
नई दिल्ली से चंदू चौरसिया, मुंबई से निर्भय सावंत और बैंगलुरू से रजत चिनप्पा
आज एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फेडरेशन ऑफ इंडियन चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) को आदेश दिया कि वह एक जांच करके बताये कि केंद्र सरकार, उसके मंत्रियों और प्रधानमंत्री के लिए मैजिक वैंड देश में ही कैसे उपलब्ध कराया जा सकता है. ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री और उनके कई मत्रियों ने मैजिक वैंड उपलब्ध न होने के कारण पिछले ढाई वर्षों में कई बार समस्याओं को सुलझाने में असमर्थता जताई थी. अभी तीन दिन पहले ही स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से बोलते हुए प्रधानमंत्री ने असमर्थता जताते हुए अपने भाषण में कहा था; "भ्रष्टाचार मिटाने के लिए हमारे हाथ में कोई मैजिक वैंड नहीं है."
करीब दो महीने पहले सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर करते हुए अखिल भारतीय सरकार सताओ आन्दोलन के प्रमुख श्री अशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि न्यायालय सी बी आई को आदेश दे कर सरकार और उसके मंत्रियों के खोये हुए मैजिक बैंड को बरामद करवाए. कालांतर में सी बी आई ने एक जांच कर के सुप्रीम कोर्ट को दिए गए अपने हलफनामे में यह खुलासा किया सरकार या उसके किसी भी मंत्री के पास कभी कोई मैजिक वैंड था ही नहीं. दरअसल सरकार और उसके मंत्री चाहते हैं कि या तो देश में ही मैजिक वैंड का उत्पादन शुरू हो या फिर उसे विकसित देशों से आयात करके उन्हें मंत्रियों को उपलब्ध करवाया जाय. सी बी आई के इस हलफनामे के बाद मैजिक वैंड को लेकर देशवासियों में व्याप्त कई तरह के भ्रम ख़त्म हो गए.
यहाँ पर यह बता देना उचित है कि देशवासियों में यह भ्रम था कि सरकार और उसके मंत्रियों के मैजिक वैंड चोरों ने चुरा लिए हैं जिसके कारण मंत्रीगण समस्याएं नहीं सुलझा पा रहे हैं.
ज्ञात हो कि पिछले ढाई वर्षों में वित्तमंत्री, कृषिमंत्री, गृहमंत्री, रक्षामंत्री वगैरह ने कई बार कहा कि उनके पास कोई मैजिक वैंड नहीं है जिससे देश की समस्याओं को सुलझाया जा सके. जहाँ वित्तमंत्री ने मंहगाई को रोक पाने में असमर्थता जताते हुए मैजिक वैंड की अनुपलब्धता की बात बताई वहीँ गृहमंत्री ने आतंकवाद की रोकथाम न कर पाने का श्रेय मैजिक वैंड की अनुपलब्धता को दिया. उधर हाथ में मैजिक वैंड न होने के कारण कृषिमंत्री हर बार चीनी, प्याज, सब्जी, तेल वगैरह के दाम को कंट्रोल नहीं कर पाए.
मैजिक वैंड के बल पर शासन करने की बात नई नहीं है लेकिन इस तरह के सभी शासक हमेशा केवल किस्से-कहानियों में पाए जाते रहे हैं. पुराने किस्से-कहानियों के जादूगर वगैरह मैजिक वैंड के बल पर लोगों के ऊपर शासन करते हुए बरामद होते रहे हैं. लेकिन पाँच साल पहले इटली के समाजशास्त्री, लेखक और विचारक श्री मैजिकानो वैडलोई ने गवरनेंस बाइ मैजिक वैंड नामक किताब लिखकर शासन के इस तरीके को एक बार फिर से विश्व के राजनीतिक पटल पर ला खड़ा किया. वर्तमान भारतीय सरकार श्री वैंडलोई के इस सिद्धांत से इतना प्रभावित हुई कि उसे हर समस्या का समाधान मैजिक वैंड में ही नज़र आने लगा. यह बात अलग है कि देश में अभी तक मैजिक वैंड का न तो उत्पादन शुरू हुआ और न ही इसके आयात के लिए रास्ता खोला गया.
उधर आज दिल्ली में अखिल भारतीय निज-भाषा उन्नति समिति के अध्यक्ष श्री रामप्रवेश शुक्ला ने सरकार और उसके मंत्रियों की यह कहते हुए आलोचना की है कि मंत्रीगण अपनी भाषा पूरी तरह से भूल गए हैं जिसके चलते वे देश के विशाल जनमानस से कट चुके हैं. श्री शुक्ला ने अपने आरोप को सही ठहराते हुए बताया कि सरकार और उसके मंत्रियों को मैजिक वैंड न कहकर जादुई छड़ी कहना चाहिए. मंत्रियों के ऐसा न करने की वजह से हिंदी रसातल में चली जा रही है. श्री शुक्ला ने राष्ट्रपति को एक ज्ञापन देते हुए आग्रह किया कि सरकार के मंत्री अब से केवल और केवल जादुई छड़ी की बात करें.
उधर आज बैंगलुरू में डिफेन्स रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) की तरफ से दायर हलफनामे में संस्थान ने मैजिक वैंड का उत्पादन करने में असमर्थता जताई है. ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने अखिल भारतीय सरकार सताओ आन्दोलन द्वारा दायर जनहित याचिका के बाद डी आर डी ओ से हलफनामा माँगा था कि संसथान मैजिक वैंड के उत्पादन के तरीके पर विचार करके एक रिपोर्ट फाइल करे. संस्थान ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा है कि; "यह संस्थान ऐसी कोई चीज के उत्पादन के बारे में विचार नहीं करेगा जिसके साथ मैजिक जुडा हो. संस्थान और उसमें काम करने वाले वैज्ञानिकों को मैजिक में कोई विश्वास नहीं है. संस्थान ने कसम खाई है कि वह केवल और केवल वैज्ञानिक दृष्टि से प्रमाणिक चीजों का ही उत्पादन करेगा."
डी आर डी ओ के इस हलफनामे के बाद सुप्रीम कोर्ट के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था. यही कारण है कि मैजिक वैंड के उत्पादन या आयात के बारे में अध्ययन और रिपोर्ट का काम उसने फिक्की को सौंप दिया है.
मैजिक वैंड के बारे में प्रधानमंत्री और उनेक मंत्रियों द्वारा पिछले ढाई वर्षों से लगातार बात करने की वजह से पूरे देश के सरकारी विभाग और उनके कर्मचारी जाग गए हैं और उन्होंने मांग रखी है कि उन्हें भी मैजिक वैंड उपलब्ध करवाया जाय जिससे वे अपने-अपने विभागों की समस्याओं का समाधान कर सके. यही कारण है कि पिछले पंद्रह दिनों से, शिक्षा, रक्षा, रेल, खेल, ट्रांसपोर्ट, एयरपोर्ट, डी डी ए, पी डब्ल्यू डी, सेल्स टैक्स, इनकम टैक्स, नगर पालिका, और ऐसे ही तमाम विभागों के कर्मचारियों ने सरकार के सामने मांग रखी है कि सरकार जल्द से जल्द उन्हें मैजिक वैंड उपलब्ध करवाए जिससे पूरे भारत को एक बार फिर से सोने की चिड़िया बनाकर उसे लूट लिया जाय.
सरकारी कर्मचारियों द्वारा इतनी बड़ी संख्या में मांग रखने के कारण देश के प्रमुख औद्योगिक घराने हरकत में आ गए हैं. कई औद्योगिक घराने मैजिक वैंड के उत्पादन पर विचार करने लगे हैं. अलायंस उद्योग समूह के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की एक मीटिंग में कल फैसला लिया गया कि भारी मात्रा में मैजिक वैंड की डिमांड को देखते हुए कंपनी जल्द ही उसके उत्पादन के क्षेत्र में उतारेगी. सूत्रों के अनुसार कुछ भारतीय उद्योग समूहों ने मैजिक वैंड के क्षेत्र में निवेश करने के लिए मॉरिसश के रास्ते देश में पैसे लाने का इंतज़ाम शुरू कर दिया है. बाहर के कुछ निवेशक समूह इस बात पर कयास लगा रहे हैं कि इस क्षेत्र में सरकार कितने प्रतिशत एफ डी आई पर राजी होगी. भारतीय उद्योग समूहों के अलावा कुछ विदेशी निवेशकों ने भी मैजिक वैंड के उत्पादन में निवेश की घोषणा की है. प्रसिद्द निवेशन श्री वारेन बफेट ने कल बताया कि उनका समूह भारतीय मैजिक वैंड क्षेत्र में पहले चारण में करीब सात करोड़ डॉलर इन्वेस्ट करेगा.
सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद देश के लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई है. आल इंडिया कॉमन-मेन एशोसियेशन के अध्यक्ष श्री प्रशांत अभ्यंकर ने कल मुंबई में एक संवाददाता सम्मलेन को संबोधित करते हुए कहा; "इस देश के नागरिकों का अब केवल सुप्रीम कोर्ट पर ही विश्वास रह गया है. हमें विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट के इस कदम की वजह से देश में जल्द ही मैजिक वैंड का उत्पादन शुरू हो जाएगा. देश की सारी समस्याएं छू-मंतर हो जायेंगी और भारत पूरे विश्व में एक इकॉनोमिक सुपर पॉवर बनकर उभरेगा."