बहुत दिन हुआ वामपंथियों को नाराज हुए. नेता इस बात पर चिंतित थे कि किसी मसले को लेकर नाराज नहीं हो पा रहे हैं. नाराजगी जाहिर करने के लिए मुद्दा खोजने की कवायद शुरू हुई. बड़े नेताओं की एक बैठक बुलाई गई. सारे के सारे चिंतित नेता सोचनीय मुद्रा में बैठे थे. मीटिंग की शुरुआत करते हुए एक नेता ने कहा; "दो महीने हो गए नाराज हुए. अगर ऐसा हे चलता रहा तो पार्टी की बड़ी बदनामी होगी. लोग पार्टी से निराश होते जा रहे हैं. कह रहे हैं पार्टी अपने मूल रास्ते से भटक रही है."
नेता ने अपनी बात ख़त्म की तो दूसरा नेता बोल पड़ा; "सारा दोष केन्द्र सरकार का है. केन्द्र सरकार अमेरिका के साथ न्यूक्लीयर डील पर पीछे हट गई. इस तरह की सरकार को समर्थन देने का क्या फायदा जो नाराज होने का मौका नहीं देती?"
"केन्द्र सरकार अगर न्यूक्लीयर डील से पीछे हट गई, तो भी क्या हुआ? मंहगाई के मुद्दे पर भी तो हम नाराज नहीं हो सके"; एक दूसरे नेता ने चिंता जाहिर की.
एक नेता जो मंहगाई के मुद्दे पर नाराज होने की बात बड़े गौर से सुन रहा था उसने कहा; "मंहगाई पर भी कैसे नाराज होते हम. एक बार नाराज हुए तो सरकार ने कह दिया कि चीन में भी मंहगाई बहुत फ़ैल गई है. हम भी क्या करते. जब चीन में मंहगाई फ़ैल गई है तो मंहगाई के बारे में कैसे बोलते?"
"आप ठीक कह रहे हैं. अगर चीन में मंहगाई नहीं आई होती तो नाराज होने की हमारी प्रैक्टिस नहीं रूकती. लेकिन कर ही क्या सकते हैं. सरकार को हमने सुझाव दिया था कि गेंहू, चावल, दाल, आलू वगैरह की ट्रेडिंग कमोडिटीज एक्सचेंज पर रोकनी चाहिए. सरकार ने हमारी बात मान ली. इसके कारण हमारे हाथ से मंहगाई निकल गई. लेकिन हमें नाराज होने का कोई न कोई रास्ता निकलना ही पड़ेगा. नाराज न हो पाने के कारण कार्यकर्ताओं में भी चिंता व्याप्त हो रही है"; एक नेता बोला.
एक नेता जो सबसे से सीनियर था, अपना चश्मा ठीक करते हुए बोला; "अजीब स्थिति है. एक समय था कि हमारे पास नाराज होने के लिए मुद्दों की कमी नहीं रहती थी और आज हालत ये है कि एक भी मुद्दा नहीं मिल रहा. ओलिम्पिक की मशाल भी भारत में ठीक-ठाक दौड़ लगाकर चली गई. नेपाल से राजशाही चली गई तो भी केन्द्र सरकार ने उसका स्वागत किया. इस तरह से तो परिस्थिति बिगड़ती जा रही है. कुछ जल्दी ही करना पड़ेगा."
प्रस्ताव पारित कर के एक कमेटी का गठन कर दिया गया. कमेटी को नाराज होने के लिए मुद्दों के चुनाव का भार सौंपा गया. एक दिन बाद कमेटी की रिपोर्ट आई. उसमें लिखा था;
कमेटी ने बड़ी तन्मयता के साथ मुद्दे खोजने की कोशिश की. मुद्दों की खोज पर समग्र अध्ययन करने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि निम्नलिखित मुद्दे पर पार्टी अपनी नाराजगी जाहिर कर सकती है;
आई पी एल क्रिकेट टूर्नामेंट में अमेरिका और पश्चिमी देशों से चीयरलीडरनियों का आयात किया गया है. हमें इस मुद्दे पर नाराज होने का हिसाब बैठाना चाहिए. ऐसे देशों से इस तरह के आयात की वजह से अमेरिकी साम्राज्यवाद के भारत में फैलने का चांस है और इसके साथ-साथ हमारे अपने देश के चीयरलीडरनियों को रोजगार का मौका खोना पड़ेगा. पार्टी इस मुद्दे पर नाराज हो सकती है.
सुनने में आया है कि पार्टी ने कमेटी द्वारा सुझाए गए मुद्दे पर नाराज होने का मन बना लिया है.
कमेटी की रपट सरकार को लीक हो गयी है। सरकार ने वामपन्थ से कहा है कि वे २० चीनी चीयरलीडरनियों के नाम सुझायें जिन्हे आयात किया जा सके। उन्हें आई पी एल के इतर क्रिकेट मैचों में खपाया जायेगा। :-)
ReplyDeleteक्या आप लोग भी, मेरे पास टेलिविसन नहीं है तो यह कह कर चिढा रहे हैं की कहाँ कहाँ से चीयरलीडरनियाँ आई थी.. :(
ReplyDeleteये चीयरलीडरनियों वाला हिस्सा तो आलोक पुराणिक जी का कॉपीराइट है जी, आपने कैसे बिना परमीशन लिये छाप दिया?
ReplyDeleteअब भुगतना पड़ेगा आपको जल्दी ही पुराणिक जी भी आते ही होंगे :)
नाराजी की एक वजह ये भी हो सकती है कि आपने इत्ते दिनों नाराज होने का कोई मौका नहीं दिया, हम इसलिए नाराज हैं।
ReplyDeleteनाराजगी की कई वजहे हो सकती है:
ReplyDelete१. राहुल बाबा का प्रधानमंत्री पद के लिए नाम उछाला जाना, उनकी सहमति से नही हुआ।
२.सरकार चीन से चीनी आयात नही कर रही।
३.सरकार चीन को साफ़्टवेयर तकनीकी नही दे रही।
४.वामपंथियों के सम्मेलन को दूरदर्शन ने कवर नही किया।
५. सरकार अभी भी अमरीका से सम्बंध बनाए हुए है।
६. आईपीएल पर विदेशी मुद्रा क्यों खर्च की जा रही है?
अरे नाराज होने का मौका दो भाई. अपने बंगाल में तो ममता जी हैं नाराजगी देने के लिए.
ReplyDeleteवैसे एक वाम पंथी नेता कह रहा था कि इनलोगों ने कलकत्ते में जेएनयू खोलने के लिए कहा है.
सरकार नहीं खोलेगी तो नाराज हो लेंगे.
लो जी आप तो अर्थ सलाहकार से राजनितिक सलाहकार हो लिए ..!! क्या धाँसू आइडिये निकल रहे हैं लेफ्ट वालों के लिए, आपकी इस पोस्ट और उन पर टिप्पणियों से. :)
ReplyDeleteगजब व्यंग है यह. बहुत अच्छा.
ReplyDeleteबहुते मारक....
ReplyDeleteअब तो हम भी सोचे है कि कोई प्रबंध हो कि पोस्ट डालें तो उस पर चीयरलीडरनियाँ नाचने लगें...वर्चूयल ही सही...नाचें तो बलिये.
हा हा ! बेचारे वामपंथी तो इस बात से नाराज है कि आप और आलोक जी की नजर उन पर से हटती ही नहीं है। अब वो छुप छुप कर चियरलीडरनियों को कैसे निहारें
ReplyDeleteआप की चिंता तो वाजिब है ,लिकिन आपन एदेर से इस और सोचा ,अभि तो सारे वाम वाले ट्राच के साथ ही चीन चले गये है वहा "रोज रोज बात बेबात नाराक कैसे हो "पर काऊ काऊवाऊ माऊ चिंग चौंग फ़ुंग स्रे क्लास ले रहे है,प्रमोद जी ने अरेंज कराई है :)
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