शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय, ब्लॉग-गीरी पर उतर आए हैं| विभिन्न विषयों पर बेलाग और प्रसन्नमन लिखेंगे| उन्होंने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे| लेकिन कभी-कभी गम्भीर भी लिख दें तो बुरा न मनियेगा|
||Shivkumar Mishra Aur Gyandutt Pandey Kaa Blog||
Wednesday, October 31, 2007
दलों का दलदल और बंद का कीचड
कुछ साल पहले एक प्रस्ताव आया था की पश्चिम बंगाल का नाम बदल कर बंग प्रदेश रख दिया जाय.जिन लोगों ने प्रदेश के लिए ये नाम सुझाया था, उनका कहना था कि ऐसा नाम रखने से राज्य ज्यादा देसी लगेगा और हमारी संस्कृति की रक्षा भी हो जायेगी.बाद में राज्य की 'बंद संस्कृति' का मजाक उडाते हुए लोगों ने कहा कि बंग प्रदेश क्यों, इस राज्य का नाम तो बंद प्रदेश होना चाहिए.खैर, नाम बदलो अभियान रोक दिया गया और राज्य का नाम पश्चिम बंगाल ही रहा.मतलब, 'संस्कृति' पर ख़तरा बना हुआ है.
मेरा मानना है कि राज्य का नाम 'बंद प्रदेश' रख देना चाहिए।देखिये न, कल बंद था.आज बंद है.शायद कल भी रहे.वैसे अभी तक किसी पार्टी ने कल बंद कराने का एलान अभी तक तो नहीं किया, लेकिन शाम तक समय है.कोई भी पार्टी कल बंद का एलान कर सकती है.बंद की वजह से आज सात बजे ही आफिस आना पडा.बंद कराने वाले भी आलसी होते हैं.बेचारे नौ बजे तक सो कर उठेंगे, तब सडकों पर उतरेंगे बंद कराने.मैंने थोड़ा उनके आलसी होने का फायदा उठाया और थोड़ा अपने आलस्य को दूर करते हुए आफिस पहुँच गया.
आज का बंद ममता बनर्जी ने किया है।आप ये सोच रहे हैं कि मैंने ये क्यों नहीं कहा कि बंद का एलान उनकी पार्टी ने किया है.मतलब साफ है.ममता बनर्जी माने ही त्रिनामूल कांग्रेस.बंद भी बड़ी अनोखी बात का सहारा लेकर किया गया.ममता का कहना है कि जब वे नंदीग्राम जा रही थीं तो उनके ऊपर किसी ने गोली चलाई.ये और बात है कि उनकी 'बुलेट थ्योरी' में काफ़ी बड़ा 'होल' है.उन्होंने एक जिंदा कारतूस लेकर फोटो खिचाई और बंद का एलान कर दिया.पुलिस का कहना है कि जब गोली चलती है तो गोली का खोखा हथियार के पास रहता है, न कि दूर जाकर गिरता है.लेकिन राजनीतिज्ञों (?) की बातें हमेशा से ही निराली रहती हैं.
जिनको अपने नौकरी प्यारी है, वे बेचारे तो ऐसे बंद में भी आफिस जाते ही हैं।आज भी लोग निकलेंगे, मुझे इस बात का पूरा भरोसा है.लेकिन शाम को ममता जी एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाएंगी और बंद की सफलता के लिए जनता को धन्यवाद देंगी.साथ में बुद्धदेव भट्टाचारजी इस्तीफे की मांग भी कर डालेंगी,ये कहते हुए कि 'आज जनता ने हमारे बंद को सफल बनाते हुए साबित कर दिया है कि आपको शासन करने का अधिकार नहीं रहा.'
अद्भुत ढंग से सब कुछ चल रहा है।आगे भी चलता रहेगा.लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आती.कोई पार्टी सामने आकर क्यों नहीं कहती कि कुछ सालों के लिए बंद की राजनीति बंद की जानी चाहिए.लेकिन कहेगा कौन.वामपंथी इस मामले में ममता के ताऊ हैं.वे भी बंद करते हैं.मजे की बात ये कि अगर ममता बनर्जी बंद करती हैं तो सरकार पुलिस का ख़ास इंतजाम करती है.ज्यादा से ज्यादा सरकारी बसें चलाई जाती हैं.लेकिन जब ये वामपंथी बंद करते हैं तो न पुलिस का इंतजाम और न ही बसों का.ऐसे में कोई बंद करने की खिलाफत करेगा, इस बात की आशा बहुत कम है.
हमारे एक 'ब्लॉगर मित्र' एक बार इन बंद कर्मियों के हाथों पिट चुके हैं।बेचारे बंद के दिन आफिस जा रहे थे.वामपंथियों ने रोक लिया.इन्होने समझाने की कोशिश की.ये कहते हुए कि 'बंद से बड़ा नुकसान वगैरह होता है.देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचता है.लोगों को तकलीफ होती है.' बस फिर क्या.बंद कर्मियों को लगा कि 'ये तो भाषण दे रहा है.कहीं ऐसा न हो कि आगे चलकर नेता बन जाए.और उन्होंने हमारे मित्र की पिटाई कर दी.बेचारे उसके बाद से बंद के दिन घर से बाहर नहीं निकलते.
लेकिन मैं ऐसे बंद को एक चैलेन्ज के रूप में लेता हूँ.मेरा मानना है कि अगर साल के तीन सौ साठ दिन मेरा आफिस मेरे हिसाब से चलता है तो बंद के दिन भी मेरे हिसाब से ही चलेगा.किसी ममता बनर्जी या वामपंथियों के हिसाब से नहीं.
बंद विरोधी आपका अभियान कामयाब हो....बंद वालों से सावधान रहे......
ReplyDeleteआपकी सोच सही है लेकिन बंगाल में हमेशा बंद को विफल करना मुमकिन नहीं होता.फिर भी लगे रहें...
ReplyDeleteशिवजी आप तो खतरों के खिलाड़ी होते जा रहें है. बंग प्रदेश के होते हुए भी पहले आपने दुर्गा पूजा के विरोध मी लिखा अब आप बंद के विरोध मी लिख रहें है. कंही जो घटना आपके ब्लॉगर मित्र के साथ घटी वो आपके साथ भी ना घट जाए. वैसे सुना है आपके वो मित्र तो आज भी आफिस गये है. लेकिन आपके साहस और इस अच्छे लेख के लिए आपको बधाई.
ReplyDeleteतारीफ़ और कामना कि आपका यह साहस वहां रहते हुए बना रहे!!!
ReplyDeleteबंद से तो सारा भारत त्रस्त है पर्……
शिव भाई
ReplyDelete"अगर साल के तीन सौ साठ दिन मेरा आफिस मेरे हिसाब से चलता है तो बंद के दिन भी मेरे हिसाब से ही चलेगा." वाह ! वाह ! ये हुई न मर्दों वाली बात, ताल ठोक के अखाडे मैं उतरने वाली. आप तो ब्लोगरों के "अन्ग्री यंग मैन" हैं. पानी मैं रहते हैं और मगर को आंखे दिखाते हैं वाह !वाह! खुश कर दिया आपने.
आप समझदार हैं माना लेकिन अपनी समझदारी का कभी सार्वजनिक प्रदर्शन मत कीजियेगा अगर कभी करना पड़ जाए तो अकेले मत करियेगा बालकिशन जी को साथ रखियेगा. एक से भले दो.
नीरज
मैं बालकिशन और नीरज जी से पूर्णत सहमत हूं। मैं चाहूंगा कि पानी में रह कर मगर को आंख दिखाने की क्षमता हो पर आंख दिखाने के लिये "नागेश्वरनाथ" वाले ब्लॉग का प्रयोग हो!
ReplyDeleteफिलहाल वे इंटरनेशनल मामलों में उलझे हैं उनका मानना है कि न्यूक्लियर डील नहीं हुआ, तो देश में महंगाई थम जायेगी। कनकेक्शन क्या है,आप बतायें। हम तो थ्योरी बता रहे हैं।
ReplyDeleteआपके तेवर देखकर शुभचिंतकों में जो थोड़ी सी स्वभाविक घबराहट होना चाहिये, वही हो रही है. बाकी कोई खास नहीं.
ReplyDeleteवैसे भी बंद समर्थकों के हाथों अगर कभी चढ़ भी लिये तो कोई दूसरा ब्लॉगर मित्र ऐसे ही इशारों में बता दे तो बता दे वरना कौन बताता है?
:)
बहुत शुभकामनायें मित्र.
आपके विचार व हिम्मत की दाद देती हूँ । सुरक्षित रहें ऐसी कामना करती हूँ ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
भाई साहब लिखा तो सौलह आने सच पर जरा बच के, ये राजनीतिज्ञ बहुत असुरक्षित जीव होते है, जरा सा भी ख्तरा सहन नहीं कर सकते। इस लिए बच के रहना रे बाबा बच के रहना
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