कल भारत टेस्ट मैच जीत गया. ये भी कह सकते हैं कि ऑस्ट्रेलिया हार गया. वही, नज़र का चक्कर है. विशेषज्ञ बता रहे थे कि भारत की जीत बहुत महत्वपूर्ण है. ये विशेषज्ञ लोग कोई नई बात क्यों नहीं कहते? जब भी भारत जीतता है, उस जीत को महत्वपूर्ण बता देते हैं. कभी हारने पर नहीं कहते कि ये हार बहुत महत्वपूर्ण है.
कह रहे थे कि अब भारतीय क्रिकेट नई ऊंचाई पर पहुँच जायेगा.
पिछले दस सालों से सुनते आ रहे हैं. जब भी टीम जीतती है तो भारतीय क्रिकेट नई ऊंचाए छूने के लिए निकल पड़ता है. इस तरह से हर दो साल पर एक बार भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाई मिल ही जाती है. लेकिन नई ऊंचाई छूने के बाद छ महीने में ही फिर नीचे आ जाता है. किसी ने विशेषज्ञ से इसके बारे में पूछ लिया तो शायद जवाब मिले; "नई ऊंचाईयों को छूने के लिए पहले नीचे तो आना ही पड़ेगा. इसलिए जब भी क्रिकेट नीचे आए, तो डरने की ज़रूरत नहीं. बस ये ध्यान में रखिये कि नई ऊचाईयों को छूने के लिए नीचे आया है."
वैसे कुछ तो प्रगति हुई है. ऐसा हम मानते हैं. पहले तो क्रिकेट बोर्ड को जब नया अध्यक्ष मिल जाता था, तभी कहा जाता था कि भारतीय क्रिकेट अब नई ऊंचाई छूएगा. इस लिहाज से प्रगति महत्वपूर्ण है.
नई ऊचाईयों से याद आया कि भारत ने स्पेस यात्रा में भी नई ऊचाई छू ली है. चंद्रयान पृथ्वी से चाँद की तरफ़ रवाना हो चुका है. वैज्ञानिक बता रहे थे कि ये यात्रा महत्वपूर्ण है. देश में सबकुछ महत्वपूर्ण ही हो रहा है. इस लिहाज से हम महत्वपूर्ण देश के महत्वपूर्ण इतिहास का हिस्सा बन रहे हैं. ये एक महत्वपूर्ण बात है.
चंद्रयान जब चाँद पर जायेगा तो वहां की मिट्टी, हवा वगैरह का निरिक्षण च परिक्षण करेगा. हमारे वैज्ञानिक देश की हवा, मिट्टी, पानी वगैरह जांचकर बोर हो लिए होंगे. शायद इसीलिए अब चाँद की मिट्टी वगैरह देखना चाहते हैं. बात भी तो सही है. यहाँ की मिट्टी में प्लास्टिक से लेकर तमाम रसायन इस कदर मिल चुके हैं कि उन्हें भी कोई नई मिट्टी चाहिए बोर होने के लिए. एक बार मिट्टी, हवा वगैरह से आश्वस्त हो गए तो फिर वहीँ चलकर बसने का प्रबंध भी कर सकते हैं. पृथ्वी पर हाऊसिंग मार्केट का हाल बुरा है. चाँद पर शायद कुछ अच्छा हो.
ऐसी बात सोचकर हम कन्फर्म हो लेते हैं कि हम "क्यों ना जन्नत को भी दोज़ख में मिला दें यारों" की तर्ज पर काम कर रहे हैं.
ये जन्नत और दोज़ख से याद आया कि चंद्रयान तिरंगा लेकर गया है. तिरंगे को चाँद पर फहराया जायेगा. आप पूछ सकते हैं कि तिरंगे से जन्नत और दोज़ख का क्या सम्बन्ध. तो मैं कहना चाह रहा था कि हमारे ही देश में जन्नत है जहाँ की कई जगहों पर हम तिरंगा नहीं फहरा पाते. वैसे ठीक भी है. दुनियाँ को बता तो सकेंगे कि हम चाँद पर फहरा कर आए हैं. तिरंगा.
वैसे सुना है कि सरकार एक बात से चिंतित है. कुछ लोगों ने आगाह किया है कि चंद्रयान की ये यात्रा कवियों को बुरी लग सकती है. कविगण जिस चाँद को न जाने क्या-क्या बताकर कविता लिख लेते थे, उन सारी उपमाओं पर खतरा मंडरा रहा है.
वैसे हम तो जी आस लगाए बैठे हैं कि चंद्रयान वापस लौट कर आएगा तो देश में मंहगाई की समस्या से लेकर तमाम और समस्याओं के समाधान के लिए कुछ उपाय सुझायेगा. देखते हैं, क्या होता है.
चंद्रयान बिना किसी रुकावट के चाँद की तरफ़ बढ़ रहा है. वहीं हमारे शहरों में रुकावटें ही रुकावटें पैदा हो रही हैं. किसी शहर में परीक्षा देने में रुकावट आ रही है तो किसी शहर में हड़ताल और बंद की वजह से रुकावट आ रही है. लेकिन हर शहर में एक ही बात कामन है; गुंडागर्दी. बिना गुंडागर्दी के न तो परीक्षाएं दी जा सकती हैं, और न ही रोकी जा सकती हैं. और तो और गुंडागर्दी बिना बंद भी नहीं करवाया जा सकता. रुकावट केवल गुंडागर्दी में नहीं आ रही है.
अब तो चंद्रयान का सहारा है. शायद चंद्रयान कुछ मदद करे.
मदद से याद आया कि कानून की मदद से एक दिन के लिए ही सही, ठाकरे बाबू को पुलिस लाकअप में डाल दिया गया. वैसे उसी कानून की मदद से वे निकल भी गए. शायद लाकअप का ही डर था कि हमारे शहर में ममता बनर्जी ने कल ही एलान किया कि वे और उनकी पार्टी अब राज्य में बंद, रास्ता रोको, रेल रोको और ऐसी ही तमाम पुण्य वाले काम नहीं करेंगी. ऐसा जागरण क्यों हुआ? पता नहीं क्यों हुआ. ममता जी ने नहीं बताया.
कुछ लोग कह रहे हैं कि नैनो बंगाल से निकल ली, इसलिए ममता जी के पास कोई काम नहीं है. किसी के निकल लेने से नेता लोग बेरोजगार हो जाते हैं. कुछ ये भी कह रहे हैं कि राज ठाकरे की हालत से ममता जी डर गई हैं. खैर, जो भी हो, कम से कम पार्टी तो बंद नहीं करेगी. ये राहत की बात है.
वैसे मन में ये बात भी आती है कि बंद न करने की बात एक नेता ने की है. ऐसे में उनकी बात को वे ख़ुद कितना महत्वपूर्ण मानती हैं, ये तो समय बतायेगा. लेकिन एलान के तौर पर उनकी ये बात महत्वपूर्ण है.
रहनी ही चाहिए. आख़िर देश में सबकुछ महत्वपूर्ण हो रहा है.
वैसे अब तो चाँद पर चंद्रयान पहुँच जायेगा. इसलिए चांदनी पर उदय प्रताप जी के दो छंद पढिये....
जब से संभाला होश, मेरी काव्य-चेतना में,
.................................मेरी कल्पना में आती-जाती रही चांदनी
आधी-आधी रात को चुराकर आंखों से नींद,
.................................खेत-खलियान में बुलाती रही चांदनी
सुख में तो सभी संग रहते किंतु दुःख में भी
.................................मेरे साथ-साथ गीत गाती रही चांदनी औ;
जाने किस बात पर मैं चांदनी को भाता रहा
.................................और बिना बात मुझे भाती रही चांदनी
कल रात चुपके से खिड़की के रास्ते
.............................उतर आई किरणों की डोरी-डोरी चांदनी
देखता रहा मैं ठगा-ठगा सा परियों के रूप
.............................को भी मात करती थी गोरी-गोरी चांदनी
मेरे सिरहाने आ तकिये पर बैठ गई
.............................थपकी दे गाने लगी लोरी-लोरी चांदनी
मुझको तो भेज दिया सपनों की दुनिया में
.............................जाने कब निकल गयी चोरी-चोरी चांदनी
एक आर्य समाज के प्रचारक को रास्ते में एक गँवार भैंस चराता हुआ मिल गया . उसने कहा बाबा राम राम ! तो आर्य समाजी ने नमस्ते से अभिवादन स्वीकार किया . गँवार बोला बाबा एक बीडी होगी क्या ? बाबा बोले मैं आर्य समाजी हूँ बीडी नहीं पीता , तुम्हें भी नहीं पीनी चाहिए . गँवार बाबा की बात अनसुनी करके बोला अरे मेरी तो राम राम भी बेकार गयी . वैसे हमें उनसे क्या लेना देना . आपने लिखा अच्छा है . प्रणाम .
ReplyDeleteबंधू
ReplyDeleteएक बार चाँद पर यान उतरने दो फ़िर देखो क्या हंगामा होता है...राज ठाकरे कहेंगे की वहां जाने वाले सिर्फ़ मराठी होंगे...लालू बिहारियों से वहां गाड़ी चलवाएंगे...ममता घास ढ़ूढ़ने चली जाएँगी...क्यूँ की तृण ही नहीं होगा तो मूल कहाँ से आएगा?, बंगाली लाल झंडा लिए आ जायेंगे...वहां की राजनीती धरती पर चलेगी और हंगामा होता रहेगा...इसीलिए कहा है:
हर हँसी मंजर से यारों फासले कायम रखो
चाँद गर धरती पे उतरा देख कर डर जाओगे
आप के पोस्ट की सबसे अच्छी बात उसपर उदय जी की कालजयी रचना है जिसे जितना पढो उतना ही रस देती है...वाह वा..
नीरज
फिलहाल तो भारत चाँद की ओर जा रहा है....बधाई स्वीकारें, दुनियादारी में हायतौबा तो चलती रहेगी....सबके अपने अपने रोजगार है जी :)
ReplyDeleteशायद शाम तक या फ़िर कुछ दिनों बाद राज ठाकरे अंगुली दिखाते फ़िर बाहर आ जायेगे .....नैनो उम्र भर ममता के सीने पर सौंप बनकर दौडेगी...जिस मोदी को साम्यवादी गाली देते रहे उनके झगडे में वो आगे निकल गये ....कविताये उसी तरह चांदनी बिखेरती रहेगी.....पर खबरदार जो आपने इंडियन टीम को कुछ कहा तो....झकास जीते है.......झकास .
ReplyDeleteबहुत बढिया मिश्राजी ! अपने को तो आपके लिखे में आनंद आ जाता है ! बाक़ी ये जीत हार तो लगी ही रहेगी ! एक एक वाक्य आप जमा जमा कर लिखते हैं ! बहुत बधाई !
ReplyDeleteअरे तो बढियां न है,भगवान् करें कि चाँद की जमीन घर बनाकर रहने लायक हो जावे.तो ये जो नेता लोगन मोटा मोटा पैसा जोड़ के रखे हैं उसके सहारे मंहगा भाडा किराया चुका वहां जाकर बस लें ,हम तो फ्री हो जायेंगे न.यहाँ जितना गन्दा करना था कर लिया अब वहां बसकर सारे धनी मानी,करें गन्दा जितना करना है वहीँ की जमीन को,पर हमारी जान छोडें.
ReplyDeleteबाकी रही चाँद की बात तो वो तो हमारे मन में बसती है.कोमल कल्पना का हिस्सा है.कवि उसी कल्पना पर कवितायें कर लिया करेंगे और हम खुश होकर पढेंगे.
उदय प्रताप जी कि कविता के लिए बहुत बहुत आभार.
"चंद्रयान वापस लौट कर आएगा तो देश में मंहगाई की समस्या से लेकर तमाम और समस्याओं के समाधान के लिए कुछ उपाय सुझायेगा"..
ReplyDeleteक्या पता वो सभी समस्या साथ लेकर गया हो.. और अब पूरी दुनीयां में शांती... आमिन.. :)
यह बड़ा रोचक रहेगा जानना कि अमेरिकी चन्द्र अभियान के बाद वहां के कवियों ने चांद पर कविता लिखनेमें कितने प्रतिशत कमी की थी। भारत में चांद पर तो बहुत कविता आदिकाल से ठेली जाती रही है। इस चंद्रयान अभियान के बाद अनेक कवि मन लोग बेरोजगार न हो जायें (नो ऑफेन्स टू पोयट्स इण्टेण्डेड)। यथार्थ के धरातल पर कविता कठिन होता है।
ReplyDeleteमन्दी और बेकारी के माहौल में चन्द्रयान बड़े सहारे की चीज है। इसके बल पर अनेक प्रकार के यान ठेले जायेंगे। चांद का भूगोल-इतिहास खूब सामने आयेगा।
आपने भी पोस्ट के माध्यम से एक यान - एक सफल यान चला ही दिया है! :)
जो भी हो बाकियों की तुलना में बड़े सस्ते में चाँद पर भेजा है... अब कुछ और हो न हो... माल ढुलाई का काम तो करेंगे ही.
ReplyDeleteअभी टीवी पर बिहार में ट्रेनों की होती तोड़ फोड़ देख रहा हूँ..ये भी एक नई उँचाई ही नाप रहे हैं बेवकूफ लोग.
ReplyDeleteबाकी तो चाँद पर इन्सपेक्ट मतादीन गये थे शायद इसी जहाज में बैठकर लौट आयें..कुछ हला भला यहाँ का भी करें.
बहुत बेहतरीन लिखा है.
बहुत ही सुंदर लिखा है आप ने, अब लगता है जब चंद्रयान वापस आ जायेगा तो भारत से गरीबी भी हट जायेगी... धन्यवाद
ReplyDeleteसुख में तो सभी संग रहते किंतु दुःख में भी
ReplyDelete.................................मेरे साथ-साथ गीत गाती रही चांदनी औ;
जाने किस बात पर मैं चांदनी को भाता रहा
.................................और बिना बात मुझे भाती रही चांदनी
.....क्या बात है.....!!! इसी बात पर ही तो हमारा चंद्र-अभियान चलता रहा और आज सफल विक्षेप भी हो गया.
राज जैसे लोगों को लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलने की छूट हम लोगो ने ही दी है...वह तो दो उँगलियों से 'चाँद' और 'चंद्र यान' दोनों को ठेंगा दिखा रहा है. और रही बात अन्य समुदाय के लोगों की, तो भला है कोई विध्नसंतोषी उस निम्न स्तर पर आकर नहीं उकसा रहा है कि मराठी मानुसों को राज की करनी भुगतनी पड़े.
अरे अच्छी बात हुई है तो खुशियाँ मना लेते है ।रोना तो हमेशा का ही है ।
ReplyDeleteवैसे लेख और कविता सुंदर है ।
मुझको तो भेज दिया सपनों की दुनिया में
जाने कब निकल गयी चोरी-चोरी चांदनी
कहीं ये खुशी की चाँदनी निकल न जाये ।
बेहतरीन तरह से पिरो कर लिखा गया है, यह आलेख ।
ReplyDeleteअनुकरणीय शैली, मथले विचार !
सटीक कटाक्ष ..सुंदर लिखा आपने शिव भइया.
ReplyDeleteइन राजनितीक कबाडो को भी चंद्रयान मे भेज देना था !!चांद तो पहले से दागदार है थोडा दाग और सही ,कमसे कम अपनी धरती फ़िर से हरीया जाती !!
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