Thursday, December 20, 2007

देख नहीं रहे, मंत्री जी चिंतित हैं

सरकार काम कर रही है, जब इस बात को साबित करना रहता है तो प्रधानमंत्री किसी समस्या का जिक्र करते हुए उसपर चिंतित हो लेते हैं. बताते हैं कि वे बहुत चिंतित हैं. कल बारी थी अमेरिका में आए आर्थिक संकट पर चिंतित होने की. प्रधानमंत्री बता रहे थे कि वे बहुत चिंतित हैं. सारी चिंता इस बात की है कि अमेरिका में आए आर्थिक संकट का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. वाकई, चिंतित होने की बात ही है. वैसे तो प्रधानमंत्री लगभग सभी समस्याओं को लेकर चिंतित रहते हैं, लेकिन आर्थिक समस्याओं के लिए उन्होंने अपनी पूरी चिंता का सत्ताईस प्रतिशत आरक्षित रख छोड़ा है.

वे जहाँ भी जाते हैं, उस जगह के मुताबिक चिंतित हो लेते हैं. महाराष्ट्र गए तो विदर्भ के किसानों की समस्या पर चिंतित हो लेते हैं. आसाम जाते हैं तो वहाँ हो रही हिंसा पर चिंतित हो लेते हैं. विदेश जाते हैं तो पाकिस्तान की समस्याओं को लेकर चिंतित रहते हैं. जिस जगह पर चिंतित होते हैं, वहाँ के लोगों को विश्वास हो जाता है कि 'प्रधानमंत्री जब ख़ुद ही चिंतित हैं, तो इसका मतलब सरकार काम कर रही है.' लोग आपस में बातें करते हुए सुने जा सकते हैं कि; 'मान गए भाई. यह सरकार वाकई काम कर रही है. देखा नहीं किस तरह से प्रधानमंत्री चिंतित दिख रहे थे.'

प्रधानमंत्री के चिंता के बारे में सोचते हुए मुझे लगा कि उनके और उनके निजी सचिव के बारे में वार्तालाप कैसी होती होगी. शायद कुछ इस तरह;

प्रधानमंत्री: "भई, कल तो २० तारीख है, कल किस बात पर चिंतित होना है?"

सचिव:" सर, कल आपको किसानों के प्रतिनिधियों से मिलना है. तो मेरा सुझाव है कि कल आप किसानों की हालत पर चिंतित हो लें."

प्रधानमंत्री: "हाँ, बात तो आपकी ठीक ही है. बहुत दिन हुए, किसानों की समस्याओं पर चिंतित हुए."

सचिव: "हाँ सर, किसानों की समस्याओं पर पिछली बार आप १५ अगस्त को लाल किले पर चिंतित हुए थे."

प्रधानमंत्री: " और, उसके बाद वाले दिन का क्या प्रोग्राम है?"

सचिव: "सर, २१ तारीख को आपको न्यूक्लीयर डील के मामले पर एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल से मिलना है. सो, मेरा सुझाव है कि उनसे मिलने के पहले आप अगर मीडिया को संबोधित कर लेते तो सरकार को मिले 'फ्रैकचर्ड मैनडेट' पर चिंता जाहिर किया जा सकता है."

प्रधानमंत्री: " हाँ, सुझाव तो अच्छा है. ठीक है, मीडिया से मिल लेंगे. लेकिन उसके बाद वाले दिनों में क्या प्रोग्राम है."

सचिव: "सर, २३ तारीख को गुजरात चुनावों का रिजल्ट आएगा. उस दिन रिजल्ट के हिसाब से चिंतित होना पड़ेगा. बीजेपी जीत जाती है तो साम्प्रदायिकता पर चिंतित हो लेंगे. लेकिन अगर हार जाती है तो फिर चिंता जताने की जरूरत नहीं है. हाँ, असली चिंता की जरूरत पड़ सकती है. चिंता इस बात की होगी कि मुख्यमंत्री किसे बनाना है."

प्रधानमंत्री: "ठीक है. वैसा कर लेंगे."

सचिव: "सर, एक बात और बतानी थी आपको. उड़ती ख़बर सुनी है कि गृहमंत्री शिकायत कर रहे थे कि उन्हें चिंतित होने का मौका नहीं दिया जा रहा है. कह रहे थे कि देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति ख़राब है, बम विस्फोट हो रहे हैं लेकिन उन्हें चिंतित नहीं होने दिया जाता. और तो और, सर, वित्तमंत्री भी शायद ऐसा ही कुछ कह रहे थे. ख़बर है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर वे ख़ुद चिंतित होना चाहते थे, लेकिन आप के चिंतित होने से उनके हाथ से मौका जाता रहा."

प्रधानमंत्री: "एक तरह से इन लोगों का कहना ठीक ही है. मैं ख़ुद भी सोच रहा था कि चिंतित होने का काम मिल-बाँट कर कर लें तो अच्छा रहेगा. वैसे आपका क्या ख़याल है?"

सचिव: "सर, आपकी सोच बिल्कुल ठीक है. आर्थिक मामलों वित्तमंत्री को एक-दो बार चिंतित हो लेने दें. बहुत दिन हुए गृहमंत्री को कश्मीर की समस्या पर चिंतित हुए. उन्हें भी चिंतित होने का मौका मिलना चाहिए. लेकिन सर यहाँ एक समस्या है. शिक्षा की समस्या पर मानव संसाधन विकास मंत्री ख़ुद चिंतित नहीं होना चाहते. उनका मानना है कि उन्हें केवल आरक्षण के मुद्दे पर चिंतित होने का हक़ है."

