Saturday, April 26, 2008

दुर्योधन की डायरी - पेज ३७१

कल विकास से बात हो रही थी. विकास मेरा बड़ा भतीजा है. लखनऊ में रहता है. लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीकॉम की पढाई कर रहा है. उसकी परीक्षाएं चल रही हैं. चार तारीख को परीक्षा ख़त्म होनी थी लेकिन तारीख बढ़ा दी गई. अब दो मई को ख़त्म होगी. पूछने पर पता चला कि बड़ी धांधली चल रही है. धांधली से लगा जैसे परीक्षा में नक़ल की वजह से परीक्षाएं आगे बढ़ा दी गईं. लेकिन यहाँ मामला ही उलटा है. परीक्षा के दिन आजकल पता चलता है कि क्वेशचन पेपर ही प्रिंट नहीं हुए हैं. उसकी बात सुनकर मुझे दुर्योधन की डायरी के उस पेज की याद आ गई जिसमें उन्होंने हस्तिनापुर में शिक्षा की हालत का 'बखान' किया था. कहते हैं हस्तिनापुर भी उत्तर प्रदेश में था. तो क्या पिछले पाँच हजार साल में कुछ नहीं बदला? आप दुर्योधन जी की डायरी का वो पेज पढ़िए. पता चल जायेगा, मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ....

दुर्योधन की डायरी - पेज ३७१

सालाना इम्तिहान को अब केवल दो महीने रह गए हैं. लेकिन गुरु द्रोण हैं कि पिछले तीन दिन से क्लास में आ ही नहीं रहे हैं. इस तरह से पढायेंगे तो सिलेबस कैसे ख़त्म होगा? तीन दिन पहले ही जब मैंने सवाल किया कि गुरुदेव परीक्षा को अब केवल दो महीने रह गए हैं लेकिन आपने भूगोल और समाजशास्त्र का सिलेबस पूरा नहीं किया तो भड़क गए. बोले; "तुम्हें समाजशास्त्र का ज्ञान है कोई? जितना पढ़ा है, उसे भी अपने व्यवहार में प्रयोग किया है कभी? कल शाम को क्रीड़ास्थल पर मिले थे तो मुझे प्रणाम नहीं किया. और कहते हो कि समाजशास्त्र का सिलेबस ख़त्म नहीं हुआ." अब इन्हें कौन समझाए कि दिन में सत्रह बार प्रणाम करते-करते छात्र एक-आध बार भूल भी तो सकता है.

अभी दो महीने पहले ही गुरुदेव पूरे एक महीने की छुट्टी बिताकर आए. प्रयाग गए थे. संगम के किनारे माघ महीने में कल्पवास करने. अपनी जगह अपने किसी रिश्तेदार को पढ़ाने का काम सौंप गए थे. रिश्तेदार हमें पढाता था लेकिन हाजिरी रजिस्टर में गुरुदेव की हाजिरी लगती थी. पूरे महीने की सैलरी भी उन्ही को मिली. ये सब बातें अगर पिताश्री को बता दूँ तो इनकी शामत आ जायेगी. बिदुर चचा को बताने का कोई फायदा तो है नहीं. वे तो गुरुदेव को ही सपोर्ट करते हैं. वैसे भी मेरी बात पर उन्हें ज़रा भी विश्वास नहीं सो उन्हें बताने का कोई फायदा भी नहीं है. लेकिन फिर सोचता हूँ कि गरीब ब्राह्मण हैं, इनकी नौकरी चली गई तो घर-परिवार कैसे चलेगा.

पाठशाला में तमाम तरह की अनर्गल बातें नोट की हैं मैंने. पिछली छमाही इम्तिहान में गुरुदेव ने हमारी कापी जांचने का काम भी अश्वत्थामा से करवाया था. ख़ुद बैठे-बैठे ताश खेलते थे और अश्वत्थामा कॉपी जांचता था. ये बात तो मुझे तब पता चली जब मैं दु:शासन और अश्वत्थामा फ़िल्म देखने गए थे. अश्वत्थामा ने ही बताया था कि मैं गणित में फेल हो रहा था लेकिन उसने मेरा नंबर इसलिए बढ़ा दिया क्योंकि पिछले महीने मैंने उसे आईसक्रीम खिलाई थी. गणित में मेरी कमजोरी तो मुझे ले डूबेगी.

हस्तिनापुर में प्राथमिक शिक्षा की हालत सचमुच बहुत ख़राब है. एक दिन गुरुदेव से प्राथमिक शिक्षा की ख़राब हालत के बारे में कहा तो बोले; "राजघराने से ऐसे आदेश मिले हैं कि सारी इनर्जी उच्च शिक्षा पर लगाई जाय. हमें ज्यादा से ज्यादा मैनेजमेंट ग्रैजुएट पैदा करने हैं." अरे मैं कहता हूँ कि जब आधार ही मजबूत नहीं रहेगा तो उच्च शिक्षा की पढाई करके क्या फायदा? लेकिन मेरी बात कौन सुने? फिर सोचता हूँ, मुझे भी इन सब बातों में नाक घुसाने की जरूरत नहीं है. आख़िर मुझे कौन सी नौकरी करनी है. मुझे तो राजा बनना है. फिर मैनेजमेंट ग्रैजुएट मेरे लिए काम करेंगे.

आज दु:शासन बता रहा था कि राजमहल से ख़बर आई है कि एकलव्य ने कुछ युवकों का दल बना लिया है और कल राजमहल के सामने प्रदर्शन कर रहा था और नारे लगा रहा था. गुरुदेव ने उसे शिक्षा दे देती होती तो आज ऐसा नहीं होता. जब दु:शासन से मैंने पूछा कि एकलव्य क्या चाहता है तो उसने बताया कि वो मैनेजमेंट और इंजीनियरिंग कालेज में आरक्षण चाहता है. जिस दिन गुरुदेव ने उसे लौटाया था उस दिन मैं मिला होता तो उसके लिए ज़रूर कुछ करता. लेकिन अब सोचता हूँ कि एकलव्य और उसके साथियों को आरक्षण दिलाने का वादा मैं ख़ुद ही कर दूँ. भविष्य में जब भी अर्जुन वगैरह से झमेला होगा तो ये एकलव्य बहुत काम आएगा.

कल ही एकलव्य से अप्वाईंटमेंट फिक्स करूंगा.

12 comments:

  1. गुरुदेव, ताश में रमने के बावजूद स्मार्ट निकले! इससे पहले दुर्योधन एकलव्य से अप्वॉइण्टमेण्ट फिक्स करता, उन्होने एकलव्य का अंगूठा ही झटक लिया।
    नहीं तो एक कर्ण ने ही पाण्डवों की पिलपिली कर दी थी। एकलव्य भी होता तो आज आप दुर्योधन की नहीं भीम की डायरी लिख रहे होते! दुर्योधन की सक्सेस स्टोरी धर्मग्रन्थों का हिस्सा होतीं! :D

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  2. कलम क्या कमाल है साहब.
    पुरान और मिथ को रोज़मर्रे से जोड़कर
    समझ का नया सेतु तैयार करना बड़ी बात है.
    आप,मुझे इसके सिद्ध कलाकार लगे.
    सभार बधाई.
    =============================
    अजित जी के सफ़र ने हमें हमराह बना दिया
    लिहाज़ा धन्यवाद के पत्र वे भी हैं.

    डा.चंद्रकुमार जैन

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  3. पुराण.... साभार.....पात्र पढ़िएगा.
    हमारी कलम भी
    फिसल गई देखिए न !

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  4. अरे, सही कहा. पाँच हजार साल में कुछ नहीं बदला.
    लेकिन ये केवल उत्तर प्रदेश की बात नहीं है. प्राईमरी एजुकेशन
    की हालत सब जगह ऐसी ही है.

    दुर्योधन तो राजा था. लेकिन अपने जैसों का क्या होगा.

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  5. दुर्यॊधन् कि डायरी चलति रहनि चाहियॆ ! याद् रहॆ बन्द् कर् दॆनॆ सॆ दुर्यॊधन् कि शाख मे बहुत् कमि आ जायॆगि, और् आप् कॆ उपर् मानहानि का मुकदमा दाग‌ दॆगा!

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  6. इस अर्जुन के चलते एकलव्य का उद्धार ना होने वाला. बात महाभारत की हो या आज के भारत की

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  7. वाह, दुर्योधन जी की डायरी की जय हो........
    यह तो भाई "कहानी गाँव गाँव के प्राथमिक सरकारी शिक्षण संस्थान की" है,सिर्फ़ उत्तर प्रदेश की नही. हालांकि यह पूरी तस्वीर नही है,इस से भी भयावह स्थिति होती है,पर इतना भी ठीक है,ठीक क्या बहुत बढ़िया है.आज तो यह हाल है कि एक अति साधारण मजदूरी कर पेट पलने वाला पिता भी यदि सचमुच अपने बच्चे को पढ़ना चाहता है तो ऐसे संस्थानों के हवाले बच्चे को नही करता ,बल्कि झोपडी नुमा ही सही किसी प्राइवेट अंग्रेजी माध्यम स्कूल मे ही भेजता है.

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  8. बंधू
    "कहते हैं हस्तिनापुर भी उत्तर प्रदेश में था. तो क्या पिछले पाँच हजार साल में कुछ नहीं बदला?"
    आप मायावती और मुलायम दोनों से सीधे टकराने वाले हैं. हम आप के शुभ चिन्तक हैं सो आगाह किए देते हैं, आप का ब्लॉग अगर उनके किसी चमचे ने पढ़ लिया तो आप की खैर नहीं. वो दोनों तो क्या ख़ाक पढेंगे? पढे लिखे होते तो बात ही क्या थी, लेकिन असली डर चमचों का है.
    सोचता हूँ अगर दुर्योधन की डायरी आप के हाथ न लगती तो उस युग की कितनी ही ज्ञानवर्धक बातें हमें मालूम ही ना पढ़तीं. उस युग में भी दुर्योधन जैसा समझदार व्यक्ति हुआ करता था सोचा कर आश्चर्य होता है.
    नीरज

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  9. शिव जी आज ही अपने चैनल मैं ख़बर पढ़ी कि मध्यप्रदेश में किसी जगह स्कूल में कोई विशेष सप्ताह मनाने के ऊपर से आदेश भेजे गए लेकिन जब आदेश स्कूल तक पहुंचा तब तक उस 'विशेष सप्ताह' का सिर्फ एक ही दिन बचा था!

    बहुत अच्छा लिखा है।

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  10. अपने आधुनिक महाभारत के दुर्योधन और दुशासन की बढ़िया कहानी दी है जो आरक्षण के लिए भिड़ने को तैयार बैठे है आनंद आ गया बहुत बढ़िया गाथा पढ़वाई अपने धन्यवाद

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  11. बहुत पसंद आई दुर्योधन की डायरी । क्या कमाल का रिश्ता जोडा है कल और आज में ।

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  12. शीर्षक इतना लाजवाब है की आदमी को उत्सुक बना देता है की क्या लिखा होगा diary मे ओर आपने उत्सुकता के साथ न्याय किया है ,क्रपया लिखते रहिये......

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय