सुरेश कलमाडी को हम सब जानते हैं. न जाने कितने वर्षों से वे भारतीय एथेलेटिक्स और भारतीय ओलंपिक संघ की गाड़ी हांक रहे हैं. भारत में एथेलेटिक्स और ओलंपिक की बात होती है तो एक ही चेहरा आँख के सामने घूम जाता है और वो है सुरेश कलमाडी जी का. ठीक वैसे ही जैसे पहले भारतीय क्रिकेट की बात होने पर एक ही चेहरा आँख के सामने घूमता था और वो था जगमोहन डालमिया जी का. अब उस चेहरे को ललित मोदी के चेहरे ने रिप्लेस कर दिया है.
वैसे भारतीय क्रिकेट की बात होने पर बीच-बीच में सचिन तेंदुलकर का चेहरा भी आँख के सामने घूम जाता है. लेकिन एथेलेटिक और ओलंपिक की बात पर किसी पी टी ऊषा या फिर किसी मिल्खा सिंह का चेहरा आँख के आगे नहीं घूमता. मुझे तो लगता है कि कभी-कभी खुद मिल्खा सिंह भी मन में सोचते हुए लाउडली बात करते होंगे कि; "जब से होश संभाला, कलमाडी को सामने पाया."
कलमाडी साहब हैं कि उन्हें देखकर लगता है जैसे वे ओलंपिक और एथेलेटिक्स अमरत्व को प्राप्त कर गए हैं.
अब आपको एक राज की बात बताता हूँ. कल मेरी नज़र अचानक युवराज दुर्योधन की डायरी के पेज ९०३ पर पड़ गई. लिखा था;
"आज गुरु द्रोणाचार्य, पितामह और चचा विदुर के विरोध के बावजूद मामाश्री और पिताश्री ने सुरेश कलमाडी को एक बार फिर से भारतीय ओलंपिक संघ का अध्यक्ष बना दिया. सुरेश कलमाडी पिछले दस सालों से इस पद पर जमे हुए हैं. भारतीय ओलंपिक संघ की स्थापना दस साल पहले ऋषि भृगु के कहने पर हुई जिन्होंने एक दिन अपने कमंडल के पानी में भविष्य दर्शन करके बताया था ग्रीस में करीब तीन हज़ार साल बाद ओलंपिक के खेल शुरू होंगे इसलिए खेल-कूद में महान महाराज भरत के योगदान को याद रखते हुए भारतीय ओलंपिक संघ की स्थापना अभी कर देनी चाहिए."
युवराज दुर्योधन की डायरी का पेज ९०३ के अंश पढ़कर मुझे अचानक एक घटना याद आ गई. पिछले साल कोलकाता के इंडियन म्यूजियम से एक विदेशी एजेंट कुछ न्यूजपेपर कटिंग्स के साथ गिरफ्तार हुआ था. पूछताछ से पता चला था कि न्यूजपेपर कटिंग्स की चोरी करके वह क्रिष्टीज के एक ऑक्शन में बेचने का प्लान बनाकर आया था.
आप पढ़ना चाहेंगे कि ये न्यूजपेपर कटिंग्स में क्या लिखा हुआ था? तो पढिये.
लेकिन मुझसे यह मत पूछिए कि ये कटिंग्स मुझे कहाँ से मिलीं? मैंने (ब्लॉगर)पद और गोपनीयता की कसम खाई है इसलिए मैं नहीं बताऊंगा. आप अलग-अलग तारीख की न्यूजपेपर कटिंग्स पढ़िये.
काशी, ईसा पूर्व तारीख २० अक्टूबर, २३९
हमारे खेल संवाददाता द्बारा
आज सारनाथ में एक रंगारंग कार्यक्रम में सम्राट अशोक ने एक बार फिर सुरेश कलमाडी को भारतीय ओलंपिक संघ का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. ज्ञात हो कि सुरेश कलमाडी को पहली बार महाराज धृतराष्ट्र ने भारतीय ओलंपिक संघ का अध्यक्ष बनाया था. सुरेश कलमाडी तब से इस पद पर जमे हुए हैं. अपनी नियुक्ति पर प्रसन्न होते हुए श्री कलमाडी ने सम्राट अशोक को धन्यवाद दिया और एक बार फिर से विश्वास दिलाया कि वे पहले भी राष्ट्र के लिए समर्पित थे और आगे भी समर्पित रहेंगे..........
दिल्ली, तारीख ७ अक्टूबर, १२०८
आज बादशाह कुतुबुद्दीन ऐबक ने एक बार फिर से सुरेश कलमाडी को भारतीय ओलंपिक संघ का अध्यक्ष बना दिया. बसद रसूल ने श्री कलमाडी के एक बार फिर अध्यक्ष बनाने पर अपना विरोध यह कहते हुए दर्ज करवाया कि श्री कलमाडी पिछले चार हज़ार से ज्यादा सालों से इस पद पर जमे हुए हैं. उनके इस विरोध को बादशाह ने ज्यादा तवज्जो नहीं दिया. बादशाह का मानना है कि श्री कलमाडी जैसा प्रशासक इतना काबिल है कि वह दस हज़ार सालों तक इस पद पर बने रहने लायक है..................
दिल्ली ९ सितम्बर, १६०४
आज बादशाह अकबर द्बारा आयोजित एक कार्यक्रम में श्री सुरेश कलमाडी को एक बार फिर से भारतीय ओलंपिक संघ का अध्यक्ष चुन लिया गया. इस मौके पर राजा बीरबल ने कुल इक्कीस चुटकुले सुनाये. अबुदुर्रहीम खानखाना ने अपने ताजे दोहे पेश किये जिनमें श्री कलमाडी के भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष के रूप में दिए गए उनके योगदान की सराहना की गई है. श्री कलमाडी ने भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष के रूप में अपनी प्रतिबद्धता को एक बार फिर से दोहराया......................
ज्ञात हो कि ऐसा वे लगभग पैंतालीस सौ सालों से करते आ रहे हैं.
दिल्ली १६ सितम्बर, १८४६
आज दरबार में आयोजित एक समारोह में जहाँपनाह बहादुर शाह ज़फर ने सुरेश कलमाडी को एक बार फिर से भारतीय ओलंपिक संघ का अध्यक्ष बना दिया. श्री कलमाडी ने जहाँपनाह को धन्यवाद देते हुए आभार प्रकट किया. इस मौके पर जनाब मिर्जा असदुल्लाह बेग खान 'गालिब' ने जनाब कलमाडी की शान में एक शेर भी कहा. शेर कुछ यूं था;
तुम जियो हजारों साल
साल के दिन हों पचास हज़ार
श्री कलमाडी ने मिर्जा गालिब को धन्यवाद देते हुए भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष के रूप में किये गए आपने कार्यों का लेखा-जोखा पेश किया. लेखा-जोखा देखने के बाद एक बार फिर से साबित हो गया कि इस पद के लिए उनसे काबिल और कोई न तो पहले था और न ही होगा....
दिल्ली, १३ जून, १९४७
आज लार्ड माउंटबेटन ने अंतिम नियुक्ति करते हुए श्री सुरेश कलमाडी को भारतीय ओलंपिक संघ का अध्यक्ष बना दिया. श्री कलमाडी अपनी इस नियुक्ति पर बहुत खुश हुए. कुछ खेल पत्रकारों के बीच ऐसी अफवाह है कि क्वीन विक्टोरिया ने १८९० में ही ब्रिटिश गवर्नर को यह आदेश दिया था कि भारत को स्वतंत्र करने से पहले वे भावी भारतीय शासकों से यह वचन ले लें कि श्री कलमाडी को कभी भी उनके पद से हटाया नहीं जाएगा. सुनने में आया है कि प्रधानमंत्री श्री नेहरु यह बात मान गए हैं.
और अब आज की न्यूजपेपर रिपोर्ट..
नई दिल्ली, तारीख २० अक्टूबर, २००९
राष्ट्रमंडल खेल महासंघ (सीजीएफ) और आयोजन समिति के बीच राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों को लेकर चरम पर पहुंच गए गतिरोध को तोड़ने की कोशिशों में लगे खेलमंत्री एमएस गिल ने आयोजन समिति के प्रमुख सुरेश कलमाडी से मंगलवार को मुलाकात करके विवादास्पद मुद्दों पर लंबी बातचीत की।
कलमाडी मंगलवार की सुबह गिल के घर पहुंचे और उन्हें इन खेलों की तैयारियों की मौजूदा स्थिति तथा सीजीएफ और आयोजन समिति के बीच उठे विवाद के बारे में जानकारी दी। गिल ने कलमाडी से मुलाकात के बाद कहा ‘मेरी आज उनसे मुलाकात हुई और हम दोनों ने सभी मुद्दों पर विस्तापूर्वक बातचीत की। मैं जल्दी ही सीजीएफ के अध्यक्ष माइक फेनेल से............
नोट: यह एक पुरानी पोस्ट है जो पिछले साल अक्टूबर में लिखी गई है. आज एक बार फिर से इसलिए पब्लिश किया है क्योंकि इसे मेरी अगली पोस्ट के 'कर्टेन रेजर' के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है:-)
Thursday, August 12, 2010
ओलिम्पिक और एथेलेटिक अमरत्व
@mishrashiv I'm reading: ओलिम्पिक और एथेलेटिक अमरत्वTweet this (ट्वीट करें)!
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दुर्योधन की डायरी,
राजनीति
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हज़ारों साल से इन्साँ इन्साँ को खेल खिलाता है
ReplyDeleteहज़ारों साल से कोई मसीहा बन के आता है
जो यह खेल ना जाने वह तो अनाडी है
मसीहा तो खिलाड़ी है, कलमाड़ी है ||
- kamesh
वो कब न था, कब न होगा?
ReplyDeleteऔर कौन, कलमाड़ी....
इस विकट अनुभवी युगरत्न को रतन टाटा अपना उत्तराधिकारी बना नहीं सकते इसलिए दुसरे कमतर विकल्प की तलाश में है.
अमर चरित्रों में दो मालुम थे - अश्वत्थामा और कृपाचार्य। यह नहीं जानता था कि कलमादाचार्य भी हैं!
ReplyDeleteमेरा सामान्य ज्ञान दुरुस्त करने के लिये आपको धन्यवाद। :)
वर्तमान शासकीय बेतरतीबी की बखिया उधेड़ता व्यंग्य !!!
ReplyDeleteसमय हो तो अवश्य पढ़ें
शमा-ए-हरम हो या दिया सोमनाथ का http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2010/08/blog-post.html
गुरुदेव इतनी उम्दा पोस्ट पर कमेण्ट करने की औकात नहीं है मेरी… :) :)
ReplyDeleteपहले हँसी रोक लूं, फ़िर कमेण्ट के बारे में सोचेंगे… :)
कालजयी पोस्ट...ठीक काल को जीत चुके कलमाडी जी की तरह...
ReplyDeleteइस व्यग्य में पौराणिक कथा-प्रतीकों का सार्थक और सशक्त प्रयोग किया गया है।
ReplyDeletethis one is extra brilliant and special, as compared to lots of other posts by you - and it reflects a lot of hard work too! Keep up the good job!
ReplyDeleteमुझे लगता है कलमाड़ी अँकल युगे युगे वाली नस्ल के हैं.....तभी तो चिरकालीन दाढ़ीयुक्त हैं जबकि ज्यादातर के तो अभी मुँछे तक नहीं उग पाई हैं ऐसे में युगे युगे वाले इस उगे उगे को माउंट 'बेटनात्मक' सलाम :)
ReplyDeleteशानदार पोस्ट।
लिखने में भी शर्म महसूस कर रहा हूं, ठीक वही कमेंट सोचा था जो ज्ञानदत्त साहब ने लिखा है।
ReplyDeleteपर्दा उठने का इंतज़ार है, शिव भैया।
jis tarah se ise har kaal khand ke saath jodaa hai aapne use dekhte hue to is post ko mai adbhut kahna pasand karunga, bhale hi yaha drishhya nahi hai sirf paaathan hi hai.
ReplyDeleteekdam hi mast, jiske liye aap jaane jaate hain blog jagat par, thik vaisi hi post.
इतना महान योगदान है तो पद का नाम बदल कर 'कलमाडी मन्त्री' कर दिया जाये। कन्नड़ में माडी का अर्थ करने से होता है। इन अर्थों में आपके शोध का ऐतिहासिक साक्ष्य भी है। जो कल भी कर रहा था और जो कल भी करेगा, सः कलमाडी। क्या? यह तो शब्द नहीं बताता है।
ReplyDeleteadbhut varnan....
ReplyDeleteमेरे खयाल से सीबीआई दुर्योधन की डायरी को एक महत्वपूर्ण दस्तावेज की तरह प्रयोग कर सकती है और पुरातत्ववेत्ता कलमाडी को!;-)
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