Monday, April 2, 2012

भारतीयता का रेखाशास्त्र

गरीबी की रेखा खींच दी गई. खिंचाई के बाद जो लोग़ रेखा के नीचे मिले उन्हें गरीब करार दे दिया गया. रेखा के ऊपर बरामद हुए लोगों को शायद अमीर करार देने का प्लान भी बना होगा लेकिन बाकी मुद्दों की तरह इस मुद्दे पर भी ऐन मौके पर सरकार पीछे हट गई होगी. पहले प्लान यह था ३२ रूपये वाली रेखा के नीचे जो लोग़ मिलेंगे उन्हें गरीब पुकारा जाएगा लेकिन शायद योजना आयोग को लगा कि ३२ रुपया में से तो गरीब कुछ बचा भी लेगा और उसमें से कुछ निवेश वगैरह कर देगा तो फिर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को उसके इनकम का भी हिसाब-किताब रखना पड़ेगा लिहाजा ३२ रूपये को घटा कर २८ रूपये कर देना ही श्रेयस्कर है.

तो २८ रूपये वाली इस रेखा की खिचाई इसलिए की गई ताकि गरीबी और गरीबों को सुरक्षा प्रदान की जा सके. इस रेखा के खिंच जाने के बाद गरीब अब सीक्योर्ड फील करेगा. एक तरह से यह रेखा गरीब के लिए कवच-कुंडल का काम करेगी. वह यह सोचकर खुश हो लेगा कि अब उसकी गरीबी उससे कोई छीन नहीं सकता. जहाँ गरीब इस बात के लिए खुश होगा वहीँ विश्व बैंक और सरकार यह सोचकर खुश होते रहेंगे कि इस रेखा ने तमाम लोगों को गरीब नहीं रहने दिया.

गरीबी की इस रेखा के खिंच जाने से एक बात और साबित हुई कि पूरी दुनियाँ जिन्हें अर्थशास्त्री समझती रही वे रेखागणित के विद्वान निकले. रेखागणित ने अर्थशास्त्र को पीछे छोड़ दिया. यह बात भी साबित हुई कि भारत अब उन दिनों ने बहुत आगे निकाल आया है जब अर्थशास्त्र को पीछे छोड़ने का काम साहित्य के जिम्मे था. तब गरीबी और गरीबों को हटाने के लिए नारे लिखने पड़ते थे. जैसे सत्तर के दशक में साहित्य ने नारे के सहारे अर्थशास्त्र को पीछे छोड़ा था. नारा लगा था; गरीबी हटाओ.

यह बात और है कि शायद गरीबी का साहित्य में विश्वास नहीं था लिहाजा वह नहीं हटी. अपनी जिद पर अड़ी रही और कालांतर में रेखागणित का सहारा लेना पड़ा.

हमारे देश में रेखाओं का महत्व पुराने समय से रहा है. जब तक हस्त रेखा और मस्तक रेखा ने रेखाशास्त्र में अपनी एंट्री नहीं करवाई थी, तबतक भारतीय संस्कृति में लक्ष्मण रेखा की मोनोपोली थी. लोग़ लक्ष्मण रेखा से काम चलाते थे. वे अपनी इच्छानुसार लक्ष्मण रेखा खींच भी लेते थे और उसे लांघ भी लेते थे. उनके इस कर्म से न सिर्फ लक्ष्मण रेखा की अपितु श्री लक्ष्मण जी की भी प्रासंगिकता बनी रहती थी. महान कवि और ऋषि बाल्मीकि जी के अनुसार इस रेखा की खिंचाई लक्ष्मण जी ने इसलिए की थी ताकि सीता जी सुरक्षित रहें. यह रेखा सीता जी के लिए सुरक्षा-घेरा का कार्य करने के लिए बनाई गई थी क्योंकि रामायण काल में जेड कैटेगरी सुरक्षा का आविष्कार नहीं हुआ था.

जहाँ बाल्मीकि जी ऐसा मानते थे वहीँ महान महिला-विमर्श एक्सपर्ट बसंती देवी का मानना है कि लक्ष्मण जी ने इस रेखा को इसलिए खींचा था ताकि भविष्य में महिलाओं पर तरह-तरह के प्रतिबन्ध लगाए जा सकें और उन्हें घर से निकलने की मनाही रहे.

लक्ष्मण रेखा को खींचते और लांघते देशवासी अपनी जीवन रेखा खींचने में लगे हुए थे तभी उनके जीवन में उस समय आमूल-चूल परिवर्तन आया जब ज्योतिषियों ने हस्त-रेखा और मस्तक रेखा का आविष्कार कर डाला. उन्होंने न सिर्फ इन रेखाओं का आविष्कार किया बल्कि उनकी पढ़ाई भी शुरू कर दी. साथ ही इन पढ़ाकू ज्योतिषियों ने जनता को बताया कि ये दोनों रेखाएं बाकी सभी रेखाओं से श्रेष्ठ हैं क्योंकि ये उनकी जीवनरेखा को प्रभावित करती हैं. उनकी इस घोषणा से जनता को लगा कि इन रेखाओं का अनुसरण करना उनका कर्त्तव्य है. धीरे-धीरे जनता इन ज्योतिषियों के साथ-साथ अपनी-अपनी हस्त और मस्तक रेखा पर अपना विश्वास कायम करती गई. ज्योतिषियों का रेखा-पठन कार्य जो तब आरम्भ हुआ, आजतक चल रहा है.

ज्योतिषियों के इस महत्वपूर्ण सिद्धांत को तब और बल मिला जब इस सिद्धांत ने एक क्रांतिकारी शायर को न सिर्फ प्रभावित किया बल्कि उससे यह भी लिखवाया कि; "रेखाओं का खेल है मुकद्दर....". इस शायर के अनुसार रेखाएं जो खेला करती हैं उसी से मुकद्दर निकलता है और यही मुकद्दर सब को अमीर, गरीब, दुःख-सुख, धन-धान्य वगैरह से नवाजता है. ज्योतिषियों से प्रभावित जनता के ऊपर शायर का प्रभाव आया तो जनता डबल प्रभावित हुई और अपने मुकद्दर को सराह कर या फिर कराह कर अपना काम चलाती रही.

वैसे हाल ही में लोकल शायर कट्टा कानपुरी ने गरीब के हवाले से एक बड़ा ही ओरिजिनल शेर कहा. बोले;

मैं गरीबी रेखा के नीचे सही मेरा वजूद कुछ तो है,
रहा करे जो मुकद्दर मेरी तलाश में है:-)

रेखा खिंच जाने के बाद अब मुकद्दर भी चाहे तो एक गरीब से उसकी गरीबी नहीं छीन सकता. गरीब भी अपनी गरीबी छिनने के विरुद्ध है. वह आखिर ऐसा क्यों करे? उसे सब्सिडी की प्राप्ति कैसे होगी?

रेखाओं के इस खेल में एक रेखा और जुड़ी जब हमारे जीवन में सरल रेखा ने प्रवेश किया. रेखागणित पढ़ानेवाले अध्यापक ने यह राज खोला कि लक्ष्मण रेखा, हस्त रेखा, मस्तिष्क रेखा के अलावा एक और रेखा होती है जिसे सरल रेखा कहते हैं. इन्होने लगे हाथ यह भी बताया कि दो बिन्दुओं के बीच की न्यूनतम दूरी को सरल रेखा कहते हैं. सरल रेखा की इस परिभाषा ने लोगों को इतना प्रभावित किया कि हमने सरल रेखा का सहारा लेकर फिल्मस्टार रेखा और बिंदु पर तमाम चुटकुले बनाये जिससे पूरे भारत का मनोरंजन होता रहा. वैसे हमारे मोहल्ले के अनुभवी क्रांतिकारी सूमू दा का यह मानना था कि ऐसे चुटकुले जानबूझकर बनाये गए ताकि जनता रेखा और बिंदु की बात करती रहे और उसका ध्यान मूल समस्याओं से हटा रहे. पता नहीं यह कितना सच है लेकिन मुझे याद है कि इन चुटकुलों से जनता ने अपना मनोरंजन खूब किया था.

सरल रेखा की बात पर मुझे मेरे गणित के ट्यूशन टीचर की याद भी याद आई. हम जब उनके घर ट्यूशन पढ़ने जाते थे तब वे हमें बैठाकर यह कह कर निकल जाते थे कि; "एक्स और वाई के बीच एक सरल रेखा खींचो." वे इतना कहकर दूसरे रूम में चले जाते और लगभग पैंतालीस मिनट बाद बाकायदा चाय-नाश्ता करके आते. आने के बाद वे सबकी सरल रेखाएं देखते और बताते कि कैसे सरल रेखा केवल दिखने में सरल होती है लेकिन खींचने में बहुत कठिन होती है. हम उनदिनों बड़े सरल होते थे इसलिए कभी उनसे बहस नहीं किया.

अब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो लगता है कि अगर किसी तरह से सरल रेखा कि खिंचाई सीख जाते तो शायद गरीबी रेखा को लेकर इतना हलकान नहीं होते.

16 comments:

  1. ...खास बात यह कि दो सरल रेखाएं आपस में कभी नहीं मिलतीं,अमीरी रेखा और गरीबी रेखा की तरह !

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  2. मैं गरीबी रेखा के नीचे सही मेरा वजूद कुछ तो है,
    रहा करे जो मुकद्दर मेरी तलाश में है:-)

    अहा..अहा..अहा...काश मैं भरत होता तो राम रुपी कट्टा जी की चरण पादुकाओं की पूजा करता...कैसे कैसे शायर दुनिया में यूँ ही गुमनाम पड़े हैं...
    रेखाओ की जहाँ तक बात है तो हमारे जीवन के हिस्से में सिर्फ वक्र रेखा ही आयी है...आफिस में बॉस के माथे पर और घर में पत्नी श्री के चेहरे पर भावों की वक्र रेखा देखते देखते कब शायर बन कर अपनी भडांस निकलने लगे पता ही नहीं चला. सरल रेखा क्या होती है पता ही नहीं चला...स्कूल में मास्टरों ने भू मध्य रेखा, कर्क रेखा, मकर रेखा के चक्कर में ऐसा रगडा के हमेशा "रेखा ओ रेखा जबसे तुम्हें देखा...खाना पीना सोना दुश्वार हो गया...मैं आदमी था काम का बेकार हो गया..." गाते रहे...और अभी तक गा रहे हैं...ना गाते तो क्या पता रेखा अभी तक कुँवारी न रहती...

    बहुत ज्ञान दार पोस्ट ठोक दिए हैं आप अबकी बार..अब इतना ज्ञान कहाँ से लायें...?..वाह...

    नीरज

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  3. कट्टा कानपुरी का शेर बहुत जानदार है। लगता है इसई की नकल करके एक नामचीन शायर ने शेर ने लिख मारा है:
    मैं कतरा सही, लेकिन मेरा वजूद तो है,
    हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है।

    कट्टा कानपुरी को अगर शायर के शेर के बारे में पता चल जाता तो वे पक्का उनको अपने फ़ेसबुक से अनफ़्रेंड कर देते। :)

    बाकी रेखायें कैसी भी खींजिये लोग जरूरत के मुताबिक उसके नीचे से निकल जाते हैं जैसे रेलवे के फ़ाटक से लोग अपनी साइकिल/ मोटर साइकिल लिटाकर निकाल कर ले जाते हैं। या फ़िर खुद फ़ांद कर चले जाते हैं। :)

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  4. रेखायें सब काल्पनिक ही हैं , भूमध्य रेखा , कर्क रेखा, मकर रेखा , बस एक रेखा बालीवुड की छोड़कर!! खैर हमारे लिए तो वो भी काल्पनिक ही है :) अब तो एक सरल पागल रेखा बना ली जाए तो देश के लोगों को दो भागों में नए सिरे से बाँटा जा सके

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  5. सब खेल है रेखाओं का...

    एक रेखा खिंच दी तो कोई उपर कोई नीचे हो गया.

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  6. सरकारी रेखा के नीचे आने के लिये अस्सी सवालों का जवाब वाला क्राईटेरिया, हाय दैया कैसा जमाना आ गया है।

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  7. बहुत बढ़िया ! रेखाओं का खेल है मुकद्दर :)

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  8. ..........hum to rekha aur bindu ke bich phase rah gaye???????????wah

    pranam.

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  9. apki pyarelal line ki samajh ko naman shiv bhaiya,dil se dhanyawaad hum sabka MOODS fresh karne ke liye :)

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  10. रेखाओं में उलझा हमारा इतिहास और भूगोल..

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  11. रेखाजी और बिन्दु जी को श्रद्धांजलि/शुभकामनायें!

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  12. रेखाओं के खेल में उलझा दिया ।

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  13. Aplogone sab kuch likh diya mere liye kuch baki nahi rahi. bas itnihi kah sakta ki ye rekha kafi umda bana!

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  14. Extremely enjoyable! didn't keep any vacant space for me to draw a line saral ya bakro. kafi umda rachna.

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय