"कदाचित यह कहना उचित नहीं रहेगा वत्स. युवराज दुर्योधन, अपने तातश्री के वचन याद रखना, तुम्हारा अटल रहना सम्पूर्ण हस्तिनापुर के लिए शुभ संकेत नहीं है वत्स. शुभ संकेत नहीं है"; भीष्म पितामह दुर्योधन को समझा रहे थे.
"मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूँ पितामह. वासुदेव कृष्ण पांडवों के साथ है तो क्या हुआ? कौरव सेना में वीरों का अभाव है क्या?"; दुर्योधन ने जवाब दे दिया.
मानो चेता रहा हो कि;"राही मासूम रज़ा के लिखे गए डायलाग बोलकर आप मुझे प्रभावित नहीं कर सकते पितामह. और आप राही मासूम रज़ा के लिखे डायलाग बोलेंगे तो मैं भी तो उन्ही का लिखा डायलाग बोलूंगा."
टीवी पर बी आर चोपड़ा द्वारा निर्देशित सीरियल चल रहा था. तबियत खराब हो और घर से बाहर जाना मुश्किल हो तो ऐसे सीरियल बड़ा सहारा देते हैं. भीष्म पितामह का ज्ञान सिरे से नकार देने वाले दुर्योधन को अब समझाने की बारी कर्ण की थी. लेकिन यहाँ भी वही बात. लगता था जैसे दुर्योधन ने कर्ण की बातों को भी न मानने की कसम खा रखी है.
सीरियल देखते-देखते मुझे लगा अजीब आदमी है. अपनों की सीधी-सादी बात इसे समझ में नहीं आ रही है. हिंदी में कही गई बात. आखिर किसकी बात समझ में आएगी इसे? एक बार के लिए लगा कि काश दुर्योधन के समय में डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम होते तो दुर्योधन को समझा देते. अपनी बातों को खुद तीन बार बोलते और एक बार दुर्योधन से बुलवाते. इतने में दुर्योधन जी की बुद्धि ठिकाने लग जाती.
फिर मन में आया कि और कौन लोग हैं जो दुर्योधन को समझाने की हैसियत रखते हैं? साथ ही यह भी सोचा कि अगर सीधी बात समझ में नहीं आती तो क्या इसके ऊपर मुहावरे की वर्षा होगी तब इसकी समझ में आएगा कि पांडव को पाँच गाँव देकर झमेला ख़तम करें और युद्ध से बचें.
अचानक एक नाम दिमाग में कौंधा. सिद्धू जी महाराज का. मुझे लगा अपनों की सीधी बात को पत्ता न देने वाले दुर्योधन को अगर सिद्धू जी महाराज समझाते तो क्या होता? शायद कुछ ऐसा सीन होता...
दुर्योधन राजसभा में पितामह की बात न मानने के लिए तर्क दिए जा रहा है. पितामह हलकान च परेशान हैं. अब क्या किया जाय? किसे बुलवाया जाय जिसकी बात दुर्योधन मानेगा? अभी पितामह सोच ही रहे हैं कि अचानक वहां कुछ धुआं उठता है. धुआं छटने के बाद उसमें से सिद्धू जी महाराज प्रकट होते हैं. उन्हें देखकर सभी चकित हैं. सिद्धू जी महाराज की बात "ओए गुरु..." से सबसे के चकित चेहरे सामान्य हुए. महाराज को देखकर दुर्योधन ने कहा; "प्रणाम साधु महाराज. आप कृपा करके अपना परिचय दें और यहाँ आने का प्रयोजन बताएं."
उसकी बात सुनकर सिद्धू जी महाराज ने कहा; "ओये गुरु, परिचय तो यह है कि हमें लोग सिद्धू जी महराज कहते हैं. साधु शब्द की उत्पत्ति सिद्धू शब्द से हुई है. और गुरु, जहाँ तक प्रयोजन की बात है तो सुन ले; कुछ देर पहले जब शाम की चाय ख़त्म करके मैं मुहावरे याद करने के लिए मुहावरा समग्र नामक किताब लेकर बैठा उसी वक्त आकाशवाणी हुई कि; "सिद्धू जी महाराज से प्रार्थना की जाती है कि वे अपने ज्ञान से दुर्योधन की आंखें खोलें और साथ ही युद्ध की तरफ बढ़ रहे हस्तिनापुर के युवराज को उचित मार्ग दिखलायें." बस आकाशवाणी सुनकर मैं आ गया."
"परन्तु यदि साधु महाराज यह सोच रहे हैं कि वे अपने ज्ञान से प्रभावित कर मुझे युद्ध से विमुख कर देंगे तो कदाचित वे ठीक नहीं सोच रहे"; दुर्योधन पूरे सेल्फ कांफिडेंस से बोला.
उसकी बात सुनकर सिद्धू जी महाराज बोले; "माई डीयर दुर्योधन, एक बात अपने दिमाग में बिलकुल क्लीयर कर ले कि गुलकंद कितना भी टेस्टी क्यों न हो उसे रोटी पर रखकर खाया नहीं जाता."
उनकी बात सुनकर न सिर्फ दुर्योधन बल्कि पितामह, विदुर और द्रोणाचार्य जैसे विद्वान् भी चकित रह जाते हैं. साधु की बात तो ठीक लगी लेकिन उन्हें सन्दर्भ समझ में नहीं आया. यही सोचते हुए कि सिद्धू जी महराज की बात का सन्दर्भ क्या है दुर्योधन ने सवाल दागा; "परन्तु साधु महाराज, आपकी बात का सन्दर्भ क्या है? गुलकंद का उदाहरण देते हुए आपके मन-मस्तिष्क में क्या चल रहा था?"
उसकी बात सुनकर सिद्धू जी महाराज बोले; "ओये गुरु, एक बात याद रखना कि; मनुष्य कितना भी बलशाली क्यों न हो, वो हिमालय को हिला नहीं सकता...औषधि कैसी भी हो उसे इस्तेमाल करके वैद्य मरे हुए आदमी को जिला नहीं सकता...कुम्भ के मेले में खोये हुए भाई को डायरेक्टर क्लाइमेक्स से पहले मिला नहीं सकता...और सच तो यह है गुरु कि खाना खाकर पेट भरने के बाद कोई कसम तक भी खिला नहीं सकता.."
राजसभा में बैठे विद्वान, कवि, लेखक, वगैरह सब चकित. सब मन ही मन सोच रहे हैं कि साधु महाराज की बातों का अर्थ क्या है? आपस में करीब दस मिनट कानाफूसी करने के बाद विद्वान इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि साधु महाराज की बातों का अर्थ समझने के लिए शायद विदेशों से विद्वान इम्पोर्ट करने पड़ेंगे.
अचानक दुर्योधन ने महाराज से एक बार फिर सवाल दागा; "साधु महाराज क्षमा करें परन्तु उनकी कही गई बातें बहुत गूढ़ हैं. क्या वे सरल शब्दों में अपनी बात नहीं रख सकते?"
दुर्योधन की बात सुनकर सिद्धू जी महाराज बमक गए. बोले; "दुर्योधन तुझे तो मैं इंटेलिजेंट समझता था. लेकिन आज पता चला कि शकल से इंटेलिजेंट होने में और अकल से इंटेलिजेंट होने में सिर्फ उतना ही फरक होता है जितना सर की चोटी और जूड़े में. जितना धारीवाले कच्छे और बरमूड़े में. दिमाग की ट्यूबलाईट की चोंक को जरा सा हिलाने की ज़रुरत होती है गुरु, ज्ञान रसोईघर के काकरोचों की भांति बढ़ता चल जाता है और ऊन का एक ही सिरा हाथ आ जाए तो पूरा का पूरा स्वेटर उधड़ता चला जाता है. क्या यार दुर्योधन, अगर तुझे मेरी बात समझ में नहीं आती तो अब मैं तुझसे वही कहूँगा जो हरभजन सिंह ने श्रीसंत से कहा था. सुन ले बड़े पते की बात कर रहा हूँ, दुबारा नहीं बोलूंगा. ओये गुरु, सच तो यह है कि गन्ने में फूल नहीं होता. राजा दीर्घजीवी नहीं होता. पहाड़ ऊंचा होता है. समंदर गहरा होता है. चिड़िया आसमान में उड़ती है लेकिन आदमी जमीन पर चलता है. आया है सो जाएगा, राजा, रंक, फ़कीर..कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कभी जमीं तो कभी आसमां नहीं मिलता...."
इतना कहकर सिद्धू जी महाराज गायब हो जाते हैं. वहां धुएं की एक परत रह जाती है. हस्तिनापुर के तमाम विद्वान घंटों तक माथा लगाने के बाद भी यह पता नहीं लगा सके कि सिद्धू जी महाराज की सूक्तियों का क्या अर्थ था? दो दिन तक सब बड़े चिंतित रहते हैं कि साधु महाराज की बातें क्या किसी विनाश की ओर इशारा कर रही हैं.
आखिर हारकर पाँच लोगों का एक कमीशन बना दिया जाता है जिसमें कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, पितामह, विदुर और कर्ण हैं. कमीशन को सिद्धू जी महाराज की सूक्तियों का अर्थ खोजने के लिए कहा जाता है. सत्रह सालों तक कामकर के भी कमीशन महाराज की सूक्तियों का अर्थ नहीं पता कर पाता. नतीजा यह होता है कि महाभारत का युद्ध ही नहीं हुआ.
रैंडम थाट्स...ये सब युधिष्ठिर की वजह से है......
आकाशवाणी के शरूआती शब्द "बिग बॉस चाहते है..." लिखना रह गया शायद :)
ReplyDelete17 साल मे रपट वाला फार्मूला चोट कर गया.
ओय गुरू शब्दों के मकड़ जाल में जो भी फँसा, जिन्दा नहीं निकला. मकड़ा भोजन बना गया या खूद मकड़ा ही जाल में फँस गया. फँसना तो है ही मकड़ा फसे या.... जाने दें. बहुत दिनों बाद व्यंग्य पढ़ा. मजा आया.
वाह वाह पंडितजी,
ReplyDeleteक्या जमाकर चोट मारी है। बिल्कुल बजा फ़रमाया आपने। नया साल मुबारक हो आपको।
क्या बात है व्यंग्य पढ़कर आनंद आ गया . आभार
ReplyDeleteअरे वाह आप तो एक ऐसी समानांतर दुनिया की बात कर रहे हैं जहां युद्ध ही नहीं हुआ .विज्ञान फंतासियों में ऐसे विवरण मिलते हैं !
ReplyDeleteॐ सिद्धवै नम:। सात श्लोकी सिद्धु-गीता; सातसौ श्लोकी भग्वद्गीता पर भारी है!
ReplyDeleteसिद्धू महाराज ने महाभारत रुकवा दी अपने प्रवचन से! आश्चर्य!
हे वैशम्पायन कृपया बतायें कि बी.आर. चोपड़ा के अध बने सीरियल का फिर क्या हुआ? उसकी प्रोडक्शन कॉस्ट निकल पाई या नहीं? बी.आर. चोपड़ा ने सिद्धू महराज पर कोई केस किया क्या?
बहुत से प्रश्न अनुत्तरित हो गये हैं तात!
E-mail received from Siddhu Ji:-
ReplyDeleteगुरु तू याद रख, हालाँकि मैं भूल गया था के 'तरुवर फल नहीं खात है'...और 'पंछी करे न काम'...फिर भी 'नदी न घटया नीर'...और तो और गुरु ये याद रख के ...'सब के दाता राम'...ओये 'बड़ा हुआ तो क्या जैसे पेड़ खुजूर'...ये इस लिए कह रहा हूँ गुरु क्यूँ की 'चलती चक्की देख कर दिया कबीर रोय' ...तू तो चीज़ ही क्या है? अरे मैं तो ताल ठोक कर कहता हूँ गुरु के 'जो घर फूंके आपना चले हमारे साथ'...क्यूँ की 'चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़'...अब इतनी भीड़ में 'पानी भये न ऊबरे मोती मानस चून'...अभी भी वक्त है बावरे 'काल करे सो आज कर'...वरना पछतायेगा और 'घुटरुन चलत रेनू तनु मंडित' ही गाता रह जायेगा.
ये सिद्धू महाराज का जवाब है तेरी पोस्ट को...समझ में आये तो बता और नहीं आये तो पूछ की क्यूँ ' माटी कहे कुम्हार से तू क्या रौंदे मोय' .
नीरज
सिद्धु महाराज तो आज तक खुद का कहा खुद नहीं समझ पाये और खुद को समझाने के लिए कमेटी बिठलवा दिये तो दुर्योधन कॊ कौन बिसात...
ReplyDeleteबहुत मस्त आलेख.
"अपनों की सीधी-सादी बात इसे समझ में नहीं आ रही है. हिंदी में कही गई बात."
ReplyDeleteअगर कोई राही मासूम रज़ा या अब्दुल कलाम कहेगा तो कैसे समझ में आएगी.... उसके लिए तो गुरू सिद्धू जैसे सिद्ध आत्मा चाहिए ना :)
प्रवाहमान भाषा और विनोदपूर्ण शैली के साथ ही प्रतीक और यथार्थ के सोने में सुगंध वाले योग के कारण यह रचना काफी आकर्षित करती है। सिद्धूवाणी ने रचना के हुस्न में चार चांद लगा दिए हैं। शानदार और मनमोहक रचना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteआपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
कमेटी बिठाओगे तो यही होगा किसी काम को नही करना तो बिठाओ कमीशन । सिध्दवे नमा: ।
ReplyDeleteवाह !! अद्भुत !!
ReplyDeleteकमाल है !?? महाभारत टल गया !!!
विश्वशांति के लिए सिद्धू जी काम में लिए जा सकते हैं, सारे पंगे करने वाले देशों में एक एक महीने के लिए सिद्धू को छोड़ दिया जाये. @#$%! ... के दिमाग ठिकाने आ जायेंगे!
:D :D
अति उत्तम लेख गुरुदेव… साल के अन्त में ऐसा ही कुछ चाहिये था…
ReplyDeleteबहुत शानदार लेख. सिद्धू बाबा जिन्दाबाद. वो मुहावरों वाली किताब मिल जाये तो मुझे भी दे दीजियेगा.
ReplyDeleteवाह! कमाल का लिखा है। सिद्धू जी को तुरत तालिबानियों की कक्षा लेने को भेजा जाए। उन्हें इतना उलझा देंगे कि उनकी संसार से शत्रुता क्या और क्यों है भूल जाएँगे।
ReplyDelete'सच तो यह है कि गन्ने में फूल नहीं होता' सही नहीं है। बिल्कुल होता है और ऐसा होता है कि सालों सजावट के काम आता है।
घुघूती बासूती
JAY HO SIDDHU JEE MAHRAAJ KEE !!!!
ReplyDeleteIske aage kahne layak bhi kuchh bachta hai bhala....
LAJAWAAB !!! LAJAWAAB !!! LAJAWAAB !!!
युधिष्ठिर की वजह से और ऐसे काम होते रहे तो उनकी भी आत्मा धन्य हो जाए ! जय हो सिद्धू महाराज की :) लाजवाब है ये पोस्ट तो ! एकदम फ्लो में पढ़कर मजा आ गया.
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