Monday, July 2, 2007

बुद्धदेब भट्टाचारजी सही काम कर रहे हैं

कोई दो राय नहीं कि पश्चिम बंगाल पिछले दशकों से पिछड़ता गया है. पर भूतकाल में तब झांकना जब एक मुख्यमंत्री किसी तरह से कुछ करने का यत्न कर रहा हो; मुझे सही नजर नहीं आता. साम्यवादियों ने ऐसा किया कि कारखाने चौपट हो गये. पर अगर 70-80 के दशक की कांग्रेस होती अथवा बड़बोली ममता बैनर्जी होतीं तो यह प्रांत प्रगति की कुलांचें भरता मुझे घोर सन्देह है. बंगाल को अपनी बेकारी के कारणों का पता लगाने के लिये साम्यवादियों को सलीब पर चढ़ा कर शोध कार्य की इति नहीं मान लेनी चाहिये.

क्या सत्ता परिवर्तन कुंजी है पश्चिम बंगाल के विकास की? व्यापक जन असंतोष ने जब निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया का वाहन पाया तो बिहार और उत्तरप्रदेश में सत्ता परिवर्तन कर दिया. वही फिनॉमिना बंगाल में देखने को नहीं मिला. यह नहीं कहा जा सकता कि वहां चुनाव आयोग ने ढ़िलाई बरती. कुछ लोग यह कहते हैं कि साम्यवादी काडर बड़े सुनियोजित ढ़ंग से काम करता है जो चुनाव आयोग के मेकेनिज्म से पकड़ में नहीं आयेगा. पर अगर वैसा है तो हम विकास के लिये सत्ता परिवर्तन की बाट क्यों जोहें, जब विकल्प में भी बहुत आशा नजर न आती हो? इस स्थिति में मुझे बुद्धदेब भट्टाचारजी पर दाव लगाना बेहतर लगता है.

मुझे स्थानीय स्थिति की पर्याप्त जानकारी नहीं है. पर इतना जरूर लगता है कि बुद्धदेब बदलाव का यत्न कर रहे हैं. वे जो कुछ कर रहे हैं उससे कॉपी-बुक स्टाइल साम्यवादी को हाजमे की शिकायत हो रही है. पार्टी के तथाकथित बुद्धिजीवी उनका साथ नहीं दे रहे. पार्टी भी विभ्रम की अवस्था में है कि बुद्धदेब के साथ चले या पुरानी लाइन पर.पार्टी के तीन दशक के शासन के पूरा होने पर बुद्धदेब स्वयम कह रहे हैं कि 32 लाख बेरोजगारों को काम दिलाना है और यह स्टील तथा रसायन क्षेत्र के उद्योगों के तेज विकास से ही हो सकेगा.

तेजी से औद्योगिक विकास पश्चिम बंगाल की जरूरत है. बुद्धदेब यह समझ रहे हैं. कृषि लोगों को पर्याप्त संख्या में और स्तर पर रोजगार नहीं दे सकती. लिहाजा कृषि से उद्योग/जानकारी पर आधारित अर्थ व्यवस्था में ट्रांजीशन और कल कारखानों का विकास होना जरूरी है. उसे धुर-साम्यवादी सोच रोक नहीं पायेगी. अत: जो परिवर्तन बुद्धदेब करने का यत्न कर रहे हैं; उसे मात्र इस आधार पर कि पहले सब चौपट इन्ही साम्यवादियों ने किया था; नकारने या हिकारत के कोण से देखा जाये जायज नहीं है. सिंगूर या नन्दीग्राम में पोलिटिकल गलतियां हुई हैं. पर उनका नफा स्टेटस-को-एण्टे चाहने वालों को नहीं मिलना चाहिये. किसानो से जमीन के लिये जाने में किसानो के हितों की जो अनदेखी हुई है और विकास के फल में उनका हिस्सा न स्पष्ट किये जाने का भ्रम या दादागिरी नजर आयी है; उसकी संयत भाषा में समझाइश और निराकरण होना चाहिये. बुद्धदेब उस दिशा में बोलते-करते प्रतीत होते हैं. उन्हें पर्याप्त बैकिंग मिलनी चाहिये.

