टीवी न्यूज़ चैनल का आफिस. तीन-चार लोग हाथ में कागज़ लिए घूमते हुए नज़र आ रहे हैं. कागज़ होता ही है, हाथ में लेकर घूमने के लिए. कागज़ हाथ में न रहे तो उसकी औकात रद्दी की होती है. ये शोध का विषय है कि कागज़ पर जो कुछ भी लिखा है वो काम का है या नहीं?
लेकिन कागज़ काम का है या नहीं, ये बात दूर से देखने वाले की समझ में कैसे आएगी? आप मानते हैं न, कि दूर से देखकर ये बात समझ में नहीं आएगी? इसलिए भलाई इसी में है कि आप ये भी मान कर चलें कि प्रखर बुद्धि के स्वामी से दिखने वाले लोगों के हाथों में जो कागज़ है, वो काम का ही होगा.
क्या कहा आपने? ओह, आप जानना चाहते हैं कि जो लोग कागज़ लेकर घूम रहे हैं, वे प्रखर बुद्धि के स्वामी हैं, ये कैसे पता लगाया मैंने? तो आपको बता दें मित्र, कि इनलोगों ने न सिर्फ़ चश्मा पहन रखा है बल्कि टाई भी बाँध रखी है.
मन भर गया? या और कोई सुबूत चाहिए इनकी बुद्धि की प्रखरता को जांचने के लिए?
अच्छा, मन भर गया. ये ठीक ही हुआ कि आपका मन भर गया. अपना मन भरकर आपने मुझे बहुत बड़े धर्मसंकट से उबार लिया मित्र. कारण यह है कि कागज़ लेकर अनवरत इधर-उधर करने वालों इन मानवों को प्रखर बुद्धि वाला साबित करने का और कोई सुबूत नहीं था मेरे पास.
चलिए आगे का हाल सुनिए. हाँ तो मैं टीवी न्यूज़ चैनल के आफिस का वर्णन कर रहा था. अब सोचिये कि आफिस है तो तो कान्फरेंस हाल भी होगा ही. होना ही चाहिए. कान्फरेंस हाल न रहे तो टाई बांधे, चश्मा लगाए और हाथ में कागज़ लिए ये लोग करेंगे क्या? वैसे भी बिना कान्फरेंस हाल के कोई भी आफिस डेढ़ कौड़ी का.
अब कान्फरेंस हाल है तो मीटिंग-सीटिंग भी होगी ही. ठीक समझे आप. असल में इसी मीटिंग धर्म का पालन करने के लिए आज ये लोग जुटे हैं. सात-आठ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें हम टीवी स्क्रीन पर आए दिन देखते हैं. ओह, आप ये जानना चाहते हैं कि कौन-कौन से लोग हैं?
तो सुनिए मित्र. वो, नीली शर्ट धारण किए जो जवान सीटी बजा रहा है, उसका नाम नीलाभ है. उसे हमने श्री अमिताभ बच्चन को 'कवर' करते कई बार देखा है. अमर सिंह से उनकी दोस्ती पर कुल छ 'विशेष' प्रस्तुत कर चुके हैं ये. अभी पिछले हफ्ते ही 'महानायक' की मन्दिरयात्रा कवर करते हुए देखा था इन्हें. और वो जो बार-बार अपने बालों पर हाथ फेर रहे हैं, वे संवाददाताश्रेष्ठ सुधीर विनोद हैं. उन्होंने पिछले हफ्ते ही दीपिका पादुकोण और रणवीर की लव स्टोरी पर एक विशेष कार्यक्रम का संचालन किया था. और वो जो......
अरे क्या वो जो? इन्ही लोगों को कवर करते रहोगे तो बाकी लोगों को कब कवर करोगे? आगे बढो.
क्षमा मित्र, क्षमा. नाराज़ न हों, हम आगे की तरफ़ गमनरत होने का प्रयास करते हैं. हाँ तो कान्फरेंस हाल में कुछ प्रोग्राम प्रोड्यूसर हैं. संवाददाताओं का एक जत्था है. कुछ कैमरामैन हैं. कैमरामैन इस बात से उत्साहित हैं कि उन्हें मीटिंग धर्म का पालन करने का मौका पहली बार मिला है.
और इन सब के ऊपर पॉलिटिकल एडिटर हैं. हर टीवी न्यूज चैनल के पास पॉलिटिकल एडिटर ज़रूर होते हैं. कहते हैं ये पॉलिटिक्स पर जानकारी रखते हैं. सब फालतू की बातें हैं मित्र. अब इस देश में पॉलिटिक्स पर जानकारी रखने के लिए बचा ही क्या है? कुछ नहीं.
नहीं-नहीं, आप शाब्दिक अर्थ पर मत जाइये. अर्थ का अनर्थ हो जायेगा. क्या कहा? पॉलिटिकल एडिटर का मतलब क्या निकाला जाय?
राजनैतिक सम्पादक, और क्या? दुखी हो गए न. मैंने कहा था, कि शाब्दिक अर्थ पर जरा भी न जाएँ. अब चले गए तो ख़ुद निबटें. मैं क्या करूं? अरे मित्र, अब बात नहीं मानेंगे तो और क्या कहूँगा? ये जानकार ऐसे हैं कि इनके किस्सों का अंत नहीं है.
आपको एक घटना बताता हूँ. ध्यान देकर सुनें. कांग्रेस के एक बड़े नेता की मृत्यु के बाद जब उनका दाह-संस्कार किया जा रहा था तो एक महान पॉलिटिकल एडिटर ने उस दाह-संस्कार के बारे में कहा कि "दिस कैन ईजिली बी रिगार्डेड ऐज बिगेस्ट पॉलिटिकल फ्यूनरल इन रीसेंट मेमोरी."
सुना आपने मित्र? पॉलिटिकल फ्यूनरल. शब्दों पर ध्यान दें. अर्थ निकालने जायेंगे तो पता चलेगा कि इसका मतलब होता है राजनैतिक दाह-संस्कार.....
खैर, इन पॉलिटिकल एडिटर, कल्चरल एडिटर, इकनॉमिक एडिटर और न जानें कितनी और ब्रांचों के एडिटर के अलावा चीफ एडिटर भी हैं. अब पॉलिटिकल एडिटर, 'इकनॉमिक एडिटर' वगैरह होने से चीफ एडिटर का पद अपने आप निकल आता है.
नहीं-नहीं मैं कुछ नहीं बताऊँगा. आप ख़ुद ही शोध करवा लें कि चीफ एडिटर क्या करता है? मुझसे पूछेंगे तो मैं इतना ही बता पाऊंगा कि चीफ एडिटर का मतलब मालिक होता है. सब का मालिक एक. चीफ एडिटर.
क्या कहा आपने? मीटिंग का एजेंडा जानना चाहते हैं? काहे का एजेंडा मित्र? एक महीने से मीटिंग नहीं हुई थी, इसीलिए ये मीटिंग हो रही है. पिछले एक महीने से मीटिंग का न होना ही इस मीटिंग का एजेंडा मान लें.
क्या कहा? कुछ न कुछ एजेंडा अवश्य होगा? मुझे पता है आप नहीं मानेंगे. नहीं मानेंगे कि ये लोग जुटे हैं ढेर सारी चिरकुटई करने के लिए. साथ में मौज लेने के लिए भी.
क्या कहा, कैसी मौज?
और कैसी मौज मित्र? मौज लेने के लिए ढेर सारा सामान है इनके पास. शुरू होंगे तो जो सिलसिला चलेगा, वो थमने का नाम नहीं लेगा.
नहीं मानेंगे आप? फिर वही सवाल, कैसा सिलसिला?
तो अपने कानों को इधर दें और सुनें.
अब मान लीजिये मंहगाई पर ही कोई बात शुरू हुई. एक बार बात शुरू हुई तो ये इस बात पर हँसते रहेंगे कि मंहगाई से जनता को राहत मिलने की संभावना कम है. और हंसी अपनी चरम सीमा पर तब पहुंचेंगी जब ये लोग सरकार की खुलती धोती पर चर्चा करेंगे. निष्कर्ष तक पहुंचते-पहुंचते अगला चुनाव करवाकर नई सरकार तक बनवा देंगे. इसी कान्फरेंस रूम में.
मौज की श्रृंखला आगे बढ़ेगी तो कोई फिल्मी संवाददाता इस बात को छेंड़ देगा कि सलमान खान और शाहरुख़ खान में चल रही तना-तनी और आगे तक जायेगी. उसके बाद अक्षय कुमार और कटरीना कैफ का नंबर रहेगा.
क्या-क्या नहीं होगा? बीच-बीच में इस बात की चर्चा भी होती रहेगी कि कौन से संवाददाता को किस राज्य सरकार ने ज़मीन अलाट कर दी और किसका अप्लिकेशन अभी भी धूल चाट रहा है. कोई तो चीफ एडिटर से वहीँ चिट्ठी लिखवाने का हिसाब बैठाता नज़र आता है. कोई तो ज़मीन अलाट न होने की दशा में किस तरह उस सरकार को धूल चटाएगा, उसका खुलासा भी कर डालता है.
क्या-क्या सुनेंगे मित्र. सारा कुछ सुनेंगे तो आपके कान आपके शरीर से निकल भागने का उद्यम करना शुरू कर देंगे.
................जारी रहेगा
ये सुनकर ही हमारे कर्ण तो रुदन करने लग गये.. और आप कह रहे है जारी रहेगा... घोर कलियुग
ReplyDeleteसत्य वचन महाराज,मैने भी सरकार से लड कर हाउसिन्ग बोर्ड के तीन सौ मकान पत्रकारो के लिये रिजर्व करवाये थे,लेकिन बान्टने मे पसीना आ गया। कथित बडे पत्रकारो के लफ़डो से नये और कथित छोटे पत्रकारो क हक़ कैसे मारा गया मै बता भी नहि सकता
ReplyDeleteलगा महाभारतकालिन संजय जिवंत प्रसारण कर रहा है, मगर उसे भी "बाकी ब्रेक" के बाद की बिमारी लग गई है, "जारी रहेगा..." कहीं जाइयेगा मत हम फिर हाजिर होते है....ब्रेक के बाद... :)
ReplyDeleteचश्मा तो आप भी लगाए हुए है, टाई कहाँ गई? :)
जारी रखें मित्र...जारी रखें...ये मुद्दे तो क़यामत तक जारी रखे जा सकते हैं...आप चाहें तो इस पर महाभारत से भी लम्बी पोस्ट लिखे जा सकते हैं...अथवा "सास भी कभी...." से अधिक लंबा सीरियल बना सकते हैं और "दिल वाले दुल्हनियां..." के पिछले 12 साल से मुंबई के एक ही सिनेमा घर में चल रहे रिकॉर्ड को अपने ब्लॉग पर इस मुद्दे पर सदियों तक लिख कर भी नेस्तनाबूत कर सकते हैं...
ReplyDeleteनेट सहयोग नहीं कर रहा है मित्र, वरना हम इस पोस्ट से अधिक लम्बी टिपण्णी लिखने की सोच रहे थे...और उसे ही अगली पोस्ट तक जारी रखने की भी....
आप की विलक्षण शैली और कथ्य को नमन करते हुए विदा लेते हैं....नेट आ जाएगा तो फ़िर मिलेंगे...
नीरज
(पिछले आधे घंटे ये टिप्पणी चिपकाने के praytn में हैं...आप का प्रेम हमसे जो ना karvaye थोड़ा है मित्र...)
लगता है आप भी इसी कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे....तभी इत्ता बढ़िया हाल सुनाया!
ReplyDelete"what a great detailed description of conference, very interesting to read"
ReplyDeleteRegards
आपने मीडिया की बिगड़ी तस्वीर में फ्रेम जड़ दिया। मजा आ गया पढ़कर। धन्यवाद।
ReplyDeleteबढ़िया विवरण।
ReplyDeleteहमें तो अवसाद हो गया - हमारे पास एक भी टाई नहीं।
कलकत्ते में टीवियोचित टाई कितने में मिलती है? :-)
अच्छा है कि "जारी रहेगा" के आश्वासन ने कुछ पल को अस्वस्तता दे दी मित्र....नही तो आनंद रस अवरोधक गतिविधि के लिए हम कभी आपको क्षमा नही करते...
ReplyDeleteआँखें गडाये बैठें हैं ब्रेक के बाद के पुनर्प्रसारण के दिग्दर्शन प्रतीक्षा में.कृपया विलंब न करें मित्र, सभा कक्ष विवरणी का सीधा प्रसारण अविलम्ब प्रसारित करें.
बहुत खूब। दूसरों की खबर लेनेवालों की भी खबर ली ही जानी चाहिए..
ReplyDeleteजारी रखिये...
ReplyDeleteहमारे कान तो अभी ही भाग लिए..अब और नहीं मित्र,,बस्स्स!!!
ReplyDeleteमिश्रा जी......बाईट की जल्दी ,टी आर .पी बस यही ख़बर है......
ReplyDeleteकिसी को त्रासदी को बेच रहे है बनाकर बाजार
सच बोलने वाले भी इन दिनों खरे नही होते
इतनी भीड़ श्रदनजाली देने को उमड़ी है
ReplyDeleteउधर "सौदा" हो रहा है "लाइव टेलीकास्ट "का
ज़रूर कोई हुनरमंद आदमी मरा है
वाह! वाह!
ReplyDeleteवही पर थे क्या. चैनल ज्वाइन कर लो गुरु तुम भी. न्यूज चैनल अब मनोरंजन चैनल
हो गए हैं. सबकुछ मिलता है. हारर से लेकर फिल्मी तक.
हमसे तो जो परदे पर दिखता है वही नहीं झिलता, ये पीछे की गन्दगी का हाल कैसे झेंलेंगे?
ReplyDelete"दिस कैन ईजिली बी रिगार्डेड ऐज बिगेस्ट पॉलिटिकल फ्यूनरल इन रीसेंट मेमोरी."
ReplyDeleteमिश्राजी नमन आपको ! और ताऊ थारा चोटी कट चेला हो गया ! शुभकामनाएं !
हम तो यहाँ बैठ कर पोस्ट पढ़ने का मजा ले रहे थे !
ReplyDeleteपर ये घोस्ट बस्टर जी को देख कर डर लग रहा है
इस लिए वापस जा रहा हूँ ! फ़िर कभी मिलूंगा !
डर के मारे पुरी पोस्ट भी नही पढ़ी ! टिपणी उधार रही !
शारदार वर्णन है.
ReplyDeleteवैसे मेरे दिमाग घंटेभर से खुजली हो रही है कि आप जैसे बुद्धिजीवी को ऐसी वाहियात जगह जाने कि ज़रूरत क्यों आन पड़ी. !!!!! :D
बहुत सही!
ReplyDeleteक्या नज़र पाई है उस्ताद कि अंदर की बातें पकड़ ली।
बाप रे!! कितनों कि पोल खोलियेगा?
ReplyDeleteअभी और चलेगा!!! चलाओ-चलेगा।
ReplyDeleteतकदीर से ऐकर की तसवीर बना लीजिये ,
ReplyDeleteअपने पे भरोसा है तो फिर ये जारी रखवा लीजिये :)
- लावण्या
हम तो ब्रेक के बाद वापस आये हैं; पर प्रोग्राम तो चालू हुआ नहीं? कहां गयी अगली पोस्ट इस तारतम्य में?
ReplyDeleteक्या लिखा है आपने ..सच कहूँ तो तारीफ के लिए शब्द नही मिल रहें ..उपर का ड्रामा तो रोजाना ही देखा करतें हैं ..अन्दर का आज पढ़ा और देखा भी (कल्पना में )
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