हम आये दिन यह कहते रहते हैं कि द्वापर और सतयुग में सबकुछ ठीक चलता था. लेकिन कल दुर्योधन जी की डायरी पढ़कर लगा कि ऐसी बात नहीं है. द्वापर में भी सूखा पड़ता था. सर्दी भी पड़ती है. विश्वास न हो तो दुर्योधन जी की डायरी का यह पेज पढिये. उन्होंने हस्तिनापुर में सूखे की स्थिति से उत्पन्न हुई समस्याओं का जिक्र किया है. उनकी डायरी से यह भी पता चलता है कि उनदिनों भी राजा जी लोग वैसे ही काम करते थे जैसा आज करते हैं.
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समझ में नहीं आता कि प्रजा बात-बात पर परेशान क्यों होती रहती है? मैं कहता हूँ, अगर प्रजा शरीर धारण ही किया है तो फिर परेशानी से क्या डरना? परेशानी से डरना ही था तो प्रजा क्यों बने? काहे नहीं राजा बन गए? मेरी तरह राजकुमार ही बन जाते.
परेशानियों का रोना तो नहीं रहता.
गुप्तचर बता रहे हैं कि पिछले एक महीने से प्रजा सूखे से परेशान है. अजीब बात है. पिछले बरस इसी मौसम में जो प्रजा बाढ़ से परेशान थी, वही लोग इस बरस सूखे से परेशान है. सुनकर लगता है जैसे इनलोगों को परेशान होने का बहाना चाहिए. ये हर बात पर परेशान होने के लिए कमर कसे बैठे हैं. मैं कहता हूँ इस मौसम में सूखा नहीं पड़ेगा तो क्या जाड़े के मौसम में पड़ेगा?
मुझे तो लगता है कि ये लोग गर्मी के मौसम में भी इस बात के बहाने परेशान रहने के लिए तैयार हो सकते हैं कि गर्मी ढंग से नहीं पड़ रही. मैं पूछता हूँ परेशान होने की कोई लिमिट है कि नहीं?
वैसे मुझे इस बात से संतोष है कि बाढ़ आये चाहे सूखा, दोनों ही सूरत में इन्द्र की बड़ी छीछालेदर होती है. प्रजा मिलकर उन्हें ही कोसती है. जब भी गुप्तचर इस बात की जानकारी लेकर आते हैं कि फलाने इलाके से आज इन्द्र को पूरे दो सौ किलो गालियाँ मिलीं, मुझे बहुत खुशी होती है.
मेरी खुशी के दो कारण हैं. पहला तो यह कि इन्द्र ठहरे अर्जुन के मेंटर. ऐसे में उन्हें गालियों का चढ़ावा मिले तो मुझसे ज्यादा ख़ुशी और किसे होगी? दूसरी बात यह है कि सूखा झेलकर जब प्रजा इन्द्र को गरियाती है तो उसका ध्यान राजमहल के निठल्ले, निष्क्रिय कर्मचारियों और मंत्रियों की चिरकुटई पर नहीं जाता.
गुप्तचर बता रहे थे कि पानी की किल्लत की वजह से किसान आत्महत्या पर उतारू हैं. मैं पूछता हूँ, आत्महत्या करने की क्या ज़रुरत है? किसानों के इस कदम से राजमहल की कितनी बदनामी होती है, उसके बारे में ये किसान सोचते ही नहीं हैं. ठीक है, मैं मानता हूँ कि सूखे की वजह से खेती-बाड़ी में समस्या आती है लेकिन समस्या कहाँ नहीं है?
क्या हमें कम समस्याओं का सामना करना पड़ता है? जब से सूखा पड़ा है तब से हर सूबे के सूबेदार अपने इलाके को सूखा-ग्रस्त घोषित करवाने में एड़ी-छोटी का जोर लगा रहे हैं. हर सूबेदार रोज मीडिया में कुछ न कुछ बोलता रहता है. किसी के इलाके में अगर चार वर्ग किलोमीटर में भी बरसात नहीं होती तो वह चाहता है कि पूरा इलाका ही सूखा-ग्रस्त घोषित कर दिया जाए. कोई नहीं सोचता कि ऐसे में राजमहल की परेशानियाँ बढ़ जाती हैं.
अभी पिछले महीने ही चेंबर ऑफ़ कामर्स की मीटिंग में विदुर चाचा ने अपने भाषण में बताया था कि इस बार हस्तिनापुर की अर्थव्यवस्था नौ-दस प्रतिशत से ग्रो करेगी. अब सूखे की वजह से ये हाल हो गया है तो क्या ख़ाक ग्रो करेगी?
मुझे तो लगता है जैसे विदुर चाचा का भाषण सुनकर ही अर्जुन ने इन्द्र से बोलकर बरसात रोकवा दी.
खैर, ये सूखा हमारे लिए अच्छे दिन लेकर आया है. ऐसा मुझे इसलिए लगता है कि तमाम सूबेदार हमसे मिलने के लिए उतावले हो रहे हैं. ये लोग चाहते हैं कि मैं हस्तक्षेप करके उनके इलाके को सूखा-ग्रस्त घोषित करवा दूँ. कह रहे हैं कि राजमहल से जितनी भी सहायता राशि दी जायेगी, उसमें से पचीस परसेंट मुझे दे देंगे.
मुझे तो एक बार लगा कि ऐसा करना उचित नहीं रहेगा लेकिन फिर दुशासन और जयद्रथ ने बताया कि तमाम सूबों को सूखा-ग्रस्त घोषित करवाने के लिए दोनों ने कई सूबेदारों से एडवांस ले लिया है. इसी एडवांस की वजह से दुशासन ने अपनी विदेश यात्रा का कार्यक्रम बना लिया है. कह रहा था कि इस बार पूरे एक महीने के लिए उज़बेकिस्तान जाएगा ताकि वहां हो रही हरित क्रान्ति का अध्ययन कर सके.उज़बेकिस्तान में हुई हरित क्रान्ति का अध्ययन करके वो उज़बेकिस्तान का प्लान हस्तिनापुर में भी लागू करना चाहता है. उधर जयद्रथ ने प्लान बनाया है कि वो अपने किसी चमचे की पार्टनरशिप में नया धंधा शुरू करेगा.
खैर, अब सोने का समय हो गया है.
कल राजमहल में सूखे की स्थिति से निपटने के लिए मीटिंग अटेंड करना है. मैंने तो सोच लिया है कि इस मीटिंग में प्रस्ताव पारित कर के सबसे पहले मौसम विभाग के पदाधिकारियों को सस्पेंड करवाना है. ये लोग कभी मौसम की जानकारी ठीक से नहीं देते. इन लोगों को वित्त विभाग में ट्रांसफर करवा दूंगा. वे लोग भी कभी अर्थव्यवस्था के बारे में कोई जानकारी ठीक से नहीं दे सकते. ऐसे में दोनों विभागों के लोगों को सज़ा भी हो जायेगी और प्रजा में यह बात भी फ़ैल जायेगी कि राजमहल सूखे की स्थिति से निपटने के लिए कमर कस चुका है.
महाराज दुर्योधन की जय हो. हुजूर हमे भी आपकी सेवा करने का मौका दिया जाये. फ़िर देखियेगा हम कैसे कैसे राहत के गीले सूखे प्लान पेश करके आपका खजाना भरवा देंगे.
ReplyDeleteरामराम.
गुरु डायरी के पेज नम्बर देने में सावधानी रखना पहले बता रिया हूँ .
ReplyDeleteकिसी दिन सभी पेज क्रमश: लगाकर फँसा दूँगा आपको :)
साहेब, हम तो परजा है. जो राजमहेल कहे उसे ही सही मान लेते है. वो बोले साइनिंग तो हमने उत्सव मना लिया. वो बोले हम ग्रो कर रहें है तो वो भी मान लिया. बरसात हो न हो जब वो घोषित करेंगे मान लेंगे सूखा पड़ा है या नहीं. राजकुमार नेक इनसान है. मन की सारी बात लिख देते है.
ReplyDelete" उज़बेकिस्तान जाएगा ताकि वहां हो रही हरित क्रान्ति का अध्ययन करेगा "
ReplyDeleteये वाक्य सिद्ध करता है की आप जो अंश प्रकाशित करते हैं वो वाकई उस दुर्योधन के हैं जो कभी हस्तिनापुर में हुआ करता था...याने ये आपकी कपोल कल्पना नहीं है...आपके प्रति जो गलत धारणा हमने बनाई थी की आप स्वयं ही दुर्योधन के नाम से लिखते हैं याने छद्म लेखन करते हैं वो इस वाक्य से दूर हो गयी.
आप पूछेंगे की ऐसा क्या है इस वाक्य में की जिसने सिद्ध कर दिया की दुर्योधन की डायरी असली है....हैं हैं हैं हैं हैं ....आप क्या समझे आपको ये राज़ यूँ ही बता देंगे......हैं हैं हैं हैं....बहुत नादान हैं आप....
नीरज
पुनश्च: चलिए बता ही देते हैं.... दर असल हरित क्रांति उस वक्त करने वाले हम ही थे...महाभारत काल में हम उसी प्रदेश में जन्में थे...याने उजबेकिस्तान में...बाद में हमारी आत्मा भटकती हुई भारत भ्रमण पर आयी और यहीं की हो गयी...इसका उल्लेख दुर्योधन ने अपनी डायरी की भूमिका में किया है...जिसका पन्ना हमारे पास है....हैं हैं हैं हैं हैं....
जबरदस्त तुलनात्मक विवेचना की है ....वाह !!!
ReplyDeleteसचमुच राजनीति में समय कभी नहीं बदलता...चाहे द्वापर हो या कलयुग....
बड़ा अच्छा किया यह पन्ना प्रकाशित कर तुमने...राजा प्रजा दोनों को कम से कम यह तसल्ली तो होगी कि ये परिस्थितियां केवल आज ही नहीं हैं.
कौन सा पेज नंबर है जी..... धरतराष्ट तो लगता है कोई अमरता का घूंट पिए बैठे है .हर युग में मौजूद मिलते है
ReplyDeleteदुर्योधन अपनी कसी हुई कमर के साथ क्या तो क्यूट लग रहा होगा। दिख जाये तो सलमान को छोड़कर उसको साइन करने के लिये मचल उठे। ये जो बालक विवेक है वो भी कोई पद चाहता है। दुर्योधनजी को सलाह है कि वो छापाखाने के एकाध मुंशी को सस्पेंड करके उसका काम विवेक को थमा दें। अनुशासन भी रह जायेगा और ये बालक भी सन्तुष्ट हो जायेगा। :)
ReplyDeleteबढिया पोस्ट।
ReplyDelete"इनलोगों को परेशान होने का बहाना चाहिए. "
ReplyDeleteहां जी, वैसा ही जैसे पीने वालों को बहाना चाहिए:)
:) मजेदार, एक काम करें वित्त और मौसम विभाग को ही मिला दें
ReplyDeleteवही सरकारी चोंचले । सब समझता हूं में ।
ReplyDeleteतब भी इनकी रंगशाला में मदिरा की बाढ़ आयी रहती थी । आज भी ये सब हरामखोर शराब में डूबे होंगे ।
अच्छा है कि समस्या के बारे में चिन्तन करने में कोई टैक्स नहीं पड़ता है नहीं तो ससुरे चिन्तन भी नहीं करते ।
ReplyDeleteएकार्डिग टू कीरातर्जुनियम दुर्योधन जुऐ में जीती गई पृथवी को अब न्याय से जीतना चाहता है, यहाँ तक कि उसले प्रशासन को इतना चौकस कर दिया था कि उसके राज्य में वर्षा आधारित कृषि न हो कर नदीधारित खेती होने लगी है। अर्थात दुर्योधन का प्रशासन बेस्ट था।
ReplyDeleteव्यंग अच्छा था।
सार्थक और मजेदार व्यंग। एक ही साँस में पुरा पढ़ गया ...मन आनंदित हो गया । साधू!!
ReplyDeleteदुर्योधन का विचार अर्जुन और विधुर के प्रति तर्कसंगत हैं. मैं भी मानता हूँ, ये सब किया कराया हैं. नहीं तो क्या यूँ ही इन्द्र भगवन नाराज हो जाते. भाई दुर्योधन ने चढावा तो पूरा ही दिया था. ये तो आप भी मानते होंगे.
ReplyDeleteदुसाशन और जयदर्थ भी नीतिगत रूप से ठीक हैं. राज्य के सुखाग्रस्ता होने का मतलब यह तो नहीं होता है, कि आपके कोष मैं भी सुखा आ जाया. भाई ये तो जरूरी है कि कुछ न कुछ होते रहना चाहिए तभी तो कोष मैं वृद्धि संभव है. भाई हम तो "दुर्योधन" से पूर्ण रूप से सहमत है.
कभी दुर्योधन-अर्जुन संवाद भी लिखिए। मजेदार होगा।
ReplyDeleteया फिर दुर्योधन से मैडेम गान्धारी की वार्ता करा दीजिए। :)
Abhee bhee 9-19% growth pe atke hain vidur chacha,
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