Saturday, December 22, 2007

मूढ़मति उपाधि - और भी लोग हैं लाइन में


किसी उपाधि से नवाजा जाना बहुत बड़ी बात है. पद्मश्री, पद्मविभूषण वगैरह तो बहुत सारे लोगों को मिलते रहते हैं. और तो और मैग्सेसे जैसे 'इम्पोर्टेड' पुरस्कार से भी पिछले सालों में कई देसी लोग नवाजे जा चुके हैं. लेकिन कुछ उपाधियाँ ऐसी होती हैं, जो सब के भाग्य में नहीं होतीं. मिसाल के तौर पर मूढ़मति उपाधि. लेकिन यहाँ एक अन्तर है. मैग्सेसे और पद्मश्री टाइप के पुरस्कार और सम्मान से नवाजे गए लोगों से हम नहीं मिलते, सो पता नहीं चलता कि ये लोग अपना मेडल चमकाते/दिखाते हैं या नहीं. लेकिन मूढ़मति सम्मान के बारे में कहा जा सकता है कि ये जिसे मिलता है, वह इसकी चर्चा करना नहीं भूलता. कारण शायद ये है कि मूढ़मति फाऊंडेशन मैग्सेसे और वगैरह से बड़ी संस्था है.

जब से शुकुल जी को 'मूढ़मति' की उपाधि से नवाजा गया है, हम जैसे ब्लागरों की वाट लग गई है. शुकुल जी अपने मूढ़मति वाले ताम्रपत्र को हर दो-तीन बाद अपनी किसी पोस्ट पर चमका ही देते हैं. अगर अपने ब्लॉग पर चमकाने का मौका नहीं मिलता तो दूसरों के पोस्ट पर कमेंट में ही चमका देते हैं. जैसे कह रहे हों; 'भूलो मत, तुम जितना चाहे लिख लो, लेकिन मूढ़मति का सम्मान मिलना बहुत मुश्किल है.' ठीक वैसे ही जैसे कमल हासन को पद्मश्री मिलने के बाद उनकी हर फ़िल्म की पोस्टर पर उनका नाम पद्मश्री कमल हासन लिखा होता था और साउथ के तमाम नॉन-पद्मश्री स्टार उनकी फिल्मों के पोस्टर देखकर मरे जाते होंगे.

सच में, शुकुल जी का ये ताम्रपत्र देखकर हम तो हीन भावना से मरे जाते हैं. मन में बात आती है कि; 'हाय, एक वे हैं, जो मूढ़मति सम्मान पर कब्जा जमाये बैठे हैं और एक हम हैं, जिन्हें कोई मूढ़मति नहीं कहता.' उपाधि देनेवालों ने भी अभी तक इस बात को क्लीयर नहीं किया कि; 'ये उपाधि अब केवल शुकुल जी के पास ही रहेगी, या साल दो साल बाद किसी और का चांस है इस उपाधि से नवाजे जाने का.' कहीं ऐसा न हो कि किसी और का चांस ही न आए और शुकुल जी अगले कई सालों तक अपनी उपाधि का ताम्रपत्र जगह-जगह चमकाते रहें.

उनकी कल वाली पोस्ट पढ़ रहा था. पता चला कि उनके अच्छे मित्र भी उन्हें इस बात की याद दिलाते रहते हैं कि वे मूढ़मति उपाधि पर कब्ज़ा जमाये बैठे हैं. मुझे तो पूरा विश्वास है कि कल वाली पोस्ट पर जिन मित्र का जिक्र शुकुल जी ने किया था, वे भी उनके इस उपाधि से जलते होंगे. शुकुल जी की कल वाली पोस्ट पढ़कर आज बाल किशन ने मुझसे पूछा; "भइया, हम तो ठहरे नए ब्लॉगर, लेकिन तुम तो थोड़े पुराने टाइप हो चुके हो, सो ये बताओ कि मूढ़मति की उपाधि कैसे ली जा सकती है." मुझे लगा ये बाल किशन भी अपने नए ब्लॉगर का स्टेटस जब-तब चमकाते रहता है. नीरज भैया और संजीत पहले ही बाल किशन के नए ब्लॉगर वाले स्टेटस को लेकर बोल चुके हैं, लेकिन बाल किशन मानता ही नहीं कि वो अब नया नहीं रहा. वैसे बाल किशन का सवाल सुनकर मेरे मन में ये भी आया कि; 'मुझे मालूम होता तो मैं ख़ुद ही नहीं ले लेता ये मूढ़मति की उपाधि.'

11 comments:

  1. सही उपधियॉं किसे पंसद नही होती, मुझे भी कई उपाधियां मिली थी और समय समय पर मिलती रहती है। कभी मानसिक सन्‍तुलन खोया हुआ तो कभी संघी तो कभी किसी का चमचा :)

    अच्‍छा लगता है जब अपन की भी बात होती है। आपके मन की स्थिति भी जान सकता हूँ। आपने ऐसा क्‍यों लिखा है :)

    ReplyDelete
  2. भैया आपको तो कुछ बताना भी मुश्किल है. हमने तो केवल ये पूछा था कि ये उपाधि मिलेगी कैसे और तुमने मेरी बात को सार्वजनिक कर दिया.लेकिन कोई बात नहीं. अब कर दिया तो कर दिया. उपाधि देने वालों की नजर हो सकता है मेरे नाम पर भी पड़े तो उपाधि मिल ही जाए.

    ReplyDelete
  3. "मूढ़मति फाऊंडेशन" जब शिव को अवार्ड देगा तो मुझे तो मिल ही जायेगा स्वत:। इस ब्लॉग में मेरा नाम भी अटैच है। अब शिव मेरा नाम हटाने को राजी हों तो भविष्य में मिलने वाला अवार्ड भी अकेले को मिलेगा। अन्यथा शेयर करना होगा। :-)

    ReplyDelete
  4. बंधू
    आप ने भी अच्छी चिंता की. उपाधियों में क्या रखा है? जो कुछ है वो होने में है. आप का मूढ़मति होना ही प्रयाप्त है ,बल्कि आप में मति का ना होना अनिवार्य है. जरूरी नहीं की उपाधि वालों की मति हम बे उपाधि वालों की अपेक्षा में अधिक मूढ़ हो. हम तो जन साधारण की प्रतिक्रिया को अधिक अहमियत देते हैं जब जनता हमको मूढ़मति मानती है तो उपाधि मिले ना मिले क्या फर्क पढता है. अब शाहरुख़ को "किंग" का कोई ताम्र पत्र मिला हुआ है? लेकिन जनता मानती है तो वो है.
    रही बात बाल किशन जी की तो उनसे कहिये की जीवन में कुछ भी पाने के लिए "जुगाड़" सीखना बहुत ज़रूरी है फ़िर चाहे वो मूढ़मति की उपाधि ही क्यों ना हो. आज हर जुगाडू के पास वो सब कुछ है जो वो चाहता है.
    नीरज

    ReplyDelete
  5. मूढ़मति की उपाधि के बारे मे जानकर अच्छा लगा आपने भी बढ़िया प्रसंग लिखा है धन्यवाद

    ReplyDelete
  6. वि्रोध दर्ज पहले भी करवा चुका हूं और अब फ़िर करवा रहा हूं।

    सबै उपाधि आप थोक लोग मेरा मतलब है सीनियर लोग ले जाओगे तो हम चिल्ल्हर लोगों को मतलब कि छोटे बालकों को कौन पूछेगा क्या मिलेगा।

    ReplyDelete
  7. जिक्र होना चाहिए, चर्चा होनी चाहिए। मूढ़मति हो या गूढमति हो।

    ReplyDelete
  8. संजीत > मतलब कि छोटे बालकों को कौन पूछेगा क्या मिलेगा।
    बात करते हो फिल्मी हीरोइनों की और खुदै छोटे बालक की उपाधि कब्जियाये हो! कब तक दाबे रहोगे?

    ReplyDelete
  9. भाई देखिए, शुकुल जी को मिली मूढ़मति उपाधि कई दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण है. सबसे पहली तो बात यह कि इसके लिए उन्होने कोई लोब्बिंग नहीं की है. उपाधि उन्हें स्वतः स्फूर्त ढंग से मिली है. दूसरी इसमें कोई प्रदर्शन और प्रोपेगंडा नहीं किया गया है. बहुत सादे ढंग से बगैर किसी समारोह के दिया गया. और भी कई कारण हैं, जिन्हें में आने वाले दिनों में समय मिलने पर इयत्ता पर गिनाऊंगा. वैसे ही जैसे जगह मिलने पर पास दिया जाता है. सुझाव बस एक है. वह यह कि आगे से हम लोग शुकुल जी के naam के आगे स्वामी ही मूढ़ मति लगा दिया करें. वैसे ही जैसे पद्मश्री या डाक्टरेट वाले लगाते हैं. तो बोलिए न अभी से मूढ़मति शुकुल श्री फुरसतिया जी की जय.

    ReplyDelete
  10. भाई अपने साथ जुड़ी चीजों से लगाव होना स्वाभाविक है। आप भी लगे रहो। कभी न कभी कोई न कोई उपाधि आपके यहां शरण पायेगी। कहा भी है तुलसीजी ने- जेहि पर जाकर सत्य सनेहू। मिलहिं सो तेहि नहिं कछु सन्देहू॥

    ReplyDelete
  11. कल अनूप जी की पोस्ट पढ़ हमारी हंसी नहीं रुक रही थी और आज आप की। भैया आपऔर अनूप जी जैसे लोग मूढ़मति हो लिए तो हम क्या कहलाएगें

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय