Friday, May 8, 2009

सेंट मोला मेमोरियल स्कूल - भाग २

जब से बेटे के स्कूल से लौटे, तभी से उन्हें लगने लगा कि अपने करेंट बिजनेस को डाइवर्सीफ़ाई करने का एक तरीका उन्हें मिल गया है. वैसे भी मालिकाना हक़ जितनी चीजों पर बढ़े, उतना ही अच्छा. उन्हें लगता कि करेंट लिस्ट में अगर स्कूल भी जुड़ जाए तो क्या कहने.

दिन-रात वे इसी बारे में सोचने लगे. एक दिन दूकान पर बैठे-बैठे ही मौसी के बेटे, जिसे मैनेजर बनाकर उन्होंने मौसा-मौसी और खुद उसके ऊपर एहसान किया था, से कह बैठे; "वैसे देखा जाय तो धंधा है चोखा?"

मौसी के बेटे की समझ में कुछ नहीं आया. उसे लगा कि सोचते-सोचते अचानक किस बात पर बोल पड़े? वो बेचारा अपने चेहरे पर क्वेश्चन मार्क का स्टिकर चिपकाए उन्हें निहारने लगा.

उसका यह व्यवहार उन्हें खल गया. फट से बोले; "तू भी रहेगा गधे का गधा ही. अरे मैं स्कूल के धंधे की बात कर रहा हूँ."

अपने गदहपन का जिक्र होते ही वह जैसे जाग गया. आखिर बेचारा ठहरा मैनेजर. मैनेजर की नींद अक्सर मालिक द्बारा गधा कहे जाने पर खुल जाती है.

सकपकाकर बोला; "हाँ, भैया आप ठीक कह रहे हैं. मैं तो कई दिनों से सोच रहा था कि इस धंधे के बारे में आपको बताऊँ. फिर सोचा कि आप पता नहीं कैसे रिएक्ट करेंगे."

वो भी कैसे हाँ में हाँ नहीं मिलाये. वैसे भी हाँ में ना मिलाने का कोई कारण भी नहीं था. उसकी नज़र में भी स्कूल का धंधा सब धंधों में चोखा था.

आगे बोला; " अरे भैया, खुद बिड़ला जी को ही देख लीजिये. कलकत्ते में ही कम से कम दस स्कूल हैं उनके. और फिर नोपानी जी, अरे वही बिड़ला जी के दामाद. उनके स्कूल का भी कितना नाम है. कलकत्ता तो जाने दीजिये, रांची तक में स्कूल है उनका."

मैनेजर की बात सुनकर एक क्षण के लिए उससे प्रभावित हो लिए. उन्हें लगा तेल की दूकान और तेल-मिल के काम के अलावा भी इसे कई बातों का ज्ञान है.

एक बार तो मन में आया कि उसकी प्रशंसा कर दें. वे ऐसा करने ही वाले थे कि उनकी अंतरात्मा की आवाज़ ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया. अंतरात्मा से आवाज़ आई; " क्या करने जा रहे हो? मालिक होकर मैनेजर की प्रशंसा करोगे? छि..."

अंतरात्मा की आवाज़ सुनकर ठहर गए. प्रशंसा करने का विचार त्याग दिया और कुछ क्षणों में ही नॉर्मल हो गए.

नॉर्मलता जब ठहर गई तो बोले; "ठीक है ठीक है. तुझे इन सब बातों में माथा लगाने की ज़रुरत नहीं है. तू तो ट्रांसपोर्ट वाले को फ़ोन कर और देख अगर सरसों आ गई हो तो गोडाउन में रखवाने का इंतजाम कर."

वो बेचारा मुंह लटकाए ट्रांसपोर्ट वाले को फ़ोन करने चला गया.

उसके जाने के बाद फिर सोचने लगे. स्कूल के धंधे वाली बात मन से जा ही नहीं रही थी. लेकिन अब इस बात पर पछताने लगे कि मैनेजर को वहां से भगाना ठीक नहीं हुआ. आखिर कोई तो चाहिए इस नए धंधे के बारे में बात करने के लिए. दूकान पर काम कर रहे मुटिया-मज़दूरों से तो यह बात की भी नहीं जा सकती. उन्हें क्या मालूम कि प्राइवेट स्कूल किस चिड़िया का नाम है. हाँ, अगर कोई म्यूनिसिपल स्कूल और उनमें छाई अराजकता के बारे में बातें करता तो ये मजदूर बहुत कुछ बोल सकते हैं. उन्होंने इन स्कूलों को बड़े नज़दीक से देखा है.

मैनेजर के जाने से वे और व्याकुल हो लिए. अब इस मुद्दे पर किससे बात करें? दोस्त-यार तो थे नहीं. रिश्तेदारों से नए बिजनेस के बारे में बात करना उनके हिसाब से बिजनेस-धर्म के खिलाफ बात थी.

फिर किससे बात करें? सोच ही रहे थे कि उन्हें रमेश चोखानी याद आ गए.

अगर आपके मन में सवाल उठा रहा हो कि रमेश चोखानी कौन ठहरे, तो फिर उनके बारे में भी जानिए.

चोखानी जी राम अवतार मोहन लाल फर्म के ऑडिटर हैं. चार्टर्ड एकाउंटेंट. अकाऊंटिंग, कंपनी ला, इनकम टैक्स पार्टनरशिप एक्ट,....वगैरह वगैरह की जानकारी रखने और राम अवतार जी के फर्म का ऑडिट करने के अलावा भी बहुत से ऐसे काम है जिनमें चोखानी जी माहिर हैं. क्रिकेट की भाषा में बोले तो आलराउन्डर.

कह सकते हैं कि अपने विषयों की जानकारी हो या न हो, लेकिन आजतक कोई काम रुक गया हो, ऐसा नहीं हुआ. हर डिपार्टमेंट में हर काम करने वाले लोग हैं इनके पास. राम अवतार जी के खाते का ऑडिट तो करते ही हैं, गाहे-बगाहे हर सरकारी विभागों का काम भी यही करवाते हैं. ट्रेड लाईसेन्स के रिन्यू करने से लेकर.......

खाते के ऑडिट का काम तो सबसे बाद में किया जाता है. वे खाते जो हिंदी में लिखे जाते हैं. राम अवतार जी के हिसाब से हिंदी में खाता रखने का बड़ा फायदा है. रोकड़ लिखते-लिखते एकाउंटेंट कोई भी एंट्री काट सकता है और कारण के रूप में वहां बड़े आराम से लिखा जा सकता है; "भूल से."

वैसे भी उन्हें इस बात का विश्वास है कि बही-खाता अगर हिंदी में लिखा हुआ रहे तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से निबटने में ज्यादा परेशानी नहीं होती. ज्यादातर इनकम टैक्स अफसरों को हिंदी पढ़ने नहीं आती.

यह काम उनके पिताश्री के जमाने से होता आया है. उनके पिताश्री ने उन्हें व्यपार का यह नियम बहुत अच्छी तरह से समझा दिया था. और उनकी बनाई हुई लकीर पर राम अवतार जी आज तक चल रहे हैं.

लकीर पर चलते रहे फिर भी उन्हें फ़कीर नहीं कहा जा सकता.

खैर, रमेश चोखानी जी याद आये तो राम अवतार जी ने उन्हें फ़ोन कर डाला. बोले; "रमेश जी, राम अवतार बोलूँ."

जिस अंदाज़ में इन्होने 'राम अवतार बोलूँ' कहा, उसी से रमेश जी को पता चल गया कि ये कोई नई बात के पीछे पड़ गए हैं. उन्होंने व्यावहारिकता की चादर से अपनी आवाज़ को ढांपते हुए पूछा; "क्या हाल है?"

इन्होने इस तरफ से कहा; "हाल तो बढ़िया है. आपके घर का क्या हाल है? बच्चे कैसे हैं?"

रमेश बाबू को समझ आ गया कि ये आज उन्हें छोड़ने वाले नहीं. अब ये बच्चे, भाभीजी, माँ, वगैरह के बारे में तो पूछेंगे ही, साथ में और भी बहुत कुछ पूछेंगे. गाड़ी आजकल क्या माइलेज दे रही है? पिछले हफ्ते खाटू वाले श्याम बाबा के कीर्तन में आप क्यों नहीं आये? अगले हफ्ते हमारे यहाँ भी जागरण का प्रोग्राम है....वगैरह..वगैरह.

इन सब बातों के बारे में सोचते हुए रमेश बाबू खुद को इनके वार झेलने के लिए तैयार करने लगे.

.......जारी रहेगा.

15 comments:

  1. अच्छा जा रहा है. लघु व्यंग्य उपन्यास पर विचार कर सकते है.

    साथ ही आप तो व्यापार की गुप्त बातें भी सार्वजनिक कर रहे है, यह हमारी अपनी बिरादरी के साथ विश्वासघात है... :)

    ReplyDelete
  2. सही जा रहा है.. पूरा ज्ञान मिले तो एक आध स्कूल मैं ही लगा डालूं..:)

    ReplyDelete
  3. ये अन्दर की बाते बहार लाने की आदत गयी नहीं आपकी.. दुर्योधन चुनाव में बीजी का हुआ आप तो बिजनेस के अन्दर की बाते बाहर लाने लगे.. पर सानु की? बोलो खाटू वाले श्याम बाबा की जय

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्छा लिख रहे हो. ब्यापारी मन और उसके समझ को बहुते अध्यन किये हो.
    कहीं ब्यापार और ब्यापार सबंधी बरिकिओं को सर्ब्जनिक करने से ब्यापारी बर्ग नाराज नहीं हो जाएँ- ध्यान रखें . भाई चार्टर्ड एकाउंटेंट इन बरिक्यों को बताने का फीस लेते हैं, और आप मुफ्त में हीं बताएं जा रहें हैं.

    ReplyDelete
  5. हमारे एक रिश्तेदार है .दस सालो से वे हर धंधे में मुनाफा माप रहे है......घर पे खाली बैठे है जी...

    ReplyDelete
  6. चोखानीजी तो रामावतार से भी ज्यादा चालु-पुर्जा इंसान हैं. अब बात हो चोखे धंधे की तो याद तो चोखानीजी ही आयंगे न :-)

    ReplyDelete
  7. लगता है आगे चलकर स्कूल ही खोलना पड़ेगा।फ़ेल को पास करने का गोरखधंदा भी होता है इसमे।

    ReplyDelete
  8. बहुत दिनो बाद आना हुआ, पढ़ कर रोम रोम तरोताजा हो गया। वैसे आपको पढ़ने का आनंद ही कुछ और होता है।

    अगले की भी प्रतीक्षा करूँगा

    ReplyDelete
  9. चोखानी जी राम अवतार मोहन लाल फर्म के ऑडिटर हैं.

    जे मैं सोच्यो के होये हो ये. ऐं. अप्ने ही किसी ग्राहक तें भान्डो फोड़ रह्यो यो मिसर जी . एं. ऐसो कह्यों क्यो जात है व्वैं? ऐं?

    ReplyDelete
  10. पीली सरसों के तेल से विद्या का वासन्ती पुष्प खिलेगा। मन थोड़ी धीर धरो!

    ReplyDelete
  11. बहुत अच्छा जा रहा है शिवजी....अगले अंक के इंतज़ार में

    ReplyDelete
  12. हम तो अपना स्कूल खोलने के लिए नोट करे जा रहे हैं।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  13. दिक्कत यही है...जिसके पास होना चाहिए उसके पास नहीं है और जिसके पास नहीं होना चाहिए उसके पास है...
    आप सर खुजलायेंगे...इस लिए नहीं की हम क्या कह रहे हैं, बल्कि इसलिए की सर में जुएँ हैं...फिर आप पूछेंगे..."क्या भईया क्या नहीं होना चाहिए...?"क्यूँ की एक आध जूं के स्थानातरण से ही आप के दिमाग की बत्ती जलती है.
    शंका आपकी आदत है और समाधान हमारी.
    हम कहेंगे "अधिकार"
    आप कहेंगे "काहे का...??"
    हम कहेंगे "पुरूस्कार का"
    आप कहेंगे "कौनसे?"
    हम कहेंगे "साहित्य में नोबल के"
    आप कहेंगे "मतलब"
    हम कहेंगे" मतलब ये की यदि ये अधिकार हमारे पास होता तो आप की इस पोस्ट को हम आधा पढ़ कर ही दे दिए होते..."
    आप पूछेंगे "क्यूँ?"
    हम कहेंगे "क्यूँ की ये डिजर्व करता है..."
    अब आप कुछ नहीं कहेंगे....क्यूँ की आपको हमारी बात जँच गयी है.

    नीरज

    ReplyDelete
  14. मिश्रजी "ताऊ" 'बोलूँ', म्हारा बिजनस की पोल क्युं खोलो हो? :)सगली दुनियां ही ईं धंधा म आज्यासी तब के करांगा?

    रामराम.

    ReplyDelete

टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय