इस वर्ष मानसून की कमी हो गई है. अपना देश ही ऐसा है. यहाँ भ्रष्टाचार को छोड़कर आये दिन किसी न किसी चीज की कमी होती रहती है. इस कमी वाली वर्तमान संस्कृति में शायद कमी के लिए और कुछ नहीं बचा था इसीलिए इस बार मानसून की कमी हो गई. दाल की कमी, चीनी की कमी, प्याज-आलू की कमी को देश कितने दिन झेलेगा? कुछ नया भी तो कम होना चाहिए.
विद्वान बता रहे हैं कि बादलों की कमी नहीं है लेकिन बादलों में पानी की कमी ज़रूर है. आश्चर्य इस बात का है कि अभी तक सरकार ने यह नहीं कहा कि मानसून की कमी के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है. शायद सरकार अभी तक इतनी काबिल नहीं हुई कि मानसून की कमी के लिए विदेशी ताकतों को जिम्मेदार बता दे.
लेकिन यह सब मैं क्यों लिख रहा हूँ? इसी को कहते हैं घटिया ब्लॉग-लेखन.
अब देखिये न, मुझे प्रस्तुत करना है हमारे कृषि मंत्री का साक्षात्कार और मैं प्रस्तावना में न जाने क्या-क्या ठेले जा रहा हूँ. इसलिए प्रस्तावना को यहीं खत्म करता हूँ और हमारे कृषि मंत्री का साक्षात्कार प्रस्तुत करता हूँ.
आप यह मत पूछियेगा कि इस साक्षात्कार के ट्रांसक्रिप्ट मुझे कहाँ मिले? मैं नहीं बताऊँगा. मैंने (ब्लॉगर) पद और गोपनीयता की कसम खाई है.आप साक्षात्कार पढिये.
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पत्रकार: नमस्कार मंत्री जी.
मंत्री जी: नमस्कार. बाहर आसमान साफ़ है. मौसम अच्छा है....अब यहाँ कोई अंपायर तो है नहीं कि वो हाथ नीचे करके इंटरव्यू शुरू करने का इशारा करेगा. जब मैं खुद ही जसवंत सिंह बन गया हूँ तो अंपायर का रोल भी खुद ही निभा देता हूँ.....वैसे भी क्रिकेट चलाने के लिए मैं ही अध्यक्ष बना रहता हूँ. मैं ही सेलेक्टर भी बन जाता हूँ. मैं ही...इसलिए यहाँ भी मैं ही अंपायर भी बन जाता हूँ... ये लीजिये. मैंने हाथ नीचे किये. अब आप पहला सवाल फेंक सकते हैं.
पत्रकार: जसवंत सिंह? ये वही जिन्हें पार्टी से...
मंत्री जी: सॉरी सॉरी. जसदेव सिंह की जगह मेरे मुंह से जसवंत सिंह निकल गया. कोई बात नहीं. आप सवाल फेंकिये.
पत्रकार: सबसे पहले मेरा सवाल यह है कि आप कृषि मंत्री भी हैं और इस देश की क्रिकेट भी चलाते हैं. क्या आप दोनों काम एक साथ कर पाते हैं?
मंत्री जी: जी हाँ. बिलकुल कर पाता हूँ.... वैसे भी क्रिकेट में पॉलिटिक्स है और पॉलिटिक्स में क्रिकेट..कृषि मंत्रालय में भी पॉलिटिक्स है...जब सब जगह पॉलिटिक्स ही है तो फिर और क्या चाहिए? डबल रोल करने से समय का बेहतर तरीके से मैनेजमेंट होता है...
पत्रकार: वह कैसे? अपनी बात पर प्रकाश डालेंगे?
मंत्री जी: अब देखिये. अगर मैं क्रिकेट देखने दक्षिण अफ्रीका जाऊंगा तो साथ-साथ वहां की कृषि के बारे में भी जानकारी हो जायेगी...... मान लीजिये मैं श्रीलंका में कोई टूर्नामेंट देखने गया. अब हो सकता है वहां यह देखने को मिले कि श्रीलंका वालों ने समुद्र के पानी से खेती करने के लिए कोई नया कैनाल प्रोजेक्ट कर लिया हो. ऐसे में श्रीलंका जाना तो हमारे मंत्रालय के लिए लाभकारी तो साबित होगा ही न?
पत्रकार: जी हाँ. आपकी बात से सहमत हुआ जा सकता है.
मंत्री जी: सहमत हुआ जा सकता है से क्या मतलब है आपका? आपको कहना चाहिए कि आप मेरी बात से सहमत हैं.
पत्रकार: ठीक है. वही समझ लीजिये.
मंत्री जी: हाँ, ये ठीक है. अब आगे का सवाल पूछिए.
पत्रकार: मेरा सवाल यह है कि आप कृषि और क्रिकेट, दोनों को चला सकते हैं इसके बारे में आपने प्रधानमंत्री को कैसे कन्विंस किया?
मंत्री जी: फोटो खिंचवा कर.... आप मेरा यह वाला फोटो देखिये. देख लिया? अब आप बताइए, पगड़ी पहनकर मैं मिट्टी से जुडा हुआ किसान लग रहा हूँ कि नहीं? ये वाला फोटो देख लिया?... अब आप मेरा ये वाला फोटो देखिये. इस फोटो को देखने से क्या आपको नहीं लगता कि मैं आई सी सी का भावी अध्यक्ष लग रहा हूँ?
पत्रकार: जी हाँ. मैं आप की बात से सहमत हूँ. बल्कि इस फोटो में आप आईसीसी के भावी नहीं बल्कि प्रभावी अध्यक्ष लग रहे हैं.
मंत्री जी: है न. कन्विंस करना कितना इजी है, आपको समझ में आ ही गया होगा.
पत्रकार: जी हाँ, समझ में आ गया.... अब मेरा सवाल यह है कि इस वर्ष पहले चरण में मानसून पूरे बासठ प्रतिशत कम रहा. मानसून की इस कमी से उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों से निबटने के लिए आपके मंत्रालय ने क्या किया है?
मंत्री जी: देखिये, अभी तक तो कुछ नहीं किया. और कुछ नहीं करने के पीछे एक कारण है. हम कोई भी काम जल्दबाजी में नहीं करते. आपको ज्ञात हो कि जब से मैंने देश की क्रिकेट को चलाना शुरू किया है तब से अगर कोई बैट्समैन अपने पहले टेस्ट में असफल रहे तो हम उसे और मौका देते हैं. हम उसे तुंरत टीम से नहीं निकालते. इसी तरह से हम मानसून को और मौका दे रहे हैं.... अब हम दूसरे चरण के मानसून का परफॉर्मेंस देखेंगे. अगर वह दूसरे चरण में भी कम रहा फिर हम स्थिति से निबटने पर सोचेंगे. क्रिकेट चलाने की वजह से हमने बहुत कुछ नया सीखा है जिसे हम मंत्रालय में भी लागू कर रहे हैं.
पत्रकार: हाँ, वह तो दिखाई दे रहा है. अच्छा यह बताइए कि इतने वर्षों से आपकी पार्टी देश पर शासन कर रही है लेकिन किसानों के लिए आधारभूत योजनायें क्यों नहीं लागू की जा सकी?
मंत्री जी: देखिये, जहाँ तक मेरी पार्टी द्बारा देश पर शासन करने की बात है तो आपको मालूम होना चाहिए कि मेरी पार्टी तो एक रीजनल पार्टी है. मेरी पार्टी ने देश पर शासन नहीं किया है. आपको इतनी छोटी सी बात का पता नहीं है? किसने आपको पत्रकार बना दिया?
पत्रकार: नहीं...., वो तो मैं डिग्री लेकर पत्रकार बना हूँ. लेकिन एक बात तो सच है न कि आप पहले कांग्रेस पार्टी में थे तो यह कहा ही जा सकता है कि आपकी पार्टी ने वर्षों से देश पर शासन किया है.
मंत्री जी: अच्छा अच्छा. आप उस रस्ते से आ रहे हैं. तब ठीक है. आगे का सवाल पूछिए.
पत्रकार: सवाल तो मैंने पूछ ही लिया है. आधारभूत योजनायें...
मंत्री जी: यह कहना गलत है. वैसे भी जब लोन-माफी से काम चल जाए तो फिर आधारभूत योजनाओं की क्या ज़रुरत है? ....अभी हाल में ही हमारी सरकार ने किसानों द्बारा लिया गया सत्तर हज़ार करोड़ रूपये का क़र्ज़ माफ़ किया है....आपको पता है कि कर्ज माफी का यह आईडिया भी मुझे एक क्रिकेट मैच के दौरान मिला?
पत्रकार: कैसा आईडिया? आप प्रकाश डालेंगे?
मंत्री जी: वो हुआ ऐसा कि मैं नागपुर में एक क्रिकेट मैच देख रहा था. क्रिकेट मैच देखने के लिए स्टेडियम में पहुँचने से पहले मैंने विदर्भ के किसानों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात की थी. मैच देखते हुए मैंने देखा कि बैट्समैन ने शाट मारा और उसे कवर का फील्डर नहीं रोक सका. संयोग देखिये कि सजी हुई फील्ड में एक्स्ट्रा-कवर था ही नहीं. नतीजा यह हुआ कि बाल बाउंड्री लाइन से बाहर चली गई. चौका हो गया....यह देखते हुए मुझे लगा कि अगर किसानों को एक एक्स्ट्रा-कवर दिया जाय...मेरा मतलब अगर लोन-माफी का एक्स्ट्रा-कवर उन्हें मिल जाए तो फिर...
पत्रकार: समझ गया-समझ गया. सचमुच आप क्रिकेट की वजह से बहुत कुछ सीख गए हैं...लेकिन कुछ आधारभूत योजनायें नहीं बनीं. डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन का कहना है कि...
मंत्री जी: मैं भी समझ गया कि आप क्या कहना चाहते हैं. आप डॉक्टर स्वामीनाथन के हवाले से यही कहना चाहते हैं न कि उनके सुझाव पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया?
पत्रकार: हाँ. मेरा मतलब यही है.
मंत्री जी: देखिये डॉक्टर स्वामीनाथन हरित क्रान्ति ले आये वह एक अलग बात है. लेकिन उनके सुझाव बहुत लॉन्ग टर्म प्लानिंग की बात लिए हुए हैं और यहाँ हमें चाहिए तुंरत समाधान वाले सुझाव. ऐसे में कर्ज-माफी से बेहतर और क्या हो सकता है? डॉक्टर स्वामीनाथन को यह समझने की ज़रुरत है कि अब ज़माना ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट का है. टेस्ट मैच देखकर पब्लिक बोर हो जाती है. हमें तुंरत रिजल्ट चाहिए.
पत्रकार: लेकिन डॉक्टर स्वामीनाथन की बात में प्वाइंट तो है ही.
मंत्री जी: कोई प्वाइंट नहीं है. आप जिसे प्वाइंट कह रहे हैं, वे सारे सिली प्वाइंट हैं.
पत्रकार: आपके कहने का मतलब लॉन्ग टर्म योजनायें नहीं लागू की जा सकती? यहाँ भी वही क्रिकेट?
मंत्री जी: जी बिल्कुल. अब बिना क्रिकेट के इस देश में कुछ चलता है क्या? वैसे भी डॉक्टर स्वामीनाथन की उम्र हो गई है अब....आप खुद ही सोचिये न. सचिन तेंदुलकर इतने बड़े खिलाड़ी हैं लेकिन क्या वे पचपन साल की उम्र में भी क्रिकेट खेल सकते हैं?...मानते हैं न कि नहीं खेल सकते...बस वैसा ही कुछ डॉक्टर स्वामीनाथन के साथ भी है...अब कृषि-विज्ञान के क्षेत्र में हम यंग टैलेंट लाना चाहते हैं...आप जानते हैं कि यंग टैलेंट लाने का आईडिया मुझे ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट की वजह से मिला?...मैं आपको बताता हूँ कि क्रिकेट की वजह से हमारे मंत्रालय में बहुत कुछ बदल दिया है मैंने.
वैसे, ये आप बार-बार लॉन्ग टर्म, लॉन्ग टर्म की रट क्यों लगा रहे हैं? लॉन्ग टर्म सुनने से मुझे लॉन्ग लेग, लॉन्ग ऑन, लॉन्ग ऑफ वगैरह की याद आती है.
पत्रकार: हाँ, वह तो है. वैसे एक सवाल का जवाब दीजिये. अगर मानसून दूसरे चरण में भी ढीला रहा तो आपका प्लान क्या रहेगा?
मंत्री जी: उसके लिए मैंने सेलेक्टर नियुक्त कर दिए हैं.
पत्रकार: सेलेक्टर नियुक्त कर दिया है आपने? क्या मतलब?
मंत्री जी: माफ़ कीजिये, आप पत्रकार तो हैं लेकिन आपका दिमाग नहीं चलता. केवल कलम चलाने से कोई पत्रकार नहीं हो जाता....सेलेक्टर नियुक्त करने से मेरा मतलब यह है कि मैंने अपने मंत्रालय के अफसरों को सेलेक्टर बना दिया है. वे देश के जिलों का सेलेक्शन करके एक लिस्ट देंगे. फिर मैं एक प्रेस कांफ्रेंस में उन जिलों को सूखा-ग्रस्त घोषित कर दूंगा...आपने बीसीसीआई के सचिव द्बारा टीम सेलेक्शन की सूचना वाला प्रेस कांफ्रेंस अटेंड किया है कभी?
पत्रकार: नहीं. मैं तो कृषि मामलों का पत्रकार हूँ. मैं केवल कृषि मामलों पर रिपोर्टिंग करता हूँ.
मंत्री जी: इसीलिए तो आपके अखबार का सर्कुलेशन ख़तम है...अपने एडिटर से कहें कि वे आपको क्रिकेट मामलों को कवर करने का भी मौका दें....आप देखेंगे कि आपकी एफिसिएंसी बढ़ जायेगी...जैसे मेरी बढ़ गई है...अखबार का सर्कुलेशन भी बढ़ जाएगा. क्रिकेट की वजह से एफिसिएंसी बढ़ जाती है.
पत्रकार: जी. मैं सम्पादक महोदय से आपके सुझाव के बारे में बात करूंगा. वैसे एक प्रश्न मेरा यह है कि अगर कम मानसून की वजह से देश में अनाज की कमी हुई तो क्या आप इसबार भी आस्ट्रेलिया से गेंहू का आयात करेंगे?
मंत्री जी: गेंहूँ का आयात करने के लिए देश में अनाज की कमी का होना ज़रूरी नहीं है.गेंहूँ का आयात तो हमने तब भी किया था जब अनाज की कमी नहीं थी...हाँ इस बात की गारंटी नहीं दे सकता कि इस बार भी आस्ट्रेलिया से ही गेंहूँ का आयात करूंगा.
पत्रकार: ऐसा क्यों? मेरा मतलब क्या ऐसा आप इसलिए करेंगे क्योंकि पिछली बार आस्ट्रलिया वालों ने सडा गेंहूँ भेज दिया था?
मंत्री जी: नहीं वो बात नहीं है....मैं ऐसा इसलिए करूंगा कि एक बार फोटो खिचाने के चक्कर में आस्ट्रलियाई खिलाड़ियों ने मुझे मंच पर धक्का दे दिया था...इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमारे बीसीसीआई के पदाधिकारियों ने मुझे सजेस्ट किया कि आस्ट्रलिया से बदला लेने का यही तरीका है कि आप कृषि मंत्री के रोल में उनसे गेंहूँ मत मंगवाईये.
पत्रकार: वैसे आपको नहीं लगता कि गेंहू का आयात करके तबतक कोई फायदा नहीं होगा जब तक आप सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मेरा मतलब पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम को ठीक नहीं करेंगे. वैसे क्या कारण है कि पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा?
मंत्री जी: असल में पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम थर्ड मैन के होने की वजह से काम नहीं कर रहा.
पत्रकार: लेकिन अगर सिस्टम में थर्ड मैन हैं तो उन्हें हटाने की जिम्मेदारी भी तो आपकी ही है.
मंत्री जी: अब देखा जाय तो थर्ड मैन भी तो ज़रूरी होते हैं. पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन से थर्ड मैन हटाने के बारे में मैंने बैठक की थी लेकिन सलाहकारों का विचार था कि थर्ड मैन का रहना दोनों के लिए ज़रूरी है. क्रिकेट में भी और पब्लिक डिस्ट्रीव्यूशन सिस्टम में भी. हमने सुझाव मानते हुए थर्ड मैन नहीं हटाये...देखा आपने? डबल रोल कितने काम की चीज है?
पत्रकार: जी हाँ. वो तो मैं देख रहा हूँ. अच्छा मेरा एक और सवाल यह है कि इस बार सरकार ने किसानों के लिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस की घोषणा फसल होने से पहले ही कर दी. ऐसा पहले तो नहीं हुआ था. तो इसबार ऐसा करने का कारण क्या इलेक्शन था?
मंत्री जी: जी नहीं. मिनिमम सपोर्ट प्राइस पहले ही घोषणा करने का आईडिया मुझे क्रिकेट चलाने की वजह से ही मिला......आपके मन में सवाल ज़रूर उभर रहा होगा...उसका जवाब यह है कि क्रिकेट खिलाड़ियों को जब से कान्ट्रेक्ट सिस्टम के तहत पेमेंट होना शुरू हुआ है तब से फीस की घोषणा कान्ट्रेक्ट साइन करने से पहले ही हो जाती है...मिनिमम सपोर्ट प्राइस का आईडिया मुझे वहीँ से मिला...देखा आपने कि क्रिकेट...
पत्रकार: हाँ देखा मैंने कि क्रिकेट चलाने की वजह से आप एक अच्छे कृषि मंत्री बन पाए. वैसे मेरा एक आखिरी सवाल है. आये दिन क्रिकेट खिलाड़ी आपके कहने पर तमाम लोगों के सहायतार्थ मैच खेलते रहते हैं. ऐसे में आपने कभी किसानों की सहायता के लिए क्यों नहीं मैच आयोजित किये?
मंत्री जी: अरे वाह. आप एक कृषि पत्रकार होते हुए भी इतना दिमाग रखते हैं. हमने तो सोचा था कि....चलिए आपके सुझाव को मैं याद रखूँगा और आज ही अपने मंत्रालय के अफसरों की एक मीटिंग बुलाकर इस मसले पर विचार करूंगा.
पत्रकार: लेकिन इस बात पर विचार करने के लिए तो आपको बीसीसीआई की मीटिंग बुलानी चाहिए.
मंत्री जी: वही तो बात है न. मेरे लिए दोनों एक सामान हैं. मैं मंत्रालय वालों से क्रिकेट डिस्कस कर सकता हूँ और क्रिकेट वालों से कृषि...आप नहीं समझेंगे...आप समझते तो क्रिकेट के पत्रकार नहीं बन जाते...खैर, अब मेरे पास और सवाल के लिए वक्त नहीं है...मुझे क्रिकेट असोसिएशन की मीटिंग में जाना है...
जिस प्रकार "टेढी बात-शेखर के साथ" इस समय टी.वी. पर आ रहा सबसे श्रेष्ठ हास्य व्यंग का अनूठा कार्यक्रम है वैसे ही आपके आज ब्लॉग (समझिये सब टी.वी.) की ये पोस्ट (कार्यक्रम) है.
ReplyDeleteआप व्यंग लेखन के उस शिखर पर जा बिराजे हैं जहाँ से आपको हिलाना अब हर ऐरे गैरे नथ्थू खैरे के बस की बात नहीं रही. इस से अधिक कुछ कहने की ताब मेरी लेखनी में नहीं है...क्षमा करें.
इक सुझाव है माने ना माने आपकी मर्ज़ी...इस स्क्रिप्ट को तुंरत शेखर सुमन को भेज दें ताकि हम इसका रोचक नाट्य रूपांतरण टी.वी. पर देख लें.
नीरज
हम अपनी टिप्पणी कर सकते हैं और बहुत बड़ी कर सकते हैं लेकिन इस समय हम नीरज गोस्वामीजी की टिप्पणी से सहमत होने का मन बना चुके हैं इसलिये हम सहमत हुये जा रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा यह अपनी तरफ़ से नीरजजी से छिपाकर कहे दे रहे हैं सो जानना! :)
हमारे देश मे हर तरफ कमी ही कमी है..बस कहीं कहीं ही थोड़ा बहुत हरा भरा दिख जाता है..
ReplyDeleteबेहद मजेदार प्रस्तुति आपकी,
बधाई..
जिस प्रकार "टेढी बात-शेखर के साथ" इस समय टी.वी. पर आ रहा सबसे श्रेष्ठ हास्य व्यंग का अनूठा कार्यक्रम है वैसे ही आपके आज ब्लॉग (समझिये सब टी.वी.) की ये पोस्ट (कार्यक्रम) है.
ReplyDeleteआप व्यंग लेखन के उस शिखर पर जा बिराजे हैं जहाँ से आपको हिलाना अब हर ऐरे गैरे नथ्थू खैरे के बस की बात नहीं रही. इस से अधिक कुछ कहने की ताब मेरी लेखनी में नहीं है...क्षमा करें.
इक सुझाव है माने ना माने आपकी मर्ज़ी...इस स्क्रिप्ट को तुंरत शेखर सुमन को भेज दें ताकि हम इसका रोचक नाट्य रूपांतरण टी.वी. पर देख लें.
विवेक
सूचना: टिप्पणी में किसी से सहमत होना गैरकानूनी है !
भाई बहुते उम्दा लिख दिए हो. "क्रिकेट" और "कृषि" का सामंजस्य बहुत खूब.
ReplyDeleteमंत्री जी की जय. नीरज भैया के सर्टिफिकेट और मेरा उनसे पूर्ण सहमति.
भाई अब आप इस स्क्रिप्ट को भेज ही दे, नहीं तो समाज के कल्याण का दोष आप पर लग जायेगा
टेढी बात..बहुत सीधा सपाट झनाटेदार करारा व्यंग्य रहा.
ReplyDeleteजब लोन-माफी से काम चल जाए तो फिर आधारभूत योजनाओं की क्या ज़रुरत है?
क्या बात कह दी मंत्रीजी ने. मैं तो कायल हो गया. जै जै कार करने को मन कर रहा है.
ये टेडी बात का सिलसिला यूँ ही जारी रहे ओर यदि प्रत्येक सप्ताह किसी विशिष्ट महानुभाव के बारे में पढने को मिले तो समझिए मन पूर्णत: गदगदायमान हो जाये।।
ReplyDeleteसन्नाट! टेढी बात-वेरी पावरफुल...
ReplyDeleteबाकी नीरज जी की बात-हम कह रहे हैं ऐसा मानें.
"यहाँ भ्रष्टाचार को छोड़कर आये दिन किसी न किसी चीज की कमी होती रहती है"
ReplyDeleteलगता है नीरजजी ने यहां भी भ्रष्टाचार का जाल सा फैला दिया है...चलो हम भी उन्हीं की राह चलें, शायद कुछ कल्याण हो:)
सिधी बात नो बकवास..
ReplyDeleteहमें तो बहुत अच्छा लगा...
रंजन
Cricket aur krushi kamal hai waise aapke wyang ka jawab nahee.
ReplyDelete"पवारफ़ुल पोस्ट". दमदार.
ReplyDelete"सुविधा में दोनो गये, माया मिली न राम ।"
ReplyDeleteझक्कास है सर जी !! :D वैसे आप हर हफ्ते टेढी बात लिखना चालू करें . शायद शेखर को आपका ब्लॉग पढ़ कर कुछ ढंग के आईडियास आये .
ReplyDeleteक्या कहूँ,इसे पढ़ सोच में मन की विचित्र अवस्था हो गयी....एक तरफ तो मन में गहरे भरा क्षोभ और भी उग्र हो गया और दूसरी तरफ तुम्हारी लेखनी ने प्रफ्फुलित कर दिया.....
ReplyDeleteअब और बहुत लम्बा चौडा क्या कहूँ इसपर....बस तुम्हारे लेखनी की धार प्रखर से प्रखरतम हो और लोगों को इसी तरह (गुदगुदाकर) विषय के प्रति गंभीर बना सको,जगा सको,ताकि हमारा यह समाज प्रतिकार को प्रस्तुत हो,विसंगतियों से मुक्ति पा सकें...... यही ईश्वर से प्रार्थना है....
जबरदस्त व्यंग्य । कृषी मंत्री तो हिट विकेट हो गये । टेढ़ी बात शीर्षक भले हो लेकिन बात एकदम खरी और सीधी है । अब पंजाब के किसान भी आत्महत्या का सुख प्राप्त करने लगे हैं और ये ससुर आई सी सी का अध्यक्ष पद देख रहे हैं ।
ReplyDeleteशिवजी इंडी ब्लागर ने आपको 84 अंकों के साथ पहली रैंकिग दी है । बधाई हो ।
ए भाई हम तो किसी से भी सहमत नहीं हूं और क्यों असहमत हूं यह जानने के लिए आपको थोड़ा इंतज़ार करना पड़ेगा.
ReplyDeleteमिश्राजी सच कहूँ मै तो आपके ब्लोग पर डरते हुये आती हूँ आपका लेखन इतना उच्च्कोटी का है कि मेरे जैसी अदना सी लेखिका को टिप्पियाने के लिये शब्द भी नहीं मिलते। बहुत जबर्दस्त व्यंग है बधाई
ReplyDeleteमतलब किसानों को क्रिकेट का उचित प्रशिक्षण दिए जाने की जरुरत है :)
ReplyDeleteहमहूं कह दें - इक सुझाव है माने ना माने आपकी मर्ज़ी...इस स्क्रिप्ट को तुंरत शेखर सुमन को भेज दें ताकि हम इसका रोचक नाट्य रूपांतरण टी.वी. पर देख लें.
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