Thursday, May 5, 2011

एक डॉक्टर का प्रेमपत्र

हमारे शहर के डॉक्टर विद्यासागर बटबयाल महान समाजसेवी हैं. करीब अस्सी वर्ष की आयु तक उन्होंने अपनी डाक्टरी से समाज की बहुत सेवा की. बीस वर्ष पहले जब वे रिटायर हुए तो उन्हें लगा - अब समय आ गया है कि जिस प्रोफेशन ने मुझे समाजसेवा के लायक बनाया उस प्रोफेशन को वापस कुछ दिया जाय.

डॉक्टर साहब तभी से अपने डॉक्टर भाइयों और उनके परिवार की सेवा में लग गए. पिछले बीस वर्षों से वे डाक्टरों के माँ-बाप, पत्नियों और प्रेमिकाओं के लिए डाक्टरों के पत्रों/प्रेमपत्रों की लिपियों को पहचानने का काम निशुल्क कर रहे हैं. हाल ही में उनके यहाँ से रद्दी खरीदने वाले के हाथों से एक पत्र लीक हो गया. यह पत्र विदेश में पढ़ाई के लिए जाने वाले किसी डॉक्टर ने अपनी प्रेमिका को लिखा था. वैसे तो किसी का प्रेमपत्र पढ़ना अनैतिक कर्म है लेकिन कभी-कभी हमें कुछ अनैतिक भी कर लेना चाहिए नहीं तो समाज हमें नैतिकता की मूर्ति बताकर बदनाम कर सकता है.

इसलिए आप पढ़िए कि पत्र में क्या लिखा था;


प्रियतमे रजनी,

पत्र लिखने कुर्सी पर बैठा ही था कि पीठ में दर्द शुरू हो गया. चौंको मत, अब मैंने वह स्टेज हासिल कर ली है जब एक डॉक्टर को सिर की बजाय पीठ में दर्द शुरू हो जाए. दर्द की वजह से तकलीफ इतनी बढ़ गई कि सहन नहीं हो रहा था. तभी मुझे याद आया कि आज जब मैं चेंबर में था तब एक मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव आयोडेक्स की दस शीशी उपहार में थमा गया था. उठकर आलमारी से आयोडेक्स निकाला और हाथ को तोड़ते-मरोड़ते हुए जैसे-तैसे पीठ पर आयोडेक्स की मालिश की. एक बार के लिए मन में आया कि आज अगर तुम होतीं तो न सिर्फ आयोडेक्स की मालिश कर देती बल्कि साथ में लोरी भी सुनाती कि; "पीठ अगर चकराए या हाथ में दर्द सताए, आज प्यारे पास हमारे ...."

खैर, ऐसा हो न सका और मुझे खुद ही मालिश करनी पड़ी. मालिश करने से पहले मुझे लगा था कि पीठ दर्द तुरंत छू मंतर हो जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बहुत देर इंतज़ार किया फिर भी बैठा नहीं जा रहा है. इसलिए यह पत्र लेटे-लेटे ही लिख रहा हूँ.

प्रिये, लेटे हुए पत्र लिखने का परिणाम यह है कि पेन उस दिशा में आसानी से नहीं जा रही है जिस दिशा में मैं उसे ले जाना चाहता हूँ. कभी-कभी यह वैसे ही बिहैव कर रही है जैसे किसी राजनीतिक पार्टी से नाराज नेता अपने आलाकमान के साथ करता है. ऐसे में यह हो सकता है कि तुम्हें मेरी लिखाई पूरी तरह से समझ में न आए. अगर ऐसा हुआ (वैसे मुझे मालूम है कि ऐसा ही होगा. आख़िर तुमने मेरे साथ बगीचे में घूमने और आईसक्रीम खाने के सिवा किया ही क्या है? अपनी पढाई-लिखाई की वाट पहले ही लगा चुकी हो) तो फिर पहले ख़ुद से तीन-चार बार पढ़ने की कोशिश करना. उसके बाद भी समझ में न आए तो तुम्हारे मुहल्ले में जो दवा की दूकान दर्शन मेडिकल है वहाँ चली जाना. वहां पर जो पप्पू सेल्समैन है उसे मेरी हैण्ड राइटिंग समझ में आती है. वह पत्र पढ़कर समझा देगा. लेकिन हाँ, उसके पास ज्यादा देर तक मत रुकना. पत्र सुनकर तुंरत घर वापस चली जाना.

आगे समाचार यह है कि पिताजी के दबाव में आकर मुझे एमआरसीपी करने लन्दन जाना पड़ रहा है. तुम तो मेरे बारे में जानती ही हो. मुझे पिताजी के दबाव से जरा भी आश्चर्य नहीं है. दुनियाँ भर के पिताओं को दबाव बनाने के लिए अपने बेटे से ज्यादा अच्छा और कौन मिलेगा? वैसे भी मेरे पिता ज़ी तो मेरे ऊपर मेरे बचपन से ही दबाव देते रहे हैं. कभी साइंस पढ़ने का तो कभी डॉक्टर बनने का. आज अगर मैं डॉक्टर बना हूँ तो यह उनके दबाव का ही प्रताप है. मैं तो पत्रकार बनना चाहता था.

वैसे जो बात मैं तुम्हें बताना चाहता था वह यह है कि मुझे एमआरसीपी पास न कर पाने की चिंता नहीं है, वह तो मैं पास ही कर लूंगा. तुम्हें तो मालूम ही है कि पिताजी के दबाव की वजह से मैं पढ़ाई-लिखाई में हमेशा अब्बल रहा हूँ. दरअसल मुझे जिस बात की चिंता सता रही है वह कुछ और ही है. तुम्हें कैसे बताऊँ कि जब भी मैं लन्दन जाने की बात सोचता हूँ, मुझे राजेन्द्र कुमार की फिल्में याद आ जाती हैं. वो फिल्में जिनमें राजेंद्र कुमार डाक्टरी की पढ़ाई करने अमेरिका चले जाते थे और उनके जाने के बाद हिरोइन की शादी किसी और से हो जाती थी. उन फिल्मों की याद करके मेरे रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं. अभी थोडी देर पहले ही हुए थे, दो टैबलेट खाकर मैं नार्मल हुआ हूँ.

एक बार तो मन में बात आई कि पिताजी के आदेश का पालन न करूं. फिर सोचा वे ख़ुद भी डॉक्टर हैं और उन्होंने जब इतना बड़ा नर्सिंग होम बना ही लिया है तो हमारी संस्कृति के अनुसार उस नर्सिंग होम को एक लायक वारिस भी तो चाहिए. ऐसा वारिस जो उसे चलाकर और बड़ा कर सके. तुम्हें तो मालूम है कि मैं उनका इकलौता पुत्र हूँ. ऐसे में उनके धंधे को आगे बढ़ाने का काम मुझे ही करना पड़ेगा. माँ भी कह रही थी कि मैं लन्दन जाकर एम आर सी पी की पढाई पूरी करूं. कह रही थी कि वैसे तो मैं बड़ा डॉक्टर हूँ लेकिन कल अगर और बड़ा डॉक्टर बन जाऊँगा तो कुछ अपना पैसा लगाकर और कुछ बैंक से फाइनेंस लेकर एक और नर्सिंगहोम खोल लेंगे. दो नर्सिंगहोम देखकर पिताजी कितने खुश होंगे.

उनका नर्सिंग होम उन्हें चलाएगा और मेरा मुझे.

वैसे तुम्हें निराश होने की ज़रूरत नहीं है. तुम हमेशा मेरी यादों में रहोगी. परीक्षा के पेपर और अस्पतालों को अर्जी लिखने से फुरसत मिली तो मैं तुम्हें ई-मेल भी लिखूंगा. लन्दन में अगर पढ़ाई में मेहनत से समय मिला, हालाँकि इसका चांस बहुत कम है, तो हमदोनों नेट पर चैट भी कर सकते हैं. रजनी तुम्हें याद है? मेरे पिछले जन्मदिन पर तुमने गिफ्ट स्वरुप मुझे एक आला और थर्मामीटर दिया था? मैं उन दोनों को अपने साथ लिए जा रहा हूँ. जब भी हॉस्पिटल में कोई लड़की मरीज बनकर आएगी और मैं उसका इलाज करूंगा तो मुझे लगेगा कि मैं तुम्हारा ही टेम्परेचर माप रहा हूँ और तुम्हारे ह्रदय की धड़कने ही सुन रहा हूँ. प्लीज इस बात पर ज्यादा अनुमान मत लगना. मैं तुम्हें सचमुच प्यार करता हूँ. यह बात मैं डरते-डरते लिख रहा हूँ क्योंकि मुझे पता है कि तुम मेरे ऊपर कितना शक करती हो.

मुझे पता है कि मेरे जाने के बाद तुम उदास रहने लगोगी. मैं वहां परदेश में और तुम यहाँ. तुम्हें तो बिरहिणी नायिका की भूमिका अदा करनी ही पड़ेगी. तुम्हें मेरी कसम, न मत कहना. हमारे प्यार के लिए तुम्हें ऐसा करना ही पड़ेगा. तुम्हें तो पता ही है कि जबतक प्रेम में बिरह की स्थिति न आये, वह प्रेम पकता नहीं है. वैसे जब तुम दुखी रहने लगोगी तब तुम्हारे घरवाले समझ जायेंगे कि तुम किसी के प्यार में पड़ गई हो. सब जानते हैं कि 'इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते.' ऐसे में तुम्हारे पिताजी तुम्हारी शादी करवाने की कोशिश करेंगे लेकिन तुम शादी मत करना. मैं तुम्हें सजेस्ट करता हूँ कि तुम अभी से तरह-तरह के बहाने बनाने की प्रैक्टिस शुरू कर दो. जब पिताजी शादी के लिए कहेंगे तब ये बहाने काम में लाना.

मेरे जाने के बाद जब भी मूवी देखने का मन करे तो अपनी सहेली पारो को साथ लेकर मूवी देख आना. एक बात का ध्यान रखना पारो के बॉयफ्रेंड रामदास को साथ लेकर मत जाना. वो बहुत काइयां किस्म का इंसान है. वो तुम्हें इम्प्रेश करने की कोशिश करेगा. थियेटर में ज्यादा आईसक्रीम मत खाना. तुम्हें तो मालूम ही है, तुम्हें हर तीसरे दिन जुकाम हो जाता है. हाँ, अगर जुकाम हो जायेगा तो फिक्स एक्शन सिक्स हंड्रेड लेना मत भूलना. वैसे बुखार हो जाए तो मेरे फ्रेंड डॉक्टर चिराग के पास जाना. ज्यादा बटर पॉपकॉर्न भी मत खाना. तुम्हारा वजन पहले से ही काफी बढ़ा हुआ है.

बाकी क्या लिखूं? कुछ समझ में नहीं आ रहा है. वैसे लग रहा है कि कुछ और लिखना चाहिए लेकिन तय नहीं कर पा रहा हूँ कि क्या लिखूं. तुम तो जानती ही हो कि एक्जाम्स की आन्स्वर स्क्रिप्ट के अलावा मैं कहीं भी कुछ ज्यादा नहीं लिख पाता हूँ. तुम्हें याद होगा, एक बार तुम्हें इम्प्रेस करने के लिए कविता लिखी थी जो तुम्हारे पिताजी के हाथ पड़ गई थी और उन्होंने कविता में मात्रा की गलतियाँ निकलते हुए उसे बहुत घटिया कविता बता डाला था. उसके बाद मैंने कसम खाई कि अब परीक्षा में प्रश्नों का उत्तर देने के अलावा और कुछ नहीं लिखूँगा.

हाँ, अभी एक बात याद अई है तो वह लिख देता हूँ. अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना. हो सके तो एमए करने के बाद पी एचडी करने की कोशिश करना. पी एचडी में एडमिशन लेने से शादी टालने का एक और बहाना मिल जायेगा. जब तक मैं नहीं आता, तबतक किसी और से शादी करने की सोचना भी मत. मैं नहीं चाहता कि तुम किसी और शादी कर लो और फिर अपने परिवार का इलाज करवाने मेरे ही नर्सिंग होम में आओ. ऐसा हुआ तो मेरी हालत राजेंद्र कुमार जैसी हो जायेगी और फिर मुझे गाने का सहारा लेना पड़ेगा.

वैसे जब सारे बहाने फ़ेल हो जाएँ तो फिर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना. अपने पिताजी को ये बताना कि तुम जिससे प्यार करती हो, वो अपने माँ-बाप का इकलौता पुत्र है और उसके बाप के पास बहुत पैसा है. मुझे विश्वास है कि वे यह सुनने के बाद फिर कभी तुम्हारी शादी की जिद नहीं करेंगे. अभी तो मैं इतना ही लिख रहा हूँ. बाकी की बातें लन्दन पहुँचकर मेल में लिखूंगा.

तुम्हारा

डॉक्टर सोमेश

पुनश्च:

अगर ये चिट्ठी समझ में न आए और पप्पू सेल्समैन के पास जाना ही पड़े तो चिट्ठी समझकर तुंरत घर वापस जाना.

16 comments:

  1. aap bhi n jaane kis kis ke prem patra chupke se padh lete ho... :)

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  2. कुछ गाने की पंक्तिया याद आ गयी "ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ के, कि तुम नाराज मत होना ......' :)

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  3. यह पोस्ट हमारी अधिकतर मित्र मंडली पे एकदम फिट बैठता है.
    कुछ-कुछ साथ के दशक की मूवीस की झलक भी दिखी.
    आजकल डाक्टर विद्यासागर ऐसी समाज-सेवा करते हैं क्या? उनका पता बतैय्ये काफी जिज्ञासु हैं लाइन में!
    बढ़िया पोस्ट!
    धन्यवाद !

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  4. डाक्‍टर इतना लम्‍बा प्रेम पत्र लिख ही नहीं सकते। ये सारे ही अजीब से जीव होते हैं, कुछ को छोड़कर। आपने राइटिंग के बारे में लिखा तो एक किस्‍सा अपने ही घर का बताती हूँ। हमारे ससुरजी का पत्र आया गाँव से, पत्र के अन्‍त में हाशिए पर भी कुछ लिखा था जो हमारे डाक्‍टर पतिदेव को समझ नहीं आ रहा था। उन्‍होंने मुझे पत्र दिया और कहा कि देखो क्‍या लिखा है? मैंने उसे पढ़ा और जो लिखा था वो यह था - तुम बड़ा गन्‍दा लिखते हो, साफ लिखा करो, कुछ समझ नहीं आता है।

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  5. बदनाम होने से बचने का आपका प्रयास सराहनीय है। डाक्टर साहब की हिदायत के चलते पप्पू पास नहीं होगा।
    मजा आ गया भाई जी।

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  6. आजकल ट्रांस्क्रिप्शन का धंधा जोरों से चल रहा है। कोई फ़र्क नहीं है पत्र चाहे प्रिस्क्रिप्शन है या प्रेमपत्र:)

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  7. बताईये, यदि इतनी आशायें आपसे आपका देश और समाज करने लगे तो समझ में आ जायेगा प्रेम का अर्थ। सन्नाट पत्र, कब लीक हुआ?

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  8. पहले मुझे लगा कि किसी भूगोल के डाक्टर का पत्र तो नहीं है. पर ये तो असली वाला डाक्टर निकला. "वैसे मुझे मालूम है कि ऐसा ही होगा. आख़िर तुमने मेरे साथ बगीचे में घूमने और आईसक्रीम खाने के सिवा किया ही क्या है? " एक बात है डाक्टर बहुत दिलेर निकला :)

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  9. ाजित गुपता जी की पहली पँक्ति से सहमत हूँ । शुभकामनायें। व्यंग तो इसी तरह लिखा जाता है जो न हो उसे इतने विस्तार से लिखो कि सुनने वाला सच माने।

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  10. एक प्रेम पत्र वो था जो बेला ने अपने प्रेमी याने कथा के नायक को "राग दरबारी" उपन्यास में लिखा था उसके बाद इस प्रेम पत्र का नंबर है जो एक डाक्टर सोमेश ने अपनी प्रेमिका को लिखा. दोनों ही पत्र अपने आपमें अनूठे और विलक्षण हैं. एक को प्रेमिका ने लिखा और दूसरे को प्रेमी ने. इस से ये भी सिद्ध हुआ के आपका लेखन श्री लाल शुक्ल जैसा ही है ,न भी हो तो भी उनसे कम नहीं है. ये दोनों पत्र साहित्य में सदा अपना स्थाई स्थान बनाये रखेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है .
    मेरा दूसरा विश्वास है के डाक्टर सोमेश "दिल एक मंदिर" के डाक्टर की तरह अपनी जान नहीं देगा बल्कि मौका पड़ने पर हेरोइन की जान लेने में नहीं सकुचायेगा. डाक्टर सोमेश आज के युग का डाक्टर लगता है जो प्रेक्टिकल और समझदार है. हिरोइन सदा की तरह मूर्ख मंद बुद्धि लगती है जैसा की अक्सर हिरोइन हुआ करती हैं.
    कुल मिला कर कहा जा सकता है, कहा क्या जा सकता है बल्कि मेरा पूर्ण विश्वास है के आप में उच्च श्रेणी के व्यंग लेखन बनने के सभी गुण विद्यमान हैं.
    भविष्य में आपके द्वारा लिखे डाक्टरी के अलावा दूसरे प्रोफेशन में लगे लोगों के प्रेम पत्र पढने की आशा में
    नीरज

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  11. आपकी पोस्ट से पता चलता है की दुनिया के सारे प्रेम करने वाले गैरजिम्मेदार नहीं होते! ऐसे भी प्रेमी होते हैं जो दूर तक की सोचते हैं | ऐसे निष्टुर समय में जब की प्रेमी को सिर्फ बेवकूफ समझा जाता है यह प्रेम पत्र उनके लिए आशा का संचार करता है जो अपने को अहमक नहीं मानते और प्रेम भी करना चाहते हैं! अद्भुत!

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  12. आपने तो प्रेम पत्र का ऑडिट ही कर दिया.

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  13. डॉक्टर सोमेश ने सचमुच खूब तरक्की की होगी।
    ऐसे डॉक्टर ही तो मामूली सर्दी-जुकाम को खतरनाक वायरल बता कर मरीज को पटाये रखते हैं :)

    पत्र पढने में मजा खूब आया, धन्यवाद
    प्रणाम

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  14. आदरणीय नमस्कार,
    इश्क और मुश्क छुपाए नही छुपते, विचारों के बांध रोके नही रुकते,
    प्रेम पत्र तो इक बहाना है, मुझे लगता ये आपका ही फ़साना है,
    शब्दों की निर्मल गंगा आप बहाते हो,रचना की रसधार से नहलाते हो,

    बहुत बढ़िया (अलौकिक प्रेम पत्र) मजा आ गया.....

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  15. कमाल का हास्य-व्यंग्य । पढते-पढते हँसी फूटती रही ।

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  16. अब समय आ चुका है कि पप्पू सेल्समेन को डोक्टोरो की लिखावट पढ़ने के लिए भारत रत्न दे देना चाहिए

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय