Wednesday, October 12, 2016

हुआ सर्जिकल...




हुआ सर्जिकल
मिला हमें बल
भौंके नेता
उन्हें नहीं कल
सैनिक मरता
रक्षा करता
पर लीडर जो
पॉकेट भरता
जब भी बोले
शबद न तोले
राष्ट्र-वायु में
बस विष घोले
मुँह की बोली
गन की गोली
जिसने दाग़ी
उसकी हो ली
उधर है पप्पू
इधर है लप्पू
रेत का दरिया
चलता चप्पू
कथन नाव है
इक चुनाव है
उठता क़ुरता
दिखा ताव है
हरिशचंद्र है
बुद्धि मंद है
इक मीरजाफ़र
इक जयचंद है
टीवी चैनल
बड़का पैनल
बातें बहती
खुला ज्ञान-नल
इनका दावा
उनका लावा
एक दारा तो
एक रंधावा
अजब चाल है
बस बवाल है
सच्चाई की
खिंचे खाल है
रक्त-दलाली
उसने पा ली
मुझे चांस कब?
कॉफ़र ख़ाली
फ़िल्म धुरी है
ओम पुरी है
उधर फ़वाद तो
इधर उरी है
पाक़ी ऐक्टर
नारी या नर
साथी सच के
अल्ला से डर
हे नर जोहर
अति तो न कर
यह भारत ही
है तेरा घर
बीइंग ह्यूमन
खोल गया मन
किधर खड़ा है
देखें जन-जन
बी सी सी आइ
बिग ऐपल पाइ
मेरा हिस्सा;
मुझको दे भाइ
तुम हो फेकर
मैं हूँ चेकर
मैं जज भी हूँ
मैं ही क्रिकेटर
पुस्तक बल है
भारी छल है
डूबी औरत
गहरा जल है
सारे हैं नत
सबकुछ शरियत
जेंडर वाइस
मर्द हैं एकमत
धर्म बड़ा है
शेख अड़ा है
जो लोटा है
कहे; घड़ा है
यही जाप सब
घुले ताप सब
मिटे धरा के
आज पाप सब
इस नौ राता
दुर्गा माता
जोड़ें सबका
बुद्धि से नाता


Saturday, September 10, 2016

ट्विटर चरित्र

सेलेब, नेता,
औ अभिनेता,
बाक़ी जनता
सबकी क्षमता
ट्वीट बजायें
अपनी गायें
पानी आग
सब में राग
अजब प्रोफ़ाइल
मीटर माइल
टू-इन-वन है
भारी फन है
नर मादा है
कम ज़्यादा है
ट्रेंडवीर हैं
पर अधीर है
पालक-बालक
पार्टी चालक
हैशटैग है
कैशबैग है
म्यूट ब्लॉक है
अजब क्लॉक है
आउटरेजित
हरदम ब्लेज़ित
बहस रेल की
और खेल की
आपटार्ड की
राशनकार्ड की
यहाँ बिहारी
वहाँ पहाड़ी
इधर का रिक्शा
उधर की गाड़ी
फ़ोटोशॉपर
ज़रा नहीं डर
लिंकित मन है
क्विंटल टन है
पानी-दाना
हाँ हाँ ना ना
इल्लॉजिक है
पर ब्लू-टिक है
सेक्युलर कम्यूनल
मिले नहीं कल
बहते हैं नल
गहरा दलदल
भारी डेटा
बेटी-बेटा
सीएम पीएम
मेसेज डीएम
कर एक्स्पोज़े
उत्तर खोजे
राष्ट्रवाद है
पर विवाद है
सभी सख़्त हैं
टार्ड भक्त है
बेटा-माँ हैं
संजय झा है
सच सवाल है
मगर ट्रोल है
लेम जोक है
अजब ब्लोक है
आरटी दे दो
मेन्शन ले लो
उड़ता तीर
ले ले वीर
मारो स्लाई
लो रिप्लाई
बायो पढ़ लो
छवियाँ गढ़ लो
पिक-एनलार्ज
करता चार्ज
फ़्रेंड ज़ोन
फ़ॉरएवर अलोन
सॉलिड कंधा
रजनीगंधा
नेता फ़ैन
लड़ाए नैन
खाने की पिक
देती है किक
भाषा क्लिश्टम
ईको-सिस्टम
पढ़ा-लिखा है
ज्ञान-शिखा है
बड़ा है पंडित
महिमामंडित
फालोवर से
नारी-नर से
सबको भय हो
उनकी जय हो।



यूपी में चुनाव लीला

नारे घटिया,
अच्छी खटिया,
टूटी कुर्सी,
मातमपुर्सी,
सपा, भाजपा,
कांग्रेस, बसपा
राहुल भ्राता
सोनिया माता,
चचा मुलायम,
माया क़ायम,
क़ाबिल शीला
नेता ढीला,
गंवई ढाबा,
राहुल बाबा
बस पदयात्रा,
टूटी मात्रा,
चक्कू छूरी
सब्ज़ी पूरी
बड़ा समर्थन
लाएगा धन
मथुरा, क़ाबा
सूफ़ी, बाबा
'अमर' हैं आज़म
भारी है ग़म
बने धुरी हैं
रामपुरी हैं
क्षत्रिय, ब्राह्मण
खुला हुआ रण
यादव, क़ुर्मी
भारी गर्मी
केवट, मौर्या
एक दिनचर्या
रामगोपाला
या शिवपाला
कहे भतीजा
यही नतीजा
धोती सूखी
कुर्ता भीजा
कहे लोपकी
लेकर झपकी
आँख दिखाओ
सब फल पाओ
सेब, मुसम्मी,
खीरा, केला,
जेबा ख़ाली
नहीं अधेला
नेता की जय
वोटर में भय
अमित शाह की
एक चाह की
टूटें सब दल
मिले तभी कल
प्रतिक्रिया हो
अनुप्रिया हो
दिखे न एका
दुखी मनेका
हुआ चहेटा
घायल बेटा
चाय ईरानी
पीये नानी
प्रेश्या-रण में
सबकुछ पण में
नाव एक हो
सोच नेक हो
यूपी भर की
तरकश शर की
जय कृपान की
राष्ट्रगान की

Sunday, March 20, 2016

बहुत किया अपमान......

बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।
करो चंद एहसान तुम्हारी ऐसी-तैसी

फोड़ रहे हैं बम आतंकी
आज कच्छ, कल बाराबंकी
गाते शांति-गान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

स्वामी की बातें ना खोखली,
लिए फिरे हैं मूसल-ओखली,
कांगरेस दें ध्यान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

मोदी जी भी अडे हुए है,
रस्ता रोके खड़े हुए हैं,
पप्पू ले पहचान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

लालू पुत्र कहे सुन बापू,
बनवा दें पटना को टापू?,
दिखें नहीं इंसान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

राम गुहा से बोले मोदी,
सूफी था इब्राहिम लोदी,
खूब किया था दान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

राजदीप से बोली बरखा,
चले न्यूज का उल्टा चरखा,
बेचों बस ईमान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

येचुरी बोले सुनो कन्हैया,
हमसब की बस एक ही मैया,
सुन लो देकर कान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

कहें मुलायम; चओ सैफई,
हएं तुमौ जो साधन देई,
नाचेगा सलमान, तुम्हारी
ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

लिबरल सेक्युलर बिके हुए हैं,
नेहरू युग से टिके हुए हैं,
देश रहा पहचान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

मदर थी कल, अब संत हो गई,
जैसे आदि-अनंत हो गई,
हुई बड़ी दूकान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

हरिश्चंद्र का बापू कजरी,
खाये खीर बताये बजरी,
दिल्ली का नुकशान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

अरनबवा खाली चिल्लाता,
रोज रात को ढोल बजाता,
खुद को कहे महान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

प्रेष्याओं का हमला भारी,
रातें हैं अब लंबी कारी,
खबर हुआ अनुमान तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

मन की बातें मोदी करते,
भासन से तकलीफें हरते,
भासन ही पहचान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

जे एन यू से क्रांति बही है,
प्रेष्या बोलें यही सही है,
नक्सलियों का ज्ञान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

देशी भोजन नहीं सोहाये,
सारा भारत पिज़्ज़ा खाये,
इटालियन पकवान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

बिजनेसमैन हुए सब बाबा,
लेकर सिर पर फिरते झाबा,
बेंच रहे लोहबान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

चुप हैं अब इशरत के पप्पा,
थक गए करके लारा-लप्पा,
भारत भरे लगान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

मोर्टगेज करके कैलेंडर,
माल्या भागा अरबों लेकर,
बैंक भये परेशान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

भारतमाता की जय काहे?
पूछे वह अधिकार जो चाहे,
नफ़रत का सामान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

जिसने बाँटा था बिहार को,
साथ उसी के हैं निहार लो,
सबकुछ है आसान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

राज्यसभा क्यों नहीं चल रही?
वर्किंग काहे रोज टल रही
पूछ रहे नादान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

खेलें सब वाटरलेस होली,
निज कल्चर की उठा के डोली,
सेक्युलर यह फरमान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

ट्विटर, फेसबुक रखे बिंझाये,
और नए क्या साधन लायें,
बस इसपर संधान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

देशों को भी ट्वाय कर दिया,
मिडिल-ईस्ट डिस्ट्रॉय कर दिया,
अमेरिकन अनुदान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

लास्ट वर्ड्स हैं पत्रकार के,
कुछ भी कह दें बिन अधार के,
बने फिरें भगवान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

भारत स्वच्छ बनेगा कैसे,
जबतक बरधे, पंडवा, भैंसे,
खाकर थूकें पान, तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

भ्रष्टाचारी नदी बहाया,
स्वच्छ हुआ जो कोयला खाया,
कर जमुना-स्नान तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

देशबंधु की त्रिया प्रियंका,
गुरुवर पीटें डेली डंका,
हैं ब्राह्मण अभिमान तुम्हारी ऐसी-तैसी
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।


करो चंद एहसान तुम्हारी ऐसी-तैसी,
बहुत किया अपमान तुम्हारी ऐसी-तैसी।

Sunday, March 6, 2016

भारत का कैसा हो बसंत

सुभद्रा कुमारी चौहान से अग्रिम क्षमायाचना के साथ.

सौ ग्राम तुकबंदी युक्त पैरोडी;

आ रही है दिल्ली से पुकार,
प्रेष्यागण पूछें बार-बार,
दे दे कर अक्षर पर हलंत
भारत का कैसा हो बसंत?

जे एन यू से आएगी क्रांति,
भारत भर फैले यही भ्रांति,
हम बेंचे किस्से मनगढ़ंत,
भारत का ऐसा हो बसंत।

फैलाओं उत्पादित डिबेट,
बढ़ता ही जाए मेरा रेट,
गिरते ही जाएँ हम अनंत,
भारत का ऐसा हो बसंत,

सबकुछ कण्ट्रोल करे मीडिया,
वापस आ जाए फिर रडिया,
फिर से फंस जाएँ साधु-संत,
भारत का ऐसा हो बसंत,

इन-टॉलेरेंस मिलकर बेंचे,
सब मोदी की धोती खेंचे,
दुर्गति का दिक्खे नहीं अंत
भारत का ऐसा हो बसंत।

टीवी स्क्रीन कन्हैया का,
बस इटली वाली मैया का,
सब पाप हो उनके छू-उडंत,
भारत का ऐसा हो बसंत।

मिलकर सब खेलें यही दांव,
पाए असत्य सैकड़ों पाँव,
धंसते जाएँ विषयुक्त दंत
भारत का ऐसा हो बसंत।

Wednesday, January 13, 2016

ऑड-इवेन प्लान कवियों की कलम से

दिल्ली का इवेन-ऑड प्लान पिछले कई दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है। टीवी पर तर्क-वितर्क चल रहा है लेकिन अगर इवेन-ऑड प्रसंग पर तमाम कवि कविता लिखते तो क्या निकल कर आता? शायद कुछ ऐसा;

कुमार विश्वास

कोई सक्सेस समझता है, कोई फेल्योर कहता है,
मगर टीवी की बहसों में हमारा शोर चलता है,
कहा भक्तों ने क्या इसबात में क्या आनी-जानी है,
इधर अरविन्द दीवाना, उधर दिल्ली दिवानी है।

रहीम

रहिमन इवेन-ऑड की महिमा करो बखान,
जबरन ओहि सक्सेस कहो, चलती रहे दुकान।

कबीर

कबिरा इवेन-ऑड की ऐसी चली बयार,
सब आपस में लडि मरें भली करें करतार।

बच्चन

कार्यालय जाने की खातिर,
घर से चलता मतवाला,
असमंजस है कौन सवारी
चढ़ जाए भोला-भाला,
कोई कहता मेट्रो धर लो,
कोई कहता बस धर लो,
मैं कहता हूँ ऑफिस त्यागो,
पहुँचो सीधे मधुशाला।

गुलज़ार

धुएं की चादर की सिलवटों में
लिपटी दिल्ली,
सुरमई धूप सेंक रही है आज,
आज दिखी नहीं,
मोटरों की परछाइयां,
जिनसे गुफ्तगू करती थी
ये सडकें,
जो देखा करती थीं
इन सड़कों की स्याह पलकों को,
किसी ने कह दिया उनको
कि इवेन-ऑड जारी है।

मैथिलीशरण गुप्त

इवेन-ऑड कहानी
विषमय वायु हुई नगरी की,
खग-मृग पर छाई मुरधानी,
इवेन-ऑड कहानी

जन हैं हठी चढ़े सब वाहन,
दिल्ली नगरी रही न पावन,
अश्रु बहाते लोचन मेरे
जन करते नादानी
इवेन-ऑड कहानी,

हुआ विवाद सदय-निर्दय का,
अधियारा छाया है भय का,
उषा-किरण से निकलें विषधर,
व्यथित हुआ यह पानी
इवेन-ऑड कहानी।

काका हाथरसी

गैरज में कारें खड़ी, जाना है अस्पताल,
धुंआ घुसता नाक में आँख हो रही लाल,
आँख हो रही लाल, पास ना इवेन गाडी,
सरकारी माया से कक्का हुए कबाड़ी,
कह काका कविराय कोई तो मुझे बचाए,
अपनी इवेन कार चला हमको पहुंचाए।

दिनकर

हो मुद्रा गर तो आधा दो,
उसमें भी हो गर बाधा तो,
फिर दे दो हमको ऑड कार,
मेरे गैरेज में इवेन चार,

था वचन कि बसें चलाओगे
अपना कर्तव्य निभाओगे,
पर भीड़ देख होता प्रतीत,
इससे अच्छा था वह अतीत,

जब मनुज पाँव पर चलता था,
आचरण उसे न खलता था,
अब भूमि नहीं जो रखे पाँव,
आहत करता शासकी दांव,

जाने कैसे दिन आयेंगे,
इस मनुज हेतु क्या लायेंगे,
यह इवेन-ऑड कब टूटेगा,
यह महावज्र कब फूटेगा,

हो सावधान रायतामैन,
कर कुछ सबको आये जो चैन,
अन्यथा नागरिक लिए रोष,
मढ़ देगा तेरे शीश दोष।