चीन में ओलिम्पिक उत्सव के दिन नज़दीक आ गए हैं. तैयारी जोरों पर है. वैसे तो तैयारी पिछले चार सालों से चल रही है. बहुत सारा लोहा और सीमेंट खप चुका है. क्रूड आयल की तो पूछिए ही मत. जिन लोगों ने चीन को नज़दीक से देखा है वे ही बता सकते हैं कि किस तरह से तैयारी चल रही होगी. हाँ अगर लेकिन मुझे पूछेंगे तो शायद तैयारी का वर्णन कुछ इस तरह से हो;
कागजों की लाल-हरी, नीली-पीली पन्नियाँ सजाई जा रही होंगी. रस्सी में बंधे आम्रपत्रों ने लटकने की प्रैक्टिस शुरू कर दी होगी. घर-द्वार सजने शुरू हो गए होंगे. लाऊडस्पीकर पर "मैं तो रस्ते से जा रहा था" का चीनी संस्करण बज रहा होगा. नज़दीक के रिश्तेदार जैसे हांगकांग, सिंगापुर वगैरह के लोग अभी से आना शुरू हो गए होंगे. तिब्बतियों को ख़ास तौर पर इन कामों में लगाया गया होगा, जिससे पूरी दुनियाँ की मीडिया को पता चले कि तिब्बती भी खुश हैं. ठीक वैसे ही जैसे हम अपने यहाँ शादी-व्याह पर गाँव वालों को बुला लेते हैं. ये बताने के लिए कि पूरे गाँव में हमारे सम्बन्ध सबके साथ बहुत अच्छे हैं.
बहुत बड़े भट्ठे पर कडाहा चढ़ गया होगा और उस कडाहे में चाऊमीन उबल रहा होगा. एक दूसरे भट्ठे पर छोटा कडाहा चढ़ा दिया गया होगा और उसमें वेजीटेबल मंचूरियन या फिर चिली पनीर और चिली पोटैटो पकाया जा रहा होगा. हाँ, यह हो सकता है कि पनीर को स्क्वायर में नहीं काटा गया होगा. स्क्वायर शब्द से चीन वालों को डर लगता है. अभी तक स्कावर भूल नहीं पाये होंगे. नॉनवेजिटेरियन लोगों के लिए अलग से भंडारा होगा. जहाँ चिकेन मंचूरियन और चिली चिकेन बन रहा होगा. साथ में चिकेन फ्राईड राइस वगैरह भी.
ॐ ड्रैगनायह नमः लिखकर निमंत्रण पत्र भी भेजना शुरू हो गया है. "भेज रहा हूँ नेह-निमंत्रण प्रियवर तुम्हें बुलाने को, हे मानस के राजहंस तुम भूल न जाना आने को", नामक दोहा (या फिर जो भी हो, इसका निर्णय हिन्दी के डॉक्टर करेंगे), लिखते हुए चीन वालों ने सभी देशों के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों को निमंत्रण पत्र भेज दिया है. लेकिन यहाँ पंगा हो गया है. भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को निमंत्रण पत्र नहीं भेजा गया. भारत के लिए चीन वालों ने सोनिया गांधी जी को निमंत्रण भेज डाला. वे सोनिया जी को ही देश का सर्वे-सर्वा समझ रहे हैं. चीन के लिए सोनिया जी ही राष्ट्रपति और वही प्रधानमंत्री. लोग शिकायत करते हुए कयास लगा रहे हैं कि बाकी देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को बुलाया गया लेकिन भारत के नहीं. भारत से सोनिया जी को बुलाया गया. अब इसे शिकायत समझें या खुशी के बोल?
लेकिन ऐसा क्यों हुआ कि सोनिया जी को निमंत्रण पत्र भेजा गया लेकिन राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को नहीं? कारण चाहे जो भी हो, मुझे तो लगता है कि ये सोनिया जी के चीन दौरे की वजह से हुआ होगा. जब वे वहां गई थीं तो चीन वालों ने पूछा होगा; "आपके देश का राष्ट्रपति कौन है?"
डेलिगेशन में से कोई अतिविश्वासी प्राणी बोला होगा; "अरे आप राष्ट्रपति वगैरह पर ध्यान मत दीजिये. जो हैं, मैडम ही हैं. आप इन्ही के नाम निमंत्रण पत्र भेजिए. आप चाहे तो मैडम से ही उदघाटन भी करवा सकते हैं. आप उन्ही के नाम में भेजिए, मैडम अगर नहीं आ सकीं तो वे राष्ट्रपति को भेज देंगी."
बस चीन वालों ने भेज दिया होगा. बरुआ जी ने इंदिरा जी के लिए कहा था कि "इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इस इंदिरा." वैसे ही इस केस में भी किसी ने कह दिया होगा. ये अलग बात है कि अभी तक ये बात सामने नहीं आई है.
छोटे-छोटे प्रोटोकाल के टूट जाने से जो हाय-तौबा मचती है, इस बार नहीं मची. कैसे मचेगी, सब तो न्यूक्लीयर डील में बिजी हैं. मेरा एक मित्र कल कहा रहा था; "देखा कि नहीं? चीन वाले भी सोनिया जी को ही राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मानते हैं."
मैंने कहा; "व्यवाहरिकता भी कोई चीज है भईए. जब हमारे देश में लोग मानते हैं तो चीन वालों ने मानकर कोई गुनाह कर दिया क्या?"
वैसे, आप क्या सोचते हैं, अगर ये चिरकुट पोस्ट पढ़ें, तो जरूर बताते जाईयेगा.
आप काहे परेशान हो रहे है जी दुर्योधन भ्राता को भी बुलाया है या नही ये देखने की बात है राजमाता खुद जायेगी या किसी तुच्छ प्राणी को भेजेगी ये देखने की बात है जी :)
ReplyDeleteचीन वालों ने सोनिया जी को ही राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री
ReplyDeleteसमझ लिया तो कौन सा पहाड़ टूट गया? वे हैं ही सबके ऊपर.
कोई कह रहा था कि ये लेफ्ट वालों की वजह से हुआ है.
एक बात है. लगता है मेरे कल के कमेन्ट का असर पड़ा है
तुम्हारे ऊपर. आज किसी की डायरी या इंटरव्यू नहीं पब्लिश
किया. अच्छा है. ख़ुद का लिखोगे तो लिखने की प्रैक्टिस
हो जायेगी.
जब हम कहते थे, तब "धर्मनिरपेक्ष"(?) प्रेस नहीं मानता था, अब तो चीन ने खुलेआम "नंगा" करके रख दिया, क्या मुँह दिखायेंगे मनमोहन और पाटिल?
ReplyDeleteप्रिय शिव कुमार जी,
ReplyDeleteआपकी ताज़ा पोस्ट देख ली गयी है । कुल मिलाकर अच्छी जान पड़ती है ।
संप्रति डाक्टर साहेब के मस्तिष्क का ब्लागर विभाग आज बुद्ध-पूर्णिमा
के अवकाश पर है । उसके संज्ञान में आने के पश्चात ही विस्तृत टिप्पणी
प्रेषित कर पाना संभव हो पायेगा । कृपया प्रतीक्षा करें ।
शुभकामनाओं सहित - अमर कुमार
पुनःश्च- आप अपनी अगली रचना भी शीघ्र भेजने का कष्ट करें । सादर अ.कु.
हा हा हा! ये लाइन तो कमाल लिखी है आपने..
ReplyDelete"अरे आप राष्ट्रपति वगैरह पर ध्यान मत दीजिये. जो हैं, मैडम ही हैं.
बालकिशन सही कह रहे हैं - दूसरों का कबाड़ कर ठेलने की बजाय आज जो अपना ओरीजिनल लिखा है, वह भी बहुत स्तरीय है। (आज तो अरुण ने भी इस पर अपना अधिकार नहीं जमाया!) :-)
ReplyDeleteजै ड्रैगन महराज की!
निमंत्रण और तैयारी तो बहुत सही जा रही है :-)
ReplyDeleteवस्तुतः यह अपमानित करने का सभ्य तरीका है. मगर उन्हे नहीं मालूम की दीन हीन कभी अपमानित हुआ है?
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteआप अपनी पिछली पोस्ट में ही इसका जवाब दे चुके हैं अब हम का कहें...आप ही लिखे था ना की "'हम बेशर्मी के स्वर्णकाल में जी रहे हैं. " to ये ही होत है स्वर्णकाल की rit
swarnim reet सदा chali aayii...हर jagha sonia जी jaayii...
roman और हिन्दी में mix कर के comment दिए हैं taki सब की समझ में आ जाए...italy में हिन्दी कोई नहीं ना janta है इसलिए....
बहुत rochak और jaandar पोस्ट लिखे हैं आप...yane जैसे आप हैं बिल्कुल वैसी....
नीरज
हा हा!! भेज रहा हूँ नेह निमंत्रण...के बाद "मेले मामा भी दौल रहे हैं-जलूल आना-छोनु" ये भी तो लिखा होगा.
ReplyDelete--बहुत खूब!! आनन्द आ गया.
bhai sab kaam ho gaye honge. padhakar anand aa gaye. dhanyawaad ji
ReplyDeleteहमेशा की तरह शानदार पोस्ट। आपके कहने से चिरकुट थोड़े न मान लेंगे।
ReplyDelete" ड्रेगनाय नम: "
ReplyDeleteयह नया मँत्र बडा विकट जान पडता है
इसे प्रकाशित कर दिये हो
अब मँगोलिया तक प्रचार हो जायेगा
- बहुत ओरीजीनल लिखे हो आप शिव भाई -
आनँद आवी गयो !
( enjoyed your post )
गज़ब की कल्पनाशीलता.
ReplyDeleteधारदार प्रस्तुति.
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डा.चन्द्रकुमार जैन
हमारे यहां अभी तक नेहनिमंत्रण नहीं आया। क्या हमको ऊ ससुरा मानस का हंस नहीं मानता या फ़िर पोस्टमैन निमंत्रण पत्र गली के बाहर फ़ेक के निकल लिया। :)
ReplyDeleteउत्तम पोस्ट.. और बढ़िया जानकारी.
ReplyDeleteबोलो सोनिया माता की जय.