....आगे का हाल
नीरज जी गजल सुना रहे थे. लगभग सारे चिट्ठाकार वाह वाह कर रहे थे. लेकिन जैसे ही उन्होंने शेर सुनाया कि;
हमारी तो समझ लेना उसी दिन यार तुम होली
बिपाशा हाथ से अपने खिलाये जब पकी गुझिया
फुरसतिया जी तड से बोल पड़े; "फिर तो समझ लीजिये कि आपकी होली हो चुकी. बिपाशा गुझिया पका दे, यह तो उसके इस जनम में होने से रहा."
फुरसतिया जी की बात सुनकर सब हंस पड़े.
शास्त्री जी बोले; "आप शायद ठीक कह रहे हैं. आधुनिकता का यह हाल है कि बहू-बेटियाँ हमारी संस्कृति की पहचान गुझिया तक को भूलती जा रही हैं. फिर भी मैं कहूँगा कि भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए बिपाशा को कोशिश तो करनी ही चाहिए."
अपना वक्तव्य ख़त्म करके शास्त्री जी ने कहा; "सस्नेह शास्त्री."
शास्त्री जी की बात सुनकर फुरसतिया जी ने कहा; " कोई फायदा नहीं है. फ़र्ज़ कीजिये कि बिपाशा गुझिया बना भी दे. क्या होगा उससे? वो तो जैतून के तेल में गुझिया पका डालेगी. डायट गुझिया. इतनी हैल्थ कांशस बच्ची है, ऐसे में वो तो चाहेगी कि मुनक्का, छुहाड़ा, किशमिश वगैरह भी 'लो कैलोरी' वाला रहे. ऐसी गुझिया खाकर होली मनाने से तो अच्छा है कि नीरज जी मेरी गुझिया खाकर होली मना लें."
फुरसतिया जी की इस बात पर सारे हो हो करके हंसने लगे.
नीरज जी को पता चल चुका था कि काव्यपाठ में तर्क ने व्यवधान डाल दिया. दुनियाँ भर में तर्क की वजह से न जाने कितनी कवितायें बनते-बनते रह गईं और न जाने कितनी पढ़ी नहीं गईं. तर्क ने विज्ञान को ही आगे बढाया. साहित्य को तो पीछे ढकेल दिया.
वे आगे का शेर पढ़ने की कोशिश करते हुए सबको चुप कराने लगे तभी किसी ने आवाज़ लगाई; "नीरज जी आपकी इस गजल को आपके गुरुदेव का आशीर्वाद तो मिला ही नहीं."
यह सुनकर नीरज जी बोले; "गुरुदेव का आशीर्वाद कैसे मिलता? आजकल वे हास्य गजलों को एडिट करने में व्यस्त हैं. चेले भी तो बहुत हो गए हैं अब."
उसके बाद फुरसतिया जी की तरफ देखते हुए बोले; "शुकुल जी, भाई हम तो आपकी गुझिया ही खा लेंगे. आपकी गुझिया कड़ी तो होती है, लेकिन उसमें स्माइली लगाकर आप सबकुछ बैलेंस कर देते हैं. वैसे भी बिपाशा की बनाई गुझिया की ऐसी भयानक तस्वीर आपने पेश की है कि उसकी गुझिया तो मैं खाने से रहा."
नीरज जी की बात पार फुरसतिया जी बोले; "असल में कड़ी गुझिया ज्यादातर फेंक कर मारने के काम आती है. ऐसे में स्माइली लग जाय तो लोग खाने के लिए तैयार हो जाते हैं."
उनकी बात सुनकर कुश बोले; "सत्य वचन सत्य वचन."
कुश की बात पर फुरसतिया जी का ध्यान उनकी तरफ गया. वे बोले; "तुम्हारी गुझिया कहाँ है? दिखाओ"
उनकी बात पर कुश बोले; "मेरी बनाई हुई गुझिया का आप केवल फोटो देख सकते हैं. मैंने एक ऐसा टेक्नालागिकल इनोवेशन किया है जिससे आप गुझिया के फोटो पर क्लिक करके असली गुझिया पर पहुँच जायेंगे."
कुश की बात पर सबने उन्हें बहुत सराहा. शायद फोटो वाली चिट्ठाचर्चा करते-करते यह आईडिया आया होगा. उनके इस इनोवेशन पर गुझिया इंसपेक्टर अनीता जी बहुत प्रभावित दिखीं. उन्होंने कुश को सलाह दी कि वे तुंरत अपनी इस खोज का पेटेंट करवा लें.
शास्त्री जी ने कुश को अनीता जी की सलाह मानने के लिए सजेस्ट किया. उन्होंने बताया कि कुश ने तुंरत पेटेंट नहीं करवाया तो पश्चिमी देश का कोई 'कुशाग्र बुद्धि' गुझिया कुक अपने नाम से इसका पेटेंट करवा लेगा.
किसी ने कुश की एक गुझिया खाकर उसे स्वादिष्ट बताया. अपनी गुझिया से प्रभावित होकर कुश ने घोषणा कर डाली कि "टोस्ट विद टू होस्ट" का नाम अगले सीजन में "गुझिया विद टू बुझिया" रख दिया जायेगा.
कुश की इस घोषणा पर सबने वाह वाह किया. कुछ तो वहीँ पर अगले सीजन के लिए बुकिंग कराने पर आमादा हो गए. सबसे ज्यादा उत्साह पूजा जी ने दिखाया. पूजा जी का उत्साह देखकर कुश ने उनसे पूछा; "पहले तुम बताओ, तुमने कितनी गुझिया बनाई?"
कुश के सवाल पर पूजा जी ने कहा; "मैंने बिलकुल अलग ढंग की गुझिया बनाई है. सबसे अलग गुझिया. असल में मैंने पुराने गुझिया रूल्स फालो नहीं किया. मैंने अपना नया गुझिया रूल्स बनाया. मेरी सारी गुझिया मेरे बनाए गए रूल्स के हिसाब से बनी हैं."
सब उत्सुक हो गए. यह जानने के लिए पूजा जी ने नए किस्म की कैसी गुझिया बनाई है? देखने पर पता चला कि उनकी बनाई गई गुझिया सचमुच अलग थी. मैदा की जगह मावा ने ले ली थी और जहाँ मावा रहना चाहिए वहां मैदा भरा हुआ था. किसी ने कहा; "ऐसी गुझिया को मान्यता नहीं मिलनी चाहिए."
"आपके कहने से कुछ नहीं होता. अपनी बनाई गुझिया के लिए मुझे गुझिया इंसपेक्टर से पहले ही सर्टिफिकेट मिल चुका है"; पूजा ने बताया.
कुश ने कहा; "सर्टिफिकेट पहले ही मिल चुका है! क्या करोगी इस सर्टिफिकेट का?"
"मुझे जब गुझिया पर डॉक्टरेट मिलेगा तब यह सर्टिफिकेट काम आएगा. वैसे गुझिया बनाने के साथ-साथ मैंने एक कविता भी लिखी है. सुनिए;
लड़की हूँ मैं
मुझे गुझिया मत समझना
मत समझना कि
गुझिया की तरह बंद हूँ मैं
लड़की हूँ मैं
मत समझना कि
मुझे ज़रुरत है
मैदे के किसी कवर की
उस कवर की
जो आंच बढ़ जाने पर टूट जाता है
उसकी ज़रुरत
गुझिया के मसाले को होती है
मुझे नहीं
लड़की हूँ मैं
गुझिया के मसाले में
लुप्तप्राय हो जाने वाला पोस्ता भी नहीं हूँ मैं
न ही मैं हूँ
गुझिया में छिपी हुई किशमिश
जिसका अस्तित्व
गुझिया के कवर में छिप जाता है
जो दिखाई नहीं देता
जिसे धूप भी घायल कर जाती है
वो किशमिश भी नहीं हूँ मैं
लड़की हूँ मैं
पूजा जी ने जैसे ही कविता पाठ ख़त्म किया, समीर भाई ने कहा; "सुन्दर अभिव्यक्ति. बधाई."
तबतक फुरसतिया जी बोले; "पूजा मैडम को टिप्पणी के साथ आप अपनी अति मीठी गुझिया भी दें."
फुरसतिया जी की बात सुनकर ज्ञान जी बोले; "अति मीठी साधुवादी गुझिया बोलिए."
फुरसतिया जी बोले; "सही है. सही है. समीर जी साधुवादी गुझिया का पेटेंट करवा लें."
....जारी रहेगा
Friday, March 6, 2009
चिट्ठाकारों का गुझिया सम्मेलन- भाग २
@mishrashiv I'm reading: चिट्ठाकारों का गुझिया सम्मेलन- भाग २Tweet this (ट्वीट करें)!
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दुसरा भी जानदार रहा.. पुजा जी की कविता भी बहुत अच्छी रही..
ReplyDeleteहोली का पुरा मौहोल बन रहा है...
बडा बढिया रहा आपका ये गुझिया सम्मेलन । नीचे जाकर पहला भाग भी पढ लिया। बेचारी बिपाशा आप लोगों ने तो उसे भी गुझिया बनाने में लगा दिया ।
ReplyDeleteis varsh aapne sabko gujhiamay kar diya. aapki holi rangeen ho.
ReplyDeleteहमारे यहाँ कई होली से गुझिया नहीं बनी हैं। औरों की गुझिया से काम चलाते हैं। आप ने अब तक जितनी गुझिया परोसी सब एक्सपेरीमेंटल थीं। जरा पारंपरिक गुझिया भी तो भिजवाएँ।
ReplyDeleteआपने लिखा है "नीरज जी गजल सुना रहे थे. लगभग सारे चिट्ठाकार वाह वाह कर रहे थे"
ReplyDeleteहमें इस में प्रयुक्त "लगभग" शब्द से आपत्ति है...कारण...लगभग सारे...याने कुछ ऐसे भी थे जो नहीं सुन रहे थे...बस आप हमें उनकी जानकारी दीजिये...हम उनके घर जा कर उनके पूरे परिवार को इकठ्ठा कर अपनी कविता ना सुनाई तो लानत है हमारे लेखन पर(वैसे भी जो हम लिख रहे हैं उस पर लानत भेजने वाले बहुत हैं).
दुःख होता है जब साहित्य सुनने के लिए सारे नहीं जुटते...लगभग सारे जुटते हैं...
एक बात हम फुरसतिया जी पूछना चाहते हैं...वो ये की हमने कहाँ कहा की बिपाशा अपने हाथ से पका कर गुझिया खिलाये हमें...हमने लिखा था..."बिपाशा हाथ से अपने खिलाये जब पकी गुझिया" शायरी समझना आसान नहीं होता शायर कहता क्या है लोग समझते क्या हैं...शेर की गहराई में उतरें फुरसतिया जी फिर देखें...समझें...हम कह रहे हैं की बिपाशा हमें पकी हुई गुझिया खिलाये अधपकी या कच्ची नहीं...अगर बिपाशा अपने हाथ से हमें कच्ची गुझिया खिलाएगी तो क्या हम खायेंगे...कदापि नहीं...इस बात को ही इस शेर में हम स्पष्ट किये हैं जो फुरसतिया जी की नज़रों में अस्पष्ट रह गयी...
आपका बाकी गुझिया पुराण बहुत दिलचस्प लगा...आगे की कड़ियों का इंतज़ार है...
नीरज
गुझिया का खोवा-ओवा तनि झट भून लेओ भाई, ई तो इहाँ गुझिया सम्मेलन से कवि सम्मेलन तक जाने कितने सम्मेलन करवावैंगै, भले होली तक गुझिया की टैं बुल जाए!!
ReplyDeleteगजब चल रहा है गुझिया सम्मेलन महाराज!!
ReplyDeleteतर्क ने विज्ञान को ही आगे बढाया. साहित्य को तो पीछे ढकेल दिया.- कितनी उम्दा बात कही है. :)
अपना वक्तव्य ख़त्म करके शास्त्री जी ने कहा; "सस्नेह शास्त्री." -इस बात ने पूरा मैदान जीत लिया.
नीरज जी की कविता में फुरसतिया जी को व्यवधान नहीं डालना चाहिये था-इस बात से सहमत हूँ किन्तु साथ ही लगभग आप सभी लोगों को यह समझना चाहिये कि फुरसतिया जी की व्यवधान डालने की कोई मंशा नहीं थी वो तो बस यूँ ही मौज ले रहे थे.
- इस बात पर सारे हो हो करके हंसना चाहें तो हंस लें. :)
वैसे पूजा जी कविता पर अब पूरी टिप्पणी ऐसे बनेगी:
’पूजा जी की सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई. इसे प्रस्तुत करने के लिए शिव भाई, आपका आभार एवं साधुवाद’
--बेहतरीन मजा आ गया. अगले अंक का इन्तजार है. :)
वाह जी वाह कमाल कर दित्ता तुस्सी.. हम तो सोच रहे है की इसी सीजन का नामकरण कर डाले "गुझिया विद टू बुझिया"पर गड़बड़ ये है की बुझिया का मतलब बूझ नही पा रहे है.. पर आपने सबकी नब्ज़ को भली भाँति बूझा है.. होली से पहले ये गुझिया सम्मेलन का लाइव टेलीकास्ट दिखाकर.. आप तो बस कमाल है.. धांसु तो है ही च फांसु भी है..
ReplyDeleteबहुत बढियाँ .. ...आगे का इन्तिज़ार
ReplyDeleteधांसू च फ़ांसू गुझिया सम्मेलन्। शिव भाई की गुझिया में मावा पड़ा है कि अभी तक कैमरा और माइक संभाले खड़े हैं। ये पूरे गुझिया सम्मेलन में आलोक पुराणिक जी काहे अनुपस्थित हैं जी, फ़ाइन लगेगा फ़ौरन खबर कर दी जाए, और वो डाक्टर साहब अभी तक क्लिनिक में बैठे हैं क्या, होली के त्यौहार पर पैसा नहीं गुझिया बनाना मांगता है। संदेश भेजा जाए, ढोलक ले कर और अपनी गुझिया ले कर हाजिर हों।…।:)
ReplyDeleteनीरज जी की कविता धांसू है।
क्या कहे मिश्रा जी .अभी तक कुछ समझ नहीं पड़ता है .भांग चडी उतरती नहीं है .अभी दुसरे की गाडी में कब से चाबी लगाने की कोशिश कर रहे थे ..तो किसी ने कहा देखिये आज तो आप गाडी से आये नहीं.....हमें पूरा शक फुरसतिया जी पर है.ऐसा कीजिये दो चार गुंजिया ओर खिला दे...लोहा लोहे को काटता है ..पर हम आये कैसे ??
ReplyDeleteलिहाजा पूरे भारत के चिट्ठाकार जुटे थे.
ReplyDeleteशिव भाई ,
आपका " गुझिया मिलन " बहुत बढिया है और पढकर बहुत खुशी हुई
होली की तैयारी जोरदार चल रही हैँ !! परदेसियोँ की ओर से सारे भारतीय साथियोँ को
हिन्दी ब्लोग जग मेँ ऐसा मज़ा अन्यत्र कहीँ नहीँ आ रहा :)
- लावण्या
बहुत ही मस्त सम्मलेन है जी, हम तो हंसते हंसते पढ़े जा रहे थे, एक एक लाइन कमाल की है, ऐसा सम्मलेन तो आज तक न देखा न सुना...इसको कहते हैं होलियाना, हमारा तो मिजाज बिलकुल जोगीरा सारा रा रा हो गया सुन कर...
ReplyDeleteऔर हमें भी लपेट दिया गुझिया में आपने...आप लोगो के डर से मैंने कविता लिखनी बंद कर दी है, रिसर्च कर के अपना भेजा फ्राय कर रहे हैं. पिछले पोस्टों में कविता लिख कर जो पाप किये थे उनकी सजा कितने होलियों का दी जायेगी बताइए :)
बहुत मज़ा आया जी...अब अगले अंक का जोरो से इंतज़ार है.
ghuzia ki receipe kab daalegae
ReplyDeleteअब इतनी गुझिया बन रही हैं तो मैंने अपना 'गुझिया बनाओ' कार्यक्रम अगले साल के लिए स्थगित कर दिया है। आशा है कुछ (पढ़ें बहुत सारी) गुझिया यहाँ भी भेजी जाएँगी।
ReplyDeleteगुझिया की प्रतीक्षा में,
घुघूती बासूती
गुझिया की इतनी चर्चा- अब तेरा क्या होगा भुझिया:) :) :) :)अरे ओ साम्बा...
ReplyDeleteमेरा ज्वाइण्ट ब्लॉग अब रेसिपी ब्लॉग बनने की राह पर है और मैं कुछ नहीं कर पा रहा! देखता हूं, मैं शकरपारे, मठरी या आलू चिप्स बनाने की रेसिपी पर कोई पोस्ट ठेल सकता हूं कि नहीं! होली के पहले यह सब भी बनाने का अभियान चल रहा है आस पड़ोस में! :)
ReplyDeleteदेखना कोई भंग वाली गुझिया न ठेल दे। बुरा न मानो होली है।
ReplyDeleteबढ़िया गुझिया रंग है यह तो ...बहुत अच्छा लगा :)
ReplyDeleteपिछला गुझिया सम्मलेन तो नही पढ़ पाये थे पर इसे पढ़कर बहुत मजा आया । :)
ReplyDeleteबढ़िया चल रहा है गुझिया सम्मलेन ! :)
मत समझना कि
ReplyDeleteमुझे ज़रुरत है
मैदे के किसी कवर की
उस कवर की
जो आंच बढ़ जाने पर टूट जाता है
उसकी ज़रुरत
गुझिया के मसाले को होती है
मुझे नहीं
लड़की हूँ मैं
" ha ha ah bhut rochak or mjedaar rha gujiya ka rang.."
Regards
"वैसे गुझिया बनाने के साथ-साथ मैंने एक कविता भी लिखी है. सुनिए;"
ReplyDeleteहम इसका क्या अर्थ लगाएं जी। गुझिया बनाना बहुत कठिन काम है या कविता लिखना बहुत आसान? दोनो काम एक ही बराबर हैं तो इसमें किसका सेंसेक्स उछल रहा है और किसको गोता लगाने की नौबत आ गयी है?
बहुत उम्दा लिखा है आपने।
शिव बाबू,सबको लपेट रहे हो गुझिया में....कुछ दिन बुरका पहनकर घूमियेगा,क्योंकि रिटर्न गिफ्ट बड़ा भारी होगा,आसानी से सम्हाल नहीं पाओगे....
ReplyDeleteजब सारे लोग अपनी गुझिया के खोल निकाल,भरावन लेकर तुमपर उलीचने को दौडायेंगे तो...बस राम ही राखें....
वैसे.....तुम्हारे हार्ड डिस्क (दिमाग) की गहन जांच करना चाहती हूँ कि उसमे आखिर क्या फिट है कि एकदम हू-ब- हू नक़ल उतार देते हो होली के रंग और भंग में डूबे होने के बाद भी.