Wednesday, July 30, 2008

गुरु संदीपनि का सिलिंडर संकट

गुरु संदीपनि परेशान थे. दोनों हाथ पीछे बांधे सर झुकाए टहल रहे थे. देखने से प्रतीत हो रहा था जैसे किसी का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. गुरुआईन गाल पर हाथ धरे कुटिया की ज़मीन निहार रही थीं. बीती रात घर में खाना नहीं पक सका था. हुआ ऐसा कि जैसे ही गुरुआईन ने दाल का अदहन चूल्हे पर रखा, बर्नर से दो-तीन बार जोर की आंच निकली और चूल्हा बुझ गया. गुरुआईन को याद आया कि दो दिन से खाना बनाने के बर्तन काले होने शुरू हो गए थे. उन्हें डर लगने लगा कि कहीं गैस सिलिंडर खाली तो नहीं हो गया. अनिष्ट की आशंका मन में लिए उन्होंने एक बार फिर से चूल्हे के बर्नर पर लाईटर दाग दिया. लेकिन आग नहीं लगी. आख़िरी प्रयास के रूप में उन्होंने आखिरी अस्त्र चलाते हुए दो-तीन बार सिलिंडर को हिलाया-डुलाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

अब तक गुरुआईन स्योर हो गईं कि गैस सिलिंडर खाली हो चुका था. बीस दिन हो गए थे गैस की बुकिंग किए हुए लेकिन सिलिंडर की डिलीवरी अभी तक नहीं हुई थी. चूल्हे के साथ लगे सिलिंडर के खाली होने का भय गुरुआईन को दो-तीन दिनों से सता रहा था. लिहाजा कल दोपहर को गैस एजेन्सी फ़ोन कर नए सिलिंडर की डिलीवरी के बारे में इंक्वाईरी कर चुकी थीं. उधर से किसी ने ये बताते हुए फ़ोन काट दिया कि सप्लाई की प्रॉब्लम है. आज सुबह से गुरु जी को चाय तक नसीब नहीं हुई थी. रात को लाई और गट्टा खाकर दोनों सो गए थे. सबेरे उठते ही दोनों ने ख़ुद को भूख से पीड़ित पाया. वैसे दो मुट्ठी भिगोया चना और एक भेली गुड खाकर पानी पीने से पेट को थोडी थाह मिली थी.

दोपहर का खाना कैसे बनेगा इस बात के बारे में सोचकर गुरुदेव को पसीना आ जाता. उन्होंने मिटटी के उस चूल्हे की बड़ी खोज-बीन की, जिसपर उनके घर में पहले खाना पकता था. खोजते-खोजते थक गए लेकिन वो चूल्हा कहीं नहीं मिला. तब गुरुआईन ने बड़े धीमे स्वर में यह राज खोला कि वो चूल्हा तो उन्होंने काम करनेवाली बाई को दानकर अपना अगला जनम सुधारने का बंदोबस्त कर लिया था. हुआ ऐसा कि बड़ी मिन्नतों और दो सौ रूपये घूस देने के बाद जब गैस कनेक्शन मिल गया तो गुरुआईन ने मिटटी का चूल्हा और कोयले से जलने वाली एक सिगड़ी काम करने वाली बाई को दे दिया था. यह राज खुलने पर गुरु जी ने एक बार तो दांत पीसे लेकिन फिर यह सोच कर कि वैद्य जी ने उन्हें गुस्सा करने से मना किया था, चुप हो गए. एक बार तो गुस्से में यह भी कह गए कि इससे अच्छे तो वही दिन थे जब सुदामा और कृष्ण वगैरह को जंगल भेज देते थे सूखी लकडियाँ लाने के लिए. दोनों भले ही बरसात में फंस जाते लेकिन लकड़ी लेकर ही लौटते थे.

एक बार तो उन्होंने ने सोचा कि जब तक सिलिंडर नहीं आ जाता पिज्जा वगैरह मंगाकर खा लेंगे. उन्होंने विज्ञापन में पढ़ रक्खा था कि आजकल पिज्जा के साथ कोल्ड ड्रिंक फ्री में मिलता है. लेकिन फिर उन्हें वैद्य जी की बात याद आ गई. वैद्य जी ने उन्हें जंक फ़ूड खाने से मना कर रखा था.

गुरुदेव बार-बार कुटिया की किवाड़ तक जाते और बाहर देख कर लौट आते. सुदामा के आने की बाट जोह रहे थे. मार्निंग वाक के दौरान उनकी मुलाकात सुदामा के फादर से हुई थी. गुरु जी ने उनसे कहा था कि; "साढ़े आठ बजे तक सुदामा को घर पर भेज दीजियेगा. बहुत ज़रूरी काम है." लेकिन यह क्या? अब तक नौ बज चुके थे लेकिन सुदामा का अत-पता नहीं था. गुरुदेव परेशान दिखने लगे. उन्हें उनका प्लान चौपट होता दिखाई दे रहा था.

असल में गुरुदेव ने प्लान बना रक्खा था कि साढ़े आठ बजे तक अगर गैस एजेन्सी में सुदामा लाइन लगा दे तो आज सिलिंडर मिलने का चांस रहेगा. गुरु जी को मालूम था कि आजकल गैस सिलिंडर की कमी के चलते गैस एजेन्सी के सामने बहुत बड़ी लाइन लगती थी. इसीलिए उन्होंने सोच रक्खा था कि एक बार सुदामा लाइन लगा देगा तो ग्यारह बजे तक कृष्ण को भेजकर सुदामा को थोड़ी राहत दे देंगे. सुदामा गरीब था इसलिए गुरुदेव ने उसे पहले हाजिरी का हुकुम दिया था. वैसे भी अब तक कृष्ण बाबू कालिया मर्दन वगैरह करके करीब एक चौथाई 'भगवानत्व' का सबूत दे चुके थे. लिहाजा व्यावहारिकता का तकाजा यही था कि उन्हें इतना रिबेट तो मिलना ही था.

सुदामा की प्रतीक्षा करते-करते करीब पौने दस बज गए. खैर, थोड़ी देर में प्रतीक्षा की आखिरी घड़ी गई और गुरुदेव ने देखा कि जींस की जेब में हाथ डाले सुदामा सीटी बजाते आ पंहुचा. सुदामा को देखते ही गुरुदेव भड़क उठे. बोले; "ये कोई टाइम है आने का? तुम्हारे फादर को मैंने कहा था न कि तुम्हें साढ़े आठ बजे तक भेज दें. उन्होंने बताया नहीं तुमको?"

गुरुदेव की बात का सुदामा के ऊपर कोई ख़ास असर नहीं दिखाई दिया. उसने कंधे उचकाते हुए कहा; "पापा ने बताया था कि आपने साढ़े आठ बजे तक बुलाया है. लेकिन वो क्या है गुरुदेव कि मैं डब्लू डब्लू ऍफ़ स्मैकडाऊन देखने लगा. इसीलिए देर हो गई. वैसे पापा कह रहे थे कि आपका कोई ज़रूरी काम है."

सुदामा की बात सुनकर गुरुदेव ने मन ही मन ज़माने को कोसा. फिर गुस्से पर काबू करते हुए बोले; "अच्छा ठीक है. जो हुआ सो हुआ. एक काम करो. तुम गैस एजेन्सी चले जाओ. मेरी बुकिंग की हुई है. बीस दिन पहले. अभी तक सिलिंडर की डिलीवरी नहीं हुई. तुम जाकर लाइन लगा दो. गुरु माँ का मोबाइल ले जाओ. तुम लाइन में रहना. मैं बारह बजे तक कृष्ण को भेज दूँगा तुम्हारी मदद के लिए. कोई समस्या होने पर मिस्ड कॉल देना."

गुरुदेव की बात सुनकर सुदामा ने कहा; "गुरुदेव वो गैस एजेन्सी जाने से कोई फायदा नहीं होगा. आपका सिलिंडर नहीं मिलेगा."

"क्यों? क्यों नहीं मिलेगा?"; गुरुदेव ने जानना चाहा.

"छोडिये न गुरुदेव, मैं कह रहा हूँ नहीं मिलेगा तो नहीं मिलेगा"; सुदामा ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा.

"अरे वही तो मैं पूछ रहा हूँ. तुम कैसे कह सकते हो कि नहीं मिलेगा. मेरी बुकिंग की हुई है"; गुरुदेव ने थोड़ी कड़ाई के साथ जानना चाहा.

"अच्छा ठीक है. आप कहते हैं तो मैं बताता हूँ. देखिये, हुआ ऐसा गुरुदेव कि हमारे पड़ोस की भवानी चाची का सिलिंडर खाली हो गया था. उनके घर खाना बनाने की बड़ी दिक्कत हो रही थी. भवानी चाची ने मुझसे कह रखा था कि अगर कहीं से सिलिंडर ब्लैक में मिल जाए तो मैं उन्हें दिला दूँ. परसों आप का सिलिंडर डिलीवरी करने के लिए गैस एजेन्सी का आदमी आपके घर की तरफ़ आ रहा था. मैंने वही सिलिंडर ब्लैक में खरीद लिया कर भवानी चाची को दे दिया. मुझे पचीस रूपये कमीशन में भी मिले"; सुदामा एक साँस में पूरी बात बता गया.

सुदामा की बात सुनकर गुरुदेव को बहुत गुस्सा आया. उन्होंने गुस्से में आँखें लाल किए सुदामा से कहा; "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा करने की? सुदामा, मैं तुम्हें गुरुकुल से रस्टीकेट कर दूँगा."

गुरुदेव की मुख मुद्रा देखकर सुदामा खिस्स से हंस दिया. उसने कहा; "जाने दीजिये न गुरुदेव गुस्सा थूक दीजिये. जो हुआ सो हुआ."

"ऐसे कैसे जाने दूँगा? मैं तुम्हें छोडूंगा नहीं. मैं तुम्हें रस्टीकेट कर के गुरुकुल से निकाल दूँगा"; गुरुदेव का गुस्सा अभी तक शांत नहीं हुआ था.

सुदामा ने उनका गुस्सा देखा तो वो भी ताव में आ गया. बोला; "देखिये गुरुदेव, आप ऐसा नहीं कर सकते."

"क्यों नहीं कर सकता? क्यों? मैं गुरु हूँ तुम्हारा"; गुरुदेव को लगा कि उन्हें अपनी हैसियत एक बार फिर से सुदामा को बताने की ज़रूरत है.

सुदामा उनकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया. बोला; "देखिये गुरुदेव, अगर आप ऐसा करेंगे तो मैं आपकी लिखित शिकायत उप कुलपति से कर दूँगा. और उसी लेटर की एक कॉपी लेबर कमिश्नर को भेज दूँगा. आपके ऊपर आरोप लगा दूँगा कि आप मुझे जंगल भेजते थे सूखी लकडियाँ इकठ्ठा करने के लिए. आपके ऊपर बाल मजदूरी का आरोप लगाकर सस्पेंड करवा दूँगा. याद रखिये मेरे पास गवाह के तौर पर कृष्ण भी है."

सुदामा की बात सुनकर गुरुदेव सहम गए. उन्हें विश्वास हो गया कि ज़माना उन दिनों से बहुत आगे निकल आया है जब सुदामा और कृष्ण जंगल में जाकर लकडियां बीन लाते थे. बिना इस बात की परवाह किए कि उन्हें बरसात में फंसकर भूख से बिलखना भी पड़ता था. गुरुदेव के कदम चुप-चाप गैस एजेन्सी की तरफ़ बढ़ गए. उन्हें वहां लाइन लगानी थी ताकि शाम को घर में खाना बन सके.

24 comments:

  1. बड़ी सुहानाभुति हो रही है हमें गुरु संदीपन से.
    कुछ-कुछ वैसी ही जैसे कुछ दिनों पहले तक गुरु ग्रेग से हो रही थी. उनका भी यही हाल उनके चेलों ने किया था.
    क्या किया जा सकता सर जमाना ही चेलों का आ गया है.
    बहुत ही तीखा कटाक्ष किया आपने इस तेज हास्य-व्यंग्य के माध्यम से.
    दिनों-दिन आपकी कलम की धार और तीखी होती जा रही है.
    "खुदा करे जोर ऐ कलम और ज्यादा".

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  2. बंधू
    जरूर गुरूजी जिस विद्यालय में होंगे वो सरकारी होगा क्यूँ की सरकारी स्कूल के छात्र ही इतने उददंड हो सकते हैं .. सरकारी स्कूल के छात्र चाहे जिस युग में हों ऐसे ही होते हैं जैसे सुदामा महोदय हैं...इनमें उनका कोई दोष नहीं है....अगर आप भी सरकारी स्कूल में पढ़ें हैं तो दांत किचकिचा कर अपने आप को शरीफ घोषित करने की कोशिश ना करें...हमें मालूम है आप क्या हैं...और क्यूँ ना मालूम हो आख़िर हम भी तो सरकारी स्कूल के ही छात्र रहे हैं....सिर्फ़ सरकारी स्कूल के गुरु को ही सिलिंडर खाली हो जाने पर ऐसी त्रासदी झेलनी पढ़ती है...सही लिखे हैं आप.
    नीरज

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  3. गुरू माँ ने एक सोलर कुकर ही ले लिया होता तो अब तक तो भात पक गया होता।
    घुघूती बासूती

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  4. वाह,लाजवाब.....बहुत ही साधा हुआ व्यंग्य सधी हुई भाषा शैली में.एक साथ कईयों पर प्रहार.बहुत बहुत सुंदर.

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  5. बाल किशन जी से सहमत हू आपकी कलम की धार तो तेज़ होती ही जा रही है..
    वैसे आपके लेख से एक आइडिया आया है.. क्यो न एक नया पर्व शुरू कर्दे "चेला पूर्णिमा" या फिर इस से पहले की विदेशी आ जाए हम अपना डे बना देते है "प्यूपिल्स डे" क्या कहते है आप?

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  6. अब बेचारे लगता है गुरु दक्षिणा में पुत्रों के दर्शन की जगह गैस की एजेंसी ही मांग लेंगे... वो तो चलो ये भी कर लेंगे, हम क्या करेंगे :(

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  7. धन्यवाद मित्र,
    आज दो दिन से घर में गैस नहीं है, कल से पंडिताइन से
    लगातार अपने निकम्मेपन पर डाँट खा रहा हूँ । आपने बचा
    लिया, दिखा दिया पंडिताइन को कि सुदामा सरीखे कर्मठों
    के समक्ष
    तो मैं निकम्मा ठहरूँगा ही । मान भी गयीं, जी ।
    थैंक यू !

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  8. शिव भाइ ये उलटे उलटे काम मत किया करो, पंगे लेने के लिये हम जो है यहा पर , खामखा उस गरीब बालक को उकसा कर गुरूजी से पंगे दिलवा दिये , आपको क्या पता कि सुदामा के कष्ट हरण के लिये हमे क्या क्या करना पडा :)

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  9. हे गोविन्द! यह क्या युग आ गया है। सन्दीपनि गुरु की यह दशा।
    उस जमाने में तो छोटे-मोटे गुरु भी तप बल से न जाने क्या क्या पैदा कर देते थे। गैस सिलेण्डर क्या चीज।
    पांचाली के पास तो अक्षय पात्र था!
    ... अब हमें क्लियर हो गया है - कुछ भी बनो, गुरू मत बनो माडर्न युग में!

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  10. :-) Kalyug ke sudama aur Sandipan ka kya varnaan kiya hai aapne... bilkul sadha hua vyangya.....

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    Jaane Tu Ya Jaane Na....Rocks

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  11. बहुत सटीक लेखन है महाराज!!सन्दीपनि गुरु पढ़ लें तो स्वर्ग से कुद कर आत्महत्या कर लें कि क्या दिन आ गये हैं. गजब का व्यंग्य!! अब आप फुल टाईम इसी प्रोफेशन में आ जायें. वैसे यह दुआ ही है जिसे लोग बददुआ न मान बैठें. :)

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  12. घुघूती जी का ज्ञान समझ में आ गया है ...

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  13. कुल मिलाकर खाना बना कि नहीं ये तो बताया ही नहीं आपने

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  14. धन्य गुरु और धन्य शिष्य, धन्य धन्य यह रीति,
    कलिजुग के इस काल में, धन बिनु होए न प्रीति,

    सुंदर व्यंग्य.

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  15. आह और वाह। गुरु अगर घंटाल ना हो, भौत परेशानी है।

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  16. चलो कोई तो है जो हम संदीपन जैसे गुरुओं की परेशानी समझता है, आज कल गुरु बनना तो जी बहुत मुश्किल हो गया है अब सब तो आलोक जी जैसे घंटाल नहीं हो सकते न, हमने तो इसी लिए सोलार कुकर ले रखा है, लेकिन आज कल बारिश में बेकार है। गुरु जी को बोलिए लाइन में खड़े होने के बदले पाइप गैस का इंतजाम करें। खत्म होने का चक्कर ही नहीं। वैसे ये सुदामा के डायलॉग कुछ जाने पहचाने स्टाइल के नहीं लग रहे क्या?…:)

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  17. आपकी नवकथा ने बहुत आनंद दिया। मुझे भी एक सिलेंडर रसोई गैस का इंतजाम करना है!
    हरि जोशी
    http://irdgird.blogspot.com

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  18. बहुत शानदार व्यंग और मारक शैली! इंतज़ार रहेगा अब आपके और व्यंग पढने का!

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  19. अरे यह कल्युगी सुदामा कल्युगी गुरु का सिलेण्डर ही बेच के खा गया,गुरु जी फ़िर बताया नही पेट केसे भरा,हमारा पेट तो आप का लेख पढ के हंस हंस के खाली हो गया,अब तक तो सिलेण्डर का जुगाड नालयक सुदामा ने कर दिया होगा, तो हम भी आ रहे हे.
    धन्यवाद इस लेख के लिये

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  20. सही कहा गुरुदेव, चेले ऐसे ही ढीठ हो गए हैं
    परन्तु सिर्फ गुरु के प्रति नहीं अपने मता पिता के भी
    वो बिचारे ऐसे ही आस लगाये बैठे रहते हैं और ये दिन में भी बिस्टर में उंघते रहते हैं
    आखिर खुद ही जाके सब काम निपटाने पढ़ते हैं.

    कोशिश करेंगे हम एक अच्छे शिष्य साबित हों
    बाकी कभी कभी तो पिज्जा चलता है. नहीं तो सुदामा को उसी का लोभ देके काम करा लिया करें (कलयुगी उपाय)
    इस छप्पन भोग मनोरंजन के लिए धन्यवाद !

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय