Friday, November 27, 2009

जस्टिस तुलाधर कमीशन

जस्टिस लिब्रहान ने अपनी सत्रह साला तहकीकात के बाद रिपोर्ट तो पहले ही दे दी थी लेकिन वही रिपोर्ट अब जाकर लीक हुई है. रिपोर्ट लीक के मामले में लीक करने वाले इसबार चूक से गए लगे. ये लीक भी कोई लीक है? असली लीक तो वह होती कि जस्टिस लिब्रहान अपनी गाड़ी में बैठकर रिपोर्ट कांख में दबाये सरकार को देने जा रहे हों और पहले रेड सिग्नल पर गाड़ी रुकते ही रिपोर्ट लीक हो जाए. वैसे भी अपने देश में कमीशन की धाक का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि उसकी रिपोर्ट लीक हुई या नहीं?

अब तो लोग कहने लगे हैं कि; "ऐसा कमीशन किस काम का जिसकी रिपोर्ट लीक ही न हो?"

जस्टिस लिब्रहान की रिपोर्ट आने के बाद लोगों को इस बात की शिकायत है कि सत्रह साल तक तहकीकात चलाना कहाँ तक जायज है? तमाम लोग यह शिकायत कर रहे हैं. लेकिन अगर आप यह सोचते हैं कि देर करने के मामले में जस्टिस लिब्रहान कमीशन ही सबसे आगे है तो मैं बता दूँ कि आपकी सोच गलत है. देर करने के मामले में जस्टिस तुलाधर ने जस्टिस लिब्रहान का रिकार्ड बनते ही तोड़ दिया.

आप यह सोच रहे होंगे कि जस्टिस तुलाधर कौन ठहरे? पहले तो नाम नहीं सुना कभी?

तो मेरा जवाब यह है कि आपने नाम नहीं सुना तो क्या जस्टिस तुलाधर को कमीशन प्रिसाइड करने का अधिकार नहीं है? न जाने कितने टायर्ड और रिटायर्ड जस्टिस हैं जिनकी अध्यक्षता में कोई न कोई कमीशन चल रहा ही है. आपने नाम नहीं सुना तो इससे उनका क्या दोष? वैसे भी जस्टिस समाज में रिटायर्ड जस्टिस की धाक का अंदाजा इस बात से चलता वे कोई कमीशन की अध्यक्षता कर रहे हैं या नहीं?

चलिए अब भूमिका को ख़त्म करते हुए आपको बता ही देता हूँ कि जस्टिस तुलाधर कमीशन बैठाया गया था १९६४ में. साल १९६३ में जो सूखा पड़ा था, उसके कारण, उसके प्रभाव और भविष्य में ऐसे सूखे के निवारण के लिए जस्टिस तुलाधर को छान-बीन के लिए एक कमीशन थमा दिया गया था. जस्टिस तुलाधर ने काम शुरू किया. लेकिन उनकी मानें तो; "सूखे का मुद्दा इतना पेंचीदा और महत्वपूर्ण मुद्दा था कि इसके लिए समग्र तहकीकात की ज़रुरत थी."

इस समग्र तहकीकात की ज़रुरत ऐसी थी कि कमीशन को कुल अठहत्तर बार एक्सटेंशन मिला. चौदह बार सरकार की तरफ से और चौसठ बार जस्टिस तुलाधर ने ही एक्सटेंशन कर लिया. मज़े की बात यह कि आख़िरी बार उन्होंने सन १९९८ में एक्सटेंशन लिया था. उसके बाद भी तहकीकात को समग्र होने में ग्यारह साल लग गए. अपनी रिपोर्ट पूरी करके जब जस्टिस तुलाधर कृषि मंत्रालय पहुंचे, या कह सकते हैं कि ले जाए गए, तो पता चला कि इस कमीशन से रिलेटेड फाइल सन १९८२ में ही कबाड़ी के हत्थे चढ़ चुकी थी. शायद वह फाइल री-साइकिल होकर किसी और कमीशन के पेपर रखने के काम आती होगी.

अपने कमीशन से सम्बंधित फाइल के बारे में जानकार जस्टिस तुलाधर इतने दुखी हुए कि उन्होंने २५ नवम्बर २००९ के दिन अपनी रिपोर्ट लीक करवा दी. आप यह मत पूछियेगा कि मुझे रिपोर्ट कहाँ मिली?

क्या कहा आपने? आप जानते हैं कि मैं नहीं बताऊंगा. वाह! यह भी जानते हैं कि मैंने (ब्लॉगर) पद और गोपनीयता की शपथ ली है. इसे कहते हैं ब्लॉगर की गति ब्लॉगर जाने.

खैर, बताने की ज़रुरत नहीं कि रिपोर्ट बहुत बड़ी है. रिपोर्ट की विशालता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि जस्टिस तुलाधर को कमीशन की अध्यक्षता के लिए कुल बावन करोड़ सत्रह लाख चौसठ हज़ार पांच सौ छब्बीस रूपये बीस पैसे फीस के रूप में मिले. मैं कोशिश करूंगा कि रिपोर्ट के कुछ हिस्से अपने ब्लाग पर पब्लिश करूं.

कोशिश यह भी रहेगी कि जल्दी ही पब्लिश करूं.

Thursday, November 26, 2009

जस्टिस तुलाधर की रिपोर्ट लीक


जस्टिस तुलाधर की रिपोर्ट लीक हो गयी है। इस बार विवरण इण्डियन एक्स्प्रेस में नहीं, इस ब्लॉग पर प्रस्तुत करेंगे पण्डित शिवकुमार मिश्र।

आप कल तक धीरज रखें। हो सके तो टिप्पणी दे कर पण्डित शिवकुमार मिश्र को प्रेरित करें जल्दी पोस्ट करने को। टिप्पणी में उनके स्वास्थ्य लाभ के लिये शुभकामनायें ठेलना न भूलें!