Friday, June 29, 2007

एक सशक्त ब्लॉग लेखन पर फुटकर विचार

शिव कुमार मिश्र अपने फील्ड में अत्यंत सफल हैं. जिस फील्ड में वे हैं उसमें सफलता जिन प्रकार के गुणों से मिलती है वे ब्लॉगरी में सफल होने के लिये सहायक हो सकते हैं; पर उनसे सफलता सुनिश्चित हो; यह कतई जरूरी नहीं (सन्दर्भ- इसी ब्लॉग में उनकी पिछली पोस्ट - 'बाल किशन के सुझाव और ब्लॉग में बदलाव'). शिव इसको भली प्रकार जानते भी हैं. मेरे विचार में कोई व्यक्ति कलकत्ते में रहने वाला हो, साम्यवादी न हो पर सफल हो तो उसमे जबरदस्त कॉमनसेंस (जो अन-कॉमन होती है) होना अनिवार्य है. शिव में वह है.
शिव मुझसे छोटे हैं उम्र में सो सीधे-सीधे तो नही कहेंगे कि भैया इस तरह प्रवचन देने के लिये आप अथॉरिटी कैसे हो गये. पर इस बात की कसमसाहट उनमें जरूर उठ सकती है. इसपर मैं अपना अनुभव बताता हूं कि बतौर ब्लॉगर किस मानसिक प्रक्रिया से मैं गुजर चुका हूं.

आपको किसी भी आकस्मिक व्यवहार के लिये तैयार होना चाहिये:
शुरू-शुरू में यह चिठेरों की दुनिया मुझे अजीब सी लगती थी.
यहां कोई किसी से हंस-बोल-बतिया सकता है. कोई किसी से बात-बेबात उखड़ कर टिर्रा सकता है. मुझे याद है कि शुरू-शुरू में एक ब्लॉगर ने एक बार लपक कर एक अप्रिय बात टिप्पणी में मुझसे पूछ ली थी. और मैं क्रोध से आगबबूला हो गया था. जब व्यक्ति क्रोधित होता है तो उसे अपना प्रभुत्व/हैसियत नजर आती है. मैने पाया कि मैं बतौर रेलवे अधिकारी सवाल पूछने के मोड में रहता रहा हूं. मुझसे भी कोई अविनय पूर्ण सवाल कर सकता है, उस समय वह मेरे मेण्टल मेक-अप का हिस्सा था ही नहीं!

ब्लॉगरी में सीनियारिटी/सामाजिक हैसियत/अभिजात्यता/आपका सोर्सफुल होना आदि कोई मायने नहीं रखता. आप ज्यादा ऐंठ में रहेंगे तो कोई इतना ही लिहाज करेगा नाम से नहीं, बेनाम आपके ब्लॉग पर टिपेरकर दिव्य निपटान कर जायेगा! चाहे आप सद्दम हुसैन हों या जार्ज बुश, या क्वीन विक्टोरिया; काशी के अस्सी की तरह यहां भी अभिवादन में हर-हर-महादेव के साथ %ं&*$ का कोई कभी भी बोल देगा यह उत्तरोत्तर समझ में आता गया है तथा पिछले महीने की हिन्दी ब्लॉगरी में हुई जूतमपैजार के बाद ज्यादा ही समझ में आ गया है.

अपने अहम को जान बूझ कर छोटा बनायें:
आपको सतत: सशक्त ब्लॉगर होने के लिये अपने कार्यक्षेत्र के अहम को पीछे रख कर ब्लॉगरी की दुनिया में अलग प्रकार से साख बनानी पड़ सकती है. नहीं-नहीं
सकती है नहीं पड़ेगी. यह एक तथ्य है जिसे मैं बार-बार यत्न कर अपने संज्ञान में रखने का यत्न करता हूं.

अगर आप यह प्री-कण्डीशन सेटिस्फाई कर देते हैं तो शेष जो जरूरतें हैं, उनमें धीरे-धीरे परिमार्जन करते हुये आप आगे बढ़ सकते हैं.

मैं कुछ गुण लिस्ट करना चाहूंगा

  • व्यक्तित्व में पारदर्शिता. आप छ्द्म के सहारे चल नहीं सकते. और ब्लॉगरी में तो बिल्कुल नहीं.
  • हमेशा सीखने को तैयार. आप को पढ़ने और परख कर जानने की क्षमता में सतत शोधन करना ही पड़ेगा.
  • नेटवर्किग. आपको सम्पर्क बनाने ही पड़ेंगे चाहे आप कितने भी अंतर्मुखी जीव हों.
  • परोसने का गुण. भोजन कैसा भी स्वादिष्ट बना हो; अगर सर्विस बेकार तो सब बेकार.
  • निरंतरता. आप फिट-एण्ड-स्टार्ट के तरीके से ब्लॉगरी नहीं कर सकते. लोग आपके ब्लॉग से अपेक्षा करने लगते हैं. आपकी दुकान बंद रहे तो वह अपेक्षा पूरी नहीं होती.
(कुछ ऐसा है ज्वाइण्ट ब्लॉग का कॉंसेप्ट!)
शिव कुमार मिश्र और मुझमें में उक्त सभी गुण - (शायद निरंतरता को छोड) उपयुक्त मात्रा में हैं. अत: ब्लॉग का नाम चाहे जितना पुराना-पुराना सा लगे, बाल किशन जी के सुझाव के अनुसार हम 20 पोस्ट लिखने का लक्ष्य हासिल कर लें तो एक सफल ज्वाइण्ट ब्लॉग हिदी में अवश्य स्थापित कर पायेंगे.
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फुट नोट - जब ज्वाइण्ट ब्लॉग की बात कर ली है तो मैं रोल माडल की बात भी कर लूं. मेरे सामने द बेकर-पोस्नर ब्लॉग का आदर्श है. यह ब्लॉग बहुत ज्यादा पढ़ा जाता है. गैरी बेकर जो शिकागो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं और रिचर्ड पोस्नर जो कोर्ट-ऑफ-अपील में जज हैं; इस ब्लॉग में लिखते हैं. आप कृपया उनका ब्लॉग देखें.

6 comments:

  1. सही है। आपने सफ़ल ब्लागर के सूत्र बता ही दिये। अब लोग इनको आत्मसात करके आगे बढ़ें। यह जुगलबंदी देखने-सुनने का इंतजार है।

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  2. बहुत बढ़िया, जब आपकी जुगलबन्दी के बारे में शीर्षक में पढ़ा तो मुझे भी गैरी-पास्नर ब्लॉग का ख्याल आया। सही है। वैसे कॉलेज में एक गेम खेलते थे नाम था Volte Face एक ही बंदा एक ही बाद को दो अलग अलग पहलूओं से बताता था।

    पंकज

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  3. जानकारी काफ़ी कारगर दिख रही है.... सत्य का पता तो इस्तेमाल के बाद ही होगा.. :-)

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  4. "..परोसने का गुण. भोजन कैसा भी स्वादिष्ट बना हो; अगर सर्विस बेकार तो सब बेकार..."

    ये बात आपने सही कही.

    कुछ बड़ी खबरों और ब्लॉग प्रविष्टि को कुछ लोग ले उड़ते हैं और बढ़िया लपेट कर फिर से परोस देते हैं (अंग्रेजी में) और मूल सामग्री तो हजार हिट को तरसती है, मसाले में लिपटा माल लाखों हिट जुटा लेता है. और ये अकसर होता रहता है!

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  5. बहुत सही!!
    इ जौन निरंतरता नाम की चीज है ना इसे हमका सबसे पहले लाग़ू करना बहुतै जरुरी है अपन आप पर इहां!! बहुतै आलसी हूं हम, पर का करें इहां सब लोगन लिखतै इतना अच्छा है कि पढ़त पढ़त ही सारा टाईमे निकल जात है!!

    आभार!!

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  6. चलो अच्छा हुआ सफलता के राज पता चले. अब हम भी इन्हें आजमाने का प्रयास करते हैं.

    -आपका बताया एक एक सूत्र संपूर्ण है सफलता हासिल करने के लिये.

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