टैलेंट का बांध टूट गया सा प्रतीत होता है. अगर ऐसा नहीं भी है तो यह ज़रूर कहा जा सकता है कि पूरे देश में टैलेंट की नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है. जब भी टीवी देखता हूँ, लगता है जैसे टैलेंट टीवी स्क्रीन फोड़कर बाहर निकलने के लिए बेताब है. बाज़ार में आने-जाने वालों पर नज़र पड़ती है तो फट से मन में बात आती हैं कि इस लड़के को या इस लड़की को शायद किसी टैलेंट शो में या रीयलिटी शो में देखा है?
हाल यह है कि किसी नए व्यक्ति से मुलाकात होती है तो लगता है कि अरे इन्हें तो शायद सिंगिंग कम्पीटीशन में देखा था. ज़ी करता है कि लगे हाथ पूछ ही डालूं कि; "भाई साहब आपको देखकर लगता है जैसे पहले भी कहीं देखा है. क्या आप वही हैं जो सा रे ग मा पा के सेमीफाइनल में पहुँच गए थे?"
क्या करूं? वैसे भी अब टैलेंट नाचने-गाने वाले कार्यक्रमों से आगे बढ़ गया है. अब तो रोज नए तरह के टैलेंट की खोज शुरू हो चुकी है.
एक प्रोग्राम देखा. नाम है गर्ल्स नाइट आउट - फटेगी.
अद्भुत नाम है. इस प्रोग्राम में तीन टैलेंटेड लड़कियाँ एक रात किसी ऐसी जगह पर बिताती हैं जहाँ भूत-प्रेत रहते हैं. भूत-प्रेतों के बीच रात भर रहती हैं. उनकी बातें सुनती हैं. डरती हैं. रोती हैं. और फिर अगले स्टेज में पहुँच जाती हैं. मन में आया कि ये लड़कियाँ कभी मिलें तो पूछ लूँ कि; "बहन ज़ी, भारत अब केवल कच्चे मकानों का देश नहीं रहा. अब हमारे शहरों में चालीस-चालीस करोड़ के फ़्लैट बनने लगे हैं. मुकेश अम्बानी ने अपना मकान चार हज़ार करोड़ खर्च करके बनवाया है. रीयल-इस्टेट के मामले में हम इतना आगे बढ़ चुके हैं कि हमारे देश में रीयल इस्टेट बबल पहले ही एक बार फूट चुका है. इतना सब होने बावजूद आप जंगल में भूतों और चुड़ैलों के साथ रात गुजरना चाहती हैं? मैं कहता हूँ अगर आपको डुप्लेक्स पसंद न हो तो ट्रिप्लेक्स में रह लो लेकिन भूतों के बीच? यह बात समझ नहीं आई. घरों और फ्लैटों की इतनी सुविधा के बावजूद अपना घर-बार छोड़कर भूतों के बीच क्यों रहना?"
तमाम शो हैं जहाँ कंटेस्टेंट दांत के नीचे रस्सी दबाकर भरी बसें खींच ले रहे हैं. देखकर अजीब लगता है. मन में आता है कि आधा लीटर डीजल का करीब बीस-इक्कीस रुपया लगता है. आधा लीटर डीजल से बस उससे भी ज्यादा दूर तक चली जायेगी जितनी दूर तक आप दांत से खींच लेते हैं. दूसरी बात यह है कि अपने देश में डीजल से बस चलाने पर न ही इन्डियन पीनल कोड में और न ही क्रिमिनल प्रोसीजर कोड में मनाही है. फिर ये इक्कीस रुपया बचाने के लिए काहे इक्कीस दाँतों को खतरे में डालना?
जो लोग़ रस्सी से बालों को बांधकर भरी बस खींच रहे हैं उनसे मेरा सवाल है कि "हे भाई साहब ज़ी लोग़ और हे बहन ज़ी लोग़, बाल बहुत कीमती होते हैं. जिनके पास नहीं है उनसे पूछो कि कितने कीमती होते हैं? और आप हैं कि आधा लीटर डीजल बचाने के लिए बालों के बलिदान पर उतारू हैं? क्यों?"
कहीं किसी प्रोग्राम में बाइक चलाने वाले जाबांज टाइप लोग तरह-तरह के करतब दिखा रहे हैं. कहीं बाइक को केवल एक पहिये पर चला रहे हैं तो कहीं उसे उठाकर उफान पर बह रही नदी क्रॉस कर रहे हैं. मजे की बात यह की नदी के पास से ही सड़क गुजरती है और उसी नदी पर पुल भी है.
मैं कहता हूँ;"हे जांबाजों जब बाइक में दो पहिये हैं और आपने दो पहियों की कीमत दे करके बाइक खरीदी है तो फिर क्या ज़रुरत है एक पहिये पर चलाने की? कहीं आप एक पहिये पर बाइक चलाकर टायर को घिसने से तो नहीं बचाना चाहते? और फिर क्या ज़रुरत है बाइक उठाकर नदी पार करने की? आप जहाँ से नदी पार कर रहे हैं वहां तो ट्रैफिक कांस्टेबल भी नहीं खड़ा है जो आपका चालान काटने पर अड़ा हो.काहे अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं?"
कई प्रोग्राम्स में देखा कि अचानक देश के तमाम कोनों में कुछ ऐसे लोग़ उभरे हैं जो आँखों पर पट्टी बांधकर हाथ में तलवार लेकर स्टेज पर आते हैं और सामने लेटे व्यक्ति के अगल-बगल या फिर हाथों में रखे सब्जियों को जैसे खीरा, लौकी, बैंगन इत्यादि को काट डालते हैं. न जाने कितनी बार मैंने देखा. कई टन सब्जियां ये लोग़ काटकर बर्बाद कर दे रहे हैं. ऊपर से जितनी सब्जियां ये लोग़ परफार्मेंस में बर्बाद करते हैं उससे कहीं ज्यादा रिहर्सल में करते होंगे.
मैं कहता हूँ कि भाई ज़ी लोग़, अपने कल्चर में अभी तक किचेन वाले चाकू से खीरा, बैंगन और लौकी वगैरह काटते हैं. वो भी खुली आँखों से. ऊपर से केद्रीय कृषि और खाद्यान्न आपूर्ति मंत्रालय ने ऐसा कोई कानून नहीं बनाया जिसके तहत आँखों पर पट्टी बांधकर तलवार से सब्जियां नहीं काटने पर सजा का प्रावधान है. फिर क्या ज़रुरत है आँखों पर पट्टी बांधकर तलवार से सब्जियां काटने की?
ऊपर से मुझे तो लगता है कि पिछले दो-ढाई वर्षों में देश में सब्जियों की जो कीमतें बढ़ी हैं, उसके पीछे इन्ही लोगों का हाथ है. टनों सब्जियां टैलेंट दिखाने के चक्कर में बर्बाद हो जाती होंगी. पता नहीं क्यों सरकार का ध्यान इस बात पर नहीं जा रहा है? इन्फ्लेशन रोकने के लिए सरकार इंटेरेस्ट रेट्स बढ़ाने के अलावा कुछ जानती ही नहीं. मैं कहता हूँ कि मंहगाई रोकने के लिए बने ज़ी ओ एम ने अपना काम ठीक से किया होता तो पहले इन टैलेंटेड लोगों को तलवार चलाकर सब्जियां बरबाद करने से रोकता.
वैसे मेरा मानना है कि अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है. जस्टिस लिब्रहान की अध्यक्षता में एक कमीशन बना देना चाहिए जो इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट दे. भले ही दस साल लग जाएँ.
अब समय आ गया है कि सरकार कुछ न कुछ करे. समय रहते अगर कुछ नहीं किया गया तो टैलेंट की इस बाढ़ में देश की लुटिया डूब जायेगी. ऊपर से अगर सारा टैलेंट सब्जी काटने, बस खीचने और भूत-प्रेतों के बीच रहने चला जाएगा तो फिर देश के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा. कहाँ मिलेंगे हमें डॉक्टर? इंजिनियर? आईएएस अफसर? और तो और कहाँ मिलेंगे हमें नेता? सोचिये अगर टैलेंट के इस उफान को नहीं रोका गया तो देश न सिर्फ नेता विहीन हो जाएगा बल्कि साथ ही साथ देश के घोटाला विहीन हो जाने का चांस रहेगा.
सोचिये कि बिना नेता और उनके घोटालों के देश कैसा लगेगा?
Monday, October 25, 2010
टैलेंट की नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है
@mishrashiv I'm reading: टैलेंट की नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैTweet this (ट्वीट करें)!
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जब इतना टैलेंट झेले नहीं झिलता है टीवी में तो हम भी अपने सोने के टैलेंट का उपयोग करने लगते हैं। कोई रियलटी शो है उसका भी?
ReplyDeleteआप भी रुलाके छोड़ेंगे. ऐसी दिलतोड़क बात कर के. दानव नेता राखिये, बिन नेता सब सून. नेता हमारी राष्ट्रीय सम्पत्ति,विपत्ति, आपत्ति, अनापत्ति सब कुछ हैं.
ReplyDeleteहा हा. आधा लीटर डीजल की खातिर :)
ReplyDeleteटैलेंट के बाढ़ का ये साइड इफैक्ट बड़ा खतरनाक है. दूरगामी परिणाम दिखा दिये आपने तो. हमीन बिन टैलेंट ठीक हैं देश का कुछ डुबाया तो नहीं कम से कम. :) (इस्माइली लगाने की जगह लिखने का मन कर रहा है इसी बात पर एक और इस्माइली.)
टेलेंट भी ऐसा कि कई टेलेंटेड लोगो को जज के सामने दादागीरी से कहने सुना है कि उनमें टेलेंट कुट कुट भरा है. इस टेलेंट को न पहचानने वाले जज अ-टेलेंटेड है. यानी सिरफिरे प्रतियोगी भी सच बोल जाते है :)
ReplyDeleteबड़ी टेलेंटेड पोस्ट है.... एलदम लबालब टाइप.. :)
कित्ता तो अच्छा लिखा है.. आप बहुत टैलेंटेड है..
ReplyDeleteटैलेंट तो आपकी पोस्ट से भी खूब छलक रहा है। लेकिन हमें यह बहुत अच्छा लग रहा है इसलिए कोई शिकायत नहीं करेंगे। बल्कि जितना हो सके इसे बाहर आ जाने दीजिए।
ReplyDeleteमजेदार...!
हाय! आपमें इत्ती टैलेण्ट है कि उसके बोझ तले साइडबार में मेरी फोटू कित्ती छोटी हो गयी। :)
ReplyDeleteMain sehmat nahi hu sir. TV par wahi dikhate hai jo aam logo ke bas ki baat nahi hai.Issi liye log inhe dekhte bhi hai.
ReplyDeleteAgar wo log padh likh ke saksham hone walo me se rehte to TV pe aane k liye naa hi bhooton ke bich rehte na hi ek pahiye pe gadi chalate.
Bhala karo k inke maa baap inki padhai pe zor nahi daal rahe warna hume kaise doctor, engineer aur neta milte iska andaza aap laga sakte hai. :P
talented blogger ho ji aap to
ReplyDeleteisey dekh key lagta hai key ab neta log bhi talent show key dwara hi chuney jayenge.
ReplyDeleteसमसामयिक बातों को अपने ब्लॉग पर ठेल देने का आपमें गजब का टेलेंट है। नदी का क्या आपमें तो टेलेंट का सागर लहराता है।
ReplyDeleteसोचिये कि बिना नेता और उनके घोटालों के देश कैसा लगेगा?
ReplyDeleteसोचना क्या है सीधा सा जवाब है...जैसे साजन बिना सुहागन...
नीरज