- सोमनाथ निकाल दिए गए.
- कहाँ से? घर से?
- अरे नहीं पार्टी से.
- पार्टी से? संसद में जीत की खुशी मनाने वाली पार्टी हो गई! कब?
- अरे नहीं उस पार्टी से नहीं. पार्टी मतलब दल से.
- ओह, मैंने समझा उस पार्टी से जिससे चार साल पहले अमर सिंह निकाले गए थे.
- नहीं-नहीं. पार्टी से मेरा मतलब दल से था.
- अपने देश में बुजुर्गों के प्रति अत्याचार बढ़ गया है. नहीं?
- अरे सोमनाथ जी बुजुर्ग थोड़े न हैं. वे तो नेता है.
- लेकिन दल से क्यों निकाले गए? पार्टी ह्विप के ख़िलाफ़ मतदान कर दिया था क्या?
- अरे नहीं. वे तो इसलिए निकाले गए क्योंकि मतदान नहीं करना चाहते थे.
- मतलब ये कि पार्लियामेन्ट से एब्सेंट होकर किसी को लाभ दे गए.
- अरे नहीं. वे तो स्पीकर हैं न. वे कैसे एब्सेंट रह सकते हैं.
- तो फिर क्यों निकाले गए?
- स्पीकर के पद की इज्ज़त रख रहे थे इसलिए निकाले गए.
- अच्छा, इज्ज़त रख पाये?
- लालू जी तो कह रहे थे कि इज्ज़त रख ली उन्होंने.
- अच्छा! लालू जी कह रहे थे? तब तो पक्का ही इज्ज़त रख ली होगी उन्होंने.
- लेकिन उनके दल वाले कह रहे थे कि अनुशासन तोड़ने की वजह से निकाले गए.
- हाँ, हो सकता है. उनका दल अनुशासन को बड़ी तवज्जो देता है.
- और क्या-क्या चीज को तवज्जो देता है उनका दल?
- अरे यार, राजनीति में तवज्जो देने के लिए और है ही क्या?
- लेकिन सोमनाथ जी अनुशासन तोड़ दिया था क्या?
- उनके दल वाले कह रहे थे.
- इसके अलावा और तो कोई बात नहीं है न. मेरा मतलब लेन-देन...
- न-न. संसद में लेन-देन की बात करना ठीक नहीं होगा.
- अरे, तुम क्यों चिंता करते हो? हम संसद में थोड़े न बैठे हैं.
- मेरा मतलब संसद के सदस्य लेन-देन में नहीं रहते.
- अच्छा-अच्छा. लेकिन तो क्या केवल अनुशासन की वजह से ही उन्हें निकाल दिया?
- कह तो यही रहे थे. लेकिन कुछ अफवाह भी है.
- अफवाह? कैसी अफवाह?
- सोमनाथ जी की पार्टी के नेता उनसे जलते थे.
- उनसे जलते थे! क्यों भला?
- कुछ लोग ऐसा कह रहे थे कि संसद में स्पीकर बनने से उनका स्वास्थ और अच्छा हो गया था.
- स्पीकर बनने से स्वास्थ अच्छा हो जाता है?
- अरे कुछ लोग कह रहे थे कि संसद में स्टैंडअप कॉमेडी देख-देखकर सोमनाथ जी ने अपना स्वास्थ अच्छा बना लिया था.
- मतलब?
- अरे बुद्धू, मतलब जो आदमी इतने घंटे संसद में रहेगा वो हंसेगा नहीं क्या?
- और हंसने से स्वास्थ अच्छा रहता है.
- अभी समझे.
- अच्छा. मतलब ये अनुशासन का तो सिर्फ़ बहाना है. असल बात ये है कि उनके ऊपर मज़ा लेने का आरोप है.
- हाँ. असल बात यही है.
- तो अब क्या उन्हें स्पीकर के पद से हटा दिया जायेगा?
- बातें तो हो रही हैं. लेकिन मुझे लगता है कि वे मज़ा लेने के चक्कर में दस महीने और स्पीकर बने रहेंगे.
बंधू
ReplyDeleteहमें ऐसा लगा जैसे प्रश्न पूछने वाले बौड़म हम ही हैं...और उत्तर देने वाले विद्वान् आप हैं...हमें जो लगा वो सच हो भी सकता है...क्यूँ की बिना सच्चाई के थोड़े न ऐसा लग सकता है...जो भी है आप हमारे ज्ञान चक्षु खोल दिए हैं...याने जो अस्वस्थ हो वो संसद का स्पीकर बन जाए? ठीक सवाल पूछे हैं ना हम?
नीरज
बड़े मजे ले रहे है आप तो... स्वास्थय वर्धन हो रहा है क्या? :)
ReplyDeleteकोई कहते है सोमनाथजी का बेकग्राउंड ही गडबड़ है, उनके पिताजी किसी हिन्दु संगठन से सम्बन्ध रखते थे...निकालते नहीं तो क्या करते? :)
वाह! वाह! वाह!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता है.
काफ़ी ज्ञानवर्धक और स्वास्थ्यवर्धक भी है.
सोमनाथ जी ने सौ करोड़ लिए है एसा मैंने सुना है?
आनंद आ गया .. आपने तो बिना संसद में गये ही हमारा स्वास्थ्यवर्धन कर दिया
ReplyDeleteसुना है सोमनाथ जी को अपने निष्कासन से काफ़ी बल मिला है,और इस अर्जित बल का प्रयोग "लाल झंडा का सच " या "लाल चेहरे लाल बादशाह के " नामक पुस्तक लेखन एवं प्रकाशन में लगायेंगे
ReplyDeleteउनके ऊपर मज़ा लेने का आरोप है.
ReplyDeleteसही है सतत मौज लेने के अपराध में फुरसतिया को फुरसतियत्व दल से निकाला जाये! :-)
somnathji ki prakash karat se kabhi nahi pati. vaise bhi cpim me ab kerala aur paschim bangal-2 lobby ho gayi hai. somnath babu kerala lobby ki teer ka shikaar hue hain. Vaise unhone, suna hai, prakash karat ko party gen.secy banane ka virodh kiya tha
ReplyDeleteprakash
kolkata
- सोमनाथ जी की पार्टी के नेता उनसे जलते थे.
ReplyDelete- जलते थे? तो क्या अभी अस्पताल में हैं?
- नहीं वो वाला जलना नहीं ईर्ष्या वाला जलना.
- अच्छा-अच्छा. तब ठीक है. नहीं तो आपराधिक भूमिका वाला आरोप भी लग सकता था.
- हां सो तो है. दल से बाहर निकालने का एक और कारण मिल जाता. :)
वैसे ज्ञान जी की बात पर गौर किया जाये.. :)
sach kahne ka andaaz pasand aaya.bahut bahut badhai aapko
ReplyDeleteकहाँ कहाँ खबरिया फिट किए हुए हो भाई????????एक दम से पक्की ख़बर निकाल तुम्हारे हाथ रख जाते हैं.बहुते बढ़िया लिखे हो. बाकी और कोई खास प्रोब्लम नही था पर इस तरह मजा लेने का सजा तो मिलना ही था
ReplyDeleteये वाम पंथी वही लोग है न जो intellectual होने का लबादा ओडे फिरते है ?
ReplyDeleteअति सुन्दर लिखा है।
ReplyDeleteबड़ा लफड़ा है.. उत्तर देने वाले विद्वान भाई साहेब, वैसे 'ह्विप के खिलाफ' का क्या मतलब है कि उन्होंने 'विश्व हन्दु परिषद' के खिलाफ मतदान किया इसलिये?? इतने कन्फ्यूजन दूर किये हो तो यह भी बता ही दो आप तो.
ReplyDelete:)
बेहतरीन रहा, आनन्द आ गया.
bada hi achcha Somnath ji Bhi padh kar aur hans lenge. very good writing
ReplyDeletebahut hi majedaar rochak post anand aa gaya.somanath ji speekar rahe ya n rahe apni sehat par fark nahi padata .
ReplyDeleteइत्ता ज्ञान , गुरू कही अगले स्पीकर बनने की लाईन मे तो नही हो ?.इस देश मे नेता चाहे कितने धत करम करले माफ़ है.बस सेकुलर नाम की चादर ओढे रखे.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति है - कम्युनिस्टों की असलियत तो आजादी से पहले से ही दिखती रही है.
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