Wednesday, September 17, 2008

कबीर का ईमेज?

वे मुझे समझा रहे थे. चेहरे पर भाव ऐसे जिससे लगे कि जो बात वे बता रहे हैं, उसकी सूचना उनके अलावा केवल सीआईए के चीफ को है. जैसे दुनियाँ के सबसे बड़े रहस्य पर से परदा हटा रहे हों. बोले; " इट्स आल अबाउट ईमेज डीयर...सबकुछ ईमेज में है. ईमेज बनाने का ज़माना है. आज अगर कुछ बिक सकता है तो वो है ईमेज. तुम्हारे पास ईमेज नहीं, तो कुछ नहीं. अरे असली इंसान की औकात ही क्या? बारह आने. बस."

उनकी बात सुनते हुए मैं चेहरे पर बेवकूफी के भाव लाने की कोशिश कर रहा हूँ. क्यों न करूं, वे ख़ुद ईमेज बनाने के फायदे गिना रहे हैं. मेरे चेहरे पर उभरे बेवकूफी के भाव ने उन्हें पर्याप्त उत्साह से भर दिया. चेहरे से, जुबान से, आंखों से, नाक से, कान से, इन सारे अंगों से उनका उत्साह हिचकोले मारने लगा.

कान तो ऐसा लाल हुआ जैसे उत्साह अपनी पूरी ताकत से कान से ही निकलने के लिए फट पड़ने को तैयार हो. पूरी दुनियाँ भर का उत्साह समेटे उनका भाषण और तीव्र हो गया. बोले; "कोई भी ईमेज बनाओ, लेकिन बनाओ. अब मुझे ही देखो. मैंने खरी-खरी कहने वाले की ईमेज तैयार कर ली है. और मेरे इस ईमेज से मिलने वाले फायदे गिनोगे तो दंग रह जाओगे. बड़ा फायदा है इसमें. किसी को भी गरियाकर निकल लेता हूँ. लोग नाराज नहीं होते. उल्टा तारीफ़ ही करते हैं."

मैंने शंका प्रकट करते हुए कहा; " लेकिन क्या ज़रूरत है, लोगों को गरियाने की?"

मेरी तरफ़ देखते हुए मुखमुद्रा ऐसी बनाई जैसे कह रहे हों; 'तुम्हारे इस तरह प्रश्न से मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ. ईमेज के महत्व को समझने में देर लगेगी तुम्हें. लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें सबकुछ समझा दूँगा.'

फिर कुछ सोचते हुए बोले; "गरियाना निहायत ही ज़रूरी काम है. मेरी बात समझने की कोशिश करो. मान लो तुम एक समूह में खड़े हो. किसी बात पर चर्चा हुई. अब अगर तुम वहां पर उपस्थित लोगों के साथ सहमत हो जाओगे तो फिर उनमें और तुम्हारे बीच अन्तर क्या हुआ?"

मैंने कहा; "जहाँ सहमत होने की बात हो, वहां भी असहमत कैसे हो जाऊं?"

बोले; "मेरी बात समझने की कोशिश करो. सहमत होने जाओगे तो पाओगे कि ज्यादातर बातों पर सबके साथ सहमत ही होगे. ऐसे में ईमेज कैसे बनेगी?"

"तो आपके अनुसार मैं किसी के साथ किसी बात पर सहमत ही न होऊँ?"; मैंने उनके सामने अपनी शंका प्रकट की.

मेरी बात सुनकर बोले; "तुम भी रहे लल्लू के लल्लू. अरे सहमत होने से कौन मना कर रहा है? मैं तो केवल यह कह रहा हूँ कि तुम्हें केवल अपनी असहमति दर्शानी है. मन में सहमत होते रहो, कौन मना कर रहा है? लेकिन अगर असहमति नहीं दर्शाओगे तो ईमेज कैसे बनेगी?"

मैं उनकी बात ध्यान से सुनने की ईमेज बनाने की कोशिश कर रहा था. चेहरे पर वही भाव थे जो दुनियाँ के सबसे बड़े रहस्य को सुनने के बाद किसी भी आम इंसान के चेहरे पर होते. मैंने उनसे एक बालसुलभ प्रश्न किया. मैंने पूछा; " तो असहमत होने से ईमेज तैयार हो जायेगी? मेरा मतलब खरी-खरी कहने वाले की ईमेज?"

वे बोले; "इतना सरल नहीं है सबकुछ. असली काम तो यहाँ से शुरू होता है मित्र. ये असहमति दर्शाने का महत्व बस उतना ही है जितना रोटी बनाने के लिए थाली में रखे गए आटे का. उसके बाद पानी डालना है. आटे को गूंथना पड़ता है. पानी कितना डालना है, तय करना पड़ता है. रोटी बेलनी पड़ती है. तवे पर रोटी को रख कर पकाना पड़ता है. तब जाकर एक अदद रोटी तैयार होती है. तुम्हें क्या लगता है, बस असहमति व्यक्त करने से ईमेज बन जायेगी?"

मैं उनकी तरफ़ देखता रहा. ठीक वैसे ही जैसे सत्यनारायण भगवान की कथा सुनने वाला 'भक्त' कथा सुनाने वाले प्रकांड पंडित की तरफ़ देखते हुए चेहरे पर भाव ले आता है. जैसे कह रहा हो; 'हे पंडितश्रेष्ठ, आगे भासो कि कन्या कलावती के पति का क्या हुआ? मैं सुनने के लिए बहुत बेचैन हूँ.' (ये अलग बात है कि भक्त ने पिछले महीने ही सत्यनारायण की कथा सुनी होगी और यह भी जानता है कि कलावती के पति का कोई अहित नहीं होना है.)

मेरी मनःस्थिति समझते हुए वे बोले; "अब मुझे ही देखो. मेरी ईमेज क्या केवल असहमति प्रकट करने से बनी है? नहीं. उसके साथ और बहुत से कर्म करने पड़ते हैं. मैंने बोलने में, लिखने में, बहस करने में एक ख़ास भाषा-शैली का आविष्कार कर लिया है. अब तुम ख़ुद ही देखो न. अपनी टिप्पणियों में ही ऐसा कुछ लिख देता हूँ कि हड़प्पा और मोहनजोदाडों के शिलालेख पढ़ने वाले इतिहासकार भी नहीं पता लगा सकेंगे कि मैंने टिप्पणियों में लिखा क्या है?"

ख़ुद की ईमेज के बारे में किए गए उनके पर्दाफाश से आश्चर्यचकित होने की ईमेज बनाता हुआ मैं मुग्ध दीखने की कोशिश कर रहा था. मैंने उनसे पूछा; "तो ये जो आप लिखते हैं, या बोलते हैं, ये बाकायदा एक ईमेज बनाने के लिए किया गया है?"

वे बोले; "अब तुम्हें क्या बताऊं? कुछ लोगों तो मेरे अन्दर कबीर की ईमेज देखते हैं. गरियाने की मेरी शैली देखते हुए कहते हैं, मुझ जैसा खरा इंसान इस धरा पर पिछले तीन-चार सौ सालों में तो नहीं जन्मा. ये होता है ईमेज बनाने का फायदा."

मैंने एक बार फिर से शंका प्रकट की. मैंने कहा; "लेकिन कबीर की बातें तो बड़ी सरल होती थीं. वे जो कुछ भी लिखते थे, उसे लोग आसानी से समझ सकते हैं. वहीँ आप लिखने के नाम पर जलेबी काढ़ते हैं."

मेरा सवाल सुनकर खिस्स से हंस दिए. बोले; "अरे तो मैंने कब कहा कि मैं कबीर हूँ? मैं तो केवल इतना बता रहा था कि मैं कबीर का ईमेज हूँ."

उनकी बात सुनकर मैं सोच रहा था, कबीर का ईमेज होना भी ऐसे इंसान के बस की बात है? कबीर के बारे में किसी की टिप्पणी याद आ गयी....

कबीर बनने के लिये विलक्षण प्रतिभा चाहिये. प्रतिभा ही नहीं, ईश्चर प्रदत्त ईश्वरत्व. वह जो ईश्वर को दम ठोक चुनौती दे सके. मरने के लिये काशी से मगहर जाने का आत्मविश्वास रखता हो. यहां वृद्धावस्था में बहुत से आत्मविश्वासी महान लोगों को क्षीण होते, उनकी पुलपुली कांपते देखा है.

20 comments:

  1. वाह-वाह! ई-टिकट, ई-टेण्डर, ई-पेमेण्ट और अब ई-मेज!
    कबीर दास क्या खा कर इस ई-चिरकुट दुनियां में आयेंगे। उन्हें न तो माउस पकड़ना आता होगा और न ई-मेल करना! सो कबीर की तो ई-वेकेन्सी है!

    ReplyDelete
  2. ई-मेज ज्ञान मिलते आप इमेज बनाने के लिये आटा गूंथने लगे। अच्छा है!

    ReplyDelete
  3. तय कै लिये हैं? बारह आने से बाहेर नहीं आइयेगा? मनोज कुमार टाइप सलीमा से बाहर- नहीं- जाइयेगा?

    ReplyDelete
  4. image se bahar nahi jaye to log tangdi markar nikal lete hai..

    e-yug ke daur mein e-medge.. bahut sahi hai..

    ReplyDelete
  5. ये दुर्योधन से कबीर तक क्यों पहुच गए. सही है. कबीर बनना आसन नहीं होता.
    उनका इमेज बनना भी आसन नहीं है.

    ReplyDelete
  6. देखना पडेगा कोई लोकल बाबा टाईप की इमेज बनाना पडेगा,

    ReplyDelete
  7. "उनकी बात सुनकर मैं सोच रहा था, कबीर का ईमेज होना
    भी ऐसे इंसान की बस की बात है? "

    जी आपने बिल्कुल सही कहा ! लोग मरते समय मगहर से काशी
    भागते हैं ! वो तो कबीर का ही साहस था जो मगहर गए ! और
    इतना आसान नही है कबीर या उनकी इमेज बनाना ! उसके
    लिए हाथ में लट्ठ चाहिए ! और ये कहने की हिम्मत :-

    कबीरा खडा बाजार में लिए लुकाठी हाथ !
    जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ !!

    बहुत गूढ़ और रहस्यवादी रहा आपका आजका विषय !
    धन्यवाद और शुभकामनाएं!

    ReplyDelete
  8. यु तो आपसे मै सहमत हुँ और आपकी नेक सलाह मानते हुये आपसे असहमत हो जाता हुँ ॥मुझे यह रहस्यवादी तो नही लगा क्योकि जो समझा ना जा सके वही रह्स्यमय है और मै आपके कथन को समझ रहा हु इसिलिये यह मेरे लिये रहस्य्वादी नही है । कंफ़रमिस्ट और रिबेलीयस मे मै रिबेलीयस ही होना पसंद करुंगा और वह इमेज स्वतः है,कल्टीवेटेड नही ॥

    आपका लेख पढकर परसाइ जी की "असहमत" और शुद्ध बेवकुफ़ वाली रचना याद आ गयी ॥

    ReplyDelete
  9. आपके लेखन मैं सरलता के साथ सरसता का गुण विद्यमान रहता है. अच्छा लिखा है. बधाई.

    ReplyDelete
  10. आप भी कमाल करते हैं बंधू ईमेज बनाने पर ही पोस्ट लिख मारी... ईमेज बनाने के लिए किसी के साथ सहमत होना और ना होना जरूरी नहीं ईमेज के लिए सिर्फ़ किसी के हाथ एक कांच याने दर्पण का होना ही जरूरी है...दर्पण झूट बोलता है या नहीं ये पता नहीं लेकिन आप की ईमेज जरूर बना देता है...विज्ञानं कहता है ये बात...अगर आप को पब्लिक में अपनी ईमेज बनानी है तो उसके हाथ में दर्पण पकड़ा दो...बन गयी ईमेज, हम तो आज तक येही समझे हैं...आप कौनसी ईमेज की बात कर रहे हैं...???
    नीरज

    ReplyDelete
  11. मेरे लिए क्या आदेश है गुरुदेव ?

    ReplyDelete
  12. सिर्फ़ गरियाने से अगर कोई कबीर बन जाता तो देखना यहाँ....इत्ते कबीर होते की उनके सरनेम से पहचानना पड़ता....

    ReplyDelete
  13. अंतिम टिप्पणी बहुत जबरदस्त है जो कबीर के लिये कही गयी है। ताऊ की टिप्पणी और आपका लेख पढकर ऐसा लगता है ताऊ कहीं कबीर की ईमेज तो नही?

    ReplyDelete
  14. एक दिन हम भी हल्ला सुने थे ईमेज ईमेज...हम इत्ता गुढ़ अर्थ नहीं समझ पाये थे..हमसे कहा था कि खूब ईमेज स्थापित करो पहले...तो हम कई फोटू चैंप दिये ब्लॉग पर..अब अलग कर लेंगे.

    वैसे अनुराग बाबू की टिप्पणी में दम है-ऐसा होता तो सरनेम से पहचानना पड़ता. :)

    दिस इज़ कबीर उड़न तश्तरी वाले टाईप. :)

    बहुत सटीक रहा!!!! बधाई!

    ReplyDelete
  15. ये ईमेज बनाने वालों की अच्छी पड़ताल कर दी आपने...। बधाई!

    वैसे इस चिठ्ठाकारी की दुनिया में अलग-अलग छवियों के लोग मौजूद हैं। ज्यादातर तो स्वाभाविक/असली छवियाँ ही हैं, सायास बनायी गयी छवियाँ यहाँ चलने वाली नहीं हैं। नकली कलई देर-सवेर उतर ही जाएगी।

    जिनके अन्दर भगवान ने जो manufacturing defect या effect दे दिए वे कमोवेश बने ही रहते हैं। हल्का-फुल्का मेक-अप तो ठीक है लेकिन पूरी प्लास्टिक सर्जरी कराने पर उसके चिह्न दिख ही जाते हैं।

    ये “पोलिटिकली करेक्ट” दिखने की लालसा ने भी काफी गड़बड़ कर रखी है।

    ReplyDelete
  16. सत्य कथन किन्तु तथ्य रहित.............चलेगा?ई..मेज़ बनानें का कार्य युद्ध स्तर पर प्रारम्भ, मार्केटिंग- फ़ण्ड़ा न० १।

    ReplyDelete
  17. तथ्यहिन है. घोर असहमती.
    ईमेज बनाने की जरूरत है मगर इस तरह से नहीं, उस तरह से बनानी चाहिए.

    ReplyDelete
  18. क्या बात कही है....एकदम सौ टके की खरी खरी.........

    ReplyDelete
  19. हम आपकी इस पोस्ट से बिल्कुल असहमत है जी :)

    ही ही ही
    वीनस केसरी

    ReplyDelete
  20. .

    शिव भाई, असहमत होना चाहता हूँ,
    पर ये तो बतायें कि ई कबीर कौन थे ? पानीपत के एक एक योद्ध का नाम रटा पड़ा है,
    अपने बीरों के देश के बहुत से बीरों से परिचित हूँ... पर ई क-बीर कहाँ से ले आये, आप ?
    कोई काल्पनिक चरित्र गढ़ा है का ?
    या कोई नवा है ? नाम तो भाई, बड़ा ट्रेंडी है..
    हे विप्रवर, ई सब की विस्तार से चर्चा की जाये, हमार सुनबे की बहुत इच्छा है ... ..

    मूढ़ मनई हम, हाथ लगाने से भी डेराइत है..
    घुमा घुमा के घुमा घुमा के इतनी अच्छी इमरती पोस्ट बना कर सामने रक्खी है ,
    बिना कबीर के दर्शन किहे एहिका कइसे खा लेयी ?

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय