ममता बनर्जी जी ने रेल बजट पेश कर दिया. करना ही था. बजट होता ही है पेश करने के लिए सो उन्होंने कर दिया. बजटीय परंपरा निभाते हुए उन्होंने बजट के साथ-साथ शेर भी पेश किया. शेर था;
रोशनी चाँद से होती है सितारों से 'नेहीं'
मोहब्बत कामयाबी से होती है जुनून से 'नेहीं'
ममता जी शेर से बिलकुल 'नेहीं' डरीं. सीधा उसे पेश कर दिया. वैसे भी अब शेरों से कम ही लोग डरते हैं. ऐसे में ममता जी क्यों डरें?
लेकिन एक बात समझ में नहीं आई. वे तो पश्चिम बंगाल से चुनकर गई हैं. ऐसे में उन्हें गुरुदेव की कोई कविता सुनानी चाहिए थी. गुरुदेव की कविता क्यों नहीं सुनाई उन्होंने? शायद उन्हें गुरुदेव की कविता याद न हो. चलिए माना कि उन्हें गुरुदेव की कविता याद नहीं थी तो उन्होंने नहीं सुनाई लेकिन कवि सुकान्त की ही कविता सुना देतीं.
मैंने अपने एक मित्र से कहा; "और कुछ नहीं तो कवि सुकांत की ही कविता सुना देनी चाहिए थी उन्हें."
मित्र बोले; "अरे तुम्हें मालूम नहीं क्या? कवि सुकांत बुद्धदेव बाबू के चाचा जी थे. ऐसे में ममता जी उनकी कविता क्यों सुनाएं? वैसे भी ममता जी बंगाल के किसी कवि की कविता सुनाती तो लालू जी उनके ऊपर आरोप लगा देते कि वे भारत की रेलमंत्री होकर ऐसे काम कर रही हैं जिसे देखकर लग रहा है कि वे भारत की नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल की रेलमंत्री हैं."
मुझे समझ मे आ गया कि उन्होंने शेर क्यों पेश किया.
लेकिन ऐसा शेर?
इससे बढ़िया शेर तो हमारे मोहल्ले के पप्पू जी सुनाते हैं. ममता जी पप्पू जी से ही शेर लिखवा लेतीं. वैसे भी बजट चाहे वित्तमंत्री पढ़ते हों या रेलमंत्री, वे कविता या शेर जरूर पढ़ते हैं. अपने इस कर्म से बाज तो आयेंगे नहीं. ऐसे में तो उन्हें मंत्रालय के लिए शायर और कवि रिक्रूट कर लेने चाहिए. भाई, अगर आप पुराने कवियों या शायरों की रचनाएँ बजट के साथ नहीं पेश करना चाहते तो कम से कम इतना तो करें कि अपने मंत्रालय में कुछ कवि और शायर रिक्रूट कर लें. संसद और देश इस तरह के शेर सुनने से तो बच जाएगा.
लेकिन जो शेर ममता जी ने पढ़ा उसका मतलब क्या हो सकता है?
अब शेर और कविता का मतलब सबके लिए समान हो तो फिर साहित्यिक झमेले ही न हों. आलोचकों की ज़रुरत ही न पड़े. कविताओं और शेरों के भावार्थ-उद्योग पर ताला लग जाए.
तो पेश है ममता जी के पढ़े गए शेर का मतलब जो अलग-अलग लोगों के लिए बिलकुल अलग-अलग है.
प्रधानमंत्री जी के विचार:
देखो जी, ममता जी ने जो शेर पढ़ा, वो हमारी पिछली सरकार के रवैये को बिलकुल साफ़ करते हुए उसे आगे बढ़ाता है. आपको याद हो तो मैंने अपने एक भाषण में कहा था कि देश के संसाधनों पर माइनोरिटी कम्यूनिटी का हक़ सबसे पहले है. अब आप अगर ममता जी के शेर की पहली लाइन पढेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि चाँद माइनोरिटी में है और तारे मेजोरिटी में. लेकिन रोशनी की बात होती है तो चाँद का ही बोलबाला रहता है. तारे कितने भी हों, वे रोशनी नहीं फैला सकते. जहाँ तक दूसरी लाइन की बात है तो मैं इतना ही कहना चाहूँगा मोहब्बत होनी ही चाहिए. मोहब्बत रहने से कामयाबी मिलती रहेगी. क्योंकि कामयाबी के रास्ते में अगर जुनून आ गया तो हम देखेंगे कि कोई जुनूनी नेता ने सरकार की कामयाबी से जलते हुए सपोर्ट वापस ले लिया. सरकार गिर जायेगी..... चंगा शेर पढ़ा है जी ममता जी ने.
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता
यात्री किराए और माल भाड़े में कोई वृद्धि ही नहीं हुई. हम बहुत निराश हो गए थे. हमें चिंता सताने लगी थी कि हम किस मुद्दे पर विरोध करेंगे? वो तो भला हो ममता जी का जिन्होंने यह शेर पढ़कर हमें उबार लिया. शेर की दोनों लाइन पर हमें आपत्ति है. पहली लाइन पढ़कर हमें गुस्सा आया कि चाँद माइनोरिटी में है लेकिन पूरी रोशनी पर कब्ज़ा किये बैठा है. वहीँ तारे मेजोरिटी में हैं लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं है. उन्हें रोशनी के लिए जिम्मेदार माना ही नहीं जा रहा है. यह किस तरह की सोच है? और दूसरी लाइन पढिये. मोहब्बत कामयाबी से होती है....यह कहकर हमारे ऊपर फब्ती कसी जा रही है कि हम २००४ के चुनावों में कामयाब नहीं हुए इसलिए हमारे सहयोगी दलों ने हमसे मोहब्बत तोड़ ली थी...इस शेर की वजह से हम इस रेल बजट का विरोध करते हैं.
कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता
ममता जी ने जो शेर पढ़ा है उसका भावार्थ यह है कि हमारी पार्टी और उनकी पार्टी मिलकर काम कर रहे हैं. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि उनके शेर की पहली लाइन में लिखा है कि रोशनी चाँद से होती है सितारों से नहीं.......कहने का मतलब यह कि इस गठबंधन में कांग्रेस ही चाँद है. तृणमूल कांग्रेस, पवार जी की कांग्रेस, डी एम के वगैरह सब तारे हैं. मतलब यह कि सरकार जितनी रोशनी बिखेरेगी, वो सारी रोशनी कांग्रेस पार्टी की है. तारे तो ऐं वें ही हैं जी...उनका कोई खास रोल नहीं है. वैसे भी इस शेर को पढ़कर ममता जी ने बता दिया है कि उन्हें समझ में आने लगा है कि चाँद कौन है और सितारे कौन...जहाँ तक दूसरी लाइन की बात है तो उसका अर्थ यह है कि कांग्रेस पार्टी कामयाब है इसलिए समर्थन देने वाली पार्टियों को उससे मोहब्बत है. बी जे पी वाले जुनूनी लोग हैं इसलिए ममता जी को उनसे मोहब्बत नहीं हुई
लालू प्रसाद जी
ममता बनर्जी को रेल के बारे में का मालूम है? उनको का मालूम कि शेर का होता है. ई भी कोई शेर है? पिछला साल जब हम रेल बजट पढ़े थे तो बोले थे कि होल इंडिया कह रहा है चक दे रेलवे....आज कोई नहीं कह रहा है कि चक दे रेलवे...ई शेर पढने से मंत्रालय चलता है?...पढ़ने से नहीं चलता बल्कि पढ़ाने से चलता है...देखा नहीं था का हमको, आई आई एम में पढ़ाने गए थे हम...तब जाकर पांच साल रेल मंत्रालय चला था...का कहा? ई शेर पर हमारा का विचार है...धुत्त...इससे बढ़िया शेर तो हमारा ऊ कवि लिखता है...अरे उहे जो हमारे ऊपर चालीसा लिखा था...का नाम था उसका...हाँ, रतिराम...का बताएँगे इहाँ...बाईटे में शेर का मतलब बता दें?...शेर का मतलब जानना है त स्टूडियो में बुलाओ..ओइसे भी आजकल तुमलोग बोलाता नहीं है...
एक रेलयात्री के विचार
ममता जी ने बढ़िया शेर पढ़ा है. इस शेर को पढ़कर उन्होंने अपनी और अपने सरकार की स्थिति स्पष्ट कर दी है. उनके कहने का मतलब है कि रोशनी चाँद से होती है, इसका मतलब यह है कि रेलवे चाँद की तरह चमके, ऐसा होने का कोई चांस नहीं है. उनके कहने का तात्पर्य है कि रोशनी चाँद से होती है लेकिन चाँद बहुत दूर है. कोई-कोई प्रेमी जैसे प्रेमिका से वादा करता है कि तुम्हारे लिए सितारे तोड़ लाऊँगा वैसे ही ममता जी स्पष्ट कर रही हैं कि सितारे तो ला दूं लेकिन उससे कोई रोशनी नहीं होगी. कोई फायदा नहीं होगा तारे लाने से और चाँद हम ला नहीं सकते. बहुत वजन होता है चाँद का. ऐसे में आपलोग रेलवे के साथ मोहब्बत से रहे. मोहब्बत है तो हमें भी कामयाब समझा जाएगा. गाड़ी-वाड़ी लेट चलने से आपलोग जुनूनी मत हो जाइयेगा......
Saturday, July 4, 2009
काहे नहीं एक शायर रिक्रूट कर लेते?
@mishrashiv I'm reading: काहे नहीं एक शायर रिक्रूट कर लेते?Tweet this (ट्वीट करें)!
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हा हा हा, अब तो ममता हमारी दीदी तो रह नही गई, दादी की उम्र है उनकी, 55+ उम्र में इश्क तो हम तो दूर चाँद से कहेगे दादा बचे रहे शेरनी आ धमकने वाली है।
ReplyDeleteएक शायर रिक्रूट कर लेना चाहिए क्योकि संसद में ये फैशन चल निकला है की भाषण के पहले या बाद में एकाध शायरी ठेलना जरुरी है .
ReplyDeleteबंधू इस पोस्ट के बाद गुरु मान लिया आपको...क्या सोच है...ग़ज़ब...बहुत हंस रहे हैं हम...कमाल किये हैं आप...कमाल. वैसे अगर आपकी बात मान कर कहीं शायर वगैरह रखने का बात चले तो हमरा नाम खिसका दीजियेगा...अब हम आपको खोपोली यात्रा के दौरान कित्ता घुमाये, तो आप बदले में क्या इतना सा भी ख्याल नहीं रखियेगा...रक्खें गे न...गुड.
ReplyDeleteनीरज
शेर को मारिये गोली सर जी ,क्या धाँसू पोस्ट लिखी है -तबियत खुश हो गयी.
ReplyDeleteअरे ई तो खुश खबरी है..अपने इहाँ कतना बीलागर भाई सब ..शेर ले के घूम रहा है....एको गो को उहाँ सेलेक्शन हो गया ता समझिये...की हिंदी बेलाग जगत में एगो और सेलीब्रिटी हो जाएगा..मुदा शेर सब एकदम खांटी ..रोयल बंगाल का हो..काहे से aतभिये न बजटवा से मैच करेगा....बाह बाह मिश्र जी..धनबाद लिया जाए...
ReplyDeleteबजटों का ग्लैमर तो गुजरे दौर की नायिकाओं के ग्लैमर सरीखा है। झुर्रियां साफ नजर आती हैं।
ReplyDeleteशेरों/कविताओं से की गई डेण्टिंग-पेण्टिंग शाम तक टिकती नहीं।
कई साल से देख रहे हैं यह।
अच्छा तो वो दो लाइने शेर ही थी! हम तो दो दिन से ममता "दादी" की दो पांक्तियों को लेकर संशय में थे कि ई तुकबन्दी को का कहें. इससे अच्छे तुक्के तो र-विशकुमार मार लेता है. सेवा काहे नहीं ली?
ReplyDeleteबेकार लाइनों पर जोरदार चिंतन हुआ है. प्रासंगिक होगया शेर....
आखिर बंगाल की शेरनी को भी तो कुछ कहना था, और फिर उर्दू के शेर से निरपेक्षता झलकती है।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा धर्म-निरपेक्ष किस्म का व्यंग्य है, गर निर्विवाद रहे! आमीन!
ReplyDeleteममता दीदी ने तो वाकई कबाड़ा किया था शेर का लेकिन आपने उसके गुढ़ अर्थ निकाल दिये...
ReplyDeleteवैसे जो शेर उन्होंने सुनाया था...उससे एक पल के लिए लगा वो रेल मंत्री नहीं ट्रक मंत्री हैं!
ReplyDeletemain to kahtaa hu train ke aakhiri dibbe ke peeche likhwa dena chahiye ye sher...
ReplyDeletewaise kisi blogger ka kya kahna hai is sher ke baare mein...
ek aur baat neeraj ji ki tarah hamne bhi aapko aaj guru maan liya hai..
आपकी पोस्ट पर शायद पहले नहीं कहा, आज कहता हूँ..सन्नाट!!
ReplyDeleteक्या गजब कल्पनाशीलता है भई..कायक हो गये.
कायक= कायल
ReplyDeleteशेर वो शेर जिस शेर पे हो गुमां
ReplyDeleteशेर जंगल में हुआ करते हैं पार्लिमेंट में कहां:)
आप ने तो शेर की खाल उधेड़ दी।
ReplyDeleteसटीक विश्लेष्ण
ReplyDeleteलालू जी की खिसियाहट देखते बनती है
वीनस केसरी
हमें घोर आपत्ति है : पहले से आपने कुछ भी सुझाव नहीं दिया, और बाद में इतने सुझाव ?
ReplyDeleteअब लकीर पीटते रहिये :)
एक शेर के इतने ढेर सारे अर्थ, शेर न हुआ रावण का सिर हुआ. जितने मुह उतनी बातें. उतने अर्थ.
ReplyDeleteसमीर जी अगर सन्नाट कह रहे हैं तो
हम बम्फाट !! कहेंगे.
मैने वेबसाइट से बजट की फाइल डाउनलोड की । उसके बिन्दु ९ में गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की सुन्दर कविता का उद्धरण है जो कदाचित सदस्यों के शोर करने के कारण नहीं पढ़ी जा सकी ।
ReplyDeleteLaloo jee ne sher padhe the to fir mamta memsaab kaise peeche rahti...
ReplyDeleteभाई आपके सुझाव की हम दाद देतें हैं. मसला गंभीर हैं- और रेकुइर्त्मेन्त इस से भी गंभीर मसला होगा. ---- किस समिति का गठन होगा ? कितने लोग होंगे ? चयन के लिए व्यक्ति विशेष में क्या गुण होना जरूरी है ? चयन रास्ट्रीय स्तर पर होगा या फिर राजकीय स्तर पर? व्यक्ति विशेष के शेर का क्या क्वालिटी है? कहीं उनके शेर पर धर्म- निरपेक्षता तो आडे तो नहीं आ रहा है? रेलवे मंत्रालय या फिर कोई भी मंत्रालय के बजट में पढ़ा गया शेर किस हद तक पब्लिक को अफ्फेक्ट और सरकार को इफेक्ट करता है........... आदि -आदि ? भाई बहुत गंभीर मसला है...........?
ReplyDeleteनजरिया तो कमाल का है. और इस सुझाव से तो रोजगार भी बढेगा. बहुत जरूरी है ये तो.
ReplyDeleteजाकी रही भावना जैसी
ReplyDeleteममता की शायरी देखी तिन तैसी ।
बढिया पोस्ट ।
बहुत अच्छा लेख....बहुत बहुत बधाई....
ReplyDeleteबम्फाट लिखे हैं। :)
ReplyDeleteहा! हा!
ReplyDeleteदिलचस्प !
हा हा हा हा
ReplyDeleteमैं डा मनोज मिश्र से पूर्णतया सहमत हूँ।
kamaal ka lekh laga.
ReplyDeleteममता जी अगर ऐसही शेर मारती रहीं त भारतीय रेल से चल्ना त छोडिये देना पड़ेगा जी. आखिर जो शेर पेश कर सक्ता है, उसका क्या भरोसा कि यात्रियों को भी मारके तश्तरी में परोस के चील कौवों को पेश न कर दे. यह काम लालू जी त खूब करिये चुके हैं. ममतो जी यात्री सुरक्षा पर एक्को पैसा खर्च करने के इरादे में दिखाई नहीं दे रही हैं.
ReplyDeleteबोत अच्छा है - एक शेर और सुनाओ
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