बहुत दिन बाद कल रतिराम जी की दूकान से पान मंगवाया. पान खाना तो मैंने छोड़ दिया है लेकिन हमारे एक मित्र मिलने आये तो मैंने सोचा कि उनके लिए मंगवा लेते हैं. उनके लिए आएगा तो मेरे खाने का भी बहाना बन जाएगा. कुछ खाने के लिए बहाना बनाने का काम हम केवल पान के केस में करते हैं. मिठाई के केस में ऐसी बात नहीं होती. मिठाई न खाने की अभी तक वजह भी नहीं बनी है. लिहाजा उसके लिए बहाने बनाने की जरूरत नहीं रहती. मेरा ऐसा मानना है कि मिठाई खाना सहज मानव स्वाभाव है और ऐसा करते हुए मनुष्य सहजता के चरम पर रहता है.
ऑफिस से राजू को पान लाने के लिए भेजा गया. पान देते हुए रतिराम जी ने उससे पूछा; "है अफिसे में?"
वो बोला; "हाँ, इसीलिए तो पान लाने भेजे हैं. नहीं तो मैं थोड़ी न पान खाता हूँ."
रतिराम जी बोले; "ई बताने का जरूरत हैं का? आ तुम खाते हो कि नहीं, हमसे का लेना-देना? जेतना पूछे हैं ओतना का जबाब देने में का जान निकलता है? कहीं अईसा त नहीं कि बात को तान के बड़ा करने का काम तुम भी करने लगे हो? ऊ करते हैं त ओनका सोहाता है. ऊ ब्लाग लिखते हैं. बाकी तुम काहे कर रहे हो?"
राजू बोला; "नहीं मेरे कहने का मतलब वह नहीं था."
रतिराम बोले; "मतलब त हमको भी बुझाता है. बुझाता है कि तुम भी ओनका तरह ही बात को खीचने का प्रैक्टिस शुरू कर दिए हो. हमको देखकर तुमको एही न बुझाता है कि हमको खाली कत्था घिसने आता है? त सुनो बाबू, एही रतिराम जी चूना भी घिसते हैं. हमरा एगो सलाह मानो, आ सुनो. ई सब काम के चक्कर में मत पड़ो. पता चला ब्लाग लिखने लगे औउर कौनो काम के न रहे."
इस अचानक हुए हमले की उम्मीद राजू को नहीं रही होगी. वे हड़बड़ाकर कर बोला; "नहीं-नहीं, हम तो अपने काम से काम रखते हैं. "
रतिराम बोले; "सही करते हो. बाकी अपना काम से काम छोड़कर ब्लाग-फ्लाग लिखने-फिखने के चक्कर में पड़ोगे त कौनो काम के नहीं रहोगे. अच्छा सुनो, आ मिसरा जी कहना कि हम दुपहरे आयेंगे. हमरा एगो काम है."
राजू ने राजू-रतिराम संवाद का वर्णन कर डाला.
कुछ देर तक मैंने यह अनुमान लगाने की कोशिश की कि रतिराम जी हमसे क्यों मिलना चाहते हैं? एक बार मन में आया कि जब आयेंगे तो पता चल ही जाएगा इसलिए इस बात को छोड़ दिया जाय. फिर मन में यह आया कि छोडें क्यों? वैसे भी अगर अपने पास समय है तो फिर अनुमान लगाने में कोताही काहे बरती जाय? ऊपर से दोपहर का लंच करने के बाद मुँह में पान भी पड़ गया है. मुँह में पान रहता है तब सोचने के लिए एकाग्रता का निर्माणकार्य बड़ा ईजी रहता है. ऐसे में अनुमान नहीं लगाना माने कर्त्तव्य से मुँह मोड़ लेना होगा. आज की तारीख में अनुमान लगाने से मनोरंजक कोई काम नहीं है. यह पेड़ लगाने से सहल है और किसी को काम पर लगाने से बहुत सहल. यही कारण है कि दुनियाँ में अनुमानों की संख्या बढ़ती जा रही है और पेड़ की संख्या घटती जा रही है. काम करने वालों की संख्या और भी घटती जा रही है.
यह सब सोचते हुए मैं शुरू हो गया. एक बार के लिए सोचा कि बेटे की पढ़ाई के बारे में कुछ होगा? मैं बस सोचता जा रहा था. इस सोच को तब विराम मिला जब यह याद आया कि उनका बेटा तो आजकल मोटरसाइकिल चलाने की प्रैक्टिस करता है. पिछले साल वह डांस रिअलिटी शो में जाना चाहता था. अब उसने उस विचार का त्याग दिया है और अब वह रोडीज में जाना चाहता है. उस सोच को विराम मिला तो यह सोच मन में उभरी कि रतिराम जी के दिमाग में कहीं दूसरा बिजनेस शुरू करने की बात फिर से तो नहीं हलचल मचा रही? यह भी सोचा कि शायद यह पूछने आ रहे हों कि कहीं चाय-पान दूकान पर भी तो सर्विस टैक्स लागू नहीं हो गया? या फिर ऐसा तो नहीं कि रतिराम जी शेयर में इन्वेस्ट करना चाहते हैं? अनुमान और लगते लेकिन तब तक एक फ़ोन आ गया. पिछले कई वर्षों में अनुमान लगाने के रास्ते में फोन सबसे बड़ा रोड़ा बनकर उभरा है.
खैर, मैंने फोन रिसीव किया. पता चला आज चैताली ने नहीं बल्कि नेहा ने फोन किया था. उसने मुझे बताया कि मैं उनकी बैंक का एक क्रेडिट कार्ड होल्ड करता हूँ. मैंने यह बात कबूल कर ली. इसके बाद नेहा जी ने सूचना दी कि चूंकि मैं एक क्रेडिट कार्ड होल्ड करता हूँ इसलिए बैंक ने मुझे एक ऐसा लोन देने का फैसला किया है जिसके लिए मुझे कोई डोकुमेंट देने की ज़रुरत नहीं है. लोन पचास हज़ार से डेढ़ लाख तक मिल सकता है. और वह भी बहुत ही नॉमिनल इंटेरेस्ट रेट पर. मैंने रोज की तरह उन्हें बताया कि मुझे लोन मंज़ूर नहीं है. उन्होंने मुझे थैंक्स कहते हुए फोन काट दिया. मैंने भी फोन काट दिया. इस आशा के साथ कि कल निहारिका जी फोन करके फिर बतायेंगी कि "सर, आप मेरे बैंक का एक क्रेडिट कार्ड होल्ड करते हैं." मैं कहूँगा; "हाँ." और वे मुझे बैंक द्वारा लोन दिए जाने का फैसला सुनाएंगी और मैं उस लोन को डिक्लाइन कर दूंगा.
इस आशा के साथ कि नेहा जी फिर दो दिन बाद फोन करेंगी.
यह सब चल ही रहा था कि पता चला रतिराम जी आफिस में प्रवेश कर चुके हैं. वे आये. वे बैठे. वे वापस नहीं गए.
मैंने पूछा; "कैसा चल रहा है धंधा?"
वे बोले; "ओइसे ही जईसा चलता है. हमरे धंधा में में कौनो कमी नहीं है. चाह पीयो और पान खाओ. एही से देश है."
मैंने कहा; "अब तो चाय भी राष्ट्रीय ड्रिंक बन गई है."
वे बोले; 'का आप भी मजाक करते हैं? ई सब सरकारी चिरकुटई है. आ सरकार उसको राष्ट्रीय ड्रिंक बनाये आ चाहे अंतर्राष्ट्रीय, चाह तो चाह ही रहेगी."
मैंने कहा; "और क्या हाल है? आपका फेसबुक पेज कैसा चल रहा है? उसको बनाने के बाद पान की बिक्री बढ़ी कि नहीं?"
वे बोले; "आ उसको त ऐसेही बना दिए थे. ऊ सब तो मौज का बात है. बाकी ई फेसबुक और ट्विटरवा दुन्नो का ओही काम है जो चाह-पान का है. पब्लिच्क को बिझाये रखने का साधन है ई सब."
मैंने कहा; "नहीं ऐसी बात नहीं है. अब तो सोशल मीडिया पावरफुल हो गया है. इसको इस्तेमाल करके अब तमाम लोगों के ऊपर प्रेशर बना रहे हैं लोग़?"
वे बोले; "आ देखिये मिसिर बाबा, के किसको इस्तेमाल कर रहा है ई के जानता है? आ आप सोच रहे हैं कि पब्लिक सब इसको इस्तेमाल कर रहा है. हमरा नजरिया तनि अलग है इसपर?"
मैंने कहा; "मतलब?"
वे बोले; "आ आज से दस साल बाद ई भी त पता चल सकता है कि पब्लिक सब सोशल मीडिया का नहीं बल्कि सोशल मीडिया पब्लिक सब का इस्तेमाल कर रहा था. आ मिसिर बाबा, हमरा मन में बहुत बार ई आता है कि ई सब देकर पब्लिक को बिझा दिया गया है. पब्लिक सब बिझी रहेगी त सड़क पर नहीं आएगी. आलसी बना दे रहा है सब मिलकर आपलोगों को. अच्छा आप ही एक बात बोलिए? आपको लगता है कि ई सब चोचला पहिले होता त का इतिहास का बड़ा-बड़ा क्रान्ति सब होता? सोचिये कैसा सीन मिलता देखने को? फ्रांस का ही क्रांति ले लीजिये. उधर फ्रांस का रानी कहती कि पब्लिक के पास रोटी नहीं है त ई सब केक काहे नहीं खाता? आ इधर ट्विटर वाला पब्लिक सब रनिया का मजाक उड़ा देता. हजारों ट्वीट निकलता आ उसके से लाखों रि-ट्वीट. मामला ओही रफा-दफा हो जाता. उधर राजा देखता कि ट्विटर पर हज़ार लोग़ बिरोध कर रहा है त ऊ भी अपना पईसा-ओईसा खर्च करके अपना हज़ार ट्वीट करने वाला को बईठा देता. दुन्नो तरफ का ट्वीटर सब सिर-फुटव्वौल करता रहता औउर रजवा अपना राज."
मैंने कहा; "नहीं मेरा मानना है कि तब भी क्रांति ट्विटर से होती."
मेरी बात सुनकर रतिराम मुस्कुरा दिए. बोले; "आप भी बहुत भोले हैं. बाकी आपका गलती नहीं है. आपका जईसे ट्विटरवा पर खीच-पिच करने वाला सब एही सोचता है. देख नहीं रहे राष्ट्रपती जी ने ज़मीन लौटा दिया त कईसा जशन मना रहा है सब? आ हमको लगता है कि बात दुसरा है. ऊ आपलोग कहते हैं न कि वार जीतने के लिए ऊ का कहते हैं...देखिये याद नहीं आ रहा है. हाँ, वार जीतने के लिए कभी-कभी बैटिल हारना पड़ता है. त ई एही बात है. खैर जाने दीजिये. ई सब त चलता ही रहेगा. हम जो काम से आये हैं ऊ सुनिए."
मैंने कहा; "हाँ बोलिए, क्या काम है?"
वे बोले; "हम सोच रहे थे एक ठो टेक्सी निकलवा लें. थोड़ा पईसा हम जुटाए हैं. थोड़ा बैंक से लोन ले लेंगे. आपका अगर हमरा पेपरवर्क करवा देते बड़ा किरपा रहता. हमरा कहने का मतलब ऊ बाबाजी वाला किरपा नहीं चाहिए हमको."
मुझे हँसी आ गई. वे बोले; "हंसिये मत. आ ई बोल के हम किलीयर कर दिए हैं कि हम किरपा के बदले दसबंद नहीं देंगे आपको."
मैंने इंतजाम कर दिया है. रतिराम जी की टैक्सी जल्द ही निकल जायेगी सड़क पर.
Monday, April 30, 2012
हम किरपा के बदले दसबंद नहीं देंगे आपको..
@mishrashiv I'm reading: हम किरपा के बदले दसबंद नहीं देंगे आपको..Tweet this (ट्वीट करें)!
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पब्लिक सब सोशल मीडिया का नहीं बल्कि सोशल मीडिया पब्लिक सब का इस्तेमाल कर रहा था.
ReplyDeleteये बात त हम बहुत दिन से सोच रहे हैं। एकाध से कहे भी हैं। अच्छा लगा कि रतिराम जी अपनी विचारधारा के हैं।
इसके अलावा शुरुआत का रतिराम-राजू संवाद चकाचक है। जानदार शानदार च!
आज से दस साल बाद ई भी त पता चल सकता है कि पब्लिक सब सोशल मीडिया का नहीं बल्कि सोशल मीडिया पब्लिक सब का इस्तेमाल कर रहा था.
ReplyDeleteअरे, मेरा तो सीएफएल बल्ब इसी से जल गया!
बढिया व्यंग्य।
ReplyDeleteओहो...अब रति राम जी की टैक्सियाँ चला करेंगी...याने पान टैक्सी से सप्लाई होगा...जयपुर में अनु नाम के शख्स ने मारुती वैन में पान की दूकान खोली थी जो आर्डर मिलने पर उसे मारुती से सप्लाई किया करता था...उसका नाम ही पड़ गया अनु मोबाइल पान भण्डार...वैसे ही रतिराम मोबाइल पान भण्डार कलकत्ता में चल निकलेगा...गज़ब...आप बहुत लपेट लपेट कर मार लगाते हैं लोगों को...बिचारे पिटते भी हैं और उफ़ भी नहीं कर पाते...अद्भुत लेखन...
ReplyDeleteनीरज
रतिराम के विचारों में सुधार की गंध आती है।
ReplyDeleteरोचक व्यंग्य!
ReplyDeleteरतिराम जी जीनियस हैं...जहाँ तक लिखत पढ़त वालों की कल्पना भी नहीं जाती ,वहां की सिटी स्कैन रतिराम जी अपनी पान की दूकान में बैठे बैठे कर लेते हैं...
ReplyDeleteapan bhi gaye rahe......nir-mal babaji ke pass....kahne lage subhah savere 'das-vande' tipnni do to bhole-bhandari 'shiv' post ki varsha
ReplyDeletekarenge......aur, aap to jante hi hain.....ke, hum hindustani khas-kar
'hinddipatti' wale bawa-saba ke "bhai binu hoi na prit".....ke andaz me
bhakti karte hain......
bakiya rati-ramji ke kya kahne.....bajariye aapke hum unke bare wale phankhe hote ja rahe hain.....
dadda ka 'cfl' nuksan kya ab nir-mal baba karenge...
pranam.
mast likha hai ..social-media wale points kafi interesting hai
ReplyDeleteरतिराम मोबाइल पान चाय जॉइंट । बढिया विचार है । आपको भी तो ब्लॉग का मसाला मिल ही गया ।
ReplyDelete:) टैक्सी कैसा चल रहा है रतिराम जी का. उससे रिलेटेड पोस्ट भी आनी चाहिए एक :)
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