प्रधानमंत्री: "देखिये, यही बात मुझे अच्छी नहीं लगती. मैं उनको आरक्षण के मुद्दे पर चिंतित होने से नहीं रोकता. लेकिन उन्हें भी सोचना चाहिए कि शिक्षा का भी मुद्दा है. मैं ख़ुद महसूस कर रहा हूँ कि पिछले कई महीनों में उन्होंने प्राथमिक शिक्षा की हालत पर कोई चिंता जाहिर नहीं की. और फिर उन्हें ही क्यों दोष देना. कानूनमंत्री को भी किसी ने चिंतित होते नहीं देखा."

सचिव: "सर, आपका कहना बिल्कुल ठीक है. लोगों का मानना है कि बहुत सारे पुराने कानून बदलने चाहिए. और फिर कानून बदलें या न बदलें, कम से कम चिंतित तो दिखें. पिछली बार वे तब चिंतित हुए थे जब क्वात्रोकी जी को अर्जेंटीना में गिरफ्तार किया गया था. करीब डेढ़ साल हो गए उन्हें चिंतित हुए."

प्रधानमंत्री: "मसला तो वाकई गंभीर है. आज आपसे बातें नहीं करता तो मुझे तो पता भी नहीं चलता कि कौन सा मंत्री कब से चिंतित नहीं हुआ. एक काम कीजिये, चिंता को बढ़ावा देने वाली कैबिनेट कमेटी की मीटिंग कल ही बुलवाईये. मुझे तमाम मंत्रियों के चिंता का लेखा-जोखा चाहिए."

निजी सचिव कैबिनेट कमेटी के सचिव को चिट्ठी टाइप करने में व्यस्त हो जायेगा. शनिवार को चिंता का लेखा-जोखा ख़ुद प्रधानमंत्री लेंगे, इस बात की जानकारी देने के लिए.

8 comments:

  1. बेहतरीन जुगलबन्दी है भाईयों एकदम लक्ष्मी-प्यारे और शंकर-जयकिशन जैसी और मैं भी चिंतित हूँ कि ऐसा पार्टनर कहाँ जाकर ढूँढू... वाकई दमदार और छिलके उतारने वाला लेख है...

    ReplyDelete
  2. वाह! बहुत ही चिंतित किस्म की पोस्ट है.
    खैर हमारी चिंता तो ये थी कि कई दिनों से दिखाई नही दे रहे थे सो दूर हुई.

    अब बात इस व्यंग्य कि तुमने तो सीधे प्रधानमंत्रीजी को ही लपेट लिया इस बार. बहुत ही जबरदस्त व्यंग्य लिखा.
    वर्तमान हालत की सच्ची तस्वीर पेश की.

    कुछ सोनिया जी और अटल जी की चिंता के बारे मे भी हो जाय. क्या ख्याल है?

    ReplyDelete
  3. वाह, गूगल केलेण्डर की जगह हम भारतीय 'चिंतक केलेण्डर' की साइट बना कर प्रोमोट करें। उसके लिये मनचिंतक सिन्ह जी की सरकार से कुछ वेंचर कैपिटल या सबसिडी भी मिल सकती है। और हम हाईटेक न कर सकें तो प्रधानमंत्री जी की ब्लेसिंग से चिंतक एनजीओ कायम कर पैसा पीट सकते हैं। :-)

    ReplyDelete
  4. किस मुद्देपर किस मंत्री को कितनी चिंता करना करना है ये सब मेनेज करने के लिए क्यों न एक चिंता मंत्रालय हो ?

    ReplyDelete
  5. धांसू जी धांसू। मान गए आपके दिमागी घोड़े को कहां-कहां दौड़ाते हो।

    ReplyDelete
  6. बंधू, आप भी नाहक ही बेकार की चिंता और लोगों को लेकर परेशां होते रहते हैं. कभी आप ने चिंता की इस बात की के नीरज भईया ने जो आज पोस्ट लिखी है उसको कौन पढेगा और कौन टिपण्णी करेगा? बोलिए? जो आप के ब्लॉग को पढने सब कुछ छोड़ के आते हैं पहले उनकी चिंता कीजिये प्रधान मंत्री की चिंता को लेकर चिंतित होने वाले लोगों की तो कतार लगी हुई है आप क्यों हो रहे हैं उसमें शामिल?
    वैसे सच तो ये है आप बहुत अच्छा लिखते हैं बहुत याने बहुत ही अच्छा.
    नीरज

    ReplyDelete
  7. भई भौत बढ़िया.
    येसा भी हो सकता है।
    कि नंदीग्राम के परेशान पीएम से शिकायत करें जी हाय मर लिये।
    पीएम कहें और क्या जान लोगे,सौ यूनिट चिताएं तो दे चुका हूं।
    नंदीग्राम वाले बतायेंगे, महाराज इन चिंताओं की यूनिटों को लेफ्टवाले मानने से इनकार कर रहे हैं। औऱ कह रहे हैं कि इन चिंताओं को उनका सपोर्ट नहीं है।
    पीएम बतायेंगे कि सौ दो सौ यूनिट फालतू ले जाओ, पर लेफ्ट को परेशान करने को ना कहो। वरना पूरी सरकार चिंता में पड़ जायेगी।

    ReplyDelete
  8. नीरज जी से पूरी सहमति रखते हुए केवल एक बात की चिन्ता है यदि प्रधान मंत्री जी की चिन्ता का स्टॉक खत्म हो गया तो क्या होगा ?
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय