Sunday, September 2, 2007

मिलिए नीरज भैया (नीरज गोस्वामी) से



नीरज भैया (नीरज गोस्वामी) : एक परिचय
तुम्हें जब याद करता हूं, मैं अक्सर गुनगुनाता हूं
हमारे बीच की जो दूरियां हैं, यूं मिटाता हूं

इबादत के लिए तुम ढूढते फिरते कहां रब को
गुलों को देख डाली पर, मैं अपना सर झुकाता हूं

नहीं औकात है अपनी, मगर ये बात क्या कम है
मैं सूरज को दिखाने दिन में भी दीपक जलाता हूं

मुझे मालूम है तुम तक नहीं आवाज पंहुचेगी
मगर तनहाईयों में मैं तुम्हें अक्सर बुलाता हूं

मैं हूं तनहा तो दरिया में मगर डरता नहीं यारों
जो कश्ती डगमगाती है, उसे मैं साथ पाता हूं

अन्धेरी सर्द रातों में ठिठुरते उन परिन्दों को
अकेले देखकर कीमत मैं घर की जान जाता हूं

घटायें, धूप, बारिश, फूल, तितली, चांदनी ‘नीरज’
ये सब हों साथ तेरे, सोचकर मैं मुस्कुराता हूं

ये वो गजल है, जिसे मैनें ई-बज़्म पर पढी। मेरी एक आदत थी। जब भी मुझे कोई गजल पसन्द आती थी, तो मैं उस गजल के शेरों से मिलते-जुलते एक-दो शेर लिखकर वहां चिपका देता था। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ. मैने काफी मेहनत करके एक शेर लिखा और वहां पर दे मारा. शेर था:

खडे हो जाओगे नीरज कभी तुम उन कतारों में
जहां जब भी नजर जाये, तो मैं ‘नीरज’ को पाता हूं

मेरी इस पचास ग्राम शुद्ध तुकबन्दी वाले शेर को उन्होनें पढा. मुझे एक मेल लिखा. वहां से शुरु हुआ ये ‘मेल-मिलाप’ आजतक चल रहा है. और भगवान करें कि हमेशा चलता रहे.

अब मैं आपको नीरज भैया (जी हां एक मेल के बाद ही पता चल गया कि उनको नीरज या फिर नीरज जी कहना मेरी गलती थी) के बारे में बताता हूं. उनके बारे में लिखना मुझ जैसे इंसान के लिए सम्भव नहीं है.

नीरज गोस्वामी, जिन्हें मैं बडे प्यार से नीरज भैया बुलाता हूं, एक सामान्य से दिखने वाले असामान्य इंसान हैं. मुम्बई के पास एक जगह है, खोपोली. वहां रहते हैं. एक स्टील कम्पनी में वाईस प्रेसीडेंट के पद पर कार्यरत हैं. लेकिन उन्हें इस बात की शिकायत रहती है. कहते हैं - “बन्धुवर हम वहां हैं, जहां हमें नहीं होना चाहिए. कभी-कभी तंग आ जाते हैं समझदारों की बीच में रहते-रहते”. नीरज भैया अच्छी गजलें लिखते हैं, अच्छा साहित्य पढते हैं. दुनियां की सारी अच्छी बातों में रुचि रखते हैं. जीवन जीने का तरीका अद्भुत है. अभी भी बच्चों के साथ क्रिकेट खेलते हैं. हंसते हैं तो दिल खोलकर. जब कभी हम दोनो फोन पर बतियाते हैं तो पूरा लाफ्टर क्लब खोलकर बैठ जाते हैं. कई बार उन्होने मुझे बताया है - “जब भी मैं आपके साथ बात करते हंसता हूं तो मेरे आफिस के कई सारे लोग आकर देख जाते हैं कि मेरी तबीयत ठीक है कि नही”.

जब मैने नीरज भैया से पहली बार बात की उन्होने मुझे बताया; “बन्धुवर इस दुनिया में दो मूर्खन के सरताज हैं, आप और मैं”. उन्होंने मेरी भेजी चिट्ठियों को पढकर ये बात कही थी. जब कभी मैं उनसे शिकायत करता हूं कि; “क्या बात है भैया, आजकल आप चिट्ठी नहीं भेज रहे” तो जवाब आता है - “बन्धुवर आजकल मुझे समझदारों को समय देना पड रहा है. अब आप बतायें समझदारों के बीच में रहते हुए कैसे चिट्ठी भेजूं आपको. अगर आपको लिखी चिट्ठी किसी समझदार ने देख ली, तो मेरी मूर्खता लोगों को पता चल जायेगी”. मैनें कई बार उनसे कहा कि समझदारों के बीच में रहकर तो बहुत कुछ सीखा जा सकता है, तो कहते हैं; “हां सीखा तो जा ही सकता है कि; दो और दो का जोड चार होता है”.

पिछले दिनों मैनें उनसे हिन्दी ब्लाग लिखने के लिये कहा। मुझे पता नहीं कि वे लिखेंगे कि नहीं. लेकिन एक बात हुई है जरूर. उन्होने पिछले दिनों कुछ ब्लाग पोस्ट पर अपनी टिप्पणी लिखनी शुरु कर दी है. और मेरा मानना है कि टिपियाना ब्लागर बनने की पहली सीढी है. सो मेरी आशा बनी है कि वे एक न एक दिन हिन्दी ब्लाग लिखना शुरु करेंगे.

वैसे जब तक वे हिन्दी ब्लाग लिखना शुरु नहीं करते हम उनकी गजलें और कवितायें पढ कर आनंद ले सकते हैं. हम उनकी गजलें सहित्यकुंज और अनुभूति पर पढ सकते हैं.


चलते-चलते:
पिछले कई दिनों से कई सारे ब्लाग पोस्ट पर उनके कमेंट देखकर ज्ञान भैया ने उनके बारे में कहा “अगर वे हमारे समय की पैदाइश हैं तो मैं उन्हें बधाई दूंगा कि उन्होने अपने में बचपन और हंसोड़ - दोनो को सहेजे रखा है। जबरन बुद्धिमत्ता के सलीब पर नहीं चढ़ा दिया.”

एक दिन मैने जब नीरज भैया को बताया कि मैं उनके ऊपर एक पोस्ट लिखना चाहता हूं तो उनका कहना था;
“आप जो मुझ पर ब्लॉग लिखने की रिस्क ले रहे हैं उससे उपजे परिणामों के लिए मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी ये पहले बता देता हूँ ताकी सनद रहे और वक्त पे काम आए.”


10 comments:

  1. टिपियाना ब्‍लॉगर बनने की पहली सीढ़ी है ।

    बिल्‍कुल सही फरमाया, हम इसी सीढी से चढ़कर यहां तक आए हैं

    समझ लीजिये कि नीरज भैया भी आते ही होंगे

    वो खोपोली में हैं और खोपोली तो हमारी मुंबई वाली इस इमारत की छत से दिखता होगा, इत्‍ता नजदीक है

    कमाल है कि कभी उनसे परिचय नहीं हुआ ।

    अभी छत पा जा रहे हैं क्‍या पता वो यहां से खोपोली में टहलते हुए नजर आ जाएं ।

    कम से कम हाथ तो हिलाएंगे ही देखकर

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  2. अच्छा लगा नीरज जी के बारे में जानकर। अब लगता है वे भी जल्दी ही ब्लागर के रूप में आयेंगे। लेकिन आप लिखना कम काहे कर दिया।

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  3. मैं हूं तनहा तो दरिया में मगर डरता नहीं यारों
    जो कश्ती डगमगाती है, उसे मैं साथ पाता हूं
    अन्धेरी सर्द रातों में ठिठुरते उन परिन्दों को
    अकेले देखकर कीमत मैं घर की जान जाता हूं


    नीरज यह प्रोफाउण्ड विचार लिख सकते हैं तो निश्चय ही असाधारण तो हैं ही. आशा है, आगे उनसे सम्पर्क बढ़ेगा और हम उनके "समझदारों" में नहीं गिने जायेंगे.
    असल में शिव, हमें नियति ने जो बनाया है, सो तो उसकी कृपा है; अन्यथा कभी-कभी लगता है कि किसी अन्य क्षेत्र में होते कहीं बेहतर, कहीं ज्यादा शानदार कर गुजरते. और उम्र बढ़ने के साथ साथ यह अहसास और जोर मारता है.
    नीरज जी के बारेमें तो पता नहीं, पर अपने बारे में तो जानता हूं कि निम्न मध्य वर्ग की रोजी-रोटी की फिक्र वाली मनोवृत्ति न होती और दाना-पानी एश्योर्ड होता तो किसी और क्षेत्र में होते, उत्कृष्ट कर रहे होते और "समझदारों" से दूर ही रहते!

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  4. बधाई हो जी , कटिया फसी...कटिया डालना मत छोडिये..बस चारा सही लगा हो और काटा ज्ञान जी का हो ,फिर भी कोई ना फसे..:)

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  5. अनूप जी- 'लेकिन आप लिखना कम काहे कर दिया।'

    अनूप जी, बड़ा आनंद आता है टिपिया कर के. सबसे अच्छा ये कि विषय मिलता रहता है, खोजना नहीं पड़ता...:-) लेकिन हमेशा की तरह मैंने आज एक बार फिर से फैसला लिया है कि अब से रोज लिखा करूंगा.

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  6. नहीं औकात है अपनी, मगर ये बात क्या कम है
    मैं सूरज को दिखाने दिन में भी दीपक जलाता हूं
    इस बात में खास बात है।
    धन्यवाद नीरजजी से परिचय कराने के लिए। इनकी शायरी और लायी जाये ब्लाग पर, यह निवेदन है।

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  7. बंधु
    मैं उन चंद सौभाग्य शाली लोगों मैं से हूँ जो अपने बारे मैं लिखे ब्लॉग पर स्वयं टिपण्णी करने को उपलब्ध हैं !
    मैं शुक्रगुजार हूँ जनाब यूनुस जी ,अनूप शुक्ला जी,ज्ञान भाई ,अरुण जी और
    आलोक जी का जिन्होंने अपना कीमती समय इस ब्लॉग को पढने मैं लगाया ( मैं मजाक कर रहा हूँ अगर इनका समय सही मॆं कीमती होता तो क्या वे मुझ जैसे पे लिखे ब्लॉग को पढने मॆं जाया करते?)
    अब शिव बंधु ने मेरे बारे मॆं सही लिखा है या ग़लत ये निर्णय करना सम्भव नही है क्यों की "जिसकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन देखी वैसी " वाली बात है. अगर ये ही ब्लॉग मेरी श्रीमती जी को लिखने का मौका मिला होता तो उसे पढ़ कर शिव को शायद मुह छिपाने की इस ब्रह्माण्ड मॆं तो कहीँ जगह नहीं मिलती.
    ये शिव का मेरे प्रति प्रेम ही है जो उस से ये सब लिखवा गया है .ज्ञानवान बंधु उसे इस गलती के लिए क्षमा कर दें.

    अपने बारे मॆं इतना स्पष्ट लिखने के बाद भी अगर कुछ लोग अपना हौसला परखना चाहते हैं तो उनसे निवेदन है की वे www.anubhuti-hindi.org and www.sahitykunj.net पर क्लिक करें और मेरी ग़ज़लों को पढने का जोखिम उठाएं इसके बाद उनका जो होगा उसे दुनिया देखेगी.

    नीरज

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  8. सशक्त! नीरज गोस्वामी जी ने अपने परिचय में जो इण्टरनेट पर पता बताया है, उसमें शायद कुछ लोग उनके पन्ने तक खोज कर जाने में खो जायें. उनके पन्ने हैं:
    1. नीरज गोस्वामी अनुभूति पर
    2. नीरज गोस्वामी साहित्य कुंज पर

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  9. उसी दरवाजे हम भी आये थे-पहले अनुभूति फिर साहित्य कुंज तब ब्लाग पर...तो अब समझिये नीरज जी भी आते ही होंगे. इन्तजार सा लग गया है. शुभकामनायें.

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  10. Neeraj ji agar aap nahi bhule ho to main aapko E-BAzm se hi jaanti hoon

    aapko yaha is tarah padha bhaut achha laga

    shukriya shiv ji ka jinhone aapke bare main yaha likh kar purani yaaden taza kar di hai

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय