मुंबई गया था. वहां पोस्टर पर नेतागीरी खूब देखने को मिली. जगह-जगह पोस्टर देखकर लगा कि मुंबई शहर अब हादसों का शहर नहीं रहा. पोस्टरों का शहर हो लिया. आप कहीं खड़े हों और अपनी नज़र उठाकर ये देखने की कोशिश करें कि इस जगह का पता क्या है तो देखने के लिए आपको पता नहीं मिलेगा. हाँ, पोस्टर ज़रूर मिल जायेगा.
पोस्टर पर प्रधानमंत्री के फोटो के पास आपको लोकल गली-कूचा मंत्री के चेहरे के दर्शन हो जायेंगे. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के बगल आपको गणपति पूजा कमिटी के कोषाध्यक्ष दिखाई देंगे. मजे की बात यह कि वहां अंग्रेजी के शब्दों का हिन्दी-करण अनोखे ढंग से होता है.
एक पोस्टर पर निगाह गई. तमाम कांग्रेसियों के थोबड़े चिपके थे.राष्ट्रीय, 'अंतर्राष्ट्रीय', प्रदेशीय, क्षेत्रीय, गलीय, वगैरह.
पोस्टर पर कांग्रेस (आई) की जगह लिखा था, कांग्रेस (आय).
पढ़कर लगा कि पोस्टर लिखने वाले सचमुच बड़े अनुभवी होते हैं.
हा हा हा......
ReplyDeleteमुझे पता था,तुम खली हाथ तो लौटने वाले नही वहां से....पता नही कितनो की पतलून का नाडा मुट्ठी में बांधे आओगे......
शिव कुमार जी,
ReplyDeleteपिछले कई दिनों से मैं भी इसी विषय पर लिखने की सोच रहा था। अच्छा हुआ आपने लिख दिया है। यहां पोस्टर पर खूब नेतागिरी होती है। गणपति पूजा के दौरान नेताओं के पोस्टर गणपति जी के साथ चिपके हुये होते हैं। यह समझ पाना मुश्किल था कि गणपति बड़े हैं या नेता।
नम्बर एक ब्लॉग बनाने की दवा ईजाद देश,विदेशों में बच्ची धूम!!
ReplyDeletehttp://yaadonkaaaina.blogspot.com/2009/02/blog-post_7934.html
इनकी नज़र से बचके कहा जाओगे??????
ReplyDeleteहेवर्ड्स 5000
सही है..
ReplyDeleteवैसे कोई डायरी हाथ लगी या नहीं? :)
तो आप भ्रमण पर थे और हम परेशान हो रहे थे कि शिवजी कहाँ खो गए.
ReplyDeleteपूणे व मुम्बई जाना हुआ तो दोनो ही जगह नेताओं के पोस्टर बहुतायत में देख मुझे भी अजीब सा लगा, या कहें तो खटक रहा था. लगता है यह वहाँ की संस्कृति का हिस्सा है अब :)
और क्या क्या खोद लाए? :) जय महाराष्ट्र.
वाकई बहुत अफ़्सोसजनक ..अब मुम्बई पोस्टरों का ही शहर हो चला है.
ReplyDeleteपर ये कुश कौन से ५००० की बातें कर रहे हैं? :)
रामराम.
बड़ी आंय-बांय-शांय पोस्ट है!
ReplyDeleteवापस आये - हाय!
.असल में तो यही (मतलब आय) कॉंग्रेस का एक मात्र उद्देश्य है. मुम्बैया जनता ने इस बात को ठीक से समझ लिया है.
ReplyDeleteपोस्टर हम भी रोज देखते हैं लेकिन इसपर पोस्ट भी बन सकती है ये नहीं सोचा था...आप की दिमाग की मिटटी बंधू बहुत उपजाऊ है...पोस्टर पर पोस्ट भाई वाह...लेकिन पोस्टर का एक आध फोटो भी चिपकाते तो आनंद आ जाता...यहाँ आई नहीं होता आय होता है...याने "आय तो आय नहीं तो जाय"... देखते हैं मुंबई से और क्या क्या आईडिया चुरा लाये हो....
ReplyDeleteनीरज
यंहा प्रजा से ज्यादा उनके प्रतिनिधी है और प्रतिनिधी से ज्यादा उनके चाहने वाले और चाहने वालों से ज्यादा सड़कों पर बहता उनका स्नेह अपने नेता के प्रति। बम्बई की दिवारें कम पड़ सकती हैं पर सड़कों पर बरसता ये प्यार नहीं। और क्या क्या सहेज कर ले गये बम्बई से।
ReplyDeleteबँबई की अन्य बातेँ भी तो लिखिये शिव भाई ....
ReplyDeleteबहुत पैनी नजर, देखे तो मैने भी थे.. पर मैने सोचा अंग्रेजी से मराठी हुआ है... पर हिन्दी... ये तो वाकई हिन्दी हो गई..
ReplyDeleteरंजन
हर मन के भाव यही हैं कि कांग्रेस आय..या कांग्रेस आए..
ReplyDelete-एक सच्चा कांग्रेसी सिपाही आपको सलाम करता है. :)
सूक्ष्म दृष्टि। क्या देखते हैं भाई साहब...!
ReplyDeleteसोचता हूँ कह ही दूँ-
ये आँखें (ज्ञान चक्षु) मुझे दे दो भाई...।
जय महाराष्ट्र्।
ReplyDeleteहम तो जब भी भारत मै कही भी जाये बच्चो को हिन्दी इन पोस्टरो के जरिये ही आ गई, कई बार अजीब से पोस्टर होते है,
ReplyDeleteजेसे एक बार बच्चे पढने लगे सडको पे लगे पोस्टर...
सात हिन्दुस्तानी, बेईमान,बदमाश, हम नही सुधरेगे.संयासी, श्री ४२०.बंगले के पीछे, हंगामा, थोडा आगे गये तो लिखा था काग्रेस को वोट दो,वर्ना, इन्तकाम, आगे गये तो देखा कई पार्टियो के अलग अलग पोस्टर लगे थे जिस मे सभी जेबकतरो की फ़ोटू भी लगी थी, ओर उन पोस्टरो ने नीचे एक पुराना पोस्टर लगा था, ओर सब मिला कर लगता था एक ही पोस्टर हो, ओर नीचे बडे बडॆ अक्षरो मे लिखा था **हम नही सुधरेगे** साथ ही दुसरे पोस्टर पर लिखा था, **हम सब चोर है**.
हमे बच्चो से कहा भाई अब आप की पढाई बन्द , ओर झट से हम ने शीशा बन्द कर दिया.
राम राम जी की
शिव जी,
ReplyDeleteकांग्रेस (आई) की जगह लिखा था कांग्रेस (आए). ये हिंदी नहीं है, शायद ये मराठी स्टाइल है. मराठी में नागपुर को भी नागपूर लिखा जाता है.
इत्ते दिन बाद लौटे, और आते ही रेड़ मारनी शुरु। बचकर रहियेगा, आय व्यय का खाता रखने वाले प्राइसवाटरहाउस कूपर्स बने घूम रहे हैं।
ReplyDeleteअरे इ तो हम रोजे देखते हैं. लेकिन नजर-नजर की बात है ! तिलकधारी नेता गणपति/शिवाजी के साथ. अपने राज भाई के भी बहुत पोस्टर आते हैं. अभी मुंबई के शहीदों के साथ भी लोगों के पोस्टर लगे थे.
ReplyDeleteऔर आय बांय तो हो ही जाता है मराठी में... जहाँ पर अंग्रेजी, हिन्दी और मराठी तीनों में लिखा होता है वहां हिन्दी और मराठी में अलग अलग लिखा होता है भले ही लिपि एक है. जैसे बैंक और बँक.
Bhot khoob...! ise kahte hain gidh dristi....!!
ReplyDeleteTau ji 5000 nahin 50000 likha hai fir se dekhiye.... ha ha ha..!!!