यह पोस्ट आई पी एल फर्स्ट के ऑक्शन पर लिखी थी. आज फिर से ऑक्शन हो रहा है तो सोचा कि फिर से छाप दूँ. पहले नहीं बांचा हो तो बांचिये:-)
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कल रतीराम की पान दुकान पर गया था. जाते ही मैंने कहा; "एक पान दीजिये."
मैंने उनसे पान लगाने को कहा लेकिन देख रहा हूँ कि वे अखबार पढने में व्यस्त हैं. पूरी तन्मयता के साथ लीन. मैंने फिर से कहा; "रतीराम भइया, एक ठो पान दीजिये."
मेरी तरफ़ देखे बिना ही बोले; "तनी रुकिए, लगा रहे हैं." ये कहकर अखबार पढ़ने में फिर से लग गए.
मैंने कहा; "अरे ऐसा क्या छप गया है जो पढ़ने में इतना व्यस्त हैं."
बोले; "अरे ओही, खिलाड़ी सब केतने-केतने में बिका, वोही देख रहे हैं." तब मेरी समझ में आया कि क्या पढ़ रहे हैं.
मैंने कहा; "अब पढ़ने से क्या मिलेगा. टीम तो आप खरीद नहीं सके."
बोले; "हाँ लेकिन हम देखना चाहता हूँ कि ई लोग का केतना दाम लगा."
मैंने कहा; "बहुत पैसा मिला है सबको. देखिये न धोनी ही छ करोड़ में बिके. तेंदुलकर चार करोड़ में. ऐसा पहली बार हुआ कि खिलाड़ी भी बिक गए."
मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दिए. बोले; "अरे आप भी बड़े भोले हैं. ई लोग का पहला बार बिक रहा है. का पहले नहीं बिका है. काहे, भूल गए अजहरुद्दीन को, जडेजा को."
उनकी बात सुनकर मैं चुप हो गया. क्या करता, कोई जवाब भी तो नहीं था. फिर सोचते हुए मैंने कहा; "बहुत ख़बर रखते हैं क्रिकेट की."
अब तक वे अखबार छोड़ चुके थे. उन्होंने मेरी तरफ़ देखते हुए कहा; "अरे ई जो लोग टीम खरीदा है न, उनसे तो ज्यादा ही जानकारी रखते हैं. आपको का लगता है, मुकेश अम्बानी अपना काम करते-करते क्रिकेट देखते होंगे का? ऊ दारू वाले, का नाम है उनका, हाँ माल्या जी, ऊ देखते होंगे का. हम तो काम करते-करते कमेंट्री सुनते हैं. पूरा-पूरा जानकारी रखते हैं क्रिकेट का."
मैंने कहा; "ये बात तो है. ऐसे में एक टीम आपको जरूर मिलनी चाहिए थी."
बोले; "जाने दीजिये, अब का मिलेगा उसपर बात कर के. ओईसे एक बात बताईये, छ करोड़ में तो धोनी बिक गए लेकिन सेल टैक्स, भैट-वैट मिलकर केतना दाम पडा होगा, इनका?"
उनकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गई. मैंने कहा; "अरे महाराज आप भी गजबे बात करते हैं. ये लोग आदमी हैं, कोई सामान नहीं कि इनके ऊपर भी सेल्स टैक्स लगे."
मेरी बात से कन्विंस नहीं हुए. बोले; "आदमी हैं तो फिर आलू-गोभी का माफिक काहे बिक रहा है ई सब?"
मैंने कहा; "आलू-गोभी की माफिक नहीं बोलिए हीरा-जवाहरात की तरह. बोली लगाकर खरीदे गए हैं."
मेरी बात सुनकर मुस्कुरा दिए. बोले; "बोली लगाकर बिके हैं, इतना त हमहू जानते हैं. सुनने से कैसा लगता है न. ऊ जो फिलिम में देखाता है कि कौनो सेठ का सबकुछ बरबाद हो गया और ऊ कर्जा में डूब जाता है तब उसका घर-दुआर जैसे हथौड़ा मार के बिकता है. ओईसे ही तो?"
मैंने कहा; "एक दम ठीक पहचाने. वैसे ही बिके हैं सब."
बोले; "एक बात बाकी गजबे होई गवा."
मैंने पूछा; "क्या?"
बोले; "विदेशी तेल, साबुन, शेम्पू वगैरह तो ठीक लगता है. ऊ का वास्ते हमरे देश का लोग सब बहुत पैसा पेमेंट कर देता है लेकिन विदेशी खेलाड़ी सब तो बहुत सस्ता में खरीद लिया सब. खिलाडी लोगों का वास्ते ज्यादा पईसा नहीं दिया कोई भी. सुने कि पार्थिव पटेल भी पोंटिंग से जादा दाम में बिक गए."
मैंने कहा; "ऐसा होता है. किस खिलाड़ी का कितना महत्व है, वो तो टीम वाले ही बता सकते हैं. वो लोग जिन्होंने टीम खरीदे है."
मेरी बात सुनकर उन्होंने मेरी तरफ़ कुछ ऐसे देखा जैसे मुझे बेवकूफ साबित करने पर तुले हैं. फिर बोले; "हम पाहिले ही बोले रहे न, आप बहुते भोले हैं. अरे ई सब चाल है टीम का मालिक लोगों का. नहीं तो आप ही कहिये, पार्थिव पटेल का इतना दाम. लगा जईसे बँगला पान खरीद रहा है लोग ऊ भी बनारसी पान का दाम देकर."
उनकी बात सुनकर मुझे लगा एक पान खाने आए थे और इतनी देर लग गई. बात खिलाड़ियों की बिक्री से होते हुए कहाँ-कहाँ से आखिर पान तक आ रुकी. मुझे लगा रतीराम जी से बात करते रहेंगे तो पता नहीं और कहाँ-कहाँ से होकर गुजरना पड़े. उनकी पार्थिव पटेल और बँगला पान वाली बात पर मैंने झट से कहाँ; "एक दम ठीक बोले हैं. इसी बात पर एक ठो बनारसी पान लगा दीजिये."
सुनकर हंस दिए. बोले; "ये लीजिये, अभिये लगा देते हैं."
चलते-चलते
सुनने में आया है कि अर्थशास्त्रियों के एक दल ने भारत सरकार के वित्त मंत्रालय और भारतीय रिज़र्व बैंक को एक ज्ञापन दिया है. इस ज्ञापन में इन्फ्लेशन के लिए बनाए गए होलसेल प्राईस इंडेक्स में बाकी चीजों के साथ-साथ क्रिकेट खिलाड़ियों को भी शामिल करने का आग्रह किया गया है. जब कुछ जानकारों ने क्रिकेट खिलाड़ियों के शामिल करने का विरोध यह कहकर किया कि; आख़िर आम जनता तो क्रिकेट खिलाड़ी खरीदती नहीं. ऐसे में उन्हें होलसेल प्राईस इंडेक्स में शामिल करने का औचित्य क्या है तो अर्थशास्त्रियों का जवाब था; "जिन लोगों ने टीम और खिलाडी खरीदे हैं, उन्हें इन्कम तो आम जनता की जेब से ही आनी है. ऐसे में पूरा भार जनता के ऊपर ही तो पड़ेगा."
आप का इस ज्ञापन के बारे में क्या विचार है?
बहुत बढ़िया लेख ...रती राम की समझ का जवाब नहीं शिव भैया ! शुभकामनायें
ReplyDeleteबढिया व्यंग्य है। बधाई।
ReplyDeleteहमें तो पहले ही मालूम था कि सब बिकता है।
ReplyDeleteहम इसी उम्मीद में ही इस उम्र में भी क्रिकेट खेल रहे हैं के क्या पता कोई माई का लाल हम जैसे लाल को गुदडी से बाहर कभी निकाल कर खरीद ले (ओल्ड इज गोल्ड समझ कर ) ताकि हमारी ज़िन्दगी के बाक़ी दिन आराम से कट जाएँ. आई.पी.एल. वालों ने हम जैसों के मन में भी आशाएं जगा दीं हैं.
ReplyDeleteजैसे कितनहू बुढा के मरें पर किसी भी उमर में मैया बाप्पा को याद करके उनका नाम लेके आँख लोरा ही जाता है....शीर्षक में जितने नाम तुमने लिए ठीक वैसा ही दरद हुआ दिल में आ आँख लोरा गया ...
ReplyDeleteखैर बात खिलाड़ी सब का किये न...ता ऐसा है कि जौन खिलाड़ी का दाम लगाने वाला कोई नहीं है या जिसका औने पौने दाम लगता है,उसके दिल का हाल हमको लगता है ठीक वैसा ही होगा,जैसा अभी आलेख का शीर्षक पढके हमारा हो रहा है...
वैसे दार्शनिक अंदाज में कहें तो, दुनियां के बाजार में कौन नहीं खड़ा है अपने को बेचने के लिए...सुबह से शाम हर आदमी अपना अपना मार्केटिंग के लिए ही तो मर रहा है न...
इस रीठेल में धोनी का रेट पुराना ही रख दिए। बढ़ती महँगाई के हिसाब से अपडेट कर लेते तो ताजी हो जाती।
ReplyDeleteबिलकुल झन्नाटेदार व्यंग है। बधाई।
ReplyDelete`होलसेल प्राईस इंडेक्स में बाकी चीजों के साथ-साथ क्रिकेट खिलाड़ियों को भी शामिल करने का आग्रह किया गया है'
ReplyDeleteपर यह तो कनज़्यूमर प्राईस इंडेक्स की कमोडिटी है :)
इस दौर में सब बिकाऊ है
ReplyDeleteआपने बड़ी सहजता से बात अर्थशास्त्रियों के मांगो तक पहुँचा दी।
ReplyDelete..जायज मांग है।