भारत के साम्यवादी दल; (1)चीन में जैसा विकास का माडल है और (2) जैसी वे सोच भारत के लिये रख कर केन्द्र की सरकार को दबेरते रहे हैं दोनो के बीच दिग्भ्रमित से प्रतीत होते रहे हैं. पर केन्द्र में वे जैसी भी राजनीति करें, अगर वे बंगाल में विकास पथ पर चलने की कोशिश करने की पहल करते हैं तो उसका स्वागत होना चाहिये. असल में वह दल जिसके पास जन समर्थन का आधार हो; परिवर्तन का कार्य बखूबी कर सकता है. जो दशकों बाद सत्ता में आने का यत्न कर रहे हैं, वे तो मात्र पॉपुलिस्ट बात कर सकते हैं. वोट की चाहत विकास के एजेण्डे को सामने रख कर नहीं पूरी हो रही. और सत्ता में आने को ललचाते लोग बंगाल के तेजी से विकास को प्रतिबद्ध हों- ऐसा लगता नहीं है.

परिस्थितियां बदल रही हैं. विचारधाराओं और वादों की वह पकड़ आज नहीं है जो दो दशक पहले थी. आज जो विकास और परिवर्तन की दिशा में काम करता नजर आयेगा चाहे वह बुद्धदेब हों, नीतिश कुमार हों या नरेन्द्र मोदी हों उनका उनकी पृष्ठभूमि को नजर-अन्दाज करते हुये स्वागत होना चाहिये.
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बुद्धदेब-अटल का चित्र जानबूझ कर चस्पां किया है. यह बताने को कि प्रगति की बात चाहे वामपंथी करे या दक्षिणपंथी, सब स्वीकार्य है.

9 comments:

  1. गलत है जी आपकी सोच ,अभी कुछ दिन पहले राहुल भैया (बजार वाले नही)ने यू पी के चुनाव मे साफ़ साफ़ बताया था की भारत मे सारा विकास कार्य केवल और केवल उन्के परिवार ने ही कराया है ,फ़िर भी आप जान पूछ कर लोगो को दिग भ्रमित करने के लिये श्रीमति सोनिया जी के बजाय अटल जी कोछाप रहे है,इसकी कडी आलु चना करते हुये हम आपके मंडल पर विरोध स्वरूप कंडल यात्रा लेकर आयेगे :)

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  2. बुद्धदेब-अटल का चित्र जानबूझ कर चस्पां किया है. यह बताने को कि प्रगति की बात चाहे वामपंथी करे या दक्षिणपंथी, सब स्वीकार्य है.


    ---बिल्कुल सही कह रहे हैं...इसी की जरुरत है.

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  3. ज्ञानदत्तजी एवं शिवकुमारजी,
    बढिया लेख लिखा है, वाम और दक्षिण का भेद सिर्फ़ नाम का है ।

    आपसे एक प्रश्न है, आपने ब्लागस्पाट पर कौन सी टेम्पलेट प्रयोग की है जिससे आपके पेज पर टेक्सट पूरे पेज पर फ़ैला हुआ है । मेरे पेज पर तो टेक्स्ट मध्य में आता है और दाँये और बाँये दोनो और खाली जगह पडी रहती है । इस विषय में जानकारी अवश्य दें ।

    साभार,

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  4. नीरज रोहिल्ला > ...आपने ब्लागस्पाट पर कौन सी टेम्पलेट प्रयोग की है जिससे आपके पेज पर टेक्सट पूरे पेज पर फ़ैला हुआ है ।

    यह Strech Denim Blue है. उसपर फॉण्ट आदि के कुछ हेर-फेर हैं.

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  5. लौट के बुद्धू पूंजीवाद पर आये..

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  6. बढ़िया लेख जनाब!!

    चिट्ठा पहले की बजाय अब ज्यादा आकर्षक लग रहा है !!

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  7. अश्लीलता के अलावा सबकुछ पढ़ते हैं लेकिन यह डाल्फिन क्या कर रही है?

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  8. संजय तिवारी > अश्लीलता के अलावा सबकुछ पढ़ते हैं लेकिन यह डाल्फिन क्या कर रही है?

    एक सरल सी डॉल्फिन में आपको अश्लीलता लगी! खैर, आपकी अश्लीलता का सम्मान करते हुये मैं शिव कुमार का चित्र ही लगा दे रहा हूं. यह चित्र कुछ साफ नहीं है. शिव जब अच्छा चित्र उपलब्ध करायेंगे तो रिप्लेस कर दिया जायेगा.

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  9. बढि़या! डाल्फ़िन पानी में आधी नीचे है आधी ऊपर। संतुलन का प्रयास कर रही है। उसे देखने वाले अपने अंदाज में देखते हैं! :)

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