शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय, ब्लॉग-गीरी पर उतर आए हैं| विभिन्न विषयों पर बेलाग और प्रसन्नमन लिखेंगे| उन्होंने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे| लेकिन कभी-कभी गम्भीर भी लिख दें तो बुरा न मनियेगा|
||Shivkumar Mishra Aur Gyandutt Pandey Kaa Blog||
Monday, August 27, 2007
हरिशंकर सिंह जी जैसे चरित्र कम हो रहे हैं क्या?
हरिशंकर सिंह जी के विषय में शिव कुमार मिश्र ने इस ब्लॉग पर कल अपनी पोस्ट में लिखा है. गांव के अभावग्रस्त वातावरण में हरिशंकर सिंह जैसे लोगों ने निस्वार्थ भाव से अपने शिष्यों को योग्य बनाने का कार्य किया. अब यह कार्य ट्यूशन के माध्यम से पैसे के बल पर होता है. उस शिक्षण की गुणवत्ता पर तो टिप्पणी करना उचित नहीं है - एक विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर मुझसे ट्यूशन की उपयोगिता के पक्ष में कह रहे थे! पर मैं निस्वार्थ भाव से उत्कृष्ट कार्य की बात कर रहा हूं. मुझे लगता है कि मार्केट इकॉनॉमी के प्रबल होने से अब समाज के सभी क्षेत्रों में हरिशंकर सिंह जी जैसे चरित्रों का उत्तरोत्तर टोटा होता चला जायेगा. विज्ञापन, अपने को चमका कर प्रस्तुत करना, धड़ाधड़ पैसा पीटने की प्रवृत्ति नैसर्गिक समाजकल्याण की बात को सेकेण्डरी बनाने लगेगी.
गांवों में भी वातावरण तेजी से बदल रहा है. बाजार अपनी पैठ बना रहा है. टेलीवीजन ने सुविधासम्पन्नता को फोर-फ्रण्ट पर ला खड़ा किया है. मैं एक ऐसे नौजवान को जानता हूं जो मन्दसौर जिले के एक गांव में उत्तरप्रदेश से बेरोजगारी के चलते गया और मेहनत कर 250 विद्यार्थियों का एक स्कूल बनाने में सफल रहा. उसका मॉडल निस्वार्थता का नहीं अपने लिये उपयुक्त रोजगार बनाना था. मन्दसौर जिले की अफीम की खेती से आयी समृद्धि, लोगों में स्तरीय शिक्षा की ललक और उपयुक्त शिक्षा व्यवस्था के अभाव का इस नौजवान ने प्रयोग बखूबी किया. वह मेहनत भी बहुत करता है. पर हरिशंकर सिंह जी जैसी निस्वार्थता तो नहीं ही है उसमें.
सही क्या है, गलत क्या है - कहना कठिन है. पर मुझे भय है कि हरिशंकर सिंह जी जैसे व्यक्तित्व उत्तरोत्तर कम होते जायेंगे. मेरा भय निराधार हो तो मुझे खुशी होगी!
ज्ञान जी
ReplyDeleteहरी शंकर सिंह जी जैसे निस्वार्थ व्यक्ति कम तो नहीं होंगे क्यों की इन्ही लोगों की उपस्तिथी के कारण हम और आप हैं ,लेकिन उनकी महानता की पहचान कर स्मरण रखने वाले शिव जैसे लोग ज़रूर कम हो जायेंगे. मुझे सिर्फ़ ये ही डर है. हरी शंकर जी जैसे लोग तो "नेकी कर दरिया मॆं डाल "वाले सिधांत के अनुयायी होते हैं पर दरिया से निकल के उन सिधान्तों को मोती की तरह सँभालने वाले जोहरी बहुत कम हैं !
हरिशंकर जी जैसे व्यक्ति के लिए मेरा एक शेर है :
भलाई से नहीं पाया है कुछ उस शक्श ने यारों
भलाई फिर भी करने से वो घबराया नहीं करता
नीरज
इस तरह के चरित्र समाज से कम क्या हो रहे हैं जी, समाज से चरित्र ही कम हो रहा है।
ReplyDeleteयकीन नहीं होता कि इस तरह के कैरेक्टर हमारे आसपास मौजूद हैं। पर मौजूद होंगे, होना चाहिए, वरना ये दुनिया नहीं चल पायेगी।
हरिशंकर सिंहजी से परिचय कराने के लिए आभार,