Friday, April 4, 2008

मार्च का महीना

मार्च आया और चला गया. जब तक नहीं आता, तब तक उसका इंतजार करते हैं. और जब आ जाता है तो न जाने कितने लोगों के ऊपर 'प्रेशर' डाल जाता है. कुछ लोग तो इसके जाने से निराश हो लेते हैं. ऐसे लोग मार्च के सहारे आफिस के अलावा बाकी और कोई काम नहीं करते.

रिश्तेदार बुला लें तो जवाब देते हैं; "अभी नहीं. मार्च तक तो बात ही मत करो." कोई रिश्तेदार इनके घर पर आना चाहे तो वहाँ भी वही बात; "न न बस यही मार्च जाने दीजिये उसके बाद आईयेगा." ऐसे कहेंगे जैसे मार्च ने आकर घर में डेरा डाल रखा है इसलिए और किसी रिश्तेदार के बैठने तक की जगह नहीं है.

पत्नी कहेगी; "सुनो, माँ आना चाहती थी" तो जवाब मिलेगा; "अरे समझाओ न उनको. यही मार्च जाने दो उसके बाद आने के लिए बोलो." एक तारीख से ही कहना शुरू हो जाता है; "नहीं-नहीं, अभी मार्च तक तो कोई बात ही मत करो. जो कुछ भी है, मार्च के बाद देखेंगे. अभी मार्च तक बहुत प्रेशर है."

एक ज़माना था जब जब इंसान दूसरे इंसान को परेशान करता था. 'प्रेशर' देता था. कभी-कभी सरकार, पुलिस और गुंडे भी परेशां करते थे. लेकिन अब ज़माना वैसा नहीं रहा. अब तो महीना परेशान करता है और 'प्रेशर' देता है.

ऐसा नहीं है कि पहले महीने परेशान नहीं करते थे. पहले भी करते थे. लेकिन तब हम पर ग्लोबलाईजेशन का असर नहीं था. लिहाजा तब हिन्दी महीने परेशान करते थे. सिनेमा के गाने याद कीजिये, पता चलेगा कि नायक और नायिका किसी न किसी हिन्दी महीने से परेशान रहते थे.

खासकर सावन बहुत परेशान करता था. लगभग हर फ़िल्म में एक गाना जरूर होता था जिसमें सावन का जिक्र होता था. वो ज़माना ग्लोबलाईजेशन का नहीं था. लिहाजा नायिका हिन्दी महीने में परेशान रहती थी. जैसे सावन में या फिर फागुन में. लेकिन अब सबकुछ कारपोरेट स्तर पर होता है. नायक और नायिका, दोनों मार्च महीने में परेशान रहते हैं.

पहले सावन में नायिका गाती थी; "तेरी दो टकिया की नौकरी और मेरा लाखों का सावन जाए."

अब नहीं गाती. अब सैलरी बढ़ गई है. नायक को लाखों रुपये सैलरी मिलती है. अब नौकरी लाखों की हो गई है और सावन दो टके का भी नहीं रहा. अब नायिका ये नहीं कह सकती कि; "तेरी दो टकिया की नौकरी......".

अब अगर ऐसा गाना गा दे तो नायक तो फट पडेगा; "क्या दो टकिया? दो टकिया की नौकरी होती तो खाने के लाले पड़ जाते. आटा का भाव देखा है? खाने के तेल और दाल का भाव पता है कुछ? कैसे पता रहेगा, शापिंग मॉल में जींस और टी शर्ट खरीदने से फुरसत मिले तब तो आटा और दाल का भाव पता चले. और ये मलेशिया की छुट्टियाँ कहाँ से आती?"

अब इस तरह के शब्दों से डर कर कौन नायिका गाना गाएगी? और वैसे भी अब तो ख़ुद नायिका ही कहती फिरती है; "ह्वाट अ टेरीबल मंथ, दिस सावन इज..वन कांट इवेन ड्रेस प्रोपेर्ली...वही कचरा वही बरसात..बाहर निकलना भी मुश्किल रहता है."

अब तो हालत ये है कि नायक आफिस से रात को एक बजे घर पहुंचता है. नायिका पड़ोसन को सुनाती है; "क्या बतायें. कल तो ये रात के एक बजे घर आए. मार्च चल रहा है न."

लीजिये, लगता है जैसे मार्च महीने में पूरे तीस दिन बॉस का आफिस में काम ही नहीं है. मार्च ही बॉस बना बैठा है. नायक का हाथ पकड़ कर रखता है कि; "खबरदार एक बजे से पहले कुर्सी से उठे तो."

नायक की भी चांदी है. आफिस में बैठे-बैठे काम करे या फिर इंटरनेट सर्फ़ करे, किसे पता? लेकिन मार्च का सहारा है. सुबह के तीन बजे भी घर पहुंचेगा तो मार्च है रक्षा करने के लिए. कार्पोरेट वर्ल्ड में सारे पाप और पुण्य यही मार्च करवाता है.

रविवार को सब्जी लेने के लिए घर से निकला. रिक्शे पर बैठा तो रिक्शावाला बहुत तेजी से चलाने लगा. हिम्मत नहीं हुई कि उसे आहिस्ते चलाने के लिए कहूं. एक बार सोचा कि उसे रिक्शा धीरे-धीरे चलाने के लिए कहूं. फिर मन में बात आई कि कहीं कह न दे; "आपको मालूम नहीं, मार्च महीना चल रहा है. सबकुछ तेजी से होना चाहिए. आप आफिस में काम नहीं करते क्या?"

मेरे मित्र हैं. चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं. मार्च महीने के आखिरी दिन रात के बारह बजे तक ख़ुद भी आफिस में थे और सारा स्टाफ भी. दूसरे दिन बता रहे थे; "बहुत परेशानी हो गई कल. कम से कम सौ इन्कम टैक्स का रिटर्न था फाइल करने के लिए. लेकिन टैक्स डिपार्टमेन्ट का साईट पूरा जाम था."

जाम नहीं रहेगा तो क्या रहेगा. मार्च का महीना है. अन्तिम दिन लाखों लोग साईट पर एक साथ आक्रमण कर देंगे तो बेचारा इतना बड़ा आक्रमण कैसे झेल सकेगा?

वैसे अब मार्च चला गया है. मार्च के चले जाने से कुछ लोग खुश हैं. वैसे कुछ निराश भी हैं. जो लोग निराश हैं वे इसलिए निराश हैं कि मार्च का नाम लेकर देर रात तक घर से बाहर रहे लेकिन अब नहीं रह सकेंगे. वैसे उन्हें ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं. समय देखते देखते कट जाता है. मार्च फिर आएगा.

12 comments:

  1. सही कर रहे हो शिव भईया, मार्च ने सबको मार्च करवाके रखा है - दायें बायें, आगे पीछे, मार्च देख हर कोई अंखियां मींचे।

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  2. I am agree with you , even me wrote similar post on my DAALAAN :)

    Ranjan

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  3. महानायक - यही सुख है परदेसी नौकरी का - मार्च मार्च न रहा - मनीष

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  4. वाकई मार्च अच्छों-अच्छों की बारह बजा देता है. मेरा आशय मेरे एक मित्र से है जो आम तौर पर सरकारी समयानुसार ऑफिस में काम करते हैं लेकिन मार्च में बारह बारह बजे तक उनके जी-टाक की बत्ती जलती रहती थी :)

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  5. AB SAAB MARCH KI KYA BAAT KARE APANA TO BARO MAHINO YAHI HAAL HAI.
    SASURA MARCH GAYA NAHI KI APRIL AAGYA.
    AB KAREN BHI KYA SAB JHELNA PADTA HAI.

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  6. अच्छा हुआ - मार्च गया। चौबीस मार्च के बाद पण्डित शिव कुमार मिश्र की कोई पोस्ट न थी ब्लॉग पर। बीच में हमें लगने लगा था कि मौका है - यह सुषुप्त ब्लॉग हड़पा जा सकता है!

    पर हमारी कुभावना पर लगाम लगी। मार्च गया और टपाटप आपने दो पोस्ट दागीं। और बहुत अच्छी पोस्टें!

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  7. भाई नायिका को जब जब महीना परेशान करता है नायक का परेशान होना लाजमी है।

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  8. सुन्दर! मार्च भी अब मार्च कर गया।

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  9. अपने अभी तक हमे मार्च का हिसाब नही भेजा है,पोस्ट वोस्ट तो ठीक है पर कही बाद मे मत कहियेगा..कि 31 को हम ब्लोगिया रहे थे..:)

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  10. सचमुच् मार्च् महिना अभि अप्रिल् मे भि गया नहि.... केयौकि सैलरि अभि तक् नहि मिला....सभि ब्यस्त हैन् ....केयौकि मार्च् का महिना है!बाह् क्या मजेदार् पोस्ट् है!

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय