Wednesday, June 27, 2007

बाल किशन के सुझाव और ब्लॉग में बदलाव

बाल किशन जी मित्र हैं मेरे। साहित्य प्रेमी हैं। अच्छी कवितायें लिखते हैं। बहुत सारी अच्छी बातों में रूचि है उनकी। उनकी अच्छी रुचियों में इजाफा हुआ। २-३ महीनों से उन्होने हिंदी ब्लॉग पढ़ना शुरू किया है। रोज पढ़ते हैं। अब तक अपने आपको एक अच्छे पाठक के रुप में स्थापित कर चुके हैं। मुझे उनकी इस रूचि का पता चला तो मैंने उन्हें अपने ब्लॉग के बारे में बताया। साथ में आग्रह भी कर डाला कि मेरा ब्लॉग भी देखें।
कल मिल गए। मिलते ही कहा। "ये क्या हाल बना रखा है? कुछ लिखते क्यों नहीं"? मुझे समझते देर नहीं लगी कि मेरे ब्लॉग के बारे में बात कर रहे हैं। मैंने उन्हें बताया कि शुरू-शुरू में पैदा हुआ जूनून अब जाता रहा। वो भी केवल दो पोस्ट लिखने के बाद। कई बार लिखने की सोचता भी हूँ तो विषय खोजने के चक्कर में समय चला जाता है। आख़िर किस विषय पर लिखूं। बोले, "विषय की कमी है क्या? कितने ही सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, व्यक्तिगत विषय हैं। किसी पर भी लिख डालो। और कुछ नहीं तो बरसात पर कविता लिख डालो। यादों के नाम पर पुराने फिल्मी गीत लिख डालो। अमेरिका के साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ लिखो। और फिर अमेरिका तक जाने की क्या ज़रूरत है, कलकत्ते में रहते हो, नन्दीग्राम तक तो निगाह ले जा सकते हो। चलो, नन्दीग्राम दूर है, लेकिन सिंगुर तो कलकत्ते के करीब है। वहाँ टाटा का कार प्लांट बनने वाला है। किसानो की ज़मीन छीन ली गई। किसानों के समर्थन में कुछ लिखो। राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है। उसको लेकर इतनी बातें हो रही हैं, उसी पर कुछ लिख डालो। ये विषय अगर अच्छे नहीं लगते तो हुसैन और उनकी कला के पक्ष में लिखो। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ख़तरे में है, उसपर कुछ लिख सकते हो। मोदी जी अभी तक गुजरात में जमे हुए हैं, उनके खिलाफ लिखो। किसी भी मुद्दे पर लिखो, सारे 'हिट' हैं"। मैंने कहा, "तो ठीक है। आज ही नन्दीग्राम पर कुछ लिखता हूँ। सुना है वहाँ फिर से मार-काट मचने वाली है। अगर सरकार ने या 'किसानों' ने मेरा पोस्ट पढा तो हो सकता है, वहाँ कुछ बात बन जाये"।
मैंने सोचा कि मेरा समर्थन करेंगे। लेकिन मेरी बात सुनते ही उन्होने कहा, "तुम पोस्ट क्या लिखोगे। अपने ब्लॉग के लिए एक नाम का जुगाड़ तो कर नहीं पाए"। मैंने बताया कि नाम तो है। 'शिव कुमार मिश्र और ज्ञान दत्त पाण्डेय का ब्लॉग', शायद उन्होने ध्यान नहीं दिया।
बोले, "ये भी कोई नाम है? कौन ध्यान देगा ऐसे नाम पर? किसने दिया ऐसा नाम"? मैंने उन्हें बताया कि ये नाम तो ज्ञान भैया ने दिया है। बोले, " ज्ञान भैया ने खुद तो अपने ब्लॉग का नाम 'ज्ञान दत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल' दे रखा है। अगर अच्छा नाम नहीं जुगाड़ कर सकते थे, तो इस ब्लॉग का नाम 'शिव कुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचलें' दे देते। आख़िर दो मिलकर लिख रहे हो। मानसिक हलचल का बहुवचन कर देते। ब्लॉग को एक अच्छा नहीं तो काम चलाऊ नाम मिल जाता। मैंने कहा, "बात तो तुम्हारी ठीक है। लेकिन, शायद ज्ञान भैया को मेरे अन्दर कोई मानसिक हलचल दिखी नहीं। इसीलिये उन्होने ये नाम नहीं दिया"।
बोले, "इसके अलावा भी तो अच्छे नाम हैं"। मैंने उनसे कहा वही कोई अच्छा नाम सुझा दें। बोले, "कुछ भी रख लो। 'अंधेर नागरी' रख लो। 'सच्चाई की गगरी' रख लो। 'आवारा बोल' रख लो। 'दास्ताँ-ए-ढोल' रख लो। 'सच्चाई की दुकान' रख लो।

मुझे लगा काश कि मैं टीवी चैनल चला रहा होता। दर्शकों को एस एम् एस भेजने का निमंत्रण दे डालता। पैसे तो मिलते ही, साथ में ब्लॉग के लिए एक अच्छा सा नाम मिल जाता। लेकिन मन को समझाया कि अपने केस में ऐसा नहीं हो सकता। मेरी उत्सुकता बढ़ गई। मैंने सोचा पारखी आदमी है। ब्लॉग पढ़ने का अच्छा अनुभव है। इससे और कुछ जानकारी ले सकता हूँ। आख़िर ब्लॉग में और भी तो कमियाँ हो सकती हैं।
"तुम्हें क्या लगता है। और क्या कमी दिखी मेरे ब्लॉग में?" मैंने बाल किशन से पूछा।
बोले, "कम से कम एक शक्ल तो चिपका सकते थे ब्लॉग पर। कैसी भी शक्ल। 'हाल' में या मॉल में पाई गई शक्ल। दंगल में या जंगल में पाई गई शक्ल"। आगे बोले, "तुम जैसे नए 'ब्लागिये' को ब्लॉग पर चिपकाई गई शक्ल के महत्व का पता नहीं। आज सब कुछ बेचने के लिए शक्ल की ज़रूरत पड़ती है। सोचो कि अगर भोला ज़र्दा के डिब्बे से भोला नाथ केसर्वानी की तस्वीर हटा दीं जाये, तो कौन खरीदेगा उसे"।
मैंने सोचा, ब्लॉग और ज़र्दा में कुछ तो अंतर होगा। लेकिन उनके चहरे पर छाई गम्भीरता देखकर मैंने कुछ कहना उचित नहीं समझा। "और किस कमी को सुधारा जा सकता है"? मैंने उनसे पूछा।
बोले, "अपनी प्रोफाइल में अपने बारे में कुछ नहीं लिखा। लिखा भी तो दिनकर जी और परसाई जी के बारे में"। आगे बोले, "मैं समझ गया। खुद के बारे में लिखोगे भी क्या। इसलिये दूसरों के नाम का सहारा लेकर हिंदी ब्लागिंग की दुनियां में जमना चाहते हो। वो भी खुद को दिनकर और परसाई जी का प्रशंसक बताकर। ऎसी दुनिया में जहाँ कई सारे दिनकर और परसाई पहले से मौजूद हैं"। मैं उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका।
मैंने सोचा की आदमी ठीक ही तो कह रहा है। और फिर ठीक तो कहेगा ही। इतने सारे ब्लॉग रोज पढता है। 'हिट' ब्लॉग पढने का अनुभव दिखाई दे रहा था उनके सुझावों में। मैंने पूछा कि और कोई सुझाव है उनके पास, जिसे अमल में लाकर ब्लॉग को पढने लायक बनाया जा सके। बोले, "अभी तक जितने सुझाव दिए हैं, उनपर अमल करते हुए कम से कम २० पोस्ट लिखो, फिर बताऊंगा कि सुधार की जरूरत कहॉ-कहॉ है। वैसे मेरे सुझाव पर अमल करोगे तो कोई कमी नहीं रहेगी।"
बाल किशन जी के सुझावों से इतना बल मिला कि बीस पोस्ट लिख कर उनके पास दूसरे राउंड के सुझावों के लिए जाने का संकल्प मैंने कर लिया है (वैसे भी ज्वाइण्ट ब्लॉग के नियमानुसार मुझे तो आधी पोस्ट ही लिखनी होंगी!)। मेरी समझ में ये बात आ गई है कि बिना लक्ष्य के कोई भी महत्वपूर्ण काम नहीं हो सकता। ब्लागरी भी नहीं।

3 comments:

  1. बहुत अच्छा! जब ब्लॉग हिट बनाने के लिये भोलानाथ केसरवानी जैसी मूछें रख कर फोटो खिंचाना तो बड़े साइज की फोटो मेरे हसबेण्ड के पते पर ई-मेल कर देना.
    और संकल्प किया है तो लिखने से पीछे मत हटना देवरजी!

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  2. चलिये आपकी ये पोस्ट तो २५० शब्दों से ज्यादा की निकली । पहले हम भी सोचते थे कि नाम में क्या रखा है लेकिन बडा दम है । हमें अगर कोई बढिया नाम सूझा तो आपको अवश्य बतायेंगे ।

    तब आप अपनी बाकी पोस्टों का मसाला तैयार कर लें ।

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  3. मैं तो कहता हूँ कि अपने ब्लोग पर एक प्रतियोगिता रख लीजिये....'नाम सुझाओ, टिपण्णी पाओ' इसी बहाने आने वाले लोगों की संख्या भी बढ जायेगी. विजेता को आपकी तरफ से १०० टिप्पणियों का वादा कर दीजिए। (नाम मिलने के बाद वादा भूलने मे देर ही कितना लगता है?)

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय