहता बस धर लो,<br />
मैं कहता हूँ ऑफिस त्यागो, <br />
पहुँचो सीधे मधुशाला।<br />
<br />
<b>गुलज़ार</b><br />
<br />
धुएं की चादर की सिलवटों में <br />
लिपटी दिल्ली,<br />
सुरमई धूप सेंक रही है आज,<br />
आज दिखी नहीं,<br />
मोटरों की परछाइयां,<br />
जिनसे गुफ्तगू करती थी <br />
ये सडकें,<br />
जो देखा करती थीं<br />
इन सड़कों की स्याह पलकों को,<br />
किसी ने कह दिया उनको<br />
कि इवेन-ऑड जारी है।<br />
<br />
<b>मैथिलीशरण गुप्त</b><br />
<br />
इवेन-ऑड कहानी<br />
विषमय वायु हुई नगरी की,<br />
खग-मृग पर छाई मुरधानी,<br />
इवेन-ऑड कहानी<br />
<br />
जन हैं हठी चढ़े सब वाहन,<br />
दिल्ली नगरी रही न पावन,<br />
अश्रु बहाते लोचन मेरे<br />
जन करते नादानी<br />
इवेन-ऑड कहानी,<br />
<br />
हुआ विवाद सदय-निर्दय का,<br />
अधियारा छाया है भय का,<br />
उषा-किरण से निकलें विषधर,<br />
व्यथित हुआ यह पानी<br />
इवेन-ऑड कहानी।<br />
<br />
<b>काका हाथरसी</b><br />
<br />
गैरज में कारें खड़ी, जाना है अस्पताल,<br />
धुंआ घुसता नाक में आँख हो रही लाल,<br />
आँख हो रही लाल, पास ना इवेन गाडी,<br />
सरकारी माया से कक्का हुए कबाड़ी,<br />
कह काका कविराय कोई तो मुझे बचाए,<br />
अपनी इवेन कार चला हमको पहुंचाए।<br />
<br />
<b>दिनकर</b><br />
<br />
हो मुद्रा गर तो आधा दो,<br />
उसमें भी हो गर बाधा तो,<br />
फिर दे दो हमको ऑड कार,<br />
मेरे गैरेज में इवेन चार,<br />
<br />
था वचन कि बसें चलाओगे<br />
अपना कर्तव्य निभाओगे,<br />
पर भीड़ देख होता प्रतीत,<br />
इससे अच्छा था वह अतीत,<br />
<br />
जब मनुज पाँव पर चलता था,<br />
आचरण उसे न खलता था,<br />
अब भूमि नहीं जो रखे पाँव,<br />
आहत करता शासकी दांव,<br />
<br />
जाने कैसे दिन आयेंगे,<br />
इस मनुज हेतु क्या लायेंगे,<br />
यह इवेन-ऑड कब टूटेगा,<br />
यह महावज्र कब फूटेगा,<br />
<br />
हो सावधान रायतामैन,<br />
कर कुछ सबको आये जो चैन,<br />
अन्यथा नागरिक लिए रोष,<br />
मढ़ देगा तेरे शीश दोष।<br />
<br />
<br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-29902565034966766182015-10-19T14:05:00.002+05:302015-10-20T20:19:36.461+05:30दुर्योधन की डायरी - पेज १४१बड़ी बमचक मची है कि कवि और साहित्यकार साहित्य अकादमी टाइप संस्थाओं से मिले पुरस्कार लौटा रहे हैं. लोग अपने-अपने विचार प्रकट कर रहे हैं. दूसरों के विचार काट रहे हैं. तर्क, वितर्क और कुतर्क किये जा रहे हैं. कुछ लोग बता रहे हैं कि जिन कवियों को ये पुरस्कार मिले हैं उनकी कविताएं घटिया हैं. कुछ बता रहे हैं कि कुछ कवियों को पिछले शासकों की बड़ाई लिखने के लिए पुरस्कार मिले हैं. लेकिन मैं आपको बता दूँ कि राजाओं-महाराजाओं का यशगान कवियों का कोई नया शगल नहीं है. <br />
<br />
<br />
<br />
कल मेरी नज़र युवराज दुर्योधन की डायरी के <b>पेज १४१ </b>पर पडी. यहाँ टाइप कर दे रहा हूँ. आप बांचिये कि युवराज क्या लिखते हैं? <br />
<br />
"आज हस्तिनापुर साहित्य रत्न से सम्मानित कवि रमाकांत बाजपेयी ने पांडवों को इंद्रप्रस्थ दिए जाने के विरोध में अपना सम्मान लौटा दिया। उधर जयद्रथ और दुशासन ने और कवियों को सम्मान लौटाने के लिए उकसा दिया है. ये कवि और साहित्यकार पुरस्कार लौटाकर पितामह और चाचा विदुर को कैसे परेशान करते हैं, अब हस्तिनापुर यह देखेगा। इतने महान कवि रमाकांत बाजपेयी से शुरुआत हो गई है तो मामला आगे ही बढ़ेगा, पीछे नहीं जाएगा. मुझे आज इस महान कवि की वह रचना याद आ गई जिसके लिए उन्हें पिताश्री ने अपने हाथों से साहित्य-रत्न का पुरस्कार दिया था. जो कुछ ऐसी थी; <br />
<br />
<br />
<br />
जय हो नरेश धृतराष्ट्र सहित युवराज सुयोधन की जय हो,<br />
हमको जिससे सम्मान मिला उस राष्ट्र और धन की जय हो,<br />
जय हो गांधारी-पुत्री की, जय हो दामाद जयद्रथ की, <br />
जय हो घोड़ो की, गदहों की, और उनमें जुते हुए रथ की.<br />
<br />
भारत भर का जो है गौरव, ऐसा है कोई राज कहाँ,<br />
जिनपर हो गर्व धर्मपथ को ऐसा है कोई आज कहाँ?<br />
व्यवहार हो जिनका न्यायोचित, जिनसे जीवित मानवता हो,<br />
जो धर्म-कर्म का रखे ध्यान, बस न्यायपथों पर चलता हो,<br />
<br />
जिसने अपना सुख त्याग रखा हो प्रजाजनों का ध्यान यहाँ,<br />
जो अहंकार तजकर देता हो बुद्धिमनों को मान यहाँ,<br />
जो कवियों का सम्मान करे, जो बाँटे हमको पुरस्कार,<br />
ऐसे न्यायोचित राजा प्रति हम आज प्रकट करते अभार,<br />
<br />
जब पांडु मरे और अकस्मात हो गया हस्तिनापुर अनाथ,<br />
सबको चिंता थी क्या होगा, कैसे जीयेंगे सभी साथ,<br />
तब प्रजाजनों के मुखर बिंदु पर एक नाम बस आया था,<br />
धृतराष्ट्र नाम के उस योद्धा को इसी राष्ट्र ने पाया था,<br />
<br />
जो गुण वैभव की खान रहा जिसके जीवन का दान मिला,<br />
जिस राजा के वैभव-प्रताप को दुनियाँ भर में मान मिला,<br />
जिसके सौ पुत्रों ने स्थापित किया धर्म का राज यहाँ,<br />
जिनके बल, बुद्धि और तेज़ से कांपे अधरम आज यहाँ,<br />
<br />
जिसने आँखों का किया दान औ दिया प्रजा को बस प्रकाश,<br />
जिसको देखे यह राष्ट्र और फट उर में उसके जगे आस,<br />
जिसके कृपाण की ध्वनि से डरता रहा सदा अन्यायी है,<br />
जिसके भुज के प्रताप पर चढ़कर मानवता निज आई है,<br />
<br />
जिसने पुत्रों को दिया ज्ञान कि धर्ममार्ग पर चलना है,<br />
स्थापना धर्म की हो उनको दीपक की भांति ही जलना है<br />
जिसने पांडवों को किया मुक्त जिम्मेवारी की धारा से,<br />
जिसके कारण ये राष्ट्र दूर ही रहा कलंकित कारा से,<br />
<br />
जिसके पुत्रों से लाक्षागृह में जली न्याय की अमिट आग,<br />
जिन पुत्रों के चलते जागा है राष्ट्रप्रेम का बड़ा भाग, <br />
यह महाकवि उसके समक्ष अपना यह शीश नवाता है,<br />
और उस नरपति से निजहित में थोड़ा उत्कोच कमाता है.<br />
<br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-72328403338279646312015-10-05T15:58:00.001+05:302015-10-05T16:40:13.633+05:30द्वापर-युग का एक टीवी पैनल डिस्कशनमहाभारत में युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ का प्रसंग पढ़ रहा था. राजसूय-यज्ञ के समय हुए शिशुपाल वध की बात पढ़ी. श्रीकृष्ण पूजन पर शिशुपाल के असम्मति से संवैधानिक संकट जैसी किसी चीज का निर्माण हो गया. संयोग भी देखिये कि यह शिशुपाल जी द्वारा किया गया श्रीकृष्ण का सौवां अपमान निकला। खैर, सभा में धर्म वगैरह की व्याख्या पढ़ी गई. तर्कों के तीर छोड़े गए. इन तीरों को काटने के लिए नए तर्कों के तीर गढ़े गए. फिर उधर से तर्क-तीर चले. फिर इधर से उनको काटा गया. <br />
<br />
तर्क वगैरह कटने के बाद काटने के लिए एक ही चीज बची थी, शिशुपाल की गर्दन. श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र को भेज शिशुपाल जी की गर्दन काट उन्हें यमपुरी भेज दिया. देवताओं ने ऊपर से पुष्पवर्षा की. <br />
<br />
धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ की समाप्ति हुई. <br />
<br />
मन में आया कि वहाँ जो कुछ भी हुआ उसको बड़ी सहजता से क्यों स्वीकार किया गया? फिर मन में आया कि; वैसे और कर भी क्या सकते थे लोग़? उन दिनों टीवी चैनल तो थे नहीं कि पैनल डिस्कशन होते, रपट निकलती, विशेषज्ञ बैठते और बाल की खाल निकालते. ऐसा करने से शिशुपाल जी का मामला आराम से दस-बारह वर्षों तक चलता. इन्वेस्टिगेशन होता. एस आई टी जांच करती. रपट लीक होती. मानवाधिकार कार्यकर्ता नारे लगाते. मानवाधिकार नेता टीवी पर दलीलें देता. दूसरों की बात न सुनता और समय निकालकर कैंडिल मार्च कर डालता। शिशुपाल जी के लिए न्याय की मांग उठाई जाती। <br />
<br />
कुल मिलाकर बड़ी बमचक मचती. <br />
<br />
शायद कुछ ऐसे:-<br />
<br />
----------------------<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSVp152dxgSffFiQnScv4vTD_CPOxzqe83k28dDBpBTpnfCubR7Dr2EAWUj41Ew1ljKm6dDYo4yzBcAP_a83IUX813o_13W3_0u4K7rn5CKAuEir88QzeSYOW8WztSu_FzPKqjx2iIuyE/s1600/arnab.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgSVp152dxgSffFiQnScv4vTD_CPOxzqe83k28dDBpBTpnfCubR7Dr2EAWUj41Ew1ljKm6dDYo4yzBcAP_a83IUX813o_13W3_0u4K7rn5CKAuEir88QzeSYOW8WztSu_FzPKqjx2iIuyE/s400/arnab.jpg" /></a></div><br />
न्यूज-आवर पर अरनब गोस्वामी. <br />
<br />
अरनब - "When so-called religion pushes humanity to the backseat, ladies and gentlemen, when some human beings start believing, they are more equal than others.. when rulers with help of the powerful seek to finish other rulers, then we are bound to be pushed many generation back, then we as human beings are doomed...then humanity is threatened to be finished..<br />
<br />
..and amidst this threat to humanity ladies and gentlemen, I am here tonight on Newshour, yet again to save the humanity from ruthless and powerful<br />
<br />
"Good evening. In a bizarre turn of events, परसों करीब 10 बजे सुबह इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर की भरी सभा में दिन-दहाड़े श्रीकृष्ण ने चेदिप्रदेश के महाराज शिशुपाल का मर्डर कर दिया. उस महाराज शिशुपाल का जो राजा तो थे ही, श्रीकृष्ण के फूफा भी थे. हमारे सोर्सेज बताते हैं कि सभा में प्रजेंट शिशुपाल के दोस्तों ने विरोध किया लेकिन उनकी आवाज़ को दबा दिया गया. सवाल यह है कि इस देश में अब Rule of Dharma है या नहीं? सवाल यह भी उठता है कि क्या अधर्मियों की आवाज़ को ऐसे ही दबा दिया जाएगा? <br />
<br />
तरह-तरह के दावे किये जा रहे हैं. चेदिप्रदेश के मानवाधिकार कार्यकर्ता और महाराज शिशुपाल के दोस्त चाहते हैं कि इस मामले की पूरी छानबीन SIT से कराई जाय लेकिन इंद्रप्रस्थ में उनकी बात नहीं सुनी जा रही है. आज इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर के महल के सामने इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया तो पुलिस ने उनके ऊपर लाठीवर्षा की. ऐसे में The nation wants to know the truth. <br />
<br />
सच क्या है यह देश जानना चाहता है. हमारे साथ हैं हस्तिनापुर से कृपाचार्य to interpret Dharma. हस्तिनापुर से ही हमारे साथ हैं महामंत्री विदुर. We also wanted Shree Krishna to come and defend himself but he refused. वे नहीं आये. उनको represent करने के लिए हमारे साथ इंद्रप्रस्थ से हैं बलराम. इन्द्रप्रस्थ से ही हमारे साथ है सहदेव.<br />
<br />
और स्टूडियो में मेरे साथ है चेदिप्रदेश से आये नरोत्तम कलसखा जो ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट हैं और Save the Demon नाम का NGO चलाते हैं और जो चाहते हैं कि शिशुपाल मर्डर केस की जांच SIT करे. साथ ही मेरे दायीं ओर हैं वरिष्ठ पत्रकार मिस्टर आशुतोष. <br />
<br />
विदुर जी, मैं आपसे शुरू करना चाहता हूँ. क्या हुआ यह? भरी सभा में किसी को क़त्ल कर देना कहाँ तक जायज़ है?"<br />
<br />
विदुर:- "देखें ऐंकरश्री, पहले तो मैं आपको बता दूँ कि शिशुपाल श्रीकृष्ण के फूफा नहीं बल्कि उनके फूफेरे भाई थे. अब आप के सवाल पर आता हूँ. देखें, जिसे आप क़त्ल कह रहे हैं दरअसल वह क़त्ल नहीं है. उसे वध कहते हैं. धर्मशास्त्रों के अनुसार क़त्ल और वध में अंतर होता है."<br />
<br />
अरनब:-"लेकिन विदुर जी, end result तो दोनों का एक ही है न. आप उसको कोई भी word दे दें लेकिन दोनों का result यह है कि एक आदमी मारा जाता है."<br />
<br />
विदुर:-"ऐंकरश्री, आप पहले मेरी बात पूरी तो होने दें. देखें, किसी अपराध के दंडस्वरुप अगर किसी को मारा जाता है तो उसे वध...."<br />
<br />
(स्टूडियो में बैठे नरोत्तम कालसखा उत्तेजित होकर)<br />
<br />
नरोत्तम कालसखा:-"आप ये बताएं..आप ये बताएं.."<br />
<br />
(स्टूडियो में बैठे आशुतोष के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. वे मुस्कुराते हुए ना ना के इशारे में सिर हिलाते है जिससे लगता है कि वे न केवल विदुर से असहमत है बल्कि यह भी लगता है कि पूरे राष्ट्र में उनकी सी समझ रखनेवाला कोई नहीं) <br />
<br />
अरनब:-"okay okay. Narottam ji wants to rebut you विदुर जी. मैं नरोत्तम जी के पास जाता हूँ. नरोत्तम जी, यह बताएं कि विदुर जो कह रहे हैं आप उससे सहमत हैं?"<br />
<br />
नरोत्तम कालसखा:-"बिलकुल नहीं अरनब। ये तथाकथित धर्म के जानकर केवल शब्दों से खेलना जानते हैं. ये विदुर जी आज हस्तिनापुर में बैठकर धर्म सिखा रहे हैं लेकिन मैं बता दूँ कि उनकी यह दलील शब्दों की जादूगरी के सिवा और कुछ नहीं है. मैं पूछता हूँ कि केवल अपमान करने से किसी कि हत्या कर देना कैसा धर्म है?"<br />
<br />
आशुतोष:-"मैं तो और आगे जाकर कहूँगा कि …… <br />
<br />
अरनब:- "one second one second आशुतोष। मैं आपके पास आऊंगा, मैं आऊंगा। विदुर जी, जवाब दें. नरोत्तम जी पूछ रहे है कि केवल अपमान के लिए किसी का murder कर देना कैसा धर्म है?"<br />
<br />
विदुर:-"देखें, आप मुझे अपनी बात पूरी करने देंगे तब तो मैं कुछ कहूँगा. मुझे लगता है कि आपको मुझे बोलने का मौका देना चाहिए।" <br />
<br />
अरनब:-"वैसे तो मैं किसी को मौका नहीं देता विदुर जी लेकिन आप कह रहे हैं तो आपको दे देता हूँ" <br />
<br />
विदुर:-"धन्यवाद। और अब मेरी बात ख़त्म होने तक मुझे टोकें नहीं। देखें, यह अपमान के एवज में की गई हत्या का मामला नहीं है. यह उससे आगे का मामला है. दरअसल मामला अधर्मी को दण्डित करने का है. बात केवल यह नहीं है कि शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का अपमान किया, बात यह भी है कि शिशुपाल अपने क्षेत्र के राजाओं से बिना किसी वजह युद्ध करता रहा है. प्रजा को और ऋषि-मुनियों को वर्षों से सताता रहा है. यह केवल श्रीकृष्ण के अपमान का मामला नहीं है. यह धर्म और अधर्म का युद्ध...<br />
<br />
नरोत्तम कालसखा:-"विदुर जी, आज आपको धर्म याद आ रहा है.…" <br />
<br />
(कृपाचार्य हाथ उठाकर बोलने की अनुमति लेना चाहते है. अनुमति न मिलने पर शुरू हो जाते है) <br />
<br />
कृपाचार्य:-"शास्त्रों के अनुसार …"<br />
<br />
अरनब:-"कृपाचार्य जी, मैं आऊंगा आपके पास. मैं आऊंगा। wait for your turn. अभी आप नरोत्तम जी को बोलने दें. go ahead नरोत्तम जी" <br />
<br />
नरोत्तम कालसखा:-"अरनब मैं विदुर जी से वही कह रहा था कि धर्म तो यह भी कहता है कि स्त्री की हत्या नहीं करनी चाहिए. यदि श्रीकृष्ण धर्म के अनुसार ही आचरण करते हैं तो पूतना की हत्या क्यों की? उस समय धर्म का विचार उनके मन में क्यों नहीं आया? क्यों नहीं सोचा कि स्त्री की हत्या धर्म के विरुद्ध है?"<br />
<br />
विदुर :-"देखें ऐक्टिविस्टश्री, पूतना एक राक्षसी थी और वासुदेव कृष्ण ने उसकी हत्या नहीं अपितु उसका भी वध ही किया था. वह श्रीकृष्ण को मारने के लिए गई थी. धर्म कहता है कि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को बचाने के लिए किसी का भी वध कर.…"<br />
<br />
नरोत्तम कालसखा:-"सुनिए सुनिए विदुर जी पहले मेरी बात सुनिए" <br />
<br />
विदुर:-"आपको याद हो तो त्रेता युग में भी.…" <br />
<br />
नरोत्तम कालसखा:-"अरे सुनिए सुनिए विदुर जी, मेरी बात भी तो सुनिए। देखिये ऐसा है कि मैं कोई पूतना का पक्ष नहीं ले रहा लेकिन आपसे जरूर पूछना चाहूँगा कि; हो सकता है पूतना हत्या करने के इरादे से गई होगी पर उसने श्रीकृष्ण की हत्या तो नहीं की न. केवल शक के बिला पर उसकी हत्या कर देना तो अपराध हुआ."<br />
<br />
आशुतोष:-"बिलकुल" <br />
<br />
विदुर:-"तो कालसखा जी, आप क्या चाहते हैं कि पूतना श्रीकृष्ण को मार देती तभी उसका वध किया जा सकता था?"<br />
<br />
सहदेव:-"मैं कहना चाहूँगा…"<br />
<br />
अरनब:-"सहदेव जी, सहदेव जी, हम आपको बोलने का मौका देंगे, हम देंगे मौका। फिलहाल नरोत्तम जी को उनकी बात पूरी करने दें. हाँ, go ahead नरोत्तम जी" <br />
<br />
नरोत्तम कालसखा:-"मैं वही कह रहा था. मैं पूछता हूँ कि क्या सबूत है कि पूतना श्रीकृष्ण की हत्या के इरादे से ही गई थी? श्रीकृष्ण ने कह दिया और आप मान गए? और फिर एक बात बताएं विदुर जी; क्या आप नहीं मानते कि हत्याऑं के मामले में श्रीकृष्ण का रिकार्ड ही खराब है? पूतना को तो जाने दें, श्रीकृष्ण ने उसे भी मार डाला जो उनका खुद का मामा था, महाराज कंस. आज यह बात तो जग के सामने है कि उन्होंने महाराज कंश को मार डाला था. अब महाराज शिशुपाल की हत्या कर दी जो खुद उनके फूफेरे भाई थे. एक बहुत ही वीर राजा। और फिर आपको याद हो तो इन्ही कृष्ण ने बचपन में ही बकासुर की हत्या कर दी थी. वृषभासुर को मार डाला. मैं पूछता हूँ बचपन से ही केवल हत्याएं करना कौन सा धर्म है?"<br />
<br />
विदुर:-"नरोत्तम जी, पहले आप की जानकारी के लिए बता दूँ कि राक्षसों और अपराधियों को मारना...."<br />
<br />
अरनब:-"okay okay ओके..मैं आशुतोष की तरफ आता हूँ. tell me Ashutosh, ये जो भरी सभा में दिन-दहाड़े हत्या हुई है, इसके बाद आप इस मामले को कहाँ जाता हुआ देखते हैं?"<br />
<br />
आशुतोष-"अर्नब, यह मामला उतना सीधा नहीं है जितना दिखाई देता है. जहाँ तक मेरी जानकारी है, श्रीकृष्ण का इस तरह से रिएक्ट करना ठीक नहीं था. मैं एक बात और बता दूँ अर्नब. देखें पहले यह बात सुनी गई कि इन्द्रप्रस्थ की सभा में ही शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का सौवीं बार अपमान किया लेकिन सूत्रों की मानें तो यह शिशुपाल द्वारा श्रीकृष्ण का सौवां अपमान नहीं था. खुद मेरे अपने सोर्स ने बताया है कि यह सौवां अपमान नहीं था. मैंने इस केस को बहुत नजदीक से फालो किया है और मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जल्द ही इस केस में ऐसे-ऐसे तथ्य सामने आ सकते हैं जो न केवल उन सभी तथ्यों से भिन्न होंगे जो अभी पब्लिक डोमेन में हैं बल्कि पूरे देश को आश्चर्यचकित कर देंगे."<br />
<br />
अरनब:-"जैसे? क्या खुलासा हो सकता है इस केस में?"<br />
<br />
आशुतोष :-"अर्नब, मुझे मेरे सोर्सेज से जानकारी मिली है कि यह केस बहुत पेंचीदा है. जितनी खोजबीन मैंने की है उससे हैरत में डाल देने वाली बातें आई हैं सामने. अपमानों का रजिस्टर मेंटेन करने वाले श्रीकृष्ण के कर्मचारी से भी मेरी बात हुई है और उसने भी इसबात से इंकार नहीं किया कि अपमानों की एंट्री करने में उससे भी गलती हो सकती है."<br />
<br />
बलराम:-"अब यह तो...."<br />
<br />
अरनब:-"one sec, one sec, one sec. बलराम जी मैं आता हूँ आपके पास. आपके पास आता हूँ. आशुतोष को उनकी बात … okay okay go ahead आशुतोष" <br />
<br />
आशुतोष:-"मैं वही कह रहा था कि अपमानों के रजिस्टर में एंट्री करने में गलती भी हो सकती है अर्नब" <br />
<br />
अरनब:-"जैसे? किस तरह की गलती की बात कर रहे हैं आप?"<br />
<br />
आशुतोष:-"जैसे ऐसा भी हो सकता है कि महाराज शिशुपाल द्वारा किया गया श्रीकृष्ण का कोई अपमान दो बार रिकार्ड हो गया हो. या ये भी हो सकता है कि कोई 2-3 अपमान दो बार रिकार्ड हो गए हों. और अर्नब अगर ऐसा कुछ हुआ है तो फिर यह महाराज शिशुपाल द्वारा किया गया सौवां अपमान नहीं था. या तो सौ से कम होगा या फिर ज्यादा लेकिन सौवां नहीं हो सकता। <br />
<br />
कृपाचार्य:-"धर्म में गणित …"<br />
<br />
सहदेव:-"यह किस तरह की बात...." <br />
<br />
आशुतोष:-"वैसे अर्नब, मैंने उडती खबर यह भी सुनी है कि अपमानो के रजिस्टर में कुछ उलट-फेर भी हुआ है. मेरे सोर्सेज बताते हैं कि रजिस्टर से बीच के दो पन्ने फाड़े गए है. अब पता नहीं यह बात कितनी सच है लेकिन सवाल तो अपनी जगह है. और अर्नब, मैंने इस केस को जिस तरह से फालो किया है.."<br />
<br />
विदुर:-(व्यंग करते हुए) "यह तो अभी परसों की घटना है पत्रकार श्री. दो दिन में कितना फालो कर लिया आपने?<br />
<br />
अरनब:-"okay okay..let me go to Balram..बलराम जी, यह बताइए कि क्या यह सच है कि अपमानों की entry वाले register में हेर-फेर हुई है. ऐसी बात सुनाई दे रही है कि ऐसा हुआ है. आप क्या कहना चाहते हैं?"<br />
<br />
सहदेव:-"what rubbish?"<br />
<br />
अरनब:-"सहदेव जी, आप अरनब के show में हैं. रबिस कुमार दूसरे चैनल के anchor हैं. हाँ, go ahead बलराम जी" <br />
<br />
बलराम:-(शांति के साथ) "देखिये, ऐसी बात बिलकुल नहीं है. अब आशुतोष जी को पता नहीं कौन से सोर्स से जानकारी मिली है लेकिन मैं स्पष्ट शब्दों में कहना चाहूँगा कि अपमानों के रजिस्टर में कोई हेर-फेर नहीं हुई है. रजिस्टर कभी भी कोई भी आकर देख सकता है. हम कुछ छिपा नहीं रहे. रही बात..."<br />
<br />
नरोत्तम कालसखा:-(कंधे उचकाते हुए) "लेकिन...लेकिन..."<br />
<br />
अरनब:-"okay Narottam ji wants to rebut you. Go ahead Narottam ji."<br />
<br />
नरोत्तम कालसखा:-"बलराम जी, आपसे मेरा एक अलग ही प्रश्न है. ये बताइए कि क्या सबूत है कि श्रीकृष्ण ने अपनी बुआ को शिशुपाल जी महराज के केवल सौ अपमानों को क्षमा करने का वचन दिया था? हो सकता है उन्होंने सवा सौ अपमानों को क्षमा करने का वचन दिया हो. या हो सकता है कि एक सौ चालीस अपमानों को क्षमा करने का वचन दिया हो. कोई सबूत है किसी के पास कि उन्होंने सौ अपमानों की ही बात की थी?"<br />
<br />
बलराम:-"फिर तो आप यह भी कह सकते हैं कि …" <br />
<br />
आशुतोष:- (जल्दी जल्दी) मैं इसपर कुछ कहना चाहूँगा। अर्नब मैं इसपर ये ...."<br />
<br />
अरनब:- (हाथ उठाकर)"I will come back to you Ashutosh. Let Balram ji speak. मैं वापस आऊंगा आपके पास. Yes go ahead Balram ji" <br />
<br />
बलराम:-"नरोत्तम जी, जब श्रीकृष्ण ने बुआ को वचन दिया था उस समय मैं वहीँ पर था. और मैं आपको सच बताता हूँ कि उसने सौवें अपमान के बाद ही मारने का वचन दिया था. अगर आपको मेरी बात का विश्वास न हो तो बुआ से पूछ सकते हैं."<br />
<br />
नरोत्तम कालसखा:-"देखिये बलराम जी मुझे आपकी बात का विश्वास क्यों हो? आप तो श्रीकृष्ण के भाई हैं. और रही बात बुआ से पूछने की तो क्या गारंटी है कि आप, श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर बुआ जी पर दबाव डाल के उनसे नहीं कहलवा देंगे कि श्रीकृष्ण ने केवल सौ अपमानों को क्षमा करने की बात कही थी?"<br />
<br />
बलराम:-"अब देखिये वैसे तो आपको हमारी किसी बात का विश्वास नहीं होगा लेकिन मेरा कहना यही है कि तथ्यों को जाने बिना...."<br />
<br />
कृपाचार्य:-"धर्मानुसार तो यह …"<br />
<br />
सहदेव:-"राजनीतिक विमर्श में ऐसे आरोप …"<br />
<br />
आशुतोष:-"धर्म की आड़ में अपराध ...."<br />
<br />
विदुर:-"ये कालसखा जी विचित्र बात कर …"<br />
<br />
(सारे एक साथ बोले जा रहे हैं. किसी की बात सुनाई नहीं दे रही है)<br />
<br />
अरनब:- (परेशान होकर झल्लाते हुए,ऊंची आवाज़ में) "Gentlemen, please! one at a time.. please. Ek minute ek minute …ek minute सहदेव जी, मैं आपके पास आता हूँ. आऊंगा मैं आपके पास. एक मिनट कृपाचार्य जी please … (शांति छा जाती है) <br />
thank you. okay let me go back to Ashutosh . आशुतोष ये बताइए कि अब क्या देखते हैं इस केस में? अब जबकि media ने इस case को अपने हाथ में ले लिया है?"<br />
<br />
आशुतोष:-"अर्नब, ये नरोत्तम जी का प्वाइंट महत्वपूर्ण है. मेरी बात एक सैनिक से हुई जिसने ये बताया कि जब श्रीकृष्ण ने अपनी बुआ को महाराज शिशुपाल के अपमानों को क्षमा कर देने की बात कही थी तो वह वहीँ पर था. और आपको हैरत होगी कि उसने बताया कि श्रीकृष्ण ने एक सौ पचहत्तर अपमानों को क्षमा करने का वचन दिया था....."<br />
<br />
बलराम:-"यह तो बिल्कुल ही झूठ बात ...."<br />
<br />
अरनब:-"बलराम जी बलराम जी, आप आशुतोष को उनकी बात तो पूरी करने दीजिये। एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. इनके बाल कितने सफ़ेद हैं यह तो देखिये। उनको नहीं तो कम से कम उनके बालों को तो इज़्ज़त दीजिये। हाँ, go ahead Ashutosh" <br />
<br />
आशुतोष:-"वही मैं कह रहा था अर्नब। देखें अब इसमें कितना सच है और कितना झूठ यह कह पाना मेरे लिए मुश्किल है लेकिन उस सैनिक ने मुझे यही बताया. और एक बात अर्नब, अब जिस तरह से सबूत एक-एक करके सामने आने लगे हैं उससे तो यही लगता है कि यह मामला बड़ा पेंचीदा होता जा रहा है. कुछ अपमान विशेषज्ञों ने तो यहाँ तक कहा है अर्नब कि यह क्लीयर नहीं है कि श्रीकृष्ण ने एक सौ अपमान होते ही महाराज शिशुपाल को मारने की बात कही थी या फिर एक सौ अपमान होने तक क्षमा कर देते और एक सौ एकवाँ अपमान होने के बाद मारते. मेरे विचार से यह बात कम महत्वपूर्ण नहीं है. और मेरा ऐसा मानना है..."<br />
<br />
(बलराम हैरत भरी निगाह से आशुतोष को देखते हैं)<br />
<br />
अरनब:-"okay, joining me now...अब हमें join कर रहे हैं हस्तिनापुर से आचार्य शकुनी. शकुनी जी, हमें ये बताएं...."<br />
<br />
(Program coordinator गलती से अरनब को शकुनि से connect न करके किसी और से connect कर देता है) (एक कान में ऊँगली दबाये,जैसे कि earpiece पकड़े हुए हों,एक आदमी कुर्सी पर दीखता है)<br />
<br />
अरनब:-"शकुनि जी, आपको हमारी आवाज़ आ रही है?"<br />
<br />
उधर बैठा व्यक्ति:-"अरे कौन शकुनि? मैं भ्रष्टाचार विशेषज्ञ अशांत कुलभूषण हूँ और मैं यहाँ पर घोड़ों की खरीद में जो scam हुआ है उसपर बोलने आया था. ये कहाँ आप मुझे शकुनि बना रहे है?"<br />
<br />
अरनब:-"sorry sorry, अशांत जी, गलती से studio ने आपको connect कर दिया। वैसे आप आये हैं तो शिशुपाल जी की हत्या पर भी अपने विचार दे दें"<br />
<br />
अशांत कुलभूषण:-"देखिये मैं भ्रष्टाचार विशेषज्ञ हूँ और उसी पर बोलूँगा। और आपने कहा था कि साढ़े नौ बजे से वो debate शुरू करेंगे और यहाँ already दस बजने वाले है" <br />
<br />
अरनब:-"बस, ये debate ख़त्म करके मैं वापस आता हूँ."<br />
<br />
(उस कुर्सी पर कुछ क्षणों के लिए अँधेरा छा जाता है और जब फिर फोकस किया जाता है तो कुर्सी पर शकुनि दीखते हैं)<br />
पीछे से आवाज़ आती है-प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर की- "अरनब,, now Mr Shakuni is connected..go ahead)<br />
<br />
अरनब:-"हाँ तो अब हमारे साथ हैं हस्तिनापुर से आचार्य शकुनि। शकुनि जी, हमें ये बतायें ...."<br />
<br />
विदुर :-(मुख पर तंग होने का भाव लिए हुए) "ऐंकरश्री, महाराज शकुनी आचार्य नहीं हैं. आपको कम से कम इतनी जानकारी तो रहनी ही चाहिए. शकुनी गांधार नरेश हैं और पिछले कई वर्षों से अपनी बहन के घर बैठकर मुफ्त की रोटियां तोड़ रहे हैं."<br />
<br />
अरनब:-"sorry sorry..विदुर जी. चलिए गंधार नरेश शकुनी ही सही. शकुनी जी, हमें ये बताएं कि ये इन्द्रप्रस्थ में जो महाराज शिशुपाल की हत्या का मामला हुआ है, इसके बारे में आप क्या सोचते हैं?" <br />
<br />
शकुनी:-"यह तो बहुत ही क्रूर हत्या का मामला है भांजे अरनब...क्षमा करो भाई,, मैंने तुम्हें भी भांजा कह डाला. एक सौ भांजो से दिन-रात मामा-मामा सुनते-सुनते आदत ख़राब हो गई है. हाल यह है कि एक दिन मेरे मुँह से जीजाश्री के लिए भी भांजे धृतराष्ट्र निकल आया था... <br />
<br />
(2 second का पॉज जैसे साँस ले रहे हों)<br />
<br />
हाँ तो मैं यह कह रहा था कि यह तो वासुदेव कृष्ण द्वारा क्रूर हत्या का मामला है. ऐसे में मैंने और भांजे दुर्योधन ने यह निर्णय लिया है कि कुछ ही दिनों में काशीनरेश के दरबार में होने वाले राजाओं के सम्मलेन में हमलोग इस मामले को उठाएंगे और चाहेंगे कि श्रीकृष्ण को उनके इस अपराध के लिए घोर दंड मिले. मैंने तय किया है कि हम इस मामले को मीडिया में उछालते रहेंगे जिससे शिशुपाल की आत्मा को न्याय मिले."<br />
<br />
अरनब:-"okay, last एक minute रह गया है मेरा पास. नरोत्तम जी, यह बताएं कि अब आपका क्या प्लान होगा? आप और आपके जैसे हजारों "मानव धिकार" activists क्या चाहते हैं?"<br />
<br />
नरोत्तम कालसखा:-"अरनब, हमारा stand बिलकुल क्लीयर है. हम यह चाहते हैं कि एक independent SIT से इस मामले की जांच कराई जाय और श्रीकृष्ण को तुरंत सज़ा दी जाय. जबतक यह नहीं होता, हम आन्दोलन करते रहेंगे। परसों हमने इंद्रप्रस्थ Gate पर एक candle march का आयोजन किया है. (मुस्कुराते हुए)<br />
आशा है कि आप अपने channel पर coverage जरूर देंगे। और...(गंभीर होते हुए कठोर आवाज़ में) हम आपके साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि महाराज शिशुपाल की आत्मा को न्याय मिले."<br />
<br />
अरनब:-"Gentlemen, अब हमारे पास वक़्त नहीं है.So let's conclude...(पॉज)<br />
लेकिन We promise you that we will make it sure that justice is done in this case.Your channel has always stood for justice. हस्तिनापुर में कृपाचार्य और इन्द्रप्रस्थ में सहदेव जी, आपको भी thanks. समय की कमी के कारण हम आपको समय न दे सके but I promise you ,,कि अगली बार हम आप दोनों को भी समय देंगे. Goodbye and Goodnight."<br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-72399320342527396142015-09-25T11:16:00.000+05:302015-09-25T11:16:10.432+05:30दुर्योधन की डायरी-पेज-१०१भारत के इतिहास में किसी काल-खंड के बारे में भविष्यवाणी करते हुए ऋषि भृगु ने दुर्योधन से कुछ कहा था जिसको युवराज दुर्योधन ने जस का तस डायरी में टीप दिया था. बांचे ऋषिवर ने क्या कहा था; <br />
<br />
<br />
विवेचना नहीं बस पण होगा, <br />
तर्कों का मोल नगण्य होगा,<br />
विद्वान जुबां नहि खोलेंगे,<br />
बस केवल ऐंकर बोलेंगे,<br />
<br />
सब पोलिटिकल दल्ले होंगे,<br />
मरकट की नाई ढब होंगे,<br />
ये कौवे गाना गायेंगे,<br />
दरबारी राग सुनायेंगे,<br />
<br />
कोयल छोड़ेगी वन उपवन,<br />
औ चमगादड़ टेरेंगे मन,<br />
जज ट्वीट में ताडेगा गोरी,<br />
जस्टिस देगा भर-भर बोरी,<br />
<br />
युवराज करेगा सेमिनार,<br />
चमचे गायेंगे गुन हज़ार,<br />
खुंदक ट्वीटेंगी दत्त-घोष,<br />
मढ़ देंगी एकहि शीश दोष,<br />
<br />
कॉमी राइट कर देगा रॉंग,<br />
पीयेगा बस चायनीज भांग,<br />
स्वामी की बातें भी कैसी,<br />
सरकारों की ऐसी-तैसी<br />
<br />
ये है बगुला या कि है ये क्रो,<br />
<b>दिस नेशन टुनाइट वांट्स टू नो</b>,<br />
चिल्लायेंगे टॉमी, पतरा,<br />
कानों के पर्दों को खतरा,<br />
<br />
वो सत्यवान तब होगा ट्राल,<br />
जो रोज करेगा नव बवाल,<br />
आपी तोड़ेंगे लॉ औ लू,<br />
नेता ट्वीटेगा; <b>प्राउड ऑफ़ यू,</b><br />
<br />
भैंसे तब हाँकेगी लाठी,<br />
न देखेंगी कद या काठी,<br />
आरक्षण मांगेंगे पटेल <br />
होगा ऐसा भी अजब खेल,<br />
<br />
खतरे में होगा लोकतंत्र,<br />
जब चोर फिरें होकर स्वतंत्र,<br />
चंदन चलकर लिपटे भुजंग,<br />
देखेगा जंगल हो के दंग,<br />
<br />
रेतों पर भी तैरेगी नाव,<br />
जब भी आयेगा इक चुनाव,<br />
नेता सपने तब बेंचेंगा,<br />
जनता की धोती खेंचेंगा,<br />
<br />
सम्मान मिलेगा चोरों को,<br />
सोना-चाँदी लतखोरों को,<br />
होंगे व्यापारी साधु-संत,<br />
ये कलयुग की महिमा अनंत,<br />
<br />
फॉरेनर बहू कहाएगी,<br />
जो राष्ट्र पे जुल्म ढहायेगी,<br />
नंगा होगा निर्धन का तन,<br />
लूटेंगे शासक सारा धन,<br />
<br />
रक्खेंगे देश अँधेरे में,<br />
अपने पिंजरे के घेरे में,<br />
तब बुद्धि की चुप्पी व्याधेगी,<br />
बस अपना मतलब साधेगी। <br />
<br />
जो नर चुटकुले सुनाएंगे,<br />
वो महाकवि कहलायेंगे,<br />
तब पत्रकार निर्मम होगा,<br />
कागज़ पर केवल तम होगा,<br />
<br />
वासी भूलेगा शिष्टाचार,<br />
फैलेंगे सारे नव विकार,<br />
अधरम जब चरम पे डोलेगा,<br />
विष को तब वायु में घोलेगा,<br />
<br />
जो भी भ्रष्टाचारी होगा,<br />
वो पद का अधिकारी होगा, <br />
यह राष्ट्रभाग जब फूटेगा,<br />
पुच्छल तारे सा टूटेगा,<br />
<br />
लेकिन अशांति का दावानल,<br />
हो चाहे जितना सुदृढ़, अटल,<br />
उसको नारायण तोड़ेंगे,<br />
औ राष्ट्रदृष्टि को मोड़ेंगे।Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-54548559528352443312015-03-15T18:33:00.002+05:302015-03-15T18:33:51.600+05:30पापनेता और पत्रकार एक शाम शराब पर "देश के लोकतंत्र को और मजबूत कैसे किया जाय?" नमक गंभीर प्रश्न पर चिंतन कर रहे थे. पास ही ताल ठोककर ब्लास्ट की जिम्मेदारी लेनेवाले एक आतंकवादी संगठन ने बम फोड़ दिया. दोनों भगवान को प्यारे हो गए. इधर इन दोनों ने धरती त्यागी और उधर धर्मराज का दूत दोनों को लेने आ पहुँचा. घटनास्थल पर पहुँचकर इस दूत के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि नेता की आत्मा से तो उसकी भेंट हो गई लेकिन पत्रकार की आत्मा आस-पास दिखाई नहीं दी. दूत ने बड़ी खोजबीन की. पत्रकार की आत्मा को आवाज़ भी लगाईं लेकिन उसकी तरफ से जवाब नहीं मिला. <br />
<br />
परेशान होकर धर्मराज का दूत केवल नेता की आत्मा काँधे पर लादे धर्मराज के पास पहुँचा। वहाँ पहुँच जब लाई गई आत्मा की एंट्री रजिस्टर में करवा रहा था तब धर्मराज ने पूछा; "पत्रकार की आत्मा क्यों नहीं लाये? तुम्हारा काम अब आउटसोर्स करने लगे हो क्या?"<br />
<br />
दूत बोला; "क्षमा करें धर्मराज, पत्रकार की आत्मा की मैंने बहुत खोज की लेकिन वह मिली ही नहीं. मैंने आवाज भी लगाईं थी लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. आपको मेरी बात पर विश्वास न हो तो मैंने घटनास्थल पर जो आवाज लगाईं थी उसका खुद स्टिंग भी कर लिया है ताकि आप गुस्सा हों तो आपके सामने सबूत दे दूँ."<br />
<br />
धर्मराज ने स्टिंग देखा. उसके बाद वे भी सोच में पड़ गए कि पत्रकार की आत्मा कहाँ गायब हो गई? वे सोच ही रहे थे कि कांख में दुनियाँ की करनी का खाता लिए चित्रगुप्त पधारे. धर्मराज को सोचते हुए देख शायद कारण भांप गए. छूटते ही बोले; "प्रभु कहीं आप उस पत्रकार की गायब आत्मा के बारे में सोचकर चिंतित तो नहीं हैं?"<br />
<br />
धर्मराज बोले; "हाँ चित्रगुप्त, ये कैसे हुआ कि नेता की आत्मा तो दूत को मिल गई लेकिन पत्रकार की आत्मा गायब हो गई?"<br />
<br />
चित्रगुप्त बोले; "भगवन, मेरे और मेरे खता-बही के रहते आप नाहक परेशान हो रहे हैं."<br />
<br />
धर्मराज ने पूछा; "तो क्या तुम्हें पता है कि पत्रकार की आत्मा कहाँ है?"<br />
<br />
चित्रगुप्त ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया; "मुझे सब पता है प्रभु. सबकी करनी का हिसाब रखता हूँ तो उनकी आत्माओं का भी हिसाब रखना ही पड़ेगा. दरअसल पत्रकार की आत्मा इस नेता की आत्मा की टेंट में है"<br />
<br />
धर्मराज के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. बोले; "पत्रकार की आत्मा नेता की आत्मा की टेंट में? लेकिन ऐसा हुआ कैसे चित्रगुप्त?"<br />
<br />
चित्रगुप्त ने रहस्य खोला. बोले; "हे भगवन, वो इसलिए क्योंकि इस पत्रकार ने अपनी आत्मा इस नेता को बेंच दी थी और वर्षों से उस आत्मा का मालिक ये नेता ही था. ये देखिये इसके टेंट से मैंने पत्रकार की आत्मा निकाल ली" कहते हुए चित्रगुप्त ने नेता की आत्मा के जेब से पत्रकार की आत्मा निकालकर धर्मराज के सामने रख दिया. <br />
<br />
उसके बाद उन्होंने नेता और पत्रकार की करनी का हिसाब करना शुरू किया। <br />
<br />
जब हिसाब हो गया तो धर्मराज बोले; "हाँ तो क्या हिसाब निकला चित्रगुप्त?"<br />
<br />
चित्रगुप्त बोले; "हे भगवन, जब से यह पत्रकार कार्यक्षेत्र में आया है तभी से इसने इस नेता के लिए काम किया है. इसने इस नेता और उसकी पार्टी के लिए सत्य को छिपाया है, तोड़-मरोड़ कर दिखाया है, आधा सच बोला है, पोल नहीं खोला है, इससे रुपया खाया है और झूठ फैलाया है"<br />
<br />
धर्मराज बोले; "दोनों ने एकसाथ मिलकर पाप किया है. करोड़ों लोगों से एकसाथ सत्य छिपाने से बड़ा पाप और क्या होगा? दोनों को कम से कम अगले दस जनम तक मुक्ति नहीं मिल सकती. इन्हें मुक्ति न मिले उसके लिए जरूरी है कि ये पाप करते जाएँ. जबतक पाप करते रहेंगे, मुक्ति का इनका रास्ता कठिन होता जाएगा. इन्हें फिर से मनुष्य बनाकर पृथ्वी पर भेज दो."<br />
<br />
चित्रगुप्त ने पूछा; "मनुष्य बनकर ये वहां तो जायेंगे ही लेकिन इनसे ऐसा कौन सा काम करवाया जाय प्रभु जिससे इनके ऊपर पाप चढ़ता रहे?"<br />
<br />
धर्मराज बोले; "किसी बड़े मंदिर में नेता को जानवरों का व्यापारी बना दो और पत्रकार को वो पंडित बना दो जो जानवरों की बलि देता है. बाकी का काम पाप खुद कर लेगा"<br />
<br />
चित्रगुप्त आसाम का नक्शा लिए अपने टाइपिस्ट को आर्डर..... <br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-3308018605253652302015-03-04T15:14:00.000+05:302015-10-07T13:20:06.418+05:30ये कौन पत्रकार है?ये मुख पे शांति भाव औ; <br />
आवाज़ में ये भारीपन <br />
कि जिसकी बात-बात में <br />
दिखाई दे रहा पतन<br />
असत्य ले जुबान पर <br />
असत्य ले जुबान पर <br />
जो जीये झूठी शान पर <br />
कि भ्रष्ट को बचाने का ये; <br />
जिसके काँधे भार है ?<br />
ये कौन पत्रकार है? <br />
ये कौन पत्रकार है?<br />
<br />
<br />
है शस्त्र शत्रुदेश का <br />
जो राष्ट्र के विरुद्ध है <br />
जो त्रस्त अपने लोभ से <br />
विचार से अशुद्ध है<br />
आकंठ डूब गर्त में <br />
आकंठ डूब गर्त में <br />
ऋणी है भ्रष्ट शर्त में <br />
कि जिसके शब्दवाण सह के; <br />
सत्य तार-तार है <br />
ये कौन पत्रकार है? <br />
ये कौन पत्रकार है?<br />
<br />
<br />
जो तर्क में गरीब पर; <br />
कलम चलाये जा रहा <br />
न देखता है राष्ट्रहित <br />
जो झूठ की है खा रहा <br />
जिसे न गर्व देश पर <br />
जिसे न गर्व देश पर <br />
जो हँस रहा है क्लेष पर <br />
चढ़ा है जिसकी लेखनी से <br />
झूठ का बजार है <br />
ये कौन पत्रकार है? <br />
ये कौन पत्रकार है?<br />
<br />
<br />
दलाल सत्ता का है जो <br />
गले मिले जो पाप के <br />
असत्य का व्यापारी जो <br />
कहे जो सत्य नाप के<br />
जो अपना धर्म भूलकर <br />
जो अपना धर्म भूलकर <br />
रहे जो कर्म भूलकर<br />
कि जिसके आचरण को देख;<br />
देश शर्मसार है <br />
ये कौन पत्रकार है,<br />
ये कौन पत्रकार है <br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-76654937888562960642014-07-26T14:00:00.000+05:302014-07-26T18:21:49.268+05:30एकलव्य री-विजिटेड पाठशाला में सारी तैयारी हो चुकी थी. गुरु द्रोणाचार्य अपने चेलों की नेट-प्रैक्टिस के लिए चिड़िया को पेड़ पर टंगवा चुके थे. उन्हें पता था कि केवल अर्जुन को ही चिड़िया की आँख दिखाई देगी और उनके बाकी चेले निशाना लगाने के बावजूद पेड़ से लेकर मैदान तक सबकुछ देखेंगे. फिर भी उन्होंने खानापूर्ति के लिए युधिष्ठिर से पूछा; "युधिष्ठिर, तुमने चिड़िया पर निशाना लगा लिया हो तो बताओ कि तुम्हें क्या-क्या दिखाई दे रहा है?"<br />
<br />
युधिष्ठिर बोले; "हे गुरुदेव, मुझे डाल से लटकाई गई चिड़िया दिखाई दे रही है. जिस डोरी से उसे लटकाया गया है, वह डोरी दिखाई दे रही है. पेड़ दिखाई दे रहा है. पेड़ की डालें दिखाई दे रही हैं. पत्ते दिखाई दे रहे हैं. आप दिखाई दे रहे हैं. और हे गुरुदेव, मुझे संसार में चारों तरफ फैला अधर्म दिखाई दे रहा है. अधर्म से पीड़ित धर्म दिखाई दे रहा है. मुझे दुशासन के कान में कुछ कहता दुर्योधन दिखाई...."<br />
<br />
गुरु द्रोणाचार्य बोले; "ए बेटा, तुमसे नहीं होगा. तुम एक तरफ खड़े हो जाओ."<br />
<br />
उसके बाद उन्होंने भीमसेन को निशाना लगाने के लिए कहा. जब भीम ने निशाना लगा लिया तब उन्होंने उनसे पूछा; "वत्स भीमसेन, तुम्हें क्या-क्या दिखाई दे रहा है?"<br />
<br />
भीमसेन बोले; "गुरुदेव मुझे वह सबकुछ दिखाई तो दे ही रहा है जो भ्राताश्री युधिष्ठिर को दिखाई दे रहा था, उसके अलावा मुझे नेट प्रैक्टिस के बाद खाए जानेवाले जलपान दिखाई दे रहे हैं. मुझे बगीचे में आम के पेड़ के नीचे रखे टेबल पर रखा खीर का पात्र और लड्डुओं से भरा परात दिखाई दे रहा है. साथ ही मुझे उस बदमाश दुर्योधन का माथा दिखाई दे रहा है और हे गुरुदेव, इच्छा तो हो रही है कि पहले मैं इस दुर्योधन का माथा फोड़ आऊँ, निशाना वगैरह बाद में लगाउँगा"<br />
<br />
भीमसेन की बात सुनकर गुरु द्रोण बोले; "तुम भी अपना धनुष-वाण लेकर हट जाओ और युधिष्ठिर के पास खड़े हो जाओ. तुम्हें मेरी आज्ञा है कि दुर्योधन के पास मत जाना"<br />
<br />
भीमसेन जाकर युधिष्ठिर के पास खड़े हो गए. <br />
<br />
इसी तरह गुरु द्रोण ने सभी चेलों से एक ही प्रश्न कर और उनके जवाब सुनकर भगा दिया. उन्होंने अंत में अर्जुन को बुलाया. अर्जुन ने धनुष पर वाण रखकर निशाना लगाया. गुरु द्रोण ने उनसे पूछा; "अर्जुन, तुम बताओ कि तुम्हें क्या-क्या दिखाई दे रहा है?"<br />
<br />
अर्जुन बोले; "हे गुरुदेव, आपको यह नहीं पूछना चाहिए कि मुझे क्या-क्या दिखाई दे रहा है? आप मात्र यह पूछें कि मुझे क्या दिखाई दे रहा है"<br />
<br />
द्रोण बोले; "ऑब्जेक्शन सस्टेंड. अच्छा मैं फिर से प्रश्न करता हूँ; तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?"<br />
<br />
अर्जुन बोले; "हे गुरुदेव, मुझे उस चिड़िया की आँख दिखाई दे रही है और आँख के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा"<br />
<br />
यह सुनकर गुरु द्रोण की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन्होंने अर्जुन को गले से लगा लिया. इस दृश्य को देखकर आकाश में बैठे इंद्र के प्रभारी देवताओं के मन में आया कि तुरंत पुष्पवर्षा कर दी जाय लेकिन वे ऐसा न कर पाये. जल्दी-जल्दी में वे पुष्प लाना भूल गए थे.<br />
<br />
खैर, गुरुवर देशबंधु … क्षमा करें, गुरुवर द्रोण ने अर्जुन को गले से लगाया. उन्हें शाबाशी प्रदान की और बोले; "हे पांडुनंदन अर्जुन, मैं आज तुम्हें वचन देता हूँ कि इस संसार में तुमसे बड़ा धनुर्धर कोई नहीं होगा"<br />
<br />
उसदिन के लिए नेट प्रैक्टिस खत्म हुई और सारे राजकुमार जलपान पर टूट पड़े.<br />
<br />
कुछ दिन बीते. एकदिन सारे राजकुमार पाठशाला में पड़े-पड़े बोर हो रहे थे तो उन्होंने सोचा कि क्यों न जंगल में घूम लिया जाय. घूमने का फैसला कर वे निकल पड़े. अब राजकुमार हैं तो उनके कुत्ते भी होंगे ही. हस्तिनापुर महाराज भरत के जमाने से आगे बढ़ चुका था इसलिए बाघों की जगह अब कुत्तों ने ले ली थी. <br />
<br />
तो सारे राजकुमार एक कुत्ता लेकर जंगल भ्रमण पर निकल गए. अपने धर्म का पालन करते हुए कुत्ता राजकुमारों के पीछे-पीछे चल रहा था. कुछ दूर जाने के बाद राजकुमारों पीछे मुड़कर देखा तो कुत्ता उनके साथ नहीं था. अब वे जंगल भ्रमण भूल कुत्ते की खोज में निकल गए. खैर, थोड़ी देर बाद कुत्ता मिला. कुत्ते अक्सर मिल ही जाते हैं. <br />
<br />
लेकिन राजकुमारों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने देखा कि कुत्ते के मुँह में सात वाण ठूंस दिए गए हैं और इस तरह ठूंसे गए हैं कि कुत्ते के मुंह में खून भी नहीं लगा था. बाकी राजकुमारों के लिए तो बात आई-गई हो गई लेकिन अर्जुन चिंतित थे. उन्हें तुरंत गुरु द्रोण का वचन याद आया. कुत्ते को लिए वे गुरु द्रोण के पास पहुंचे और छूटते ही प्रणाम कर बोले; "हे गुरुवर, आपने तो वचन दिया था कि मुझसे बड़ा धनुर्धर पूरे संसार में नहीं होगा फिर यह कौन है जिसने वाण चलाकर कुत्ते के मुंह बंद कर दिया? इसका अर्थ यह है कि कोई न कोई है जो मुझसे बड़ा धनुर्धर है"<br />
<br />
गुरु द्रोण भी आश्चर्यचकित थे. इतने बड़े धनुर्धर की जानकारी मिलने के बावजूद वे खुश होने की जगह दुखी थे. उन्हें लगा कि उनका वचन तो असत्य साबित हो जाएगा. वे अर्जुन और बाकी राजकुमारों को लिए उस धनुर्धर की खोज में निकल गए जिसके अंदर धनुर्धरी की ऐसा प्रतिभा थी. कुछ दूर चलने के पश्चात उन्हें एक स्थान पर वाण चलकर प्रैक्टिस करता हुआ एक योद्धा मिला. कुत्ते ने भी योद्धा को पहचान लिया और वहीँ रुक गया. सब जान चुके थे कि यही वह धनुर्धर है जिसने कुत्ते की यह दशा की थी. <br />
<br />
गुरु द्रोण को देखकर वह धनुर्धर रुक गया. उसने गुरु द्रोण को प्रणाम किया. कुछ ही क्षणों में उन्होंने उसे पहचान लिया. वह एकलव्य था. उसने गुरु द्रोण को सारी बात बताई कि कैसे पाठशाला से वापस किये जाने के बाद उसने गुरु द्रोण की मूर्ति बनाई और उसे ही प्रणाम करके धनुर्विद्या सीखने लगा. उधर वह सारी बात बता रहा था और इधर गुरुवर मन ही मन सोच रहे थे कि वे कैसे अपने वचन की लाज रखें. <br />
<br />
अंत में उन्होंने दुविधा और शर्म का त्याग कर एकलव्य से गुरुदक्षिणा में अँगूठा मांग डाला. उनके अपने वचन के आगे एकलव्य की प्रतिभा के लिए कोई स्थान नहीं था. <br />
<br />
गुरुदक्षिणा में अंगूठा काटकर देने की उनकी मांग सुनकर एकलव्य जरा भी विचलित नहीं हुआ. उसने कहा; "हे गुरुश्रेष्ठ, मैं गुरुदक्षिणा में आपको अपना अँगूठा देने में जरा भी पीछे नहीं हटूँगा. परंतु हे गुरुदेव, आपसे धनुर्विद्या सीखने चक्कर में मैंने महीनों से स्नान नहीं किया है. अब मैं कोई राजकुमार तो हूँ नहीं, जो विद्या ग्रहण करते समय भी ठाट से रहता. ऐसे में हे गुरुदेव, आपको गुरुदक्षिणा में अंगूठा देने से पहले मैं शुद्ध होना चाहता हूँ. मैं कल स्नान करूँगा और उसके बाद आपको अँगूठा काटकर दे दूँगा. आप मुझे कल सुबह तक का समय दें"<br />
<br />
गुरु द्रोण खुश हो गए. वे तो खुश थे ही, धनुर्धर अर्जुन यह सोचकर उनसे भी ज्यादा खुश थे कि संसार के सबसे बड़े धनुर्धर के उनके पद पर अब कोई संकट नहीं था. दोनों वापस पाठशाला आ गए. <br />
<br />
दूसरे दिन गुरु द्रोण नींद से जाग, नित्यक्रिया कर एकलव्य की प्रतीक्षा करने लगे. सारे राजकुमार उनके साथ थे. पाण्डु राजकुमार यह सोचकर फूले नहीं समा रहे थे कि गुरुवर द्वारा एकलव्य से अँगूठा लेने के कारण अर्जुन महान बने रहेंगे. वे एकलव्य की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी हस्तिनापुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति का चारण एक नोटिस लिए उपस्थित हुआ. उसने गुरु द्रोण के हाथ में नोटिस थमा दिया. उन्होंने नोटिस खोला. <br />
<br />
यह उपकुलपति की तरफ से एक कारण बताओ नोटिस था जिसमें लिखा था; "एकलव्य नामक छात्र से मिली शिकायत के अनुसार यह प्रकाश में आया है कि आप गुरुदक्षिणा में शिष्यों से उनका अँगूठा कटवा लेते हैं. अगर यह सच है तो आप यह बतायें कि क्यों न उपकुलपति द्वारा आपके पाठशाला को दी गई मान्यता को रद्द कर दिया जाय और आपके ऊपर मानवाधिकार को नष्ट करने का मुकदमा क्यों न चलाया जाय?"<br />
<br />
अभी वे यह नोटिस पढ़ ही रहे थे कि अनुसूचित जनजाति आयोग के कार्यालय से एक नोटिस...... <br />
<br />
परेशान गुरुवर के माथे पर पसीने की बूँदें पड़ने लगी. वे पोछना शुरू ही करने वाले थे कि अचानक नींद से उठकर बैठ गए. देखा तो सामने उनका पुत्र अस्वथामा खड़ा था. उसने गुरु द्रोण पर दृष्टि डाली मानो कोई प्रश्न कर रहा हो. <br />
<br />
गुरु द्रोण बोले; "अपराध बोध अब जीवनपर्यन्त साथ नहीं छोड़ेगा पुत्र"Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-53127898345489524662014-07-19T12:32:00.001+05:302014-07-19T12:32:34.096+05:30ट्वीट महिमा इन्द्र परेशान बैठे थे. माथे पर 'तिरशूल' के जैसे तीन-तीन बल पड़े हुए थे. बहुत कोशिश करने के बाद भी विश्वामित्र की तपस्या इस बार भंग नहीं हो रही थी. मेनका लगातार बहत्तर घंटे डांस करके अब तक गिनीज बुक में नाम भी दर्ज करवा चुकी थी लेकिन विश्वामित्र टस से मस नहीं हुए. मेनका के हार जाने के बाद उर्वशी ने भी ट्राई मारा लेकिन विश्वामित्र तपस्या में ठीक वैसे ही जमे रहे जैसे राहुल द्रविड़ बिना रन बनाए पिच पर जमे रहते हैं. उधर मेनका और उर्वशी से खार खाई रम्भा खुश थी.<br />
<br />
इन्द्र को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाय. दरबारियों और चापलूसों की मीटिंग बुलाई गई. मीटिंग बहुत देर तक चली. बीच में लंच ब्रेक भी हुआ. आधे से ज्यादा दरबारी केवल सोचने की एक्टिंग करते रहे जिससे लगे कि वे सचमुच इन्द्र के लिए बहुत चिंतित हैं. काफी बात-चीत के बाद एक बात पर सहमति हुई कि इन्द्र को उनके मजबूत पहलू को ध्यान में रखकर ही काम करना चाहिए. दरबारियों ने सुझाव दिया कि चूंकि इन्द्र का मजबूत पहलू डांस है सो एक बार फिर से डांस का सहारा लेना ही उचित होगा. <br />
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डांस परफार्मेंस के लिए इस बार रम्भा को चुना गया. मेनका और उर्वशी इस चुनाव से जल-भुन गई. लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता था. रम्भा ने तरह तरह के शास्त्रीय और पश्चिमी डांस किए लेकिन विश्वामित्र जमे रहे. उन्होंने रम्भा की तरफ़ देखा भी नहीं. हीन भावना में डूबी रम्भा ने एक लास्ट ट्राई मारा. मशहूर डांसर पाखी सावंत का रूप धारण किया और तीन दिनों तक फिल्मी गानों पर डांस करती रही लेकिन नतीजा वही, ढाक के तीन पात. <br />
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रम्भा को वापस लौटना पडा. रो-रो कर उसका बुरा हाल था. उसे अपनी असफलता का उतना दुख नहीं था जितना इस बात का था कि उर्वशी और मेनका अब उठते-बैठते उसे ताने देंगी.<br />
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प्लान फेल होने से इन्द्र दुखी रहने लग गए. सप्ताह में तीन चार दिन तो सोमरस चलता ही था, अब सुबह-शाम धुत रहने लगे. लेकिन उनके प्रमुख सलाहकार को अभी तक नशे की लत नहीं लगी थी. काफी सोच-विचार के बाद वो एक दिन चंद्र देवता के पास गया. वहाँ पहुँच कर उसने पूरी कहानी सुनाई और साथ में चंद्र देवता से सहायता की मांग की.चंद्र देवता की गिनती वैसे ही इन्द्र के पुराने साथियों में होती थी. सभी जानते थे कि चन्द्र देवता इन्द्र के कहने पर एक बार मुर्गा तक बन चुके थे. वे इन्द्र के लिए एक बार फिर से पाप करने पर राजी हो गए.<br />
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चंद्र देवता रात की ड्यूटी करते-करते परेशान रहते थे, सो वे बाकी का समय सोने में बिताते थे. लेकिन इन्द्र की सहायता की जिम्मेदारी जो कन्धों पर पड़ी तो नीद और चैन जाते रहे. दिन में भी बैठ कर सोचते रहते थे कि 'इस विश्वामित्र का क्या किया जाय. इन्द्र के सलाहकार को वचन दे चुका हूँ. इन्द्र को भी दारू से छुटकारा दिलाना है नहीं तो आने वाले दिनों में पार्टियों का आयोजन ही बंद हो जायेगा.' <br />
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एक दिन बेहद गंभीर मुद्रा में चिंतन करते चंद्र देवता को नारद ने देख लिया. देखते ही नारद ने अपना विश्व प्रसिद्ध डायलाग दे मारा; "नारायण नारायण, किस सोच में डूबे हैं देव?"<br />
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"हे देवर्षि, बड़ी गंभीर समस्या है. वही देवराज और विश्वामित्र वाला मामला है. इसी सोच में डूबा हूँ कि देवराज की मदद कैसे की जाए. वैसे, हे देवर्षि, आप तो देवलोक, पृथ्वीलोक, ये लोक, वो लोक सब जगह घूमते रहते हैं. आप ही कोई रास्ता सुझायें. इस विश्वामित्र की क्या कोई कमजोरी नहीं है?"; चंद्र देवता ने लगभग गिडगिडाते हुए पूछा.<br />
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"नारायण नारायण. ऐसा कौन है जिसकी कोई कमजोरी नहीं है. वैसे आप तो रात भर जागते हैं, लेकिन आप भी नहीं देख सके, जो मैंने देखा"; नारद ने चंद्र देवता से पूछा.<br />
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"हो सकता है, आपने जो देखा वो मुझे इतनी दूर से न दिखाई दिया हो. वैसे भी आजकल जागते-जागते आँख लग जाती है. लेकिन हे देवर्षि, आपने क्या देखा जो मुझे दिखाई नहीं दिया?"; चंद्र देवता ने पूछा.<br />
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"मैंने जो देखा वो बताकर देवराज की समस्या का समाधान कर मैं ख़ुद क्रेडिट ले सकता हूँ, लेकिन फिर भी आपको एक चांस देता हूँ. आज रात को ध्यान से देखियेगा, ये विश्वामित्र एक से तीन के बीच में क्या करते हैं"; नारद ने चंद्र देवता को बताया.<br />
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रात को ड्यूटी देते-देते चंद्र देवता विश्वामित्र की कुटिया के पास आकर ध्यान से देखने लगे. उन्हें जो दिखाई दिया उसे देखकर दंग रह गए. उन्होंने देखा कि विश्वामित्र ट्विटर पर लगे हैं और ट्वीट किये जा रहे हैं. ट्वीट पोस्ट करते और बार-बार चेक करते कि किसी ने आर टी और फेवरिट किया या नहीं? <br />
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चंद्र देवता को समझ में आ गया कि नारद का इशारा क्या था.<br />
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दूसरे ही दिन इन्द्र के सलाहकार ने इन्द्र का एक ट्विटर अकाउंट बनाया. ट्विटर पर पहले ही दिन विश्वामित्र की निंदा करते हुए इन्द्र ने दर्जन भर ट्वीट कर दिया. साथ में विश्वामित्र की ट्वीट के जवाब देने के लिए अपने दरबारियों का अकाउंट भी खुलवा दिया. दरबारी उनकी ट्वीट आर टी करने लगे. साथ ही विश्वामित्र को ट्रॉल करने लगे. ट्वीट, आर टी और फेवरिट का सिलसिला शुरू हुआ तो विश्वामित्र का सारा समय अब ट्वीट लिखने, इन्द्र के गाली भरे ट्वीट का जवाब देने और इन्द्र और उनके दरबारियों से लड़ने झगड़ने में जाता रहा. उनके पास तपस्या के लिए समय ही नहीं बचा.<br />
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विश्वामित्र की तपस्या भंग हो चुकी थी. इन्द्र खुश रहने लगे.<br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-86917353759261246372014-05-23T16:16:00.000+05:302014-05-23T17:06:24.211+05:30महाभारत के बाद लड़ाई ख़त्म चुकी थी. कौरव हार चुके थे. पितामह भी धर्मराज युधिष्ठिर को समझा-बुझा कर शासन करने के लिए राजी कर चुके थे. धर्मराज के पास भी राज करने के सिवा और कुछ भी करने के लिए बचा नहीं था. उन्होंने फैसला किया कि खुद को व्यस्त रखने के लिए राज करना जरूरी है. भगवान श्रीकृष्ण भी भविष्य के हस्तिनापुर की नीव कैसी हो, इसपर चिंतन कर रहे थे. अर्जुन गांडीव को धो-पोंछ कर रखने की तैयारी कर रहे थे. बात भी सही थी. जब कोई शत्रु बचा ही नहीं तो फिर गांडीव धो-पोंछ कर रखना ही श्रेयस्कर था. सहदेव भविष्यवाणियां करने में व्यस्त थे. भीम सुबह के नाश्ते के बाद दोपहर के भोजन का मेन्यू और शाम के नाश्ते के बाद रात के भोजन का मेन्यू फाइनल करने में व्यस्त रहने लगे थे. द्रौपदी ने अपने केश बाँधने की तैयारी कर ली थी. हेयर स्टाइलिस्ट उन्हें तरह-तरह के हेयर स्टाइल वाले ब्रॉश्चर दिखाने में व्यस्त थी. माता कुंती अपने व्यस्त पुत्रों को देखकर प्रसन्न होने में व्यस्त थीं. <br />
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हस्तिनापुर में तमाम पदों पर बैठनेवाले के नामों की चर्चा चल रही थी. लोग अनुमान लगाने में व्यस्त थे. कौन सा विभाग किसे मिलेगा? कौन हस्तिनापुर में व्यापार मंत्री बनेगा? कौन सेनापति बनेगा? कौन रक्षामंत्री बनेगा? मीडिया व्यस्त. सोशल मीडिया व्यस्त. अखबार व्यस्त. संपादक व्यस्त. महान टीवी चैनलों के महान ऐंकर व्यस्त. चिरकुट चैनलों के चिरकुट ऐंकर व्यस्त. खबरिया टीवी चैनल धर्मराज युधिष्ठिर पर डाक्यूमेंट्री ठेल रहे थे. जिन टीवी चैनलों ने द्रौपदी के चीरहरण के लिए वर्षों तक <a href="http://shiv-gyan.blogspot.in/2013/01/699.html">धर्मराज युधिष्ठिर के द्यूतक्रीड़ा को दोषी माना था</a>, उन्होंने भी उनके बारे में पॉजिटिव बातें ही दिखाने की शपथ ले रखी थी. इन डॉक्यूमेंट्री में लगभग सभी चैनलों ने यह तय कर लिया था कि किसी भी हालत में धर्मराज के जीवन से जुड़े द्यूतक्रीड़ा एपिसोड को नहीं दिखाना है. उन्हें शंका थी कि कहीं लोग यह कहकर हंसी उड़ाना न शुरू कर दें कि; अरे धर्मराज तो जुआ खेलते थे. <br />
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तमाम बातों को लेकर लोग चर्चा में व्यस्त थे. जो चर्चा में व्यस्त नहीं थे वे धर्मराज की जय-जयकार में व्यस्त थे. जो जयकार में व्यस्त नहीं थे वे अपना काम करने में व्यस्त थे. जिनके पास कोई काम नहीं था वे धर्मराज को सुझाव देने में व्यस्त थे. जिधर नज़र पड़ती उधर ही व्यस्त लोगों का मजमा दिखाई देता. कुल मिलाकर हस्तिनापुर विकट व्यस्तकाल से गुजर रहा था.<br />
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सब तरफ पांडवों के समर्थक ही दिखाई दे रहे थे. कौरवों के समर्थक या तो चुपके से छुट्टियां बिताने अवंती चले गए थे या कन्वर्ट होकर पांडवों के समर्थक पद की शपथ ले चुके थे. <a href="http://shiv-gyan.blogspot.in/2014/01/blog-post_30.html">पत्रकार चिंतामणि गोस्वामी</a> यह सोचकर व्यस्त थे कि कैसे धर्मराज युधिष्ठिर से एक साक्षात्कार निकाल लिया जाय? अपनी इस इच्छा को फलीभूत होते हुए देखने हेतु वे एकबार नकुल के सारथी से 'सोर्स' भी लगवा चुके थे. उसने पत्रकारश्री को वचन दिया था कि वह नकुल से कहकर उनका यह काम करवा देगा. <br />
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इधर धर्मराज युधिष्ठिर पदों पर बैठनेवाले की संभावित सूची को लेकर व्यस्त थे. उन्हें पता था कि कौरवों के वर्षों पुराने कुशासन के कारण हस्तिनापुर एक लाबीस्ट-प्रधान राज्य बन चुका था. एक दिन धर्मराज हस्तिनापुर में भरे जाने वाले पदों के संभावित उम्मीदवारों की सूची देख रहे थे. उन्हें पता था कि किसको कहाँ लगाना है? किसको कौन सा पद देना है. इंद्रप्रस्थ में अपने सुशासन के चलते उन्हें सब पता था कि क्या-क्या करना है. इधर दाहिने हाथ में लेखनी और बाएं हाथ में सूची लिए धर्मराज ने अपना काम शुरू ही किया था कि सेवक संदेश लेकर आया और बोला; "हे महाराज, हे पांडुनंदन धर्मराज युधिष्ठिर, आपसे मिलने प्रजा के कुछ लोग आये हैं"<br />
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धर्मराज को लगा कि प्रजा के लोग क्यों आये हैं? अचानक क्या हो गया? उन्होंने अभीतक किसी जनता दरबार लगाने का अनाउंसमेंट भी नहीं करवाया था. खैर, कुछ सोचने के बाद उन्होंने कहा; "ठीक है उन्हें अंदर भेज दो"<br />
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सेवक को कुछ याद आया और उसने धर्मराज को जानकारी देते हुए कहा; "परन्तु महाराज, करीब डेढ़ हज़ार लोग आये हैं. सबको अंदर ले तो आऊँ परन्तु वे खड़े कहाँ होंगे?"<br />
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धर्मराज ने कुछ सोचकर कहा; "इतने आये हैं? परन्तु क्यों? और सारे क्यों मिलना चाहते हैं?" <br />
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सेवक बोला; "ये तो पता नहीं महाराज लेकिन कहा तो यही" <br />
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धर्मराज बोले; "तो फिर उनसे कहो कि केवल १०-१५ लोग ही अंदर आएं"<br />
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सेवक ने जाकर भीड़ को सूचना दी. बोला; "महाराज को मैंने जानकारी दी. उन्होंने आप में से केवल १०-१५ लोगों को उनसे मिलने की आज्ञा दी है."<br />
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अभी उनसे इतना कहा ही था कि भीड़ में से एक युवक चिल्लाया; "मैंने आपसे कहा था कि उन्हें मेरा नाम बताएं. आपने क्या बताया नहीं कि मैं चहचह डॉट कॉम पर उनका फालोवर हूँ? और मुखसर्ग डॉट कॉम पर भी उनका समर्थक हूँ?"<br />
<br />
सेवक बोला; "अब यह सब मुझे नहीं पता. उन्होंने तो यही कहा कि १०-१५ लोगों से ज्यादा लोग नहीं जा सकते. आपस में फैसला कर लें कि कौन कौन जाएगा"<br />
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उसका इतना कहना था कि बातों का सैलाब आ गया. एकसाथ हज़ारों लोगों ने बोलना शुरू कर दिया. कौन क्या कह रहा था, किसी की समझ में नहीं आ रहा था. कुछ वैसा ही नज़ारा था जैसा पेड़ पर बैठे पक्षियों के झुंड ने नीचे किसी सर्प को देख लिया हो. कोई तर्क दे रहा था तो कोई कुतर्क. सब एकसाथ कुछ न कुछ दे रहे थे. चारों तरफ से तर्क, वितर्क, कुतर्क के वाणों की वर्षा हो रही थी. किसी को पता भी नहीं चल रहा था कि वह क्या कह रहा है? क्या सुन रहा है? क्या कहना चाहता है? क्या सुनना चाहता है? <br />
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यह कार्यक्रम देर तक चलने की संभावना को देखते हुए अचानक सेवक चिल्लाया; "अगर इसी क्षण आपसब चुप नहीं हुए तो आपसब को राजमहल के अहाते से बाहर कर दिया जाएगा"<br />
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भय बिनु होइ न प्रीति के सिद्धान्त को एकबार फिर से सही पाया गया. सब चुप हो गए. कुछ देर बाद भीड़ ने दस लोगों को जाने दिया. थोड़ी देर में ही दसों धर्मराज युधिष्ठिर के सामने थे. उन्हें देखते ही धर्मराज ने पूछा; "हे, महानुभावों, अपना परिचय दें एवं यहाँ आने का प्रयोजन बताएं." <br />
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उनकी बात सुनते ही उनमें से एक अति उत्साहित होकर बोला; "महाराज, पहचाना मुझे? मैं रमाकांत. आपको चहचह डॉट कॉम पर फॉलो करता हूँ"<br />
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उसकी बात सुनकर धर्मराज बोले; "रमाकांत! मैंने यह नाम पहले नहीं सुना. अपना पूरा परिचय दें."<br />
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वो बोला; "अरे धर्मराज, मैं चहचह डॉट कॉम पर आपका फालोवर. अरे वो @धर्मराजभक्त याद है आपको? वो मेरा ही हैंडल है. अरे वही जिसकी डीपी में त्रिशूल लगा हुआ है. मैं आपकी हर चहचह आर सी करता था. मैंने ही पहली बार #फाइवविलेजेजफॉरपांडव हैसटैग चहचह डॉट कॉम पर ट्रेंड करवाया था. याद है आपको? दुर्योधन का वह फोटोशॉप किया पिक्चर जिसमें आप उसकी छाती पर पाँव रख तलवार घुसाने ही वाले थे, उसे मैंने ही अपनी कारीगरी से बनाया था." <br />
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धर्मराज बोले; "मुझे सब याद है लेकिन आपने वहां डी पी में त्रिशूल लगाया है और यहाँ अपना नाम रमाकांत बता रहे हैं तो मैं कैसे पहचानूँगा?"<br />
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अभी ये दोनों बात ही कर रहे थे कि एक और समर्थक बोल पड़ा; "और महाराज मुझे पहचाना आपने? मैं वही हूँ जिसने चहचह डॉट कॉम पर अपनी चहचह में दुशासन को गाली दिया था. पाँच सौ आर सी मिला था उसे."<br />
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अचानक एक और सामने आया. बोला; "और मैंने जयद्रथ को पूरा सात महीने तक ट्रॉल किया था"<br />
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सबने अपना-अपना परिचय दिया। सुनकर धर्मराज बोले; "मुझसे क्या चाहते हैं महानुभावों?"<br />
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एक बोला; "महाराज, देखिये आप भी मानेंगे कि कुरुक्षेत्र में युद्ध के दौरान ही नहीं, उससे पहले से ही हमने आपके लिए काम किया. हस्तिनापुर की प्रजा के बीच पूरा समर्थन और माहौल हमने तैयार किया. आप जरूर मानेंगे कि युद्ध में आपकी विजय हमारे कारण ही हुई."<br />
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धर्मराज बोले; "हे महानुभावों, मैं मानता हूँ कि आपने हम पांडवों का समर्थन किया परन्तु इसका बार-बार बखान करके मुझे शर्मिंदा न करें. आप भी मानेंगे कि युद्ध जीतने के लिए हमारे साथ तमाम योद्धा लड़े. उन्होंने कुरुक्षेत्र के मैदान में लड़ाई की. तो क्या उनको इसका क्रेडिट नहीं मिलना चाहिए? वैसे आप चाहते क्या हैं?"<br />
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समर्थकों में से एक बोला; "हम यह चाहते हैं कि आप हस्तिनापुर में तमाम पदों पर नियुक्ति हमारे अनुसार करें. हम जिसे कहें उसे सेनापति बनायें. जिसे कहें उसे रक्षामंत्री बनाएं. हम जिसे कहें उसे ……… <br />
<br />
धर्मराज ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा; "हे समर्थकश्री, समर्थन करना एक बात है और राजकाज के कामों में दखल देना सर्वथा दूसरी. युद्ध समाप्त हो चुका है. अब राज-काज करने का समय आ गया है. अब मुझे काम करना है. अब पदों पर नियुक्ति का काम मुझे करने दें क्योंकि अगर राजकाज ठीक से नहीं चला तो बेइज्जती मेरी होगी, आपकी नहीं. सत्य तो यह है कि केशव भी पदों पर नियुक्ति के मुद्दे पर मुझे कुछ नहीं कह रहे. आपको समझना चाहिए कि ............."<br />
<br />
अचानक सब चुप हो गए. कुछ ही मिनटों में समर्थकगण वहां से छंटने. जाते-जाते एक बोल गया; "चलो यहाँ से. सब ऐसे ही होते हैं. जब जरूरत थी तो समर्थन ले लिया और आज कह रहे हैं..........राजकाज चलाने दो, इन्हें भी देख लेंगे जैसे कौरवों को देखा"<br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-2939470743740900372014-05-07T10:34:00.000+05:302014-12-26T10:40:06.936+05:30लंका-दहन के बाद <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtbCkLkpG2SBb03p8G5-NEfHxZmutPWrLmd6r-YmegnaBuC5J-YOOiwCHnOq_xLY8Sbl5RrkHBeu-RGwHcGrtJd5eAfY1r91Gh2lf-yzN0o7cnAKtDpyTBXJ6ArVJmUm4fDfw8L7RiyrM/s1600/download.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtbCkLkpG2SBb03p8G5-NEfHxZmutPWrLmd6r-YmegnaBuC5J-YOOiwCHnOq_xLY8Sbl5RrkHBeu-RGwHcGrtJd5eAfY1r91Gh2lf-yzN0o7cnAKtDpyTBXJ6ArVJmUm4fDfw8L7RiyrM/s320/download.jpg" /></a></div>हनुमान जी लंका को राख में कन्वर्ट कर आये. इधर उन्हें देखकर सब बहुत खुश हुए तो उधर रावण जी चिंतित थे. उन्होंने अपने मंत्रियों, महामंत्रियों, राज्य-मंत्रियों, सलाहकारों, उप-सलाहकारों, मीडिया मैनेजर, स्पिन डॉक्टर्स, डर्टी-ट्रिक इंजीनियर्स, कंसल्टेंट्स वगैरह की एक मीटिंग बुलाई. वे जानना चाहते थे कि ऐसा कैसे हुआ कि एक वानर लंका को राख में कन्वर्ट कर वहाँ से निकल लिया? कि लंकेश की बेइज्जती खराब हो गई? कि वीरों से भरी लंका में वीरता का बैलेंस निल निकला? कि जिस लंकेश के घर कुबेर पानी भरते थे वह लंकेश लाचार दिक्खे? <br />
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जिन्हें-जिन्हें सर्कुलर गया वे मंत्री, सलाहकार, कंसल्टेंट्स, दरबारी वगैरह आये. जिन्हें डर था कि मीटिंग के बाद लंकेश उन्हें धुनक सकते थे, उन्होंने १०८ डिग्री बुखार का बहाना बना लिया. जो बहाना बनाने लायक नहीं थे उन्हें मन मारकर उपस्थित होना पड़ा. किसी के हाथ में फाइल तो किसी के हाथ में ब्रीफकेस. स्मार्ट सलाहकार एक्सेल शीट्स, ऑडिट रिपोर्ट, वर्किंग पेपर्स और पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन वगैरह से लैस होकर आये. एक कॉपीबुक सलाहकार इसी तरह की पुरानी घटनाओं को गूगल करने लगा. उनकी इस गूगलाहट के पीछे यह सोच थी कि अगर पहले भी किसी ने लंका को राख किया होगा तो उसके बाद जो मीटिंग हुई, उसमें जो कुछ हुआ था, अगर उसका पता चल जाये तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आज क्या हो सकता है. <br />
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ये कॉपीबुक सलाहकार जब गूगल सर्च कर रहा था, उसके असिस्टेंट ने, जो इनसे स्मार्ट था, इन्हें स्पेसिफिक सर्च की सलाह दे डाली. उसकी इस सलाह का जन्म उसी की इस सोच से हुआ था कि हो सकता है लंका को किसी ने पहले राख किया हो लेकिन हमें यहाँ यह जानने की जरूरत है कि; लंका को पहले किसी वानर ने राख किया था या नहीं? <br />
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दोनों अभागे यह जानकर दुखी हो गए कि लंका इससे पहले कभी नहीं जली. कि ऐसा पहली बार हुआ था. <br />
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कुछ अति स्मार्ट सलाहकारों ने लंकेश की चिंता का अनुमान लगा चिंतित होने की ऐक्टिंग शुरू कर दी. उनका अनुमान था कि चिंतित दिखेंगे तो रावण जी यह सोचते हुए खुश होंगे कि इन सलाहकारों ने बड़ी मेहनत की है. कि चिंता की इस घड़ी में वे रावण जी के साथ है. कुछ दरबारियों का ध्यान दूसरी तरफ भी था. ये दरबारी आते-जाते चारणों को देख अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहे थे कि मीटिंग के लिए नाश्ते का मेन्यू क्या था? कुछ लोभी सलाहकार तो अपना लोभ संभाल नहीं पा रहे थे. उनके मन में बार-बार आ रहा था कि इन चारणों को पकड़कर उनसे डिटेल्ड मेन्यू पूछ ही लें लेकिन फिर यह सोचकर रुक जाते कि कहीं लंकेश ने अचानक एंट्री मारी और उन्हें ऐसा करते देख लिया तो बड़ी दुर्गति करेंगे. <br />
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कुछ अपनी वोकैब्युलरी मांज रहे थे. यह सोचते हुए कि मीटिंग में ज्यादा से ज्यादा मीठे और प्यारे शब्दों का प्रयोग किया जाय ताकि लंका दहन से दुखी लंकेश के कलेजे को ठंडक पहुंचे. जिन सलाहकारों को विश्वास था कि उन्हें मात्र कोरम पूरा करने के लिए ऐसी मीटिंग्स में बुलाया जाता था, और असल में मीटिंग में उनका कोई योगदान नहीं रहता था, उन्हें किसी बात की चिंता नहीं थी. उन्हें पता था कि लंकेश न तो उनसे कोई प्रश्न पूछेंगे और न ही उन्हें बोलने का मौका मिलेगा. कुल मिलाकर ऐसे दरबारियों की उपस्थिति इसलिए जरूरी रहती थी ताकि रावण जी का प्रेस मैनेजर मीडिया को छापने के लिए जब विज्ञप्ति दे तो उसमें लिखा जा सके कि; "लंकेश्वर ने मंत्रियों, दरबारियों, और सलाहकारों के साथ समग्र चिंतन किया"<br />
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कुछ ढंग के सलाहकारों के मन में यह जरूर आया कि लंकेश को अपने अनुज विभीषण को भी इनवाइट करना चाहिए लेकिन वे यह सोचकर रुक गए कि विभीषण आएंगे तो सच ही बोलेंगे, सच के सिवा कुछ नहीं बोलेंगे. ऐसे में मैनेजमेंट सिद्धांत के अनुसार विभीषण को ऐसी मीटिंग में बुलाना तर्कसंगत नहीं था. सच बोलने वाला व्यक्ति हर लंका का शत्रु होता है. कुछ मानते थे कि कुंभकरण के आने से घटना पर पूरा प्रकाश पड़ता लेकिन वे यह सोचकर चुप रहे कि कुंभकरण जी को नींद से उठाने में बड़ी मेहनत करनी पड़ती। वैसे भी जिन दरबारियों के लिए मेहनत का सबसे बड़ा काम लंकेश की जय-जयकार करना था, उनके लिए कुंभकरण जी को नींद से जगाना बहुत मेहनत का काम था. <br />
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इधर ये लोग मीटिंग के लिए तैयार थे तो उधर लंका की री-कंस्ट्रक्शन टीम और उसके कैप्टेन मय दानव एक जगह बैठकर कयास लगाए जा रहे थे कि पता नहीं मीटिंग में क्या फैसला हो? कहीं ऐसा न हो कि लंकेश रिजोल्यूशन पास करवा दें कि आज रात से ही लंका का री-कंस्ट्रक्शन शुरू कर दिया जाय. आज रात से ही शुरू करेंगे तो फिर पता नहीं घर जाने का समय कब मिले. <br />
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कुछ इंतज़ार के बाद पास ही खड़ा चारण जोर से चिल्लाया; "सावधान! राजाओं के राजा, पुष्पक विमान के मालिक, तीनो लोकों को जीतने वाले, शिव-भक्त, कुबेरजीत, वेदों के ज्ञाता, इंद्र-विजयी, राक्षसों के सिरमौर, इंद्रजीत के पिता, दशासन लंकेश पधार रहे हैं"<br />
<br />
वे पधारे.<br />
<br />
दरबारी खड़े हो गए. एक सीनियर कंसल्टेंट का जूनियर असिस्टेंट, जो दो महीने पहले ही मैनेजमेंट कॉलेज से निकला था, कैंडी-क्रश खेलने में बिजी था. चारण की आवाज़ सुनते ही यह सीनियर कंसल्टेंट झट से खड़ा हो गया तब उसे महसूस हुआ कि उसका जूनियर अभी तक बैठा कैंडी-क्रश खेले जा रहा है. इस कंसल्टेंट को अपना कॉन्ट्रैक्ट जाता हुआ दिखाई दिया. उसने अपने जूनियर असिस्टेंट को उठाने के लिए इतनी जोर से कुहनी मारी कि अगर किसी क्रिकेट खिलाड़ी को उतनी चोट लगती तो वह रिटायर्ड-हर्ट होकर अगले विदेशी दौरे से बाहर हो जाता. असिस्टेंट बेचारा सी-सी करते हुए हड़बड़ा के खड़ा हो गया. <br />
<br />
लंकेश बैठे. दरबारी खड़े रहे. उन्होंने दरबारियों को बैठने का इशारा किया। दरबारी बैठ गए. मीटिंग शुरू हुई.<br />
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रावण जी; "तुम सबको तो पता होगा ही कि मैंने तुमलोगों को यहाँ क्यों बुलाया है?"<br />
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सारे एक स्वर में चिल्लाये; "यस लंकेश"<br />
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वे आगे बोले; "लंकेश की साथ ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई बाहर से आकर उसकी लंका जला गया. और वह भी एक वानर. कोई मुझे बतायेगा कि ऐसा क्यों हुआ? क्या हम अब पहले जैसे शक्तिशाली नहीं रहे?"<br />
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एक मंत्री बोला; "हे लंकेश, एक वानर आपका क्या मुकाबला करेगा? आपसे शक्तिशाली तीनो लोकों में कोई है क्या ? यह तो अकस्मात हो गया नहीं तो ....... <br />
<br />
लंकेश ने इस मंत्री को घूरकर देखा। झल्लाते हुए बोले; "तुम! तुम तो बात ही मत करो. जब मैंने तुमसे कहा कि उस वानर को अशोक वाटिका में घुसने मत देना तो तुमने ही कहा था न कि वानर ही तो है, चार फल खायेगा और चला जाएगा. कहा था कि नहीं?"<br />
<br />
मंत्री ने चुप रहना ही उचित समझा. मुंह लटकाकर खड़ा रहा.<br />
<br />
महामंत्री को लगा कि स्थिति को सम्भालना चाहिए. उन्होंने बोलना शुरू किया; "हे लंकेश, वानर ही तो था. मैं एक्सेप्ट करता हूँ कि हमसे कुछ भूल अवश्य हुई लेकिन सोने की लंका जलकर ख़ाक हो गई, इसका मतलब यह कदापि नहीं कि एक वानर लंकेश को टक्कर दे सके."<br />
<br />
रावण जी ने महामंत्री को देखते हुए गुस्से से कहा; "और आप कौन से कम हैं? मैंने कहा था न कि इस वानर की हत्या कर देनी चाहिए तो आपने कहा एक दूत की हत्या उचित नहीं। यह धर्मानुसार गलत होगा. क्या गलत होता? अरे मैं इतना बड़ा पंडित, विद्वान, वेदों का जानकार … अगर अधर्म करके धर्मानुसार न बच सकूँगा तो फिर मेरे धर्म-ज्ञान का क्या महत्व? और अगर पाप चढ़ भी जाता तो दो-ढाई साल तपस्या करके भगवान शिव से किलो भर क्षमा ले लेता"<br />
<br />
महामंत्री बोले; "हे लंकेश, जो हो गया सो हो गया. इसबार हमलोग तैयार नहीं थे नहीं तो उस वानर की मजाल कि वह ऐसा कर पाता? आपने इंद्र को जीता है. आपने कुबेर को बंदी बनाया है. आपसे तीनों लोकों के प्राणी डरते हैं. याद कीजिये कि आपने किस तरह.... और फिर हे लंकेश, सोने की लंका ही तो राख हुई है. अरे जिसके पास मय दानव हों उन्हें सोने की लंका के राख होने का दुःख नहीं होना चाहिए. एक आर्डर देंगे और सोने की लंका की जगह हीरे की लंका खड़ी हो जायेगी. मैं तो कहता हूँ कि लंका ठीक उसी तरह और मजबूत होकर उभरेगी जैसे राजनीतिक दल के प्रवक्ता के अनुसार चुनावों में बुरी तरह हार जानेवाली पार्टी पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरती है. आप निश्चिन्त रहे. आपका मुकाबला कोई नहीं कर सकता. आप खुद ही सोचिये न कि आपसे जो लड़ना चाहते हैं उन्हें वानरों के सहारे की जरूरत है. वे क्या लड़ेंगे आपसे?"<br />
<br />
महामंत्री की बात रावण जी ने ध्यान से सुनी. फिर बातों में थोड़ी शंका की मिलावट करते हुए बोले; "कहीं हम कोई भूल तो नहीं कर रहे महामंत्री? पहले यह वानर लंका में घुसा तो हमने सोचा वानर ही तो है, चला जाएगा. फिर अशोक वाटिका में घुसा तो हमने कहा फल खाकर चला जाएगा. फिर उसने अक्षयकुमार का वध किया तो हमने सोचा कि इससे ज्यादा क्या करेगा? फिर उसने लंका को आग लगा दी तो.... गुप्तचरों ने बताया कि वह सीता से कहकर गया है कि उसकी सेना में उससे भी बड़े-बड़े योद्धा हैं. उससे से भी बड़े वानर हैं."<br />
<br />
एक मंत्री बोला; "आप क्यों टेंशन ले रहे हैं महाराज? वह तो सीता को ढाढ़स बंधाने के लिए ऐसा कहा उसने. तीनों लोकों में जितने भी वीर हैं, सब आप ही के पास हैं. आने दीजिये उसे और उसकी वानर सेना को, देख लेंगे. कुछ नहीं कर पायेगा वह."<br />
<br />
एक-एक करके सारे मंत्रियों और सलाहकारों ने लंकेश को यही बताया कि राम और उनकी वानर सेना उसका मुकाबला सपने में भी नहीं कर सकती. सबने रावण जी को भूतकाल में किये गए उनके पराक्रमों की याद दिलाई और उन्हें निश्चिन्त कर दिया. नाश्ता वगैरह के बाद मीटिंग ख़त्म हो गई और सब चले गए.<br />
<br />
विभीषण के एक गुप्तचर ने जब इस मीटिंग की पूरी जानकारी उन्हें दी तो वे मन ही मन बुदबुदाये; "मीटिंग का मुद्दा होना चाहिए था सीता-हरण और बनाया गया लंका-दहन. लंकेश अंधे हो गए हैं."<br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-25784708589622241822014-03-24T11:17:00.002+05:302014-03-24T11:17:44.086+05:30२०१७ में इस वर्ष के भारतीय आम चुनाव सम्बंधित संभावित विकिलीक्स चुनावों के शुभ अवसर पर एकबार फिर से विकिलीक्स चर्चा में है. विकिलीक्स ने वक्तव्य देकर बताया कि जूलियन असांज ने हल्ला मचाने वाली कोई बात नहीं कही. इस वक्तव्य को लेकर फिर हल्ला मचा. मैं तो कहता हूँ कि चुनाव का मौसम होता ही है हल्ला मचाने के लिए. आखिर इस मौसम में हल्ला नहीं मचेगा तो कब मचेगा? पिछले कुछ वर्षों में विकिलीक्स की वजह से बहुत हल्ला-गुल्ला मचा. जिस तरह के केबिल्स लीक हुए उन्हें पढ़कर यही लगा कि दुनियाँ भर में अमेरिकी डिप्लोमैट की नियुक्त ही इसलिए हुई है ताकि वे केबिल्स लिखकर अमेरिका की विदेशनीति को मजबूत करते रहे और विकिलीक्स उन्हें पूरी दुनियाँ को परोस सके. <br />
<br />
चूँकि चार-पाँच साल पहले भेजे गए केबिल्स अब लीक हो रहे हैं, ऐसे में साल २०१७ में विकिलीक्स जो केबल्स लीक करेगा उनमें से महत्वपूर्ण केबल्स इस वर्ष के भारतीय आम चुनाव से सम्बंधित होंगे। आज सोच रहा था कि उन केबल्स में कैसे-कैसे खुलासे हो सकते हैं? शायद कुछ ऐसे;<br />
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<b>केबल संख्या ए-१४५७००९ चुनावों को लेकर बीजेपी की नीति;</b><br />
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आज शाम इंडिया हैबिटैट सेंटर में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने शाम की ड्रिंक पर हमारे एक अधिकारी पीटर स्कॉट को बताया कि पार्टी मानती है कि अब एक इतिहासकार की खोज कर ही ली जाय जो पार्टी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की हर रैली से पहले उन्हें इतिहास का पाठ पढ़ा सके. इस नेता का मानना है कि बुद्धिजीवियों को यह चिंता सताने लगी है कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार अगर इतिहास को उलट-पलट कर सकता है तो सरकार बना प्रधानमंत्री बनकर वो इतिहास का न जाने क्या-क्या कर देगा। भारतीय बुद्धिजीवियों का इसबात में प्रबल विश्वास है कि पीएम कैंडिडेट को वर्त्तमान की जानकारी भले ही न हो, इतिहास कि जानकारी होनी आवश्यक है.<br />
<br />
<b>केबल संख्या ए-१४५९२११ चुनावों को लेकर आम आदमी पार्टी की रणनीति;</b><br />
<br />
आज सुबह आम आदमी पार्टी के नेता भगवानदास ने हमारे एक डिप्लोमैट को बताया कि पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल किस साइज की शर्ट पहनकर असली आम आदमी लगेंगे, इसबात को लेकर पार्टी में घमासान मचा है. केजरीवाल को चालीस यानि मीडियम साइज की शर्ट फिट होती है लेकिन वे चाहते हैं कि एक्स एक्स एल साइज की शर्ट पहनने से ही वे परफेक्ट आम आदमी लगेंगे। पार्टी कार्यकारिणी में इसको लेकर मतभेद उभरा क्योंकि कुछ नेताओं का मानना था कि वे लार्ज साइज का शर्ट पहनकर भी आम आदमी लगेंगे। काफी मान-मनौव्वल के बावजूद वे एक्स एल साइज से नीचे आने के लिए तैयार नहीं थे. ऐसे में यह फैसला हुआ कि पार्टी के नेताओं के बीच एक एस एम एस सर्वे के आधार पर फैसला लिया जाएगा कि अरविन्द केजरीवाल कौन सी साइज की शर्ट पहनेंगे? <br />
<br />
<b>केबल संख्या ए-१४६९०२२ चुनावों को लेकर कांग्रेस पार्टी की रणनीति;</b><br />
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कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने राहुल गांधी के खिलाफ कविवर कुमार विश्वास के चुनाव लड़ने को लेकर एक गम्भीर और समग्र चिंतन किया। पार्टी के एक नेता ने कल शाम हमारी कॉकटेल पार्टी में हमारे दूतावास के दोनों अधिकारियों, ह्वाइट एंड मैक्के को बताया कि वर्किंग कमिटी यह प्रस्ताव लाना चाहती थी कि कविवर कुमार विश्वास का मुकाबला करने के लिए जरूरी हो गया है कि राहुल गांधी कविता लिखना सीख लें. कुछ सदस्यों ने इसबात पर आशंका जताई कि इतने कम समय में राहुल के लिए कवि बनना ईजी नहीं है और अगर वे कविता करना सीख भी जाते हैं तो उन कविताओं को याद करके जनता में बीच उन्हें सुनाना उनके लिए लगभग असंभव है. बाद में जनार्दन द्विवेदी ने वर्किंग कमिटी को बताया कि राहुल को कवि बनाने और उन्हें कविता रटवाने का जिम्मा वे खुद लेंगे। जनार्दन द्विवेदी वही हैं जिन्होंने सोनिया गांधी को हिंदी सिखाई है.<br />
<br />
<b>केबल संख्या ए-१४६९०८५ चुनावों को लेकर कांग्रेस नेताओं की रणनीति;</b><br />
<br />
कांग्रेस के एक नेता ने कल शाम हमारे एक अफसर को बताया कि इस चुनाव में पार्टी की हालत को देखते हुए कुछ नेता राहुल गांधी से नाराज हैं. दरअसल इन नेताओं की नाराजगी का कारण यह है कि राहुल गांधी ने केवल देश की जनता के लिए कानून बनाये या बनाने की कोशिश की और उनका ही ध्यान रखा. ये नेता चाहते थे कि राहुल इनके लिए भी राइट टू डेफ़ेक्शन नामक कानून ले आते जो इन नेताओं को चुनाव के ऐन मौके पर दूसरी पार्टी में जाने के लिए और उकसाता। भारतीय चुनावों की यह खासबात रही है कि चुनावों के आते ही नेता यह मानकर चलता है कि उसे अपनी पार्टी से असंतुष्ट होने का अधिकार है और वह असंतोष का दिखावा करके जिस पार्टी में घुसता है उस पार्टी को उसके असंतोष को उचित मान-सम्मान देने का अधिकार है. इन्हें अपने अधिकारों का पता वर्षों से रहा है, बस वे इसे एक कानूनी कुरता पहनाना चाहते थे.<br />
<br />
<b>केबल संख्या ए-१४६९०९८ चुनावों को लेकर दलों की नीति;</b><br />
<br />
एक चुनावी पंडित ने हमारे एक अधिकारी को बताया कि कुछ पार्टियां इसबात पर विचार कर रही है कि वे डिफेक्शन को लेकर एक आम सहमति पर पहुंचें जिससे भारतीय लोकतंत्र को मजबूती प्रदान की जा सके. इसी कड़ी में कुछ नेताओं की तरफ से यह प्रस्ताव आया कि चुनावों के अवसर पर डिफेक्शन को और सरल बनाने के लिए पार्टियां अपने-अपने बैज बनावाएं। जैसे अगर कोई कांग्रेसी, सपाई, जेडीयुवी या राजदी नेता अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में जाए तो पार्टी उसे तत्काल एक बैज प्रदान करे जिसपर "राष्ट्रभक्त" लिखा हो और अगर कोई नेता बीजेपी छोड़कर इन पार्टियों में जाए तो इन पार्टियों की तरफ से उसको एक बैज मिले जिसपर "सेक्युलर" लिखा हो. पार्टियों का मानना है कि अगर ऐसा हो गया तो फिर भारतीय लोकतंत्र की मजबूती पर एक मजबूत मुहर लग जायेगी।<br />
<br />
<b>केबल संख्या ए-१४७११६७ चुनाव फंड को लेकर आम आदमी पार्टी का फैसला;</b><br />
<br />
हमारे अफसर को आम आदमी पार्टी के एक नेता ने बताया कि चूंकि पिछले कुछ दिनों में पार्टी को जनता की तरफ से पैसा नहीं मिल रहा है इसलिए पार्टी नेता योगेन्द्र यादव ने सुझाव दिया कि क्यों न सर्दियों में अरविन्द केजरीवाल द्वारा इस्तेमाल किये मफ़लर का ऑक्शन करके पार्टी के लिए कुछ फंड इकठ्ठा किया जाय. इसी नेता ने बताया कि अरविन्द केजरीवाल को मफ़लर लपेटने का सुझाव योगेन्द्र यादव ने ही दिया था और इस प्रयोग का आईडिया उन्हें उनके खुद के ईमेज बनाने में इस्तेमाल किये गए गमछे से मिला था. फोर्ड फाउंडेशन ने पार्टी नेताओं को अस्योर किया है कि फाउंडेशन जल्द ही क्रिस्टीज या सॉथबीज से बातकर ऑक्शन कराने की तारीख तय करेगा।<br />
<br />
<b>केबल संख्या ए-१४७११८७ चुनाव को लेकर बीजेपी की रणनीति;</b><br />
<br />
बीजेपी के एक नेता ने हाल ही में बताया कि चुनावों के लिए नरेंद्र मोदी तो पार्टी का केवल एक मुखौटा हैं. इस बात का किसी पुराने केबल से मिलना महज संयोग है. विद्वान बताते हैं कि इतिहास खुद को दोहराता है. <br />
<br />
<b>केबल संख्या ए-१४७११९२ चुनाव को लेकर कुमार विश्वास की रणनीति; </b><br />
<br />
कुमार विश्वास के बेहद करीबी एक नेता ने बताया कि कविवर ऐसा मानते हैं कि वे राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़कर अगर जीत गए तो संसद जायेंगे ही लेकिन अगर हार भी गए तो भी चिंता की बात नहीं। वे मानते हैं कि वे हार भी गए तो राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने का हवाला देकर वे भविष्य में होनेवाले कवि सम्मेलनों के लिए अपनी फीस करीब सवा सौ प्रतिशत बढ़ा सकेंगे।<br />
<br />
<b>केबल संख्या ए-१४७२३३६ अडवाणी की चिंता;<br />
</b><br />
बीजेपी के एक नेता ने हमें बताया है कि अडवाणी पिछले कुछ हफ़्तों से चिंतित हैं. चिंता का कारण उन्हें मिली यह जानकारी है जिसमें पार्टी के नेता एक-दूसरे से मिलते तो है तो कहते हैं कि अडवाणी जी अब पहले वाले अडवाणी नहीं रहे. नेताओं को इसबात पर आश्चर्य है कि अडवाणी पिछले कई महीनों से नाराज नहीं हुए. इसबात को लेकर अडवाणी जी ने फैसला लिया है कि अगर उन्हें गुजरात में गांधीनगर से टिकट मिला तो वे भोपाल से चुनाव लड़ने की बात करेंगे और अगर भोपाल से टिकट मिला तो गांधीनगर से लड़ने की बात करेंगे ताकि नाराज हो सकें और पार्टी नेताओं को विश्वास हो जाए कि आडवाणी अब भी वही पुराने आडवाणी हैं और साथ ही ऐक्टिव भी हैं. <br />
<br />
<b>केबल संख्या ए-१४७२७७४ वामपंथी बुद्धिजीवी का विरोध;</b><br />
<br />
हमारे अफसर से मुलाक़ात के दौरान एक वामपंथी बुद्धिजीवी ने बताया कि वे और उनके जैसे कई बुद्धिजीवी नया आंदोलन खड़ा करेंगे जिसके तहत अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ नए सिरे से लड़ाई छेड़ी जायेगी। इन बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर अँगरेज़ अपने साथ भारत में चाय न ले आते तो नरेंद्र मोदी इतने लोकप्रिय नहीं होते जितने वे आज हैं. जैसा कि हमने अपने केबल संख्या ए-१४४७८८१ में बताया था कि मोदी पूरे देश में चाय पर चर्चा कार्यक्रम चलाकर अपना चुनाव प्रचार कर रहे हैं.<br />
<br />
<b>केबल संख्या ए-१४७२८०१ चुनाव प्रचार;</b><br />
<br />
केरल में एक कांग्रेसी उम्मीदवार के चुनावी मैनेजरों ने हमारे अपने देश याने यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका की सबसे बढ़िया हाइवेज में से एक कंसास हाइवे का फ़ोटो कांग्रेस के पोस्टर में लगाकर बताया कि कांग्रेस की नेता सोनिया जी के आशीर्वाद से ही यूपीए सरकार वह सड़क बनवा सकी. जहाँ कांग्रेस पार्टी ने हमारे अपने हाइवे को अपना बताया वहीँ यहाँ के सबसे बड़े स्टेट यूपी में सरकार चलानेवाली समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रचारकों ने विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट एल्पाइन रोड का फ़ोटो दिखाकर यूपी की जनता को बताया कि वह रोड वहाँ के यंग चीफ मिनिस्टर अखिलेश यादव ने खुद बनवाया है. बीजेपी वालों ने न्यूजीलैंड के एक हाइवे का फ़ोटो लेकर उसे गुजरात का बता डाला। यह सब देखकर हमारे दूतावास के अधिकारी यही सोच रहे हैं कि गूगल की वजह से अब हाइवेज को कहीं से भी टेलीपोर्ट करके भारत लाया जा रहा है.<br />
<br />
भारतीय चुनावों से रिलेटेड हमारे केबल्स हम अगले हफ्ते फिर भेजेंगे।Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-80709067572594124652014-01-30T15:47:00.000+05:302014-01-30T15:47:19.482+05:30युवराज दुर्योधन का साक्षात्कार आज युवराज दुर्योधन की डायरी के बिखरे पन्नों के बीच उनका एक इंटरव्यू मिला जो द्वापर युगीय किसी पत्रकार ने लिया था जिसका नाम चिंतामणि गोस्वामी है. गोस्वामी जी का कोई विकीपेज तो नहीं जिससे उनके बारे में जानकारी मिले लेकिन इंटरव्यू में उन्होंने जैसे सवाल किये, उन्हें पढ़कर कहा जा सकता है कि वे बड़े धाकड़ पत्रकार थे. मुझे पूरा विश्वास है कि उनके अंदर पत्रकारिता इस तरह से भरी थी कि उनके वंशज आज के भारतवर्ष में कहीं न कहीं पत्रकारिता झाड़ रहे होंगे।<br />
<br />
खैर, आप युवराज का इंटरव्यू बांचिये जो मैं यहाँ नीचे टाइप कर रहा हूँ.<br />
<br />
<br />
.......................................................................................<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: स्वागत है युवराज आपका. आपने साक्षात्कार के लिए समय दिया, उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ.<br />
<br />
युवराज: धन्यवाद गोस्वामी जी.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: युवराज, साक्षात्कार के आरम्भ में ही मैं आपको सूचित कर दूँ कि मैं आपसे जो प्रश्न पूछूंगा वे विशिष्ट प्रश्न होंगे. विशिष्ट इसलिए क्योंकि ऐसे प्रश्न आपसे से निकटता रखनेवाले किसी पत्रकार ने पहले नहीं किये होंगे.<br />
<br />
युवराज: जैसी आपकी इच्छा पत्रकार श्री. मुझे कोई आपत्ति नहीं है.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: मेरा पहला प्रश्न यह है कि आपने पिछले चौदह वर्षों में व्यक्तिगत साक्षात्कार नहीं दिया. क्या कारण है?<br />
<br />
युवराज: ऐसा नहीं है कि मैंने साक्षात्कार नहीं दिया.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: युवराज मैं व्यक्तिगत साक्षात्कार के बारे में कह रहा था. आपने इससे पहले चौदह वर्ष पूर्व संवाददाताओं के साथ एक प्रश्नोत्तर सत्र किया जब समाचार माध्यमों ने आपके ऊपर आरोप लगाया था कि आपके संबंध पुरोचन से थे.<br />
<br />
युवराज: मैं हस्तिनापुर में परिवर्तन देखना चाहता हूँ.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: आपके पुरोचन से संबंध थे या नहीं?<br />
<br />
युवराज: प्रश्न यह नहीं कि पुरोचन के साथ मेरे संबंध थे या नहीं? प्रश्न यह है कि युवराज सुयोधन कौन हैं?<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: कौन हैं युवराज सुयोधन?<br />
<br />
युवराज: चलिए मैं आपसे प्रश्न पूछता हूँ. आप बताएं कि कौन हैं चिंतामणि गोस्वामी?<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: आप मुझसे प्रश्न पूछ रहे हैं?<br />
<br />
युवराज: हाँ. आप बताएं न कि कौन हैं चिंतामणि गोस्वामी? देखिये, आप जब छोटे होंगे तब आपके मन में तो आया ही होगा कि बड़े होकर आप क्या बनेंगे?<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: ये मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ युवराज. <br />
<br />
युवराज: चलिए मैं आपको बताता हूँ कि चिंतामणि गोस्वामी कौन हैं? चिंतामणि गोस्वामी बाल्यकाल में कुछ बनना चाहते होंगे. अब वे युवराज तो बन नहीं सकते ऐसे में वे पत्रकार बन गए. अब प्रश्न यह है कि वे युवराज क्यों नहीं बन सकते?<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: अच्छा चलिए मैं दूसरा प्रश्न पूछता हूँ. आपने पांडवों को लाक्षागृह में आग लगाकर मारने का प्रयत्न किया?<br />
<br />
युवराज: पांडव हमारे प्रिय है.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु आपने उन्हें मारने का प्रयत्न किया था या नहीं?<br />
<br />
युवराज: मैं बाल्यकाल से ही पांडवों से प्रेम करता हूँ. इस पृथ्वी पर पांडव मेरे सबसे प्रिय रहे हैं.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: लेकिन आपने फिर भी उनकी हत्या करने का प्रयास किया?<br />
<br />
युवराज: आग मैंने नहीं लगाई थी.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: चलिए मैं आपसे एक और प्रश्न पूछता हूँ. आपने गुरु द्रोण की पाठशाला में भीम को भी मारने का प्रयत्न किया था?<br />
<br />
युवराज: मेरे पिताश्री धृतराष्ट्र जन्म से अंधे हैं.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: यह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ. <br />
<br />
युवराज: चलिए मैं अपनी बात को ऐसे समझाता हूँ. पत्नी के कहने पर आप हाट में आलू लेने जाते हैं और आपको बीच में आभूषणों का व्यापारी मिल गया. क्या आप आलू भूलकर आभूषण पर मुद्रा व्यय करेंगे? नहीं करेंगे. क्यों? क्योंकि आपके पास उतनी मुद्रा है ही नहीं. <br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: मैं आपसे एक और प्रश्न करता हूँ. आपने दुशासन को आदेश क्यों दिया कि वे<a href="http://shiv-gyan.blogspot.in/2013/01/699.html"> द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र कर दें</a>?<br />
<br />
युवराज: मेरी माताश्री ने विवाहोपरांत अपनी आँखों पर पट्टी बांधने का संकल्प लिया था. <br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: यह मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं हुआ युवराज.<br />
<br />
युवराज: आप मेरी बात को ऐसे समझने का प्रयत्न करें. देखिये, नितिशास्त्र कहता है कि हर कार्य धर्मानुसार होना चाहिए. अब आप कोई कार्य धर्मानुसार तब तक नहीं कर सकते जबतक आपको धर्म की व्याख्या का ज्ञान नहीं है. प्रश्न यह नहीं कि द्रौपदी को निर्वस्त्र करने का प्रयत्न किया गया या नहीं, प्रश्न यह है कि धर्म क्या होता है? एक और प्रश्न यह भी है कि क्या चिंतामणि गोस्वामी धर्म का पालन कर रहे हैं? इसका उत्तर यह है कि वे नहीं कर रहे क्योंकि उन्होंने पत्रकारिता की शिक्षा ली है, धर्म की नहीं. अब प्रश्न यह उठता है कि जब उन्होंने धर्म की शिक्षा नहीं ली तो फिर धर्म की शिक्षा किसने ली? उत्तर यह है कि धर्म की शिक्षा युवराज सुयोधन और उनके भाइयों ने ली. अब प्रश्न यह है कि किससे ली? तो उसका उत्तर यह है कि गुरु द्रोण से ली. तो जब हर प्रश्न का प्रमाणिक उत्तर मैं आपको दे ही रहा हूँ तो फिर यह कहना कि मैं आपके प्रश्न का सही उत्तर नहीं दे रहा, तर्कसंगत नहीं जान पड़ता.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु युवराज, मेरा प्रश्न यह था कि आपने द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र करने की आज्ञा क्यों दी?<br />
<br />
युवराज: मैंने जब अपने बाल्यकाल से ही अपनी माताश्री को आँखों पर पट्टी बांधे देखा तभी से मेरे ह्रुदय में यह बात घर कर गई कि बड़ा होकर मुझे स्त्रियों के अधिकार के लिए कुछ करना है. मैंने तभी से अपना पूरा जीवन स्त्रियों के अधिकार की रक्षा में समर्पित कर दिया.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: अच्छा कुरु-नंदन, मेरा प्रश्न अब राज्य की समस्याओं के बारे में है. यह बताएं युवराज कि हस्तिनापुर में <a href="http://shiv-gyan.blogspot.in/2011/01/blog-post_07.html">मंहगाई की समस्या,</a> <a href="http://shiv-gyan.blogspot.in/2008/02/blog-post_28.html">भ्रष्टाचार की समस्या</a>, <a href="http://shiv-gyan.blogspot.in/2008/04/blog-post.html">किसानो की समस्या</a> और ऐसी ही न जाने कितनी और समस्याएं हैं, जिनसे हस्तिनापुरवासी संघर्ष कर रहे हैं. आपके पास शक्ति है कि आप इन समस्याओं का समाधान कर सके. आपने आजतक कभी इस समस्याओं का समाधान की दिशा में क्यों नहीं सोचा?<br />
<br />
युवराज: मैंने इन समस्याओं पर समग्र चिंतन किया है.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु किसी ने आपको इन समस्याओं पर बात करते नहीं देखा.<br />
<br />
युवराज: मैंने <a href="http://shiv-gyan.blogspot.in/search/label/%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%A1%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A5%80?updated-max=2008-03-15T09:10:00%2B05:30&max-results=20&start=36&by-date=false">अपनी डायरी</a> में इन समस्याओं और इनसे जुडी चिंताओं का वर्णन किया है.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: परन्तु प्रजा-जनों को आपकी डायरी से क्या लेना-देना?<br />
<br />
युवराज: आपने मेरे उत्तर को समझा नहीं. चलिए मैं आपको ऐसे समझता हूँ. कल्पना कीजिये कि मैं आखेट के लिए जंगल में गया. आप प्रश्न कर सकते हैं कि आपके प्रश्न का मेरे आखेट और हस्तिनापुर के जंगल से क्या लेना-देना? तो उसका उत्तर यह है कि आखेट ही हर प्रश्न का उत्तर है. और मैं जबतक जंगल में नहीं जाऊँगा तबतक आखेट नहीं कर पाऊंगा. प्रश्नों के जंगल में ही कहीं उत्तरों का भी एक जंगल समाया हुआ है. मैंने हमेशा से प्रश्न और उत्तरों के जंगल में विचरण करने को ही अपना धर्मं माना है. इस काल की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हम युवराजों के लिए आरक्षित जंगलों को प्रजा-जनों के लिए खोल दें. यदि जंगल खुले तो हर प्रश्न के साथ उसका उत्तर भी खुल जायेगा परन्तु समस्या यह है कि जब मैं जंगलों को खोलने की बात करता हूँ तो पांडव यह बात नहीं करते. <br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: युवराज मेरा अगला प्रश्न यह है कि आपके मामाश्री क्या आपको अधर्म करने के लिए उकसाते रहे हैं?<br />
<br />
युवराज: जब पाठशाला में गुरु द्रोण ने एकलव्य को धनुर्विद्या सिखाने से मना कर दिया था मुझे उसी क्षण लगा था कि ये एकलव्य एकदिन बहुत बड़ा धनुर्धर बनेगा।<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: युवराज यह मेरे प्रश्न का उत्तर कैसे हुआ?<br />
<br />
युवराज: यही कारण है कि मैं हस्तिनापुर में राजपाट के तौर-तरीके में आमूल-चूल परिवर्तन करना चाहता हूँ. धर्म क्या है? अधर्म क्या है? प्रश्न क्या और उत्तर क्या है? इन सब बिंदुओं पर विचार कर उनकी पुनः व्याख्या प्रजा-जनों को संतोष प्रदान करेगी।<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: युवराज, ये बताएं कि प्रजा-जनों के भले के बारे में आपके पास कोई योजना है?<br />
<br />
युवराज: हमारे पास प्रजा-जनों की भलाई की समग्र योजना है. हम निकट भविष्य में हस्तिनापुरवासियों को खेल-कूद का सम्पूर्ण अधिकार प्रदान करने वाले हैं.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: युवराज मेरा एक प्रश्न यह है कि क्या आप भीम से लड़ने के लिए उद्यत हैं? मैं यह प्रश्न इसलिए पूछ रहा हूँ कि प्रजा-जनों में ऐसे अनुमान लगाये जा रहे हैं कि आप भीम से भयाक्रांत हैं. इस बात को कहाँ तक सत्य माना जाय?<br />
<br />
युवराज: मैंने बाल्यावस्था से ही अपने पिताश्री को संजय के सहारे चलते हुए देखा है. मेरी माताश्री ने विवाहोपरांत ही आँखों पर पट्टी बांधने का निर्णय ले लिया था. मेरी एकमात्र बहन का विवाह जयद्रथ जैसे हलकट के साथ हो गया. मेरे मामाश्री न जाने कितने वर्षों से अपनी बहन के घर की रोटियां तोड़ रहे हैं. पितामह ने सदैव अर्जुन को ही अपना चहेता माना. मैं द्रौपदी स्वयंवर में द्रौपदी को वरण नहीं कर पाया. भीम बाल्यावस्था में हम भाइयों को पटककर मारता था. भीम को विष देकर मारने का प्रयत्न किया तो वह नागलोक में जाकर और बलशाली बन गया. मित्र कर्ण को द्रौपदी ने सूत-पुत्र कहा और मैं कुछ नहीं कर पाया. गुरु द्रोण को वचन देने के उपरांत भी मैं महाराज द्रुपद को बंदी बनाकर लाने में असफल रहा. पत्रकार श्री जिस युवराज सुयोधन के साथ इतनी दुर्घटनाएं हुई हों, उसके पास खोने को क्या रह जाता है? मुझे अब किसी से भय नहीं लगता.<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: तो क्या मैं यह निष्कर्ष निकालूँ कि आवश्यकता पड़ने पर आप भीम से युद्ध करने के लिए तत्पर हैं?<br />
<br />
युवराज: न केवल तत्पर हूँ अपितु यह भी कहता हूँ कि भीम का वध भी करूँगा।<br />
<br />
चिंतामणि गोस्वामी: हे कुरु-नंदन आपने यह साक्षात्कार देकर मुझे अनुगृहीत किया. धन्यवाद.<br />
<br />
युवराज: धन्यवाद.<br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-69245337670774560572014-01-13T17:50:00.001+05:302014-01-14T12:53:59.524+05:30हस्तिनापुरबहुत दिनों बाद करीब सौ ग्राम तुकबंदी/पैरोडी इकठ्ठा हुई है. अभी तो इतना ही बांचिये। आगे इकट्ठी होगी तो प्रस्तुत करूँगा:-)<br />
<br />
<br />
<br />
जय हो जग में जमे जहाँ, औ भ्रष्टाचार अचल हो,<br />
जहाँ रात-दिन नागरिकों संग लूट-पाट हो, छल हो, <br />
जहाँ राष्ट्रहित चिंतक, साधक अपराधी कहलायें,<br />
शासक जहाँ भ्रष्ट हो फिर भी नीतिवचन दोहराए <br />
<br />
जहाँ प्रताड़ित हो खुद को धिक्कार रहा जन-जन हो,<br />
जहाँ शुल्क और कर से कुचला शासित का तन मन हो,<br />
जहाँ नीति हो शासन करना जन-जन को वंचित कर,<br />
जहाँ राज करता हो शासक बेशर्मी संचित कर,<br />
<br />
जहाँ प्रिंस सम्मान ढूंढता नाम-गोत्र बतलाकर,<br />
खोज रहा पहचान-मान जो दलितों के घर खाकर,<br />
स्वामि-भक्त आमात्य जहाँ चुप्पी साधे जीता हो,<br />
जहाँ नागरिक रोज-रोज अपमान-घूँट पीता हो,<br />
<br />
जहाँ ज्ञानसागर गिरवी हो राजमहल में सोता,<br />
कपट खोट से कुंठित होकर निपुण व्यक्ति भी रोता,<br />
जहाँ मिलें अधिकार उन्हें जो हैं कुपात्र और ओछे,<br />
जहाँ सब जगह चमचे मिलते धारण किये अगौंछे,<br />
<br />
जहाँ खुशामद जो करता हो, वही श्रेष्ठ ज्ञानी हो,<br />
जहाँ लहू बहता हो जैसे नदियों का पानी हो,<br />
जहाँ दिखाई न देती हो निर्भयता की आग,<br />
जहाँ सुरक्षित नहीं किसी दिश नागरिकों की लाज,<br />
<br />
जहाँ समूचा राष्ट्र पड़ा हो अलग दूर कोने में <br />
जहाँ राष्ट्र का आम नागरिक लगा रहे रोने में,<br />
जहाँ नागरिक वंचित हो आधारभूत साधन से,<br />
और जहाँ हो कार्य सिद्ध बस संबंधों से, धन से,<br />
<br />
युग की अवहेलना जहाँ हो शासक दल के कर से,<br />
जहाँ कभी आमात्य न निकलें अपने-अपने घर से,<br />
जहाँ दास बन जीवनयापन सर्जक भी करता हो,<br />
जहाँ बुद्धि का स्वामी शासक का पानी भरता हो,<br />
<br />
जहाँ करारोपण करने में सत्ता रहती व्यस्त <br />
जहाँ रहे मृतप्राय राष्ट्र और रहे नागरिक पस्त,<br />
जहाँ नशा सत्ता का करवाता रहता अन्याय,<br />
जहाँ अनैतिक शासक करता रहता अर्जित आय,<br />
<br />
जहाँ शासकों के मित्रों का बढ़ा चले व्यापार,<br />
जहाँ दुखी होकर सुपात्र बस कहता हो धिक्कार,<br />
वंशवाद की राजनीति हो जहाँ, राष्ट्र मरता हो,<br />
जहाँ प्रजा का नायक भी शासक दल से डरता हो,<br />
<br />
जहाँ भीष्म चुप्पी साधे इस युग में भी रहते हों,<br />
जहाँ विदुर बस दुर्योधन की हाँ में हाँ भरते हों,<br />
जहाँ द्रोण और कृपाचार्य फिर हों कौरव के साथ,<br />
जहाँ कर्ण ने कलियुग में भी बाँध लिए हों हाथ,<br />
<br />
जहाँ सुरक्षित नहीं दीखती कहीं राष्ट्र सीमायें,<br />
जहाँ पड़ोसी धमकी भी दे अंदर भी घुस आयें,<br />
तुष्टीकरण जहाँ हो आतंकी का, अपराधी का,<br />
जहाँ राज साधन देता हो राष्ट्र की बरबादी का,<br />
<br />
जहाँ रहे शासक सह मंत्री निज घमंड में चूर,<br />
जहाँ महल होते जाते है प्रजा जनों से दूर,<br />
जहाँ फूलते कुसुम मात्र अमात्यों के उपवन में,<br />
जहाँ उमड़ता क्रोध ग्लानि बस नागरिकों के मन में,<br />
<br />
वहाँ नहीं रख सकता शासक प्रजा-जनों को बांधे,<br />
वहाँ नीयति अपने रस्ते चल अपना आशय साधे,<br />
बुझनी ही हैं वहाँ मनों में धधक रही जो ज्वाला,<br />
वहाँ प्रजा देगी शासक को एक दिन देश निकाला. <br />
<br />
<br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-53430810242156815512014-01-03T15:40:00.001+05:302014-01-03T16:02:29.021+05:30आम आदमी, खाँस आदमी <b>तोला भर तुकबंदी <br />
</b><br />
<br />
<br />
आम आदमी, खाँस आदमी <br />
मार रहा है बास आदमी <br />
नई-नई टोपी पहनाकर <br />
टाँक रहा इतिहास आदमी <br />
<br />
बंगला-मोटर नहीं चाहिए <br />
छोटा सा घर कहीं चाहिए <br />
बड़े बड़े वादे करके भी <br />
घूम रहा बिंदास आदमी <br />
<br />
वादे-प्यादे हैं प्रचार में <br />
पर शहज़ादे हैं विचार में <br />
क्लेम करे मिर्चा अचार का<br />
खाये खाली सॉस आदमी<br />
<br />
बिजली सस्ती पानी सस्ता <br />
काँधे धारे मोटा बस्ता <br />
भ्रष्टाचार मिटाने वाला <br />
उसी का अंतिम आस आदमी<br />
<br />
कहता साथ चलेंगे सबके <br />
जिससे काज फलेंगे सबके <br />
लेकिन आखिर भूले सबको <br />
और करे उपहास आदमी <br />
<br />
लोकतंत्र का ढोंग रचाकर <br />
अपनी प्रतिमा खूब सजाकर <br />
फिर लोगों की आशाओं का <br />
करता सत्यानाश आदमी <br />
<br />
<br />
<br />
Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-26975380678799218932013-12-24T16:45:00.003+05:302013-12-24T17:00:46.265+05:30दुर्योधन की डायरी - पेज ५८६ <b>द्रौपदी स्वयंवर के पश्चात युवराज लिखते हैं;</b> <br />
<br />
<br />
<br />
फिर से पराजय. पराजय पर पराजय. लगता है जैसे मेरे भाग्य में पराजय के अलावा और कुछ लिखा ही नहीं. उधर अर्जुन तीर चलाकर द्रौपदी को वर ले गया और इधर मैं महाराज द्रुपद का धनुष तक न उठा सका. संतोष इसबात का है कि मैं अकेला योद्धा नहीं जो धनुष नहीं उठा सका. महाराज विराट, शिशुपाल, जरासंध, महाराज शल्य, भगदत्त कौन उठा सका द्रुपद के धनुष को? न ही मेरे भाई उठा सके. दुशासन, युयुत्स, दुर्मुख, विकर्ण, सब के सब धराशायी हुए लेकिन मीडिया और विशेषज्ञ हैं कि मेरे ही पीछे पड़े हुए हैं. <br />
<br />
मैं पूछता हूँ और कुछ नहीं है दिखाने को?<br />
<br />
मामाश्री ने कितनी कोशिश की कि मीडिया मेरी पराजय को कम और भरी सभा में द्रौपदी द्वारा मित्र कर्ण को सूतपुत्र कहे जाने वाले मामले को ज्यादा उछाले लेकिन ये मीडिया वाले मानते ही नहीं. एकबार तो मन में आया कि शायद इनलोगों को पिछले महीने का हफ्ता नहीं मिला इसलिए ये मेरे पीछे पड़े हुए हैं लेकिन खुद दुशासन ने कहा कि अभी दस दिन पहले ही उसने खुद सम्पूर्ण हस्तिनापुर की मीडिया को अपने हाथों से उनका हफ्ता थमाया था. <br />
<br />
अब तो मुझे मामाश्री की बात में सच्चाई दिखाई दे रही हैं कि ये लोग बार-बार मेरी पराजय की चर्चा करके अपना रेट बढ़ाना चाहते हैं.<br />
<br />
हमलोग तो इसबात पर भी राजी हो गए थे कि ठीक है मेरी पराजय की बात न करके अर्जुन द्वारा द्रौपदी को जीत लिए जाने की ही चर्चा करो. उसी पर पैनल डिस्कशन करवाओ फिर भी ये नहीं मान रहे. वो तो भला हो मामाश्री का जिन्होंने प्रजा के लोगों के नाम से अखबारों और टीवी चैनलों में सवाल उठवाये कि "<b>जब दुर्योधन और अर्जुन, दोनों को जब गुरु द्रोण ने ही धनुर्विद्या सिखाई तो फिर ऐसा क्यों है कि अर्जुन ने तो महाराज द्रुपद द्वारा बनाये लक्ष को वेध दिया परन्तु दुर्योधन या उसका कोई भी भाई ऐसा नहीं कर सका?"</b> या कि; <b>"कहीं ऐसा तो नहीं कि गुरु द्रोण ने कुछ धनुर्विद्या कुरु राजकुमारों को सिखाई ही नहीं?"</b> और <b>"अगर यही सच है तो फिर गुरु द्रोण को अपने पद पर बने रहने का अधिकार है?"</b><br />
<br />
ये सवाल उठे तब जाकर मीडिया का ध्यान गुरु द्रोण की तरफ गया और मुझे थोड़ी राहत मिली. अच्छा है इसी बहाने गुरु द्रोण की भी थोड़ी छीछालेदर हो गई. ये मेरे बचपन से ही मुझसे जलते रहे हैं. <br />
<br />
वैसे विरोधी गुट के दो-तीन विशेषज्ञों ने तो बोलना शुरू भी कर दिया था कि मैंने तीर चलाने की कभी प्रैक्टिस ही नहीं की. कि मैं हमेशा केवल षड्यंत्र में ही बिजी रहा. कि मुझे मामाश्री के साथ मदिरापान करने और तीन पत्ते खेलने के अलावा कुछ आता ही नहीं. कि मैं ऐसा नकारा हूँ जो न तो धनुर्विद्या ही सीख पाया और न ही राजनीति. कि मेरी राजनीति का अर्थ केवल षडयंत्र करना है. कि मैंने अब तक केवल अधर्म का साथ दिया है. कि मेरी वजह से ही हस्तिनापुर अधर्म फ़ैल गया है. कि मैंने कभी इसके विरुद्ध कुछ नहीं कहा.<br />
<br />
आखिरकार इसे रोकने के लिए मामाश्री को फिर से सामने आना पड़ा. उन्होंने अपने प्रिय टीवी ऐंकर को आज्ञा दी कि ऐसे विशेषज्ञों को बोलने ही नहीं दिया जाय. बाद में जैसे ही इन विशेषज्ञों ने ऐसे मुद्दे उठाए, ऐंकर ने शोर मचाकर उन्हें बोलने ही नहीं दिया. <br />
<br />
ये विशेषज्ञ मेरे पीछे कई वर्षों से पड़े हुए हैं. मुझे याद है जब गुरु द्रोण ने हम राजकुमारों के शिक्षा देने के बाद गुरुदक्षिणा में हमें पांचाल नरेश द्रुपद को बंदी बनाकर उनके हवाले करने के लिए कहा था और सर्वप्रथम मैं अपने भाइयों और अपनी सेना लेकर द्रुपद को बंदी बनाने के लिए उनके राज्य पर आक्रमण कर दिया था परन्तु हार गया था. इन विशेषज्ञों ने मेरी बहुत खिल्ली उड़ाई थी. कुछ ने तो यहाँ तक कहा था कि मुझे और राजाओं के साथ संधि करके उन्हें साथ लेकर महाराज द्रुपद पर आक्रमण करना चाहिए था. अब इन्हें कौन बताये कि शिक्षा लेकर पाठशाला से निकले नौजवान के मन में पूरी दुनियां के सामने खुद को प्रूव करने का अवसर भी कुछ होता है. ऊपर से पाठशाला में गुरु द्रोण ने खुद हमसब को <b>"लीडिंग फ्रॉम द फ्रंट"</b> का सिद्धांत बताया था. अब ऐसे में एक राजकुमार दूसरे राजाओं के साथ संधि करके किसी राजा पर आक्रमण करेगा तो उसकी बेइज्जती नहीं होगी?<br />
<br />
ये विशेषज्ञ तभी से मुझे नाकारा साबित करने पर तुले हुए हैं और आजतक करते जा रहे हैं. उस समय भी मामाश्री मेरी रक्षा के लिए मैदान में आये थे और उन्होंने अपनी मीडिया के थ्रू यह स्टोरी चलवाई थी कि मीडिया के लिए मेरी पराजय से ज्यादा महत्वपूर्ण है इसबात पर चर्चा करना कि जब अर्जुन ने महाराज द्रुपद को बंदी बना ही लिया था तो क्या जरूरत थी भीम को पांचाल नरेश के सैनिकों, अश्वों और हाथियों को मारने की? उधर मीडिया ने इस स्टोरी को उछाला इधर कुछ <b>एनिमल राइट्स ऐक्टिविस्ट्स</b> और कुछ <b>सोल्जर राइट्स ऐक्टिविस्ट</b> ने मामले को तूल दिया था तब जाकर लोगों का ध्यान मेरी विफलता से हटकर भीम के कर्म पर डाला गया. बड़ी ऐसी-तैसी हुई थी भीम की उस समय.<br />
<br />
परन्तु ये विशेषज्ञ भी बड़े हेहर टाइप हैं. ये बीच-बीच में किसी न किसी मुद्दे पर मेरी आलोचना करने का मौका ढूढ़ ही लेते हैं. कभी यह कहते हैं कि मैंने लाक्षागृह में पांडवों को जलाकर मार देने का षड़यंत्र रचा तो कभी यह कहते हैं कि मैंने बचपन में भीम को खीर में जहर मिलाकर मारने का षड़यंत्र रचा. अब इन्हें कौन समझाये कि एक युवराज के लिए षड़यंत्र से महत्वपूर्ण कर्म भी कोई होता है क्या? युवराज षड़यंत्र नहीं करेंगे तो क्या खेतों में जाकर धान काटेंगे? ऊपर से कभी-कभी ये लोग यह कहते हुए नया पैतरा शुरू कर देते हैं कि अगर मौका मिलता तो दुशाला शायद कुरुवंश को मुझसे बहुत ज्यादा कुशलता से नेतृत्व देती.<br />
<br />
मेरी भी समझ में नहीं आता कि मेरे भाग्य में केवल पराजय ही क्यों है? <br />
<br />
खैर, मामाश्री ने आज शाम को सलाह दी कि मैं अपनी नेतृत्व की क्षमता को दर्शाने के लिए जगह-जगह जाकर लोगों से मिलूँ. कह रहे थे कि इस पराजय पर से मीडिया और प्रजा का ध्यान हटाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि मैं हस्तिनापुर में वर्षों से चल रहे सिस्टम को बदलने की बात कर दूँ. कि मैं हस्तिनापुर वासियों को आगाह करूँ कि प्रजा को सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए. कि उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि वे सपने में भी अधर्म के मार्ग पर कभी न जाएँ. कि प्रजा को आपसी भाई-चारा बढ़ाने की जरूरत है. कि हमें नए मूल्य स्थापित करने की आवश्यकता है. कि आज हस्तिनापुर में सबसे बड़ी समस्या अधर्म है. कि जल्द ही मैं अपने निर्णय प्रजा से पूछकर लूँगा. <br />
<br />
जब मामाश्री मुझे यह समझा रहे थे तो दुशासन ने खिस्स से हँस दिया. मैंने कर्ण की तरफ देखा और बनावटी गुस्सा दिखाते हुए दुशासन से पूछा; "क्यों हँसा तू?"<br />
<br />
वो बोला; "भ्राताश्री, अब आप जो भी अधर्म के कार्य करेंगे उसमें प्रजा की भी हिस्सेदारी होगी"<br />
<br />
और हमसब ठहाका लगाकर हँसने लगे.<br />
<br />
अब सोने चलता हूँ. सुबह जल्दी उठकर भाषण याद करना है. कल दोपहर हस्तिनापुर चेम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स में व्यापारियों को सम्बोधित करना है.Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-1404037619151528992013-11-13T13:33:00.000+05:302013-11-14T12:21:57.480+05:30चंदू इन एक्सक्लूसिव चैट विद सचिन'स बैट<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgM9qJIl00gkePt4YQcUwQfcpVI2U_1BO2zNTG23Rkp4cgd-pFyOQyEgzVhZUIlZvJPQ5HSyZ7n_SwSU5-b3yEHAAiPNazOfsxTMDe0dPAXzLKNU7LtW82fG3RXfsF7V_MN8Ppoe1gtf84/s1600/sachinbat.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgM9qJIl00gkePt4YQcUwQfcpVI2U_1BO2zNTG23Rkp4cgd-pFyOQyEgzVhZUIlZvJPQ5HSyZ7n_SwSU5-b3yEHAAiPNazOfsxTMDe0dPAXzLKNU7LtW82fG3RXfsF7V_MN8Ppoe1gtf84/s320/sachinbat.jpg" /></a></div>सचिन रिटायर हो रहे हैं. मुम्बई में होनेवाले टेस्ट मैच के बाद क्रिकेट नहीं खेलेंगे. मीडिया के कार्यक्रमों को देखकर लग रहा है जैसे किसी ने उनसे कह दिया है कि; "बस सात दिन, सचिन के क्रिकेटीय जीवन के सात दिन हैं तुम्हारे पास. जो लिख सकते हो लिख दो. जो कह सकते हो कह दो. जो दिखा सकते हो दिखा दो. प्राइम टाइम, लंच टाइम, टी टाइम, हर टाइम सचिन के नाम लिख दो. पिछले बीस वर्षों से जो भी दिखाते आये हो, फिर से आख़िरी बार के लिए दिखा डालो"<br />
<br />
सब लगे हुए हैं. कोलकाता टेस्ट के ख़त्म हो जाने के बाद चंदू ने मुझसे कहा; "सब सचिन का इंटरव्यू ले रहे हैं, आप कहें तो मैं भी ले लूँ."<br />
<br />
मैंने कहा; "बिल्कुल ले लो. सचिन के रिटायरमेंटी यज्ञ में ब्लॉगरीय हवन हो जायेगा."<br />
<br />
वो गया. शाम को वापस आया तो मुंह लटका हुआ था. मैंने पूछा; "क्या हुआ? मुंह लटकाये खड़े हो?"<br />
<br />
वो बोला; "लोगों ने सचिन को पुरस्कार लेने के लिए, फ़ोटो सेशन के लिए, डिनर के लिए और न जाने क्या-क्या के लिए बिजी कर दिया. उनका इंटरव्यू मिला ही नहीं."<br />
<br />
मैंने पूछा; "फिर?"<br />
<br />
वो बोला;"फिर क्या? ड्रेसिंग रूम के एक कोने में उनका बैट पड़ा था. मैंने कहा इसी का इंटरव्यू ले लिया जाय. वैसे भी उनके ड्राइवर, पड़ोसी, सास, बचपन के दोस्त वगैरह टीवी वालों को इंटरव्यू देंगे कि किसी ब्लॉग पत्रकार को? अब लीजिये यही छाप दीजिये. वैसे भी आपने बहुत दिनों से ब्लॉग पर कोई इंटरव्यू नहीं छापा."<br />
<br />
तो पेश हैं सचिन के बैट का इंटरव्यू. बांचिये.<br />
<br />
चंदू : नमस्कार बैट जी. स्वागत है आपका इस इंटरव्यू में.<br />
<br />
बैट : आदाब चंदू भाई. आपका शुक्रिया कि आपने मुझे इस इंटरव्यू में मधो किया. कोई मुझे मुँह नहीं लगाता लेकिन आपने मुझे जो इज्जत दी है उसके लिए मैं आपका मशकूर हूँ."<br />
<br />
चंदू : अरे आप तो उर्दू भी जानते हैं! <br />
<br />
बैट : कैसे नहीं जानेंगे जनाब? मेरी पैदाइश कश्मीर की है. वैसे अगर आपको उर्दू के शब्द अटपटे लग रहे हों तो मैं हिंदुस्तानी जबान में इंटरव्यू दे लूँगा.<br />
<br />
चंदू : शुक्रिया शुक्रिया. मेरा पहला सवाल है कि आपको कैसा लग रहा है?<br />
<br />
बैट : आप क्या पहले टीवी पत्रकारिता में थे चंदू जी?<br />
<br />
चंदू : अरे आपको कैसे पता?<br />
<br />
बैट : यह घटिया सवाल तो टीवी वाले पूछते थे. आप तो बोले कि आप ब्लॉग पत्रकार हैं.<br />
<br />
चंदू : अरे ऐसा नहीं है. वैसे मेरा अगला सवाल यह है कि चौबीस साल तक सचिन के साथ रहने के बाद अब आप भी रिटायर होने वाले हैं ऐसे में कैसा महसूस कर रहे हैं?<br />
<br />
बैट : वैसा ही जैसा सचिन महसूस कर रहे हैं. अब मैं भी घरवालों के लिए समय दे सकूँगा। बेटे की शिकायत रहती थी कि पापा पैरेंट्स डे पर भी स्कूल नहीं गए कभी. अब उसके स्कूल जा सकूँगा. उसे एक सफल बैट बनने के गुर सिखा सकूँगा। लगातार इतने सालों तक गेंदो से लड़ा. अब थोडा आराम करूँगा.<br />
<br />
चंदू : हाँ, आपने गेंदों से बहुत लड़ाई की. वैसे ये बताइये कि आपको क्या पहले से ही पता था कि आप सचिन के बैट बनेंगे?<br />
<br />
बैट : यह अच्छा सवाल किया आपने. देखिये मैं जिस पेड़ से निकला शायद उसको पता था. बड़ी इंटरेस्टिंग स्टोरी है. कहते हैं कि जब वह छोटा था तो एकबार जंगल का एक ठेकेदार उसको काटने आया. उसने ठेकेदार से विनती करते हुए कहा मुझे इतनी कच्ची उम्र में मत काटो. मुझे भगवान के लिए छोड़ दो. और देखिये कि ठेकेदार ने उसे सचमुच भगवान के लिए ही छोड़ दिया. मेरा जनम उसी पेड़ से हुआ. <br />
<br />
चंदू : अच्छा ये बताइये कि किस बॉलर का बाल ठोंकने में आपको खूब आनंद आता था.<br />
<br />
बैट : चंदू जी, ये किस तरह का अश्लील सवाल कर रहे हैं आप?<br />
<br />
चंदू : अरे बैट जी, मेरा मतलब वो नहीं था जो आप समझ रहे हैं. <br />
<br />
बैट : नहीं, आपको सवाल पूछने से पहले याद रखना चाहिए कि आप सचिन तेंदुलकर के बैट से सवाल पूछ रहे हैं, हरभजन सिंह के बैट से नहीं. वैसे मैं आपका आशय समझ गया मैं और आपको बताऊँ कि मुझे शेन वार्न और मैग्रा का बाल पीटने में खूब मजा आता था. यू कैन से आई हैड बाल ऑफ़ अ टाइम हिटिंग वार्न एंड मैग्रा. <br />
<br />
चंदू : और किस बॉलर के बॉल से आपको खीज होती थी?<br />
<br />
बैट : शोएब अख्तर के बॉल से. वो इतनी दूर से दौड़ के आता था कि बॉल फेंकने से पहले जो इंतज़ार करना पड़ता था उससे मैं बोर हो जाता था.<br />
<br />
चंदू : अच्छा ये बताएं कि आपने तो दुनियाँ भर घूम के बॉल की पिटाई की है. कौन सा शहर आपको सबसे अच्छा लगा?<br />
<br />
बैट : सिडनी. सिडनी मुझे सबसे अच्छा लगता था. वैसे चेन्नई भी काफी अच्छा लगा मुझे.<br />
<br />
चंदू : अच्छा ये बताइये कि चौबीस सालों में आपकी बात ड्रेसिंग रूम में और भारतीय खिलाड़ियों के बैट से होती रही होगी. किस खिलाडी के बैट से आपकी नहीं बनती थी?<br />
<br />
बैट : अज़हरुद्दीन के बैट से. वो हमेशा हल्का रहा और जब भी बात करता, मुझे मोटू कहकर चिढ़ाता था. कहता था वेट कम कर मोटू अपना वेट कम कर मोटू अपना. बहुत चिढ़ाया उसने मुझे. फिर एक दिन मैंने दो टूक सुना दिया तब जाकर बंद हुआ.<br />
<br />
चंदू : क्या कहा आपने उससे?<br />
<br />
बैट : मैंने उससे कहा कि मैं वजनदार खिलाडी का बैट हूँ बे इसलिए वजनदार हूँ तू हलके खिलाडी का बैट है इसलिए हल्का है.<br />
<br />
चंदू : और किस खिलाडी के बैट से आपकी खूब जमती थी?<br />
<br />
बैट : धोनी के बैट से. वो भी वजनी और मैं भी वजनी. इसलिए दोनों में खूब बनती थी.<br />
<br />
चंदू : अच्छा ये बताएं कि आपको क्या ऐसा भी लगता था कि आप का मैदान में जाना निरर्थक रहा?<br />
<br />
बैट : हाँ, जब भी सचिन बॉल को पैड से खेलते थे तो मेरे मन में आता था कि मेरा जीवन किस काम का जब पैड से ही खेलना है तो?<br />
<br />
चंदू: अच्छा ये बताएं कि आपको कौन सा शॉट लगाने में सबसे ज्यादा मज़ा आता था?<br />
<br />
बैट : स्ट्रेट ड्राइव. जब वे स्ट्रेट ड्राइव लगाते थे तो मैं बॉल के साथ खुल के मिलता था. लगता था जैसे बॉल से गले मिल रहे हैं. आप खुद ही सोचिये कि खुल के गले मिलने में जो मज़ा है वह हाथ जोड़ के मिलने में कहाँ मिलेगा? हाँ जब वे डिफेंसिव शॉट खेलते थे तो मुझे लगता था जैसे मैं बॉल से हाथ जोड़ के मिलना पड़ रहा है. और बॉल से हाथ जोड़ के मिलना मुझे बिलकुल पसंद नहीं था. <br />
<br />
चंदू : अच्छा ऐसा भी कोई शॉट था जिसकी वजह से आपको तकलीफ होती थी?<br />
<br />
बैट : पैडल-स्वीप, वे जब पैडल-स्वीप मारते थे तो कई बार मुझे ज़मीन से घिसटना पड़ता था. फिर भी ये सोच के घिसट लेता था कि कोई बात नहीं इसबार घिसट ले. अगली बार बॉल से खुल के मिलेंगे.<br />
<br />
चंदू : अच्छा बैट जी, ये बताइये कि सचिन की कोई आदत जिससे आपको कोफ़्त होती थी?<br />
<br />
बैट : हाँ जब ओवर के दौरान वे मुझी पटक पटक कर क्रीज समतल बनाते थे तब थोड़ी कोफ़्त होती थी. वैसे मुझे गुस्सा उनके ऊपर नहीं आता था, मुझे पिच क्यूरेटर के ऊपर गुस्सा आता था. मुझे लगता था कि पिच क्यूरेटर ने अपनी ड्यूटी सही तरह से क्यों नहीं की? <br />
<br />
चंदू : और कभी किसी बात के लिए आपको बुरा लगता था?<br />
<br />
बैट : हाँ लगता था न. जब कमेंटेटर लोग सचिन के बॉटम ग्रिप की बात करते थे. मुझे लगता था कैसी अश्लील बातें कर रहे हैं ये लोग? बॉटम ग्रिप। छि.<br />
<br />
चंदू : हा हा हा. अच्छा और कोई मौका जब आपको कुछ अच्छा नहीं लगा हो?<br />
<br />
बैट : हाँ ऐसे कई मौके आये. जैसे टेस्ट मैच के पहले वाली रात वे होटल रूम में बॉल लटका कर प्रैक्टिस करते थे तो मुझे अच्छा नहीं लगता था. अरे कल सुबह टेस्ट मैच है और रात भर बैट को सोने नहीं दोगे तो वह सुबह जाकर कैसे परफॉर्म करेगा? <br />
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चंदू : अच्छा कोई ऐसी इनिंग जब उसके दौरान आपको कष्ट हुआ हो?<br />
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बैट : कष्ट कभी नहीं हुआ मुझे. मैं सचिन का बैट था, किसी आम खिलाडी का नहीं. हाँ वैसे आपने पूछ ही लिया है तो बता दूँ कि शारजाह वाली इनिंग में जब आंधी आ गई थी तब सचिन ने मुझे पिच पर लिटा दिया था और मेरी आँख में रेत घुस गई थी. मैंने उनको बताया तो बोले कि नाराज मत हो, अभी होटल चलेंगे तो तुझे नहला देंगे और सब ठीक हो जाएगा. <br />
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चंदू : और कोई यादगार दिलचस्प बात जो आपको हमेशा याद रहेगी?<br />
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बैट : एक-दो नहीं, बहुत सी बातें हैं. वैसे एक बात बड़ी हंसने वाली बताता हूँ आपको. जब उनको टेनिस एल्बो हुआ तो मैंने उनसे कहा कि आप क्रिकेट के इतने बड़े खिलाडी हैं. मैं आपके साथ हमेशा से रहा हूँ. मैंने आजतक चलने से कभी मना नहीं किया. ऐसे में आपको टेनिस खेलने की क्या जरूरत थी जिससे आपका एल्बो हर्ट हो गया. मेरी बात सुनकर खूब हँसे. तब जब उन्होंने मुझे बताया कि टेनिस एल्बो क्या होता है तो मुझे भी अपनी बेवकूफी पर पर बड़ी हंसी आई.<br />
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चंदू : हा हा हा. अच्छा ये बताएं कि सचिन के रिटायर होने से इफेक्टिवेली आप भी रिटायर हो जायेंगे. कैसे बीतेंगे आपके दिन अब?<br />
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बैट : सच कहें तो सचिन के बिना मेरा कोई वजूद ही नहीं है चंदू जी. जैसे सचिन कई बार कह चुके हैं कि क्रिकेट के बिना वे अपना जीवन अधूरा मानते हैं वैसे ही मैं आपको बता दूँ कि मुझे सचिन के हाथों में रहने के अलावा और कुछ नहीं आता. फिर भी वे रिटायर हो जायेंगे तो मैं भी पहले कुछ दिन आराम करूँगा. अपना समय अपने परिवार को दूँगा. वैसे मैंने उनसे कहा कि मुझे अर्जुन की सेवा में लगा दें. लेकिन अगर वे नहीं लगाएंगे तो मैं अपने बेटे को एक सफल बैट बनाकर अर्जुन की सेवा में अर्पित कर दूँगा. मैंने सचिन के लिए काम किया. मेरा बेटा अर्जुन के लिए काम करेगा. हो सकता है उसका बेटा आगे चलकर अर्जुन के बेटे के लिए काम करे. तो जीवन तो देखिये किसी तरह से कट ही जायेगा. सचिन के घर में ही एक कोने में पड़ा रहूँगा. अब इस उमर में कहाँ जाऊँगा?<br />
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चंदू : चलिए मेरी भी शुभकामनाएं आपके साथ हैं. हम सभी यह चाहेंगे कि आपका आगे का जीवन अच्छे से कटे. इस इंटरव्यू के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.<br />
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बैट : आपका भी इंटरव्यू लेने के लिए धन्यवाद चंदू जी.<br />
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Shivhttp://www.blogger.com/profile/05417015864879214280noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-8266441011250183695.post-45600451802814355232013-10-01T15:49:00.001+05:302013-10-01T17:13:43.906+05:30गाँधी जी थैंक यू <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6cQ4ZqBAG2UBC8DAW-oxnVlQbiGuiAalYrSFwOotktPxAXjwy6crrdYRINRxhVfTVjbq8yXWVa-3DvccPj0KqybdwRBjZFzZO6ragYPzC-CRg-EEntDJIaORcsAWkD_cNH0fsfP56XR4/s1600/mahatma-gandhi-independence-day-image.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6cQ4ZqBAG2UBC8DAW-oxnVlQbiGuiAalYrSFwOotktPxAXjwy6crrdYRINRxhVfTVjbq8yXWVa-3DvccPj0KqybdwRBjZFzZO6ragYPzC-CRg-EEntDJIaORcsAWkD_cNH0fsfP56XR4/s320/mahatma-gandhi-independence-day-image.jpg" /></a></div><br />
हर साल की तरह इस साल भी २ अक्टूबर आ ही गया. हर साल की तरह इस साल भी भाषणों की झड़ी लगेगी, टीवी पर गाँधी फिल्म दिखाई जाएगी, रेडिओ पर "दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल.…." बजेगा और टीवी पर चल रहे रियलिटी शो में लोग गाँधी जी के बहाने ऐ मेरे वतन के लोगों ………….गायेंगे. ऐसे में पेश है एक नेता का भाषण जो उसने २ अक्टूबर २०१२ के दिन अपनी जनता पर चेंप दिया था. आप बांचिये.<br />
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सभा में उपस्थित देशवासियों, आज गाँधी जी का जन्मदिन है. यह न सिर्फ गाँधी जी के लिए बल्कि हमारे लिए भी सौभाग्य की बात है कि आज यानि २ अक्टूबर को गाँधी जी का जन्मदिन है. आज अगर उनका जन्मदिन नहीं होता तो न ही हमारे लिए यह सौभाग्य की बात होती और न ही हम उनका जन्मदिन मना पाते. ऐसे में हम कह सकते हैं कि आज के दिन जन्म लेकर उन्होंने हमसब को उनका जन्मदिन मनाने का चांस दिया जिसके लिए हम उनके आभारी हैं. भाइयों, देखा जाय तो मौसम के हिसाब से भी अक्टूबर के महीने में जन्म लेकर उन्होंने हमें एक तरह से उबार लिया. फर्ज करें अगर वे मई या जून के महीने में पैदा हुए होते तो गरमी की वजह से उनके जन्मदिन पर मैं शूट नहीं पहन पाता. अब आप खुद ही सोचिये कि बिना शूट के गाँधी जी जैसे महान व्यक्ति का जन्मदिन समारोह कितना फीका लगता. सच बताऊँ तो बिना शूट के मैं गाँधी जी का जन्मदिन मना ही नहीं पाता और अगर ऐसा नहीं होता तो बहुत बड़ा नुक्सान हो जाता. मुझे भाषण देने का चांस नहीं मिलता और आपको भाषण सुनने का चांस नहीं मिलता. ऐसे में हमारी और आपकी मुलाक़ात नहीं हो पाती. और आपतो जानते ही हैं कि नेता और जनता की मुलाकात न हो तो लोकतंत्र को क्षति पहुँचती है. इससे साबित होता है कि २ अक्टूबर लोकतंत्र के लिए भी शुभ है. <br />
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इन सारे संयोंग पर गहरे से सोचें तो कह सकते हैं कि गांधी जी हमसब का थैंक्स डिजर्व करते हैं. आइये लगे हाथ हम उन्हें थैंक्स कह ही दें. मैं कहूँगा गांधी जी और आपसब एक स्वर में कहेंगे थैंक यू.<br />
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गांधी जी <br />
थैंक यू <br />
<br />
गाँधी जी <br />
थैंक यू <br />
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भाइयों, आपका तो नहीं पता लेकिन हमें बचपन से ही सिखाया गया कि हमें गांधीजी के रस्ते पर चलना है. हमारे पिताजी ने तो हमें यह सीख चार वर्ष की उम्र में ही दे दी थी कि हमें गाँधीजी के रस्ते पर चलने की जरूरत है. यह मैं आपको तब की बात बता रहा हूँ जब वे अपने एरिया के म्यूनिसिपल काउंसिलर थे. मुझे अच्छी तरह से याद है उन्होंने म्यूनिसिपल कारपोरेशन में संघर्ष करके हमारे मोहल्ले में पाँच सौ मीटर की एक सड़क बनवाई और उसका नाम गाँधी जी के नाम पर एम जी रोड रखा. मैं और मेरा छोटा भाई दोनों उस रोड पर चलकर स्कूल जाते थे. बाद में जब पिताजी ने म्यूनिसिपल कारपोरेशन में मेयर का पद हथिया लिया तब हम दोनों भाई उनकी आफिसियल कार में बैठकर उसी एम जी रोड के ऊपर से जाते थे. वैसे मोहल्ले के कुछ दुष्ट लोगों ने कानाफूसी करके यह बात फैला दी थी कि चूंकि मेरे दादाजी का नाम मुकुंदीलाल गुप्ता था इसलिए पिताजी ने रोड का नाम एम जी रोड रखा था. पिताजी और भगवान को पता है कि यह सच नहीं है. <br />
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भाइयों, आप खुद देखें कि अपने पिताजी के पढाये पाठ पर हम कितनी छोटी उम्र से अमल कर रहे हैं.<br />
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भाइयों, यह तो हुई मेरे पिताजी और मेरी बात. लेकिन आपलोग उनके रस्ते पर चलें उसके लिए सबसे पहले जरूरत है कि आप गाँधी जी के बारे में जानें. आखिर उनके बारे में बिना जाने आप उनके रस्ते पर कैसे चलेंगे? इसलिए मैं अब आपको गाँधी जी के बारे में बताता हूँ. भाइयों, गांधी जी ने वकालत की पढाई की थी जिससे वे वकील बन सकें. आप पूछ सकते हैं वे डॉक्टर या इंजिनियर क्यों नहीं बने? तो इसका जवाब यह है कि उन दिनों वकालत में जितना पैसा था, उतना डाक्टरी में नहीं था. दूसरी बात कह सकते हैं कि वकालत करना उस ज़माने में फैशन की तरह था. ऊपर से गाँधी जी इंटेलिजेंट थे और उनको पता था वकालत में बहुत पैसा था. भाइयों, वकालत में पैसा था तभी गांधी जी उस जमाने में फर्स्ट क्लास में चलते थे. <br />
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भाइयों, वकील बनकर उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अपनी प्रैक्टिस शुरू की. वही दक्षिण अफ़्रीका जहाँ के हैन्सी क्रोनिये थे. हैन्सी क्रोनिये से याद आया कि जब मैं क्रिकेट बोर्ड का अध्यक्ष था तब एकबार दक्षिण अफ्रीकी टीम भारत के दौरे पर आई और मुझे हैन्सी क्रोनिये से मुलाकात करने का सौभाग्य प्राप्त …… (पब्लिक शोर करती हैं)<br />
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अच्छा अच्छा मैं मुद्दे पर आता हूँ. मैं जरा अलग लैन पर चला गया था. नहीं.. नहीं.. ऐसा न कहें, मैंने सोचा कि मैं आपसे अपना अनुभव बाटूंगा तो आपलोगों को प्रेरणा मिलेगी. वैसे आप चाहते हैं तो मैं वापस मुद्दे पर आता हूँ. तो भाइयों मैं कह रहा था कि गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में अपनी वकालत की प्रैक्टिस शुरू की. आप तो जानते ही हैं कि दक्षिणी अफ्रीका सोने की खानों के लिए प्रसिद्द है. इसीलिए मैंने गाँधी जी से प्रेरणा ली और आज आप खुद ही देखिये कि सोना मुझे कितना प्रिय है. मैं न सिर्फ सोना पहनता हूँ बल्कि संसद में भी सोने का कोई चांस हाथ से जाने नहीं देता. <br />
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भाइयों दक्षिणी अफ्रीका की बात चली हैं तो मैं आपको गांधी जी से संबंधित एक संस्मरण सुनाता हूँ. गाँधी जी हमेशा फर्स्ट क्लास में ही सफ़र करते थे. पैसे की कोई कमी तो थी नहीं उनको. तो एकबार वे फर्स्ट क्लास में बैठे कहीं जा रहे थे तो हुआ क्या कि वहां के एक अँगरेज़ टीटी ने उन्हें डिब्बे से बाहर फेंक दिया. मुझे पता है आपके मन में यह उत्सुकता होगी कि उस टीटी ने गाँधी जी को डिब्बे से बाहर कैसे फेंका? तो मैं कहना चाहूँगा कि जिन्होंने गाँधी फिल्म देखी है उन्हें तो पता होगा ही कि उस टीटी ने गाँधी जी को डिब्बे के बाहर कैसे फेंका था लेकिन जिन्होंने वह फिल्म नहीं देखी है उनके लिए मैं बताता चलूँ कि उस टीटी ने उन्हें वैसे ही फेंका जैसे हमलोग कई बार इमरजेंसी पड़ने पर फर्स्ट क्लास या सेकंड क्लास के यात्रियों को डिब्बे से बाहर फेंक देते हैं. अब देखिये हमने इतना बता दिया. जो नहीं बताया वो आपलोग कल्पना कर लीजिये. <br />
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तो मैं कह रहा था कि उस अँगरेज़ टीटी ने गाँधी जी को डब्बे से बाहर फेंक दिया. सच तो ये है कि उन दिनों वहां अंग्रेजों का राज था. और अँगरेज़ बहुत ख़राब होते थे. बहुत ख़राब माने बहुत खराब. लेकिन इसका मतलब क्या वे कुछ भी करते और गाँधी जी बर्दाश्त कर लेते? कदापि नहीं. अब वे अगर गाँधी जी को डिब्बे से बाहर फेंकेंगे तो क्या गाँधी जी चुप रहते? क्यों चुप रहते? क्या कोई विदाउट टिकेट चल रहे थे जो चुप रहते? बस जब टीटी ने उन्हें बाहर फेंका उसी दिन से गाँधी जी का अंग्रेजों से लफड़ा शुरू हो गया. उन्होंने उसी दिन कसम खाई कि वे अंग्रेजों को भारत में नहीं रहने देंगे. उनको पता था कि जो अँगरेज़ दक्षिण अफ्रीका में राज करते थे वहीँ अँगरेज़ भारत में भी राज करते थे. फिर क्या था, अंग्रेजों से बदला लेने के लिए वे भारत वापस आ गए. भारत आकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. जाकर उनसे सीधा-सीधा कह दिया कि अंग्रेजों भारत छोड़ दो. अँगरेजों ने आना-कानी तो की लेकिन गाँधी जी भी कहाँ छोड़ने वाले थे? उन्होंने उनको भारत से भगा कर ही दम लिया. वो गाना तो सुना ही होगा आपने. अरे वही जो आज के दिन खूब बजता है. अरे वही बस मुंह में है याद नहीं ……हाँ, याद आ गया. वो गाना था न कि <b>दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल.</b> <br />
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मुझे पता है आपके मन में सवाल उठा रहा होगा कि ये साबरमती का संत कौन है? तो मैं आपको बता ही देता हूँ कि ये और कोई नहीं खुद गाँधी जी ही थे. वो क्या था कि साबरमती में ही उनका आश्रम था और आपतो जानते ही हैं कि आश्रम में संत रहते हैं इसलिए उनको साबरमती का संत कहा जाता है. <br />
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भाइयों, अब मैं आपको गांधी जी से सम्बंधित अन्य पहलुओं के बारे में बताता हूँ. आपको जानकर हैरानी होगी कि उनको बंदरों से बहुत प्यार था. आपके मन में बात आती होगी कि बन्दर भी कोई प्यार करने की चीज हैं? तो इसका जवाब मैं ये दूंगा कि दरअसल गाँधी जी श्री रामचन्द्र से बहुत प्रभावित थे इसलिए वे कई बार न सिर्फ रामराज की बात करते थे बल्कि वे श्री रामचन्द्र जी की तरह ही बंदरों से प्यार भी करते थे. सच तो ये हैं कि उन्हें बंदरों से उतना ही प्यार था जितना आजकल हम कुत्तों, गधों वगैरह से करते हैं. <br />
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आप पूछ सकते हैं कि गाँधी जी को बन्दर ही प्रिय क्यों थे? हमारी तरह उन्हें कुत्ते या गधे प्रिय क्यों नहीं थे? भाइयों, इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको थोडा इतिहास की पढाई करनी पड़ेगी. लेकिन चूँकि पढाई करने के लिए आपका साक्षर होना जरूरी है और हमने आपको साक्षर होने नहीं दिया इसलिए हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम आपको बताएं कि इतिहास में क्या लिखा गया गया है या फिर गाँधी जी के इस पहलू को लेकर इतिहासकार क्या कहते हैं? क्या विचार रखते हैं? तो भाइयों वैसे तो इतिहासकारों में इसको लेकर भिन्न-भिन्न मत हैं लेकिन ज्यादातर इतिहासकार यह मानते हैं कि उन दिनों देश के कुत्तों और गधों पर राजाओं और नवाबों का कब्ज़ा था. उन लोगों ने ही सारे कुत्तों और गंधों को पाल रखा था.<br />
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ऐसे में गाँधी जी ने बंदरों को चुना. आप ने देखा भी होगा कि उनके तीन बन्दर थे जो अपना कान, मुंह और आँख बंद रखते थे. भाइयों, वैसे तो बहुत लोग इन बंदरों से बहुत इम्प्रेस्ड रहते हैं लेकिन मैं आपको अपना पर्सनल विचार बताऊँ तो मुझे ये तीनों बन्दर कोई बहुत इम्प्रेसिव नहीं लगे. मैं पूछता हूँ कि जब भगवान ने आँख, कान, मुंह वगैरह दिए हैं तब उनको बंद रखने का क्या तुक है? मैं पूछता हूँ कि खुला रखने में कौन सा पैसा खर्च हो जाता? ऊपर से अगर आप साइंस के लिहाज से देखें तो वैज्ञानिक बताते हैं कि अगर अंगों का इस्तेमाल न हो तो उनके नष्ट हो जाने का भय रहता है. अब इन सब बातों को देखा जाय तो ये बन्दर सच में कोई इम्प्रेसिव बन्दर नहीं थे.<br />
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भाइयों, वैसे तो गाँधी जी महान थे लेकिन एक बात में वे कच्चे थे. वे अपने बेटों को आगे नहीं बढ़ा सके. देखा जाय तो एक पिता का असली कर्त्तव्य नहीं निभा सके. आप तो जानते ही हैं कि वे राष्ट्रपिता थे. मतलब भारत उनका था. ऐसे में उन्हें चाहिए था कि वे अपने बेटों को, पोतों को आगे बढाते. उन्हें प्रेजिडेंट, प्राइम मिनिस्टर, मिनिस्टर बनाते. लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए. मैं पूछता हूँ कि एक पिता का कर्त्तव्य क्या केवल अपने बच्चों का लालन पालन ही होता है? क्या पिता का यह कर्त्तव्य नहीं कि वह उसे पद दिलाये? अपने प्रभाव से जमीन का प्लाट दिला दे? कोई कंपनी खोल दे? यह सब वे नहीं कर सके तो यही एक बात है जहाँ वे न सिर्फ कच्चे साबित हुए बल्कि हमलोगों से पीछे रह गए. आखिर बच्चों का भला करना एक पिता का कर्त्तव्य है. आज मुझे ही देख लीजिये. मैं खुद केन्द्रीय मंत्री हूँ. मेरा एक बेटा सांसद है. दूसरा बेटा स्टेट कैबिनेट में है. उसका बेटा अपने शहर का मेयर …… भाइयों अब आप ही बताइए, इस मामले में हम बड़े कि वे?<br />
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फिर मैं यह सोचकर संतोष कर लेता हूँ भाइयों कि मैं भी तो उन्ही की संतान हूँ. अरे जो राष्ट्रपिता है उसकी संतान तो उस राष्ट्र का एक-एक नागरिक है. अब मैं आगे बढ़कर नेता बन गया तो समझ लीजिये कि उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया. आप वहीँ रह कर जनता बने रहे तो समझ लीजिये कि उन्होंने आपको आशीर्वाद नहीं दिया. सब आशीर्वाद का खेल है. मुझे तो गाँधी जी के अलावा मेरे पूज्यनीय पिताजी का भी आशीर्वाद प्राप्त था. <br />
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भाइयों, गाँधी जी तो महान थे. इतने महान थे कि उनकी गाथा का कोई अंत नहीं है. खुद मैं पिछले चालीस साल से आज के दिन उनके बारे में भाषण देता आ रहा हूँ लेकिन हर साल मुझे लगता है कि अभी कितना कुछ है उनके बारे में कहने को. हर साल मुझे सुनाने में मज़ा आता है और आपको सुनने में. इसका एक फायदा यह है कि उनकी गाथा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती जा रही है. मुझे आशा है कि अगले वर्ष भी हमलोग इसी मैदान में मिलेंगे और मैं आपको उनके बारे में और बहुत सारी बातें बताऊँगा. तबतक चांस यह है कि मैं गृहराज्य मंत्री से प्रमोट होकर कोल मिनिस्ट्री में चला जाऊं. आजकल सबसे मलाईदार मिनिस्ट्री वही है. मैं कोयला मंत्री बन गया तो फिर गाँधी जी के बारे में कहानियां सुनाने का मजा और आएगा. भाइयों, कहानी जितनी पुरानी हो, उतनी मज़ा देती है. इसलिए मैं अपने इस वादे के साथ कि अगले साल इसी मैदान आपको फिर से कहानी सुनाऊंगा, आपसे विदा लेता हूँ. <br />
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तबतक के लिए बोलो गाँधी जी की जय! <br />
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<b>डिस्क्लेमर</b>: मैंने गाँधी-जयंती पर एक नेता का भाषण साल २००८ में लिखा था. अब आप नेताओं के स्पीच राइटर्स को तो जानते ही हैं. किसी ने उस नेता के भाषण को ब्लॉग से कॉपी कर के थोड़ी-बहुत हेर-फेर करके अपने मंत्री को दे दिया और उस मंत्री ने यह भाषण अपनी जनता पर २ अक्टूबर २०१२ के दिन चेंप दिया. यह वही भाषण है. यह डिस्क्लेमर मैंने उन लोगों के लिए लिखा है जिन्होंने २००८ वाला भाषण पढ़ रक्खा है:-)<br />
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