Monday, January 2, 2012

बीती विभावरी जाग री .... (री-मिक्स्ड)

आदरणीय श्री जयशंकर प्रसाद के प्रसंशकों से क्षमा याचना सहित.


बीती विभावरी जाग री
सास जी घर में झाड़ू देती
पेड़ पे बोले काग री
बीती विभावरी जाग री

बजता जाता टीवी, ऍफ़ एम्
सुन जिन्हें साधु भी जाते रम
स्मृति में ला कर्त्तव्य सभी
औ वह विराट बैक-लॉग री
बीती विभावरी जाग री

बिस्तर पर तू, अधखुले नेत्र
अब निकल छोड़कर कर शयन क्षेत्र
माना अबतक रवि नहीं दिखें
पर रीजन है यह फ़ॉग री
बीती विभावरी जाग री

आ पहुँचा है अब नया साल
दिक्खेंगे सारे नव-बवाल
क्या हमें मिलेगा लोकपाल
यह पूछ रही सब नागरी
बीती विभावरी जाग री

जो बीता गया अब उसे भूल
बातों का 'उनके' यही मूल
हर भारतवासी को देंगे
ऑनेस्टी भरके गागरी
बीती विभावरी जाग री

उठकर कर ले मॉर्निंग वॉक
कर लिया हेल्थ पर बहुत टॉक
कंट्रोल रहेगा रक्त-चाप
दे दुनियाँ को नव-राग री
बीती विभावरी जाग री

10 comments:

  1. difficult hindi
    बीती विभावरी जाग री!
    अम्बर पनघट में डुबो रही
    तारा घट ऊषा नागरी।

    खग कुल-कुल सा बोल रहा,
    किसलय का अंचल डोल रहा,
    लो यह लतिका भी भर ला‌ई
    मधु मुकुल नवल रस गागरी।

    अधरों में राग अमंद पिये,
    अलकों में मलयज बंद किये
    तू अब तक सो‌ई है आली
    आँखों में भरे विहाग री।

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  2. बढिया है विभावरी का वर्णन।

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  3. आह ! प्रसाद जी की आत्मा कितनी कराह रही होगी आज

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  4. ये तो गजब कोलावरी टाइप रिमिक्सिंग् है। वाह्!

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  5. हमे देखना है और हम देखेंगे कि विभावरी जाग रही है और यदि नहीं तो हम लंका की सेवा वापिस लौटा लेंगें:)

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  6. ओ मन की कुनमुन भाग री।

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  7. चलिए इसी बहाने एक बार कालेज की यादें ताजा हों गयीं.

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  8. वाह वाह वाह गुरुदेव!
    आपका कैसे धन्यवाद करें! आजकल येही बातें हमे रोज़ सादी हिंदी में कही जाती हैं.
    पर कविता की प्रेरणा की तो अलग ही बात है. इसी बात पर अभी सिस्टम शाट डाउन करते हैं और सुबह समय पर उठेंगे.
    आशा है कुछ और लोग जागें.

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  9. माना अबतक रवि नहीं दिखें
    पर रीजन है यह फ़ॉग री
    बीती विभावरी जाग री

    अहो अहो...जयशंकर जी ने इसे पढ़ कर जरूर सोचा होगा..."काश इसे मैंने लिखा होता"
    अद्भुत रचना...वाह.

    नीरज

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  10. बेजोड़ पैरोडी...!!!

    एकदम लाजवाब...

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय