Thursday, August 4, 2011

मॉंनसून स्कैम

कोलकाता में करीब पंद्रह-बीस दिनों तक बरसात नहीं हुई. ऐसा नहीं कि बादल छाये नहीं. ऐसा भी नहीं कि बादल भाये नहीं. जब-जब बादल छाये तब-तब बादल भाये (इस कहते हैं आँसू कविता. लिखने वाला लिखे और पढनेवाला आँसू बहाए). ट्विटर पर हजारों ट्वीट दिखाई दीं, जिनमें ट्विटर योद्धाओं ने कोलकाता के आसमान पर छाए गोरे, भूरे, काले, लाल, पीले, सब तरह के बादलों को इतना खूबसूरत बताया कि अगर कटरीना कैफ पढ़ लेतीं तो डिप्रेशन में चली जातीं. जरा सी रिम-झिम हुई तो इन ट्विटर योद्धाओं ने ट्वीट करके अपने पछतावे के बारे में बताया कि क्या बिडम्बना है कि; "ऐसे मौसम में आफिस जाना पड़ेगा." मन ही मन गरम पकौड़े और चाय के संहार का सपना देखा और मन ही मन उन सपनों पर पसीना फेर दिया.

न जाने कितनो ने ने रवींद्र संगीत सुना. कितने तो गुनगुनाते पकड़े गए कि; "पागला हवा बादोल दिने पागोल आमार मोन जेगे उठे.." कवि-हृदय मानवों ने श्री सुमित्रा नंदन पन्त से इंस्पायर होते हुए कवितायें लिखीं. रेन-कोट की बिक्री बढ़ी. दूकान में रखे छातों को घरों का कोना नसीब हुआ. टैक्सी वालों ने टैक्सी यात्रियों से बरसात में एक्स्ट्रा भाड़ा मांगने के प्लान बनाये. प्यासी सड़कों ने पानी पीने के सपने देखे. महानगर पालिका ने भारी बरसात की संभावना को देखते हुए अपने कर्मचारी और पम्प तैयार किये जिससे रास्तों और गलियों में जमे पानी को जल्द-जल्द से निकाला जा सके.

लेकिन बरसात नहीं हुई. सारी तैयारियों पर बादल फिर गए.

कोलकाता के नागरिकों ने देवराज इंद्र को गरियाना शुरू किया. पहले पाँच दिन तो देवलोक की मीडिया ने यह मुद्दा उठाया ही नहीं. कारण यह था कि तमाम बड़े पत्रकार, सम्पादक वगैरह देवराज के साथ डांस कर्सर्ट देखने में बिजी थे. बाद में जब मीडिया को लगा कि बीच-बीच में उसे मीडिया-धर्म का पालन भी करते रहना है, तब उसने यह मुद्दा उठाया. पहले तो देवराज इन्द्र के चेले-चमचों ने साफ़-साफ़ कह दिया कि उनकी इंटीग्रिटी पर सवाल उठाने का अधिकार किसी को नहीं है. कुछ संपादकों ने भी देवराज का बचाव यह कहते हुए किया कि; "देवलोक के छोटे-मोटे कर्मचारियों की लापरवाही के लिए लिए उन्हें दोषी करार देना उचित नहीं है. वे तो दैवीय कार्यों में व्यस्त रहते हैं. किसी इलाके में बारिश हुई या नहीं, ऐसी टुच्ची बात से उनका का क्या लेना-देना?

उनके कुछ चमचों ने तो यहाँ तक कह दिया कि "देवराज को इस मामले में फंसाया जा रहा है. यह शुक्राचार्य की चाल है."

लेकिन तब तक मामला गरमा गया था. मामले ने इतना तूल पकड़ा कि देवराज का मन डांस और सोमरस से भटकने लगा. बाद में उनके सलाहकारों ने उन्हें सलाह दी कि दो-चार प्रेस कांफेरेंस करके मामले को दफनाया जा सकता है. इन्ही परिस्थियों में तमाम लोगों ने प्रेस कांफेरेंस की.

पेश है उन्ही में से एक प्रेस कांफेरेंस कोलकाता के प्रभारी बादल ने किया जिसे कोलकाता में बारिश मैनेजमेंट का प्रभार सौंपा गया था;

कोलकाता के प्रभारी बादल की प्रेस कांफेरेंस:

पत्रकार: आपके ऊपर जो आरोप हैं, क्या वह सही हैं?

बादल: देवलोक के कर्मचारियों पर लगे आरोप कभी सही होते हैं क्या?

पत्रकार: क्या यह सच नहीं है कि देवलोक से कोलकाता के लिए जल लेकर तो आप चले लेकिन कोलकाता के ऊपर बरसात न करके आपने कहीं और बरसात कर दी?

बादल: यह सही नहीं है.

पत्रकार: परन्तु कोलकाता की सूखी सड़कें इस बात की गवाह हैं कि आपने वहाँ बरसात नहीं की.

बादल: हमने तो बरसात की थी. अब ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पृथ्वी की ऊपरी सतह पानी सोख ले, तो हम क्या कर सकते हैं?

पत्रकार: लेकिन लोगों ने आपको बरसात करते नहीं देखा.

बादल: देखिये, यह आरोप बदले की भावना से लगाया जा रहा है. पिछले वर्ष जो सूखा पड़ा था उसकी वजह से पत्रकार हमसे बदला लेना चाहते हैं.

पत्रकार: यह आरोप केवल पत्रकारों का नहीं है. कोलकाता के लोगों ने भी आरोप लगाया है.

बादल: लोग़ तो आरोप लगाते रहते हैं लेकिन उन आरोपों में सच्चाई कितनी होती है? अगर लगता है कि जांच की ज़रुरत है तो हम किसी भी तरह की जांच के लिए तैयार हैं.

पत्रकार: जांच की क्या ज़रुरत है? यह तो सीधा-सीधा दिखाई दे रहा है कि पानी कहीं नहीं है. आप चाहें तो अपने हाथों से मिट्ठी छूकर देख लें. किसी तालाब में पानी नहीं है. झील में पानी का स्तर नहीं बढ़ा. सबकुछ तो वैसे ही देखा जा सकता है. इसके लिए जांच की क्या ज़रुरत है?

बादल: देखिये, देवलोक के काम करने का अपना एक तरीका है. हम बिना सुबूत के कुछ नहीं मानते. हाथ से छूकर हम नहीं देखेंगे.

पत्रकार: तो फिर आप क्या चाहते हैं?

बादल: देवराज डी बी आई को निर्देश दें, वह जांच करे. वे चाहे तो किसी अवकाश प्राप्त देवता की अध्यक्षता में एक कमीशन बैठा दें. हमें कोई आपत्ति नहीं.

पत्रकार: जब तक कमीशन जांच करेगा, तब तक अगर आप पानी लाकर फिर से बारिश कर देंगे तो?

बादल: कोलकाता के लिए जितना कोटा इस महीने का था, वह सब ख़त्म हो गया है. अब अगले महीने जितना मिलेगा हम वही आपको दे सकेंगे.

पत्रकार: ऐसी बात है? कोलकाता का कोटा तो आपने कहीं और दे दिया.

बादल: आप चाहें तो ओवर-ड्राफ्ट के लिए अप्लाई कर दें. कोटा बढाया जा सकता है.

पत्रकार: आपके पास कोई सुबूत है कि आपने पानी बरसाया?

बादल: हाँ, हमारे पास सुबूत है. मैं अकेले तो बरसात करने नहीं आया था. मेरे साथ इस समय जो चार बादल और दो बदली बैठी हुई हैं, उनसे पूछ लीजिये. वे आपको बतायेंगे कि पानी बरसाया गया था.

पत्रकार: ये तो सब आपके मातहत काम करते हैं. वो छुटकी बदली बेचारी आपके खिलाफ कैसे जा सकती है?

बादल: हम देवलोक के बादल हैं. हमारे यहाँ सबको छूट है कहीं भी जाने की. वो बादल हो या बदली.

पत्रकार: आप मुद्दे से हमें भटका रहे हैं.

बादल: हम आपको मुद्दे से क्या भटकायेंगे? आपलोग मुद्दे पर थे ही कब?

पत्रकार: आप कहना क्या चाहते हैं?

बादल: हम यही कहना चाहते हैं कि हमें इस बारे में और कुछ नहीं कहना. अब आपको जो कुछ पूछना है वह हमारे बॉस, यानि कोलकाता के प्रभारी देव से पूछिए. उन्होंने हमें जो करने के लिए कहा, हमने किया. अब हम और कोई सवाल नहीं लेंगे.

प्रेस कांफेरेंस ख़त्म हो गई. मामला गरमाया हुआ है. पत्रकार अब कोलकाता के प्रभारी देव से सवाल करेंगे. देव के प्रेस कांफेरेंस के लिए एक दिन का इंतजार कीजिये.

12 comments:

  1. नागरिकों ने देवराज इंद्र को गरियाना शुरू किया...हम यही कहना चाहते हैं कि हमें इस बारे में और कुछ नहीं कहना.इन पंक्तियों का सृजन शिव भैया ही कर सकता है..सादर धन्यवाद ...गिरीश

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  2. इन्द्र देव बीमार नहीं हुए? जवाब देने का समय आए और ऑपरेशन की जरूरत न पड़े ऐसा कभी हुआ है क्या?

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  3. किसी बैंक में ढूढ़िये, मिल जायेंगे बरसने वाले बादल।

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  4. जय हो! इस तरह बादल एक बार फ़िर बेदाग साबित हुये! :)

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  5. बेईमानी का नतीजा, कहीं सूनामी तो कहीं सूखा!

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  6. साक्षात्कार करने के मामले में तो आप का कोई सानी नही,लेख पढ़ कर लगा आपसे बढ़ कर कोई ज्ञानी नही.....

    विषय तो फुलटास है ही साथ ही बराबर पकड़ के रक्खा देवराज इंद्र के चमचे बादल को, लाजवाब...

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  7. गुरुदेव, जावेद जी की थोड़ी 'वाट' टाईप लगायी है. अच्छा लगा :)
    बिचारे रेन क्रेजी पीपुल्स को काहे सताए आप.
    अब इन्द्रदेव को गरियाना हमारा हक है, वो लिख के अच्छा किये.
    ये 'बादल' की 'टोन' सुनी-सुनी सी लग रही थी? ओवर-ओल कलकत्ता की ख़बरें सुनकर बड़ा मज़ा आया.
    धन्यवाद!

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  8. देवता और देवी से प्रश्‍न करने की हिमाकत मत करो, धरे जाओगे। बादल कहाँ बरसेगे और कहाँ नहीं सब कुछ उनकी इच्‍छा पर निर्भर है।

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  9. बहुत खूब शिव जी .... कोलकत्ता के ऐसे मौसम के मिजाज़ का अच्छा अनुभव है .. आपने आज वो सब कुछ याद दिला दिया ..
    वाह

    आभार

    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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  10. पढ़ तो हम इसे सुबह ही लिए थे लेकिन टिपिया अब रहे हैं...बिचारे देवराज इंद्र...अब तो हिन्दुस्तान के अधिकांश हिस्सों में उनकी खिंचाई हो रही है...आपका कलकत्ता अकेला नहीं है...इंद्र को समझ ही नहीं आ रहा क्या करे...ये तो टू जी स्कैम से भी बड़ा घोटाला लगता है...सुना है पानी बेचने वाले व्यापारियों ने बादलों को घूस देकर समुद्र में बारिश करवा दी ताकि पानी की कमी बनी रहे...जोरदार इंटरव्यू ..

    नीरज

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  11. Bahut khoob..Aapke pass har mausam k liye kuch na kuch rehta hai...Bhagwan bachaaye aise corrupted baadlon se... Ye garajte to hain par baraste idhar udhar ka apna dekhr hain.

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय