पता नहीं हस्तिनापुरवासी क्या चाहते हैं? एक तरफ़ तो शिकायत करते हैं कि हस्तिनापुर में बेरोजगार युवकों की संख्या बढ़ती जा रही है क्योंकि राज्य में कोई उद्योग नहीं है, वहीँ दूसरी तरफ़ राजमहल द्बारा उद्योग लगाने के काम में अड़ंगा डालते हैं. कहते हैं किसानों की ज़मीन पर उद्योग शुरू करना संस्कृति और किसानों के साथ धोखा है. किस तरह की सोच है? ये भी चाहते हैं कि राज्य में हथियार उद्योग के आलावा भी कुछ स्थापित हो, वहीँ दूसरी तरफ़ ऐसे किसी प्रयास को रोकने की मंशा भी रखते हैं. पूरी प्रजा ही कन्फ्यूज्ड हैं. अब कारखाने क्या बहती नदी पर स्थापित किए जायेंगे? उन्हें तो ज़मीन पर बनाना पड़ेगा.
आज दुशासन बड़े तैश में आया. बता रहा था कि जिन किसानों की ज़मीन हमने रथ कारखाना लगाने के लिए गांधार चैरियट्स वालों को दी थी, उनमें से कुछ किसानों ने बवाल खड़ा कर दिया है. अब ऐसे शठों को कौन समझायें कि उद्योगीकरण के बिना विकास सम्भव नहीं?
ये अलग बात है कि कृषि के द्बारा भी विकास की संभावना को नकारा नहीं जा सकता लेकिन उसमें बड़ी मेहनत और समय लगता है. परियोजनाएं बनानी पड़ती हैं. चौकन्ना रहना पड़ता है. वैसे इस तरह के विवाद होने की आशंका मुझे पिछले हफ्ते ही हो गई थी, जब एक गुप्तचर ने आकर बताया कि कुछ किसानों को धृष्टद्युम्न के लोग भड़का रहे हैं.
मुझे लग रहा है कि जरूर इसमें द्रौपदी का हाथ है. वह अपने भाई के जरिये हमारे रथ कारखाने का काम रोक देना चाहती है. और धृष्टद्युम्न भी कैसा काइयां है. मामाश्री बता रहे थे कि इस दुष्ट ने पहले गांधार चैरियट्स वालों को अपने राज्य में कारखाना बनाने के लिए न्योता दिया था और आज यही किसानों को भड़का रहा है. एक बार तो इच्छा हुई कि कर्ण से कहकर इसकी ठुकाई करवा दूँ लेकिन मामाश्री ने रोक दिया. पता नहीं उनके दिमाग में क्या है लेकिन इतना मालूम है कि वे जो भी करते हैं, सोच समझकर ही करते हैं.
किसानों का इस तरह से बखेड़ा खड़ा करना चिंता का विषय है. अगर रथ कारखाने का काम रुका और गांधार चैरियट्स वालों को हस्तिनापुर छोड़कर जाना पड़ा तो राजमहल की बड़ी बदनामी होगी. बाहर का कोई भी उद्योगपति यहाँ आकर उद्योग नहीं लगायेगा.
बहुत खर्च हो गया है इस कंपनी का. साथ में ढेर सारी और छोटी कंपनियों का जो रथ के लिए तमाम और उपकरण बनाने के लिए राजी हो गईं थीं. अंग प्रदेश की एक कंपनी जिसे रथ में इस्तेमाल होनेवाले कील बनाने का काम मिला था, उसके कर्ता-धर्ता चिंतित हैं. इन किसानों ने अवन्ती की एक छोटी कंपनी के कर्मचारियों की पिटाई कर दी है. इस तरह से चलता रहा तो राजमहल की बदनामी ही होगी.
प्रजा में विचारों का ऐसा अंतर्द्वंद्व पहले कभी नहीं दिखा. कहाँ हम चाहते हैं कि हमारे राज्य में एक द्वंद्वहीन समाज हो जिससे हमारे कामों में कोई रुकावट कभी नहीं आए, और कहाँ ऐसे स्थिति उत्पन्न हो गयी है. एक बार तो इच्छा हुई कि अश्वथामा और जयद्रथ को भेजकर इन किसानों के ऊपर वाण-वर्षा का एक कार्यक्रम आयोजित करवा दूँ, लेकिन चचा विदुर ने इसे नीति के ख़िलाफ़ बताया. कहने लगे कृषकों की ताकत को कम करके आंकना ठीक नहीं.
वैसे भी आजतक हस्तिनापुर में ऐसे काम दबे-छिपे ही होते आए हैं. ऐसे में किसानों के ऊपर वाण-वर्षा से राजमहल की साख को धक्का लगेगा.
पता नहीं ये किसान क्या चाहते हैं. ये साल भर चिल्लाते रहते हैं कि खेती-बाड़ी से इनका पेट नहीं भरता और जब ज़मीन को रथ उद्योग के लिए ले लिया गया ओ बखेड़ा खड़ा कर रहे हैं. मैं पूछता हूँ; ऐसी ज़मीन में खेती करने का क्या फायदा जो पेट न भर सके? खेती-बारी से किसानों को ही जब खाने को नहीं मिलता तो ऐसी ज़मीन से मालगुजारी उगाहना राजमहल के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन जाती है. कितना अच्छा होता अगर ये ज़मीन हस्तिनापुर में रह जाती और इन किसानों को ले जाकर किसी सागर को अर्पण कर सकते.
कैसे समझायें कि रथ कारखना लग जायेगा तो इन्ही किसानों के पुत्रों को रोजगार मिलेगा. जिन्हें कारखाने में काम नहीं मिलेगा वो कारखाने के बाहर चाय की दूकान खोल लेंगे. पान की दूकान भी खूब चलेगी. जो नौजवान प्रतिभा का धनी है वो मदिरालय भी खोल सकता है. कारखाने में काम करने वाले मजदूरों के लिए लंच सप्लाई करने का धंधा भी चल निकलेगा. जो नौजवान इस तरह का मेहनत वाला काम नहीं कर सकते उनके लिए और भी काम निकल आयेंगे. वो हफ्ता वसूली के धंधे में हाथ आजमा सकता है. गुंडागर्दी के क्षेत्र में प्रगति के अभूतपूर्व अवसर बनेंगे. चंदा उद्योग भी चल निकलेगा.
रथों का प्रोडक्शन एक बार चालू हो गया तो फिर होटल बिजनेस का अच्छा अवसर बनेगा. होटल बनेंगे तो उसे आगे बढ़ाते हुए बार खोलने का अवसर बनेगा. अब बिना कैबरे के बार की क्या औकात? बार खुल गए तो कैबरे वगैरह का प्रबंध करना भी अति-आवश्यक हो जायेगा. कुल मिलाकर नए-नए क्षेत्रों में विकास के कपाट खुल जायेंगे.
मामाश्री ने सुझाव दिया कि उनका इस झमेले में व्यक्तिगत तौर पर उतरना ठीक नहीं है. अगर वे आगे आते हैं तो अखबार वाले बवाल कर देंगे. कह सकते हैं कि चूंकि कंपनी गांधार की है तो मामाश्री ने इस कंपनी से ज़रूर रिश्वत खाई होगी. आरोप लगायेंगे. तरह-तरह के आरोप. ये भी कह सकते हैं इस कंपनी में मामाश्री की हिस्सेदारी भी है. अरे अखबार वाले ही तो हैं. विश्वस्त सूत्रों का हवाला देते हुए कुछ भी लिख सकते हैं. इन्हें कौन सा प्रूफ़ देना है? इसीलिए मामाश्री ने सुझाव दिया कि इन किसानों और गांधार चैरियट्स वालों के बीच एक मीटिंग करवा दी जाय. इस मीटिंग की मध्यस्थता के लिए पितामह को राजी कर लिया जाय. अगर ऐसी मीटिंग से कोई रिजल्ट न निकला तब मामाश्री अपने करतब दिखाएँगे.
कल सुबह ही पितामह को मध्यस्थता के लिए राजी कर लूँगा.
very good style to express your thinking . thanks
ReplyDeleteमध्यस्तता की बातचीत के बाद फिर द्रौपदी बैक ट्रैक कर गयी क्या?!
ReplyDeleteमीटींग का तो नतीजा नहीं निकला, कम्पनी भी टस से मस नहीं हो रही. पता नहीं क्या होगा.
ReplyDeleteकल सुबह ही पितामह को मध्यस्थता के लिए राजी कर लूँगा
ReplyDelete" wah ye dastaney hsateenapur bhee bhut khub rha, gajab ka confidenec level hai aapka, jo last lines mey deekahee de rha hai, wish u all the best kee Peetamah rajee ho jayen.."
Regards
लाजवाब रचना.
ReplyDeleteहम तो उत्पादन प्रारम्भ होने की प्रतीक्षा में थे, पर नासमझ/नामुराद और किसानों की वजह से आशाओं को पाला मार गया.
बॉस किधर-किधर किस-किस को राजी किया जाएगा।
ReplyDeleteवाह! वाह! एक और पेज डायरी का. रथयात्रा के बारे में पढ़कर
ReplyDeleteअच्छा लगा. एक बार तुम मुझे ये डायरी दिखाना तो. जल ऑफिस
में ले आना. मैं आऊंगा देखने.
waah ji waah bahut khoob... ab aap bhi rang jama rahe hai.. jamaye rahiye..
ReplyDeleteवाह ये हुई न बात.कल लगता है दुर्योधन जी ने शार्ट कट चिंतन किया था.आज तनिक आगे बढ़ गंभीर चिंतन किया है.
ReplyDeleteमेरे तो समझ में नही आ रहा कि दुर्योधन जैसे इतने प्रकांड चिन्तक को पांडवों से हार का वार क्यों सहना पड़ा.सब टाइम टाइम की बात है.दुर्योधन जी को ख़बर भिजवा दो कि वह पिछला युग उनके लायक नही था.अभी के समय में अवतरित होंगे तो डटकर आराम से राज करेंगे.उस समय तो एक ही मामा थे ,इसलिए सुझावों में खोट रह जाता था.अब अवतरित होंगे तो शकुनी से भी बड़े बड़े असंख्य मामा सलाहकार मिलेंगे,जिनके सुझाव के बल पर वे जग जीतकर निष्कंटक राज कर पाएंगे.
आपकी लेखनी,आपके चिंतन की
ReplyDeleteअनुगामिनी है...सहज ही.
इसलिए आपका कहा सीधे
हमसे संवाद करता है.
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दुर्योधन की डायरी के बारे में पढ़ा तो था मगर पहली बार इसका कोई पन्ना पढ़ा...शानदार शैली में आपने वर्तमान हालत को रखा है....और पढने की इच्छा है!
ReplyDeleteशिव प्यारे मिश्रा, तेरा जवाब नहीं...तेरे इन किस्सों का, कोई हिसाब नहीं....(दुनिया ओ दुनिया तेरा जवाब नहीं ...गाने की पैरोडी )
ReplyDeleteबहुत से ऐसे हस्तिनापुर के लोग जो अपनी पत्नियों को खुश रखने के लिए छोटे छोटे रथ ले कर देने का वायदा पिछली करवा चौथ के व्रत तोड़ने पर किए थे उनका क्या होगा??? घर घर में कोहराम हो जाएगा.....
नीरज
सही है। थोडा़ और डायरी लिख लें फ़िर राजनीति में धंस जायें।
ReplyDeleteहे कुरुनन्दन प्रणाम ! पितामह आपकी बात तो मान ही लेंगे ! आपकी हार सिर्फ़ किशन महाराज की वजह से हुई है , अन्यथा क्या भीम दादा
ReplyDeleteमें इतनी औकात थी की आप कुरुश्रेष्ठ को गदा युद्ध में परास्त कर दे ! स्वयं आप के गुरु को भी आश्चर्य हुवा था ! और आप जानते हैं की ये सब भी किशन का किया हुवा था ! वरना आज आप महाराज की अष्टमी का उत्सव मनाया जाता ! हे तात् आपकी इस समय मानवता को बड़ी आवश्यकता है ! आप एक बार इस धरा पर पुन: अवतरित हो ! आप चिंता ना करे , अबकी
बार किसी किशन की नही चलेगी ! हम हैं ना आपके असली सलाह कार !
प्रणाम कुरुनन्दन , अब घर भी जाना है ! आपकी आकाशवाणी भक्त ने ज़रा देर से सुनी ! जाने की जल्दी ना होती तो आपके साथ और बात चीत की इच्छा थी !
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ReplyDeleteयह डायरी आज इतना छायावादी रंग बिखेर रही है..
कि मैं बिना दो तीन बार ठीक से पढ़े टिप्पणी करने
की रस्म अदायदी नहीं कर पा रहा हूँ, थोड़ा समय दें !
लो जी, ये मीटिंग भी बेनतीजा- पितामह को ही सेट करो और तो क्या कहें. मामा तो करतब दिखा ही देंगे. बेहतरीन!!!
ReplyDeleteमैंने आज ही ये दुर्योधन की डायरी देखी और पढना शुरु किया ..सच बताऊँ तो ये इतना रुचिकर है कि मैंने अब तक की छपी आपके सारे पन्ने पढ़ डाली . कमाल उपयोग किया है आपने महाभारत के किरदारों का और लगता है कि आपकी कलम नही आपके किरदार बोल रहे हैं . सचमुच आज हर किसी प्रभुता वाले व्यक्ति में दुर्योधन का ही किरदार नजर आता है और उसके आसपास वैसे ही किरदार होते हैं जो महाभारत में थे . मैं दुर्योधंजी के डायरी का अगला पाना भी पढना जरूर चाहूंगा .
ReplyDeleteद्वापर के दुर्योधन महाभारत में हारे तो इसलिए कि वहाँ बहुमत का बोलबाला नहीं था। सौ ‘कौरव’ पाँच ‘पाण्डवो’ से हार गये। यह अंधेरगर्दी कोई आज दिखाकर देखे! जीतने को कौन कहे,जमानत जब्त हो जाएगी...।
ReplyDeleteगलत समय में पैदा होने से इतनी बड़ी संख्या लेकर भी बेचारा सत्ता से दूर हो गया। आज के दुर्योधन तो उन्नीस-बीस के आँकड़े पर राज कर रहे हैं।
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उम्मीद है द्रौपदी भी कलियुग में आकर अपनी जिद छोड़ ही देगी। क्योंकि पाण्डवों ने इस युग के सत्य को पहचान लिया है। वे उसका साथ नहीं देने वाले।
दिल खुश हो रहा है महाराज की डायरी पढ कर, क्या गहरी राजनैतिक सोंच रखते हैं महाराज, आगे के पन्नों को भी जनता पढना चाहेगी ।
ReplyDeleteवाह, सबसे बढ़िया लगा कंपनी का नाम - गान्धार चैरियट्स!
ReplyDeleteKya khoob likha hai, Shiv bhaiya.
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