Thursday, February 17, 2011

काहे नहीं एक शायर रिक्रूट कर लेते?

अगले सप्ताह रेलमंत्री ममता बनर्जी रेल बजट पेश कर देंगी. जब वे पेश करेंगी तब एकाध शेर भी कहेंगी. जब कहेंगी तब मैं उसके भावार्थ निकालने का वादा करता हूँ. लेकिन अभी तो आप पिछले रेल बजट उनके द्वारा कहे गए शेर का भावार्थ बढिए. पुरानी पोस्ट है:-)
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ममता बनर्जी जी ने रेल बजट पेश कर दिया. करना ही था. बजट होता ही है पेश करने के लिए सो उन्होंने कर दिया. बजटीय परंपरा निभाते हुए उन्होंने बजट के साथ-साथ शेर भी पेश किया. शेर था;

रोशनी चाँद से होती है सितारों से 'नेहीं'
मोहब्बत कामयाबी से होती है जुनून से 'नेहीं'

ममता जी शेर से बिलकुल 'नेहीं' डरीं. सीधा उसे पेश कर दिया. वैसे भी अब शेरों से कम ही लोग डरते हैं. ऐसे में ममता जी क्यों डरें?

लेकिन एक बात समझ में नहीं आई. वे तो पश्चिम बंगाल से चुनकर गई हैं. ऐसे में उन्हें गुरुदेव की कोई कविता सुनानी चाहिए थी. गुरुदेव की कविता क्यों नहीं सुनाई उन्होंने? शायद उन्हें गुरुदेव की कविता याद न हो. चलिए माना कि उन्हें गुरुदेव की कविता याद नहीं थी तो उन्होंने नहीं सुनाई लेकिन कवि सुकान्त की ही कविता सुना देतीं.

मैंने अपने एक मित्र से कहा; "और कुछ नहीं तो कवि सुकांत की ही कविता सुना देनी चाहिए थी उन्हें."

मित्र बोले; "अरे तुम्हें मालूम नहीं क्या? कवि सुकांत बुद्धदेव बाबू के चाचा जी थे. ऐसे में ममता जी उनकी कविता क्यों सुनाएं? वैसे भी ममता जी बंगाल के किसी कवि की कविता सुनाती तो लालू जी उनके ऊपर आरोप लगा देते कि वे भारत की रेलमंत्री होकर ऐसे काम कर रही हैं जिसे देखकर लग रहा है कि वे भारत की नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल की रेलमंत्री हैं."

मुझे समझ मे आ गया कि उन्होंने शेर क्यों पेश किया.

लेकिन ऐसा शेर?

इससे बढ़िया शेर तो हमारे मोहल्ले के पप्पू जी सुनाते हैं. ममता जी पप्पू जी से ही शेर लिखवा लेतीं. वैसे भी बजट चाहे वित्तमंत्री पढ़ते हों या रेलमंत्री, वे कविता या शेर जरूर पढ़ते हैं. अपने इस कर्म से बाज तो आयेंगे नहीं. ऐसे में तो उन्हें मंत्रालय के लिए शायर और कवि रिक्रूट कर लेने चाहिए. भाई, अगर आप पुराने कवियों या शायरों की रचनाएँ बजट के साथ नहीं पेश करना चाहते तो कम से कम इतना तो करें कि अपने मंत्रालय में कुछ कवि और शायर रिक्रूट कर लें. संसद और देश इस तरह के शेर सुनने से तो बच जाएगा.

लेकिन जो शेर ममता जी ने पढ़ा उसका मतलब क्या हो सकता है?

अब शेर और कविता का मतलब सबके लिए समान हो तो फिर साहित्यिक झमेले ही न हों. आलोचकों की ज़रुरत ही न पड़े. कविताओं और शेरों के भावार्थ-उद्योग पर ताला लग जाए.

तो पेश है ममता जी के पढ़े गए शेर का मतलब जो अलग-अलग लोगों के लिए बिलकुल अलग-अलग है.

प्रधानमंत्री जी के विचार:

देखो जी, ममता जी ने जो शेर पढ़ा, वो हमारी पिछली सरकार के रवैये को बिलकुल साफ़ करते हुए उसे आगे बढ़ाता है. आपको याद हो तो मैंने अपने एक भाषण में कहा था कि देश के संसाधनों पर माइनोरिटी कम्यूनिटी का हक़ सबसे पहले है. अब आप अगर ममता जी के शेर की पहली लाइन पढेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि चाँद माइनोरिटी में है और तारे मेजोरिटी में. लेकिन रोशनी की बात होती है तो चाँद का ही बोलबाला रहता है. तारे कितने भी हों, वे रोशनी नहीं फैला सकते. जहाँ तक दूसरी लाइन की बात है तो मैं इतना ही कहना चाहूँगा मोहब्बत होनी ही चाहिए. मोहब्बत रहने से कामयाबी मिलती रहेगी. क्योंकि कामयाबी के रास्ते में अगर जुनून आ गया तो हम देखेंगे कि कोई जुनूनी नेता ने सरकार की कामयाबी से जलते हुए सपोर्ट वापस ले लिया. सरकार गिर जायेगी..... चंगा शेर पढ़ा है जी ममता जी ने.

भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता

यात्री किराए और माल भाड़े में कोई वृद्धि ही नहीं हुई. हम बहुत निराश हो गए थे. हमें चिंता सताने लगी थी कि हम किस मुद्दे पर विरोध करेंगे? वो तो भला हो ममता जी का जिन्होंने यह शेर पढ़कर हमें उबार लिया. शेर की दोनों लाइन पर हमें आपत्ति है. पहली लाइन पढ़कर हमें गुस्सा आया कि चाँद माइनोरिटी में है लेकिन पूरी रोशनी पर कब्ज़ा किये बैठा है. वहीँ तारे मेजोरिटी में हैं लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं है. उन्हें रोशनी के लिए जिम्मेदार माना ही नहीं जा रहा है. यह किस तरह की सोच है? और दूसरी लाइन पढिये. मोहब्बत कामयाबी से होती है....यह कहकर हमारे ऊपर फब्ती कसी जा रही है कि हम २००४ के चुनावों में कामयाब नहीं हुए इसलिए हमारे सहयोगी दलों ने हमसे मोहब्बत तोड़ ली थी...इस शेर की वजह से हम इस रेल बजट का विरोध करते हैं.

कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता

ममता जी ने जो शेर पढ़ा है उसका भावार्थ यह है कि हमारी पार्टी और उनकी पार्टी मिलकर काम कर रहे हैं. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि उनके शेर की पहली लाइन में लिखा है कि रोशनी चाँद से होती है सितारों से नहीं.......कहने का मतलब यह कि इस गठबंधन में कांग्रेस ही चाँद है. तृणमूल कांग्रेस, पवार जी की कांग्रेस, डी एम के वगैरह सब तारे हैं. मतलब यह कि सरकार जितनी रोशनी बिखेरेगी, वो सारी रोशनी कांग्रेस पार्टी की है. तारे तो ऐं वें ही हैं जी...उनका कोई खास रोल नहीं है. वैसे भी इस शेर को पढ़कर ममता जी ने बता दिया है कि उन्हें समझ में आने लगा है कि चाँद कौन है और सितारे कौन...जहाँ तक दूसरी लाइन की बात है तो उसका अर्थ यह है कि कांग्रेस पार्टी कामयाब है इसलिए समर्थन देने वाली पार्टियों को उससे मोहब्बत है. बी जे पी वाले जुनूनी लोग हैं इसलिए ममता जी को उनसे मोहब्बत नहीं हुई

लालू प्रसाद जी

ममता बनर्जी को रेल के बारे में का मालूम है? उनको का मालूम कि शेर का होता है. ई भी कोई शेर है? पिछला साल जब हम रेल बजट पढ़े थे तो बोले थे कि होल इंडिया कह रहा है चक दे रेलवे....आज कोई नहीं कह रहा है कि चक दे रेलवे...ई शेर पढने से मंत्रालय चलता है?...पढ़ने से नहीं चलता बल्कि पढ़ाने से चलता है...देखा नहीं था का हमको, आई आई एम में पढ़ाने गए थे हम...तब जाकर पांच साल रेल मंत्रालय चला था...का कहा? ई शेर पर हमारा का विचार है...धुत्त...इससे बढ़िया शेर तो हमारा ऊ कवि लिखता है...अरे उहे जो हमारे ऊपर चालीसा लिखा था...का नाम था उसका...हाँ, रतिराम...का बताएँगे इहाँ...बाईटे में शेर का मतलब बता दें?...शेर का मतलब जानना है त स्टूडियो में बुलाओ..ओइसे भी आजकल तुमलोग बोलाता नहीं है...

एक रेलयात्री के विचार

ममता जी ने बढ़िया शेर पढ़ा है. इस शेर को पढ़कर उन्होंने अपनी और अपने सरकार की स्थिति स्पष्ट कर दी है. उनके कहने का मतलब है कि रोशनी चाँद से होती है, इसका मतलब यह है कि रेलवे चाँद की तरह चमके, ऐसा होने का कोई चांस नहीं है. उनके कहने का तात्पर्य है कि रोशनी चाँद से होती है लेकिन चाँद बहुत दूर है. कोई-कोई प्रेमी जैसे प्रेमिका से वादा करता है कि तुम्हारे लिए सितारे तोड़ लाऊँगा वैसे ही ममता जी स्पष्ट कर रही हैं कि सितारे तो ला दूं लेकिन उससे कोई रोशनी नहीं होगी. कोई फायदा नहीं होगा तारे लाने से और चाँद हम ला नहीं सकते. बहुत वजन होता है चाँद का. ऐसे में आपलोग रेलवे के साथ मोहब्बत से रहे. मोहब्बत है तो हमें भी कामयाब समझा जाएगा. गाड़ी-वाड़ी लेट चलने से आपलोग जुनूनी मत हो जाइयेगा......

13 comments:

  1. ये शेर सुनकर तो ग़ालिब सल्फास खाकर जान दे दें और मीर रेल के आगे कूद जाएँ... :) :)

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  2. ओह....

    अब हम का कहें......

    "नेहीं" एकदम कान में झन्न से बज उठा....

    का गजब का लिख डालते हो भाई....वाह...वाह...वाह.....

    जियो...

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  3. विपक्षी दल वाले तो पूरा बजट तो शेर में ही ढूढ़ लेते हैं।

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  4. शायर की रिक्रूटमेन्ट के लिये मेरा नाम तज़्वीज़ कार दीजिये न? बढिया व्यंग। धन्यवाद।

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  5. हमारे मुहल्ले के एक बडे मिया भी शेर से नहीं डरते थे और धडल्ले से कह देते थे----
    आटक कु लगे फाटक, फाटक के किनारे
    तुम शेर बोलो बेटा, हम बाप तुम्हारे :)

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  6. चलिये, इस बार भी बोझ न ही पड़े तभी अच्छा है..

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  7. यह माहौल देख मुझे आदि शायर रतनलाल जी का शेर याद आ गया:

    गुल खिले गुलशन खिले, और खिले गुलदस्ते।

    शेर सुनाने के पहले आप सबको मेरी नमस्ते!

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  8. पी.एम. की प्रतिक्रिया वी चंगी लगी।

    ऐसे ऐसे सिंहजी के राज में ऐसे ऐसे शेर ही मारे जायेंगे।

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  9. इसे कहते है भर्राट लेखन....

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  10. भोयोंकर मिस्टेक किये हैं दीदी...ओलटा पोलटा लोग का शेर सुनाया तोभी तो रेलवे का भोट्टा बैठा...आमी बोंगाली नोही पर गोस्वामी है..बोंगाली सर नेम..,होमारा शेर सुना देती... भोयोंकर मिस्टेक...हम बोला मैडम ओभी भी टाइम है...आप बोलो तो भेजूं ओपना शेर...दीदी बोला बेट करो...ओभी किच्छु गड़बड़ बजट में हो गया... उड़ीबाबा... तो हमको नोही बोलने का...
    नीरज

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  11. khali to mai bhi hoon......ye alag baat hai ke aaj-kal shayari sikh raha hoon.....hamre ustad ban ne tak jagah
    khali rahi.....to hame hi ri-crut kar
    li jaye......

    pranam.

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  12. भाई वाह,अद्वितीय लेखन .......यह पढ़ कर मुझे एक बात याद आई है जो आप संग बाटना चाहता हू... एक दफा एक अंग्रेज ने मुझसे कहा कि मेरे देश में तो कुत्ते भी फुटबाल खेलते है,फिर एक जापानी ने कहा कि मेरे देश में तो मछलियाँ डांस करती है,, इस पर मैंने भी अपने देश की तारीफ करते हुए कहा
    आप सबका टैलेंट है बेकार ,
    क्योंकि हमारे यहाँ तो गधे चलाते है "सरकार"

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय