फ़ुटबाल विश्वकप ख़त्म हो गया. ऐसा ही होता है. इतिहास गवाह है कि जो टूर्नामेंट शुरू होते हैं वे ख़त्म भी हो जाते हैं. ऐसा सदियों से होता आया है और अगर २०१२ में दुनियाँ ख़त्म नहीं हुई तो आशा है कि आगे भी होता रहेगा. यही शास्वत नियम है और चूंकि दुनियाँ नियमों की बड़ी पाबन्द है इसलिए नियम पालन का यह सांस्कृतिक कर्म आगे भी होता रहेगा. वैसे भी बात फ़ुटबाल विश्वकप की हो रही है, एकता कपूर के सीरियल्स की नहीं जो भारतीय अदालतों में चल रहे न जाने कितने मुकदमों की तरह कभी ख़त्म ही नहीं होते.
वैसे अगर ध्यान दें तो हम पायेंगे कि केवल फ़ुटबाल का विश्वकप ही एक मात्र विश्वकप है जिसके मामले में हम भारतीय बड़े भाग्यशाली हैं. हम भारतीयों को वरदान मिला हुआ है कि हम आखीर तक इसे देख पायेंगे और फुटबालीय संस्कृति पालन के अपने भ्रम की रक्षा करेंगे. क्रिकेट विश्वकप की तरह नहीं कि पहले ही राऊंड में बांग्लादेश से हार गए तो छाती पीटकर खुद को अलग कर लिया. अलग भी ऐसे-वैसे नहीं. दो दिन तक सब्जी बाज़ार में जो भी मिलता है उसके सामने ऐसी मुखमुद्रा रहती है जिसे देखकर दुःख भी दुखी हो जाए.
लेकिन इस विश्वकप के मामले में ऐसा कोई लोचा नहीं है. हमें यह चिंता करने की ज़रुरत नहीं रहती कि हमारी टीम विश्व कप से बाहर हो जायेगी तो हम क्या करेंगे? ऐसे कठिन समय में हमें कितना दुखी दिखना पड़ेगा? या फिर टीवी चैनल किसे विलेन करार देंगे? फ़ुटबाल के इस महाकुम्भ (एन डी टीवी इंडिया से चुराया गया विशेषण) में टीमों के मामले में हमसे धनी कोई नहीं रहता.
लगता है जैसे हमारे पास टीमों का गुच्छा है और हम रह-रह कर ज़रुरत के मुताबिक़ उस गुच्छे से एक-एक टीम तोड़ते जाते हैं और उसे अपना समर्थन दे डालते हैं. जैसे सबसे पहले हम अपना समर्थन बिना किसी शर्त के लैटिन अमेरिकी टीमों को दे देते हैं. फुटबालीय इतिहास और भौगोलिक सीमाओं की वजह से हमारा समर्थन ऑटोमैटिकली ब्राजील और अर्जेंटीना को पहुँच जाता है. हमारा शहर यानि कोलकाता तो इन दो देशों के झंडे ओढ़कर धन्य हो लेता है.
अब अगर कोई हमसे हमारे इस बिना शर्त वाले समर्थन का कारण पूछता है तो हम सबसे पहले उसे इस भाव से देखते हैं जैसे उसने दुनियाँ का सबसे बेवकूफ सवाल पूछ लिया हो. उसके बाद उसे बताते हैं; "तुझे इतना भी नहीं मालूम? अरे पगले लैटिन अमेरिकी टीमें ही असली फ़ुटबाल खेलती हैं. असली माने कलात्मक फ़ुटबाल."
दार्शनिक भाव से लैस होकर दिया गया हमारा यह स्टेटमेंट पूरी दुनियाँ के ऊपर हमारी धाक जमा देता है. लगता है जैसे हम आधी से ज्यादा दुनियाँ से कह रहे हैं कि; "बेवकूफों तुम्हें फ़ुटबाल की जरा भी समझ होती तो तुम यूरोपीय टीमों को समर्थन न दे रहे होते. हमें देखो और कुछ सीखो. फुटबालीय कला की असली समझ हमें है इसीलिए हम लैटिन अमेरिकी टीमों के कलात्मक फ़ुटबाल को समर्थन देते हैं."
वैसे कई बार मेरे मन में यह बात आई है कि अगर कोई हमसे पूछ ले कि; "प्रभु, कलात्मक फ़ुटबाल क्या होता है?" तो सोचिये तब क्या होगा? कस्सम से कह रहा हूँ अगर कोई यह प्रश्न दाग दे तो हमारी सिट्टी-पिट्टी सामूहिक तौर पे गुम हो जायेगी.
खैर, लैटिन अमेरिकी टीमों को बिना शर्त दिया गया हमारा यह समर्थन हम तब वापस खींच लेते हैं जब ये टीमें टूर्नामेंट से बाहर निकल लेती हैं. उसके बाद हम टीम खोजते हैं. चूंकि अंग्रेजों ने हमारे ऊपर राज किया है इसलिए हम इतिहास की इज्जत करते हुए उनके दुश्मन देश यानि जर्मनी को समर्थन देते हैं. चाहें तो इटली को भी दे सकते हैं. हाँ, फ्रांस को नहीं देते क्योंकि वहाँ के लोग बड़े साम्राज्यवादी टाइप होते हैं. वैसे अगर कोई अफ्रीकी टीम तब तक करतब दिखाती रहती है तो हम उन्हें समर्थन दे लेते हैं. अफ्रीकी टीमों के खिलाड़ियों का काला होना उन्हें हमारे समर्थन के लायक बनाता है.
ऐसा करके हम अपनी महान संस्कृति की रक्षा करते हुए खेल को राजनीति और नस्लवाद से दूर कर देते हैं.
टीमों को समर्थन देने की हमारी यह फिलास्फी हमें फ़ुटबाल विश्वकप से चिपका देती है. टीमें खेलती हैं. हारती हैं. जीतती हैं. कोई भी टीम जीते या हारे हम भारतीयों के पटाखे फूटेंगे ही फूटेंगे. हमारे पटाखे कभी खाली नहीं जाते. हम हार-जीत से ऊपर उठकर अपनी खेल संस्कृति की रक्षा ऐसे ही करते हैं.
स्पेन ने विश्वकप जीत लिया. हम खुश हो लिए. हालेंड जीत जाता तो भी खुश हो लेते. हमारे जर्नलिस्ट से लेकर नेता तक, सभी खुश हैं. जनता की ख़ुशी का तो ठिकाना नहीं है. उसकी ख़ुशी चारों दिशाओं में गूँज रही है. हम फ़ुटबाल के खेल को अलग नज़र से देखते हैं.
एक नमूना देखिये;
सीएनएन आईबीएन पर राजदीप सरदेसाई स्पेन की जीत के बाद पैनल डिस्कशन कर रहे हैं. बड़े मजेदार लोग आये हैं इस डिस्कशन में. राजदीप सरदेसाई अपनी खोज से इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि स्पेन की जीत का कारण उस देश की टीम का पूरी तरह से सेकुलर होना है.
वे सोहेल सेठ से पूछ रहे हैं; "सो, यू आल्सो बीलीव सोहेल सेठ दैट मेन रीजन बिहाइंड स्पेन्स सक्सेस इज द फैक्ट दैट होल टीम इज सेकुलर? आई मीन लुकिंग ऐट द टीम वन कैन से दैट स्पेन इज अ टीम ऑफ़ अमर अकबर एंथनी?"
उनका सवाल सुनकर सोहेल सेठ बोले; "लुक राजदीप, आई केयर अ डैम ह्वेदर टीम इज सेकुलर आर नॉट. फॉर मी, सक्सेस इज इम्पोर्टेंट. आई मीन ह्वाट हैव वी अचीव्ड इन अ गेम लाइक फ़ुटबाल इन लास्ट फिफ्टी ईयर्स? पालीटीसीयंस आर ऐट द हेम फॉर डिकेड्स एंड ऐज आई आलवेज से, पालीटीसीयंस आर स्काऊंड्रल्स आल ओवर द वर्ल्ड. दैट इज प्रीसाइजली द रीजन व्हाई....."
"ओके ओके. लेट मी ब्रिंग ममता दी इन द डिस्कशन. सो, ममता दी, फ़ुटबाल इज अ पैशन इन योर स्टेट ऐंड यू अस्पायर टू बिकम चीफ मिनिस्टर ऑफ़ बेंगोल. टेल मी, कैन यू डू समथिंग टू पुट थिंग्स इन आर्डर? आई मीन डू यू हैव एनी प्लान?"; राजदीप सरदेसाई ने ममता बनर्जी से पूछा.
वे बोलीं; "लेट मी टेल इयु राजदीप दैट टू प्रोमोट फूटबाल इन आभर इस्टेट, रेल मिनिस्टरी हैज आलरेडी इसुड फास्ट क्लास पासेज फार लाइफ टाइम टू होल इस्पेनिश टीम. दीस थाटी ईयार्स रूल आफ लेफ्ट फ्रोंट हैज डोन नाथिंग फार फुटबोल. आई हैभ इभेन इन्भाइटेड आल इस्पेन टीम ऐट दा ओकेझान आफ ईनागारेशान आफ झोलाखाली रेल्भे इस्टेशान ईन साउथ टूवेंटीफोर परगोना. उई आर आल्सो प्रोपोजिंग नेम आफ देयार कैप्टान ऑन द कैटरिंग बोर्ड ऑफ दी रेल्भे."
"ओके ओके. आई टेक योर वर्ड्स. बट लेट मी आस्क लालू जी. लालू जी, ऐज अ रेलवे मिनिस्टर ममता दी इज गोइंग टू डू सो मच फॉर फ़ुटबाल. यू वेयर आल्सो रेलवे मिनिस्टर. डिड यू एवर थिंक ऑफ डूइंग समथिंग फॉर फ़ुटबाल?"; राजदीप सरदेसाई इस बार लालू जी से मुखातिब थे.
"नै नै..फस्ट आई टेल यू...अरे लिसेन टू मी..देखिये..इंडिया इज ए नेशन ऑफ भिलेज. इन भिलेज कबड्डी इज द मेन खेला..... ई फ़ुटबाल बाहर का खेला है. आ ममता दी को गाँव का खबर है कुछ? अपना 'संस्कृत' में कबड्डी है. ऊंची कूद है. आज जरूरत है ई सब खेला का जो है, प्रमोशन हो. फ़ुटबाल में पैसा बर्बाद होगा खाली और कुछ नहीं"; लालू जी ने अपना स्टैंड ले लिया.
उनकी बात सुनकर राजदीप सरदेसाई बोले; "लेकिन लालू जी, आप एक बात बताइए. बिहार में इलेक्शन नज़दीक है. आप स्पेन के खिलाड़ी से कैपेनिंग करवाएंगे?"
वे बोले; "अभी जो है, आप ने बताया कि स्पेन का पूरा टीम सेकुलर है. त हम ज़रूर लायेंगे उनको चुनाव प्रचार के लिए. देश में सेकुलरवाद फैले, आज का ज़रुरत है. नीतीश के खिलाफ हम सेकुलर मोर्चा खोल दिए हैं. ज़रूर लायेंगे स्पेन का खिलाड़ी. काहे नै लायेंगे?"
"तो लालू जी, कौन से खिलाड़ी को लाना चाहते हैं आप?"; राजदीप ने फिर सवाल किया.
"ओइसे त बहुत खिलाड़ी है बाकी हम उसको...ऊ का नाम है उसका...एक मिनट..हाँ, ऊ डेभिड भिल्ला को लायेंगे चुनाव प्रचार के लिए"; लालू जी ने अपनी पसंद राजदीप को बता दी.
वे बोले; "हा हा हा..लालू जी उनका नाम डेभिड भिल्ला नहीं डेविड विया है. डेविड विया."
यह बात सुनकर लालू जी चकित. बोले; "का बात करते हैं? ई कैसा नाम है? अरे दू ठू एल है भाई और उसको ई लोग भिया बोलता है? ई कैसा अंग्रेजी है इस्पेन का?"
उधर एक पैनल डिस्कशन टाइम्स नाऊ पर ख़त्म होने वाला है. जाते-जाते अरनब गोस्वामी फुटबाल फेडरेशन के पटेल साहब पर चढ़ गए हैं; "बट बट बट... मिस्टर पटेल...मिस्टर पटेल..प्रोमिज अस टूनाइट ऑन दिस चैनल टू आवर व्यूअर्स दैट इफ नॉट इन टू थाऊजेंड फोर्टीन ऐटलीस्ट इन टू थाऊजेंड एटीन इंडिया इज गोइंग टू विन द फीफा वर्ल्ड कप. प्रोमिज अस..."
उधर पटेल साहब अकबकाये से कह रहे हैं; "लुक अरनब...अरनब..फर्स्ट लिसेन टू मी...यस यस...दैट इज प्रिसैजली ह्वाट आई वाज टेलिंग ऊ... सी, फोर इयर्स बैक वी वेयर ऐट वन हंड्रेड फोर्टीन इन फीफा रैंकिंग...नाऊ वी आर ऐट वन थर्टीफोर..इट्स नॉट दैट वी आर नाट इम्प्रूविंग...वी आर कांसटेंटली इम्प्रूविंग...बट यू विल हैव टू गिव अस सम मोर टाइम टू...."
एक डिस्कशन सबसे तेज चैनल पर चल रहा है. यह डिस्कशन नहीं सीधी बात है जो प्रभु चावला बाबा रामदेव के साथ कर रहे हैं. चकित न होवें. बाबा रामदेव फ़ुटबाल तो क्या स्नूकर पर भी बोल सकते है. तो सीधी बात में चावला जी उनसे कह रहे हैं; "हे हे हे..आप तो अब चुनाव भी लड़ने वाले हैं. ये बताइए कि देश की फ़ुटबाल टीम विश्वकप जीते उसके लिए आप क्या सुझाव देंगे?"
बाबा रामदेव बोले; " हे.. हे..कलयुग में फ़ुटबाल विश्वकप जीतने का एकमात्र उपाय योग ही है...ओ कुछ नहीं करना है बस सांस लेना और छोड़ना है....सुबह पाँच बजे उठिए..गहरी लम्बी सांस लीजिये...एक बार योग की आदत पड़ जायेगी तो सबकुछ हो जाएगा....हम तो जीवन देते हैं... साथ में योग के सहारे अब फ़ुटबाल विश्वकप भी दे सकते हैं...कुछ नहीं करना है बस सांस लेना और छोड़ना है..."
एनडीटीवी इंडिया पर रवीश कुमार स्पेन की विश्वकप विजय पर कह रहे हैं; "...और शायद स्पेन में दलित समाज को पहले ही सामाजिक बदलाव का उत्प्रेरक मान लिया गया था. स्पेन की पूरी टीम में अगर एक भी दलित खिलाड़ी नहीं है तो उसका कारण यह नहीं कि वहाँ दलितों को उनकी जगह नहीं दी जाती बल्कि उसका कारण यह है कि सैकड़ों साल पहले ही स्पेन के उच्च समाज ने दलित समाज को अपने अन्दर समाहित कर लिया....."
एक कार्यक्रम इंडिया टीवी पर भी चल रहा है. एंकर अपने संवाददाता से पूछ रहा है;"उमेश क्या कह रहे हैं माद्रिद के लोग? क्या वे भी ऐसा मानते हैं कि डेविड विला को पाताल भैरवी से आशीर्वाद मिला है कि वे दुनियाँ के सबसे बड़े फुटबालर बनेगे?......जी हाँ, आज हम पहली बार बता रहे हैं कि कैसे स्पेन के खिलाड़ी डेविड विला ने हिमालय की गुफाओं में पूरे एक साल तक तपस्या करके पाताल भैरवी का आशीर्वाद प्राप्त किया..आज हम मिला रहे हैं आपको उस पाताल भैरवी से जिसने स्पेन के फुटबालर डेविड विला को सबसे बड़ा फुटबालर होने का आशीर्वाद दिया है...जी हाँ हिमालय की गुफाओं में वास करने वाली पाताल भैरवी..जी हाँ, आपको यह जानकार आश्चर्य होगा...."
इंडिया टीवी वालों को अभी भी लगता है कि उनके प्रोग्राम देखने वालों को आश्चर्य भी होता है.
खैर, जो भी हो, यह सब के बावजूद हमें भरोसा है कि भारत एक दिन फ़ुटबाल विश्वकप में....
पूरी पोस्ट तो धांसू है ही...लेकिन इंडिया टीवी वाला सबसे मस्त लगा....फुटबालर को पाताल भैरवी का आशीर्वाद....एकदम मस्त।
ReplyDeleteरामदेव बाबा योगा करते करते एक पैराग्राफ नीचे हो लिए हैं....बीच में रवीश जी दलितवाद लेकर बोल पड़े हैं....रामदेव का जवाबी पैरा एक सांस उपर खसकाएं :)
अंतिम लाईन अधूरी क्यों छोड़ दी अंकिल...?
ReplyDeleteवैसे प्रभु, कलात्मक फ़ुटबाल क्या होता है? खैर जो भी होता हो.. हमें लालू जी की बात पसंद हुई.. एक ठो लम्बी कूद का भी विश्व कप हो जाये तो मज़ा आ जाए..
बाबा रामदेव के विचार देखकर हमें लग रहा है.. कि शाउलिन शोकर की तर्ज पर हमें योगिन शोकर फिल्म बनानी पड़ेगी..
जय पाताल भैरवी
इण्डिया टीवी वाली बात पर हँसी को रोकने में बहुत मेहनत करनी पड़ी.
ReplyDeleteराजदीप, रबीस, तथा ना ना प्रकार के "पतरकारों" की "इस्टाइल" खूब उतारी. रेल्भे मिनिटरानी द्वारा पास देने का विचार भी कम किरांतिकारी नहीं है.
इण्डियाटीवी को पॉल बाबा से सीधे इंटरभ्यू काहे नहीं अरेंज करवाते भाई...अवतारी जिनावर है.
मैं तो यहाँ समझाते थक गया.. की हम फुटबाल क्यों नहीं खेलते..
ReplyDeleteएक तो कारण ये बताया की ५० के दशक में एक बार गए थे.. जुते नहीं थे तो वापस भेज दिए.. अभी तक नाप के जुते बन के नहीं आये..
वैसे एशियाकप में मालदीव से भी हार गए थे?
टीवी वालों की बात क्या करे.. कार्टून चेनल ज्यादा अच्छे है..
खैर, जो भी हो, यह सब के बावजूद हमें भरोसा है कि भारत एक दिन फ़ुटबाल विश्वकप में....
ReplyDeleteLet's hope for the best !
यह वर्ल्डकप भारतीयों के अन्दर परमहंसीय तत्व बढ़ा गया। पता नहीं कितने देशों की सद्भावना मिली हमें। सारे पैनल डिस्कशनों का सार यह है कि जो जीते उनके गुण भारत से कितने मिलते जुलते हैं और जो हारे उनके पाकिस्तान से।
ReplyDeleteअब ये तो हम लोगों की उत्सवप्रियता है, उत्साह है हमारा, खेलभावना है हमारी कि हम खुश होने के बहाने तलाश लेते हैं।
ReplyDeleteइटली के हारने का कुछ गम जरूर है, ऐसा नहीं है कि हम बहुत पंखे हैं इटली के, पर भौजी का मायका ठहरा, जीत जाते तो अच्छा ही था।
और दादा, खुश्की बहुत लेते हो आप। एक ही पोस्ट में नेता, अभिनेता, टी वी एंकर, गुरू, महागुरू, पत्रकार वगैरह सब को लपेट लिये।
आखिरी लाईन के बारे में हमें भी एक भरोसा है, वो एक किस्सा बताते हैं कुछ कि ’उठा है मां का पूत कुछ करके दिखायेगा’ वाला, वही बात है जी, कम से कम फ़ुटबाल के मामले में तो पक्की बात है, हम उठेंगे, ...तेंगे और सो जायेंगे।
भैया ले जाना जिसे ले जाना हो विश्वकप, हमारे भरोसे मत रहना कि हम लायेंगे।
"जाते-जाते अरनब गोस्वामी फुटबाल फेडरेशन के पटेल साहब पर चढ़ गए हैं" एक दिन हमारे ऑफिस में हमारे एक सीनियर ने कहा... 'अरे उसके सामने मत बोलना चढ़ बैठेगा'. उस समय तो नहीं पर बाद में मेरे एक दोस्त ने पूछा 'अबे जो सुबह वरुण बोल रहा था... ये बताओ कहाँ चढ़ के बैठ जाएगा?'. बाकी तो आप समझ ही गए होंगे :)
ReplyDeleteआप किसी समस्या के बारे में कितनी भी चिन्ता करें परन्तु क्या आपका चिन्तित मन उस समस्या का समाधान कर सकता है?
ReplyDeleteफूटबाल....माई फूट...ई का होता है भाई....??? अपन के हियाँ तो "चल फूट ले" होता है...
ReplyDeleteआप इतना जोरदार पोस्ट लिखा है के क्या कहें...सोच सोच के परेशान हैं के क्या कमेन्ट करें...
आप सच में आज के युग के परसाई हैं...
नीरज
टेलीविजन् वार्तायें शानदार हैं। जानदार हैं और सदाबहार हैं। जय हो!
ReplyDelete"बट बट बट... मिस्टर पटेल...मिस्टर पटेल..प्रोमिज अस टूनाइट ऑन दिस चैनल टू आवर व्यूअर्स दैट इफ नॉट इन टू थाऊजेंड फोर्टीन ऐटलीस्ट इन टू थाऊजेंड एटीन इंडिया इज गोइंग टू विन द फीफा वर्ल्ड कप. प्रोमिज अस..."
ReplyDeleteहा हा हा... एकदम डिट्टो अरनब गोस्वामी.. मान गये आपकी पारखी नज़र..
हमारी तरफ़ से भी जय पाताल भैरवी.. मज़ा आ गया..
Really , it is a nice observation and minute description. One can easily feel the deep satire in the statements and pinching irony of situation. India is great and greater are the political games.
ReplyDeleteफुटबाल तो नहीं हां शकीरा भैन जी का डांस देखना चाहते थे पहले दिन । लेकिन फिर याद ही नहीं आया कि ओपनिंग सेरिमनी ससुरी कब है । जब याद आया तब तक स्पेन वाले मारे खुशी के ओम जय बाबा पाल हरे का गीत गा रहे थे ।
ReplyDeleteबहुत सही डिस्कशन चलवाया आपने । वास्तव में हुआ भी यही होगा । आभार ।
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ReplyDeleteइंडिया टीवी वालों को अभी भी लगता है कि उनके प्रोग्राम देखने वालों को आश्चर्य भी होता है.
I enjoy reading this post...
poor channels !
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