शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय, ब्लॉग-गीरी पर उतर आए हैं| विभिन्न विषयों पर बेलाग और प्रसन्नमन लिखेंगे| उन्होंने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे| लेकिन कभी-कभी गम्भीर भी लिख दें तो बुरा न मनियेगा|
||Shivkumar Mishra Aur Gyandutt Pandey Kaa Blog||
Thursday, December 13, 2007
कलकत्ता निवासी चिट्ठाकारों से एक अपील
कोई नई बात नहीं है. कलकत्ता सदियों से धीमा शहर ही रहा है तो इस बात में समय के साथ-साथ कैसे चल सकता है. मैं चिट्ठाकार सम्मेलन की बात कर रहा हूँ. पिछले कई दिनों से हीन-भावना से ग्रस्त हूँ. मुझे पता नहीं कि प्रियंकर जी, बाल किशन और मीत जी के साथ भी ऐसा है या नहीं, लेकिन मैं तो भैया बहुत दुखी हूँ. मुम्बई को देखिये, पिछले दो महीने अन्दर चार चिट्ठाकार सम्मेलन हो गए, और हमारे कलकत्ते में एक भी नहीं.
मुम्बई में चिट्ठाकार सम्मेलन के फोटू देखते ही बनते हैं. शुकुल जी का बर्थडे केक, समीर जी का चश्मा और दार्शनिक मुद्रा, वगैरह वगैरह देखकर दिल और टूटा जा रहा कि हाय, एक वे हैं जो मुम्बई में रहते हैं और महीने में तीन बार चिट्ठाकार सम्मेलन कर डालते हैं और एक हम कलकत्ते वाले हैं, जो आजतक कुछ नहीं कर सके. और ध्यान देने वाली बात ये है कि ये तो केवल उन सम्मेलनों का जिक्र है जो घर में, काफ़ी हाऊस में और पार्क में हुए. उन तमाम सम्मेलनों की छोड़ ही दीजिये जो अँधेरी और चर्चगेट स्टेशन पर होते होंगे. जिनके बारे में चर्चा नहीं होती.
<<< आसमान से कोलकाता का गूगलीय दृष्य। कहीं भी हो जाये ब्लॉगर मीट!
और मुम्बई की ही बात क्यों करें, इस मामले में इलाहाबाद, कानपुर और आगरा भी कलकत्ते से आगे हैं. पिछले दिनों अभय जी की पोस्ट पर तसवीरें देख रहा था. तसवीरें देखकर मन में बात आई कि कलकत्ते में कितने 'फूल' भरे पार्क हैं, जहाँ सम्मेलन किया जा सकता है. लेकिन इन फूलों की तकदीर ख़राब है कि वे बेचारे भी चिट्ठाकारों के दर्शन नहीं कर पा रहे. हम जैसे चिट्ठाकारों के साथ बेचारे ये फूल भी ढेर हुए. साथ में काफ़ी का मग और प्लेट के बिस्कुट भी.
कभी-कभी संजीत से कहता हूँ कि एक दिन रायपुर जाकर ही सम्मेलन कर डालते हैं. कलकत्ते में न सही, रायपुर के पार्कों में तो फोटू खिचाने का मौका मिलेगा. संजीत भी तैयार हैं, लेकिन अभी तक ऐसा हो न सका. कई बार घर में रखे कैमरे पर नज़र जाती है तो लगता है जैसे कह रहा हो कि 'तुम जैसे निकम्मे से कुछ नहीं होनेवाला. उधर अभय जी, अनिल जी और अनिता जी के कैमरे देखो, कितने भाग्यशाली हैं जो चिट्ठाकार सम्मेलन कवर करते नहीं थकते. कभी मिल गए तो मुझे चिढायेंगे कि इतनी उम्र हुई लेकिन एक भी चिट्ठाकार सम्मेलन नहीं कवर कर सके. लानत है.'
शुकुल जी जुलाई में कलकत्ते आए थे. लेकिन मेरी समस्या थी कि मैं उस समय तक फुल-टाइम चिट्ठाकार नहीं बन सका था. सो उनसे मिलकर सम्मेलन करने का चांस भी जाता रहा. प्रियंकर जी से मिल चुका हूँ लेकिन उस समय कैमरा साथ नहीं था. अब फोटू नहीं रहे तो सम्मेलन के बारे में लिखना भी बड़ा कठिन रहता है. अगर उस सम्मेलन या फिर मिलन के बारे में कुछ लिखता तो शायद फोटू न होने की वजह से कोई पढ़ता भी नहीं.
आजतक अपने ब्लॉग पर एक भी पोस्ट नहीं लिखा सका जिसमें चिट्ठाकार सम्मेलन का जिक्र हो. अब तो लगता है जैसे छ महीने से चिट्ठाकारी में रहते हुए भी कुछ नहीं कर पाये. हे कलकत्ते निवासी चिट्ठाकारों, मुझे इस हीन-भावना से निकालने की कोई जुगत लगाईये. एक बार तो ऐसा कुछ कीजिये कि मेरे ब्लॉग पर भी चिट्ठाकारों की तस्वीरों का नया ही सही लेकिन म्यूज़ियम खुले तो.
शिव जी लग रहा है कि अब मुम्बई से ही किसी को भेजना होगा..
ReplyDeleteदुखती रग पर हाथ धर दिए हो भैया.
ReplyDeleteविगत कुछ दिनों से तो ये पीड़ा असह्य हो गयी है. "घायल की गति घायल जाने"
जल्दी कुछ करना पड़ेगा.
सभी कलकते वासियों ब्लोगेरों से अनुरोध है कि इस पोस्ट को पढ़ते ही तुरंत और युद्ध स्तर पर इस विषय मे कुछ किया जाय.
वरना अपन लोग तो और पिछड़ जायंगे.
shiv ji aapkey kolkatta me kam se kam 5,6 bloggers to uplabdh hain...hamarey shahar me to maatr hum hi blogging jagat se judey hue paaye jaatey hain...ib hum ki karen?
ReplyDeleteकामरेड :) समय के साथ चलना सिखे और शीघ्र ब्लॉगर मिलन आयोजित करे.
ReplyDeleteहमारी अग्रिम शुभकामनाएं, विवरण की प्रतिक्षा है.
इलाहाबाद में कोलकता वाले जब चाहे मीट ईट करने आ सकते है। हम तहे दिल से स्वागत करेगें।
ReplyDeleteबढिया सोंचा है आपने शिव भईया । कलकत्ता ब्लागर्स मीट के रिपोर्ट व चित्रों की प्रतिक्षा रहेगी । पर उसके पहले तिथि व स्थान की घोषणा तो करो भाई ।
ReplyDeleteह्म्म्म, तो दुखड़ा आज लिख ही डाला आपने।
ReplyDeleteहमहूं इस दुखड़े में शामिल हैं, रायपुर में ले देकर तीन चार ही हिंदी ब्लॉगर है, वो भी कभी मिले नहीं।
आप आ जाओ रायपुर , गार्डन कहने के लायक जो भी गार्डन है वहीं बैठ जाएंगे फूल पत्ती निहारते।
बिल्कुल ठीक कह रहे हैं आप। मान्धाता, कोलकाता
ReplyDeleteशिव भाई,बीच बीच में मीट वगैरह तो पकना चाहिये.
ReplyDeleteपर हताशा ठीक नहीं.देखिये ना बात बात में चिट्ठाकार तो इकट्ठा हो ही गये हैं, हो जाय ब्लॉगर मीट !!
शिव जी भाई,
ReplyDeleteलग जाइए काम पे. मुझ से जो ज़रूरत हो आदेश करें. मेरे विचार से सबसे पहले दो-तीन bloggers मिल तो लें सब की सुविधानुसार. फिर आगे का कार्यक्रम तय करने में आसानी होगी. मेरा phone no. आपके पास है. जैसा उचित समझें आदेश करें.
शिव भाई
ReplyDeleteजहाँ चाह है वहाँ राह है....आपकी चाह में से ही राह निकलेगी...देखिएगा जल्द ही आप सब मिलेंगे....मैं प्रिंयकर जी, बाल किशन और बाकी भाइयों को उत्साहित करता हूँ.
एक दम अलग तरह की पोस्ट
बधाई।
अरे! जे का बात हुई भइया शिवकुमार ! अपन तो मिल ही चुके हैं . बाकी बतिया भी कई बार चुके हैं . सिर्फ़ प्रचार में थोड़ा पीछे हैं .
ReplyDeleteतो भइया टेंशन काहे बात का !
कल्है कर लो मीट !
आ जाओ हमरे घर ! बगलै में बड़ी झील है . उहां ले चलेंगे . अब मुंबई जैसी सजी-संवरी झील नहीं है तो क्या हुआ ! दूर-दूर तक फ़ैली शांत-ऊंघती कलकतिया झील और हरियाली तो है ही .
शिवजी आप हमेशा धारा के विपरीत चलने की जुगत लगाते हैं। अभी आज ही किसी की पोस्ट देखी। उसमें आवाहन था कि ब्लागर्स मीट बंद होनी चाहिये। आप चालू करना चाहते है? कोलकता जैसे शहर में ,अड्डेबाजी जिसकी पहचान हो, ब्लागर मीट् कौन बड़ी चीज है। चार-पांच लोगों से मुलाकात करो। फोटो खींचो और लगा दो। लिंक दे दो कुछ् भी उनके ब्लाग। दस कमेंट तो इसी बात के आयेंगे - इसका ब्लाग नहीं खुल रहा है। :)
ReplyDeleteशिव जी हां हम भाग्यशाली हैं कि दूसरे ब्लोगर भाइयों से मिलने का मौका मिला। आप एक बार बम्बई का चक्कर क्युं नहीं लगा लेते। हमारा भी आप से मिलने का बहुत मन है। वैसे आप ने जिक्र किया कि मैने भी अपने ब्लोग पर उस मिलन की फ़ोटोस लगाई हैं, ये सही नहीं है। तकनीकी ज्ञान न होने के कारण मैं तो मन मसोस कर ही रह गयी। न इस मिलन की फ़ोटोस दिखा सकी न विमल जी का मधुर गान सुना सकी जिसे हमने विडियो में रिकॉर्ड कर अपने पी सी पर सेव कर रखा है। जैसे ही पता चलेगा कैसे दिखाएं जरूर दिखायेगें।
ReplyDeleteदेर से आया.. सब ने कुछ न कुछ कह दिया.. अब आखिर में हम बस इतना कहेंगे शिव भाई..
ReplyDelete"नर हो न निराश करो मन को..." :)
अभय भाई,
ReplyDeleteअच्छा हुआ आपने कविता की अगली लाइन नहीं लिखी...नहीं तो जब पोस्ट लिखने बैठता, हमेशा इस कविता की दूसरी लाइन याद आती और शायद पोस्ट ही न लिख पाता.....:-)