Tuesday, October 2, 2007

सुप्रीम कोर्ट के सौजन्य से बे पैसे का मनोरंजन!


कल सुप्रीम कोर्ट ने गच्च1 कर दिया. कोर्ट की सख्त नाराजगी की खबर के आध घण्टे में ही करुणानिधि जी भूख हड़ताल स्थल से तहमद (मुण्डु) बांधते सटक लिये. उनकी सरकार ने कहा कि वह कोई बन्द नहीं करा रही थी. कुछ उस अन्दाज में जब चुन्नू रसोई से मिठाई चुरा कर खाता पकड़ लिया जाये तो तुरन्त मुंह पोंछ कर कहे कि - कहां, हम तो रसोई में सिर्फ पानी के लिये ग्लास लेने आये थे. या फिर कन्हैया कह रहे हों - मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो. जयललिता मोसे बैर करतु है; बरबस मुंह लपटायो!

सुना है, जमाने बाद करुणानिधि जी ने उत्तर भारत वालों को लपेटने के लिये कल हिन्दी में कविता भी सुनाई -

हिंदुस्तान है देश हमारा

जान से अपनी हमको प्यारा,

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई

आपस में हैं भाई भाई, भाई

होगा भाई हमारा ऐसा

होगा चलन हमारा।

बन्धुओं, यह कर मुक्त मनोरंजन अभी और चलेगा. शिव कुमार मिश्र जी, जरा अपने सटायर को और पैना करें. आपको और मौके मिलने वाले हैं! :-)


1. गच्च भरतलाल ब्राण्ड हिन्दी का शब्द है. इसका अर्थ है - आल्हादित, प्रसन्न, मुदित.

6 comments:

  1. और क्या समझते हैं कि मनोरंजन का एकाधिकार सिर्फ लालूजी का है। साऊथ में भी भौत बड़े-बड़े हैं।

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  2. बांच् कर् गच्च हो गये हम् तो!

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  3. यह खबर सुन कर सच में गच्चिया गये. :)

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  4. गच्च!!


    भरतलाल जी को गुरु बनाउंगा मै तो

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  5. गच्च होने बाद गच्चा देने का मन है किसे दूँ....

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  6. करुणानिधि जी की कविता की मौलिकता के बारे में आपने प्रकाश नहीं डाला। ना जाने ऐसा क्यों लगता है कि इसी से मिलती जुलती एक कविता हमने कक्षा शिशु या प्रथम में पढ़ी थी।
    "मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो. जयललिता मोसे बैर करतु है; बरबस मुंह लपटायो!" पढ़कर वाकई में आनन्द आया।

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टिप्पणी के लिये अग्रिम धन्यवाद। --- शिवकुमार मिश्र-ज्ञानदत्त पाण्डेय