शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय, ब्लॉग-गीरी पर उतर आए हैं| विभिन्न विषयों पर बेलाग और प्रसन्नमन लिखेंगे| उन्होंने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे| लेकिन कभी-कभी गम्भीर भी लिख दें तो बुरा न मनियेगा|
||Shivkumar Mishra Aur Gyandutt Pandey Kaa Blog||
Tuesday, October 1, 2013
गाँधी जी थैंक यू
हर साल की तरह इस साल भी २ अक्टूबर आ ही गया. हर साल की तरह इस साल भी भाषणों की झड़ी लगेगी, टीवी पर गाँधी फिल्म दिखाई जाएगी, रेडिओ पर "दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल.…." बजेगा और टीवी पर चल रहे रियलिटी शो में लोग गाँधी जी के बहाने ऐ मेरे वतन के लोगों ………….गायेंगे. ऐसे में पेश है एक नेता का भाषण जो उसने २ अक्टूबर २०१२ के दिन अपनी जनता पर चेंप दिया था. आप बांचिये.
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सभा में उपस्थित देशवासियों, आज गाँधी जी का जन्मदिन है. यह न सिर्फ गाँधी जी के लिए बल्कि हमारे लिए भी सौभाग्य की बात है कि आज यानि २ अक्टूबर को गाँधी जी का जन्मदिन है. आज अगर उनका जन्मदिन नहीं होता तो न ही हमारे लिए यह सौभाग्य की बात होती और न ही हम उनका जन्मदिन मना पाते. ऐसे में हम कह सकते हैं कि आज के दिन जन्म लेकर उन्होंने हमसब को उनका जन्मदिन मनाने का चांस दिया जिसके लिए हम उनके आभारी हैं. भाइयों, देखा जाय तो मौसम के हिसाब से भी अक्टूबर के महीने में जन्म लेकर उन्होंने हमें एक तरह से उबार लिया. फर्ज करें अगर वे मई या जून के महीने में पैदा हुए होते तो गरमी की वजह से उनके जन्मदिन पर मैं शूट नहीं पहन पाता. अब आप खुद ही सोचिये कि बिना शूट के गाँधी जी जैसे महान व्यक्ति का जन्मदिन समारोह कितना फीका लगता. सच बताऊँ तो बिना शूट के मैं गाँधी जी का जन्मदिन मना ही नहीं पाता और अगर ऐसा नहीं होता तो बहुत बड़ा नुक्सान हो जाता. मुझे भाषण देने का चांस नहीं मिलता और आपको भाषण सुनने का चांस नहीं मिलता. ऐसे में हमारी और आपकी मुलाक़ात नहीं हो पाती. और आपतो जानते ही हैं कि नेता और जनता की मुलाकात न हो तो लोकतंत्र को क्षति पहुँचती है. इससे साबित होता है कि २ अक्टूबर लोकतंत्र के लिए भी शुभ है.
इन सारे संयोंग पर गहरे से सोचें तो कह सकते हैं कि गांधी जी हमसब का थैंक्स डिजर्व करते हैं. आइये लगे हाथ हम उन्हें थैंक्स कह ही दें. मैं कहूँगा गांधी जी और आपसब एक स्वर में कहेंगे थैंक यू.
गांधी जी
थैंक यू
गाँधी जी
थैंक यू
भाइयों, आपका तो नहीं पता लेकिन हमें बचपन से ही सिखाया गया कि हमें गांधीजी के रस्ते पर चलना है. हमारे पिताजी ने तो हमें यह सीख चार वर्ष की उम्र में ही दे दी थी कि हमें गाँधीजी के रस्ते पर चलने की जरूरत है. यह मैं आपको तब की बात बता रहा हूँ जब वे अपने एरिया के म्यूनिसिपल काउंसिलर थे. मुझे अच्छी तरह से याद है उन्होंने म्यूनिसिपल कारपोरेशन में संघर्ष करके हमारे मोहल्ले में पाँच सौ मीटर की एक सड़क बनवाई और उसका नाम गाँधी जी के नाम पर एम जी रोड रखा. मैं और मेरा छोटा भाई दोनों उस रोड पर चलकर स्कूल जाते थे. बाद में जब पिताजी ने म्यूनिसिपल कारपोरेशन में मेयर का पद हथिया लिया तब हम दोनों भाई उनकी आफिसियल कार में बैठकर उसी एम जी रोड के ऊपर से जाते थे. वैसे मोहल्ले के कुछ दुष्ट लोगों ने कानाफूसी करके यह बात फैला दी थी कि चूंकि मेरे दादाजी का नाम मुकुंदीलाल गुप्ता था इसलिए पिताजी ने रोड का नाम एम जी रोड रखा था. पिताजी और भगवान को पता है कि यह सच नहीं है.
भाइयों, आप खुद देखें कि अपने पिताजी के पढाये पाठ पर हम कितनी छोटी उम्र से अमल कर रहे हैं.
भाइयों, यह तो हुई मेरे पिताजी और मेरी बात. लेकिन आपलोग उनके रस्ते पर चलें उसके लिए सबसे पहले जरूरत है कि आप गाँधी जी के बारे में जानें. आखिर उनके बारे में बिना जाने आप उनके रस्ते पर कैसे चलेंगे? इसलिए मैं अब आपको गाँधी जी के बारे में बताता हूँ. भाइयों, गांधी जी ने वकालत की पढाई की थी जिससे वे वकील बन सकें. आप पूछ सकते हैं वे डॉक्टर या इंजिनियर क्यों नहीं बने? तो इसका जवाब यह है कि उन दिनों वकालत में जितना पैसा था, उतना डाक्टरी में नहीं था. दूसरी बात कह सकते हैं कि वकालत करना उस ज़माने में फैशन की तरह था. ऊपर से गाँधी जी इंटेलिजेंट थे और उनको पता था वकालत में बहुत पैसा था. भाइयों, वकालत में पैसा था तभी गांधी जी उस जमाने में फर्स्ट क्लास में चलते थे.
भाइयों, वकील बनकर उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में अपनी प्रैक्टिस शुरू की. वही दक्षिण अफ़्रीका जहाँ के हैन्सी क्रोनिये थे. हैन्सी क्रोनिये से याद आया कि जब मैं क्रिकेट बोर्ड का अध्यक्ष था तब एकबार दक्षिण अफ्रीकी टीम भारत के दौरे पर आई और मुझे हैन्सी क्रोनिये से मुलाकात करने का सौभाग्य प्राप्त …… (पब्लिक शोर करती हैं)
अच्छा अच्छा मैं मुद्दे पर आता हूँ. मैं जरा अलग लैन पर चला गया था. नहीं.. नहीं.. ऐसा न कहें, मैंने सोचा कि मैं आपसे अपना अनुभव बाटूंगा तो आपलोगों को प्रेरणा मिलेगी. वैसे आप चाहते हैं तो मैं वापस मुद्दे पर आता हूँ. तो भाइयों मैं कह रहा था कि गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में अपनी वकालत की प्रैक्टिस शुरू की. आप तो जानते ही हैं कि दक्षिणी अफ्रीका सोने की खानों के लिए प्रसिद्द है. इसीलिए मैंने गाँधी जी से प्रेरणा ली और आज आप खुद ही देखिये कि सोना मुझे कितना प्रिय है. मैं न सिर्फ सोना पहनता हूँ बल्कि संसद में भी सोने का कोई चांस हाथ से जाने नहीं देता.
भाइयों दक्षिणी अफ्रीका की बात चली हैं तो मैं आपको गांधी जी से संबंधित एक संस्मरण सुनाता हूँ. गाँधी जी हमेशा फर्स्ट क्लास में ही सफ़र करते थे. पैसे की कोई कमी तो थी नहीं उनको. तो एकबार वे फर्स्ट क्लास में बैठे कहीं जा रहे थे तो हुआ क्या कि वहां के एक अँगरेज़ टीटी ने उन्हें डिब्बे से बाहर फेंक दिया. मुझे पता है आपके मन में यह उत्सुकता होगी कि उस टीटी ने गाँधी जी को डिब्बे से बाहर कैसे फेंका? तो मैं कहना चाहूँगा कि जिन्होंने गाँधी फिल्म देखी है उन्हें तो पता होगा ही कि उस टीटी ने गाँधी जी को डिब्बे के बाहर कैसे फेंका था लेकिन जिन्होंने वह फिल्म नहीं देखी है उनके लिए मैं बताता चलूँ कि उस टीटी ने उन्हें वैसे ही फेंका जैसे हमलोग कई बार इमरजेंसी पड़ने पर फर्स्ट क्लास या सेकंड क्लास के यात्रियों को डिब्बे से बाहर फेंक देते हैं. अब देखिये हमने इतना बता दिया. जो नहीं बताया वो आपलोग कल्पना कर लीजिये.
तो मैं कह रहा था कि उस अँगरेज़ टीटी ने गाँधी जी को डब्बे से बाहर फेंक दिया. सच तो ये है कि उन दिनों वहां अंग्रेजों का राज था. और अँगरेज़ बहुत ख़राब होते थे. बहुत ख़राब माने बहुत खराब. लेकिन इसका मतलब क्या वे कुछ भी करते और गाँधी जी बर्दाश्त कर लेते? कदापि नहीं. अब वे अगर गाँधी जी को डिब्बे से बाहर फेंकेंगे तो क्या गाँधी जी चुप रहते? क्यों चुप रहते? क्या कोई विदाउट टिकेट चल रहे थे जो चुप रहते? बस जब टीटी ने उन्हें बाहर फेंका उसी दिन से गाँधी जी का अंग्रेजों से लफड़ा शुरू हो गया. उन्होंने उसी दिन कसम खाई कि वे अंग्रेजों को भारत में नहीं रहने देंगे. उनको पता था कि जो अँगरेज़ दक्षिण अफ्रीका में राज करते थे वहीँ अँगरेज़ भारत में भी राज करते थे. फिर क्या था, अंग्रेजों से बदला लेने के लिए वे भारत वापस आ गए. भारत आकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. जाकर उनसे सीधा-सीधा कह दिया कि अंग्रेजों भारत छोड़ दो. अँगरेजों ने आना-कानी तो की लेकिन गाँधी जी भी कहाँ छोड़ने वाले थे? उन्होंने उनको भारत से भगा कर ही दम लिया. वो गाना तो सुना ही होगा आपने. अरे वही जो आज के दिन खूब बजता है. अरे वही बस मुंह में है याद नहीं ……हाँ, याद आ गया. वो गाना था न कि दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल.
मुझे पता है आपके मन में सवाल उठा रहा होगा कि ये साबरमती का संत कौन है? तो मैं आपको बता ही देता हूँ कि ये और कोई नहीं खुद गाँधी जी ही थे. वो क्या था कि साबरमती में ही उनका आश्रम था और आपतो जानते ही हैं कि आश्रम में संत रहते हैं इसलिए उनको साबरमती का संत कहा जाता है.
भाइयों, अब मैं आपको गांधी जी से सम्बंधित अन्य पहलुओं के बारे में बताता हूँ. आपको जानकर हैरानी होगी कि उनको बंदरों से बहुत प्यार था. आपके मन में बात आती होगी कि बन्दर भी कोई प्यार करने की चीज हैं? तो इसका जवाब मैं ये दूंगा कि दरअसल गाँधी जी श्री रामचन्द्र से बहुत प्रभावित थे इसलिए वे कई बार न सिर्फ रामराज की बात करते थे बल्कि वे श्री रामचन्द्र जी की तरह ही बंदरों से प्यार भी करते थे. सच तो ये हैं कि उन्हें बंदरों से उतना ही प्यार था जितना आजकल हम कुत्तों, गधों वगैरह से करते हैं.
आप पूछ सकते हैं कि गाँधी जी को बन्दर ही प्रिय क्यों थे? हमारी तरह उन्हें कुत्ते या गधे प्रिय क्यों नहीं थे? भाइयों, इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको थोडा इतिहास की पढाई करनी पड़ेगी. लेकिन चूँकि पढाई करने के लिए आपका साक्षर होना जरूरी है और हमने आपको साक्षर होने नहीं दिया इसलिए हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम आपको बताएं कि इतिहास में क्या लिखा गया गया है या फिर गाँधी जी के इस पहलू को लेकर इतिहासकार क्या कहते हैं? क्या विचार रखते हैं? तो भाइयों वैसे तो इतिहासकारों में इसको लेकर भिन्न-भिन्न मत हैं लेकिन ज्यादातर इतिहासकार यह मानते हैं कि उन दिनों देश के कुत्तों और गधों पर राजाओं और नवाबों का कब्ज़ा था. उन लोगों ने ही सारे कुत्तों और गंधों को पाल रखा था.
ऐसे में गाँधी जी ने बंदरों को चुना. आप ने देखा भी होगा कि उनके तीन बन्दर थे जो अपना कान, मुंह और आँख बंद रखते थे. भाइयों, वैसे तो बहुत लोग इन बंदरों से बहुत इम्प्रेस्ड रहते हैं लेकिन मैं आपको अपना पर्सनल विचार बताऊँ तो मुझे ये तीनों बन्दर कोई बहुत इम्प्रेसिव नहीं लगे. मैं पूछता हूँ कि जब भगवान ने आँख, कान, मुंह वगैरह दिए हैं तब उनको बंद रखने का क्या तुक है? मैं पूछता हूँ कि खुला रखने में कौन सा पैसा खर्च हो जाता? ऊपर से अगर आप साइंस के लिहाज से देखें तो वैज्ञानिक बताते हैं कि अगर अंगों का इस्तेमाल न हो तो उनके नष्ट हो जाने का भय रहता है. अब इन सब बातों को देखा जाय तो ये बन्दर सच में कोई इम्प्रेसिव बन्दर नहीं थे.
भाइयों, वैसे तो गाँधी जी महान थे लेकिन एक बात में वे कच्चे थे. वे अपने बेटों को आगे नहीं बढ़ा सके. देखा जाय तो एक पिता का असली कर्त्तव्य नहीं निभा सके. आप तो जानते ही हैं कि वे राष्ट्रपिता थे. मतलब भारत उनका था. ऐसे में उन्हें चाहिए था कि वे अपने बेटों को, पोतों को आगे बढाते. उन्हें प्रेजिडेंट, प्राइम मिनिस्टर, मिनिस्टर बनाते. लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए. मैं पूछता हूँ कि एक पिता का कर्त्तव्य क्या केवल अपने बच्चों का लालन पालन ही होता है? क्या पिता का यह कर्त्तव्य नहीं कि वह उसे पद दिलाये? अपने प्रभाव से जमीन का प्लाट दिला दे? कोई कंपनी खोल दे? यह सब वे नहीं कर सके तो यही एक बात है जहाँ वे न सिर्फ कच्चे साबित हुए बल्कि हमलोगों से पीछे रह गए. आखिर बच्चों का भला करना एक पिता का कर्त्तव्य है. आज मुझे ही देख लीजिये. मैं खुद केन्द्रीय मंत्री हूँ. मेरा एक बेटा सांसद है. दूसरा बेटा स्टेट कैबिनेट में है. उसका बेटा अपने शहर का मेयर …… भाइयों अब आप ही बताइए, इस मामले में हम बड़े कि वे?
फिर मैं यह सोचकर संतोष कर लेता हूँ भाइयों कि मैं भी तो उन्ही की संतान हूँ. अरे जो राष्ट्रपिता है उसकी संतान तो उस राष्ट्र का एक-एक नागरिक है. अब मैं आगे बढ़कर नेता बन गया तो समझ लीजिये कि उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया. आप वहीँ रह कर जनता बने रहे तो समझ लीजिये कि उन्होंने आपको आशीर्वाद नहीं दिया. सब आशीर्वाद का खेल है. मुझे तो गाँधी जी के अलावा मेरे पूज्यनीय पिताजी का भी आशीर्वाद प्राप्त था.
भाइयों, गाँधी जी तो महान थे. इतने महान थे कि उनकी गाथा का कोई अंत नहीं है. खुद मैं पिछले चालीस साल से आज के दिन उनके बारे में भाषण देता आ रहा हूँ लेकिन हर साल मुझे लगता है कि अभी कितना कुछ है उनके बारे में कहने को. हर साल मुझे सुनाने में मज़ा आता है और आपको सुनने में. इसका एक फायदा यह है कि उनकी गाथा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती जा रही है. मुझे आशा है कि अगले वर्ष भी हमलोग इसी मैदान में मिलेंगे और मैं आपको उनके बारे में और बहुत सारी बातें बताऊँगा. तबतक चांस यह है कि मैं गृहराज्य मंत्री से प्रमोट होकर कोल मिनिस्ट्री में चला जाऊं. आजकल सबसे मलाईदार मिनिस्ट्री वही है. मैं कोयला मंत्री बन गया तो फिर गाँधी जी के बारे में कहानियां सुनाने का मजा और आएगा. भाइयों, कहानी जितनी पुरानी हो, उतनी मज़ा देती है. इसलिए मैं अपने इस वादे के साथ कि अगले साल इसी मैदान आपको फिर से कहानी सुनाऊंगा, आपसे विदा लेता हूँ.
तबतक के लिए बोलो गाँधी जी की जय!
डिस्क्लेमर: मैंने गाँधी-जयंती पर एक नेता का भाषण साल २००८ में लिखा था. अब आप नेताओं के स्पीच राइटर्स को तो जानते ही हैं. किसी ने उस नेता के भाषण को ब्लॉग से कॉपी कर के थोड़ी-बहुत हेर-फेर करके अपने मंत्री को दे दिया और उस मंत्री ने यह भाषण अपनी जनता पर २ अक्टूबर २०१२ के दिन चेंप दिया. यह वही भाषण है. यह डिस्क्लेमर मैंने उन लोगों के लिए लिखा है जिन्होंने २००८ वाला भाषण पढ़ रक्खा है:-)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - बुधवार - 2/10/2013 को
ReplyDeleteजो जनता के लिए लिखेगा, वही इतिहास में बना रहेगा- हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः28 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
क्या बात! क्या बात! क्या बात !
ReplyDeleteगांधीजी के आदर्शों का पलीता जितना लगा सकते थे, हम लगा रहे हैं।
ReplyDeleteथैंक यू गांधी जी ..
ReplyDeleteऔर थैंक यू लाल बहादुर शास्त्री को नहीं देना क्या ?
थैंक यू शास्त्री जी !!
गांधी जी
ReplyDeleteथैंक यू।
अगर आप का ाज जन्मदिन ना होता तो हम ये भाषण कैसे पढ पाते?
:)
ReplyDeleteमैं गाँधी जयंती के दिन कहने वाला था आपसे कि किसी बच्चे का लेख नहीं आया बहुत दिनों से.
भाषण भी वैसा ही है। :)
वकालत की पढाई वाला कांसेप्ट बढ़िया है !.
pls read and follow me i will..ok
ReplyDeleteदुर्योधन एंड टीम ने लाक्षाग्रह में आग लगवा दी थी
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