आदरणीय श्री जयशंकर प्रसाद के प्रसंशकों से क्षमा याचना सहित.
बीती विभावरी जाग री
सास जी घर में झाड़ू देती
पेड़ पे बोले काग री
बीती विभावरी जाग री
बजता जाता टीवी, ऍफ़ एम्
सुन जिन्हें साधु भी जाते रम
स्मृति में ला कर्त्तव्य सभी
औ वह विराट बैक-लॉग री
बीती विभावरी जाग री
बिस्तर पर तू, अधखुले नेत्र
अब निकल छोड़कर कर शयन क्षेत्र
माना अबतक रवि नहीं दिखें
पर रीजन है यह फ़ॉग री
बीती विभावरी जाग री
आ पहुँचा है अब नया साल
दिक्खेंगे सारे नव-बवाल
क्या हमें मिलेगा लोकपाल
यह पूछ रही सब नागरी
बीती विभावरी जाग री
जो बीता गया अब उसे भूल
बातों का 'उनके' यही मूल
हर भारतवासी को देंगे
ऑनेस्टी भरके गागरी
बीती विभावरी जाग री
उठकर कर ले मॉर्निंग वॉक
कर लिया हेल्थ पर बहुत टॉक
कंट्रोल रहेगा रक्त-चाप
दे दुनियाँ को नव-राग री
बीती विभावरी जाग री
difficult hindi
ReplyDeleteबीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊषा नागरी।
खग कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिये,
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।
बढिया है विभावरी का वर्णन।
ReplyDeleteआह ! प्रसाद जी की आत्मा कितनी कराह रही होगी आज
ReplyDeleteये तो गजब कोलावरी टाइप रिमिक्सिंग् है। वाह्!
ReplyDeleteहमे देखना है और हम देखेंगे कि विभावरी जाग रही है और यदि नहीं तो हम लंका की सेवा वापिस लौटा लेंगें:)
ReplyDeleteओ मन की कुनमुन भाग री।
ReplyDeleteचलिए इसी बहाने एक बार कालेज की यादें ताजा हों गयीं.
ReplyDeleteवाह वाह वाह गुरुदेव!
ReplyDeleteआपका कैसे धन्यवाद करें! आजकल येही बातें हमे रोज़ सादी हिंदी में कही जाती हैं.
पर कविता की प्रेरणा की तो अलग ही बात है. इसी बात पर अभी सिस्टम शाट डाउन करते हैं और सुबह समय पर उठेंगे.
आशा है कुछ और लोग जागें.
माना अबतक रवि नहीं दिखें
ReplyDeleteपर रीजन है यह फ़ॉग री
बीती विभावरी जाग री
अहो अहो...जयशंकर जी ने इसे पढ़ कर जरूर सोचा होगा..."काश इसे मैंने लिखा होता"
अद्भुत रचना...वाह.
नीरज
बेजोड़ पैरोडी...!!!
ReplyDeleteएकदम लाजवाब...