डॉक्टर मैती का पूरा नाम डॉक्टर सत्यरंजन मैती है. मैं जिस बिल्डिंग में रहता हूँ, उसी बिल्डिंग के तीसरे फ्लोर पर उनका एक फ्लैट है. डॉक्टर मैती ने यह फ्लैट साल २००१ में खरीदा था. चूंकि तब वे सरकारी नौकरी में कलकत्ते से बाहर रहते थे इसलिए फ्लैट खाली ही रहता था. कभी-कभी छुट्टियों में वे आते थे और दो-तीन दिन रहते थे और फिर चले जाते थे.
सज्जन व्यक्ति हैं डॉक्टर मैती. कहते हैं कलियुग में सज्जनता कोई नाज करने वाली बात नहीं लेकिन उनकी सज्जनता पर उन्हें और उनकी जान-पहचान के लोगों को पर्याप्त मात्रा में नाज है. मैं शुरू-शुरू में डॉक्टर मैती को सुई-दवाई वाला डॉक्टर समझता था. इस बात से आश्वस्त रहता था कि अगर कभी कोई इमरजेंसी आई, तो डॉक्टर मैती तो हैं ही. मेरे लिए ये गर्व की बात थी कि हमारे बिल्डिंग में एक डॉक्टर भी रहता है.
मेरी यह सोच एक दिन जाती रही. हुआ ऐसा कि एक बार रात को पेट में दर्द शुरू हुआ. संयोग की बात थी कि डॉक्टर मैती उन दिनों छुट्टियों पर आए थे. रात का समय था सो मैंने सोचा कि एक बार उनसे ही कोई दवाई ले लूँ.
मैं उनके पास गया और उनसे बोला; "पेट में बड़ा दर्द है, कोई दवाई दे दीजिये."
मेरी बात सुनकर हँसने लगे. बोले; "आप जो सोच रहे हैं, मैं वो डॉक्टर नहीं हूँ."
उस दिन पहली बार पता चला कि वे तो भूगोल के डॉक्टर हैं. मिदनापुर के एक कालेज में भूगोल पढ़ाते हैं. मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ.
डॉक्टर मैती अब सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके हैं. अब वे पूरी तरह से हमारी बिल्डिंग में रहने आ गए. मुझसे कई बार इनवेस्टमेंट के बारे में सलाह लेते हैं. जब भी उनसे मिलना होता, अपनी सज्जनता की एक-दो कहानी जरूर सुनाते. सज्जनता की तरह-तरह की कहानियाँ. कभी किसी गुंडे से तू तू -मैं मैं की कहानी सुनाते तो कभी इस बात की कहानी कि कैसे उन्होंने कभी किसी की चापलूसी नहीं की. कभी इस बात की परवाह नहीं की, कि उन्हें नुक्सान झेलना पड़ा.
उनकी कहानियाँ सुनते-सुनते लगता है जैसे अभी बोल पड़ेंगे कि; "और मेरे इस व्यवहार के लिए मुझे 'अंतराष्ट्रीय सज्जनता दिवस' पर सज्जनता के सबसे बड़े पुरस्कार से नवाजा गया था."
या फिर; "वो देखो, वो जो जो शोकेस में मेडल रखा है, ख़ुद राज्य के मुख्यमंत्री ने मेरी सज्जनता से प्रसन्न होकर दिया था."
नौकरी से रिटायर होने के बाद डॉक्टर साहब जब हमारी बिल्डिंग में रहने के लिए जब आए उन दिनों कालीपूजा का मौसम चल रहा था. मुहल्ले के क्लब के काली भक्त हर साल पूजा का आयोजन करते हैं. हर साल किसी न किसी के साथ चंदे को लेकर इन भक्तों का झगडा और कभी-कभी मारपीट होती ही है.
संयोग से इस बार झगडे के लिए उन्होंने डॉक्टर मैती को चुना. डॉक्टर मैती ठहरे सज्जन आदमी सो उन्होंने क्लब के इन 'चन्दा-वीर' भक्तों से कोई झगडा नहीं किया. केवल थोड़ी सी कहा-सुनी हुई. इन काली भक्तों से कहा-सुनी करते-करते शायद डॉक्टर साहब को याद आया कि वे तो सज्जन हैं. उन्होंने ये कहते हुए मामला ख़त्म किया कि "देखिये, हम शरीफ लोग हैं. हमें और भी काम हैं. हम क्यों इन गुंडों के मुंह लगें."
यह सब कहते हुए उन्होंने क्लब वालों को उनकी 'डिमान्डानुसार' चन्दा दे डाला. सभी डॉक्टर साहब की सज्जनता से प्रभावित थे. डॉक्टर साहब की सज्जनता की कहानियों में एक और कहानी जुड़ गई.
डॉक्टर साहब को लगा कि चलो साल में एक बार ही तो चंदे का झमेला है. क्या फरक पड़ता है? शायद इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया कि इस तरह के भक्तों का भरोसा केवल एक देवी या देवता पर नहीं होता. बात भी यही है. ये काली-भक्त बहुत बड़े सरस्वती भक्त भी हैं. सो सरस्वती पूजा पर भी माँ सरस्वती के ऊपर एहसान करते हैं.
११ तारीख को सरस्वती पूजा थी. क्लब वाले फिर चन्दा लेने आ धमके. मैं तो छुट्टियों पर बाहर गया था. वापस आकर पता चला कि डॉक्टर साहब इस बार अड़ गए. बोले; "मैं तो अपने हिसाब से चन्दा दूँगा, तुमलोगों को लेना हो तो लो, नहीं तो जाओ. जो तुम्हारे मन में आए, कर लेना. मैं भी तैयार बैठा हूँ. गाली दोगे तो गाली दूँगा, लात चलाओगे तो लात चलाऊंगा. गुंडागर्दी करोगे, तो गुंडागर्दी करूंगा. मेरी भी बहुत जान-पहचान है. पुलिस वालों से भी और गुंडों से भी."
सुना है, क्लब के चन्दा-वीरों को डॉक्टर मैती द्वारा दिए गए चंदे से संतोष करना पड़ा. क्लब के चन्दा-विभाग के सचिव स्वपन से मेरी थोड़ी जान-पहचान है. कल मिल गए थे. मैंने पूछा; "सुना है, डॉक्टर मैती ने तुमलोगों से झमेला कर दिया था. क्या बात हो गई?"
स्वपन ने कहा; "अरे हमलोग तो उन्हें शरीफ और सज्जन इंसान समझते थे. हमें क्या मालूम था कि ऐसे निकलेंगे. खैर, जाने दीजिये, कौन ऐसे आदमी के मुंह लगे. जाने दीजिये, हम लोग शरीफ लोग हैं. हमलोगों को और भी काम हैं...................."
फुटनोट:
यह मौसम कालीपूजा का है. ऐसे में वही हुआ जो होता रहा है. कल चंदा कलेक्टरों ने हमारे मोहल्ले के चन्दन दा से झमेला कर लिया. झेमेला देखकर डॉक्टर मैती बोले; "मैंने तो दो साल पहले बता दिया था इनलोगों को. इनसे जितना डरेंगे ये उतना ही ऊपर चढ़ जायेंगे."
उनकी बात सुनकर मुझे अपनी यह पुरानी पोस्ट याद आ गई सो इसका री-ठेल कर दिया.
Monday, October 12, 2009
डॉक्टर मैती की कथा
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अतिसुन्दर।
ReplyDeleteअच्छा; डाक्टर मैती पूरी सज्जनता (दबंग सज्जनता) के साथ रिटायर्ड लाइफ का एक साल सफलता से काट ले गये।
ReplyDeleteकलकत्ता सचमुच भद्र चन्दा-उगाहू शहर है!
भइया शठे शाठ्यम समाचरेत
ReplyDeleteबचपन मे रामलीला मे एक डायलाग सुना था आप भी पढो
जो जितना मीठा होता है वह अपना नाश कराता है
मीठी बोली के कारण ही तोता पिन्जरे मे जाता है
भूगोल के डाक्टर निकले, ये अच्छा था.
ReplyDeleteवैसे शरीफ लोगों को 'और भी बहुत' काम होते हैं. बात तो सही है. अगर शरीफ लोग हर काम के साथ ये लाइन लगा दें तो फिर... ! नया सवाल बन जाएगा शरीफ लोग करते क्या हैं आजकल?
पूरा संस्मरण अच्छा लगा शिव भाई
ReplyDeleteये भद्र लोक पूजा के बहाने ,
आतंक फैलाते हैं क्यूं ?
मैती बाबू भलो माणूस दीखे :)
स्नेह,
- लावण्या
आप खुशनसीब है जो ऐसे सज्जन लोगो के नजदीक रहते है ....आजकल सज्जन लोग विलुप्त प्रजाति में रजिस्टर्ड है .. ..वैसे आपने कितना चंदा दिया ?हमारे यहां भी एक जागरण है मोहल्ले में .कोई नेट रसीद चले तो ....आपको भिज्वायुं ....चंदे के वास्ते .....
ReplyDeleteई डॉकटर मैती तो केस्टो मुखर्जी के रिश्तेदार लगते हैं....
ReplyDeleteअं..सज्जन मालूम है ना...सज्जन बोले तो अम...और दुर्जन बोले तो अम....दोनो के बीच का बोले तो...एक मिनट...जरा वो बोतल इधर करना....
अंममम..हां अभी थोडा अच्चा लगां...हां मैं कया बोला...आँ ...सुनो....ये सज्जन बोले तो अम....और दुर्जन बोले तो.....
एक मिनट...वो चखना इधर करना तो....
:)
आपकी यह पोस्ट तो काफी रोचक रही।
यह री ठेल तो साल दर साल काली पूजा पर जारी रखो, हमेशा नई लगती रहेगी सज्जनों को भी और गुण्डों को भी. मन को भी अच्छा लगेगा. :)
ReplyDeleteबात तो सिद्धान्ततः सही है । चन्दा और उगाही में अन्तर है ।
ReplyDeleteपढ़ते समय लगा किस्सा जाना पहचाना है. अंत में आपने रीठेल को स्पष्ट भी कर दिया. जैसे को तैसा भी सज्जनता ही है.
ReplyDeleteपोस्ट के शुरु में हम डाक्टर मैती को शरीफ़ समझ बैठे थे। पोस्ट पढ़ने से गलतफ़हमी दूर हो गयी।
ReplyDeleteअरे तो भूगोल के डाक्टर से भूगोल की ही कोई दवाई ले आते..
ReplyDeleteभाई अनूप शुक्ल जी से संपूर्ण सहमति.
ReplyDeleteAchche hain Dr. Maitee, chanda walon ka to hame bhee anubhaw hai. hamamree to Pulis aur gundon se janpehchan nahee thee aur na hee Dr Maitee se to.........................
ReplyDeleteRAM RAM JI.
ReplyDeleteBAHUT BADHIYA KATHA HAI JI.
SAHI HAI AUR TO AUR VEDDE PAPPAJI JO TIMEING KI BAAT KAR REHE THE WO BHI IS RE-THEL ME EKDAM SAHI BAITHI HAI.
BADHAI.
ARE RE GALATI HO GAYA.
ReplyDeleteEE KAMENT TO BALKISHAN KA HAI.
USI KE NAAM SE PADHE.
हमारे भी पड़ोस मे 2-3 डॉक्टर रहते है पता लगाना पड़ेगा इस से पहले कि मुसीबत आये । बहुत अच्छा लगा यह अंतर्कथा पढ़कर ।
ReplyDeleteहमें याद आ गयी थी आपकी ये पोस्ट क्यूँ की हमने इस पर कामेंट किया था और क्या किया था ये भी याद आ गया...हमें अपना किया कमेन्ट हमेशा याद रहता है और उसी के साथ याद रहती है वो पोस्ट जिस पर कमेन्ट किया था...ये हमारी स्मरण शक्ति का कमाल है...अब चूँकि हम इस पोस्ट पर पहले कमेन्ट दे चुके हैं इसलिए ये बताईये की दुबारा क्यूँ दें? क्या कमेन्ट दिया था ये जानने के लिए इस पोस्ट पर दिया हमारा पुराना कमेन्ट पढ़ लीजिये.
ReplyDeleteशेष शुभ है...
नीरज
सज्जन होना गधे होने जैसा है जिसे देखो अपनी दुराज्नता का बोझ लाड देता है आप पे। एक बार आपने सज्जनता छोरी ज़िन्दगी काफी आसान हो जाती है ।
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