शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय, ब्लॉग-गीरी पर उतर आए हैं| विभिन्न विषयों पर बेलाग और प्रसन्नमन लिखेंगे| उन्होंने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे| लेकिन कभी-कभी गम्भीर भी लिख दें तो बुरा न मनियेगा|
||Shivkumar Mishra Aur Gyandutt Pandey Kaa Blog||
Friday, August 17, 2007
भारत भूषण जी की कविता - "पाप"
ज्ञान भैया (ज्ञानदत्त पाण्डेय) की पोस्ट "बुद्ध को पैदा होने से रोक लेंगे" पर टिप्पणी में मैने भारत भूषण जी की कविता "पाप" की कुछ पंक्तियां लिखी थीं. वास्तव में ईश्वर के अवतरण में जितना हाथ पुण्य का है, पाप का उससे कम नहीं है.
मैं ज्ञान भैया के कहे पर पूरी कविता (जितनी और जिस रूप में मुझे याद है) प्रस्तुत कर रहा हूं:न जन्म लेता अगर कहीं मैं
धरा बनी ये मशान होती
न मन्दिरों में मृदंग बजते
न मस्जिदों में अजान होती
लिए सुमिरनी डरे हुए से
बुला रहे हैं मुझे पुजेरी
जला रहे हैं पवित्र दीये
न राह मेरी रहे अन्धेरी
हजार सजदे करें नमाजी
न किंतु मेरा जलाल घटता
पनाह मेरी यही शिवाला
महान गिरजा सराय मेरी
मुझे मिटा के न धर्म रहता
न आरती में कपूर जलता
न पर्व पर ये नहान होता
न ये बुतों की दुकान होती
न जन्म लेता अगर कहीं मैं...
मुझे सुलाते रहे मसीहा
मुझे मिटाने रसूल आये
कभी सुनी मोहनी मुरलिया
कभी अयोध्या बजे बधाये
मुझे दुआ दो बुला रहा हूं
हजार गौतम, हजार गान्धी
बना दिये देवता अनेकों
मगर मुझे तुम ना पूज पाये
मुझे रुला के न सृष्टि हंसती
न शूर, तुलसी, कबीर आते
न क्रास का ये निशान होता
न ये आयते कुरान होती
न जन्म लेता अगर कहीं मैं....
बुरा बता दे मुझे मौलवी
या दे पुरोहित हजार गाली
सभी चितेरे शकल बना दें
बहुत भयानक, कुरूप, काली
मगर यही जब मिलें अकेले
सवाल पूछो, यही कहेंगे कि;
पाप ही जिन्दगी हमारी
वही ईद है वही दिवाली
न सींचता मैं अगर जडों को
तो न जहां मे यूं पुण्य खिलता
न रूप का यूं बखान होता
न प्यास इतनी जवान होती
न जन्म लेता अगर कहीं मैं
धरा बनी ये मशान होती
न मन्दिरों में मृदंग बजते
न मस्जिदों में अजान होती
बहुत गजब, आभार इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिये.
ReplyDeleteओ हो हो । मैं तो इस कविता को भूल ही गया था । असंख्य आभार आपने याद दिला दिया । आनंद आ गया ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति,
ReplyDeleteधन्यवाद ।
मिश्र जी प्रणाम, दिल को छू गई कविता । आपको धन्यवाद कि आप अर्सों से इस कविता को याद रखे हैं, पाण्डेय जी को भी धन्यवाद कि उन्होंने आपको इसे हमें मनन करने के लिए समय पर पोस्ट कराया ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteसही सही!!
ReplyDeleteशुक्रिया मिश्रा जी!!
जहां खोजक , ढुंढवैये और अन्वेषक हार जाते हैं वहां भी स्मृति की लौ जलती रहती है .
ReplyDeleteपाप पट्ठा बहुतै हुंकार रहा है . लगता है पीछे तगड़ा बैकिंग है . पूरी दुनिया ही उसका 'कॉन्स्टीट्यूएंसी' है. उसका समर्थक और मतदाता तो हर जगह फैला हुआ है .
इस कविता से लगा कि पुण्य के बिना पाप क्या है पाप सार्थक हो गया होगा यह कविता पाकर!
Deleteसत्य वचन महाराज।
ReplyDeleteरावण न हो, तो राम का नायकत्व कहां खड़ा हो।
दुर्योधन न हो, तो अर्जुन का जलवा कैसे जमे।
फिर सोचिये कि पापी कितने इंटरेस्टिंग होते हैं, और पुण्यवान कितने बोरिंग।
Very nice sir ji ...
ReplyDeleteToday Only i came to know about this poem . and i'm thankful you've posted it
Nice blog i must admit .
Keep writing
Regards
Divya Prakash Dubey
http://www.youtube.com/watch?v=oIv1N9Wg_Kg
We are living in a country that follows pseudosecularism.Waiting for another harbinger of peace and harmony may not work.We should find the solution ourselves.
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