आधे घंटे पहले कोई सवा सौ ग्राम तुकबंदी इकट्ठी हो गई. इकट्ठी हुई तो कुछ 'धोये' निकाल आये. अगर झेल सकते हैं तो झेलिये.
करता है आदर कभी, कभी बताये चोर
कभी कहे कौवा उन्हें, यूं सरकारी जोर
सब जिसको बाबा कहें, उनको कहता गून
सब समझें चीनी जिसे, वो बतलाये नून
इक बाबा तो मौन है, और एक चिल्लात
इक सोये जब रात में, दूजा मारे लात
'प्रजा'सो रही नींद में, बरसत लाठी-बेंत
लोकतंत्र मुर्दा यहाँ, उसका यह संकेत
दिल्ली लंका सदृश अब, रावण करे निवास
सब पे कब्ज़ा कर लिया, धरती और अकाश
जिनको समझे थे सभी, जनता की आवाज़
चारण बन सरकार के, लुटा रहे हैं लाज
सच्चरित्र कहते उसे, जो है राष्ट्र प्रधान
चूहा बन बिल में घुसा, प्रजा रहे हलकान
कठपुतली सारे यहाँ, रानी करती राज
दरबारी बनकर वही, रोज गिराते गाज
कहते सब राजा जिसे, दिखे वही शैतान
जिह्वा पर कंट्रोल नहि, भूंके कुकुर समान
गृहमंत्री शकुनी सदृश, चलता रहता चाल
मोड़े मुख कर्त्तव्य से, दोपहर,सांझ,सकाळ
चरण कमल धोकर सदा चरणामृत पी लेव
रानी के चारण सभी, होठों को सी लेव
धूर्त, क्रूर मंत्री सभी, लागें कंश समान
जनता का करते वही, रोज-रोज अपमान
दुर्योधन चुप ही रहे, यह कलिकाली चाल
कलियुग का जयद्रथ यहाँ, खूब बनाये माल
मन का मोहन मौन है, जलता जाए राष्ट्र
करे आचरण ज्यों किये, द्वापर में धृतराष्ट्र
जिनको समझें द्रोण हम, वह भी करें प्रपंच
गलत-सलत बोलें सदा, जब मिल जाए मंच
उधर दुशाला रच रही, एक बड़ा षड्यंत्र
समय देखि के वार हो,उसका है यह मन्त्र
प्रथम यज्ञ में डारि जल, दुर्योधन मदहोश
चारण भी हैं कर रहे, उसका ही जयघोष
किन्तु समय कब पलट ले,यह जाने ना कोय
कभी-कभी सम्राट भी जनता सम्मुख रोय
सवा किलो नहीं, सवा कुन्टल बोझ है।
ReplyDeleteसमय बहुत बलवान होता है... पुरुष बली नहिं होत है, समै होत बलवान... भिल्लन लूटी...
ReplyDeleteसत्य वचन !
ReplyDeleteसुनने में आया है कि रामदेव जी ने प्रधानमंत्री जी को माफ़ कर दिया है :-/
ReplyDeleteवर्तमान स्थिति का बिलकुल सटीक चित्रण।
ReplyDeleteदोहे गज़ब के हैं, वैसे लोकतंत्र का समय खराब चल रहा है। जहाज़ टेढा है, कई चूहे दूसरे साफ जहाज़ में कूदने को तैयार बैठे हैं।
ReplyDeleteआपने दोहे को धोये क्यों लिखा है, पहले तो यह बताएं? क्या धोना है? सरकार तो जनता को धोने पर तुली है, उसने अपना लोकतंत्र का नकली मुखौटा उठाकर फेंक दिया है और वास्तविक रूप से आगयी है। याद करिए कि 1984 में इसी सरकार ने क्या किया था? अब सम्राट कब जनता के सम्मुख रोयेगा इसी का इंतजार है।
ReplyDeleteशिव भइया के धोयरे लागे जस तेजाब।
ReplyDeleteरानी राजा मंतरी पुनि-पुनि मांगे आब॥
बाबा का चोला हुआ अनशन में बदरंग।
मनमोहन साबित हुए सबसे बड़े दबंग॥
आपका लेखन बड़ा प्रेरक है जी...
इन धोवंत धोवों के वजन और सुन्दरता की तो क्या कहूँ......
ReplyDeleteएक शब्द नहीं दिख रहा ऐसा जो इसकी बराबरी में लाकर खड़ा कर सकूँ प्रशंसा स्वरुप....
बस जियो....
आत्मा प्रसन्न कर दिए...
गजब के धोए हैं आप तो!सबको धो दिया किसी को मैला नहीं छोड़ा.
ReplyDeleteअब हमें प्रजा जी से शिकायत है. भई, वह खुले में नींद, में क्यों सोई थी? लुक छिप के सोना चाहिए था.कुछ लोग अपने लट्ठ बेंत चलाने का अभ्यास कर रहे थे. वहीं पर लोग सोए हुए थे. कुछ को यहाँ वहाँ जरा लग गए.मरहम लगा दिया गया है.
घुघूती बासूती
बहुत ही सटीक दोहे है भाईसाहब....!!
ReplyDeleteहमारी सरकार..... चोर मचाए शोर :)
ReplyDeleteजिनको समझें द्रोण हम, वह भी करें प्रपंच
ReplyDeleteगलत-सलत बोलें सदा, जब मिल जाए मंच
वाह वाह क्या धोये बिना साबुन के और श्री शंकर त्रिपाठी जी के दोहे भी कमाल हैं आभार।
कहाँ थमे हैं आप शिव भैया? इधर तो अफ़सोस होने शुरू हो गये कि हरिद्वार में लाठीचार्च नहीं हो रहा, काहे से कि उधर अच्छी वाली सरकार नहीं है।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग की पोस्ट "एक सशक्त ब्लॉग लेखन पर फुटकर विचार" की चर्चा हमारीवाणी ई-पत्रिका के कॉलम "ब्लॉग-राग" के अंतर्गत की गई है.
ReplyDeleteपोस्ट का लिंक है:
ReplyDeletehttp://news.hamarivani.com/archives/1737
bahut sahi.
ReplyDeleteवाह...वाह...वाह...क्या धोएं हैं...अहहहः...वावावावावाव...याने पूरा ही मैल निकाल दियें हैं कमबख्त...खींच खींच के निकाले हैं...ऐसी धुलाई न कभी देखि न सुनी रे भैय्या...आपतो धुलाई सम्राट हैं...पहले धोबी घाट पे काम किये थे क्या? धोते भी हैं और धोबी पछाड़ दाव भी लगाते हैं...
ReplyDeleteक्या धोया है आपने सबको बीच बाज़ार
हर्षित तो हर जन भया पर रोई सरकार
सिया वर रामचंद्र की जय...पवन सुत हनुमान की जय.
नीरज
वाह क्या धोएं हैं भाईसाहब.
ReplyDeleteक्या दोहे हैं... नहीं नही यूं कहें कि क्या धोये हैं!
ReplyDeleteजबरदस्त धुलाई करे हो साहब जी । लोकतंत्र के अजगर ने करवट तो ली है देखें कब किसको लेता है अपने लपेटे में ।
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