आज पढ़िए युवराज दुर्योधन की डायरी का वह पेज जिसमे उन्होंने अपनी किड-सिस्टर दुशाला ज़ी के जन्मदिन मनाने के बारे में लिखा है. न न, यह मत कहियेगा कि जन्मदिन मनाने की प्रथा पश्चिम के देशों से आई है. कुछ पश्चिम से नहीं आया. सब यहीं था और हजारों वर्षों से यहीं था:-)
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आज राजमहल में एक बार फिर से ख़ुशी का माहौल है. राजमहल बना ही है ख़ुशी के लिए. मुझे तो कभी-कभी लगता है कि राजमहल न हो तो ख़ुशी कहीं दिखाई ही न दे. जब ख़ुशी नामक अनुभूति की खोज की गई होगी साथ-साथ राजमहल का निर्माण भी कर दिया गया होगा ताकि ख़ुशी बड़ी जगह पर जाकर बैठ सके.
वैसे आज की ख़ुशी किसी पार्टी की वजह से नहीं है. दरअसल आज दुशाला का जन्मदिन है. आज वह बहुत खुश थी. साथ में हम भाई लोग भी. देखा जाय तो हमें खुश होने के अलावा काम ही क्या है? हमारे लिए तो खुश दिखना अपने आप में बहुत बड़ा काम है. एक बात जरूर है. जन्मदिन की खुशी बाकी सभी खुशियों से अलग होती है. शादी-व्याह पर उतनी खुशी नहीं होती जितनी जन्मदिन पर होती है. शादी-व्याह पर भी खुशी होती ही है लेकिन रूपये-पैसे खर्च होने की वजह से कुछ-कुछ सैडनेश अपने आप क्रीप-इन कर जाती है. वहीँ जन्मदिन की खुशी में किसी सैडनेश की मिलावट का चांस बिल्कुल नहीं रहता. और दुशाला के जन्मदिन पर तो बिलकुल ही नहीं. आख़िर उसके जन्मदिन पर भारी मात्रा में रुपया-पैसा वसूल कर लिया जाता है. ऐसे में सैडनेश दिखाई भी देती है तो उनके चेहरों पर जिनसे वसूली की जाती है.
मुझे याद है जब पहली बार दुशाला ने सार्वजनिक तौर पर अपना जन्मदिवस मनाया था. उसने उसे 'स्वाभिमान दिवस' के रूप नाम दिया था. अपने जन्मदिवस को स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाने का लॉजिक भी बड़ा मजेदार दिया था उसने. वह चाहती थी कि उसके जन्मदिन पर वह और पूरा खानदान इतना अभिमान करे कि उसे देखकर द्रौपदी जल-भुन जाए. उसका कहना था कि द्रौपदी का अपना कोई स्वाभिमान तो बचा नहीं था ऐसे में दुशाला के जन्मदिन को स्वाभिमान दिवस के रूप में मनाने से द्रौपदी का जल-भुन जाना पक्का था.
पिछले तीन महीने से तैयारियां चल रही थीं. द्वार बनाये गए. पोस्टर छपाए गए. निमंत्रण पत्र छापे गए. तरह-तरह की कलाओं से हस्तिनापुर को सजाया गया. बाहर के राज्यों से कारीगरों और हलवाइयों की टोलियाँ आयीं. प्रजा के लोगों की संख्या देखते हुए बहुत बड़ी जगह चाहिए थी. यह तो अच्छा हुआ कि दुशासन के सुझाव पर नगर के बीचों-बीच एक चिल्ड्रेन पार्क पर कब्जा कर लिया गया नहीं तो बड़ी तकलीफ हो जाती. जितने गेस्ट आये थे उन्हें तो खड़े होने की जगह ही नहीं मिलती. वैसे भी सौ भाइयों की दुलारी बहन के लिए जितना भी किया जाता कम ही होता.
दुशाला की इच्छा है कि वह इसी चिल्ड्रेन पार्क में प्रजा के बीच अपने जन्मदिवस पर खीर खाने का शुभ कार्य करे. वैसे भी मेरा मानना है कि केवल खीर खाने का क्यों, उसे तो कुछ भी खाने का अधिकार है. सुयोधन की बहन चाहे तो हम उसे पूरा हस्तिनापुर खाने के लिए दे दें. सौ भाईयों की एक बहन होना साधारण बात तो नहीं.
और हम भाई ऐसा करें भी न क्यों? दुशाला का जन्मदिवस अच्छे दिन और अच्छे पैसे लेकर आता है. तरह-तरह की सौगात. तरह-तरह के गिफ्ट. कहीं कोई मोतियों का हार ले आता है तो कहीं कोई मुद्रा का. फूलों और मुद्रा के हार इतने वजनी कि बिना चार-पाँच लोगों के हाथ लगाए उठते भी नहीं. हमने भी तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ते. तैयारियों के तहत सबसे पहले राज्य के व्यापारियों से पैसा वसूला गया. बाद में व्यापरियों से टैक्स के रूप में पैसा वसूलने वाले सेल्स टैक्स अफसरों से पैसे की वसूली कर ली गई है. सड़क निर्माण के लिए काम करने वाले अभियंताओं से पैसा खींचा गया है. मामाश्री ने सुझाव दिया था कि मदिरा के ठेकेदारों से वसूल की जाने वाली रकम इसबार बढ़ा दी जाए. उनके सुझाव की वजह से इसबार भारी मात्रा में वसूली की गई है. आने-जाने वाले वाहनों से वसूली करने का काम तो वैसे भी जन्मदिवस के एक महीने बाद तक चलता ही रहेगा.
मुझे याद है. पहली बार जब दुशाला द्बारा सार्वजनिक तौर पर जन्मदिवस मनाया गया था, उस वर्ष भी मामाश्री के कहने पर दुशासन और जयद्रथ ने पैसा वसूली का महत्वपूर्ण कार्य किया था. वो तो बाद में कर अधिकारियों ने दुशाला से उसके जन्मदिवस के उपलक्ष में वसूल किए गए पैसों का हिसाब मांगकर थोड़ा लफड़ा खड़ा करने की कोशिश की थी लेकिन मामाश्री ने साबित कर दिया कि ज़बरन वसूली की कोई घटना नहीं हुई थी. ये तो प्रजा के लोगों ने प्यार से अपनी राजकुमारी को धन भेंट किया था.
प्रजा द्बारा धन भेंट करने की वजह से ही उसके बाद हमलोग उसका जन्मदिवस आर्थिक सहयोग दिवस के रूप में मनाते हैं. मुझे याद है, दुशासन ने हँसते हुए कहा था कि आर्थिक सहयोग दिवस के रूप में जन्मदिवस मनाने से प्रजा के बीच संदेश जाता है कि अगर वो आर्थिक सहयोग में हिस्सा नहीं लेगी तो दुशासन प्रजा के ख़िलाफ़ असहयोग पर उतर आएगा. और अगर ऐसा हो गया तो फिर प्रजा को सहयोग देने वाला कोई दिखाई नहीं देगा.
दुशाला के जन्मदिवस के उपलक्ष में जब मैंने उसे उपहार स्वरुप कुछ देने की मंशा जताई तो उसने कहा कि अगर मैं कुछ देना ही चाहता हूँ तो उसी जगह पर दुशाला की प्रतिमा स्थापित करवा दूँ जहाँ पिताश्री की प्रतिमा है. मैंने उसे वचन दिया है कि मैं अलग से वसूली का कार्यक्रम चलाकर नगर के बीचों-बीच किसी पार्क में दुशाला की प्रतिमा स्थापित करवाऊंगा.
परसों ही कपड़े का एक व्यापारी जन्मदिवस के उपलक्ष में दुशाला के लिए एक नया ड्रेस देकर गया है. इसबार वो बिल्कुल नए तरह का ड्रेस पहनना चाहती थी. उसे किसी इमेज डेवेलपमेंट एजेन्सी ने बताया है कि प्रजा के बीच अपनी इमेज को और लोकप्रिय बनने के लिए उसे नए तरह के कपड़े पहनने की ज़रूरत है.
अज शाम को जन्मदिवस के उपलक्ष में वह इक्कीस सौ लोगों को कम्बल बांटना चाहती है. हँसते हुए बता रही थी कि कम्बल बांटने जैसा महत्वपूर्ण राजकीय कार्य अगर जन्मदिवस पर किया जाय तो इसके दूरगामी परिणाम देखने को मिलते हैं. दुशासन ने किसी व्यापारी की दूकान से कल शाम को ही कम्बल उठवा लिया था.
जन्मदिवस की ये बहार ऐसे ही चलती रही. जन्मदिवस ऐसा ही मनाया जाता रहे. प्रजा ऐसे ही धन भेंट करती रहे. और क्या चाहिए...?
Saturday, January 15, 2011
दुर्योधन की डायरी - पेज २३१६
@mishrashiv I'm reading: दुर्योधन की डायरी - पेज २३१६Tweet this (ट्वीट करें)!
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दुर्योधन की डायरी
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बहुत रोचक और सरल अंदाज़ में लिखा यह लेख पसंद आया।
ReplyDeleteयह सहयोग-असहयोग वाला खण्ड बड़ा ही मारक बन पड़ा है.
ReplyDeleteशेष तो जैसी प्रजा वैसे राजा, जितना जैसे चाहे प्रेम से चुसे....निचौड़े...कोई काल हो... क्या फर्क पड़ता है?
दुशाला की प्रथा आज भी जीवित है, धन एकत्रीकरण की मात्रा बढ़ गयी है बस।
ReplyDeleteye to bari aitihasik such se apne ru-baru karaya iske liye....sukrya
ReplyDeleteyse agar is dairy ke kuch panne mil jate to 'birodhi' ko bantkar kuch nawa-patta hum bhi khare kar lete...
garib pe raham ki jaye bhaijee...
pranam.
मनोकामना पूरी हो..
ReplyDelete`यह मत कहियेगा कि जन्मदिन मनाने की प्रथा पश्चिम के देशों से आई है. '
ReplyDeleteहां जी, हमारे संत-ज्ञानी यही तो कहते हैं कि पश्चिम तो असभ्य था जब यहां सभ्यता फल-फूल रही थी। उस समय भी दुशाला ओडा कर दुशाला का बर्थडे मनाया गया था :)
दुशाला की माया!
ReplyDeleteअब दुशाला को दुर्योधन - जयद्रथ की दरकार नही! :)
शायद इस डायरी के कुछ पन्ने छूट गये हैं शाम को पढती हूँ। दुशाला की मया या मायावती का दुशाला जो भरता ही नही पोस्ट पडः कर मायावती क्यों याद आयी मुझे? रोचक पोस्ट के लिये बधाई।
ReplyDeleteदुर्योधन की बहनजी का जन्मदिन तब भी ऐसे ही मनता था. कमाल है ! कुछ नहीं बदला :)
ReplyDeleteशादी-व्याह पर भी खुशी होती ही है लेकिन रूपये-पैसे खर्च होने की वजह से कुछ-कुछ सैडनेश अपने आप क्रीप-इन कर जाती है LOL बहुत बढ़िया
ReplyDeleteज्ञान भैया के शब्द में शब्द मिलाना चाहूंगी..
ReplyDeleteआज की दुशालाओं को दुर्योधन और दुशाषणों की आवश्यकता नहीं...वह अकेले सब कुछ निपटा लेने, सम्हाल लेने में सक्षम है ...आज तो असंख्य असंख्य दुर्योधन दुशाशन प्रतिभाशाली सशक्त दुशालाओं के सेवक हैं...
डायरी के ये पन्ने पन्ना कालजयी हैं ....कभी पुराने नहीं पड़ेंगे.....
हैपी बर्थडे दुशाला जी...बार बार दिन ये आये बार बार दिल ये गाये तुम जियो हजारों साल ये मेरी है आरज़ू...हैपी बरडे दुशाल जी...ओहो ओहो..
ReplyDeleteनीरज
आज चाहे स्वाभिमान दिवस हो चाहे आर्थिक-सहयोग दिवस, दुशाला जी का जन्मदिन मगर-संग-क्रांति के अवसर पर दूरगामी परिणाम ला सकता है :-)
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