Wednesday, June 26, 2013

भारतीय राजनीति का शेरकाल

नेताजी जी गठबंधन टूटने की ब्रेकिंग न्यूज दान में देते हुए पत्रकारों से बोले; "ऊ लोग त दवा देते मरने की, आ दुआ देते हैं जीने की।"

पत्रकार लोग उन्हें लगातार देखे जा रहे थे। शायद इस आशा के साथ की वे शेर की दूसरी लाइन भी बोलेंगे जो शायद "टीने की" या फिर "पीने की" पर आ रुके। खैर, ऐसा हुआ नहीं और पत्रकार लोग निराश हो गए। कईयों ने अपनी रपट में लिखा तो नहीं लेकिन मन ही मन जरूर सोचा होगा कि कैसा नेता है जो शेर भी पूरा नहीं करता? जो नेता पत्रकारों के सामने शेर पूरा नहीं कर सकता वह जनता को किया गया वादा कैसे निभाएगा? जो पत्रकारों का नहीं हुआ वह जनता का क्या होगा? अगर यही हाल रहा तो न ही पालिटिक्स मजबूत रहेगी और न ही सेकुलरिज्म। क्या होगा इस देश का? आखिर आज पॉलिटिक्स में शेर के अलावा बचा ही क्या है जिसे थाम के रक्खेगा ये नेता?

वैसे देखा जाय तो इसमें पत्रकारों की भी क्या गलती है? नेता कहीं भी जाता है तो शेर से लैस होकर जाता है। पार्लियामेंट में बजट पढ़ रहा है तो टैक्स का प्रपोजल देते हुए शेर दे मारता है। टैक्स रिबेट अबोलिस कर रहा है उसपर भी शेर बक डालता है। नया गठबंधन बना रहा होता है तो उसके जस्टिफिकेशन के सवाल को शेर मारकर धरासाई कर डालता है। किसी दूसरे नेता की प्रशंसा करना चाहता है तो उसपर शेर कुर्बान कर देता है। किसी नेता की बुराई करनी हो तब भी एक शेर पिला देता है। संसद में घोटाले की बात होती है तो उसका जवाब शेर से देता है। स्कैम पर शेर, कैम पर शेर।

उधर विपक्ष का नेता भी शेर का जवाब देने के लिए शेर ठोंक देता है। प्रेस कांफ्रेंस की शुरुआत शेर से करता है। प्रेस कांफ्रेंस के बीच में शेर भर देता है। प्रेस कांफ्रेंस का अंत शेर से कर देता है। पिछले कई वर्षों से शेर ही भारतीय नेताओं का कवच-कुंडल बना हुआ है।

कुल मिलकर कहा जा सकता है कि फिलहाल भारतीय राजनीति का शेरकाल चल रहा है।

कई बार सोचता हूँ कि मंत्री जी संसद में प्रश्नकाल के लिए तैयारी करते हुए अपने पीए से बोलते होंगे; "अरे भाई, आज संसद में सड़क घोटाले पर प्रश्न का जवाब देना है। आंकड़ों के साथ शेर वाले पेज रक्खे या नहीं?"

पीए बोलेगा; "सर, मैंने ग़ालिब के तीन शेर चुने थे। आप उन्हें देख लेते तो ठीक रहता। अगर आपको पसंद न हों तो फिर मीर के शेर चुनकर रख देता। मैं मीर का दीवान साथ ही लाया हूँ। कोई टेंशन की बात नहीं है, बस मुझे पंद्रह मिनट लगेंगे।"

पीए की बात सुनकर मंत्री जी कहेंगे; "अरे, ये मीर और ग़ालिब के शेर समझने में मुश्किल होती है। ऐसा शेर दो जो मुझे भी समझ में आये और विपक्षी सांसद को भी।"

पीए बोलेगा; "सर, फिर तो मेरा सुझाव है कि बशीर बद्र साहब के शेर इसके लिए उपयुक्त रहेंगे। उनका लिखा समझ में आ जाता है। अपने शेर सलाहकार राशिद साहब भी यही कह रहे थे।"

मंत्री जी हाँ कर देंगे और पीए नए शेर चुनने निकल जाएगा। यह हिदायत देते हुए कि; "सर, आप पिछले दो प्रश्नकाल के दौरान "मैं तो दरिया हूँ मुझे अपना हुनर मालूम है, जिस तरफ से चल पडूँगा रास्ता हो जायेगा" कह चुके है। इसलिए इसको इसबार मत कहियेगा क्योंकि अमर सिंह ये दो लाइनें इतनी बार बोल चुके हैं कि कुछ लोग समझते हैं कि ये उन्ही का शेर है।"

हाल यह है कि प्रधानमंत्री, मंत्री और सांसद ही नहीं, राजनीतिक दलों के प्रवक्ता भी जब-तब शेर ठेलते रहते हैं। कोई सी एम पार्टी अध्यक्ष से नाराज है या नहीं इसका जवाब शेर से देते हैं। सी एम के ऊपर अध्यक्ष का हाथ है या नहीं, इस सवाल का जवाब भी शेर में ही दिया जाता है। पार्टी के भीष्मपितामह कोप भवन में हैं या शरशैय्या पर, यह बताने के लिए शेर का इस्तेमाल किया जाता है। और सी एम को अमेरिकी वीजा की जरूरत है या नहीं यह बताने के लिए भी शेर ही ठोंका जाता है। मुझे तो लगता है की पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कुछ इस तरह की बातें होती होंगी;

अध्यक्ष; "देखिये, उनको प्रवक्ता बनाने के आपके प्रस्ताव से मैं सहमत हूँ लेकिन मेरे लिए यह जानना जरूरी है कि उनका शायरी और गजलों का ज्ञान कैसा है?"

महासचिव; "अध्यक्ष जी, उनका शायरी और ग़ज़लों का ज्ञान कमाल का है। अभी हाल ही में एक टीवी पैनल डिस्कशन में उन्होंने विपक्षी प्रवक्ता को ऐसे-ऐसे शेर खींच कर मारे कि मैं भी हथप्रभ रह गया। यह सोचते हुए कि ये बिजनेसमैन होते हुए भी इतना टाइम कब निकाल पाए कि ऐसे-ऐसे शेर याद कर लिया? माने इनकी शेरो शायरी का टैलेंट देखकर एंकर की भी बोलती बंद हो गई थी।"

अध्यक्ष; "फिर तो ये कमाल के प्रवक्ता साबित होंगे। आखिर एक प्रवक्ता को और किस चीज का ज्ञान चाहिए? ग़ज़लों और शेरो का ज्ञान ही सबसे उत्तम ज्ञान है।"

अध्यक्ष जी उनको पार्टी प्रवक्ता बना देंगे।

हालात ऐसे हैं कि आनेवाले समय में पार्टियों की प्राइमरी मेम्बरशिप देते हुए पार्टी की सारी कवायद इसबात पर टिकी होगी कि मेंबर का कविताओं और ग़ज़लों का ज्ञान कैसा है? इस ज्ञान को जांचने परखने के लिए पार्टियाँ समय-समय पर ग़ज़ल ऑडिशन करवाएंगी। उसके लिए पार्टी के मेंबर दिनों तक ग़ज़लों और कविताओं की किताबें रटेंगे। हर मौके के लिए चुनचुन कर शेर नोट करेंगे और रात-रात भर उन्हें याद करेंगे ताकि पार्टी नेताओं को खुश किया जा सके। उधर नेता खुश हुआ और इधर मेंबर का प्रवक्ता बनना तय।

पार्टियाँ अपने-अपने कार्यालय में नए-नए शायर रिक्रूट करेंगी ताकि जिन सदस्यों को मीर, ग़ालिब, जौक वगैरह के शेर समझ में नहीं आते उन्हें उनका मतलब समझाया जा सके। मंत्री, सांसद और महासचिवों के लिए कम्पलसरी हो जायेगा कि सीनियोरिटी को ध्यान में रखते हुए वे जब भी कोट करें किसी बड़े शायर के शेर ही कोट करें। अगर भूल से भी वे कम मशहूर शायरों के शेर कहें तो उन्हें अगली कार्यकारिणी में वार्निंग दे दी जाएगी कि अगर वे दूसरी बार ऐसा करेंगे तो अप्रेजल के समय इसबात को ध्यान में रखते हुए उन्हें डिमोट भी किया जा सकता है। वहीँ अगर छोटा नेता बड़े शायरों के शेर कोट करेगा तो चाहे वे शेर उसकी समझ कें आये या न आये, उसके इस कृत्य को अप्रेजल के समय ध्यान में रखा जाएगा और अगर उसके ग्रहों का संयोग ठीक रहा तो उसे प्रमोशन भी दिया जायेगा।

अगर कोई प्रवक्ता या नेता प्रेस कांफ्रेंस में या टीवी पैनल डिस्कशन में शेर को गलत ढंग से पढ़ेगा तो पार्टी उपाध्यक्ष को अधिकार रहेगा की वह उस प्रवक्ता या नेता को मेमो इश्यू करे और उससे जबाब-तलब करे। बड़े मजेदार दृश्य दिखाई देंगे। जैसे;

उपाध्यक्ष; "ये क्या सुन रहा हूँ मैं? कल आपने प्रेस कांफ्रेंस में शेर पढ़ते हुए गलती कर दी?"

प्रवक्ता; "वो क्या था कि गलती हो गई।"

उपाध्यक्ष; "इस तरह की गलती की अपेक्षा आपसे नहीं थी मुझे। आपको पता है कि पूरा मीडिया हंसी उड़ा रहा है। आपकी भी और पार्टी की भी।"

प्रवक्ता; "दरअसल वो शेर पढने से पहले पत्रकार ने कोल स्कैम की बाबत सवाल पूछा और उसमें कानूनमंत्री को दोषी साबित करने की कोशिश की, इसलिए मुझे गुस्सा आ गया। आप तो जानते ही हैं कि विज्ञान ने भी साबित कर दिया है कि गुस्से में मनुष्य का दिमागी संतुलन खराब हो जाता है। इसलिए मैं शेर पढ़ते हुए गलती कर बैठा।"

उपाध्यक्ष; "देखिये बहाने मत बनाइये। शेर कहना एक कला है। जब मैं कला की बात कर रहा हूँ तो आप विज्ञान की बातें कर के मुझे बहकाने की कोशिश न करें।"

प्रवक्ता; "मैं आपके सामने ऐसी धृष्टता कदापि नहीं कर सकता।"

उपाध्यक्ष; "पहले तो आप ऐसे शब्द न बोलें जो मुझे समझ में न आयें। और सबकुछ छोड़कर पहले मुझे धृष्टता और कदापि का मतलब समझाइये। वैसे आपसे गलती क्या हुई थी?"

प्रवक्ता; "वो दरअसल हुआ ऐसा कि माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूँ मैं की जगह मैं माना कि तेरी ईद के काबिल नहीं हूँ मैं पढ़ गया।"

उपाध्यक्ष; "अरे तो यह तो छोटी से गलती थी। इसको आप संभाल नहीं पाए?"

प्रवक्ता; "मैंने कोशिश की थी कि ईद की बात करके इसे सेकुलरता का मोड़ दे दूँ लेकिन आप तो जानते ही हैं कि कई पत्रकार आजकल विरोधी पार्टी की तरफ से भी काम करने लगे हैं।"

उपाध्यक्ष प्रवक्ता को मेमो इश्यूं कर देगा जिसमें लिखा होगा; "आप मुझे एक सप्ताह के अन्दर जवाब दें कि प्रेस कांफ्रेंस में शेर को गलत ढंग से बोलने के लिए आपको सस्पेंड क्यों न किया जाय? जबतक आप जवाब नहीं देते, आपकी जगह माखनलाल जी पार्टी प्रवक्ता का काम करेंगे।"

कुल मिलाकर पूरी भारतीय राजनीति शेर-ओ-शायरी प्रधान होगी।

मोहल्ले के वे शायर जिन्हें मुशायरों में कोई नहीं सुनता और जिनके माँ-बाप उन्हें उठते-बैठते शायर बनने के नुकशान गिनाते रहते हैं वे राजनीतिक पार्टियों द्वारा रिक्रूट कर लिए जायेंगे। जाहिल जौनपुरी, नवाब आसनशोला और कट्टा कानपुरी को रोजगार मिल जाएगा। उन्हें सफल होने के लिए मोहल्ले के लोकल मुशायरों का मुंह नहीं ताकना पड़ेगा। अमेरिकी प्रेसिडेंशियल एलेक्शन में होने वाले डिबेट की तर्ज पर राजनीतिक पार्टियाँ शेर डिबेट करवाएंगी। पूरा भारत तुकबंदी की गिरफ्त में आ जायेगा।

लोकतंत्र को मजबूत करने का एक और रास्ता मिल जाएगा।

इस मौके पर आपको कट्टा कानपुरी के एक शेर के साथ छोड़ जाता हूँ। वे लिखते हैं;

जो चाहो कर बैठो स्कैम या घोटाला
क्यों डरना जब साथ है ये शेर-ओ-शायरी।

--कट्टा कानपुरी

16 comments:

  1. इस लेख की तारीफ़ के लिये कोई मौंजू शेर लिखना चाहता था लेकिन शेर वाली किताब मिल नहीं रही है अभी -बवाल है।

    कट्टा कानपुरी और दूसरे लोकल शायरों को रोजगार मिलने की बात सच्ची में बहुत नेक ख्याल है। ये वाला दरिया चल पड़े तो खूब चौड़ा रास्ता खुल जायेगा रोजगार का।

    आपका एकबाल बुलंद रहे, रोजगार दिलाइये फ़ुटकर शायरों को। :)

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  2. रोजगारी का वायदा हो तो हम भी कहने लग जायें कविता, आई मीन शेर।

    क्या ख्याल है - ज्ञानदत्त ज्ञानपुरी ठीक रहेगा?

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  3. :
    सरकार भी है सिंह की,यह शेरकाल है
    पंजा है उनके पास तो पब्लिक पै गाल है

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    1. 'sherkal' .... ke ye 'katta-kanpuri sher' .........kamal ka hai......


      jai ho.

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  4. नेताओं के फेसबुक और ट्विट्टर एकाउंट को मैंनेज करने के लिए जैसे कंटेट राईटरों की नियुक्ति हो रही है अकबर रोड कार्यालय पर,आपकी ये परिकल्पना रोजगार के नए अवसर को जन्मेगा.

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  5. "कुल मिलकर कहा जा सकता है कि फिलहाल भारतीय राजनीति का शेरकाल चल रहा है।"

    couldn't agree more ;-)

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  6. "कुल मिलकर कहा जा सकता है कि फिलहाल भारतीय राजनीति का शेरकाल चल रहा है।"

    Couldn't agree more :-)

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  7. Jo chaahe v karein scam ya ghotaala, aap yun hi pirote rahiye vichaaron ki maala...... :) Mein bhi hutkar shayar : p
    Badiya likhe hain..sherkal hi hai.

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  8. शेर काल भी चल रहा है और कट्टा काल भी = अलाल है तो बस शेयर काल में

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  9. शेर काल चल रहा है , कट्टा काल चल गया , शेयर काल दोनों का ज़ारी है

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  10. बंधू देश शायरों के स्वर्ण काल से गुज़र रहा है , इसी लिए फेसबुक पे देखिये नब्बे प्रतिशत लोग आपको शेर मारते नज़र आयेंगे ...हम जैसे छुट भाइयों की तो समझिये चांदी होगयी है , अभी पोलिटिकल पार्टी तक तो नहीं पहुंचे हैं लेकिन इक्का दुक्का समारोह के तथाकथिक अध्यक्ष जरूर प्रार्थना करते आये हैं के एक आध शेर बोलने हमारे को दीजिये ना, कल मोहल्ले में नाइ की दूकान के उद्घाटन पे भाषण देना है ...अभी तो हम सिर्फ इस लिए अपने अधपके शेर लोगों को फ़ोकट में दे रहे हैं ताकि नाम हो जाय बस ...एक बार नाम हो गया तो समजिये एक एक घटिया शेर के , जिन्हें कहने में हमें महारत हासिल है,हजारों रूपये लेंगे हजारों।।।किस्मत बदलने वाली है बंधू ...जलने वाले जल करें।।।हमने तो कहा था के ये लेख वेख लिखने बंद करो और शायरी करने लगो लेकिन आपने सुना ही नहिन…
    ग़ज़ब पोस्ट लिखे हैं आप ग़ज़ब .

    नीरज ,

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  11. दे के धक्के और धड़ल्ले, लिखने वाले लिखे जा रहे,
    छुटके बड़के जितने डब्बे, उचक उचक सब दिखे जा रहे।

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  12. काम की बात कौन नेता करे अब
    अब तो शेरों का जमाना आ गया ।
    गालिब, मीर, दाग को समझे कौन
    जाहिल,कट्टों का जमाना आ गया ।

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  13. चाचा जी का कमेन्ट जो उन्होंने मेल से भेजा है



    comments on blog kya khub likha bhai shivkumarji, pahale darbar mein ek maskhara hua karata tha, ab poora ka poora kunba maskharon se bharti hai , bahut acchha hai kam se kam es daur dein labon par hansi to aai bhale hi vibhats sahi .. mera sadhuvad, aapki kalam ko takat mile aur labon par tabassum ki lahar daure.......

    --ratan malani rishra

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  14. ऐसे समय में जबकि राजनीति में चारों तरफ़ सिर्फ़ गीदड़ और जन्म-जन्मांतर और कई पीढ़ियों से भूखे भेड़िये दिखाई दे रहे हैं, शेरों की बात करना बड़ा सुकून दे रहा है. :-)

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  15. शेरकाल की क्या खाल खींची है ...गज़ब गज्ज़ब गज्ज़ब ...

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय